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भारत के राष्ट्रपति पर निबंध Essay On President Of India In Hindi

भारत के राष्ट्रपति पर निबंध | Essay On President Of India In Hindi :  प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत है आज हम भारत के राष्ट्रपति के पद, स्वरूप, निर्वाचन प्रक्रिया, वेतन, शक्तियाँ व कार्य के बारे में विस्तार पूर्वक राष्ट्रपति भारत पर निबंध में यहाँ जानने वाले हैं.

आज का यह निबंध विद्यार्थियों के लिए विशेष उपयोगी है जो महामहिम प्रेसिडेंट के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं. तो चलिए आरम्भ करते हैं.

भारत के राष्ट्रपति पर निबंध | Essay On President Of India In Hindi

भारत के राष्ट्रपति पर निबंध 250 शब्द.

माननीय रामनाथ कोविंद जी भारत के 14 वें एवं वर्तमान में राष्ट्रपति हैं, भारतीय लोकतंत्र में कार्यपालिका का मुखिया राष्ट्रपति को माना हैं ये देश के प्रथम नागरिक भी कहलाते हैं. भारत के संविधान में राष्ट्रपति को संसद का अंग माना गया हैं. लोक सभा राज्य सभा और राष्ट्रपति से भारतीय संसद बनती हैं.

डॉ राजेन्द्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति एवं श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील देश की पहली महिला राष्ट्रपति थी. राष्ट्राध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति अन्य देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं गणतन्त्र दिवस पर ध्वजारोहण एवं राष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण इन्ही के हाथों से किया जाता हैं.

भारत के राष्ट्रपति को 5 लाख रु प्रतिमाह वेतन के अलावा कई भत्ते भी मिलते हैं, व्यवहारिक दृष्टि से भारत जैसे देश में राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री की तुलना में नामात्र की शक्तियाँ होती हैं अमेरिका जैसे देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता की सम्पूर्ण शक्ति उनके प्रेसिडेंट के हाथों में ही होती हैं.

राष्ट्रपति पर निबंध 1000 शब्द

सरकार के तीन अंगों में से कार्यपालिका अंग विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन सभी देशों में एक ही प्रकार की कार्यपालिका नहीं हो सकती.

मुख्यतः शासन के प्रकार के रूप में संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक का भेद कार्यपालिका के अलग अलग प्रकार एवं कार्यपालिका व व्यवस्थापिका के आपसी सम्बन्धों पर ही आधारित होता हैं.

जिस संविधान में कार्यपालिका अपने कार्यों एवं कार्यकाल के लिए व्यवस्थापिका के प्रति जवाबदेह हो, कार्यपालिका के सदस्य आवश्यक रूप से व्यवस्थापिका के भी सदस्य हो एवं राष्ट्र का अध्यक्ष एवं सरकार का अध्यक्ष अलग अलग हो, इस व्यवस्था को संसदात्मक अथवा संसदीय व्यवस्था कहते हैं.

जापान जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, भारत इत्यादि संसदीय व्यवस्था के उदाहरण हैं. इसके विपरीत अध्यक्षात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति राज्य एवं सरकार दोनों का प्रधान होता हैं.

तथा वह शासन की सारी शक्तियों का केंद्र बिंदु होता है. अमेरिका, ब्राजील आदि अध्यक्षात्मक व्यवस्था के उदहारण हैं. जबकि फ्रांस, रूस, श्रीलंका आदि अर्द्ध अध्यक्षात्मक व्यवस्था वाले देश हैं.

कार्यपालिका का स्वरूप (Nature Of Executive) : भारत में संसदीय व्यवस्था की व्यवस्था की गई है, जिसमें राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक एवं संवैधानिक प्रधान होता हैं. तथा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्री परिषद वास्तविक कार्यपालिका होती हैं.

यदपि राष्ट्रपति का पद गरिमा एवं प्रतिष्ठा का पद माना जाता हैं. वह देश का प्रथम नागरिक माना जाता हैं तथा वरीयता क्रम में सर्वोच्च स्थान रखता हैं. संविधान का अनुच्छेद 52 राष्ट्रपति पद की व्यवस्था करता हैं,

जिसके अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा. अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, जिसका प्रयोग वह स्वयं अथवा अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा करेगा.

भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन (Election Of President Of India In Hindi)

राष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 54 एव 55 में किया गया हैं. अनुच्छेद 54 अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाएगा जो संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा के निर्वाचित सदस्यों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य से मिलकर बनेगा.

इस प्रकार राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता हैं. यह चुनाव एक विशेष विधि, जिसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमनीय मत विधि कहते हैं. के द्वारा गुप्त रूप से होता हैं.

इस विधि में विजयी होने के लिए उम्मीदवार को कुल डाले गये वैध मतों के आधे से एक मत अधिक प्राप्त करना होता हैं.इसे न्यूनतम कोटा कहते हैं.

राष्ट्रपति का निर्वाचन पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए होता हैं. तथा पुनः चुनाव लड़ सकता हैं. राष्ट्रपति किसी भी समय उपराष्ट्रपति को संबोधित कर अपना त्याग पत्र दे सकता हैं.

शक्तियों के दुरूपयोग, कदाचार, संविधान के उल्लंघन के आरोप में राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा पद से हटाया भी जा सकता हैं,

जिसका वर्णन संविधान के अनुच्छेद 61 में हैं. यह महाभियोग संसद के किसी भी सदन द्वारा राष्ट्रपति को कम से कम 14 दिन पूर्व सूचित कर लाया जा सकता हैं. महाभियोग के प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई सदस्यों के बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए.

अगर राष्ट्रपति का पद मृत्यु, त्याग पत्र अथवा पदच्युति के कारण रिक्त हो जाए तब छः माह के भीतर नए राष्ट्रपति का चुनाव करवाना आवश्यक हैं और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति शेष बची अवधि के लिए नहीं बल्कि पांच वर्ष के लिए निर्वाचित होता हैं.

राष्ट्रपति निर्वाचित होने की योग्यताएं (Qualifications For The Election Of President)

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होने के लिए आवश्यक हैं कि

  • वह भारत का नागरिक हो
  • उसकी न्यूनतम आयु पैतीस वर्ष हो
  • वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो

इसके अतिरिक्त वह सरकार के अंतर्गत किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए. गैर गम्भीर व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए निर्वाचक मंडल में से प्रस्तावकों एवं अनुमोदकों की व्यवस्था भी की गई हैं. श्री राजेन्द्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति थे, जो दो बार निर्वाचित हुए.

भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया (Process of the Presidential election of India)

राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में दो बातों पर विशेष बल दिया गया हैं. प्रथम, निर्वाचक मंडल में जनसंख्या के निकटतम संभव समान प्रतिनिधित्व हो.

द्वितीय समस्त विधानसभा सदस्यों द्वारा देय मतों से समता रहे. उक्त उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य की मत संख्या निश्चित करने के लिए विशेष पद्धति अपनाई गई हैं.

राज्य विधान मंडल की मत संख्या प्राप्त करने के लिए राज्य की कुल जनसंख्या वहां के विधानमंडल के कुल चुने हुए सदस्यों में बाँट दी जाती हैं एवं उस भागफल को 1000 से बाँट दिया जाता हैं. निम्न सूत्र से स्पष्ट समझा जा सकता हैं.

विधानमंडल के सदस्यों का मत भार —राज्य की कुल जनसंख्या/राज्य विधानमंडल के निर्वाचित सदस्य ÷ 1000

इस विभाजन में यदि शेष 500 से अधिक आए तो एक माना जाता है एवं भागफल में एक जोड़ दिया जाता हैं. संसद के प्रत्येक सदस्य का मतभार निकालने के लिए राज्यों के विधानमंडल के कुल मतों को दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों में बाँट दिया जाता हैं.

निर्वाचन गुप्त मतदान द्वारा एकल संक्रमनीय आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा होता हैं. इस निर्वाचन में प्रथम, साधारण पद्धति से मतों की न्यूनतम संख्या निर्धारित की जाती हैं. यदि किसी उम्मीदवार को उक्त निर्धारित मत नहीं मिलते तो चाहे उसके सबसे अधिक मत हो.

द्वितीय हार मतदाता को इतने वरीयता मत देने का अधिकार होता हैं जितने उम्मीदवार होते हैं. तृतीय उसको अपनी पसंद से वरीयता निर्धारित करने का अधिकार होता हैं. चतुर्थ यदि प्रथम गणना में किसी भी उम्मीदवार को निर्धारित संख्या में मत नहीं मिलते तो फिर दूसरी गणना प्रारम्भ की जाती हैं.

पंचम पहले उस उम्मीदवार को हटाया जा सकता है जिसकों सबसे कम मत मिले हैं. षष्ट यह क्रिया उस समय तक चलती रहती हैं. जब तक कि किसी एक उम्मीदवार को निर्धारित मत संख्या प्राप्त नहीं हो जाती.

यह पद्धति निम्न उदहारण द्वारा और भी स्पष्ट की जा सकती हैं. हम मान लेते हैं कि राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में चार उम्मीदवार हैं.

वेतन/ विशेषाधिकार/ उन्मुक्तियाँ व अन्य सुविधाएं (Salary/ Privileges/ Immunities And Other Facilities)

भारत सरकार द्वारा 11 सितम्बर 2008 से राष्ट्रपति का वेतन डेढ़ लाख प्रतिमाह निर्धारित किया गया हैं. जब कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर आसीन है.

तब तक उसके विरुद्ध किसी दीवानी या फौजदारी न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता हैं न तो किसी गिरफ्तारी के लिए वारंट ही जारी किया जा सकता हैं. और न ही उसे गिरफ्तार किया जा सकता हैं.

दो महीने के लिखित नोटिस देने के पश्चात राष्ट्रपति के विरुद्ध केवल दीवानी कार्यवाही की जा सकती हैं. पूर्व राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाने पर केवल उनकी पत्नी को सेनानिवृत राष्ट्रपति को मिलने वाली पेंशन की आधी राशि तथा सरकारी मकान आजीवन प्राप्त होगा. राष्ट्रपति भवन उनका औपचारिक आवास हैं जो रायसीना हिल्स दिल्ली में स्थित हैं.

इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के निकट छरबरा में उनका ग्रीष्मकालीन निवास स्थित हैं. जिसका नाम द रिट्रीट हैं. इसके अलावा आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद में राष्ट्रपति निलयम में भी उनका एक अन्य आवास स्थित हैं.

राष्ट्रपति की शक्तियाँ व कार्य पर निबंध ( Essay On powers & Functions Of President In Hindi)

भारत का संविधान राष्ट्रपति को संवैधानिक अध्यक्ष मानता हैं. आज हम राष्ट्रपति की शक्तियाँ व कार्य  में यह जानेगे कि राष्ट्राध्यक्ष को संविधान क्या क्या अधिकार तथा शक्तियाँ देता हैं तथा राष्ट्रपति को कौन कौनसे कार्य करने पड़ते हैं. सामान्यकालीन तथा आपातकालीन शक्तियाँ क्या है तथा उसका उपयोग राष्ट्रपति किस तरह से करते हैं. 

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पदाधिकारी होता हैं. वह राष्ट्राध्यक्ष के रूप में कार्य करता हैं. राष्ट्रपति की शक्तियों को दो भागों में बांटा जा सकता हैं, सामा न्यकालीन शक्तियाँ (General Powers) एवं संकटकालीन अथवा आपातकालीन शक्तियाँ .

भारत के राष्ट्रपति की सामान्यकालीन शक्तियाँ (General Powers Of President)

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां, राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां कार्यपालिका शक्ति (Executive Powers) : जैसा कि पूर्व में बतलाया गया है राष्ट्रपति भारत की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होता हैं. संघ का शासन राष्ट्रपति के नाम से किया जाता हैं.

वह प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों, भारत के महान्यायवादी, विदेशों में राजदूत एवं राज्यों में राज्यपाल नियुक्त करता हैं. राष्ट्रपति भारत के सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीश एवं अन्य न्यायधीश नियुक्त करता हैं.

संघ के स्तर के प्रमुख आयोगों जैसे संघ लोक सेवा आयोग निर्वाचन आयोग , वित्त आयोग आदि के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त हैं.

संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को क्षमादान का अधिकार प्रदान करता हैं. जिसके अनुसार वह किसी व्यक्ति के दंड को जिसमें मृत्यु दंड भी शामिल हैं.

क्षमा, विलम्बन, निलम्बन अथवा लघुकरण कर सकता है. इन सभी के साथ राष्ट्रपति भारत की तीनों सेवाओं का प्रधान सेनापति भी होता हैं. उसे मंत्रीपरिषद की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हैं.

अनुच्छेद 78 के अनुसार प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उसे प्रदान करें.

हम जानते है कि राष्ट्रपति की यह सारी शक्तियाँ औपचारिक ही हैं. वह सब कार्य मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता हैं. लेकिन विशेष राजनीतिक परिस्थितियों में राष्ट्रपति को विवेक के अनुसार निर्णय करना पड़ता हैं. औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता हैं. लेकिन वह किसी को ऐसे नियुक्त नहीं कर सकता हैं.

संसदीय व्यवस्था में लोकतंत्र में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त करता हैं. लेकिन जब चुनाव के बाद किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो, ऐसे में अनेक बार राष्ट्रपति राजनीतिक आधार पर फैसला लेते हुए दीखते हैं.

1998 में चुनाव के उपरांत भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सबसे बड़ा था. एवं बहुमत के करीब था, फिर भी राष्ट्रपति ने गठबंधन के नेता श्री अटल बिहारी बाजपेयी से अपने दावे के समर्थन में सम्बन्धित राजनीतिक दलों के दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा तथा इससे भी बढ़कर राष्ट्रपति ने वाजपेयी को पद्ग्रहण करने के मात्र 10 दिन के भीतर लोकसभा में विश्वास मत प्राप्त करने को कहा.

राष्ट्रपति की विधायी शक्ति (Legislative Powers)

संसदीय व्यवस्था होने के कारण राष्ट्रपति कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होने के साथ ही संघीय व्यवस्थापिका अर्थात संसद का भी अंग होता हैं. इस नाते वह अनेक कार्य करता हैं. जिसे राष्ट्रपति के विधायी कार्य कहा जाता हैं. वह संसद का सत्र बुलाता हैं.

उसका सत्रावसान करता हैं. राष्ट्रपति लोकसभा को उसके कार्यकाल से पूर्व ही भंग कर सकता हैं. जिसका उल्लेख अनुच्छेद 85 में हैं. राष्ट्रपति प्रतिवर्ष संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करता हैं. जिसे राष्ट्रपति का अभिभाषण कहते हैं.

राष्ट्रपति राज्यसभा में बारह सदस्यों को मनोनीत कर सकता हैं. जो कला, साहित्य, विज्ञान अथवा समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिए व्यक्ति होते हैं. वह आंग्ल भारतीय समुदाय के दो सदस्यों को लोकसभा में मनोनीत कर सकता हैं.

अनुच्छेद 111 के अनुसार कोई भी विधेयक तब तक अधिनियम अर्थात कानून नहीं बनता जब तक उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर न हो जाए. राष्ट्रपति ऐसे किसी साधारण विधेयक को संसद को लौटाकर पुनर्विचार के लिए कह सकता हैं.

लेकिन यदि संसद इसे दुबारा पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजे तब राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होता होता हैं. अतः इसे राष्ट्रपति का सीमित अथवा निलम्बनकारी निषेधाधिकार या वीटो कहते हैं.

संविधान में राष्ट्रपति के लिए ऐसी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है, जिसके अंदर ही उसे विधेयक पर फैसला लेना पड़ता हो. वह विधेयक पर हस्ताक्षर न करे एवं न ही उसे पुनर्विचार के लिए संसद को भेजे बल्कि अपने पास ही लम्बित रख दे. ऐसी स्थिति में यह विधेयक पारित नहीं हो सकेगा. इसे राष्ट्रपति का जेबी निषेधाधिकार अथवा पॉकेट वीटो कहते हैं.

जिसका प्रयोग राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने डाक बिल के सन्दर्भ में किया था. इसके अलावा जब संसद किसी भी सदन का अधिवेशन नहीं चल रहा हो, ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता हैं.

जो कानून के समान ही प्रभावी होता हैं. इसका वर्णन अनुच्छेद 123 में हैं. यह अध्यादेश संसद के पुनः समवेत होने पर उसके सामने रखा जाएगा और यदि छः सप्ताह में संसद उसे पारित कर विधि न बनाए तब वह अध्यादेश समाप्त माना जाएगा.

भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ | Powers Of The President Of India

A. सामान्यकालीन शक्तियाँ- (general carpet powers).

  • कार्यकारी शक्तियाँ/कार्यपालिका
  • विधायी शक्तियाँ

वित्तीय शक्तियाँ

  • न्यायिक शक्तियाँ
  • कुटनीतिक शक्तियाँ
  • सैन्य शक्तियाँ

B. आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency powers)

कार्यपालिका या कार्यकारी शक्तियाँ (executive or executive power).

  • भारत के सभी शासन सम्बन्धी कार्य उसके नाम पर किये जाते है.
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है.
  • वह न्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा उसके वेतन आदि निर्धारित करता है. महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपनें पद पर कार्य करता है.
  • यह भारत के महानियंत्रक, महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त, तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है.
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व् सदस्यों की नियुक्ति.
  • सयुक्त राज्यों की लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व् सदस्यों की नियुक्ति.
  • राज्य में राज्यपालों
  • वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति.
  • केन्द्रशासित प्रदेशो के प्रशासक की
  • विभिन्न आयोगों का गठन.
  • अनुसूचित जाति आयोग
  • अनुसूचित जनजाति आयोग
  • अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग
  • अन्तर्राज्यीय परिषद की नियुक्ति
  • राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री से किसी ऐसे निर्णय का प्रतिवेदन भेजने के लिए कह सकता है, जो किसी मंत्री द्वारा लिया गया हो लेकिन पूरी मंत्रिपरिषद से इसका अनुमोदन नही किया गया है.

विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers)

राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग है तथा इसे निम्नलिखित विधायी शक्तियाँ प्राप्त है.

  • संसद का सत्र बुला सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है.
  • लोकसभा को विघटित कर सकता है.
  • वह संसद के सयुक्त अधिवेशन का आव्हान कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है.
  • वह प्रत्येक नये चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है.
  • वह संसद में लम्बित किसी विधेयक अन्यथा किसी सम्बन्ध में संसद को संदेश भेज सकता है.
  • यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हो तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की सदस्यता सौप सकता है.

राज्य सभा में (In the Rajya Sabha)

  • साहित्य विज्ञान कला व समाज सेवा के क्षेत्र में जुड़े अथवा व्यक्तियों में से 12 लोगों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है.
  • वह लोकसभा में दो आगल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है.
  • वह चुनाव आयोग से परामर्श कर संसद के सदस्यों की निर्हता के प्रश्न पर निर्णय कर सकता है.
  • कुछ विधेयक की पूर्व अनुमति-भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी विधेयक अथवा राज्यों की सीमा परिवर्तन या नया नए राज्य के निर्माण संबंधी विधेयक.
  • जब एक विधेयक संसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. तो वह- विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है, विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है, विधेयक को संसद के पुनर्विचार को लोटा देता है.
  • राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के लिए विचार सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति.

a. विधेयक को स्वीकृति देता है.

b. विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है.

c. राज्यपाल को निर्देश देता है कि विधेयक को राज्य विधायिका को पुनर्विचार के लौटा सकता है.

अध्यादेश जारी करना-छ माह छ हफ्तों में.

CAG , UPSC वित्त आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करता है.

  • धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है.
  • वह वार्षिक वित्तीय विवरण को संसद के समक्ष रखता है.
  • वह राज्यों तथा केंद्र के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है.
  • भारत की आकस्मिक निधि से व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था राष्ट्रपति की अनुमति से कर सकता है.

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president of india essay in hindi

Hindi Essay and Paragraph Writing – President of India (भारत के राष्ट्रपति)

भारत के राष्ट्रपति पर निबंध –  इस लेख में हम भारत में राष्ट्रपति का कार्य क्या है, राष्ट्रपति किसका मुखिया होता है, हमारे देश का राष्ट्रपति कौन है के बारे में जानेंगे | भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। भारत के राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रधान होता है। भारत के राष्ट्रपति रक्षा बलों के सर्वोच्च कमांडर होता है। संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है। अक्सर स्टूडेंट्स से असाइनमेंट के तौर या परीक्षाओं में भारत के राष्ट्रपति पर निबंध पूछ लिया जाता है। इस पोस्ट में भारत के राष्ट्रपति पर कक्षा 1 से 12 के स्टूडेंट्स के लिए 100, 150, 200, 250, 350, और 1500 शब्दों में अनुच्छेद / निबंध दिए गए हैं।

  • भारत के राष्ट्रपति पर 10 लाइन
  • भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में
  • भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद 4 और 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में
  • भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में
  • भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में

   

भारत के राष्ट्रपति पर 10 लाइन 10 lines on President of India in Hindi

  • राष्ट्रपति किसी भी देश का प्रमुख व्यक्ति होता है।
  • वह दिल्ली में एक बड़े घर में रहता है जिसे राष्ट्रपति भवन कहा जाता है।
  • राष्ट्रपति का काम भारत के संविधान की रक्षा करना है।
  • उन्हें जनता द्वारा सीधे नहीं अपितु संसद सदस्यों द्वारा चुना जाता है। 
  • प्रणब मुखर्जी, राम नाथ कोविन्द और प्रतिभा पाटिल ऐसे कुछ लोग हैं जो राष्ट्रपति रह चुके हैं।
  • राष्ट्रपति पाँच वर्षों तक कार्य करता है, लेकिन वे एक से अधिक बार भी कार्य कर सकते हैं।
  • भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।
  • प्रतिभा पाटिल भारत की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला थीं।
  • राष्ट्रपति भारत के लिए महान कार्य करने वाले लोगों को पुरस्कार भी देते हैं।
  • द्रौपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति बनने वाली प्रथम आदिवासी महिला हैं। 

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Short Essay on President of India in Hindi भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद 100, 150, 200, 250 से 350 शब्दों में

भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद कक्षा 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में .

भारत का राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख होता है। इसका मतलब है कि वह देश का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा नहीं किया जाता है बल्कि, संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य ही राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करते हैं। राष्ट्रपति लगभग हर आजाद देश में होते हैं। राष्ट्रपति सेना के सबसे बड़े ऑफिसर का चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति ही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का मुख्य जजो को चुनते हैं। 

राष्ट्रपति आमतौर पर प्रधान मंत्री की सलाह पर कार्य करते हैं। राष्ट्रपति नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में रहते हैं। यह ऐतिहासिक इमारत राष्ट्रपति के सम्मान का प्रतीक है। 

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भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद कक्षा 4, 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में

भारत के राष्ट्रपति, देश के प्रथम नागरिक, और भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ के रूप में कार्य करते हैं।  राष्ट्रपति का कार्यालय भारतीय लोकतांत्रिक ढांचे में एक महत्वपूर्ण संस्थान है। हालाँकि, राष्ट्रपति की भूमिका में पर्याप्त जिम्मेदारियाँ और शक्तियाँ होती हैं।

जैसा कि भारतीय संविधान में कहा गया है, भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद है। राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि देश का शासन भारत के संविधान के नियमों का पालन करता है या नहीं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों सदनों को बुलाने और रोकने का तथा लोकसभा को खत्म करने का अधिकार है।

राष्ट्रपति के पास किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने, सजा को कम करने या सजा को निलंबित करने की भी शक्ति है। हालाँकि, ये शक्तियाँ पूर्ण नहीं हैं और इनका प्रयोग राष्ट्रपति मंत्रियों की सलाह पर करता है। वर्तमान में हमारे देश के राष्ट्रपति श्री मति द्रौपदी मुर्मू है। 

भारत के राष्ट्रपति  पर अनुच्छेद कक्षा 6, 7, 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में

भारत का राष्ट्रपति, मुख्यतः एक औपचारिक प्रमुख होते हुए भी, भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है।  यह कार्यालय भारतीय गणतंत्र के लोकतांत्रिक लोकाचार और संप्रभु अधिकार का प्रतीक है। राष्ट्रपति की भूमिका शक्ति और जिम्मेदारी का एक नाजुक संतुलन है, जो संवैधानिक प्रावधानों और लोकतांत्रिक परंपराओं पर आधारित है। काफी हद तक एक औपचारिक पद होने के बावजूद, राष्ट्रपति का कार्यालय भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे हमारे लोकतंत्र की सुचारू कार्यप्रणाली सुनिश्चित होती है।

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के साथ-साथ राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य भी शामिल होते हैं। यह चुनावी प्रक्रिया भारतीय राजनीति के संघीय चरित्र को रेखांकित करती है। राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है और वह पुनः चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है।

हालाँकि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं, फिर भी कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जहाँ वे अपने विवेक का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें प्रधानमंत्री का चयन तब शामिल होता है जब लोकसभा में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न हो। राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए सलाह वापस भी भेज सकता है और मंत्रिपरिषद के निर्णयों के संबंध में जानकारी मांग सकता है। 

भारत के राष्ट्रपति पर अनुच्छेद कक्षा 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में

भारत का राष्ट्रपति, राज्य का प्रमुख, भारतीय संविधान में उच्च प्राधिकार और गरिमा का व्यक्ति है। वह भारत का प्रथम नागरिक होता है। यह भूमिका काफी हद तक औपचारिक है, लेकिन इसमें पर्याप्त विवेकाधीन शक्तियां भी हैं, खासकर राजनीतिक संकट के दौरान। 

अनुच्छेद 60 के अनुसार, राष्ट्रपति की भूमिका भारत के संविधान और कानून को संरक्षित, संरक्षित और बचाव करना है। वे राज्य के औपचारिक प्रमुख और भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ के रूप में भी कार्य करते हैं।  राष्ट्रपति के पास संसद की मंजूरी के अधीन युद्ध या शांति की घोषणा करने की शक्ति है।

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अनुच्छेद 55 के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के साथ-साथ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।  यह अप्रत्यक्ष चुनाव पद्धति भारत के संघीय ढांचे का संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है।

राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है और वह पुनः निर्वाचित हो सकता है। उन्हें महाभियोग के माध्यम से पद से हटाया जा सकता है, यह प्रक्रिया संविधान के उल्लंघन के लिए शुरू की जा सकती है।  हालाँकि अभी तक किसी भी भारतीय राष्ट्रपति पर कभी भी महाभियोग नहीं लगाया गया है। देश में वित्तीय संकट या अन्य संकटों के समय वह आपातकाल की घोषणा कर सकता है। 

भारत के राष्ट्रपति का पद अत्यंत प्रतिष्ठापूर्ण और उत्तरदायित्वपूर्ण है।  हालाँकि भूमिका काफी हद तक औपचारिक है, राष्ट्रपति की शक्तियाँ शक्ति संतुलन बनाए रखने और संविधान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।  राष्ट्रपति का पद भारतीय गणतंत्र, देश की एकता और उसके लोकतांत्रिक सिद्धांतों का प्रतीक है।

Long Essay on President of India in Hindi भारत के राष्ट्रपति पर निबंध (1500 शब्दों में) 

चुनाव प्रक्रिया, राष्ट्रपति के पद का कार्यकाल, भारत के राष्ट्रपति की योग्यता, राष्ट्रपति कार्यालय से जुड़ी शर्तें, भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग, भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ.

हमारे संविधान के अनुच्छेद 52 में प्रावधान है कि हमारे लोकतांत्रिक देश का एक राष्ट्रपति होगा। वर्तमान में, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति हैं। राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से भारत की संसद और भारत के सभी राज्यों की विधान सभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इन सदस्यों को भारत का नागरिक सीधे चुनता है।

राष्ट्रपति देश का मुखिया होता है। उन्हें भारत के प्रथम नागरिक के रूप में जाना जाता है। शपथ लेने के बाद वह भारत के उपराष्ट्रपति, अटॉर्नी जनरल और भारत के प्रधान मंत्री के साथ-साथ संघ कार्यकारी बन जाते हैं।  वह भारत के सर्वोच्च आदेश हैं। 

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अनुच्छेद 55 के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है।राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। मत आवण्टित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा मत डालने की संख्या के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सांसदों के बीच एक समानुपात बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं होती है तो एक स्थापित प्रणाली है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले मत अन्य उम्मीदवारों को तबतक हस्तान्तरित होता है, जब तक किसी एक को बहुमत नहीं मिलता।

निर्वाचक मंडल की संरचना

इसकी संरचना निम्नलिखित के निर्वाचित सदस्यों से बनी है:

  • भारत की संसद का ऊपरी सदन (राज्यसभा)।
  • भारत की संसद का निचला सदन (लोकसभा)।
  • प्रत्येक राज्य विधान सभा (प्रत्येक राज्य की राज्य विधानसभा का निचला सदन)

केंद्रशासित प्रदेश जिसके पास अपनी विधान सभा है। अब निर्वाचन मंडल की वोटिंग के लिए दो तरह के वोटर होते हैं जो एमपी और एमएलए होते हैं। वोट का मूल्य 1971 की जनसंख्या के आधार पर गिना जाता है।

विधानसभाओं और राज्य परिषदों में निम्नलिखित व्यक्ति भी होते हैं जो राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं ले सकते, जैसे:

  • लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों को मनोनीत करता है
  • प्रत्येक राज्य की विधान सभा के मनोनीत सदस्य
  • द्विसदनीय विधानमंडलों में विधान परिषदों के सदस्य
  • दिल्ली और पुडुचेरी केंद्रशासित प्रदेशों के मनोनीत सदस्य

ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित कोई विवाद उत्पन्न होता है तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय अंतिम होगा।

भारत के राष्ट्रपति द्वारा शपथ

भारत के राष्ट्रपति की विभिन्न शक्तियाँ हैं जिनका उपयोग राष्ट्रपति अपनी शपथ को सक्रिय रखने के लिए करता है।  भारत के संविधान का अनुच्छेद 60 राष्ट्रपति को शपथ प्रदान करता है। 

इसमें भारत के संविधान के संरक्षण, बचाव और सुरक्षा की शपथ शामिल है।”  इसका मतलब है, राष्ट्रपति संविधान के संरक्षक के रूप में शपथ लेता है और भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों का उपयोग करता है जो भारत में उसकी स्थिति से जुड़ी होती हैं।  भारत के मुख्य न्यायाधीश संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति को शपथ दिलाते हैं।  और यदि भारत के मुख्य न्यायाधीश उस समय उपस्थित नहीं हैं, तो सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश इसका संचालन करता है।

राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद शपथ के दिन से पांच वर्ष तक पद पर रहता है। हालाँकि, वह तब तक इस पद पर बने रह सकते हैं जब तक कि इसके लिए कोई नया उम्मीदवार नियुक्त नहीं हो जाता। वह कई बार इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा दोबारा भी चुना जा सकता है। उनके दोबारा चुने जाने पर कोई सीमा नहीं है।

हर व्यक्ति भारत का राष्ट्रपति नहीं बन सकता.  भारत के संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति के लिए कुछ योग्यताएं दी गई हैं।  हमारे संविधान के अनुच्छेद 58 में राष्ट्रपति के लिए कुछ योग्यता मानदंड निर्धारित किए गए हैं जिनमें शामिल हैं:

  • व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिए
  • आवश्यक न्यूनतम आयु 35 वर्ष है।
  • उन्हें निचले सदन (लोकसभा) के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए सभी शर्तों के लिए अर्हता प्राप्त करनी चाहिए।
  • उसे भारत सरकार के किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करना चाहिए।

राष्ट्रपति के लिए कुछ शर्तें निम्न हैं:

  • वह संसद सदस्य नहीं हो सकते। राष्ट्रपति के रूप में शामिल होने पर उम्मीदवार को सदन की अपनी सीट खाली करनी होगी।
  • उसके आपराधिक कृत्य के लिए भी उसे गिरफ्तार या दंडित नहीं किया जा सकता।
  • उनके व्यक्तिगत कृत्य के विरुद्ध सिविल कार्यवाही केवल दो महीने की पूर्व सूचना के बाद ही शुरू की जा सकती है।
  • उसे कोई भी सार्वजनिक पद धारण नहीं करना चाहिए।
  • राष्ट्रपति भवन में बिना किराया चुकाए रहने के लिए सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
  • भारत की संसद उनके कार्यकाल के दौरान उनका वेतन नहीं रोक सकती।

हमारे संविधान का अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग से संबंधित है। राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने के लिए संविधान में इतनी सारी शर्तें नहीं दी गई हैं। एकमात्र शर्त जब राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है वह है “संविधान का उल्लंघन”।

महाभियोग की प्रक्रिया

जब संसद को पता चला कि राष्ट्रपति द्वारा संविधान का उल्लंघन किया गया है, तो दोनों सदनों में से कोई भी सदन महाभियोग प्रक्रिया के विरुद्ध पहल कर सकता है।  चलिए मान लेते हैं कि महाभियोग की प्रक्रिया के लिए सबसे पहले पहल राज्यसभा करती है.  सबसे पहले, राष्ट्रपति के खिलाफ आरोप को एक प्रस्ताव के रूप में सदन के सामने लाया जाएगा और इस प्रस्ताव पर सदन के कुल सदस्यों के कम से कम 1/4 बहुमत द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए।  अब उस प्रस्ताव को राज्यसभा में रखा जाएगा और उस प्रस्ताव पर राज्यसभा में बहस होगी। यदि 2/3 बहुमत इस पर सहमत होता है तो प्रस्ताव राज्यसभा द्वारा पारित माना जाएगा। इसके बाद यह उसी कार्यवाही के लिए लोकसभा में जाएगा। 

यदि लोकसभा में भी महाभियोग का प्रस्ताव उसी 3/4 बहुमत से पारित हो जाता है तो राष्ट्रपति को उसकी कुर्सी से हटा दिया जायेगा।

 नोट: राष्ट्रपति अपनी महाभियोग प्रक्रिया के दौरान सत्र में बैठ सकता है।

भारत के राष्ट्रपति का प्रमुख कर्तव्य भारत के संविधान की रक्षा करना है।  यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 60 के तहत उनकी शपथ का हिस्सा है।  आइए भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों और कार्यों पर चर्चा करें।  अब हम भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों पर चर्चा करने जा रहे हैं।  भारत के संविधान के तहत सभी शक्तियां भी दी गई हैं।

भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ

भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्ति संसद में निहित है।  भारत का राष्ट्रपति संसद का प्रमुख होता है।  वह कानून बनाने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है।  उसके पास लोकसभा को भंग करने की शक्ति है।  दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक भारत के राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद ही अधिनियम बन सकता है।

इसके अलावा, सरकार को नया राज्य बनाने या मौजूदा राज्यों की सीमा में बदलाव या यहां तक कि उसके नाम में बदलाव जैसे कानून पेश करने से पहले राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है।  इसके अलावा, संविधान के तहत मौलिक अधिकारों से संबंधित कानून के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है। 

भारत के राष्ट्रपति की नामांकन शक्तियाँ

भारत के राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में सदस्यों की संख्या को नामांकित करते हैं।  नामांकन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के सभी वर्गों के लिए संसद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है जो हमेशा चुनावों के माध्यम से हासिल नहीं किया जा सकता है।  राष्ट्रपति के पास लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 सदस्यों को नामित करने की शक्ति है यदि उन्हें लगता है कि उनका प्रतिनिधित्व उचित नहीं है। उन्हें कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र से राज्यसभा में 12 सदस्यों को नामांकित करने का अधिकार है।

भारत के राष्ट्रपति की अध्यादेश पारित करने की शक्ति

जब संसद के दोनों सदनों का सत्र नहीं चल रहा हो, तो भारत के राष्ट्रपति भारत के संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश पारित कर सकते हैं।  ऐसे अध्यादेश में संसद के अधिनियम के समान शक्ति होती है।  सत्र शुरू होने के बाद अध्यादेश को कानून बनाने के लिए दोनों सदनों से पारित कराया जा सकता है.

राष्ट्रपति इस अध्यादेश बनाने की शक्ति का प्रयोग तभी कर सकते हैं जब परिस्थितियाँ तत्काल कार्रवाई की मांग करें।  इसके अलावा, अध्यादेश को दोबारा लागू होने के छह सप्ताह के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।  यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो अध्यादेश ध्वस्त हो जाएगा और अपनी कानूनी वैधता खो देगा।

भारत के राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियाँ

भारत का राष्ट्रपति भारत सरकार का नाममात्र प्रमुख होता है।  भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला कोई भी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर होता है।  देश में आम चुनाव के बाद भारत के राष्ट्रपति ही भारत के प्रधान मंत्री का चुनाव करते हैं।

वह संघ कार्यकारियों का प्रमुख होता है।  इसका मतलब है, सभी कार्यकारी शक्तियाँ उसमें निहित हैं और वह इन शक्तियों का उपयोग सीधे या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से कर सकता है।  उसके पास कानून बनाने और संधियाँ और समझौते करने की शक्ति है।  संघ का प्रमुख होने के नाते वह नीतियों के निर्धारण और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होता है।

राष्ट्रपति राज्यों के राज्यपालों, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।  वह भारत के महालेखा परीक्षक और चुनाव आयोग, वित्त आयोग, राज्यों के राज्यपालों आदि जैसे कई अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति अंतर-राज्य परिषद, केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों की नियुक्ति करता है।  उसे किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की शक्ति है।

वह निम्नलिखित के राष्ट्रीय आयोगों की नियुक्ति भी करता है:

  •  अनुसूचित जाति
  •  अनुसूचित जनजाति
  •  अन्य पिछड़ा वर्ग

भारत के राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ

  • भारत के राष्ट्रपति संसद में केंद्रीय बजट का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • वह किसी अन्य व्यक्ति की मदद से भी केंद्रीय बजट पेश कर सकता है।
  • वह आकस्मिक निधि का प्रयोग कर सकता है।
  • भारत के राष्ट्रपति आपातकालीन स्थिति में आकस्मिक निधि का उपयोग कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति हर 5 साल के बाद वित्त आयोग की नियुक्ति करता है जो केंद्र और राज्य सरकार को उनके बीच राजस्व का प्रतिशत तय करने में मदद करता है।

भारतीय राष्ट्रपति की सैन्य शक्ति

  • भारत के राष्ट्रपति को सेना के सर्वोच्च कमांडर के रूप में जाना जाता है।
  • वह भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना के प्रमुख को नियुक्त करता है। 
  • राष्ट्रपति दूसरे देश पर युद्ध घोषित कर सकते हैं। 
  • वह युद्ध को रोकने के लिए भी कार्रवाई कर सकता है।

भारत के राष्ट्रपति की राजनयिक शक्तियां 

  • उन्हें विदेशी देशों से राजदूत, उच्च आयुक्त, और राजनयिक दूत प्राप्त होते हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • उनके पास अन्य देशों के लिए भारतीय राजदूतों की नियुक्ति की शक्ति है। 
  • राष्ट्रपति द्वारा सभी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संधि दर्ज की जाती हैं। हालांकि, उन्हें संसद द्वारा अधिनियमित स्थानीय विधायिका द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।

भारत के राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां 

क्षमायाचिका को खारिज करने, राहत और दंड की छूट देने के लिए भारत के राष्ट्रपति की शक्ति है। वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों और भारत के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करता है। भारत का राष्ट्रपति किसी भी अपराध के दोषी व्यक्ति की सजा को प्रेषित या प्रतिबिंबित कर सकता है। संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को क्षमा देने के लिए अधिकार देता है। 

मंत्रियों को बर्खास्त करने की शक्ति 

राष्ट्रपति के पास मंत्रियों को खारिज करने की शक्ति है यदि मंत्रियों की परिषद सदन के आत्मविश्वास को नुकसान पहुंचाती है और मंत्री इस्तीफा देने से इंकार कर रहे हैं। राष्ट्रपति अनुच्छेद 78 के अनुसार प्रधान मंत्री से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, देश के राष्ट्रपति को संघ के मामलों के प्रशासन के संबंध में प्रधान मंत्री से जानकारी लेने का अधिकार है। प्रधान मंत्री इस जानकारी को राष्ट्रपति को देने के लिए बाध्य हैं।

भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति

संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आता है। अब बिल को पास करना या खारिज करना उनकी मर्जी है। इसे भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति कहा जाता है।

आपातकालीन शक्तियां

भारत के संविधान ने अप्रत्याशित परिस्थितियों और विशेष रूप से आपात स्थितियों से निपटने के लिए राष्ट्रपति को अत्यधिक शक्तियाँ दी हैं। 

भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल वर्णित हैं; 

  • राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352);
  • राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) (अनुच्छेद 356);
  • वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360);

भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों पर सीमाएँ

भारत के संविधान ने भारत के राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों पर भी सीमाएँ दी हैं। मंत्रिपरिषद के कारण उसकी शक्तियों पर सीमाएँ हैं। कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता है, लेकिन, यदि संसद के दोनों सदन उस विधेयक को फिर से पारित कर देते हैं, तो राष्ट्रपति उस विधेयक पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य है।

साथ ही, भारत के राष्ट्रपति द्वारा पारित उद्घोषणाओं का अनुमोदन संसद द्वारा पारित कराना होता है। यदि संसद द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है तो वे अमान्य हो जाते हैं।

भारत का राष्ट्रपति, मुख्यतः एक औपचारिक प्रमुख होते हुए भी, भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है।  यह कार्यालय भारतीय गणतंत्र के लोकतांत्रिक लोकाचार और संप्रभु अधिकार का प्रतीक है।  राष्ट्रपति की भूमिका शक्ति और जिम्मेदारी का एक नाजुक संतुलन है, जो संवैधानिक प्रावधानों और लोकतांत्रिक परंपराओं पर आधारित है। काफी हद तक एक औपचारिक पद होने के बावजूद, राष्ट्रपति का कार्यालय भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे हमारे लोकतंत्र की सुचारू कार्यप्रणाली सुनिश्चित होती है।   Top  

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द्रौपदी मुर्मू पर निबंध (Essay on Draupadi Murmu in Hindi)

द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली झारखंड की पूर्व राज्यपाल हैं। अब 2022 में, द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। 25 जुलाई को ही वे शपथ लेंगी और कार्यभार संभालेंगी।

भारत में लोकतांत्रिक सरकार है। यहां, अच्छे नेताओं को देश के लोगों द्वारा चुना जाता है। हर पांच साल पर नए नेताओं के चयन के लिए चुनाव होता है। हालांकि, लोग अपने कीमती वोटों के जरिए मौजूदा अच्छे नेता को फिर से चुन सकते हैं। इसी तरह के मामलों में, भारत के राष्ट्रपति का भी पांच साल का सेवा कार्यकाल होता है। भारत में पिछला राष्ट्रपति चुनाव 2017 में हुआ था। पांच साल बाद फिर से जुलाई 2022 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें से एक उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू थीं। यहां आपको द्रौपदी मुर्मू के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी।

द्रौपदी मुर्मू पर 10 वाक्य

द्रौपदी मुर्मू पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essays on Draupadi Murmu – 15th President of India in Hindi, Draupadi Murmu par Nibandh Hindi mein)

यहाँ, मैं द्रौपदी मुर्मू (भारत की 15वीं राष्ट्रपति) पर विभिन्न शब्द सीमाओं के तहत लंबे और छोटे निबंध प्रस्तुत कर रही हूँ। यह लेख उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो द्रौपदी मुर्मू के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं। हालांकि यह लेख विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए भी महत्वपूर्ण है।

द्रौपदी मुर्मू पर छोटा निबंध 1 (150 शब्द)

द्रौपदी मुर्मू एक भारतीय राजनीतिज्ञ और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह उड़ीसा के मयूरभंज के बैदापोसी गांव में संथाल समुदाय से हैं। शुक्रवार 20 जून 1958 को उनका जन्म बिरंची नारायण टुडू के घर हुआ था। वह 1997 में भाजपा में शामिल हुईं और उड़ीसा के रायरंगपुर में एक पार्षद के रूप में राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में कई प्रतिष्ठित पदों पर रहकर जनता की सेवा की।

2015 से 2021 तक, उन्होंने झारखंड के 9वें राज्यपाल के रूप में कार्य किया। द्रौपदी मुर्मू की अच्छी राजनीतिक छवि और अनुभव ही उनका आगे का मार्ग प्रशस्त कर रही है। जुलाई 2022 में वह भारत देश की 15वीं राष्ट्रपति चुनी गयी हैं। द्रौपदी मुर्मू इस तरह का शीर्ष स्थान पाने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए उड़ीसा विधान सभा द्वारा नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

द्रौपदी मुर्मू पर लघु निबंध (200 – 250 शब्द)

देश की 15वीं राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा की रहने वाली एक सक्रिय आदिवासी राजनीतिज्ञ हैं। 20 जून 1958 को उनका जन्म मयूरभंज (उड़ीसा) के बैदापोसी गांव में हुआ था। उनके पिता बिरंची नारायण टुडू ग्राम प्रधान थे। एक आदिवासी परिवार के संथाल समुदाय में पैदा होने के कारण, द्रौपदी मुर्मू को कई कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करना पड़ा। 1997 में राजनीति में आने से पहले वह एक सहायक शिक्षिका थीं। उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया।

रायरंगपुर के विधायक के रूप में दो बार सेवा करते हुए, वह 2015 से 2021 तक झारखंड की 9वीं राज्यपाल के रूप में चुनी गईं। द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा विधान सभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए प्रतिष्ठित नीलकंठ पुरस्कार द्वारा पुरस्कृत होने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। अपने पति और फिर दो बड़े बेटों की मृत्यु जैसी कई व्यक्तिगत त्रासदियों के बावजूद, वह हमेशा समाज की सेवा के लिए समर्पित रहीं।

कुछ साल पहले, जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति भवन छोड़ने के लिए तैयार थे, द्रौपदी मुर्मू को संभावित राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में चुना गया था। द्रौपदी मुर्मू ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर काम किया, और 2022 में वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनीं।

उनका नाम एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) द्वारा 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस) के खिलाफ नामित किया गया था। उनसे पूर्व किसी भी आदिवासी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित नहीं किया गया था।

द्रौपदी मुर्मू पर दीर्घ निबंध (600 शब्द)

द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल व भारत की राष्ट्रपति के रूप में चुनी जाने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। मुर्मू झारखंड राज्य की पहली राज्यपाल रह चुकी हैं, जिन्होंने पूरे पांच साल की सेवा अवधि पूरी की है। वह अधिकारी पद पर नियुक्त होने वाली पहली नेता भी हैं। 2022 में भारत के नए राष्ट्रपति के रूप में उनके नाम के साथ एक और ‘प्रथम’ जुड़ गया है। वह भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं लेकिन भारत की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति भी हैं।

द्रौपदी मुर्मू का प्रारंभिक जीवन

उड़ीसा के मयूरभंज के एक छोटे से गाँव बैदापोसी से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को हुआ था। उनके पिता, बिरंची नारायण टुडू और उनके दादा ने पंचायती राज के तहत ग्राम प्रधान के रूप में काम किया था। उनकी स्कूली शिक्षा केबी एचएस उपरबेड़ा स्कूल, मयूरभंज से हुई और बाद में उन्होंने बी.ए. रमा देवी महिला विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर से की। द्रौपदी मुर्मू श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में सहायक शिक्षक थीं। उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी जिनसे उनके तीन बच्चे (दो बेटे और एक बेटी) थे। पति और दो बेटों को खोने के बाद वह डिप्रेशन में चली गई।

द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक सफर

द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा राजनीति में प्रवेश किया। उसी वर्ष, उन्हें रायरंगपुर, उड़ीसा के पार्षद के रूप में चुना गया। उन्हें भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था। 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक, उन्होंने वाणिज्य और परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया, और फिर 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक उन्होंने मत्स्य पालन और पशु संसाधन विभाग का कार्यभार संभाला।

बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) और बीजेडी (बीजू जनता दल) के गठबंधन के दौरान द्रौपदी मुर्मू चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। वह दो बार राजरंगपुर से विधायक चुनी गईं। द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए उड़ीसा की विधान सभा द्वारा नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उसके बाद मुर्मू झारखंड की 9वीं राज्यपाल चुनी गयी। उन्होंने 2015 से 2021 तक झारखंड की सेवा की।

2022 में, राष्ट्रपति चुनाव के समय, जेपी नड्डा ने द्रौपदी मुर्मू को यशवंत सिन्हा (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस) के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया था। द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुनाव जीतकर भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनीं।

द्रौपदी मुर्मू के बारे में अज्ञात तथ्य

द्रौपदी मुर्मू के निजी जीवन के बारे में कुछ छिपे हुए तथ्य हैं। इससे आपको उन्हें बेहतर तरीके से जानने में मदद मिलेगी।

• मुर्मू ने अपने पहले बेटे को 2009 में, दूसरे को 2013 में और अपने पति को 2014 में खो दिया।

• वर्तमान में, वह अपनी इकलौती बेटी इतिश्री मुर्मू के साथ रहती है।

• उन्होंने अपने ससुराल का घर एक स्कूल को दान कर दिया।

• स्कूल में उनके पति और दो बेटों के स्मारक भी हैं।

• 2016 में मुर्मू ने कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल, रांची को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने की घोषणा की है।

• राजनीति में आने से पहले, उन्होंने सिंचाई विभाग (उड़ीसा) में सहायक अधिकारी के रूप में काम किया।

• 1983 में बच्चों की देखभाल के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी।

• 2017 में, उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुना गया था लेकिन वह चुनाव हार गईं।

• 2022 में पुनः उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुना गया था और वे आजादी के बाद पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति चुनी गयीं।

• 2009 तक द्रौपदी मुर्मू के पास अपना घर नहीं था।

द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से हैं और लोगों के लिए उनका काम वाकई काबिले तारीफ है। उनकी विनम्र राजनीतिक छवि उन्हें सम्मान और प्रसिद्धि अर्जित करने में मदद करती है। अपने साधारण स्वभाव और अच्छे काम के कारण, उन्हें विभिन्न प्रतिष्ठित पदों पर भारत की सेवा के लिए चुना गया था। राष्ट्रपति चुने जाने के संबंध में, उन्होंने कहा कि वह इतनी बड़ी भूमिका के लिए खुश होने के साथ-साथ आश्चर्यचकित भी महसूस करती हैं।

मुझे आशा है कि द्रौपदी मुर्मू – देश की 15वीं राष्ट्रपति पर ऊपर दिया गया निबंध उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में आपके लिए सहायक रहा होगा।

द्रौपदी मुर्मू पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Draupadi Murmu)

उत्तर: 2022 का राष्ट्रपति चुनाव 18 जुलाई 2022 को हुआ जिसकी घोषणा 21 जुलाई 2022 को की गयी।

उत्तर: द्रौपदी मुर्मू एक सक्रिय राजनेता हैं जिनकी कुल संपत्ति 2021 में लगभग 9.5 लाख है।

उत्तर: हेमंत सोरेन झारखंड के वर्तमान (2022) सीएम हैं।

उत्तर: श्री प्रतिभा पाटिल 2007 से 2012 तक भारत की पहली महिला राष्ट्रपति थीं।

उत्तर: भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू चुनी गयी हैं।

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राष्ट्रपति का भाषण: 75वें गणतंत्र दिवस, 2024

मेरे प्यारे देशवासियो,.

पचहत्तरवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। जब मैं पीछे मुड़कर यह देखती हूं कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हमने कितनी लंबी यात्रा की है, तब मेरा हृदय गर्व से भर जाता है। हमारे गणतंत्र का पचहत्तरवां वर्ष, कई अर्थों में, देश की यात्रा में एक ऐतिहासिक पड़ाव है। यह उत्सव मनाने का विशेष अवसर है, जैसे हमने, स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर, 'आजादी का अमृत महोत्सव' के दौरान अपने देश की अतुलनीय महानता और विविधतापूर्ण संस्कृति का उत्सव मनाया था।

कल के दिन हम संविधान के प्रारंभ का उत्सव मनाएंगे। संविधान की प्रस्तावना "हम, भारत के लोग", इन शब्दों से शुरू होती है। ये शब्द, हमारे संविधान के मूल भाव अर्थात् लोकतंत्र को रेखांकित करते हैं। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, लोकतंत्र की पश्चिमी अवधारणा से कहीं अधिक प्राचीन है। इसीलिए भारत को "लोकतंत्र की जननी" कहा जाता है।

एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश विदेशी शासन से मुक्त हो गया। लेकिन, उस समय भी, देश में सुशासन तथा देशवासियों में निहित क्षमताओं और प्रतिभाओं को उन्मुक्त विस्तार देने के लिए, उपयुक्त मूलभूत सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को स्वरूप प्रदान करने का कार्य चल ही रहा था। संविधान सभा ने सुशासन के सभी पहलुओं पर लगभग तीन वर्ष तक विस्तृत चर्चा की और हमारे राष्ट्र के महान आधारभूत ग्रंथ, यानी भारत के संविधान की रचना की। आज के दिन हम सब देशवासी उन दूरदर्शी जन-नायकों और अधिकारियों का कृतज्ञता-पूर्वक स्मरण करते हैं जिन्होंने हमारे भव्य और प्रेरक संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया था।

हमारा देश स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ते हुए अमृत काल के प्रारंभिक दौर से गुजर रहा है। यह एक युगांतरकारी परिवर्तन का कालखंड है। हमें अपने देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का सुनहरा अवसर मिला है। हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिक का योगदान, महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए मैं सभी देशवासियों से संविधान में निहित हमारे मूल कर्तव्यों का पालन करने का अनुरोध करूंगी। ये कर्तव्य, आजादी के 100 वर्ष पूरे होने तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में, प्रत्येक नागरिक के आवश्यक दायित्व हैं। इस संदर्भ में मुझे महात्मा गांधी का स्मरण होता है। बापू ने ठीक ही कहा था, "जिसने केवल अधिकारों को चाहा है, ऐसी कोई भी प्रजा उन्नति नहीं कर सकी है। केवल वही प्रजा उन्नति कर सकी है जिसने कर्तव्य का धार्मिक रूप से पालन किया है।"

गणतंत्र दिवस, हमारे आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों को स्मरण करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। जब हम, उनमें से किसी एक बुनियादी सिद्धान्त पर चिंतन करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से अन्य सभी सिद्धांतों पर भी हमारा ध्यान जाता है। संस्कृति, मान्यताओं और परम्पराओं की विविधता, हमारे लोकतंत्र का अंतर्निहित आयाम है। हमारी विविधता का यह उत्सव, समता पर आधारित है जिसे न्याय द्वारा संरक्षित किया जाता है। यह सब, स्वतंत्रता के वातावरण में ही संभव हो पाता है। इन मूल्यों और सिद्धांतों की समग्रता ही हमारी भारतीयता का आधार है। डॉक्टर बी. आर. आंबेडकर के प्रबुद्ध मार्गदर्शन में प्रवाहित, इन मूलभूत जीवन-मूल्यों और सिद्धांतों में रची-बसी संविधान की भावधारा ने, सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए सामाजिक न्याय के मार्ग पर हमें अडिग बनाए रखा है।

मैं यह उल्लेख करना चाहूंगी कि सामाजिक न्याय के लिए अनवरत युद्धरत रहे, श्री कर्पूरी ठाकुर जी की जन्म शताब्दी का उत्सव कल ही संपन्न हुआ है। कर्पूरी जी पिछड़े वर्गों के सबसे महान पक्षकारों में से एक थे जिन्होंने अपना सारा जीवन उनके कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था। उनका जीवन एक संदेश था। अपने योगदान से सार्वजनिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए, मैं कर्पूरी जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।

हमारे गणतंत्र की मूल भावना से एकजुट होकर 140 करोड़ से अधिक भारतवासी एक कुटुंब के रूप में रहते हैं। दुनिया के सबसे बड़े इस कुटुंब के लिए, सह-अस्तित्व की भावना, भूगोल द्वारा थोपा गया बोझ नहीं है, बल्कि सामूहिक उल्लास का सहज स्रोत है, जो हमारे गणतंत्र दिवस के उत्सव में अभिव्यक्त होता है।

इस सप्ताह के आरंभ में हम सबने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर निर्मित भव्य मंदिर में स्थापित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक समारोह देखा। भविष्य में जब इस घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा, तब इतिहासकार, भारत द्वारा अपनी सभ्यतागत विरासत की निरंतर खोज में युगांतरकारी आयोजन के रूप में इसका विवेचन करेंगे। उचित न्यायिक प्रक्रिया और देश के उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद, मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। अब यह एक भव्य संरचना के रूप में शोभायमान है। यह मंदिर न केवल जन-जन की आस्था को व्यक्त करता है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में हमारे देशवासियों की अगाध आस्था का प्रमाण भी है।

प्यारे देशवासियो,

हमारे राष्ट्रीय त्योहार ऐसे महत्वपूर्ण अवसर होते हैं जब हम अतीत पर भी दृष्टिपात करते हैं और भविष्य की ओर भी देखते हैं। पिछले गणतंत्र दिवस के बाद के एक वर्ष पर नजर डालें तो हमें बहुत प्रसन्नता होती है। भारत की अध्यक्षता में दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी। G20 से जुड़े आयोजनों में जन-सामान्य की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन आयोजनों में विचारों और सुझावों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर नहीं बल्कि नीचे से ऊपर की ओर था। उस भव्य आयोजन से यह सीख भी मिली है कि सामान्य नागरिकों को भी ऐसे गहन तथा अंतर-राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे में भागीदार बनाया जा सकता है जिसका प्रभाव अंततः उनके अपने भविष्य पर पड़ता है। G20 शिखर सम्मेलन के माध्यम से Global South की आवाज के रूप में भारत के अभ्युदय को भी बढ़ावा मिला, जिससे अंतर-राष्ट्रीय संवाद की प्रक्रिया में एक आवश्यक तत्व का समावेश हुआ।

जब संसद ने ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित किया तो हमारा देश, स्त्री-पुरुष समानता के आदर्श की ओर आगे बढ़ा। मेरा मानना है कि 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम', महिला सशक्तीकरण का एक क्रांतिकारी माध्यम सिद्ध होगा। इससे हमारे शासन की प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने में भी बहुत सहायता मिलेगी। जब सामूहिक महत्व के मुद्दों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, तब हमारी प्रशासनिक प्राथमिकताओं का जनता की आवश्यकताओं के साथ बेहतर सामंजस्य बनेगा।

इसी अवधि में भारत, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के क्षेत्र पर उतरने वाला पहला देश बना। चंद्रयान-3 के बाद ISRO ने एक सौर मिशन भी शुरू किया। हाल ही में आदित्य L1 को सफलतापूर्वक 'Halo Orbit' में स्थापित किया गया है। भारत ने अपने पहले एक्स-रे Polarimeter Satellite, जिसे एक्सपोसैट कहा जाता है, के प्रक्षेपण के साथ नए साल की शुरुआत की है। यह सैटेलाइट, अंतरिक्ष के 'ब्लैक होल' जैसे रहस्यों का अध्ययन करेगा। वर्ष 2024 के दौरान अन्य कई अंतरिक्ष अभियानों की योजना बनाई गई है। यह प्रसन्नता का विषय है कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा में अनेक नई उपलब्धियां हासिल की जाने वाली हैं। हमारे प्रथम मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, 'गगनयान मिशन' की तैयारी सुचारु रूप से आगे बढ़ रही है। हमें अपने वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों पर सदैव गर्व रहा है, लेकिन अब ये पहले से कहीं अधिक ऊंचे लक्ष्य तय कर रहे हैं और उनके अनुरूप परिणाम भी हासिल कर रहे हैं। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का उद्देश्य, संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका को और अधिक विस्तार तथा गहराई प्रदान करना है। ISRO के कार्यक्रम के प्रति देशवासियों में जो उत्साह दिखाई देता है उससे नई आशाओं का संचार हो रहा है। अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई उपलब्धियों ने, युवा पीढ़ी की कल्पना शक्ति को नए पंख दिए हैं। मुझे विश्वास है कि हमारे बच्चों और युवाओं में, बड़े पैमाने पर, विज्ञान के प्रति रुझान बढ़ेगा तथा उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होगा। अन्तरिक्ष विज्ञान की इन उपलब्धियों से युवाओं, विशेषकर युवा महिलाओं को यह प्रेरणा मिलेगी कि वे, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अपना कार्यक्षेत्र बनाएं।

आज का भारत, आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। सुदृढ़ और स्वस्थ अर्थव्यवस्था इस आत्मविश्वास का कारण भी है और परिणाम भी। हाल के वर्षों में, सकल घरेलू उत्पाद की हमारी वृद्धि दर, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक रही है। ठोस आकलन के आधार पर हमें पूरा विश्वास है कि यह असाधारण प्रदर्शन, वर्ष 2024 और उसके बाद भी जारी रहेगा। यह बात मुझे विशेष रूप से उल्लेखनीय लगती है कि जिस दूरगामी योजना-दृष्टि से अर्थव्यवस्था को गति प्राप्त हुई है, उसी के तहत विकास को हर दृष्टि से समावेशी बनाने के लिए सुविचारित जन कल्याण अभियानों को भी बढ़ावा दिया गया है। महामारी के दिनों में, समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए लागू योजनाओं का दायरा, सरकार ने बढ़ा दिया था। बाद में, कमजोर वर्गों की आबादी को संकट से उबरने में सहायता प्रदान करने हेतु इन कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखा गया। इस पहल को और अधिक विस्तार देते हुए, सरकार ने 81 करोड़ से अधिक लोगों को अगले पांच साल तक मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। संभवत:, इतिहास में यह अपनी तरह का सबसे बड़ा जन-कल्याण कार्यक्रम है।

साथ ही, सभी नागरिकों के जीवन-यापन को सुगम बनाने के लिए अनेक समयबद्ध योजनाएं भी कार्यान्वित की जा रही हैं। घर में सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल की उपलब्धता से लेकर अपना घर होने के सुरक्षा-जनक अनुभव तक, ये सभी बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताएं हैं, न कि विशेष सुविधाएं। ये मुद्दे, किसी भी राजनीतिक या आर्थिक विचारधारा से परे हैं और इन्हें मानवीय दृष्टिकोण से ही देखा जाना चाहिए। सरकार ने, केवल जन-कल्याण योजनाओं का विस्तार और संवर्धन ही नहीं किया है, अपितु जन-कल्याण की अवधारणा को भी नया अर्थ प्रदान किया है। हम सभी उस दिन गर्व का अनुभव करेंगे जब भारत ऐसे कुछ देशों में शामिल हो जाएगा जहां शायद ही कोई बेघर हो। समावेशी कल्याण की इसी सोच के साथ 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' में डिजिटल विभाजन को पाटने और वंचित वर्गों के विद्यार्थियों के हित में, समानता पर आधारित शिक्षा व्यवस्था के निर्माण को समुचित प्राथमिकता दी जा रही है। 'आयुष्मान भारत योजना' के विस्तारित सुरक्षा कवच के तहत सभी लाभार्थियों को शामिल करने का लक्ष्य है। इस संरक्षण से गरीब और कमजोर वर्गों के लोगों में एक बहुत बड़ा विश्वास जगा है।

हमारे खिलाड़ियों ने अंतर-राष्ट्रीय मंचों पर भारत का मान बढ़ाया है। पिछले साल आयोजित एशियाई खेलों में, हमने 107 पदकों के नए कीर्तिमान के साथ इतिहास रचा और एशियाई पैरा खेलों में हमने 111 पदक जीते। यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि महिलाएं, हमारी पदक-तालिका में बहुत प्रभावशाली योगदान दे रही हैं। हमारे श्रेष्ठ खिलाड़ियों की सफलता से बच्चों को विभिन्न खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरणा मिली है, जिससे उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है। मुझे विश्वास है कि नए आत्मविश्वास से भरपूर हमारे खिलाड़ी, आगामी पेरिस ओलिंपिक में और भी अच्छा प्रदर्शन करेंगे।

हाल के दौर में विश्व में अनेक स्थलों पर लड़ाइयां हो रही हैं और दुनिया के बहुत से हिस्से हिंसा से पीड़ित हैं। जब दो परस्पर विरोधी पक्षों में से प्रत्येक मानता है कि केवल उसी की बात सही है और दूसरे की बात गलत है, तो ऐसी स्थिति में समाधान-परक तर्क के आधार पर ही आगे बढ़ना चाहिए। दुर्भाग्य से, तर्क के स्थान पर, आपसी भय और पूर्वाग्रहों ने भावावेश को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण अनवरत हिंसा हो रही है। बड़े पैमाने पर मानवीय त्रासदियों की अनेक दुखद घटनाएं हुई हैं, और हम सब इस मानवीय पीड़ा से अत्यंत व्यथित हैं। ऐसी परिस्थितियों में, हमें भगवान बुद्ध के सारगर्भित शब्दों का स्मरण होता है:

न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनम् अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो इसका भावार्थ है:

"यहां कभी भी शत्रुता को शत्रुता के माध्यम से शांत नहीं किया जाता है, बल्कि अ-शत्रुता के माध्यम से शांत किया जाता है। यही शाश्वत नियम है।"

वर्धमान महावीर और सम्राट अशोक से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक, भारत ने सदैव एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अहिंसा केवल एक आदर्श मात्र नहीं है जिसे हासिल करना कठिन हो, बल्कि यह एक स्पष्ट संभावना है। यही नहीं, अपितु अनेक लोगों के लिए यह एक जीवंत यथार्थ है। हम आशा करते हैं कि संघर्षों में उलझे क्षेत्रों में, उन संघर्षों को सुलझाने तथा शांति स्थापित करने के मार्ग खोज लिए जाएंगे।

वैश्विक पर्यावरण संकट से उबरने में भी भारत का प्राचीन ज्ञान, विश्व-समुदाय का मार्गदर्शन कर सकता है। भारत को ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा देने में अग्रणी योगदान देते हुए और Global Climate Action को नेतृत्व प्रदान करते हुए देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। भारत ने, पर्यावरण के प्रति सचेत जीवन-शैली अपनाने के लिए, 'LiFE Movement' शुरू किया है। हमारे देश में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे का सामना करने में व्यक्तिगत व्यवहार-परिवर्तन को प्राथमिकता दी जा रही है तथा विश्व समुदाय द्वारा इसकी सराहना की जा रही है। हर स्थान के निवासी अपनी जीवन-शैली को प्रकृति के अनुरूप ढालकर अपना योगदान दे सकते हैं और उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। इससे, न केवल भावी पीढ़ियों के लिए पृथ्वी का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी बल्कि, जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।

हमारी स्वाधीनता के सौ वर्ष पूरे होने तक की, अमृत काल की अवधि के दौरान अभूतपूर्व तकनीकी परिवर्तन भी होने जा रहे हैं। Artificial Intelligence और Machine Learning जैसे तकनीकी बदलाव, असाधारण गति के साथ, सुर्खियों से बाहर आकर, हमारे दैनिक जीवन का अंग बन गए हैं। कई क्षेत्रों में भविष्य से जुड़ी आशंकाएं चिंतित करती हैं, लेकिन अनेक उत्साह-जनक अवसर भी दिखाई देते हैं, विशेषकर युवाओं के लिए। हमारे युवा, वर्तमान की सीमाओं से परे जाकर नई संभावनाएं तलाश रहे हैं। उनके मार्ग से बाधाओं को दूर करने और उन्हें अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना है। हमारी युवा पीढ़ी चाहती है कि सभी को अवसर की समानता प्राप्त हो। वे समानता से जुड़े पुराने शब्दजाल नहीं चाहते हैं बल्कि, समानता के हमारे अमूल्य आदर्श का यथार्थ रूप देखना चाहते हैं।

वास्तव में, हमारे युवाओं के आत्मविश्वास के बल पर ही भावी भारत का निर्माण हो रहा है। युवाओं के मनो-मस्तिष्क को संवारने का कार्य हमारे शिक्षक-गण करते हैं जो सही अर्थों में राष्ट्र का भविष्य बनाते हैं। मैं अपने उन किसानों और मजदूर भाई-बहनों के प्रति आभार व्यक्त करती हूं जो, चुपचाप मेहनत करते हैं तथा देश के भविष्य को बेहतर बनाने में बहुत बड़ा योगदान देते हैं। गणतन्त्र दिवस के पावन अवसर की पूर्व संध्या पर, सभी देशवासी हमारे सशस्त्र बलों, पुलिस और अर्ध-सैन्य बलों का भी कृतज्ञता-पूर्वक अभिनंदन करते हैं। उनकी बहादुरी और सतर्कता के बिना, हम उन प्रभावशाली उपलब्धियों को प्राप्त नहीं कर सकते थे जो हमने हासिल कर ली हैं।

अपनी वाणी को विराम देने से पहले, मैं न्यायपालिका और सिविल सेवाओं के सदस्यों को भी शुभकामनाएं देना चाहती हूं। विदेशों में नियुक्त भारतीय मिशनों के अधिकारियों और प्रवासी भारतीय समुदाय के लोगों को मैं गणतन्त्र दिवस की बधाई देती हूं। आइए, हम सब यथाशक्ति राष्ट्र और देशवासियों की सेवा में स्वयं को समर्पित करने का संकल्प करें। इस शुभ संकल्प को सिद्ध करने के प्रयास हेतु आप सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!

भारत के बारे में

भारत विश्‍व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दिखता है जिसकी विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् पर्वत श्रृंखला हिमालय से घिरा यह कर्क रेखा से आगे संकरा होता जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्‍द महासागर इसकी सीमा निर्धारित करते हैं।

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भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां Functions & Powers of President of India in Hindi

भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां Functions & Powers of President of India in Hindi

इसे रायसीना हिल्स के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अनेक बार अपने पद पर निर्वाचित हो सकता है। इसके लिए कोई रोक नहीं है।

भारतीय राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियां Executive powers of the Indian President

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियो की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति अनेक बड़े पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है जैसे महान्यायवादी, महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त, वित्त आयोग के अध्यक्ष और राज्यपाल यूपीएससी के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित एक आयोग की नियुक्ति कर सकता है।

भारतीय राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां Legislative powers of the Indian President

भारतीय राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां financial powers of the indian president.

वह केंद्र और राज्यों के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए हर पांचवें साल वित्त आयोग का गठन करता है। किसी राज्य द्वारा विशेष अनुदान मांगे जाने पर राष्ट्रपति से अनुमति लेना आवश्यक होता है। वह किसी अदृश्य के व्यय के अग्रिम भुगतान को देश की संचित निधि से भुगतान कर सकता है।

भारतीय राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां Judicial Powers of the Indian President

भारतीय राष्ट्रपति की कूटनीतिक और सैन्य शक्तियां diplomatic and military powers of indian president.

भारत का राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का प्रधान होता है। वह तीनों सेनाओं के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है। दूसरे देशों के साथ युद्ध या युद्धविराम होने पर घोषणा राष्ट्रपति के नाम से ही की जाती है। देश का राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करता है।

भारतीय राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां Indian Presidential Emergency Powers

भारतीय राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां indian president’s veto powers.

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भारत के राष्ट्रपति पर निबंध ESSAY ON PRESIDENT OF INDIA IN HINDI

Hamare rashtrapati essay in hindi.

दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं भारत के राष्ट्रपति पर निबंध । चलिए अब हम पढ़ेंगे भारत के राष्ट्रपति पर लिखे इस निबंध को ।

हमारे भारत देश में राष्ट्रपति का पद बहुत महत्वपूर्ण माना गया है । हमारे भारत देश में एक राष्ट्रपति एवं एक उपराष्ट्रपति होता है । हमारे भारत देश का राष्ट्रपति किसी सांसद या विधानमंडल का सदस्य नहीं होता है । राष्ट्रपति अपनी शक्ति का उपयोग मंत्रिमंडल परिषद की सलाह के द्वारा करता है ।

राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के लिए कुछ शर्ते व नियम संविधान में लिखे गए हैं । संविधान के अनुच्छेद 58 में राष्ट्रपति पद के लिए योग्यताएं लिखी गई हैं । राष्ट्रपति पद को धारण करने के लिए न्यूनतम आयु 35 वर्ष की होनी चाहिए ।

ESSAY ON PRESIDENT OF INDIA IN HINDI

image source – http://www.manipuruniv.ac.in/

जो व्यक्ति राष्ट्रपति पद को धारण कर रहा है वह लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने जाने के योग्य होना चाहिए । हमारे भारत देश में राष्ट्रपति के पद को संवैधानिक प्रधान के रूप में रखा गया है । वास्तविक प्रधान के रूप में मंत्री परिषद को रखा गया है । भारत के संविधान अनुच्छेद 52 में राष्ट्रपति की शक्तियां निहित की गई हैं ।

राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्ति निहित होती है । हमारे भारत देश की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है । भारत देश में संघात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है जिसका प्रधान राष्ट्रपति को बनाया गया है । राष्ट्रपति अपनी शक्ति का उपयोग मंत्री मंडल परिषद की सलाह से करता है । मंत्रिमंडल परिषद का अध्यक्ष प्रधानमंत्री को चुना गया है ।

प्रधानमंत्री मंत्री परिषद की अध्यक्षता करता है । राष्ट्रपति का पद धारण करने वाला व्यक्ति केंद्र सरकार या राज्य सरकार के स्थानीय निकाय में किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए । राष्ट्रपति का पद धारण करने वाला व्यक्ति संसद या विधान मंडल में किसी का सदस्य नहीं होना चाहिए ।

यदि वह सदस्य है तो राष्ट्रपति बनने के बाद संसद एवं विधान मंडल की सदस्यता को खत्म कर दिया जाएगा । जब किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति के लिए चुना जाता है तब सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष राष्ट्रपति शपथ लेता है की वह संविधान, विधि के लक्षण ,कर्तव्य पालन, जनता की सेवा और कल्याण के लिए कार्य करेगा ।

हमारे भारत देश के राष्ट्रपति की वेतन लगभग डेढ़ लाख रुपए होती है । राष्ट्रपति का वेतन आयकर मुक्त होता है । राष्ट्रपति को निशुल्क आवास एवं संसद द्वारा स्वीकृत किए गए भत्ते दिए जाते हैं । राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए कड़े से कड़े इंतजाम किए जाते हैं । हमारे भारत देश के राष्ट्रपति पद का समय 5 वर्ष का होता है ।

जब कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर होता है तब उसके खिलाफ किसी भी कोर्ट में कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है । राष्ट्रपति के खिलाफ किसी भी न्यायाधीश में केस नहीं चलता है । हमारे भारत देश में राष्ट्रपति का पद 6 माह से अधिक खाली नहीं रखा जाता है । राष्ट्रपति अपने पद से दो तरह से मुक्त हो सकता है ।

राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर कर त्याग पत्र उपराष्ट्रपति को दे सकता है । यदि कोई राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है । राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग किसी भी संसद में लाया जा सकता है । राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया अमेरिका से ली गई है ।

अमेरिका में चार बार राष्ट्रपति के ऊपर महाभियोग की प्रक्रिया चल चुकी हैं । हमारे भारत देश में एक भी बार राष्ट्रपति के ऊपर महाभियोग की प्रक्रिया नहीं चली है । राष्ट्रपति को परामर्श देने के लिए मंत्री परिषद की व्यवस्था की गई है । राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का उपयोग मंत्री परिषद की सलाह से करता है ।

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  • राष्ट्रपति भवन का इतिहास Essay History on rashtrapati bhavan in hindi

दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल भारत के राष्ट्रपति पर निबंध ESSAY ON PRESIDENT OF INDIA IN HINDI आपको पसंद आए तो शेयर जरूर करें धन्यवाद ।

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भारत के राष्ट्रपति का चुनाव और पद की गरिमा

  • 05 Jul 2017
  • 12 min read

भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में सबसे प्रतिष्ठित पद राष्ट्रपति का है। लेकिन, पिछले कुछ दिनों में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जिस तरह से राजनीति हो रही है, उससे इस पद की गरिमा कम हुई है। राष्ट्रपति की अपनी कोई विशिष्ट विचारधारा नहीं होती, वह तो समय एवं परिस्थितियों के अनुसार, जो बात देश के हित में हो, वही उसकी विचारधारा और सिद्धांत बन जाती है।

देश की राजनीति और राजनेताओं के लिये कुछ शब्द बेहद संवेदनशील और सियासी नफे-नुकसान की दृष्टि से लोकप्रिय हैं, जैसे कि दलित, गाय, हिंदू, सेक्युलर, अल्पसंख्यक वगैरह। इन शब्दों को उछालकर खूब राजनीति होती है। राष्ट्रपति के पद की गरिमा तभी बची रह सकती है, जब हम इसका राजनीतिकरण होने से रोक सकें। कैसे इस पद की गरिमा को क्षति पहुँचाई जा रही है, यह देखने से पहले बात करते हैं कि कैसे चुना जाता है राष्ट्रपति?

कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव?

  • भारत में राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका अमेरिका की तरह नहीं है। माना जाता है कि भारत के संविधान निर्माताओं ने विभिन्न देशों की चुनाव पद्धतियों का खासा अध्ययन करने के बाद कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को इसमें शामिल किया।
  • दरअसल, जहाँ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का पाँच साल का कार्यकाल 24 जुलाई, 2017 को खत्म हो रहा है, वहीं उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यकाल 10 अगस्त, 2017 को खत्म होने वाला है।
  • उपराष्ट्रपति को जहाँ लोक सभा और राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य चुनते हैं, वहीं राष्ट्रपति को इलेक्टोरल कॉलेज चुनता है, जिसमें लोक सभा, राज्य सभा और अलग-अलग राज्यों एवं संघराज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं।
  • इलेक्टोरल कॉलेज में इसके सदस्यों का आनुपातित प्रतिनिधित्व होता है। यहाँ पर उनका एकल मत हस्तानांतरित होता है, पर उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है। इस प्रक्रिया को सिंगल वोट ट्रान्सफरेबल सिस्टम या एकल संक्रमणीय मत पद्धति कहते हैं। 

क्या है एकल संक्रमणीय मत पद्धति

  • राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल, जिसे इलेक्टोरल कॉलेज भी कहा जाता है, करता है। संविधान के अनुच्छेद 54 में इसका वर्णन है। यानी जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि करते हैं। चूँकि जनता राष्ट्रपति का चयन सीधे नहीं करती है, इसलिए इसे परोक्ष निर्वाचन कहा जाता है।
  • भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों की विधानसभाओं एवं संघराज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य और लोक सभा तथा राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य, राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं।
  • एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि विधान परिषद के सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। ध्यातव्य हो कि भारत में 9 राज्यों में विधान परिषदें आस्तित्व में हैं लेकिन राष्ट्रपति का चयन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही करते हैं। 
  • भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में एक विशेष तरीके से वोटिंग होती है। इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। सिंगल वोट यानी मतदाता एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर वोट देता है। अर्थात् वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन। 
  • यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिये इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के मतों की प्रमुखता भी अलग-अलग होती है। इसे ‘वेटेज़’ भी कहा जाता है। दो राज्यों के विधायकों के वोटों का ‘वेटेज़’ भी अलग-अलग होता है। यह ‘वेटेज़’ राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है और यह ‘वेटेज़’ जिस तरह तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ

  • 26 जनवरी, 1950 को संविधान के अस्तित्व में आने के साथ ही देश ने 'संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य' के रूप में नई यात्रा शुरू की। परिभाषा के मुताबिक गणराज्य (रिपब्लिक) का आशय होता है कि राष्ट्र का मुखिया निर्वाचित होगा, जिसको राष्ट्रपति कहा जाता है।
  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ कुछ इस प्रकार से हैं; अनुच्छेद 53 : संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। वह इसका उपयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा। इसकी अपनी सीमाएँ भी हैं ;

1. यह संघ की कार्यपालिका शक्ति (राज्यों की नहीं) होती है, जो उसमें निहित होती है। 2. संविधान के अनुरूप ही उन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। 3. सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से की जाने वाली शक्ति का उपयोग विधि के अनुरूप होना चाहिये।

  • अनुच्छेद 72 द्वारा प्राप्त क्षमादान की शक्ति के तहत राष्ट्रपति, किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, निलंबन, लघुकरण और परिहार कर सकता है। मृत्युदंड पाए अपराधी की सज़ा पर भी फैसला लेने का उसको अधिकार है।
  • अनुच्छेद 80  के तहत प्राप्त शक्तियों के आधार पर राष्ट्रपति, साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा के लिये मनोनीत कर सकता है।
  • अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति, युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
  • अनुच्छेद 356  के तहत राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य के संवैधानिक तंत्र के विफल होने की दशा में राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
  • वहीं अनुच्छेद 360 के तहत भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग में वित्तीय संकट की दशा में वित्तीय आपात की घोषणा का अधिकार राष्ट्रपति को है।
  • राष्ट्रपति कई अन्य महत्त्वपूर्ण शक्तियों का भी निर्वहन करता है, जो अनुच्छेद 74 के अधीन करने के लिए वह बाध्य नहीं है। वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पास किये गए बिल को अपनी सहमति देने से पहले 'रोक' सकता है। वह किसी बिल (धन विधेयक को छोड़कर) को पुनर्विचार के लिये सदन के पास दोबारा भेज सकता है।
  • अनुच्छेद 75 के मुताबिक, 'प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को जब स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए ही सरकार बनाने के लिये लोगों को आमंत्रित करता है। ऐसे मौकों पर उसकी भूमिका निर्णायक होती है

राष्ट्रपति पद की गरिमा का सवाल

  • सत्ता और प्रतिपक्ष को आम सहमति बनाकर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करना चाहिये था, लेकिन यह पहल नहीं की जा सकी। महामहिम की कुर्सी पर विराजमान होने वाला व्यक्ति भारतीय गणराज्य और संप्रभु राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष होता है। संवैधानिक व्यवस्था में उसका उतना ही सम्मान और अधिकार संरक्षित है, जितना इस परंपरा के दूसरे व्यक्तियों का रहा है।
  • आज दलित उम्मीदवार को लेकर दोनों पक्षों से जो राजनीति देखने को मिल रही है, उससे इस पद की गरिमा को ठेस ही पहुँची है। राजनैतिक दलों को यह समझना चाहिये कि दलित शब्द जुड़ने मात्र से इस पद की गरिमा नहीं बढ़ जाएगी और न ही राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकारों में कोई बदलाव आएगा और न ही राष्ट्रपति को असीमित अधिकार मिल जाएंगे।
  • दशकों से दबे-कुचले और शोषित समाज से संबंध रखने वाला व्यक्ति यदि किसी संवैधानिक पद पर आसीन होता है तो उस समाज में आशा की एक लहर दौड़ जाती है और लोकतंत्र में उनका विश्वास मज़बूत होता है, लेकिन यहाँ समस्या यह है कि दोनों ही पक्ष दलित उम्मीदवार लेकर आए हैं और समूचे मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है। 
  • इसमें कोई शक नहीं है कि दलित पिछड़ों और समाज के सबसे निचली पायदान के लोगों का सामाजिक उत्थान होना चाहिये और उन्हें समाज में बराबरी का सम्मान मिलना चाहिये। ऐसे लोगों का आर्थिक एवं सामाजिक विकास होना चाहिये, लेकिन राजनीति में जाति, धर्म, भाषा और संप्रदाय की माला नहीं जपी जानी चाहिये।
  • दरअसल, भारतीय राजव्यवस्था में संसद को जो विशेषाधिकार हैं, वह राष्ट्रपति को नहीं है। महामहिम दलितों के लिये कोई अलग से कानून नहीं बना पाएंगे।
  • भारतीय गणराज्य के संविधान में सभी नागरिकों को समता और समानता का अधिकार है, फिर वह दलित हो या ब्राह्मण, हिंदू, सिख, ईसाई, मुसलमान सभी को यह अधिकार है। हमारा संविधान जाति, धर्म, भाषा के आधार पर कोई भेदभाव की बात नहीं करता है। फिर महामहिम जैसे प्रतिष्ठित पद के लिये दलित शब्द की बात करना, इस पद की गरिमा को खंडित करना ही कहा जाएगा।

president of india essay in hindi

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भारत के राष्ट्रपति के नाम लिस्ट सूची | List of all president of India in hindi (1947-2022) | president of India list with photo

By: Amit Singh

भारत के राष्ट्रपति के नाम लिस्ट सूची | List of all president of India in hindi (1947-2022) | president of india list in hindi

भारत के सभी राष्ट्रपति पूरे detail के साथ| all president of india, (1st) first president of india | भारत के पहले राष्ट्रपति कौन थे, (2nd) second president of india | भारत के दूसरे राष्ट्रपति कौन थे, (3rd) third president of india | भारत के तीसरे राष्ट्रपति कौन थे, (4th) forth president of india | भारत के चौथे राष्ट्रपति कौन थे, (5th) fifth president of india | भारत के पांचवे राष्ट्रपति कौन थे, (6th) sixth president of india | भारत के छटे राष्ट्रपति कौन थे, (7th) seventh president of india | भारत के सातवें राष्ट्रपति कौन थे, (8th) eighth president of india | भारत के आठवें राष्ट्रपति कौन थे, (9th) ninth president of india | भारत के नोवें राष्ट्रपति कौन थे, (10th) tenth president of india | भारत के दसवें राष्ट्रपति कौन थे, (11th) eleventh president of india | भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति कौन थे, (12th) twelfth president of india | भारत के बारहवें राष्ट्रपति कौन थे, (13th) thirteenth president of india | भारत के तेरहवें राष्ट्रपति कौन थे, (14th) fourteenth president of india | भारत के चौदहवें राष्ट्रपति कौन थे, (15th) fifteenth president of india | भारत के पंद्रहवें राष्ट्रपति कौन थे, (16th) fifteenth president of india | भारत के सोलहवें राष्ट्रपति कौन थे, all president of india list: faqs, who is the first woman president of india – भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति कौन है, भारत के राष्ट्रपति कौन है 2020, वर्तमान में राष्ट्रपति का वेतन कितना है, who is the first citizen of india – भारत का पहला नागरिक कौन है, who appoints the president of india – भारत के राष्ट्रपति की नियुक्ति कौन करता है.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1884 – 1963)जनवरी 26, 1950 – मई 13, 1962
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888-1975)मई 13, 1962 – मई 13, 1967
डॉ. जाकिर हुसैन (1897 – 1969)मई 13, 1967 – मई 03, 1969
वराहगिरि वेंकटगिरि (1884 – 1980)(कार्यवाहक)मई 03, 1969 – जुलाई 20, 1969
न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह (1905 – 1992)(कार्यवाहक)जुलाई 20, 1969 – अगस्त 24, 1969
वराहगिरि वेंकटगिरि (1884 – 1980)अगस्त 24, 1969 – अगस्त 24, 1974
फखरुद्दीन अली अहमद (1905 – 1977)अगस्त 24, 1974 – फरवरी 11, 1977
बी.डी. जत्ती (1913 – 2002)(कार्यवाहक)फरवरी 11, 1977 – जुलाई 25, 1977
नीलम संजीव रेड्डी (1913 – 1996)जुलाई 25, 1977 – जुलाई 25, 1982
ज्ञानी जैल सिंह (1916 – 1994)जुलाई 25, 1982 – जुलाई 25, 1987
आर. वेंकटरमण (1910 – 2009)जुलाई 25, 1987 – जुलाई 25, 1992
डॉ. शंकर दयाल शर्मा (1918 – 1999)जुलाई 25, 1992 – जुलाई 25, 1997
के. आर. नारायणन (1920 – 2005)जुलाई 25, 1997 – जुलाई 25, 2002
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (1931-2015)जुलाई 25, 2002 – जुलाई 25, 2007
श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल (जन्म – 1934)जुलाई 25, 2007 – जुलाई 25, 2012
श्री प्रणब मुखर्जी (1935-2020)जुलाई 25, 2012 – जुलाई 25, 2017
श्री राम नाथ कोविन्द (जन्म – 1945)जुलाई 25, 2017 से अब तक

यहाँ पढ़ें : List of all Prime Minister of India in hindi (1947-2022)

यहाँ पढ़ें : भारत के बांध और उनके राज्य की सूची

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल (26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962)

1947 में भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ था। लेकिन इससे कुछ समय पहले यानी कि जुलाई 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था। डॉ राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। उन्होंने 1949 तक संविधान सभा की अध्यक्षता की थी। जब 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ तब डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने।

राष्ट्रपति का पदभार उन्होंने 26 जनवरी 1950 में संभाला वे इस पद पर 12 वर्षों तक रहे। इसके बाद 14 मई साल 1962 में उन्होंने इस पद से अवकाश ले लिया। अवकाश के बाद ही डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी 1963 को हुआ। उन्होंने अपने जीवन का आखिरी वक्त पटना के सदाकत आश्रम में बिताया।

यहाँ पढ़ें : भारत में वन्यजीव अभ्यारण्य की सूची राज्यवार

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कार्यकाल (13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक)

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1962 को अपने राष्ट्रपति पद से अवकाश लिया। जिसके बाद 1962 को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पदभार संभाला। साल 1962 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी वर्ष राधाकृष्णन के जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा हुई थी। हालांकि राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल कई कठिनाइयों से भरा हुआ था क्योंकि इसी दौरान भारत चीन और भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध हुए थे।

चीन के साथ हुए युद्ध में भारत को हार मिली थी। इसके अलावा उनके कार्यकाल के दौरान ही भारत के दो प्रधानमंत्रियों का देहांत भी हुआ था। लेकिन राधाकृष्णन ने 1967 के गणतंत्र दिवस में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि वे कभी भी राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते थे। साल 1967 उनके राष्ट्रपति के रूप में आखरी साल था। 17 अप्रैल 1975 को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दुनिया को अलविदा कहा। लेकिन आज भी वे एक आदर्श शिक्षक के रूप में हमारी यादों में हमेशा अमर है।

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डॉ. जाकिर हुसैन

डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्ण के बाद 13 मई 1967 में डॉ. जाकिर हुसैन ने राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला। वे भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति थे। एक राष्ट्रपति होने के साथ ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाया। आज जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी जो कई क्षेत्रों में नाम कमा रही है, इसकी स्थापना डॉ. जाकिर हुसैन ने ही कि थी। वे उस दौरान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का भी पद संभाल चुके थे। डॉ. जाकिर हुसैन जब राष्ट्रपति पद पर थे तभी उनकी मृत्यु हुई थी। डॉ. जाकिर हुसैन के अभूतपूर्व कार्य के लिए ही उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया था।

यहाँ पढ़ें : भारत में टाइगर रिजर्व की सूची

president of india essay in hindi

वी.वी गिरी का कार्यकाल

डॉ जाकिर हुसैन के अचानक मृत्यु की वजह से वारहगिरी वेंकट गिरी, कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। इस दौरान उन्होंने सिर्फ 2 महीनों का कार्यकाल संभाला। उनका जन्म ओडिशा के गंजम जिले के बेरहामपुर स्थित परिवार में हुआ। कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 में दोबारा पूर्णकालिक राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया गया था। वी वी गिरि ने अपने कार्यकाल के दौरान मजदूरों के लिए कई कड़े कदम उठाए। उन्होंने अक्सर मजदूरों को उनका हक दिलाने का पूरा प्रयास किया।

(5th) Fifth president of india

मोहम्मद हिदायतुल्लाह

मोहम्मद हिदायतुल्लाह कार्यवाहक राष्ट्रपति होने के साथ ही भारत के 11वीं चीफ जस्टिस थे चीफ जस्टिस के रूप में 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक आ रहे थे इसके साथ ही वे भारत के छठे उपराष्ट्रपति भी थे इस पद पर वे 31 अगस्त 1979  से 30 अगस्त 1984 तक थे। इसके अलावा वे भारत के एक्टिंग प्रेसिडेंट भी थे। उन्होंने 6 अक्टूबर 1982 से 31 अक्टूबर 1982 तक यह कार्यकाल संभाला।

president of india essay in hindi

डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद

फखरुद्दीन अली अहमद भारत के छठे राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल 24 अगस्त 1974 से 11 फरवरी 1977 तक था। डॉ. जाकिर हुसैन के बाद वे भारत के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति थे। 11 फरवरी 1977 को उनकी मृत्यु हुई थी। अपने कार्यकाल के दौरान जिनकी मृत्यु हुई उन राष्ट्रपतियों में इनका स्थान दूसरा था। फखरुद्दीन अली अहमद पहले मंत्री के रूप में कार्यरत थे। उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू से इंग्लैंड में हुई थी जिसके बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में दाखिल हुए। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

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बासप्पा दानप्पा जत्ती

राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद कि उनके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो गई जिसके बाद बसप्पा दानप्पा जट्टी को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया। वे 11 फरवरी 1977 से 25 जुलाई 1977 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति बने रहे। राष्ट्रीयपति के अलावा वे ओडिशा के गवर्नर, पांडिचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर, भारत के पांचवें उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के रूप में देश को सेवाएं प्रदान कर चुके हैं।

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नीलम संजीव रेड्डी

नीलम संजीव रेड्डी का जन्म आंध्र प्रदेश के किसान परिवार में हुआ था। वे राष्ट्रपति का पदभार संभालने वाले सबसे कम उम्र के शख्स थे। उन्होंने 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982 तक राष्ट्रपति का पदभार संभाला। वे काफी ज्यादा महात्मा गांधी से प्रेरित थे तथा उनके द्वारा दिखाए गए रास्तों पर ही चला करते थे। उन्होंने न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, कांग्रेस के सचिव और अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

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ज्ञानी जैल सिंह

ज्ञानी जैल सिंह भारत के पहले सिख राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 25 जुलाई 1982 से 25 जुलाई 1987 तक रहा। उनका जन्म 5 मई 1916 को पंजाब के संधवान में हुआ था। उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके साथ ही उन्होंने हाशिए के समाज व दलित वर्ग के अधिकारों के लिए काफी काम किया है। लेकिन दुर्भाग्यवश 25 दिसंबर 1994 को एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

10th) Tenth president of india

रामास्वामी वेंकटरमन

आर वेंकटरमन एक वकील, स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, यूनियन मिनिस्टर होने के साथ ही भारत के राष्ट्रपति भी थे। उनका जन्म तमिलनाडु के तंजौर जिले में हुआ था। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 25 जुलाई 1987 से 25 जुलाई 1992 तक रहा। उनकी मृत्यु गणतंत्र दिवस के दूसरे दिन यानी कि 27 जनवरी 2009 को हुई।

(11th) Eleventh president of india

डॉ शंकर दयाल शर्मा

डॉ शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 में मध्यप्रदेश में हुआ। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 1992 से 1997 तक रहा। राष्ट्रपति पद के अलावा वे भोपाल के मुख्यमंत्री, कैबिनेट मिनिस्टर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष, यूनियन मिनिस्टर जैसे कई पदों कार्यरत पर रहे । अपने जीवन के अंतिम 5 वर्षों तक वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे और 26 दिसंबर 1999 में दिल के दौरे की वजह से उनकी मृत्यु दिल्ली के हॉस्पिटल में हो गई।

(12th) Twelfth president of india

के. आर. नरायण

के आर नारायण ने राष्ट्रपति के रूप में पदभार 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक संभाला। वे भारत के पहले दलित राष्ट्रपति थे। सिर्फ राष्ट्रपति का पदभार ही नहीं इसके अलावा उन्होंने उपराष्ट्रपति, भारतीय विदेश सेवा अधिकारी, लोकसभा के सदस्य तथा मंत्री के रूप में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे खुद को कार्यकारी राष्ट्रपति बताया करते थे जिसका मतलब था संविधान के चारों कोनों में काम करना। सबसे खास बात यह है कि चुनाव के दौरान उन्हें 95 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे।

(13th) Thirteenth president of india | भारत के तेरहवें राष्ट्रपति कौन थे

डॉक्टर अबुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम

डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु में हुआ। वे बेहद गरीब परिवार से थे। लेकिन मुसीबतों का सामना कर वे भारत के राष्ट्रपति बने। वे पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो किसी भी राजनीतिक बैकग्राउंड से नहीं थे। एक राष्ट्रपति होने के साथ ही वह एक बहुत बड़े वैज्ञानिक भी थे। उन्हीं के द्वारा बनाए अग्नि मिसाइल की वजह से उन्हें भारत का मिसाइल मैन भी कहा जाता था।

यहाँ पढ़ें : Best 64 + abdul kalam quotes in hindi

(14th) Fourteenth president of india

श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल

श्रीमती प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति पद का पदभार संभालने वाली पहली महिला है। उनके पिता राजनीति में थे इसीलिए उन्हीं से प्रेरित होकर उन्होंने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के दौरान कई अहम पदों जैसे राजस्थान की राज्यपाल, महाराष्ट्र सरकार की कैबिनेट मंत्री, पद संभाले। प्रतिभा पाटिल जी ने किसानों के लिए भी काफी काम किया। उन्होंने किसानों को अच्छी फसल के लिए तकनीकी ज्ञान देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की भी स्थापना की थी।

 (15th) Fifteenth president of india | भारत के पंद्रहवें राष्ट्रपति कौन थे

प्रणब मुखर्जी

प्रणब मुखर्जी ने 25 जुलाई 2012 से 25 जुलाई 2017 तक राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला। राष्ट्रपति का पदभार संभालने वाले वे पहले बंगाली थे। वे इसके साथ ही कैबिनेट मंत्री, वित्त, रक्षा, विदेश मंत्री के पद पर भी आसीन रह चुके हैं। इसके अलावा वे योजना आयोग के भी उपाध्यक्ष रहे।साल 2012 में उन्होंने पी ए संगमा को 70 फ़ीसदी वोटों से हराया और राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। प्रणब मुखर्जी ना सिर्फ एक अच्छे राजनेता थे बल्कि वे बहुत अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने समाज के लिए काफी कार्य किया। लेकिन दुर्भाग्यवश 31 अगस्त 2020 को उनकी मृत्यु दिल्ली में हो गई।

 (16th) Fifteenth president of india

रामनाथ कोविंद

रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ। वे एक दलित किसान परिवार में पैदा हुए। रामनाथ कोविंद ने  राष्ट्रपति के रूप में अपना पदभार 20 जुलाई 2017 को संभाला। राष्ट्रपति के अलावा वे बीजेपी दलित मोर्चा के अध्यक्ष, बिहार के गवर्नर भी रह चुके हैं। उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ कॉमर्स तथा एलएलबी की डिग्री भी हासिल की है। उन्होंने 16 साल तक वकालत की है। इतने महत्वपूर्ण कार्यों के अलावा वे मौजूदा समय में देश के विकास में राष्ट्रपति के रूप में अपना पदभार संभाल रहे हैं।

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल हैं।

भारत के राष्ट्रपति Ram Nath Kovind हैं।

वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति की सैलरी 5 लाख रुपये प्रति माह है।

भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं । भारत के राष्ट्रपति राष्ट्र की एकता, एकजुटता और अखंडता के प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं और भारत के पहले नागरिक हैं । वह भारतीय राज्य के प्रमुख हैं और भारत के रक्षा बलों के सर्वोच्च कमांडर भी हैं ।

राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों और राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं, जो एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली के अनुसार होते हैं ।

reference- all president of India, wikipedia

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Nitin Gupta

President of India – भारत के राष्‍ट्रपति से संबंधित समस्त जानकारी

President of India

नमस्कार दोस्तो , आज की हमारी इस पोस्ट में हम आपको भारत का राष्‍ट्रपति – President of India के संबंध में Full Detail में बताऐंगे , जो कि आपको सभी आने बाले Competitive Exams के लिये महत्वपूर्ण होगी ! पोस्ट के अंत में आपको Vice President of India से संबंधित महत्वपूर्ण Question and Answer को उपलब्ध कराएंगे, जो कि पिछली प्रतियोगी परीक्षाओं में पुंछे जा चुके हैं व आंगे आने वाली सभी Competitive Exams के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं |

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भारत का राष्‍ट्रपति ( The President of India )

राष्‍ट्रपति, भारत का राज्‍य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है और राष्‍ट्र की एकता, अखंडता एवं सुदृढ़ता का प्रतीक है। संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति में निहित होती है और यह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्‍वयं या अपने अधीनस्‍थ अधिकारियों के द्वारा करता है। राष्‍ट्रपति देश की सेनाओं का सर्वोच्‍च सेनापति होता है।

राष्ट्रपति से संबंधित महत्वपूर्ण अनुच्छेद – Articles related to President of India

  • अनु. 52 – भारत का राष्ट्रपति
  • अनु. 53 – संघ की कार्यपालिका शक्ति
  • अनु 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल
  • अनु. 55 – राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
  • अनु. 56 – राष्ट्रपति की पदावधि
  • अनु. 57 – पुनः निर्वाचन के लिए पात्रता
  • अनु. 58 – राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएँ
  • अनु, 59 – राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें
  • अनु 60 – राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
  • अनु. 61 – राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
  • अनु. 62 – राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की स्थिति में उसे भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि ।
  • अनु. 72 – क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति ।
  • अनु. 73 – संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार President of India

राष्‍ट्रपति का निर्वाचन (Election of the President of india)

संविधान के अनुच्‍छेद 54 तथा 55 में राष्‍ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित उपबंध दिये गए हैं। अनुच्‍छेद 54 में इस बात का निर्देश है कि राष्‍ट्रपति के निर्वाचन में मत देने का अधिकार किसे होगा, जबकि अनुच्‍देद 55 में बताया गया है कि निर्वाचन की प्रक्रिया क्‍या होगी ? President of India

निर्वाचक मंडल (Electoral College)

अनुच्‍छेद 54 में स्‍पष्‍ट किया गया है कि राष्‍ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मंडल के माध्‍यम से होगा जिसमें :-

  • संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्‍य तथा
  • राज्‍यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्‍य शामिल होंगे।

इस निर्वाचक मंडल में संविधान के ”70वें संशोधन अधिनियम, 1992” के द्वारा एक स्‍पष्‍टीकरण अंत:स्‍थापित किया गया था। इसके अनुसार राष्‍ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में राज्‍यों की सूची में ” दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र ” और ” पुडुचेरी संघ राज्‍यक्षेत्र ” भी शामिल होंगे।

अप्रत्‍यक्ष निर्वाचन (Indirect election)

निर्वाचक मंडलके प्रावधान से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि भारत में राष्‍ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्‍यक्ष तरीके से होता है, जनता स्‍वयं चुनाव द्वारा राष्‍ट्रपति को नहीं चुनती। संविधान सभा में इस प्रश्‍न पर काफी बहस भी हुई थी। अंत में अप्रत्‍यक्ष निर्वाचन को निम्‍नलिखित ठोस आधारों पर स्‍वीकार कर लिया गया –

  • भारत की बड़ी जनसंख्‍या तथा वृहत आकार को देखते हुए प्रत्‍यक्ष निर्वाचन की व्‍यवस्‍था करना न सिर्फ महंगा होता बल्कि समय की दृष्टि से भी अनुपयोगी होता।
  • यदि प्रत्‍यक्ष निर्वाचन कर भी लिया जाता तो समस्‍याएँ कम नहीं होती। शक्ति संघर्ष की संभावना बनी रहती क्‍योंकि पूरे देश की जनता द्वारा चुना गया राष्‍ट्रपति, मंत्रिपरिषद की अधीनता कभी स्‍वीकार न करता।

निर्वाचन की प्रक्रिया – Process of election president of india

अनुच्‍छेद 55 में राष्‍ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया विस्‍तार में बताई गई है, जिसे निम्‍नलिखित बिन्‍दुओं द्वारा क्रमश: समझा जा सकता है –

  • राष्‍ट्रपति के चुनावमें ‘ एकल संक्रमणीय मत ‘ द्वारा ‘ आनुपातिक प्रतिनिधित्‍व ‘ की पद्धति लागू की गई है जो मूलत: यहीं सुनिश्चित करने के लिये है कि निर्वाचित उम्‍मीदवार आनुपातिक दृष्टि से सर्वाधिक लोगों की पसंद हो। इस पद्धति में सबसे पहले एक कोटा तय कर लिया जाता है जो भारत के राष्‍ट्रपति के मामले में 50% से अधिक मतों का है। यह कोटा चुनाव में वास्‍तविक रूप से कितने मतों के बराबर होगा, यह निर्धारित करने के लिये एक फार्मूला है जो इस प्रकार है –

           ( डाले गये कुल मतों की संख्या / कुल स्थानों की संख्या +1 ) + 1 = कोटा 

  • इस पद्धति में प्रत्‍येक मतदाता को मत देते समय अपनी वरीयताओं का अंकन करना होता है अर्थात् उसे बताना होता है कि विभिन्‍न प्रत्‍याशियों के लिये उसकी वरीयता क्रम क्‍या है?
  • अनुच्‍छेद 55(2) में बताया गया है कि सभी राज्‍य विधानसभाओं के सभी निर्वाचित विधायकों के कुल मतों का योग, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्‍यों के मतों के कुल योग के समतुल्‍य बनाने के लिये कौन सी पद्धति अपनाई जाएगी? इस पद्धति के अनुसार सबसे पहले विभिन्‍न राज्‍यों के विधायों के मतों का मूल्‍य निवाला जाएगा। किसी राज्‍य की विधानसभा के एक सदस्‍य के मत का मूल्‍य निकालने का फार्मूला इस प्रकार है।

1 विधायक का मत मूल्‍य = (राज्‍य की कुल जनसंख्‍या)/(राज्‍य विधानसभा के निर्वाचित सदस्‍यों की कुल संख्‍या ) × 1/1000

ध्‍यातव्‍य है कि अनुच्‍छेद 55 (2) में संख्‍या की 1000 के गुणजों तक लेने की बात कही गई है और शेषफल 500 से कम हो तो उसे छोड़ देने तथा 500 से ज्‍यादा हो तो परिणाम में 1 जोड़ देने का निर्देश दिया जाता है ।

  • इस तरह सभी राज्‍यों की विधानसभाओं के विधायकों के मतों का मूल्‍य निकाला और उन्‍हें जोड़ दिया जाएगा गौरतलब है कि यदि राष्‍ट्रपति के चुनाव के समय किसी विधानसभा में कुद स्‍थान खाली हैं या किसी राज्‍य की विधानसभा भंग है तो उससे राष्‍ट्रपति का चुनाव बाधित नहीं होगा। President of India
  • सभी राज्‍यों की विधासभाओं के सभी निर्वाचित विधायकों के मतों के कुल योग तथा संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्‍यों के मतों का कुल योग में समतुल्‍यता होनी चाहिए। इस उपबंध का उद्देश्‍य यह है कि राष्‍ट्रपति के निर्वाचन में राज्‍यों की उतनी ही भूमिका हो, जितनी केन्‍द्र की; ताकि हमारी राजव्‍यवस्‍था का संघात्‍मक ढाँचा मजबूत बना रहे।
  • एक सांसद के मत का मूल्‍य इस प्रकार निकाला जाता है। President of India

1 सांसद का मत मूल्‍य = (सभी राज्‍यों के सभी निर्वाचित विधायकों के मतों का कुल मूल्‍य )/(संसद के निर्वाचित सदस्‍यों की कुल संख्‍या)

सभी विधायकों तथा सांसदों के मतों का मूल्‍य तय हो जाने के बाद जीतने के लिये कोटा निर्धारित किया जाता है। कोटे के अनुसार निर्धारित मत प्राप्‍त करने की प्रक्रिया ‘एकल संक्रमणीय’ मतों पर आधारित होती है। यदि किसी भी उम्‍मीदवार को पहली वरीयता में कोटे के लिये अपेक्षित मत न मिले हों तो अंतिम आने वाले उम्‍मीदवार को पराजित घोषित कर दिया जाता है तथा उसे प्राप्‍त हुए प्रथम वरीयता वाले मतों का विभाजन उन मतों पर अंकित दूसरी वरीयता के अनुसार शेष प्रत्‍याशियों में कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक अपनाई जा‍ती है जब तक कि कोई उम्‍मीदवार निर्धारित कोटा न प्राप्‍त कर ले। निर्धारित कोटा प्राप्‍त करने के बाद उस उम्‍मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है।

अनुच्‍छेद 55 में एक स्‍पष्‍टीकरण देकर बताया गया है कि विधायकों के मतों की गणना के लिये राज्‍य की जनसंख्‍या से आशय 1971 की जनसंख्‍या से है ‘ ’42 वें संविधान अधिनियम 1976 ” के माध्‍यम से प्रावधान किया गया था कि 2000 के बाद पहली जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने तक 1971 की जनगणना को ही आधार माना जाएगा आगे चलकर ”84 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 2001 ” के माध्‍यम से यह स्थिति 2026 तक के लिये बढ़ा दी गई है।

राष्‍ट्रपति चुनाव लड़ने हेतु अर्हताएँ (Eligibilities for contesting presidential election)

अनुच्‍छेद 58 में राष्‍ट्रपति निर्वाचित होने के लिये प्रत्‍याशी की अर्हताएँ बताई गई हैं। इनके अनुसार, कोई भी ऐसा व्‍यक्ति राष्‍ट्रपति हो सकता है जो –

  • भारत का नागरिक हो।
  • 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • लोकसभा का सदस्‍य निर्वाचित होने की अर्हता रखता हो।
  • भारत सरकार या किसी राज्‍य सरकार या किसी स्‍थानीय या अन्‍य प्राधिकारी के अधीन लाभ का पद धारण न करता हो। इसी अनुच्‍छेद में यह स्‍पष्‍टीकरण दिया गया है कि इस प्रयोजन के लिये भारत के राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति, किसी राज्‍य के राज्‍यपाल, केन्‍द्र या राज्‍य सरकार के किसी मंत्री को लाभ के पद का धारक नहीं समझा जाएगा।

राष्‍ट्रपति का शपथ (Oath of President of India)

राष्‍ट्रपति पद ग्रहरण करने से पूर्व शपथ या प्रतिज्ञान होता है। अपनी शपथ में राष्‍ट्रपति शपथ लेता है कि मैं –

  • श्रद्धापूर्वक राष्‍ट्रपति पद का पालन करूंगा।
  • संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और
  • भारत की जानता की सेवा और कल्‍याण में निरंतर रहूंगा।

उच्‍चतम न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उच्‍चतम् न्‍यायालय के वरिष्‍ठतम् द्वारा राष्‍ट्रपति पद की शपथ दिलाई जाती है।

राष्‍ट्रपति के निर्वाचन से जुड़े विवादों का निपटारा (Settlement of the disputes related to the President of india election)

अनुच्‍छेद 71 में स्‍पष्‍ट किया गया है कि राष्‍ट्रपति या उपराष्‍ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित सभी शंकाओं और विवादों की जाँच तथा फैसले सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा किये जाएंगे और इस संबंध में उसका निर्णय अंतिम होगा।

साथ ही यह भी प्रावधान है कि यदि सर्वोच्‍च न्‍यायालय राष्‍ट्रपति या उपराष्‍ट्रपति के रूप में किसी व्‍यक्ति के निर्वाचन को शून्य घोषित कर देता है तो भी उस व्‍यक्ति द्वारा पद धारण करने की तिथि से सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय की तिथि तक पद की शक्तियों के अंतर्गत किये गए कार्य अवैध नहीं होंगे।

राष्‍ट्रपति का निर्वाचन और संसद (The President election and the parliament)

‘ राष्‍ट्रपति और उपराष्‍ट्रपति निर्वाचन संशोधन अधिनियम , 1997 ‘  के अंतर्गत यह व्‍यवस्‍था की गई कि राष्‍ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिये किसी प्रत्‍याशी का नाम कम-से-कम 50 सदस्‍यों द्वारा प्रस्‍तावित तथा 50 सदस्‍यों द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।

उपराष्‍ट्रपति के मामले में ये संख्‍याएँ 20-20 रखी गई हैं। साथ ही, इन पदों पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों के लिये 15 हजार रूपये की जमानत राशि निश्चित की गई है।

यदि कोई उम्‍मीदवार चुनाव में डाले गए कुल वैध मतों का 1/6 भाग प्राप्‍त करने में असफल रहता है तो उसकी जमानत राशि जब्‍त कर लिये जाने का प्रावधान है।

राष्‍ट्रपति का पुनर्निवाचन (Re-election of the President)

अनुच्‍छेद 57 में यह बताया गया है कि यदि कोई व्‍यक्ति राष्‍ट्रपति के रूप में पहले निर्वाचित हो चुका है तो भी उसके पुन: इस पद के लिये चुनाव लड़ने का अधिकार होगा। इस संबंध में चुनाव लड़ने के प्रयासों की कोई अधिकतम सीमा नहीं बताई गई है। अर्थात् वह जितनी बार चाहे चुनाव लड़ सकता है। President of India

राष्‍ट्रपति की शक्तियाँ – Powers of the President of india

संविधान के विभिन्‍न अनुच्‍छेदों में राष्‍ट्रपति की शक्तियों की चर्चा की गई है। राष्‍ट्रपति की शक्तियाँ विविध और व्‍यापक है। समझने की सुविधा के लिये इसे कुछ वर्गों में बाँटा जा सकता है –

  • प्रशासनिक शक्तियाँ
  • सैन्‍य शक्तियाँ
  • राजनयिक/कूटनीतिक शक्तियाँ
  • विधायी शक्तियाँ
  • वित्‍तीय शक्तियाँ
  • न्‍यायिक शक्तियाँ
  • आपातकालीन शक्तियाँ
  • अध्‍यादेश जारी करने की शक्ति
  • अन्‍य शक्तियाँ

प्रशासनिक शक्तियां (Administrative Powers)

प्रशासनिक शक्तियों का तात्‍पर्य उन सभी कार्यों को करने की शक्ति से है जो विभिन्‍न मंत्रालयों और विभागों द्वारा किये जाते हैं। अनुच्‍छेद 77(i) में प्रावधान है कि ”भारत सरकार की समस्‍त कार्यपालिका कार्रवाई राष्‍ट्रपति के नाम से ही हुई कही जाएगी।”

संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्‍वयं या अपने अधीनस्‍थ अधिकारियों के द्वारा करेगा। (अनुच्‍छेद 53(1)) प्रशासनिक शक्ति के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को देश के सभी उच्‍च अधिकारियों की नियुक्ति करने तथा उन्‍हें हटाने की शक्ति दी गई।

राष्‍ट्रपति द्वारा निम्‍नलिखित प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है –

  • भारत का प्रधानमंत्री व उसका मंत्रिपरिषद
  • भारत का महान्‍यायवादी
  • भारत का नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक
  • उच्‍चतम् न्‍यायालय तथा सभी उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीश
  • सभी राज्‍यों के राज्‍यपाल तथा उपराज्‍यपाल
  • मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त तथा अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍त
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष तथा अन्‍य सदस्‍य
  • वित्‍त आयोग के अध्‍यक्ष और सदस्‍य
  • अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिये विशेष अधिकारी
  • भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों के संरक्षण के लिये विशेष अधिकारी आदि।

गौरतलब है कि ये सभी नियुक्तियाँ राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से नहीं, मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करनी होती है। कुछ पदों के लिये वह अन्‍य व्‍यक्तियों से भी सलाह ले सकता है। जैसे – सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायधीशों की नियुक्ति के मामले में वह भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश से सलाह करता है।

सैन्‍य शक्तियां (Military Powers)

राष्‍ट्रपति देश की तीनों सेनाओं का सर्वोच्‍च सेनापति है। उसे किसी देश के साथ युद्ध घोषित करने तथा शांति स्‍थापित करने की शक्ति है। परन्‍तु, यह शक्ति वास्‍तविक शक्ति न होकर सिर्फ औपचारिक शक्ति है, क्‍योंकि संविधान के अनुसार राष्‍ट्रपति मंत्रिपरिषण की सलाह के अनुसार कार्य करता है अनुच्‍छेद 74(i)।

राजनयिक / कूटनीतिक शक्तियां (Diplomatic Powers)

राजनयिक शक्तियों से तात्‍पर्य उन सभी शक्तियों से है जो विदेश राज्‍यों के साथ संबंधों के स्‍तर पर लागू होती है। राज्‍य का प्रमुख होने के नाते राष्‍ट्रपति अन्‍य देशों के लिये राजदूतों तथा कूटनीतिक अधिकारियों की नियुक्ति करता है तथा अन्‍य देशों द्वारा भारत में नियुक्‍त किये गए राजदूतों तथा अन्‍य प्रतिनिधियों का स्‍वागत भी करता है। President of India

विधायी शक्तियां (Legistative Powers)

भारत का राष्‍ट्रपति कार्यपालिका का प्रमुख होने के साथ साथ विधायिका से जुड़ी कुछ शक्तियाँ भी रखता है जिनमें से प्रमुख निम्‍नलिखित है –

  • वह संसद के दोनों सदनों को संसद सत्र हेतु आहूत करता है तथा सत्रावसान करता है (अनुच्‍छेद 85)
  • दोनों सदनों में गतिरोध की स्थिति में वह दोनों सदनों की संयुक्‍त बैठक बुला सकता है। (अनुच्‍छेद 108)
  • प्रत्‍येक आम चुनाव के पहले सत्र तथा प्रत्‍येक वर्ष के पहले सत्र के आरंभ में राष्‍ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्‍त सत्र को संबोधित करता है। (अनुच्‍छेद 87) President of India
  • राष्‍ट्रपति 12 ऐसे व्‍यक्तियों को राज्‍यसभा में नामांकित करता है जिनके पास साहित्‍य, कला, विज्ञान और समाज सेवा में कोई विशेष ज्ञान या व्‍यावहारिक अनुभव हो। (अनुच्‍छेद 80) इसी प्रकार उसे यह भी अधिकार है कि लोकसभा में आंग्‍ल भारतीय समुदाय का पर्याप्‍त प्रतिनिधित्‍व नहीं होने की स्थिति में अधिकतम 2 सदस्‍यों को लोकसभा के लिये नामांकित कर सकता है। (अनुच्‍छेद 131)
  • राष्‍ट्रपति का यह दायित्‍व है कि वह संसद के समक्ष विभिन्‍न प्रतिवेदन प्रस्‍तुत कराए। जैसे –
  • बजट या वार्षित वित्‍तीय विवरण (अनुच्‍छेद 112)
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 151)
  • वित्‍त आयोग की अनुशंसाएँ (अनुच्‍छेद 281)
  • संघ लोक सेवा आयोग का वार्षित प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 323)
  • पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 340)
  • राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 338)
  • राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 338क)
  • नए राज्‍यों के निर्माण या वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को परिवर्तित करने वाले विधेयक (अनुच्‍छेद 3)।
  • धन विधेयक राष्‍ट्रपति की सिफारिश से ही संसद में पेश किया जाएगा (अनुच्‍छेद 117(1))।
  • ऐसा विधेयक जिसके अधिनियमित किये जाने पर भारत की संचित निधि से व्‍यय करना पड़ेगा। (अनुच्‍छेद 117(3))
  • ऐसा विधेयक जो उन करों के बारे में है जिनमें राज्‍य हितबद्ध है या जो उन सिद्धान्‍तों को प्रभावित करता है जिनमें राज्‍यों को धन वितरित किया जाता है या जो कृषि-आय की परिभाषा में परिवर्तन करता है (अनुच्‍छेद 274(1))
  • राज्‍यों के ऐसे विधेयक जो व्‍यापार और वाणित्‍य की स्‍वतंत्रता को प्रभावित करते हैं (अनुच्‍छेद 304)

वित्‍तीय शक्तियां (Financial Powers)

राष्‍ट्रपति की वित्‍तीय शक्तियाँ व कार्य निम्‍न‍िलिखित है –

  • धन विधेयक राष्‍ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्‍तुत किया जा सकता है।
  • वह वार्षिक वित्‍तीय विवरण (केन्‍द्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखवाता है।
  • अनुदान की कोई भी मांग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
  • वह भारत की आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्‍य व्‍यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्‍यवस्‍था कर सकता है।
  • वह राज्‍य और केंद्र के मध्‍य राजस्‍व के बँटवारे के लिये प्रत्‍येक पाँच वर्ष में एक वित्‍त आयोग का गठन करता है।

 न्‍यायिक शक्तियां (Judicial Powers)

  • अपनी न्‍यायिक शक्तियों के अंतर्गत राष्‍ट्रपति उच्‍चतम न्‍यायालय में मुख्‍य न्‍यायाधीश एवं अन्‍य न्‍यायाधीशों की नियुक्ति  करता है। साथ ही राज्‍य के उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों को भी नियुक्ति करता है।
  • राष्‍ट्रपति विधिक सलाह भी उच्‍चतम न्‍यायालय से ले सकता है, परन्‍तु न्‍यायालय की यह सलाह राष्‍ट्रपति के लिये बाध्‍यकारी नहीं होती है।
  • यदि दंड या दंड का आदेश सेना न्‍यायालय द्वारा दिया गया है।
  • यदि दंड अथवा दंड का आदेश किसी ऐसे कानून के उल्‍लंघन के लिये दिया गया है जो संघ की कार्यपालिका शक्ति के अंतर्गत शामिल है।
  • ऐसे सभी मामले जिसमें मृत्‍यु दंड का आदेश दिया गया है, चाहे वे मामले संघ से संबंधित हो या राज्‍यों से। राष्‍ट्रपति किसी दंड के संबंध में कई तरह से क्षमादान की शक्ति का प्रयोग कर सकता है। जैसे –

क्षमादान – क्षमा , लघुकरण, परिहार, विराम, प्रविलंबन

  • क्षमा ( Pardon) : इसका अर्थ है कि अपराधी को दंड या दंडादेश से पूरी तरह मुक्‍त कर देना। इससे दोषसिद्ध व्‍यक्ति ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है जैसे कि उसने कोई अपराध किया ही नहीं था।
  • कठोर कारावास को साधारण कारावास में;
  • मृत्‍युदंड को आजीवन कारावास में बदल देगा।
  • 5 वर्ष के कठोर कारावास को 2 वर्ष के कठोर कारावास में बदल देना।
  • किसी गर्भवती स्‍त्री को मृत्‍युदंड के स्‍थान पर आजीवन कारावास दे देना।
  • किसी बूढ़े अपराधी को कठोर कारावास की जगह साधारण कारावास दे देना।
  • प्रविलंबन (Reprieve) : इसका अर्थ है कि मृत्‍युदंड को अस्‍थाई तौर पर निलंबित कर देना, ऐसा आमतौर पर तब किया जाता है, जब दोषसिद्ध अपराधी ने क्षमा या लघुकरण की प्रार्थना की होती है और राष्‍ट्रपति उस प्रार्थना पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में होता है।

राष्‍ट्रपति की वीटो शक्ति – Veto Powers of the President of india

संसद द्वारा पारित कोई विधेयक तभी अधिनियम बनता है जब राष्‍ट्रपति उसे अपनी सहमति देता है। जब ऐसा विधेयक राष्‍ट्रपति की सहमति के लिये प्रस्‍तुत होता है तो उसके पास तीन विकल्‍प होते हैं (अनुच्‍छेद 111)

  • वह विधेयक पर अपनी स्‍वीकृति दे सकता है 
  • वह विधेयक पर अपनी स्‍वीकृति को सुरक्षित रख सकता है
  • वह विधेयक (धन विधेयक नहीं) को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है। (हालाँकि संसद अगर इस विधेयक को पुनः बिना किसी संशोधन के अथवा संशोधन करके, राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करे तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही होगी।)

राष्‍ट्रपति को यह वीटो शक्ति दो कारणों से दी जाती है।

  • यदि विधायिका कोई ऐसा कानून बना रही हो जो संविधान के मूल भावना के विपरीत है, जो उसे रोका जा सके;
  • यदि विधायिका ने कानून के कुद पक्षों पर पर्याप्‍त विचार-विमर्श न किया हो और ज़ल्‍दबाजी में उसे पारित कर दिया हो तो उसे सुधारा जा सके।

वीटो की य‍ह शक्ति चार प्रकार की हो सकती है किन्‍तु भारतीय राष्‍ट्रपति के पास सामान्‍यत: तीन प्रकार की वीटो शक्ति है।

1. आंत्यंतिक वीटो (Absolute Veto)

इसका अर्थ है वीटो की ऐसी शक्ति जो विधायिका द्वारा पारित किये गए विधेयक को पूरी तरह खारिज कर सकती है। भारत के राष्‍ट्रपति को सीमित रूप से आत्‍यंतिक वीटो की शक्ति प्राप्‍त है। उदाहरण स्‍वरूप – 

  • किसी प्रायवेट सदस्‍य का विधेयक हो और मंत्रिपरिषद की सलाह उसके पक्ष में न हो तो राष्‍ट्रपति विधेयक को अनुमति देने से मना कर सकता है।
  • यदि राष्‍ट्रपति के पास विधेयक भेजने के बाद, किंतु उसकी अनुमति मिलने से पहले ही सरकार गिर जाए और लोकसभा के बहुमत से बनी नई सरकार अर्थात् मंत्रिपरिषद राष्‍ट्रपति को वह विधेयक अस्‍वीकार करने की सलाह दे, तो भी वह आत्‍यंतिक वीटो का प्रयोग कर सकता है।

2. निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)

राष्‍ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है, जब वह किसी विधेयक को संसद में पुनर्विचार हेतु लौटाता है। हालाँकि यदि संसद उस विधेयक को पुन: किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन के साथ पारित कर राष्‍ट्रपति के पास भेजती है तो उस पर राष्‍ट्रपति को अपनी स्‍वीकृति देना बाध्‍यकारी है। President of India

राष्‍ट्रपति धन विधेयक के मामले में इस बीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है। राष्‍ट्रपति किसी धन विधेयक को अपनी स्‍वीकृति या तो दे सकता है या उसे रोककर रख सकता है परंतु उसे पुनर्विचार के लिये नहीं भेज सकता है।

3. जेबी वीटो (Pocket Veto)

इसका आर्थ है कि कार्यपालिका के प्रमुख द्वारा विधेयक पर सकारात्‍मक या नकारात्‍मक प्रतिक्रिया देने की बजाय उसे अपने पास पड़े रहने देना है।

राष्‍ट्रपति बिना कोई निर्णय किये विधेयक को अपने पास रोककर रख सकता है। इसके लिये राष्‍ट्रपति के पास जो वीटो सबसे प्रभावी रूप में है वह ‘जेबी वीटो’ है। संविधान में सिर्फ इतना लिखा है कि राष्‍ट्रपति, संसद द्वारा पारित विधेयक को यथाशीघ्र लौटा देगा। (अनुच्‍छेद 111)। इसमें कोई निश्चित अवधि नहीं बताई गई है। इसका लाभ उठाकर राष्‍ट्रपति किसी विधेयक को अनंतकाल तक अपने पास रोककर रख सकता है।

इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण 1986 का भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक है। इस विधेयक के कुछ प्रावधान प्रेस की स्‍वतंत्रता के विरूद्ध थे। तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह इसके पक्ष में नहीं थे। इसलिये उन्‍होनें इस विधेयक पर न तो अनुमति दी, न अनुमति देने से इनकार कियाऔर न ही मंत्रिपरिषद को पुनर्विचार हेतु भेजा, बस उसे अपने पास ही पड़ा रहने दिया जिससे वह कानून नहीं बन सका। President of India

4. विशेषित वीटो (Qualified Veto)

विशेषित वीटो का अर्थ ऐसी वीटो शक्ति से है जिसे एक विशेष बहुमत के आधार पर विधायिका द्वारा खारिज किया जा सकता है। भारत के राष्‍ट्रपति के पास ये वीटो शक्ति नहीं है लेकिन अमेरिकी राष्‍ट्रपति के पास इस प्रकार की वीटो शक्ति है। ‍

आपातकाली शक्तियां (Emergency Powers)

आपात उपबंधों के अंतर्गत राष्‍ट्रपति के पास निम्‍नलिखित शक्तियाँ है –

  • यदि राष्‍ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि युद्धया बाह्य आक्रमण या सशस्‍त्र विद्रोह के होने (या इनमें से किसी भी संभावना) के कारण भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह संपूर्ण देश या उसके किसी भाग में आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है।
  • अनुच्‍छेद 356 के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को यह शक्ति है कि यदि किसी राज्‍य के राज्‍यपाल के प्रतिवेदन पर या उसे समाधान हो जाए कि राज्‍य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है तो वह उस राज्‍य में आपात की घोषणा कर सकता है।
  • अनुच्‍छेद 360 में बताया गया है कि यदि राष्‍ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि भारत या उसके किसी भाग का ‘वित्‍तीय स्‍थायित्‍व’ या ‘साख’ संकट में है तो वह आपात् की उद्घोषणा कर सकेगा ऐसी उद्घोषणा शब्‍दावली में ‘ वित्‍तीय आपात’ कहा जाता है।
  • अनुच्‍छेद 358 में बताया गया है कि यदि आपात की घोषणा अनुच्‍छेद 352 के तहत युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर (सशस्‍त्र विद्रोह के आधार पर नहीं) की गई है, तो अनुच्‍छेद 19 स्‍वत: नि‍लंबित हो जाएगा। अनुच्‍छेद 359 में राष्‍ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वह अनुच्‍छेद 20 और 21 के अलावा शेष अनुच्‍छेदों में दिये गए मूल अधिकारों या उनमें से किन्‍हीं का निलंबन कर सकेगा।

राष्‍ट्रपति की अध्‍यादेश जारी करने की शक्तियां (President’s power to promulgate ordinances)

अनुच्‍छेद 123 में कहा गया है कि यदि संसद के दोनों-  सदन सत्र में न हो और राष्‍ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिसमें तुरंत कार्यवाही करना आवश्‍यक हो गया है तो वह अध्‍यादेश जारी कर सकेगा।

अध्‍यादेश का प्रभाव ठीक वही होता है जो कि संसद द्वारा पारित अधिनियम का होता है। अर्थात् कहा जा सकता है कि कार्यपालिका के प्रमुख को यह शक्ति दी गई है कि यदि विधायिका का सत्र (संसद का सत्र) न चल रहा हो तो परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुए वह स्‍वयं विधायिका की भूमिका में आ जाए। निम्‍नलिखित परिस्थितियों में राष्‍ट्रपति को अध्‍यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्‍त है –

  • जब संसद के दोनों सदन एक साथ सत्र में न हो; इसका अर्थ है कि अगर एक सदन सत्र में है तो भी अध्‍यादेश जारी किया जा सकता है।
  • अध्‍यादेश का वही बल और प्रभाव होता है जो संसद द्वारा पारित अधिनियम का होता है।
  • मूल अधिकारों का उललंघन करने वाला कोई अध्‍यादेश जारी नहीं किया जा सकता।
  • अगर संसद के दोनों सदन उसका अनुमोदन करने का संकल्‍प पारित कर दें तो वह अधिनियम बन जाता है।
  • 6 सप्‍ताह से पहले ही दोनों सदन उसे संकल्‍प द्वारा खारिज कर दे तो यह समाप्‍त हो जाता है।
  • अध्‍यादेश के द्वारा संविधान में संशोधन नहीं किया जा सकता।
  • राष्‍ट्रपति कभी भी अध्‍यादेश को वापसले सकता है।

सबसे महत्‍वपूर्ण विवाद इस प्रश्‍न पर था कि राष्‍ट्रपतिका यह समाधान कि अध्‍यादेश जारी करने के लायक परिस्थितियाँ पैदा हो गई हैं, न्‍यायिक पुनर्विलोकन के अधीन है कि नहीं? या इसका संबंध सिर्फ राष्‍ट्रपति के व्‍यक्तिगत समाधान से है। आर. सी. कूपर बनाम भारत संघ 1970 के मामले में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने यह मत अभिव्‍य‍क्‍त किया कि राष्‍ट्रपति के व्‍यक्तिगत समाधान को न्‍यायालय में इस आधारपर चुनौती दी जा सकती है कि उसने इस शक्ति का प्रयोग असद्भावपूर्ण तरीके से किया है।

अन्‍य शक्तियां (Other Powers)

संविधान के विभिन्‍न अनुच्‍छेदों में राष्‍ट्रपति को कई अन्‍य शक्तियाँ भी दी गई हैं जैसे –

  • अनुच्‍छेद 143 के अंतर्गत राष्‍ट्रपति के पास शक्ति है कि वह किसी ‘विधि’ या तथ्‍य के ऐसे प्रश्‍न पर जो व्‍यापक महत्‍व का है और उसे लगता है कि सर्वोच्‍च न्‍यायालय से इस विषय पर सलाह लेनी चाहिए तो वह सलाह मांग सकता है।
  • हालांकि न सर्वोच्‍च न्‍यायालय अपनी सलाह देने के लिये बाध्‍य है और न ही राष्‍ट्रपति सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिये गए सलाह को मानने के लिये बाध्‍य है।
  • संघ राज्‍य क्षेत्रों का प्रशासन राष्‍ट्रपति के अधीन ही चलाया जाता है। उसे इन क्षेत्रों में प्रशासन के संबंध में नियम बनाने की शक्ति प्राप्‍त है। (अनुच्‍देद 239) President of India
  • अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के रूप में विभिन्‍न सामाजिक समूहों को पहचानने तथा उन्‍हें इन सूचियों में शामिल करने की शक्ति भी राष्‍ट्रपति के पास है। (अनुच्‍देद 341, 342)
  • राष्‍ट्रपति को अनुच्‍छेद 339 के तहत यह शक्ति प्राप्‍त है कि अनुसूचित क्षेत्रों जिसे जनजा‍तीय आबादी के कारण विशेष संरक्षणदिया जाता है, के रूप में कुछ और क्षेत्रों को शामिल करने या कुछ क्षेत्रों को शामिल करने या कुछ क्षेत्रों को सूची से बाहर करने का निर्णय कर सकता है तथा किसी राज्‍य विशेष के राज्‍यपाल से अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन मांग सकता है। इसके अलावा, ऐसे क्षेत्रों की शांति और सुशासन के लिये बनाया गया कोई भी नियम राष्‍ट्रपति की सहमति के बिना प्रभावित नहीं हो सकता।

राष्‍ट्रपति की पदावधि  – Term of the President of india

अनुच्‍छेद 56 के अनुसार राष्‍ट्रपति अपना पद ग्रहरण करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा उसके बाद यदि वह चाहे तो पुनर्निवाचन का प्रत्‍याशी हो सकता है।

5 वर्ष के भीतर राष्‍ट्रप‍ति की पदावधि निम्‍न प्रकार से समाप्‍त हो सकती है। ये उसकी आकस्मिक मृत्‍यु से अलग है –

  • राष्‍ट्रपति उपराष्‍ट्रपति को संबोधित त्‍यागपत्र के माध्‍यम से अपनी पदावधि समाप्‍त कर सकता है। (अनुच्‍छेद 56(1)(क))
  • यदि राष्‍ट्रपति ‘संविधान का अतिक्रमण’ करता है तो अनुच्‍छेद 61 में बताई गई रीति के आधार पर उस पर महाभियोग चलाया जा सकता है। अनुच्‍छेद 56(1)(ख)
  • कार्यकाल समाप्‍त होने पर।
  • यदि पद ग्रहण करने के लिए अर्ह न हो अथवा निर्वाचन अवैध घोषित हो।

यदि पद रिक्‍त होने के कारण उसके कार्यकाल का समाप्‍त होना हो तो उस पद को भरने के लिये कार्यकाल चुनाव कराकर नए राष्‍ट्रपति का निर्वाचन करा लेना चाहिए। यदि नए राष्‍ट्रपति के चुनाव में किसी कारण देरी हो तो, वर्तमान राष्‍ट्रपति अपने पद तब तक बना रहेगा जब तक कि उसका उत्‍तराधिकारी कार्यभार ग्रहणन कर ले।

इस स्थिति में उपराष्‍ट्रपति, राष्‍ट्रपति के दायित्‍वों का निर्वाह नहीं करेगा। इसके अलावा उनकी गैर मौजूदगी में उपराष्‍ट्रपति, राष्‍ट्रपति के कर्तव्‍यों का निर्वाह करेगा।

राष्‍ट्रपति पर महाभियोग – Impeachment on the President of india

संविधान के अनुच्‍छेद 61 में राष्‍ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया का वर्णन है। महाभियोग एक अर्द्ध-न्‍यायिक प्रक्रिया है जिसके माध्‍यम से राष्‍ट्रपति को उसकी पदावधि के दौरान पद से हटाया जा सकता है।

इस प्रक्रिया को निम्‍नलिखित बिन्‍दुओं के माध्‍यम से समझा जा सकता है।

  • यह आरोप एक संकल्‍प के रूप में होना चाहिए।
  • यह कम से कम 14 दिनों की लिखित सूचना देने के बाद प्रस्‍तावित किया जाना चाहिए।
  • सदन की कुल संख्‍या के कम से कम 1/4 सदस्‍यों ने हस्‍ताक्षर करके उस संकल्‍प को प्रस्‍तावित करने का प्रयोजन प्रकट किया हो। President of India
  • जब संसद का एक सदन ऐसा आरोप लगा देगा, तो दूसरा सदन उस पर आरोप का अन्‍वेषण करेगा। इस अन्‍वेषण के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह स्‍वयं उपस्थि‍त होकर या अपने किसी प्रतिनिधि के माध्‍यम से अपना बचाव पक्ष प्रस्‍तुत करे।
  • यदि जाँच के बाद वह सदन सहमत हो जाता है कि राष्‍ट्रपति के विष्‍द्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है; और वह सदन इस संकल्‍प को 2/3 बहुमत से पारित कर देता है तो ऐसा संकल्‍प पारित होने की तिथि से राष्‍ट्रपति अपने पद से हटा हुआ माना जाएगा।

राष्‍ट्रपति पद की रिक्‍तता तथा उसकी पूर्ति (Presidential vacanvies and their fullfillment)

जब राष्‍ट्रपति का पद रिक्‍त होता है तब उपराष्‍ट्रपति, राष्‍ट्रपति के रूप में कार्य करता है। यह रिक्‍ताता मृत्‍यु, पद-त्‍याग, महाभियोग द्वारा पद से हटाए जाने या किसी अन्‍य कारण से हो सकती है। President of India

क्‍या राष्‍ट्रपति ‘रबड़ की मुहर है? (Is the President a rubber stamp?)

यह सही है कि संवैधानिक उपबंधों के अनुसार राष्‍ट्रपति मंत्रिपरिषण की सलाह मानने को बाध्‍य है, किंतु इतने भर से यह निष्‍कर्ष निकाल लेना गलत होगा कि राष्‍ट्रपति सिर्फ एक ‘रबड़ की मुहर’ है। वस्‍तुत: कई ऐसी स्थितियाँ भी हैं जिनमें राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से ही निर्णय करना होता है। जैसे –

  • यदि लोकसभा के चुनाव परिणामों में किसी एक दल या चुनाव पूर्व गठबंधन को स्‍पष्‍ट बहुमत प्राप्‍त नहीं होता है तो राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से ही यह निश्‍चय करना होता है कि स्थिर व स्‍वच्‍छ सरकार देने की दृष्टि से किसका दावा सबसे मजबूत है।
  • कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री की आकस्मिक मृत्‍यु हो जाए। ऐसी स्थिति में राष्‍ट्रपति विभिन्‍न विकल्‍पों पर विचार करतेहुए स्‍वयं ही ऐसे व्‍यक्ति को सरकार बनाने का न्‍यौता देता है जो उसकी राय में लोकसभा का विश्‍वास प्राप्‍त करने में सक्षम हो।
  • यदि कोई प्रधानमंत्री लोकसभा का विश्‍वास खो दे तथा अविश्‍वास मत या विश्‍वास मत का सामना करने की बजाय राष्‍ट्रपति को लोकसभा विघटित करने की सलाह दे तो भी राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से ही निर्णय करना होता है।
  • अनुच्‍छेद 74(i) में 44वें संशोधन के बाद अब राष्‍ट्रपति को यह शक्ति दी गई कि वह मंत्रिपरिषद की किसी अनुचित सिफारिश को पुनर्विचार के लिये लौटा सके।
  • यदि लोकसभा का विघटन हो गया हो तथा नई लोकसभा का गठन न हुआ हो तो पुरानी मंत्रिपरिषद ही नई मंत्रिपरिषद के गठन तक राष्‍ट्रपति को सलाह देती है। इस समय राष्‍टप्रति को विशेष ध्‍यान रखना होता है कि वह किसी ऐसी सिफारिश को स्‍वीकार्य न करे जो चुनाव में उस दल को लाभ पहुँचाती हो या कोई बड़ा नीतिगत निर्णय करने के संबंधम में हो।
  • अनुच्‍छेद 78 में भी कुछ ऐसी स्थितियाँ बताई गई है जो राष्‍ट्रपति को कुछ स्‍वतंत्रता प्रदान करती है, उदाहरण के लिये अनुच्‍छेद 78(ख) के अंतर्गत राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री से प्रशासन तथा किसीविधान से संबंधित जानकारियाँ मांग सकता है। इसी प्रकार, अनुच्‍छेद 78(ग) के तहत राष्‍ट्रपति को अधिकार है कि वह प्रधानमंत्री को कोई विषय मंत्रिपरिषद के समक्ष रखने का निर्देश दें, जिस पर किसीमंत्री ने विनिश्चित कर दिया है किंतु मंत्रिपरिषद ने उस पर विचार नहीं किया है।

अत: इससे स्‍पष्‍ट है कि भारत का राष्‍ट्रपति उतना कमजोर नहीं है, जितना कुछ आलोचक बताते हैं।

भारत के राष्ट्रपतियों की सूची ( President of India List )

1. डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद  1950 -1962 राजेन्‍द्र प्रसाद, जो कि बिहार से थे, भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति बने, वे स्‍वतंत्रता सेनानीभी थे। वे एकमात्र राष्‍ट्रपति थे जो कि दो बार राष्‍टप्रति बने।
2. डॉ. सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन  1962 – 1967 राधाकृष्‍णन मुख्‍यत: दर्शनशास्‍त्री और लेखक थे। आंध्रविश्‍वविद्यालय और काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके थे।
3. जाकिर हुसैन 1967-1969 ज़ाकिर हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय के कुलपति रहे और पद्म विभूषण व भारत रत्‍न के भी प्राप्‍तकर्ता थे।
वराहगिरि वेंकट गिरि (वी.वी. गिरि)

(कार्यवाहक)

1969-1969 वी.वी. गिरि पदस्‍थ राष्‍ट्रपति ज़ाकिर हुसैन की मृत्‍यु के बाद कार्यवाहक राष्‍ट्रपति बनें।
4. मुहम्‍मद हिदायतुल्लाह

(कार्यवाहक)

 1969-1969 हिदायतुल्‍लाह भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश तथा आर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया के प्राप्‍तकर्ता थे।
वराहगिरि वेंकट गिरि (वी.वी. गिरि)  1969-1974 1969 चुनाव गिरि एकमात्र व्‍यक्ति थे जो कार्यवाहक राष्‍ट्रपति व पूर्णकालिक राष्‍ट्रपति दोनों बने।
5. फख़रूद्दीन अली अहमद  1974-1977 फ़खद्यरूद्दीन अली अहमद राष्‍ट्रपति बनने से पूर्व मंत्री थे। उनकी पदस्‍थ रहते हुए मृत्‍यु हो गई। वे दूसरे राष्‍ट्रपति थे जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
6. बसप्पा दनप्‍पा जत्‍ती (बी.डी. जत्‍ती)

(कार्यवाहक)

 1974-1977 बी.डी. जत्‍ती, फ़ख़रूद्देीन अली अहमद की मृत्‍यु के बाद भारत के कार्यवाहक राष्‍ट्रपति बने, इससे पहले वह मैसूर के मुख्‍यमंत्री थे।
नीलम संजीव रेड्डी 1977 – 1982 नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंत्रीथे। रेड्डी आंध्र प्रदेश से चुना गए एकमात्र सांसद थे। वे 26 मार्च 1977 को लोकसभा के अध्‍यक्ष चुने गए और 13 जुलाई 1977 को यह पद छोड़ दिया और भारत के छठे राष्‍ट्रपति बने।
7. ज्ञानीजैल सिंह  1982-1987 जैल सिंह मार्च 1972 में पंजाब राज्‍य के मुख्‍यमंत्री बने और 1980 में गृहमंत्री बनें।
8. रामास्‍वमी वेंकटरमन 1987-1992 1942 में वेंकटरमण भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जेल भी गए। जेल से छूटने के बाद वे कॉंग्रस पार्टी के सांसद रहे। इसके अलावा वे भारत के वित्‍त एवं औद्योगिक मंत्री और रक्षा मंत्री भी रहे।
9. शंकरदयाल शर्मा  1992 – 1997 शर्मा मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री और भारतके संचार मंत्री रह चुके थे। इसके अलावा वे आंध्रप्रदेश, पंजाब और महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल भी थे।
10. के. आर. नारायणन  1997-2022 नाराश्‍णन जीचन, तुर्की, थाईलैंड और संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके थे। उन्‍हें विज्ञान और काकून में डॉक्‍टरेट की उपाधि प्राप्‍त भी। वे जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं।
11. ऐ.पी.जे. अब्‍दुल कलाम  2002 – 2007 कलाम मुख्‍यत: चैज्ञानिक थे जिन्‍होने मिसाइल और परमाणु हथियार बनाने में मुख्‍य योगदान दिया, इस कारण उन्‍हें भारत रत्‍न भी मिला। उन्‍हें भारत का मिसाइल मैन भी कहा जाता है।
12. प्रतिभा देवी सिंह पाटिल  2007 – 2012 प्रतिभा पाटिल भारत की प्र‍थम महिला राष्‍ट्रपति बनी। वह राजस्‍थान की प्र‍थम महिला राज्‍यपाल भी थी।
13. प्रणव मुखर्जी  2012 – 2017 प्रणव मुखर्जी भारत सरकार में वित्‍त मंत्री, विदेशमंत्री, रक्षा मंत्री और योजना आयोग के उपाध्‍यक्ष रह चुके हैं।
14. रामनाथ कोविंद  2017 – 2022 राज्‍यसभा सदस्‍य तथा बिहार के राज्‍यपाल रह चुके है।
15. द्रौपदी मुर्मू 2022 से अब तक   
  • भारत के सभी राष्ट्रपतियों को क्रम से याद करने के लिये Trick यहां पढें 

भारत का राष्ट्रपति – विशिष्ट तथ्य (important facts about president of india) 

  • 12वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने वाली श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति थीं।
  • 1969 ई. के राष्ट्रपति चुनाव में अंतःकरण की आवाज पर खुला मतदान हुआ था। इसमें निर्दलीय प्रत्याशी वी. वी. गिरी ने कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को पराजित किया था।
  • नीलम संजीव रेड्डी भारत के ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो लोकसभा के अध्यक्ष भी थे। President of India
  • भारत में कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में वी.वी. गिरि (डॉ. जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण). एम. हिदायतुल्ला (वी.वी. गिरि द्वारा त्यागपत्र के कारण) एवं बी.डी. जत्ती ने (फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के कारण) कार्य किया था।
  • राष्ट्रपति के रूप में डॉ . राजेन्द्र प्रसाद ने सबसे लम्बी अवधि (1950-62) तक एवं डॉ . जाकिर हुसैन ने (कार्यकारी राष्ट्रपति छोड़कर) सबसे कम अवधि (1 वर्ष 11 दिन) तक कार्य किया था।
  • संविधान सभा ने अपनी अन्तिम बैठक (14 जनवरी 1950) में निर्विरोध रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का अंतरिम राष्ट्रपति (26 जनवरी, 1950 से राष्ट्रपति पद के लिए प्रथम चुनाव तक) निर्वाचित किया था।
  • डॉ. जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद का निधन उनके कार्यकाल के दौरान हो गया था।
  • भारतीय गणतंत्र में ( 1982 ई. में) निर्विरोध निर्वाचित होने वाले एकमात्र राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी हैं। वे अब तक के सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति थे।
  • डॉ. वी.वी. गिरि भारत के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं , जिनको द्वितीय चक्र की मतगणना के बाद सफलता प्राप्त हुई थी। वे सबसे कम मतों के अंतर ( 2 प्रतिशत) से जीतने वाले राष्ट्रपति भी हैं।
  • एम. हिदायतुल्लाह सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे प्रथम न्यायाधीश हैं , जिन्होंने भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण किया था।
  • वी.वी. गिरि एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति है जिन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देकर राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा था। President of India
  • भारत के राष्ट्रपति का सरकारी आवास राष्ट्रपति भवन (President House) है। 1950 ई. तक इसे वायसरॉय हाउस (Viceroy House) कहा जाता था। इसका डिजाइन ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियन्स ने तैयार किया था।

President of India Questions and Answers in Hindi

  • भारत में कार्यपालिका का अध्यक्ष कौन होता है ? – राष्ट्रपति
  • राष्ट्रपति पद्धति में समस्त कार्यपालिका की शक्तियाँ किसमें निहित होती है? – राष्ट्रपति में
  • भारतीय संविधान के अनुसार देश का प्रथम नागरिक कौन होता है? – राष्ट्रपति
  • भारतीय सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति कौन होता है? – राष्ट्रपति
  • भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित होने के पात्र बनने के लिए किसी व्यक्ति की आयु पूर्ण होनी चाहिए? – 35 बर्ष
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन किस प्रकार से होता है? – अप्रत्यक्ष रूप से
  • राष्ट्रपति पद के निर्वाचन हेतु कौन-सी पद्धति अपनायी जाती है ? – समानुपातिक प्रतिनिधित्व एवं एकल संक्रमणीय मत पद्धति
  • राष्ट्रपति पद के चुनाव सम्बन्धी विवाद को किसे निदेशित किया जाता है ? – उच्चतम न्यायालय को
  • राष्ट्रपति के चुनाव के लिए प्रस्तावक एवं अनुमोदकों की कम-से-कम कितनी संख्या होनी चाहिए ? – 50-50
  • राष्ट्रपति पद का चुनाव सं चालित किया जाता है – निर्वाचन आयोग द्वारा
  • भारत में किसके चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली अपनायी जाती है? – राष्ट्रपति के
  • राष्ट्रपति चुनाव सम्बन्धी मामले किसके पास भेजे जाते हैं? – उच्चतम न्यायालय के
  • भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कितने वर्षों के लिए होता है? – 5 बर्ष
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए गठित नि र्वाचक मण्डल में सम्मिलित होते हैं ? – स्थानीय संसद तथा राज्य विधानसभाओं के सभी निर्वाचित सदस्य
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग का आरोप संसद के किस सदन द्वारा लगाया जाता है? – संसद के किसी भी सदन द्वारा
  • राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है – महाभियोग द्वारा
  • कार्यकाल पूर्ण होने से पहले भारत के राष्ट्रपति को उनके पद से कौन हटा सकता है ? – संसद द्वारा महाभियोग लगाकर
  • राष्ट्रपति को कौन पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है ? – भारत का मुख्य न्यायाधीश
  • राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र किसे सौंपता है? – उपराष्ट्रपति को
  • राष्ट्रपति का रिक्त स्थान भर लिया जाना चाहिए? – 6 माह में
  • भारतीय राष्ट्रपति के सर्वसम्मति से चुने जाने का अभी तक एकमात्र उदाहरण है – नीलम संजीव रेड्डी
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति किस राज्य से थे? – बिहार से
  • कौन लगातार दो बार राष्ट्रपति रहे थे? – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  • भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद राष्ट्रपति के पद के लिए पुनः निर्वाचन की योग्यताएँ निर्धारित करता है ? – अनुच्छेद 57
  • भारत के किस राष्ट्रपति की मृत्यु कार्यकाल पूरा करने से पूर्व ही हो गई थी ? – डॉ. जाकिर हुसैन
  • वित्त बिल के लिए किसकी पूर्व स्वीकृति आवश्यक है? – भारत के राष्ट्रपति
  • किसी भी अभियुक्त की फाँसी की सजा को बदलने या कम करने का अधिकार किसे दिया गया है ? – राष्ट्रपति को
  • लोकसभा एवं राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्यों की कुल संख्या कितनी है ? -14
  • किसी विधि के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार किसको है? -राष्ट्रपति को
  • सार्वजनिक महत्व के किसी विषय पर राष्ट्रपति संविधान के किस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय से कानूनी परामर्श ले सकता है ? – अनुच्छेद 143 के
  • विदेशों को भेजे जाने वाले विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमण्डलों के लिए व्यक्तियों का नामांकन कौन करता है ? – राष्ट्रपति
  • किसने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा कार्यवाहक राष्ट्रपति दोनों ही पदों को सुशोभित किया ? – एम. हिदायतुल्ला ने
  • विदेशी देशों के सभी राजदूतों का कमिश्नरों के प्रत्यय पत्र किसके द्वारा प्राप्त किये जाते हैं ? – राष्ट्रपति
  • राष्ट्रपति किस विधेयक को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता ? – धन विधेयक
  • राष्ट्रपति संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत अध्यादेश जारी कर सकता है? – अनुच्छेद 123 के
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश अधिवेशन आरम्भ होने के कितने दिनों तक अधिक-से-अधिक एक बार में प्रभावी रह सकता है? – 6 सप्ताह तक
  • राष्ट्रपति के चुनाव में विवाद होने पर किसकी सलाह ली जाती है ? – सर्वोच्च न्यायालय की
  • राष्ट्रपति को भत्ते के अलावा प्रतिमाह कितना वेतन प्राप्त होता है? – 5,00,000रु.
  • नामांकन के समय राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जमानत के तौर पर कितना रुपया जमा करना पड़ता है? – 15,000रु.
  • भारत के राष्ट्रपति ने जिस एकमात्र मामले में वीटो ( Pocket Veto) शक्ति का प्रयोग किया था, वह था – भारतीय डाकघर (संशोधन) अधिनियम
  • राष्ट्रपति को लोकसभा में किन दो सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है ? – एंग्लो-इण्डियन
  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कौन कार्यभार ग्रहण करेगा ? – सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
  • लोकसभा द्वारा पारित विधेयक यदि राष्ट्रपति लोकसभा का पुनर्विचार के लिए लौटाता है और लोकसभा उसे पूर्ववत् पास करके राष्ट्रपति के पास भेज देती है, तो राष्ट्रपति विधेयक को – अनुमति देगा
  • अध्यादेश जारी करने का अधिकार राष्ट्रपति का कौन-सा अधिकार है ? – विधायी
  • भारत एक गणतंत्र है, इसका अर्थ है? – भारत में वंशानुगत शासन नहीं है
  • एक विधेयक जो संसद में प्रस्तुत किया जाता है, कौन-सी क्रिया के बाद अधिनियम बन जाता है ? – जब राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देता है।
  • भारत के राष्ट्रपतियों में से कौन कुछ समय के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के महासचिव भी थे ? – ज्ञानी जैल सिंह
  • किसी भौगोलिक क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का संवैधानिक अधिकार किसको है? – राष्ट्रपति को
  • युद्ध की घोषणा या शांति का फैसला करने में कानूनी रूप से सक्षम है – राष्ट्रपति
  • एक ही व्यक्ति को कितनी बार भारत का राष्ट्रपति बनाया जा सकता है ? – कई बार
  • भारतीय गणतंत्र का वह कौन-सा राष्ट्रपति था, जो सदा भारतीय धर्म-निरपेक्षता को सर्वधर्म समभाव कहता रहा ? – डॉ. एस. राधाकृष्णन
  • भारत सरकार का सांविधानिक अध्यक्ष कौन है ? – राष्ट्रपति
  • यदि भारतीय उपराष्ट्रपति अपना पदत्याग करने का निर्णय लेते हैं, तो वे अपना त्यागपत्र किसे सम्बोधित करके लिखेंगे ? – राष्ट्रपति को
  • जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के पद एक साथ खाली हों , तो पद पर अस्थायी रूप से कौन काम करता है? – भारत का मुख्य न्यायाधीश
  • भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने का अधिकार है – संसद के दोनों सदनों को

ये भी पढें – 

  • भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना 
  • भारतीय संबिधान के मूल कर्तव्‍य
  • राज्‍य के नीति-निदेशक सिद्धात
  • भारतीय संविधान का संशोधन 
  • भारतीय संबिधान के आपातकालीन उपबंध 

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TAG – The President of India, President of India List From 1947 to 2023, President of India GK Questions in Hindi, Rashtrapati GK in Hindi, R ashtrapati of India, Bharat ke Rashtrapati 

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Nitin Gupta

My Name is Nitin Gupta और मैं Civil Services की तैयारी कर रहा हूं ! और मैं भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश से हूँ। मैं इस विश्व के जीवन मंच पर एक अदना सा और संवेदनशील किरदार हूँ जो अपनी भूमिका न्यायपूर्वक और मन लगाकर निभाने का प्रयत्न कर रहा हूं !!

मेरा उद्देश्य हिन्दी माध्यम में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने बाले प्रतिभागियों का सहयोग करना है ! आप सभी लोगों का स्नेह प्राप्त करना तथा अपने अर्जित अनुभवों तथा ज्ञान को वितरित करके आप लोगों की सेवा करना ही मेरी उत्कट अभिलाषा है !!

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यदि मैं प्रधानमंत्री होता (निबंध) | If I Were the Prime Minister in Hindi

president of india essay in hindi

यदि मैं प्रधानमंत्री होता (निबंध) | If I Were the Prime Minister in Hindi!

हमारा राष्ट्र एक संप्रभुता संपन्न गणराज्य है । यहाँ की जनता अपना नेता चुनने के लिए स्वतंत्र है । हमारा अपना संविधान है । संविधान के अनुसार राष्ट्र का सर्वोच्च नागरिक माननीय राष्ट्रपति से केवल प्रमुख विषयों पर ही विचार-विमर्श किया जाता है अथवा अनुमति ली जाती है ।

इस प्रकार देश के प्रधानमंत्री का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद हो जाता है । देश के विकास संबंधी नीति-नियम तथा इसके संचालन के प्रमुख दायित्व एवं अधिकार प्रधानमंत्री के ही पास होते हैं । आज हमारे देश में घूसखोरी और रिश्वतखोरी दिनों-दिन बढ़ती चली जा रही है । यह कुप्रथा हमारे समस्त तंत्र को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है ।

ADVERTISEMENTS:

एक सामान्य निचले दर्जे के कर्मचारी से लेकर चोटी तक के शीर्षस्थ अधिकारी व नेता सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो पद ग्रहण करने के उपरांत सर्वप्रथम मेरा प्रयास यही होता, शासन में फैले भ्रष्टाचार व घूसखोरी को त्वरित गति से समाप्त करना ।

भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी व भाई-भतीजावाद आदि बुराइयाँ देश की प्रगति के मार्ग के प्रमुख अवरोधक हैं । मैं यह बात भी भली-भाँति समझता हूँ कि बिना इस पर अंकुश लगाए हमारी कार्य-योजनाएँ पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकती हैं क्योंकि गरीब व निचले दर्जे के उत्थान के लिए सरकार जो भी आर्थिक मदद मुहैया कराती है उसे उच्च अधिकारी व अन्य भ्रष्ट लोग गंतव्य तक पहुँचने ही नहीं देते ।

इसे रोकने के लिए सर्वप्रथम मैं यह व्यवस्था करूँगा कि भविष्य में अपराधी तत्व के लोगों को चुनाव टिकट न मिल सके अपितु वही लोग सत्ता में आ सकें जो गुणी एवं पद के लिए सर्वथा योग्य हों । इसके अतिरिक्त मेरा प्रयास होगा कि जनता का धन जो सरकार के पास कर तथा अन्य माध्यमों से जमा होता है उसका सदुपयोग हो । अपने मंत्रिपरिषद के समस्त मंत्रियों के वे खर्च रोक दिए जाने चाहिए जो आवश्यक नहीं हैं ।

इसके अतिरिक्त उन भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के प्रति कड़ी कार्यवाई की जाएगी जो भ्रष्टाचार के आरोपी पाए जाते हैं । इसमें किसी को भी छूट नहीं दी जाएगी भले ही वह किसी पद पर क्यों न हो, क्योंकि कानून की दृष्टि में सभी एक समान होते हैं ।

हमारे देश की दो-तिहाई से भी अधिक जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जहाँ अधिकांश ऐसे लोग हैं जो आजादी के पाँच दशकों बाद भी गरीबी रेखा से नीचे रहकर जीवन-यापन कर रहे हैं । मेरी विकास योजनाओं का केंद्र बिंदु यही लोग होंगे ।

मेरा प्रयास होगा कि उन सभी को रोटी, कपड़ा एवं घर जैसी आधारभूत आवश्यकताएँ मुहैया कराई जा सकें ताकि ये भी देश के विकास में स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मस्तिष्क के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे आ सकें ।

आज का युग विज्ञान का युग है । हालाँकि पूर्व प्रधानमंत्रियों के शासनकाल में इस दिशा पर कुछ कार्य हुआ है परंतु अभी भी हम अन्य विकसित देशों की तुलना में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए हैं । आज विज्ञान की प्रगति एवं देश की प्रगति दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं । मेरा यह प्रयास होगा कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएँ और इसका लाभ केवल नगरीय सीमाओं तक ही सीमित न रहे अपितु गाँवों व कस्बों तक पहुँचे ।

देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज सरकारी खजाने का एक बहुत बड़ा हिस्सा हमारे रक्षा बजट में खर्च करना पड़ता है । यही धन यदि विकास कार्यों में लगे तो देश का विकास और तीव्र गति से होगा ।

मेरा प्रयास होगा कि अपने सभी पड़ोसी देशों से हमारे संबंध मधुर हों ताकि सभी स्वेच्छा से अपना-अपना रक्षा-व्यय घटाकर इस क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दें । विश्व मंच पर मैं विश्व शांति एवं निरस्त्रीकरण के अपने प्रयास में तेजी लाऊंगा ताकि मानव कल्याण की दिशा में और भी अधिक कार्य हो सके ।

मेरे पूर्व सभी प्रधानमंत्रियों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से अपने भाषण के दौरान अपनी योजनाओं का खुलासा किया परंतु उसका आकलन करने का पता है अधिकांश योजनाएँ कागज पर ही रह जाती हैं तथा कथनी और करनी में समन्वय नहीं हो पाता है । मेरा प्रयास होगा कि हम जिन योजनाओं को अंतिम रूप देते हैं उन पर पूर्ण दृढ़ता के साथ अमल हो क्योंकि ऐसी समस्त योजनाओं में केवल समय एवं धन का अपव्यय होता है जिन पर अमल नहीं किया जाता है ।

प्रधानमंत्री का पद अत्यंत जिम्मेदारी का पद है । अल्प समय में बहुत कुछ करना होता है । मेरा पूर्ण प्रयास होगा कि मैं निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के प्रति पूर्णतया समर्पित हो अपने उत्तरदायित्व का भली-भाँति निर्वाह करूँ तथा देश की गौरवशाली परंपरा व संस्कृति को कायम रख सकूँ । देश की जनता ने जिस आशा और विश्वास के साथ मुझे यह दायित्व सौंपा है मैं उन पर खरा उतर सकूँ क्योंकि, गाँ धीजी के ही कथनानुसार

” वैष्णव जन तो तेने कहिए , जो पीर पराई जाने रे ! ”

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Essay on President of India

Students are often asked to write an essay on President of India in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on President of India

Role of the president.

The President of India is the head of state. This means he/she represents the country. The President’s role is mostly ceremonial, but they have important duties during government formation and law-making.

Electing the President

The President is not directly elected by the people. Rather, elected members of Parliament and State Legislatures vote for the President. This indirect election ensures the President’s impartiality.

Presidential Powers

The President has executive, legislative, and judicial powers. They sign laws, appoint key officials, and can pardon criminals. However, they usually act on the advice of the Prime Minister.

Presidential Residence

The President lives in the Rashtrapati Bhavan in New Delhi. This historic building is a symbol of the President’s status and the nation’s heritage.

250 Words Essay on President of India

Introduction.

The President of India, the head of state, is a figure of high authority and dignity in the Indian Constitution. This role is largely ceremonial, but it also carries substantial discretionary powers, especially during political crises.

Role and Responsibilities

The President’s role is to preserve, protect, and defend the Constitution and the law of India, as per Article 60. They also act as the ceremonial head of the state and the commander-in-chief of the Indian Armed Forces. The President has the power to declare war or peace, subject to the approval of the Parliament.

Electoral Process

The President is elected by an electoral college consisting of the elected members of both houses of Parliament, as well as the elected members of the Legislative Assemblies of the States and Union territories. This indirect election method ensures a balanced representation of India’s federal structure.

Term and Impeachment

The President serves a term of five years, and can be re-elected. They can be removed from office through impeachment, a process that can be initiated for violation of the Constitution. However, no Indian President has ever been impeached.

In conclusion, the President of India holds a position of great prestige and responsibility. While the role is largely ceremonial, the President’s powers are crucial in maintaining the balance of power and upholding the Constitution. The President’s position is a symbol of the Indian Republic, the unity of the country, and its democratic principles.

500 Words Essay on President of India

The role and significance of the president of india, constitutional position and powers.

The President of India, as outlined in the Indian Constitution, holds the highest office in the land. The President is vested with executive powers and is responsible for ensuring that the country’s governance adheres to the constitutional framework. The President has the authority to summon and prorogue either or both the Houses of Parliament and dissolve the Lok Sabha.

The President also has the power to grant pardons, reprieves, respites or remissions of punishment, or to suspend, remit or commute the sentence of any person convicted of any offence. However, these powers are not absolute and are exercised on the advice of the Council of Ministers.

Presidential Prerogatives and Discretion

Though the President acts on the advice of the Council of Ministers, there are certain circumstances where they can exercise their discretion. This includes the selection of the Prime Minister when no party has a clear majority in the Lok Sabha. The President can also send back advice for reconsideration and can call for information regarding decisions of the Council of Ministers.

The President as a Figurehead

Beyond the constitutional duties, the President of India is also a figurehead who represents the unity, integrity, and continuity of the nation. They perform numerous ceremonial roles, including the swearing-in of the Prime Minister, the delivery of the address to the joint sitting of Parliament at the start of the first session after each general election, and the presentation of prestigious national awards.

That’s it! I hope the essay helped you.

Apart from these, you can look at all the essays by clicking here .

Happy studying!

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Modi’s Taiwan Ties Have Rattled China

India’s overtures to the island have coincided with a breakdown in its relationship with beijing..

  • Foreign & Public Diplomacy
  • United States
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In the week since he staked his claim for a third term as India’s prime minister, Narendra Modi’s official account on X (formerly Twitter) has been replete with replies to congratulatory messages from dozens of global leaders—from Ukraine’s Volodymyr Zelensky to U.S. President Joe Biden to Pakistan’s Shehbaz Sharif , and even the likes of Bill Gates and Elon Musk . 

In the week since he staked his claim for a third term as India’s prime minister, Narendra Modi’s official account on X (formerly Twitter) has been replete with replies to congratulatory messages from dozens of global leaders—from Ukraine’s Volodymyr Zelensky to U.S. President Joe Biden to Pakistan’s Shehbaz Sharif , and even the likes of Bill Gates and Elon Musk .  

But one post in particular raised hackles in China and eyebrows everywhere else. Taiwan’s recently elected president, Lai Ching-te , was among the first to congratulate Modi last week in a message that touted “the fast-growing” Taiwan-India partnership. Modi responded by endorsing “closer ties” between the two governments as well as a “mutually beneficial economic and technological partnership.”

China, predictably, did not take it well. “China opposes all forms of official interactions between the Taiwan authorities and countries having diplomatic relations with China,” Chinese Foreign Ministry spokesperson Mao Ning told reporters , reiterating Beijing’s stance that “Taiwan is an inalienable part of the territory of the People’s Republic of China” and adding that “China has protested to India about this.”  

Modi and Lai’s interaction didn’t take place in a vacuum. India and Taiwan have been inching closer in recent years, driven largely by technologies such as semiconductor chips and mobile device manufacturing. 

Taiwan’s Powerchip Semiconductor Manufacturing Corp (PSMC) is building a chipmaking plant in partnership with the Indian conglomerate Tata in Modi’s home state of Gujarat, while Taiwanese manufacturing giant Foxconn—which assembles a big chunk of the world’s iPhones—has significantly expanded its manufacturing base in India. The two governments also signed an agreement in February to bring Indian migrant workers to Taiwan to ease the island’s long-standing labor shortage.

“Some of it is India’s own technological goals, and a recognition that Taiwan is one of the largest and most advanced economies in the world,” said Tanvi Madan, a senior fellow at the Brookings Institution in Washington, D.C. “It fits India’s search for like-minded partners, particularly in strategic technologies.”

Apple’s elevation of India as both a market and a manufacturing base has also played a key role, Madan added, given that the U.S. tech giant relies heavily on Taiwanese firms for components and assembly. “Apple is almost midwifing this business-to-business relationship,” she said.

On the other hand, Modi’s decision to publicly respond to Lai was unprecedented in many ways, and it was likely meant to send a subtle message to China, with whom India’s relations have dramatically frayed over the same period that its Taiwan links have deepened. 

Military clashes at the India-China border in 2020—in which nearly two dozen soldiers were killed—unraveled the bonhomie that Modi and Chinese President Xi Jinping built during their respective first terms in office. Both countries have been building up troops and infrastructure at the border since, and India’s retaliation also included banning TikTok and dozens of other Chinese apps. (Notably, Xi has not officially congratulated Modi on his victory yet—unlike after past elections .)

“That was the time when [India] realized that if China is not paying attention to our red lines, why do we have to pay attention to China’s red lines?” said Sana Hashmi—a fellow at a Taipei-based think tank called the Taiwan-Asia Exchange Foundation—who has previously worked with the Indian and Taiwanese foreign ministries. “Over the years, we have seen China give India ample reason to focus on Taiwan,” she added.

India, like the United States and many other countries, officially adheres to a “One China” policy that recognizes the government in Beijing as China’s sole global representative—though New Delhi has not publicly reiterated that stance for more than a decade . (Modi’s reply to Lai, notably, did not include any possible trigger words, such as “Taiwan” or “president.”) 

Before India’s recent weekslong national elections, in which Modi won a third term in office , there were a few tentative signs of a possible India-China rapprochement. In a meeting at last year’s BRICS summit, Modi and Xi agreed to attempt a de-escalation of the border standoff, and China’s ambassador post in New Delhi, which had sat vacant for 18 months, was finally filled in May of this year.

But Modi’s response to Lai—as calibrated as it may have been—has likely made any further engagement incredibly unlikely if not totally impossible, according to Sushant Singh, a lecturer at Yale University and Foreign Policy contributor who previously served in the Indian Army. “It’s a very clear provocation, it’s outside the norm that we have seen being established,” Singh said. “It has the potential to scuttle any path towards normalcy that many of us were seeing after Modi’s reelection.”

The manner of that reelection, which culminated with Modi’s Bharatiya Janata Party failing to secure a majority on its own and having to rely on smaller parties to form a coalition government, could also have played a role in the Indian prime minister’s decision to antagonize Beijing by publicly engaging Taiwan. “Many people believe that this was because Modi was being seen as a much weaker leader after the election results,” Singh said, adding that for Modi, the response to Lai “was also a way of conveying strength, conveying that he’s going to stand up to China, and he’s going to be as bold and tough as he was in Modi 2.0.”

China’s reaction so far has been largely bluster—and more muted bluster than its response to Washington’s congratulatory messages to Lai on his election earlier this year. And the India-China border is already as militarized as it can be without escalating into a full-blown armed conflict that neither country is likely to want. 

Despite Modi’s seemingly diminished political mandate on the domestic front, India’s foreign policy is unlikely to change significantly, perhaps illustrated by the announcement on Monday that Foreign Minister S. Jaishankar will reprise his role in Modi’s new cabinet.

That foreign policy has also been marked by a closer India-U.S. relationship, defined in large part by a mutual concern over China’s rise. India has not publicly pledged to defend Taiwan in the event of a Chinese invasion—as Washington has—and it is still unclear what role, if any, New Delhi would play in such an event. But there is a growing recognition that any such conflict would impact India’s national and regional security. India’s top military official last year reportedly ordered a study of possible scenarios for a China-Taiwan conflict and what actions India might take.

“I do think there’s a greater awareness, for a number of reasons, of the impact that a Taiwan contingency would have on India and the adverse implications,” said Madan, the Brookings fellow. “I’m assuming the next stage of that discussion would be … the spectrum of things India might be willing to do or not do.”

But India’s increasing engagement with Taiwan should also be seen on its own merit rather than solely through a U.S.-China lens, according to the Taiwan-Asia Exchange Foundation’s Hashmi. “China has played an important role, but I think the merit of engaging Taiwan is something that the [Modi government] has realized already,” she said. “What the differences with China have done is make the leadership less hesitant about talking about Taiwan.”

While Modi’s overtures to Taiwan may well be designed to provoke China, they may also be partly a function of his government’s foreign-policy doctrine of “multi-alignment,” in which India’s relationships are dictated more purely by its national interests than by external pressures or global rules-based order precedents. Modi’s message of thanks to Zelensky, for example, was followed by a similarly effusive post for Russian President Vladimir Putin.

“Modi has had this general attitude that ‘if I’m doing something with a country, why am I hiding it?’” Madan said, pointing out that he was the first Indian prime minister to visit both Israel and Palestine.

“I do think with China, he’d be a bit more careful, so I don’t think this would be just something of a lark. If you went to any China hand who’s calling for dialogue, they’ll probably tell you he shouldn’t have done this,” she added. “So it could be signaling, [or] it could just be Modi.”

Rishi Iyengar is a reporter at  Foreign Policy . Twitter:  @Iyengarish

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India’s Perilous Border Standoff With China

Modi’s tough stance could invite—not deter—chinese aggression, by praveen donthi.

High up in the mostly uninhabitable stretches of the Himalaya Mountains, the world’s two largest armies are facing off. The tensions at the disputed Chinese-Indian border, where around 100,000 troops are garrisoned at remote outposts, rarely makes international headlines. But it is one of the world’s most dangerous flash points. In 2020, clashes at the border left over 20 soldiers dead, marking the most significant fighting between China and India since the two countries fought a war in 1962.

Tensions at the roof of the world have persisted ever since. In the last four years, both sides have sought to build up infrastructure and position yet more troops along the border. Just as China spars with many of its neighbors over competing territorial claims, the unresolved boundary dispute with India is a great source of volatility. The annual threat assessment released in March by the U.S. director of national intelligence warned that sporadic encounters between Indian and Chinese troops “risk miscalculation and escalation into armed conflict.”

The deepening border crisis reflects the growing strategic rivalry between India and China. Bilateral ties sharply deteriorated in the wake of the 2020 clashes. Facing China’s superior military and its increasingly aggressive foreign policy, Indian Prime Minister Narendra Modi has sought to deepen India’s alignment with the United States and other countries wary of Beijing. He has embraced India’s new role as a counterbalance to China in the Indo-Pacific. He has boosted the country’s participation in the so-called Quad, its security partnership with Australia, Japan, and the United States. And he has ensured that in many areas, bilateral relations between China and India are functionally frozen, harking back to the era between 1962 and 1988 when the two countries did not maintain normal diplomatic ties because of the border dispute.

Beyond the border—the most dangerous flash point—Indian officials see Beijing entering their backyard. India has long claimed that China is using its alliance with India’s archnemesis, Pakistan, to keep India pinned down in the region. China’s belligerence also resurrects India’s old strategic concern about a potential two-front war with Pakistan acting in tandem with China. Across South Asia, China and India are also vying for influence in smaller countries, such as Bangladesh, the Maldives, Nepal, and Sri Lanka. Modi seems to have realized that the expansion of India’s role on the international stage will depend on how it manages China militarily and politically. At the time of publication, he looked likely to win a third term as prime minister in this year’s parliamentary elections. If his victory is confirmed, it will be propelled in part by the strength of the image he projects of himself as a confident world leader driving India toward great-power status—and keeping China in check.

This increasingly aggressive stance, however, is likely to invite more trouble. Modi’s tack toward Washington makes the rivalry between India and China look like a subset of the bigger competition between China and the United States . Some Indian analysts fear that this state of play will encourage Beijing to deal with Washington directly rather than with New Delhi, reinforcing perceptions in India that China does not see it as an equal. India’s closer alignment with the United States might also encourage China to use coercive tactics toward India to send a firm message to the United States and its allies. Although it may serve a domestic purpose, Modi’s strongman posturing makes diplomacy with China harder, thereby prolonging the crisis. To be sure, Modi has engaged Beijing before, and little came of those efforts. But getting back to high-level talks with China remains the best bet for both establishing stability on the border and burnishing India’s great-power credentials.

ON THE ROOF OF THE WORLD

The origins of China and India’s border dispute go back to the 1950s, when Chinese forces occupied Tibet, which had long served as a buffer zone between the two countries. The governments of China and India inherited the borders of the regimes they replaced, the Qing dynasty and British India, leading to a welter of overlapping claims. In 1962, a brief war broke out along the disputed border, resulting in a crushing defeat for India. That humiliating loss engendered a deep and lasting distrust of China that haunts Indian policymakers to this day. A de facto border imposed by Beijing after 1962 called the Line of Actual Control (LAC) functions as a working boundary, although the two countries do not agree on exactly where it lies.

Between 1993 and 2013, Indian and Chinese diplomats signed a series of border agreements to try to minimize the dispute and reduce the risk of violent escalation by restricting, for instance, the use of firearms by both armies. But the fundamental disagreement persisted and sparked recurring flare-ups, including a streak of border standoffs in 2013, 2014, 2015, and 2017. Both countries sought to paper over their differences through two informal summits in 2018 and 2019, but the worst was yet to come. In the spring of 2020, thousands of Chinese troops advanced into areas claimed by India, leading to clashes in which at least 20 Indian and four Chinese soldiers were killed.

After every big crisis in the past, both sides tried to work out peace agreements and suppress their differences—but not after the 2020 clash. In an interview in April, Modi finally admitted that the standoff had taken a toll on relations between India and China: “the prolonged situation on our borders,” he said, has led to “abnormality in our bilateral interactions.” China has loomed larger over many of India’s strategic and foreign policy choices in the last four years. Since gaining independence in 1947, India has sought strategic autonomy and pursued a policy of general nonalignment, eschewing formal alliances. But China’s increasingly aggressive posture and growing power in Asia has pushed India’s foreign policymakers toward the United States and its allies.

The two largest armies in the world face off high in the Himalayas.

This is not the turn Modi had hoped for. Before he came to power in 2014, he warned Beijing to shed its “expansionist mindset.” But that tough talk belied tangible moves to establish trust and a one-to-one channel with Chinese President Xi Jinping . Modi enthusiastically sought deeper economic ties, welcomed Xi to India a few months into his first term, and traveled to Beijing in May 2015 to visit Xi. Between 2014 and the outbreak of the COVID-19 pandemic, Modi met with Xi 18 times and visited China five times, an unprecedented level of interaction between the two countries’ leaders.

This bonhomie, however, did not produce any real change in Beijing’s foreign policy. Its long-standing alliance with Islamabad remained intact. And China worked to thwart Modi’s global ambitions. New Delhi resented Beijing for standing in the way of India’s efforts to become a permanent member of the UN Security Council in 2015 and for failing to back India’s entry to the elite Nuclear Suppliers Group in 2016. China blocked Indian appeals to the UN Security Council between 2016 to 2019 to designate the chief of the Pakistani jihadist group Jaish-e-Muhammed, which was responsible for attacks on Indian soil, as a terrorist.

Then China ratcheted up the pressure on the border. In line with other expansionist moves in the South China Sea, where it has sparred with the Philippines and other countries over maritime claims, China grew bolder in asserting its territorial claims in the Himalayas and in criticizing India for any attempt to strengthen its position in those regions. The bloody clash that ensued in 2020 and the resulting Chinese land grabs put Modi in a difficult position, as admitting that China had brazenly taken land claimed by India would make him appear weak. Initially, he flatly denied that Chinese troops had crossed the border and entered Indian territory. He asserted that not even an inch of land has been lost, although by some accounts India has lost access to around 775 square miles that it once patrolled. He continues to avoid talking directly about China, out of fear of inviting scrutiny of the fact that India has lost ground to its neighbor on his watch. At the same time, his government has retaliated through other means. It has banned 59 Chinese apps, targeted Chinese companies with tax raids, and created hurdles for Chinese investment. Indian public opinion has also grown steadily more hostile to China, disincentivizing diplomatic engagement and compromise.

Modi’s domestic critics and political opponents have blamed him for losing territory to China, but that has not hurt his government. By pounding the drum of Hindu nationalism and insisting on India’s great-power status, Modi has deflected domestic criticism of his foreign policy. With the help of a pliant Indian media and a fervently pro-government social media, there is little discussion about India’s China policy in the public sphere, never mind in Parliament. His hardened stance against China has helped him forge stronger ties with the United States and its allies, but it has done little to resolve the underlying dispute or bring stability back to the border.

NOT FRIENDS, NOT ENEMIES

In the words of Foreign Minister Subrahmanyam Jaishankar, India’s foreign policy is now focused on how “to manage a more powerful neighbor while ensuring its own rise.” In line with the ruling Bharatiya Janata Party’s predilection for condemning prior governments, Jaishankar has argued that former Indian leaders were responsible for “consciously underrating the China challenge” until Modi brought about a strategic revolution and more openly aligned with the United States. New Delhi and Washington were already “natural allies,” according to Indian officials in 1998; they signed a civil nuclear deal in 2005 and became “closest partners” in 2013. But the Modi government took this defense and security relationship from fine words to hard fact. In 2016, India signed a military logistics pact with the United States, which soon designated India a “major defense partner” on par with its “closest allies and partners.” Once studiously nonaligned, India under Modi has drifted ever closer to the American camp.

As the rivalry between China and India becomes subsumed by broader geopolitical dynamics, the border is becoming more volatile. The prospect of either side’s ceding ground and striking a territorial compromise appears to be vanishingly small. Over 20 rounds of high-level military talks since the 2020 clash have yielded little progress, and any small provocation or miscalculation could easily provoke another round of fighting. With China consolidating its military positions in the last four years and India trying to mirror those moves, the border has been significantly militarized, and an accidental escalation could carry very serious consequences.

Modi may well feel he has landed on a strategy that wins him domestic popularity. But if he does not change his approach to China, he risks undermining all his gains by taking India to the point of no return with a full-scale armed conflict that he can ill afford. The best way forward for India would be to restart high-level political engagement to address differences related to the Himalayan dispute with China. Many of these disagreements may take a long time to resolve, but some can be broached. In the interim, both sides must make crisis management an urgent priority, reassert their commitment to the existing bilateral agreements, and explore ways to strengthen them, given the fast-changing dynamics on the border. Both China and India can take small steps toward the goal of permanently delineating the LAC by restarting the process of border demarcation, which came to a halt in 2002.

Modi can ill afford to take India to the point of no return and a full-scale armed conflict with China.

New Delhi could take a page out of Washington’s playbook in managing its relationship with Beijing by striving to set up guardrails and prevent a competitive relationship from escalating into an outright feud, without having to achieve a full reconciliation. This would, of course, require Beijing to be willing to engage, which is not guaranteed. But by sticking to his strongman image for domestic purposes, Modi heightens the risk of turning the border into a permanent flash point.

In the past year, China has reached out to the United States, the European Union, Japan, Australia, South Korea, and Vietnam—but not to its neighbor India, sending a message that it’s in no hurry to resolve the crisis. The fact that Indians have a very low opinion of China at the moment is likely dissuading Modi from making any overture lest he appear to be normalizing relations. But he has enough political capital and nationalist credentials to convince the public that leader-to-leader discussions will advance India’s interests.

It will take high-level negotiations to break this impasse. Meetings between Chinese and Indian military officials since 2020 are little more than formalities. Only the engagement of the top leaders will bring about any real change. Any resolution to the border dispute may involve both countries’ exchanging stretches of territory with the other—and Modi will have to convince an increasingly jingoistic Indian public that such compromise is worth it.

But it is in the interest of both Beijing and New Delhi not to let this crisis escalate. China does not want to divert resources from its primary security concern in the east, the near seas in the Pacific, to its western front with India. Modi does not want to get caught in a prolonged crisis with a more powerful neighbor that would impede his domestic and global ambitions. Returning stability to the border between China and India falls short of rapprochement, but it would be a far better outcome than overt war.

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president of india essay in hindi

BJP slams Congress chief for jibe at NDA, INDIA bloc backs Mallikarjun Kharge

India Today Video Desk

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Annamalai said that the Congress chief was living in a 'fool's paradise', claiming that Modi 3.0 will never fall.

Meanwhile, the senior Congress leader got big support from his INDIA bloc allies Aam Aadmi Party (AAP) and the Rashtriya Janata Dal (RJD), who said that the Indian voters do not want the Modi government at the Centre.

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