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Hindi Essay on “Himalaya – Bharat ka Gaurav” , ”हिमालय – भारत का गौरव ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

हिमालय – भारत का गौरव 

Himalaya – Bharat ka Gaurav

दुनिया में बहुत से बड़े पर्वत हैं। हिमालय संसार के सब पर्वतों का राजा है। इसलिए इसे ‘गिरिराज’ भी कहा जाता है। यह सबसे लंबा, सबसे चौड़ा और सबसे ऊंचा पर्वत है। अफगानिस्तान की सीमा से लेकर म्यांमार तक इसका विस्तार है। इसकी शाखांए रूस और चीन तक जा पहुंची हैं। जिस प्रकार समुद्र अनंत और अथाह है, वैसे ही हिमालय भी विराट है।

हिमालय दो शब्दों से बना है हिम+आलय। हिम का अर्थ है बर्फ और आलय का अर्थ है घर अर्थात बर्फ का घर। तात्पर्य यह है कि हिमायल के ऊपर बारह महीने बर्फ जमी रहती है। इसी पर्वत के ऊपर मानसरोवर झील है। उसी के समीप कैलास पर्वत है, जो शिवजी का निवास स्थान है। हिमालय की ही गोद में देवी पार्वती का जन्म हुआ। हमारे देश के कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार,  बंगाल और असम राज्य हिमालय के चरणों में बसे हुए हैं। देश की सभी बड़ी नदियां जैसे-सिंधु, गंगा, यमुना, कोसी और ब्रह्पुत्र हिमालय से ही निकली हैं। इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम एवरेस्ट है। जो 21000 फीट ऊंची है। इस चोटी पर सबसे पहले सन 1953 में शेरपा तेन सिंह ने चढऩे में सफलता प्राप्त की।

हिमालय का मनोहारी दृश्य संसार में बेजोड़ माना जाता है। दार्जिलिंग का सूर्योदय और कश्मीर का सूर्यास्त देखते ही बनता है। दूर-दूर से पर्यटक दार्जिलिंग में सुबह का दृश्य देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। सूर्य की पीली किरणें बर्फ के ऊपर पड़ती हैं तो सारा पहाड़ सोने सा चमकने लगता है। फिर थोड़ी ही देर में वह चांदी का पहाड़ हो जाता है। ऐसे ही हिमालय क्षेत्र में लगे चाय के बगीचे, अपने आप उगे जंगल, स्थान-स्थान पर झरने, विभिन्न पशु-पक्षियों की मधुर आवाजें मन को मोहनेवाली होती हैं। देहरादून, नैनीताल, शिमला और मसूरी अपने ढंग से बेजोड़ पहाड़ी शहर है। बदरीनाथ का तीर्थ हिमालय में ही है। हिमालय की गोद में बसा कश्मीर तो पृथ्वी का स्वर्ग ही है। कश्मीर की प्राकृतिक छटा देखने के लिए लाखों यात्री हर वर्ष वहां जाते हैं।

  • हिमालय से नदियों को वर्ष भर जल मिलता है, जिससे भारत हरा-भरा बना हुआ है।
  • हिमालय रूस की ओर से आने वाली उत्तर की ठंडी हवाओं को रोकता है, जिससे देश की जलवायु बिगडऩे नहीं पाती।
  • हिमालय से टकराकर मानसून भारत में वर्षा कराता है।
  • पूरे हिमालय क्षेत्र में बड़े-बड़े जंगल हैं, जिनसे इमारती और जलाने की लकडिय़ां प्राप्त होती हैं।
  • हिमालय क्षेत्र में उपयोगी जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं, जिससे औषधियां तैयार की जाती हैं।
  • हिमालय क्षेत्र में अनेक खाने हैं, जिनसे देश की समृद्धि बढ़ती है।
  • हिमालय क्षेत्र में बहुत से जंगली पशुओं को पाया जाता है। जिनका चमड़ा, मांस और हड्डियां काम आती हैं।
  • हिमालय उत्तर से आने वाले शत्रुओं से देश की रक्षा करता है।
  • अपनी सुंदरता और प्राकृतिक छटा के कारण हिमालय ने कवियों को प्रेरणा दी है। कवि तुलसीदास इससे विशेष रूप से प्रभावित थे।

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भारतीय विरासत और संस्कृति

Make Your Note

भारतीय सभ्यता, संस्कृति का वर्तमान स्वरूप और इसका महत्त्व

  • 26 Jun 2020
  • 10 min read
  • सामान्य अध्ययन-I

भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। जीने की कला हो, विज्ञान हो या राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं किंतु भारत की संस्कृति व सभ्यता आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है।

संस्कृति शब्द का अर्थ:

  • संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण करता है। अतः संस्कृति का साधारण अर्थ होता है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि, सजावट आदि।
  • सभ्यता का संबंध हमारे बाहरी जीवन के ढंग से होता है यथा- खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल आदि जबकि संस्कृति का संबंध हमारी सोच, चिंतन और विचारधारा से होता है।
  • संस्कृति का क्षेत्र सभ्यता से कहीं अधिक व्यापक और गहन होता है। सभ्यता का अनुकरण किया जा सकता है लेकिन संस्कृति का अनुकरण नहीं किया जा सकता है ।
  • उपर्युक्त अंतर से स्पष्ट है कि दोनों के क्रियाकलाप अलग-अलग हैं और दोनों परस्पर जुड़े हुए भी हैं। सभ्यता में मनुष्य के राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय व दृश्य कला रूपों का प्रदर्शन होता है जो जीवन को सुखमय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जबकि संस्कृति में कला, विज्ञान, संगीत, नृत्य और मानव जीवन की उच्चत्तर उपलब्धियाँ सम्मिलित हैं। अतः यही कहा जा सकता है कि सभ्यता वह है जो हम बनाते हैं तथा संस्कृति वह है जो हम हैं।

भारतीय संस्कृति का प्राचीन स्वरूप:

  • भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। यह माना जाता है कि भारतीय संस्कृति यूनान, रोम, मिस्र, सुमेर और चीन की संस्कृतियों के समान ही प्राचीन है। कई भारतीय विद्वान तो भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति मानते हैं।

वसुधैव कुटुंबकम:

  • भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक व्यवस्थित रूप हमें सर्वप्रथम वैदिक युग में प्राप्त होता है। वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ माने जाते हैं। प्रारंभ से ही भारतीय संस्कृति अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी, सशक्त एवं जीवंत रही हैं, जिसमें जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिक प्रवृत्ति का अद्भुत समन्वय पाया जाता है।
  • भारतीय विचारक आदिकाल से ही संपूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में मानते रहे हैं इसका कारण उनका उदार दृष्टिकोण है।
  • हमारे विचारकों की ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में गहरी आस्था रही है। ववस्तुतः शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही संस्कृति की कसौटी है। इस कसौटी पर भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से उतरती है।
  • प्राचीन भारत में शारीरिक विकास के लिये व्यायाम, यम, नियम, प्राणायाम, आसन ब्रह्मचर्य आदि के द्वारा शरीर को पुष्ट किया जाता था । लोग दीर्घ जीवी होते थे।

आश्रम व्यवस्था:

  • आश्रम व्यवस्था का पालन करते हुए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र रहा है। 
  • प्राचीन भारत के धर्म, दर्शन, शास्त्र, विद्या, कला, साहित्य, राजनीति, समाजशास्त्र इत्यादि में भारतीय संस्कृति के सच्चे स्वरुप को देखा जा सकता है।

मानव संस्कृति:

  • यह संस्कृति ऐसे सिद्धांतों पर आश्रित है जो प्राचीन होते हुए भी नये हैं। ये सिद्धांत किसी देश या जाति के लिये नहीं अपितु समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये हैं। इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति को सच्चे अर्थ में मानव संस्कृति कहा जा सकता है।
  • यूनानी, पार्शियन, शक आदि विदेशी जातियों के हमले, मुगलों और अंग्रेजी साम्राज्यों के आघातों के बीच भी यह संस्कृति नष्ट नहीं हुई। अपितु प्राणशीलता के अपने स्वभावगत गुण के कारण और अधिक पुष्ट एवं समृद्ध हुई।

भारतीय संस्कृति का वर्तमान स्वरूप और महत्त्व:

  • भारतीय संस्कृति का नूतन आयाम ब्रिटिश साम्राज्य की नींव के साथ प्रारंभ हुआ। इस काल में सभ्यता ने संस्कृति को दबाने की चेष्टा की अतः संस्कृति का यथार्थ स्वरूप  उभर नहीं सका।
  • इस युग में सामाजिक आचार-विचार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा। संयुक्त कुटुंब प्रथा के स्थान पर परिवारों का पृथक्करण होने लगा।
  • धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत ने धर्म को पीछे धकेल दिया। विज्ञान ने ज्ञान के अपेक्षित स्वरूप की अपेक्षा कर दी भौतिकवाद उभरकर सामने आया और भारतीयों का सांस्कृतिक दृष्टिकोण अपने मूल लक्ष्य से भटक गया।
  • आधुनिकतावाद की अवधारणा का समाज में आना आसान हो गया। वैश्वीकरण और आधुनिकरण के मध्य में गहरा संबंध है। जब भारतीय संस्कृति का स्वरूप आधुनिक हो गया तब निश्चित दिशा में होने वाले परिवर्तन भी दिखाई देने लगे।
  • बुद्धिवाद, विवेकीकरण और उपयोगितावाद आदि दर्शन का उदय संस्कृति का नया स्वरूप बन गया जिसमें प्रगति की आकांक्षा, विकास की आशा और परिवर्तन के अनुरूप अपने आपको ढालने का गुण होता है।
  • आधुनिकता की जड़ें यूरोपीय पुनर्जागरण से जुड़ी हैं। यूरोपीय पुनर्जागरण में नए-नए अन्वेषण और अविष्कार हुए, धर्म और दर्शन का नया संस्करण सामने आया।
  • कला और विज्ञान के नवीन साधना का श्रीगणेश हुआ, राजनीतिक तथा समाज व्यवस्था में मौलिक क्रांति का सूत्रपात हुआ। अतः इसके परिणामस्वरूप पश्चिमी यूरोप एवं एशिया (भारत) में एक नवीन चेतना का संचार हुआ।
  • प्रौद्योगिकी विकास, विवेकीकरण एक तर्मणा आदि द्वारा सभी क्षेत्रों में बुनियादी परिवर्तन हुए जिसके परिणामस्वरूप समाज की एक विशिष्ट स्थिति को प्रदर्शित करने वाली अवधारणा बनी।
  • महिला को उचित स्थान मिला। अर्थात् बदली हुई संस्कृति में महिलाओं के प्रति सोच बदली अब उसे सशक्तिकरण की ओर ले जाने के प्रयास किये जाने लगे। कई आंदोलन व चर्चाओं का सहारा लिया गया। इस प्रकार सांस्कृतिक, मानववादी व व्यक्तिवादी स्वरूप देखने को मिला।
  • मानव के विकासशील एवं सृजनात्मक स्वभाव पर बल देते हुए धर्म एवं तर्क, विज्ञान एवं धर्म का ही नहीं, वरन एवं प्राच्य एवं पाश्चात्य विचारधाराओं के समन्वय का प्रयास किया गया।
  • संस्कृति के नए स्वरूप में गाँवों की संस्कृति को छोड़कर शहरीकरण देखा गया। इस पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। शहरीकरण से पलायन भी देखा गया। इस प्रकार लोग पुरानी संस्कृति को छोड़कर आधुनिक संस्कृति को अपनाने लगे ।

  निष्कर्ष:

अतः यह स्पष्ट रूप से उल्लेखनीय है कि भारत में कभी भी एक ही संस्कृति पूर्ण रूप से व्याप्त नहीं रही और न ही शायद किसी भी बड़े प्रदेश में कभी एक ही संस्कृति रही है। इस देश में आध्यात्मिक संस्कृति की प्रमुखता रही है। अतः संस्कृति में बदलाव निरंतर रहेगा।

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हिमालय पर निबंध | Essay on Himalaya in Hindi

प्रिय साथियो आपका स्वागत है Essay on Himalaya in Hindi में आज हम आपके साथ हिमालय पर निबंध  साझा कर रहे हैं.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 तक के बच्चों को हिमालय पर्वतराज पर निबंध  कहा जाता हैं, तो आप सरल भाषा में लिखे गये इस  हिन्दी निबंध  को परीक्षा के लिहाज से याद कर लिख सकते हैं.

हिमालय पर निबंध Essay on Himalaya in Hindi

हिमालय पर निबंध | Essay on Himalaya in Hindi

”मेरे नगपति! मेरे विशाल, साकार दिव्य गौरव विराट । पौरुष के पूँजीभूत ज्वाल, मेरी जननी के हिम किरीट । मेरे भारत के दिव्य भाल । मेरे नगपति मेरे विशाल।”

पर्वतों का सिरमौर भारत का मुकुट हिमालय की प्रशंसा रामधारी सिंह दिनकर जी ने अपने शब्दों में इस प्रकार व्यक्त की हैं. हर भारत वासी को उत्तर के विषाद विराट हिम पर्वत पर अभिमान हैं.

सदियों से हिमालय की गोदी में भारत की सभ्यताएं फली फूली हैं. हर भाषा के कलमकारों ने अपनी रचनाओं में इनको स्थान अवश्य दिया हैं.

भारत की प्राचीन सभ्यता सिन्धु घाटी सिविलाइजेशन में अहम योगदान था. भारत की जलवायु को हिमालय प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करता हैं. हिम पर्वत से निकली सैकड़ों नदियों एवं हिमालय के वन एवं वनस्पति का मुख्य योगदान हैं.

नगराज हिमालय शब्द का अर्थ समझा जाए तो यह दो शब्दों हिम और आलय से बना हैं. हिम का अर्थ बर्फ व आलय का अर्थ घर होता हैं. इस तरह बर्फ के घर को हिमालय कहा जाता हैं.

पर्वत उन्हें कहते हैं जिनका आधार विस्तृत एवं शिखर छोटे होते हैं. दुनियां के समस्त पर्वतों में आकार के लिहाज से हिमालय पर्वत श्रेणी सबसे बड़ी हैं. प्राकृतिक उपभागों के अनुसार हिमालय को चार भागों में विभक्त किया गया हैं.

भारत जम्मू कश्मीर राज्य से आरम्भ होकर अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय की सीमा 2400 किलोमीटर हैं. इसकी चौड़ाई असमान रूप से फैली हैं अपने उत्तरी छोर जम्मू कश्मीर में इसकी चौड़ाई 400 किमी तो अरुणाचल में घटकर 150 किमी हो जाती हैं.

हिमालय को देशांतर विस्तार में तीन भागों में विभक्त किया गया हैं. इसके उत्तर वाले भाग को हिमाद्री कहते हैं जिसकी उंचाई 6 हजार मीटर तक हैं.

दुनियां की सर्वोच्च चोटी माउंड एवरेस्ट इसी पर्वत श्रेणी में स्थित हैं जिसकी उंचाई 8848 हैं. हिमालय का यह भाग अधिकतर समय बर्फ से ढका रहता हैं.

हिमालय का दूसरा भाग हिमाचल के रूप में जाना जाता हैं इसकी औसत उंचाई 3700 मीटर से 4500 मीटर के मध्य हैं. तथा इसकी चौड़ाई 50 किमी तक हैं. इस श्रेणी में कश्मीर की घाटी तथा हिमालच प्रदेश की दो मुख्य घाटियाँ कागड़ा व कुल्लू स्थित हैं.

हिम पर्वत की सबसे निचली श्रेणी को शिवालिका कहा जाता हैं जिसकी ऊंचाई 1000 मीटर के आस पास व चौड़ाई 10 से 50 किमी की हैं. इस श्रेणी का निर्माण हिमालय की नदियों के साथ आई चट्टानों से हुआ हैं.

जलोढ़ मिट्टी तथा बजरी से इनका निर्माण हुआ हैं. लम्बी भूआकृति में फैली घाटियाँ इस श्रेणी की विशेषता हैं जिन्हें दून कहा जाता हैं. देहरादून तथा पाटलीदून इसके प्रमाण हैं.

हिमालय पर्वत की सीमाएं दक्षिणी पूर्वी एशिया के छः देशों को स्पर्श करती हैं जो भारत, नेपाल, भूटान, तिब्बत, पाकिस्तान व अफगानिस्तान तक फैली हैं. इस पर्वत श्रंखला में 100 से अधिक छोटे बड़े पर्वत हैं. भारत में बहने वाली सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र आदि हिमालय से निकलती हैं.

इस पर्वतमाला के 12 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में लगभग 15 हजार ग्लेशियर फैले हैं. सम्पूर्ण हिमालय का कुल क्षेत्रफल पांच लाख वर्ग किमी हैं. कहा जाता हैं प्राचीनकाल में हिमालय के स्थान पर विशाल टेथिस सागर हुआ करता था, उसी से हिमालय का निर्माण हुआ हैं.

हिमालय की अवधि सात करोड़ वर्ष मानी गई हैं. इसकी श्रंखला को चार मुख्य भागों में बांटा हैं पंजाब हिमालय, कुमायूं हिमालय, नेपाल हिमालय एवं असम हिमालय आदि. हिमालय का पश्चिम छोर पामीर के पठार से मिलता हैं.

भारत के लिए हिमालय बेहद लाभदायक हैं. भारत की सम्पूर्ण उत्तरी सीमा पर पहरेदार की भूमिका में अटल खड़ा हैं. हमारे देश को हरा भरा बनाने वाली सभी नदियों का स्रोत हिमालय ही हैं. नदियों के बहाव से बनी नदी घाटी व उपजाऊ मिट्टी कृषि के लिए बेहद उपयोगी होती हैं.

एक तरफ हिमालय एक अच्छा जल स्रोत है वही सघन वनस्पति से अच्छादित वन एवं वन्य जीव प्राकृतिक जैव विविधता के संरक्षण में विशेष उपयोगी हैं. हिमालयी वनों से इंधन, चारा, लकड़ी एवं जीवन उपयोगी औषधि के विस्तृत भंडार हैं.

हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र पर्यटन को ख़ासा आकर्षित करते हैं. इनकी मौलिक सुन्दरता देखते ही बनती हैं. हिमालय में स्थित क्षेत्रों में पैराग्लाइडिंग, हैंग ग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग एवं स्कीइंग जैसे खेल खेले जाते हैं. हिमालय की भूमि हमारी ऋषि मुनि परम्परा की तपोभूमि रही हैं.

हिन्दुओं के अधिकतर तीर्थ स्थल कैलाश मानसरोवर, बद्रीनाथ, हरिद्वार, केदारनाथ और ऋषिकेश हिमालय की गोदी में ही बसे हैं. इस तरह हमें अपने देश के गौरवमयी मुकुट हिमालय पर गर्व हैं.

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Hindi Essay on “Himalaya Bharat ka Mukut”, “हिमालय: भारत का मुकुट”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

हिमालय: भारत का मुकुट

Himalaya Bharat ka Mukut

नि:संदेह, हिमालय भारत का मुकुट है क्योंकि यह चारों ओर से भारत की रक्षा कर रहा है- चीन, भूयन,  पाकिस्तान और नेपाल आदि से। हिमालय के कारण ही कोई भी देश भारत पर सीधे आक्रमण नहीं कर सकता। इसके  अतिरिक्त हिमालय वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है। इसलिए उसकी सुंदरता भी लाजवाब है। विश्वभर से अनेक पर्वतारोही हिमालय की 8848 मीटर ऊँची एवरेस्ट चोटी पर अपना परचम लहराने आते रहते हैं। ज्ञात हो, हिमालय की चोटी विश्व में सबसे ऊँची चोटी है। इसलिए भी विश्व में हिमालय का स्थान मुकुट के सदृश सर्वोपरि है। प्राचीन काल में साधु-संन्यासी हिमालय आकर तपस्या एवं साधना किया करते थे। चूँकि यहाँ पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ होती थी। इसलिए कोई आता-जाता नहीं था और सर्वत्र अपार शांति रहती थी। इससे साधु-संन्यासियों की तपस्या में कोई विघ्न-बाधा नहीं पड़ती थी। यहाँ आकर वे ईश्वर की प्राप्ति करते थे। दूसरे शब्दों में, चूंकि हिमालय विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत है और इसी कारण कोई अन्य देश आसानी से भारत पर आक्रमण नहीं कर सकता इसलिए इसे भारत का मुकुट कहा जाता है।

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हमारी राष्ट्र भाषा: हिन्दी पर निबंध | Essay on Hindi-Our National Language in Hindi

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हमारी राष्ट्र भाषा: हिन्दी पर निबंध | Essay on Hindi-Our National Language in Hindi!

भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों को आदान-प्रदान करता है । अपनी बात को कहने के लिए और दूसरे की बात को समझने के लिए भाषा एक सशक्त साधन है ।

जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आकर होश सम्भालता है तब उसके माता-पिता उसे अपनी भाषा में बोलना सिखाते हैं । इस तरह भाषा सिखाने का यह काम लगातार चलता रहता है । प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अलग-अलग भाषाएं होती हैं । लेकिन उनका राज-कार्य जिस भाषा में होता है और जो जन सम्पर्क की भाषा होती है उसे ही राष्ट्र-भाषा का दर्जा प्राप्त होता है ।

भारत भी अनेक रज्य हैं । उन रध्यों की अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं । इस प्रकार भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है- हिन्दी । 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को यह गौरव प्राप्त हुआ । 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान बना । हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया । यह माना कि धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी और अंग्रेजी पर हिन्दी का प्रभुत्व होगा ।

आजादी के इतने वर्षो बाद भी हिन्दी को जो गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए था वह उसे नहीं मिला । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि हिन्दी को उस का यह पद कैसे दिलाया जाए ? कौन से ऐसे उपाय किए जाएं जिससे हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकें ।

ADVERTISEMENTS:

यद्यपि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है, परन्तु हमारा चिंतन आज भी विदेशी है । हम वार्तालाप करते समय अंग्रेजी का प्रयोग करने में गौरव समझते हैं, भले ही अशुद्ध अंग्रेजी हो । इनमें इस मानसिकता का परित्याग करना चाहिए और हिन्दी का प्रयोग करने में गर्व अनुभव करना चाहिए । हम सरकारी कार्यालय बैंक, अथवा जहां भी कार्य करते हैं, हमें हिन्दी में ही कार्य करना चाहिए ।

निमन्त्रण-पत्र, नामपट्‌ट हिन्दी में होने चाहिए । अदालतों का कार्य हिन्दी में होना चाहिए । बिजली, पानी, गृह कर आदि के बिल जनता को हिन्दी में दिये जाने चाहिए । इससे हिन्दी का प्रचार और प्रसार होगा । प्राथमिक स्तर से स्नातक तक हिन्दी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जानी चाहिए ।

जब विश्व के अन्य देश अपनी मातृ भाषा में पढ़कर उन्नति कर सकते हैं, तब हमें राष्ट्र भाषा अपनाने में झिझक क्यों होनी चाहिए । राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए । स्कूल के छात्रों को हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए । जब हमारे विद्यार्थी हिन्दी प्रेमी बन जायेंगे तब हिन्दी का धारावाह प्रसार होगा । हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए:

गूंज उठे भारत की धरती , हिन्दी के जय गानों से । पूजित पोषित परिवर्द्धित हो बालक वृद्ध जवानों से ।।

-जगदीश चन्द्र त्यागी ।

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भारत महिमा / जयशंकर प्रसाद

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हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष

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भारत का गौरव: हिमालय

हिमालय भारत की धरोहर है। हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम ‘बन्दरपुच्छ’ है। यह चोटी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित है। इसकी ऊँचाई 20,731 फुट है। इसे सुमेरु भी कहते हैं। हिमालय एक पूरी पर्वत शृंखला है, जो भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत को अलग करता है। यह भारतवर्ष का सबसे ऊँचा पर्वत है, जो उत्तर में देश की लगभग 2500 किलोमीटर लंबी सीमा बनाता है और देश को उत्तर एशिया से पृथक् करता है। कश्मीर से लेकर असम तक इसका विस्तार है।

हिमालय संस्कृत के ‘हिम’ तथा ‘आलय’ शब्दों से मिलकर बना है, जिसका शब्दार्थ ‘बर्फ़ का घर’ होता है। पौराणिक वर्णनों में हिमालय का उल्लेख ‘हिमवान’ नाम से मिलता है। वास्तव में वैदिक काल से ही हिमवान भारतीय संस्कृति का प्रेरणा स्रोत रहा है। ऋग्वेद में ‘हिमवान’ शब्द का बहुबचन में (हिमवन्तः) प्रयोग किया गया है, जिससे हिमालय की बृहत पर्वत श्रंखला का बोध होता है। हिमालय के मजबूत शिखर का भी ऋग्वेद में उल्लेख है।

अथर्ववेद में दो अन्य शिखरों का वर्णन है- ‘त्रिककुद’ और ‘नावप्रभ्रंशन’। वाल्मीकि रामायण में गंगा को हिमवान की बड़ी बेटी (दुहिता) कहा गया है-

‘गंगा हिमवतो ज्सेष्ठा दुहिता पुरुषर्षभ।’

‘तदा हैमवती ज्सेष्ठा सर्वलोक नमस्कृता तदा सातिमहद्रू पं कृत्वावेगं च दःसहम्।’

वाल्मीकि को हिमवान पर्वत के अंचल में निवास करने वाली विविध जातियों का भी ज्ञान था-

‘काम्बोजयवनांश्चैव शकानांपत्तनानिच, अन्वीक्ष्य वरदांश्चैव हिमवन्तं विचिन्वथ।’

महाभारत, वनपर्व में पाण्डवों की हिमालय यात्रा का बड़ा मनोरम वर्णन है। इसके कैलास, मैनाक, गंधमादन नामक शिखरों की कठोर यात्रा पाण्डवों ने की थी-

‘अवेक्षमाणः कैलासं मैनाकं चैव पर्वतम्, गंधमादनपादांश्च श्वेतं चपि शिलोच्चयम्। उपर्युपरि शैलस्य बह्वीश्च सरितः शिवाः पृष्ठं हिमवतः पुण्यं ययौ सप्तदशेऽहनि।’

‘विष्णुपुराण’ में सतलुज, चिनाव आदि नदियाँ हिमालय से निकली है ऐसा कहा गया है.

‘शतद्रूचन्द्रभागाद्या हिमवत्पादनिर्गताः।

हज़ारों वर्षों तक हिमालय ने दक्षिण एशिया के लोगों पर वैयक्तिक और गहन प्रभाव डाला है, जो उनके साहित्य, राजनीति, अर्थव्यवस्था और पौराणिक कथाओं में भी प्रतिबिंबित होता है। इसकी विस्तृत बर्फ़ीली चोटियाँ लंबे समय से प्राचीन भारत के पर्वतारोही तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती रही हैं, जिन्होंने इस विशाल पर्वत शृंखला का संस्कृत में नामकरण किया। आधुनिक काल में हिमालय विश्व भर के पर्वतारोहियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण और महानतम चुनौती है।

भारतीय उपमहाद्वीप की उत्तरी सीमा का निर्धारण करने और उत्तर की भूमि के लिए लगभग अगम्य अवरोध बनाने वाली यह पर्वतश्रेणी एक विशाल पर्वत पट्टिका का हिस्सा है जो उत्तरी अफ़्रीका से दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रशांत तट तक लगभग आधी दुनिया में फैली हुई है। हिमालय पर्वतश्रेणी लगभग 2,500 किलोमीटर तक पश्चिम से पूर्व दिशा में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के नंगा पर्वत (8,126 मीटर) से तिब्बत में नामचा बरवा (7,756 मीटर) तक निर्बाध रूप से फैली हुई है।

पूर्व और पश्चिम के इन दो सुदूर छोरों के बीच दो हिमालयी देश, नेपाल और भूटान, स्थित हैं। हिमालय के पश्चिमोत्तर में हिंदुकुश और कराकोरम पर्वतश्रेणियाँ और उत्तर में तिब्बत का पठार है। दक्षिण से उत्तर तक हिमालय की चौड़ाई 201 से 402 किलोमीटर के बीच परिवर्तित होती रहती है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 5,94,400 वर्ग किलोमीटर है।

हिमालय के अपवाह में 19 प्रमुख नदियाँ हैं। जिनमें ब्रह्मापुत्र व सिंधु सबसे बड़ी है, दोनों में से प्रत्येक का पर्वतों में 2,59,000 वर्ग किलोमीटर विस्तृत जलसंग्राहक बेसिन है। अन्य नदियों में से पाँच, झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, और सतलुज सिंधु तंत्र की नदियाँ हैं। जिनका कुल जलग्रहण क्षेत्र लगभग 1,32,090 वर्ग किलोमीटर है। नौ नदियाँ, गंगा, यमुना, रामगंगा , काली, करनाली, राप्ती, गंडक, बागमती व कोसी, गंगा तंत्र की हैं, जिनका जलग्रहण क्षेत्र 2,17,560 वर्ग किलोमीटर है और तीन, तिस्ता, रैदक व मनास, ब्रह्मपुत्र तंत्र की हैं जो 1,83,890 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती हैं।

हवा और जल संचरण की विशाल प्रणालियों को प्रभावित करने वाले विशाल जलवायवीय विभाजक के रूप में हिमालय दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप और उत्तर में मध्य एशियाई उच्चभूमि की मौसमी स्थितियों को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। अपनी स्थिति और विशाल ऊँचाई के कारण हिमालय पर्वतश्रेणी सर्दियों में उत्तर की ओर से आने वाली ठंडी यूरोपीय वायु को भारत में प्रवेश करने से रोकती है और दक्षिण-पश्चिम मॉनसूनी हवाओं को पर्वतश्रेणी को पार करके उत्तर में जाने से पहले अधिक वर्षा के लिए भी बाध्य करती है। इस प्रकार, भारतीय क्षेत्र में भारी मात्रा में वर्षा (बारिश और हिमपात) होती है, लेकिन वहीं तिब्बत में मरुस्थलीय स्थितियां हैं।

हिमालय की मिट्टी के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उत्तरमुखी ढलानों पर मिट्टी की अच्छी-ख़ासी मोटी परत है, जो कम ऊँचाइयों पर घने जंगलों तथा अधिक ऊँचाई पर घास का पोषण करती है। जंगल की मिट्टी गहरे भूरे रंग की है तथा इसकी बनावट चिकनी दोमट है। यह फलों के वृक्ष उगाने के लिए आदर्श मिट्टी है। पर्वतीय घास स्थली की मिट्टी भलीभाँति विकसित है, लेकिन इसकी मोटाई तथा रासायनिक गुण अलग-अलग हैं।

Bhaarat ka gaurav himalya

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लेखक अजीत सिंह हुए सम्मानित, ब्रांड यूएसए ने 8वंे वार्षिक इंडिया ट्रैवल मिशन का सफल आयोजन किया, जानकी देवी काॅलेज में महात्मा गांधी पर सेमिनार, हिन्दी भाषा अभियानी तरुण शर्मा सम्मानित, even more news, popular category.

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भारतीय विरासत पर निबंध

bharat ka gaurav essay in hindi

By विकास सिंह

indian heritage

विषय-सूचि

भारतीय सांस्कृतिक विरासत निबंध, essay on indian heritage in hindi (200 शब्द)

भारतीय विरासत कई शताब्दियों पहले की है। यह विशाल और जीवंत है। हमने अपनी संस्कृति और परंपरा को शुरू से ही महत्व दिया है और इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए खूबसूरती से संरक्षित किया है। हमारी सांस्कृतिक विरासत हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमने कितनी प्रगति की है और हम कितनी दूर तक पहुँचने की योजना बना रहे हैं, हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को कभी नहीं भूल सकते क्योंकि वे हम में अंतर्निहित हैं और हमारे लिए एक अविभाज्य हिस्सा हैं।

भारत विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। हमारे देश में कई जातियों, धर्मों और पंथों के लोग रहते हैं। इनमें से प्रत्येक जाति और धर्म के अपने रीति-रिवाज और परंपराएं हैं। प्रत्येक धार्मिक समूह द्वारा पालन की जाने वाली संस्कृति में गहरी अंतर्निहित जड़ें हैं और इसका अटूट विश्वास है।

प्रत्येक धर्म के त्योहारों, नृत्य रूपों, संगीत और अन्य विभिन्न कला रूपों का अपना सेट है और इनमें से प्रत्येक का अपना आकर्षण है। हमारी संस्कृति की सुंदरता यह है कि हम न केवल अपनी विरासत के प्रति सम्मान रखते हैं बल्कि अन्य धर्मों के लिए भी सम्मान दिखाते हैं। यही कारण है कि सदियों से ज्वलंत भारतीय विरासत बची हुई है।

इसके अलावा, हमारे पास एक शानदार स्मारक विरासत है। अतीत के शासकों द्वारा निर्मित अधिकांश सुंदर इमारतें अभी भी लंबी हैं और हमारे शाही अतीत को प्रदर्शित करती हैं। हमें अपनी विरासत पर गर्व है।

taj mahal

भारतीय कला विरासत पर निबंध, indian heritage essay in hindi (300 शब्द)

प्रस्तावना :.

भारत एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश है। हमारे देश में विभिन्न धर्मों, जातियों और जातीय समूहों के लोग अपनी जीवंतता और विविधता के साथ रहते हैं। हमारे देश में प्रत्येक जातीय समूह की अपनी मूल कहानी और अनूठी परंपराओं और संस्कृति का अपना समूह है।

भारतीय परंपराएँ:

भारतीय रीति-रिवाज और परंपराएँ हमें विनम्र बने रहने, दूसरों का सम्मान करने और समाज में सद्भाव से रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। हम अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं को बहुत महत्व देते हैं। ये हमारी जीवन शैली में अंतर्निहित हैं और हमारे द्वारा लिए गए कई निर्णय हमारे सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों पर आधारित हैं। इन्हें पीढ़ी से पीढ़ी तक पारित किया जाता है।

भारतीय त्योहार देश की संस्कृति और परंपरा का प्रतिबिंब हैं। एक पारंपरिक पैटर्न है जिसमें ये मनाए जाते हैं। इस पैटर्न का पालन प्राचीन काल से किया जा रहा है। ये समारोह हमारे प्रियजनों से मिलने और शुभकामनाएं देने और सकारात्मक ऊर्जा लाने का एक शानदार तरीका है। ये हमारी समृद्ध विरासत का हिस्सा हैं।

भारतीय कला रूप: इसकी विरासत का एक हिस्सा:

विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय नृत्य, संगीत और पेंटिंग जैसे विभिन्न कला रूप भी हमारी विरासत का एक हिस्सा हैं। भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी और ओडिसी कुछ प्रसिद्ध भारतीय नृत्य रूप हैं। कर्नाटक संगीत, ठुमरी, रवीन्द्र संगीत, ओडिसी और लोक संगीत संगीत के क्षेत्र में भारत का योगदान है। मधुबनी पेंटिंग, मुगल पेंटिंग, तंजौर पेंटिंग, मैसूर पेंटिंग और पहाड़ी पेंटिंग भारत में उत्पन्न चित्रों के कुछ सुंदर रूप हैं।

भारतीय स्मारक:

भारतीय स्मारक अपनी विरासत की प्रचुरता से जोड़ते हैं। हमारा प्रत्येक स्मारक अपने अद्भुत वास्तुशिल्प डिजाइन के लिए जाना जाता है। ताजमहल, कुतुब मीनार, लाल किला, अजंता और एलोरा गुफाएं, सूर्य कोणार्क मंदिर, खजुराहो समूह के स्मारक, सांची में बौद्ध स्मारक, बृहदीश्वर मंदिर, हवा महल और मैसूर पैलेस हमारे देश के कुछ विरासत स्मारक हैं।

निष्कर्ष:

हमारी संस्कृति, परंपरा, स्मारक, साहित्य और विभिन्न कलाएं हमारी विरासत का हिस्सा बनती हैं। इन्हें दुनियाभर में सराहा गया है। हमें ऐसी जीवंत संस्कृति वाले देश का हिस्सा होने पर गर्व है।

भारतीय विरासत पर निबंध, essay on indian heritage in hindi (400 शब्द)

भारतीय विरासत अपनी विशालता के लिए जानी जाती है। इसमें हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी स्मारक विरासत, हमारा साहित्य और कला के विभिन्न कार्य शामिल हैं। हमारी विरासत कई सदियों पहले की है। समय के साथ हमारे दोनों मूर्त और अमूर्त विरासत दूर होते जा रहे हैं। हमें अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित करने और इसे अपनी भावी पीढ़ियों के लिए पारित करने के लिए हमारी जिम्मेदारी के रूप में लेने की आवश्यकता है।

हमारी विरासत का संरक्षण:

भारतीय अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं को बहुत महत्व देते हैं। हमें बचपन से ही एक निश्चित तरीके से कार्य करना सिखाया जाता है और कुछ प्रथाओं में लिप्त होने से बचना चाहिए ताकि हमारी संस्कृति के प्रति सहजता बने रहें। भारतीय रीति-रिवाज और परंपराएं सुंदर हैं। वे हमें विनम्र बने रहने और दूसरों का सम्मान करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हमें उन्हें संरक्षित करना चाहिए और अपनी आने वाली पीढ़ियों में भी उतनी ही वृद्धि करनी चाहिए जितनी वे एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दें।

हमारे साहित्य का संरक्षण:

भारतीय साहित्य अपनी संस्कृति जितना समृद्ध है। हमारे पास प्राचीन काल से कई किताबें लिखी गई हैं। हमारे पास वैदिक साहित्य, महाकाव्य संस्कृत साहित्य, क्लासिक संस्कृत साहित्य और पाली साहित्य अन्य प्रकार के भारतीय साहित्य हैं। ये कुछ सबसे विद्वान पुरुषों द्वारा लिखे गए हैं जो कभी पृथ्वी पर मौजूद हैं। हमारी किताबें ज्ञान के मोती बहाती हैं और न केवल उनके समय के लिए सच थीं बल्कि आज भी सकारात्मक प्रभाव पैदा करने की शक्ति रखती हैं। इस तरह के अद्भुत और समृद्ध साहित्य को किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए।

पाठकों की अधिक संख्या तक पहुँच प्रदान करने के लिए हमारी कई पुस्तकों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक लोग उनके माध्यम से साझा किए गए ज्ञान का लाभ उठा सकें। इनमें से कई इंटरनेट पर भी अपलोड किए जा रहे हैं। यह हमारे साहित्य के संरक्षण का एक अच्छा तरीका है।

हमारी धरोहरों को संरक्षित करना:

भारत प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों तरह के विरासत स्थलों को समाहित करता है। कुछ सबसे खूबसूरत विरासत स्थल हमारे देश के हैं। उनकी खूबसूरती को दुनिया भर में सराहा गया है। हालांकि, इनमें से कई समय के साथ बिगड़ते जा रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानवीय लापरवाही इन खूबसूरत विरासत स्थलों की गिरावट में योगदान दे रही है।

इनमें से कई अपना मौका खो रहे हैं और आने वाले समय में कम हो सकते हैं यदि हम उन्हें संरक्षित करने का प्रयास नहीं करते हैं। ये हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अतीत का प्रतिबिंब हैं और हमें इन्हें नहीं खोना चाहिए। इसके अलावा, ये साइटें देश की अर्थव्यवस्था में भी योगदान देती हैं क्योंकि वे दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इन विरासत स्थलों को संरक्षित करने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे। हमें इस दिशा में जो कुछ भी कम हो सकता है, उसमें भी योगदान देना चाहिए।

हम एक सुंदर विरासत के साथ धन्य हैं। हम सभी को इसे संरक्षित करने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी ऐसा ही देखने और अनुभव करने को मिले।

भारतीय सांस्कृतिक विरासत पर निबंध indian heritage essay in hindi (500 शब्द)

भारत को एक समृद्ध प्राकृतिक विरासत के रूप में जाना जाता है। इसका कारण देश का विशाल भौगोलिक क्षेत्र है। विशाल भौगोलिक विस्तार के कारण देश के विभिन्न भागों की जलवायु परिस्थितियाँ भिन्न हैं। जबकि उत्तरी क्षेत्र बेहद ठंडी जलवायु का अनुभव करते हैं, दक्षिणी छोर पर उच्च तापमान दिखाई देता है।

जलवायु परिस्थितियों और ज़मींदारों की भारी असमानता के कारण, भारत में समृद्ध जैव विविधता है। इसमें विभिन्न प्रकार की लुभावनी भूवैज्ञानिक संरचनाओं को भी समाहित किया गया है।

वनस्पतियों और जीवों की समृद्धि:

भारत एक बड़े विविध राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। हमारे पास देश के विभिन्न भागों में समृद्ध और विविध प्रकार के पौधे हैं। हम इस तथ्य पर गर्व करते हैं कि दुनिया के दो जैव विविधता हॉटस्पॉट हमारे देश में मौजूद हैं- पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय। प्रजातियों की समृद्धि के असाधारण उच्च स्तर के कारण इन्हें ऐसा कहा गया है।

भारत में पौधों की 45,500 से अधिक प्रजातियां हैं और इनमें से कई विशेष रूप से हमारे देश में पाए जाते हैं। हमारे पास कुछ सबसे खूबसूरत फूलों के पौधे हैं जो शायद ही कहीं और पाए जाते हैं। भारतीय भी कई तरह की फसलों की खेती करते हैं और उन्हें दुनिया के बाकी हिस्सों में निर्यात करते हैं।

भारत में भी जीवों की हजारों प्रजातियां हैं जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करती हैं। बंगाल टाइगर से याक से हिमालय तक – भारत में जानवरों में जैव विविधता की समृद्धि बेजोड़ है। हमारे पास सुंदर और रंगीन पक्षियों की लगभग 1,200 प्रजातियां हैं जो हमारे देश की जैव विविधता को जोड़ती हैं। ये देखने के लिए एक खुशी है। पौधों और जानवरों की इन प्रजातियों में से कई केवल भारत में पाए जाते हैं।

सुंदर भूवैज्ञानिक संरचनाएं:

भारत देश के विभिन्न हिस्सों में पाए जाने वाले कई खूबसूरत भूवैज्ञानिक संरचनाओं का भी घर है। हमारे देश का एक हिस्सा बनाने वाली कुछ शानदार भूवैज्ञानिक संरचनाएँ हैं जिनमें लोनार क्रेटर झील, सियाचिन ग्लेशियर, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, पिलर रॉक्स, कोडाइकनाल, तमिलनाडु, बंजर द्वीप, अंडमान, चुंबकीय हिल, लेह, कॉलम बेसल्टिक लावा शामिल हैं। उडुपी कर्नाटक और टॉड रॉक, माउंट आबू, राजस्थान आदि।

ये सभी स्थल प्रकृति के सच्चे चमत्कार हैं। भगवान की इन अद्भुत कृतियों की एक झलक पाने के लिए दुनिया भर के असंख्य पर्यटक विशेष रूप से इन स्थानों पर जाते हैं।

भारत में यूनेस्को की विश्व प्राकृतिक धरोहर स्थल:

यह प्रत्येक भारतीय के लिए बहुत सम्मान की बात है कि हमारे कुछ खूबसूरत भूवैज्ञानिक स्थानों को यूनेस्को की विश्व प्राकृतिक धरोहर स्थलों में शामिल किया गया है। इन साइटों में शामिल हैं:

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान: दुर्लभ एक सींग वाले गैंडों के लिए घर, यह 1985 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान: सुंदर पक्षियों की कई प्रजातियों के लिए घर, यह 1985 में विश्व विरासत स्थल भी घोषित किया गया था। मानस वन्यजीव अभयारण्य: इस खूबसूरत वन्यजीव अभयारण्य को 1985 में विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया गया था। सुंदरबन नेशनल पार्क: इसे वर्ष 1987 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में जाना जाने लगा। नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान : यह सुंदर और शांत प्राकृतिक आसपास 2004 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। पश्चिमी घाट: हमारे देश में सबसे सुंदर स्थानों में से एक यह 2012 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क : इस खूबसूरत जगह को वर्ष 2014 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।

भारत की प्राकृतिक विरासत की भव्यता प्रत्येक भारतीय में गर्व की भावना का आह्वान करती है। भारत विविधता का देश है जो इसकी सुंदरता और समृद्धि को बढ़ाता है।

भारतीय विरासत निबंध heritage of india essay in hindi (600 शब्द)

भारतीय विरासत को दुनिया भर में सबसे अमीरों में से एक माना जाता है। हमारे पूर्वजों ने हम पर एक सुंदर सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत को जन्म दिया है। हम भी एक शानदार प्राकृतिक विरासत के लिए भाग्यशाली हैं जो समृद्ध जैव विविधता और शानदार भूवैज्ञानिक संरचनाओं को शामिल करता है।

इसके अलावा, हमारी आश्चर्यजनक स्मारक विरासत दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लोगों को आकर्षित करती है। भारतीय विरासत को सदियों से संरक्षित किया गया है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पारित किया जा रहा है। लेकिन क्या नई तकनीक से संचालित पीढ़ी भारतीय विरासत को पहले की तरह महत्व देती है? क्या यह इसे संरक्षित करने और आगे बढ़ने में सक्षम होगा या हमारी विरासत जल्द ही खत्म हो जाएगी? ये कुछ सवाल हैं जो पुरानी पीढ़ियों को परेशान करते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि हमारी विरासत बरकरार रहे।

भारतीय विरासत: पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी को उपहार:

भारतीय विरासत विशाल और विशद है। यह विशाल है क्योंकि हमारे देश में बड़ी संख्या में धार्मिक समूह रहते हैं। प्रत्येक धार्मिक समूह के अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं का एक समूह होता है, जिसे वह अपनी युवा पीढ़ी को सौंपता है। हालांकि, हमारे कुछ रीति-रिवाज और परंपराएं पूरे भारत में समान हैं।

उदाहरण के लिए, हमारी परंपरा में हमारे बुजुर्गों का सम्मान करना, जरूरतमंदों की मदद करना, सच बोलना और मेहमानों का स्वागत करना और उनका अच्छी तरह से इलाज करना शामिल है। हमारी परंपराएँ हमें अच्छी आदतें बनाना सिखाती हैं और हमें एक अच्छा इंसान बनाती हैं।

हमारी सांस्कृतिक विरासत इस प्रकार हमारी पुरानी पीढ़ी से एक अनमोल उपहार है जिससे हमें एक बेहतर इंसान बनने और एक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करने में मदद मिलेगी।

नई पीढ़ी के लिए भारतीय विरासत का मूल्य:

हमारी सांस्कृतिक विरासत सदियों से बरकरार है लेकिन मौजूदा समय में इसका आकर्षण कम होता जा रहा है। ऐसा लगता है कि नई पीढ़ी हमारी सांस्कृतिक विरासत को उतना महत्व नहीं देती।

हमारे समाज ने पिछले कुछ दशकों में जबरदस्त बदलाव देखे हैं। अंग्रेजों द्वारा हमारे देश के उपनिवेशण ने पश्चिमी संस्कृति को हमारे देश में लाया। सदियों पुरानी परंपराएं बदलने लगीं। आज, भारतीय पोशाक पश्चिमी संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित है। गुरुकुल की हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली को नए तरह के स्कूलों से बदल दिया गया था और उस युग में कई अन्य बदलाव लाए गए थे। तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा।

हमारे समाज ने कई बदलाव देखे हैं। उदाहरण के लिए, हमारी संयुक्त परिवार प्रणाली नई परमाणु परिवार प्रणाली के लिए रास्ता दे रही है। प्रौद्योगिकी में वृद्धि और इंटरनेट और स्मार्ट फोन के आगमन ने हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत से दूर कर दिया है। पश्चिमी संस्कृति देश के युवाओं को लुभाती है और उनमें से ज्यादातर हमारी संस्कृति और परंपराओं को देखते हैं।

युवा पीढ़ी अपनी दुनिया में इतनी तल्लीन है और इतनी आत्म केंद्रित हो गई है कि वह बड़ों द्वारा दिए गए सांस्कृतिक मूल्यों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती है।

भारतीय विरासत के लिए प्यार और सम्मान का आह्वान करना:

युवा पीढ़ी में भारतीय विरासत के लिए प्रेम का आह्वान करना बड़ों का कर्तव्य है। यह शुरू से ही किया जाना चाहिए तभी हम अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित कर सकते हैं।

हमारी विरासत के लिए प्यार का इजहार करने का एक तरीका है युवा पीढ़ी को हमारे गौरवशाली अतीत से परिचित कराना। इससे उनके अंदर गर्व की भावना लाने में मदद मिलेगी और वे परंपरा को जारी रखने के लिए प्रेरित होंगे और नई पीढ़ी के लिए भी इसे पारित करेंगे। इसके लिए शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों के सामूहिक प्रयास की जरूरत है।

स्कूलों को छात्रों को भारतीय विरासत के बारे में सिखाना चाहिए और यह सदियों से कैसे जीवित रहा है। उन्हें इसे संरक्षित करने के महत्व को भी साझा करना चाहिए।

युवा पीढ़ी को न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना चाहिए, बल्कि हमारे देश की स्मारक और प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में भी प्रगतिशील होना चाहिए।

इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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चंद्रयान 3 पर हिंदी निबंध और भाषण: Chandrayaan 3 Essay in Hindi for School Students

Chandrayaan-3 निबंध - essay on chandrayaan-3 in hindi: चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग होते ही भारत ने अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नई उपलब्धि हासिल की। जागरण जोश पर पढ़े चंद्रयान-3 के बारे में। यह निबंध आप अपने स्कूल, कॉलेज के किसी भी प्रोजेक्ट या असाइनमेंट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।.

Garima Jha

Chandrayaan-3 Essay, Speech in Hindi:  चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर इतिहास रचा और वैश्विक स्तर पर भारत का मान बढ़ाया। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए चंद्रयान-3 को 'वर्ल्ड स्पेस अवार्ड' से सम्मानित किया जाएगा। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष महासंघ ने इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए इसे ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया है। यह सम्मान चंद्रयान-3 को 14 अक्टूबर को इटली के मिलान में आयोजित होने वाले 75वें अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्री कांग्रेस के उद्घाटन समारोह के दौरान दिया जाएगा।

प्रज्ञान रोवर चंद्रयान लैंडर से नीचे उतरा और भारत ने चंद्रमा पर सैर की।  चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग हो गई है।  चाँद के बारे में हो रहे सभी वैज्ञानिक कार्य और भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में चंद्रयान-3 सबसे महत्वपूर्ण है। जागरण जोश के इस आर्टिकल में हमने चंद्रयान पर लगभग 200 शब्दों का एक essay अथवा speech दिया है। छात्र इस निबंध और भाषण को अपने स्कूल के होमवर्क,असाइनमेंट, क्लास एक्टिविटी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही साथ हमने और भी विस्तार में चंद्रयान-3 की जानकारी इस निबंध के बाद दी है जिसका उपयोग करके आप इसे और भी बड़ा और विस्तृत बना सकते हैं।

चंद्रयान-3 हिंदी निबंध और भाषण - Essay and Short Speech on Chandrayaan-3 in Hindi

चंद्रयान-3 भारत का महत्वाकांक्षी और सफल चंद्र मिशन है। अपने पूर्ववर्तियों, चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के नक्शेकदम पर चलते हुए चंद्रयान-3 दक्षिणी ध्रुव चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का भारत का सफल प्रयास है। चंद्रमा के इस हिस्से तक पहुंचने वाला अब तक भारत एकमात्र देश है। इस महान तकनीकी सफलता को चिह्नित करने के लिए, प्रत्येक वर्ष 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाया जाएगा।

चंद्रयान-3 के बारे में

चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2.35 बजे भारत के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। विक्रम रोवर ने 24 अगस्त, 2023 को शाम 6:30 बजे चंद्रमा पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग की। विभिन्न इन-सीटू प्रयोगों को करने के बाद, रोवर को 2 सितंबर, 2023 को निष्क्रिय कर दिया गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने विक्रम लैंडर के साथ चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग हासिल करने के लिए इस परियोजना की शुरुआत की, जिसने प्रयोग करने और मूल्यवान डेटा इकट्ठा करने के लिए प्रज्ञान रोवर को तैनात किया। मिशन चंद्रमा के भूविज्ञान, खनिज विज्ञान और बाह्यमंडल का अध्ययन करने पर केंद्रित है, जो चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में हमारी समझ में योगदान देगा।

चंद्रयान-3 के मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और नरम लैंडिंग का प्रदर्शन करना, चंद्रमा पर रोवर के घूमने का प्रदर्शन करना और इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना है। मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, लैंडर में कई उन्नत प्रौद्योगिकियाँ मौजूद हैं जैसे कि लेजर और आरएफ-आधारित अल्टीमीटर, वेलोसीमीटर, प्रोपल्शन सिस्टम, आदि। ऐसी उन्नत तकनीकों को पृथ्वी की स्थितियों में सफलतापूर्वक प्रदर्शित करने के लिए, कई लैंडर विशेष परीक्षण, जैसे इंटीग्रेटेड कोल्ड टेस्ट, इंटीग्रेटेड हॉट टेस्ट और लैंडर लेग मैकेनिज्म प्रदर्शन परीक्षण की योजना बनाई गई है और इसे सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।

चंद्रयान-3 का महत्व

चंद्रयान-3 भारत का एक महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन है। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश है। चंद्रयान-3 चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का भारत का दूसरा प्रयास था।  यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO: Indian Space Research Organisation) द्वारा 14 जुलाई, 2023 को 2.35 आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। 

चंद्रयान-3 के मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का प्रदर्शन करना, चंद्रमा पर रोवर के चलने का प्रदर्शन करना और इन-सीटू यानि चाँद की सतह पर ही वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना है। मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, लैंडर में कई उन्नत प्रौद्योगिकियाँ मौजूद हैं जैसे कि लेजर और आरएफ-आधारित अल्टीमीटर, वेलोसीमीटर, प्रोपल्शन सिस्टम, आदि। ऐसी उन्नत तकनीकों को पृथ्वी की स्थितियों में सफलतापूर्वक प्रदर्शित करने के लिए, कई लैंडर विशेष परीक्षण, जैसे इंटीग्रेटेड कोल्ड टेस्ट, इंटीग्रेटेड हॉट टेस्ट और लैंडर लेग मैकेनिज्म प्रदर्शन परीक्षण की योजना बनाई गई है और इसे सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।

चंद्रयान-3 के माध्यम से, भारत ने अपनी तकनीकी कौशल, वैज्ञानिक क्षमताओं और अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। यह मिशन युवा पीढ़ी को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा।

Chandrayaan-3 Mission: 'India🇮🇳, I reached my destination and you too!' : Chandrayaan-3 Chandrayaan-3 has successfully soft-landed on the moon 🌖!. Congratulations, India🇮🇳! #Chandrayaan_3 #Ch3 — ISRO (@isro) August 23, 2023

चंद्रयान-3 से क्या नयी जानकारी प्राप्त होगी?

  • चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुव पर पानी की बर्फ की उपस्थिति के बारे में 
  • चंद्रमा की सतह और उसके संरचना के बारे में
  • चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के बारे में 
  • चंद्रमा के वायुमंडल के बारे में 

चंद्रयान-3 पर अपडेट

22 सितंबर, 2023: विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के साथ फिर से संबंध स्थापित करने के लिए इसरो द्वारा परीक्षण जारी।

4 सितंबर, 2023: चंद्रयान-3, प्रज्ञान 3 रोवर सो रहा है (sleep mode)।

29 अगस्त, 2023: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सल्फर, एल्यूमीनियम, कैल्शियम, लोहा, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैंगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन पाए गए।

23 अगस्त, 2023 : चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग हो गई है।

23 अगस्त, 2023: चंद्रयान-3 सॉफ्ट-लैंडिंग का लाइव प्रसारण 23 अगस्त, 2023 IST 17:20 बजे शुरू होगा।

20 अगस्त, 2023: लैंडर मॉड्यूल 25 किमी x 134 किमी कक्षा में है। पावर्ड डिसेंट 23 अगस्त, 2023 को लगभग 17:45 बजे शुरू होने की उम्मीद है।

19 अगस्त, 2023: लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा के चारों ओर 113 किमी x 157 किमी की कक्षा में है। दूसरी डी-बूस्टिंग की योजना 20 अगस्त, 2023 को बनाई गई है।

17 अगस्त, 2023: लैंडर मॉड्यूल को प्रोपल्शन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग किया गया। 18 अगस्त, 2023 को डिबॉस्टिंग की योजना बनाई गई।

16 अगस्त, 2023: 16 अगस्त, 2023 को गोलीबारी के बाद अंतरिक्ष यान 153 किमी x 163 किमी की कक्षा में है।

14 अगस्त, 2023: मिशन कक्षा गोलाकार चरण में है। अंतरिक्ष यान 151 किमी x 179 किमी कक्षा में है।

09 अगस्त, 2023: 9 अगस्त, 2023 को किए गए एक युद्धाभ्यास के बाद चंद्रयान -3 की कक्षा 174 किमी x 1437 किमी तक कम हो गई है।

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Dinkar’s Hindi Diwas Poem: मातृभाषा हिन्दी को समर्पित है दिनकर की ये कविता “हिंदी का गौरव”, जरूर पढें

Dinkar's Hindi Diwas Poem: रामधारी सिंह दिनकर की "हिंदी का गौरव" कविता पढ़ें, जो हिंदी के सांस्कृतिक महत्व का जश्न मनाती है, भाषा और राष्ट्रीय गौरव के माध्यम से भारत को एकजुट करती है.

Pratishtha Pawar

Dinkar’s Hindi Diwas Poem: “हिंदी का गौरव” रामधारी सिंह दिनकर(Ramdhari Singh Dinkar) की एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें उन्होंने हिंदी भाषा की महत्ता और उसके गौरव का बखान किया है. दिल को छूं जानें वाली दिनकर जी की यह कविता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के उनके विचारों को प्रदर्शित करती है. उन्होंने हिंदी को केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर और भारत की आत्मा का प्रतीक माना. आइए उनकी इस प्रसिद्ध कविता के कुछ अंश देखें:

Ramdhari Singh Dinkar

“हिंदी का गौरव”

हिंदी हमारी मातृभाषा, 

हिंदी भारत की अभिलाषा. 

हिंदी गौरव राष्ट्र का, 

यह भाषा है हम सबका.

जिसने सबको साथ जोड़ा, 

नदियों जैसा रूप है इसका.

सब भाषाएं प्यारी हैं,

पर हिंदी सबसे न्यारी है.

नहीं किसी से द्वेष है इसका, 

नहीं किसी से नफरत.

प्यार और मेल-मिलाप सिखाए, 

दुनिया में बढ़ाए हिम्मत.

अपनी कविताओं में, दिनकर ने हिंदी का महिमामंडन किया और देश के विविध सांस्कृतिक धागों को जोड़ने की इसकी क्षमता पर जोर दिया. उन्होंने हिंदी को राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बताते हुए इसके मान्यता और विकास की वकालत करते हुए अपने विचारों को जोश के साथ व्यक्त किया. उनकी प्रसिद्ध कविता ‘हिंदी का गौरव’ इन भावनाओं को प्रतिध्वनित करती है, जिसमें उन्होंने भाषा की शक्ति और समृद्धि पर प्रकाश डाला है.

दिनकर ने अपनी इस कविता के माध्यम से हिंदी की व्यापकता और उसकी अद्वितीयता को उजागर किया. उनका मानना था कि हिंदी न केवल संवाद का साधन है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है. “हिंदी का गौरव” हिंदी की गरिमा और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक भूमिका का उत्सव है, जो हमें अपने भाषाई धरोहर पर गर्व करने की प्रेरणा देता है.

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चंद्रगुप्त मौर्य: जानिए भारत के इतिहास में इस महान सम्राट के योगदान के बारे में

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  • मार्च 4, 2024

चंद्रगुप्त मौर्य

चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत के सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है। वे मध्यकालीन भारत के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक थे। उन्होंने ही अपने गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन में महान मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी जिस वंश में आगे चलकर अशोक महान जैसे महान शासक का जन्म हुआ था। यहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक उनके जीवन के सभी महत्वपूर्ण घटनाओं और पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।  

जन्म 340 ई.पू. 
पूरा नाम चन्द्रगुप्त मौर्य 
जन्म स्थान पाटलिपुत्र मगध (वर्तनाम में पटना, बिहार)
माता का नाम नंदा 
पिता का नाम मुरा 
पत्नी का नाम दुर्धरा 
पुत्र का नाम बिंदुसार  
मृत्यु 300 ई.पू. 

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चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय , चन्द्रगुप्त मौर्य की सैन्य शक्ति , चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य , चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था , प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तक, अभिलेख / शिलालेख प्रमाण, चन्द्रगुप्त मौर्य का अखंड भारत का स्वप्न  , चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा प्राप्त की गई विजय , चन्द्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव , चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु .

चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 300 ई.पू. में हुआ था। इन्होंने महान मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त मौर्य पूरे भारत को एक करने में कामयाब रहे थे। उन्होंने भारतवर्ष पर 24 वर्ष तक शासन किया। चन्द्रगुप्त को भारत के इतिहास का एक महान सम्राट माना जाता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के गद्दी पर बैठने से पहले सिकंदर ने उत्तर पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया था। चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य (जिसे कौटिल्य और विष्णु गुप्त के नाम से भी जाना जाता है, जो चन्द्र गुप्त के प्रधानमन्त्री भी थे) के साथ, एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धान्तों को लागू किया, एक बड़ी सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा।  

सिकंदर के आक्रमण के समय लगभग समस्त उत्तर भारत पर धनानंद का शासन था। चाणक्य ने नन्दवंश को ख़त्म करने का निश्चय लिया था। अपनी योजना के तहत चंद्रगुत ने सर्वप्रथम पंजाब पर कब्ज़ा किया। उसका यवनों के विरुद्ध स्वातन्त्यय युद्ध सम्भवतः सिकंदर की मृत्यु के कुछ ही समय बाद आरम्भ हो गया था। जस्टिन के अनुसार ‘सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त भारत ने सान्द्रोकोत्तस के नेतृत्व में दासता के बन्धन को तोड़ फेंका तथा यवन राज्यपालों को मार डाला।’ चन्द्रगुप्त ने यवनों के विरुद्ध अभियान लगभग 323 ई.पू. में आरम्भ किया, किन्तु उन्हें इस अभियान में पूर्ण सफलता 317 ई.पू. या उसके बाद मिली, क्योंकि इसी वर्ष पश्चिम पंजाब के शासक क्षत्रप यूदेमस (Eudemus) ने अपनी सेनाओं सहित, भारत छोड़ा। चन्द्रगुप्त के यवनयुद्ध के बारे में विस्तारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सफलता से उन्हें पंजाब और सिन्ध के प्रान्त मिल गए।

चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था। इनसे उन्हें बिन्दुसार नाम का पुत्र प्राप्त हुआ। उनकी दूसरी पत्नी यूनान के प्रधानमंत्री की पुत्री हेलना थी। इससे उन्हें जस्टिन नाम का पुत्र मिला। 

चन्द्रगुप्त मौर्य के पास एक विशाल और शक्तिशाली सेना थी। चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना का विवरण इस प्रकार है : 

  • मेगास्थनीज वर्णन करता है की एक बार जब चंद्रगुप्त छावनी लगा कर रुका हुआ था तब वो अपने साथ 4 लाख की सेना लेकर आया हुआ था जिससे हम अनुमान लगा सकते है कि चंद्रगुप्त मौर्य के पास निश्चित रूप से विशाल सैन्यबल मौजूद था।
  • 6,00,000 पैदल सेना
  • 30,000 घुड़सवार सेना
  • 8,000 युद्ध रथ
  • 9,000 युद्ध हाथी
  • चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना के सैनिकों की कुल संख्या 6,90,000 थी। ये विशाल सेना दल उस वक्त मौजूद किसी भी राजा के तुलना में सबसे अधिक थी ।

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बहुत ही विशाल था। इसमें लगभग सम्पूर्ण उत्तरी और पूर्वी भारत के साथ साथ उत्तर में बलूचिस्तान, दक्षिण में मैसूर तथा दक्षिण-पश्चिम में सौराष्ट्र तक का विस्तृत भूप्रदेश सम्मिलित था। शासन को सुविधाजनक बनाने के लिए अलग अलग प्रांतों में बांटा गया था। प्रांतों के शासक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को रिपोर्ट करते थे। राज्यपालों की मदद के लिए मंत्रिमंडल गठित किया जाता था। केंद्रीय और प्रांतीय शासन के विभिन्न विभाग बने हुए थे।  

चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र हुआ करती थी। इसे अब पटना के नाम से जाना जाता है जो कि बिहार प्रांत की राजधानी है। इस राजधानी को सुदृढ़ सड़कों और चौड़े राजमार्गों द्वारा मौर्य साम्राज्य के अन्य राज्यों से जोड़ा गया था ताकि सम्राट को शासन करने में कोई परेशानी न हो।  

चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की शासन व्यवस्था का पता मुख्य रूप से मेगस्थनीज़ के वर्णन और कौटिल्य के अर्थशास्त्र से होता है। राजा, शासन के विभिन्न अंगों का प्रधान था। शासन के कार्यों में वह अथक रूप से व्यस्त रहता था। अर्थशास्त्र में राजा की दैनिक चर्या का आदर्श कालविभाजन दिया गया है। मेगेस्थनीज के अनुसार राजा दिन में नहीं सोता वरन्‌ दिनभर न्याय और शासन के अन्य कार्यों के लिये दरबार में ही रहता है। 

मेगेस्थनीज और कौटिल्य दोनों से ही ज्ञात होता है कि राजा के प्राणों की रक्षा के लिये समुचित व्यवस्था थी। राजा के शरीर की रक्षा अस्त्रधारी स्त्रियाँ करती थीं। मेगेस्थनीज का कथन है कि राजा को निरन्तर प्राणों का डर लगा रहता था जिससे हर रात वह अपना शयनकक्ष बदलता था। राजा केवल युद्धयात्रा, यज्ञानुष्ठान, न्याय और आखेट के लिये ही अपने प्रासाद से बाहर आते थे। शिकार के समय राजा का मार्ग रस्सियों से घिरा होता था जिनकों लाँघने पर प्राणदण्ड मिलता था।

अर्थशास्त्र में राजा की सहायता के लिये मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था थी। 

कौटिल्य के अनुसार राजा को बहुमत मानना चाहिए और आवश्यक प्रश्नों पर उपस्थित मन्त्रियों का विचार जानने का प्रयास करना चाहिए। मन्त्रिपरिषद् की मन्त्रणा को गुप्त रखते का विशेष ध्यान रखा जाता था। मेगेस्थनीज ने दो प्रकार के अधिकारियों का उल्लेख किया है – मन्त्री और सचिव। इनकी संख्या अधिक नहीं थी किन्तु ये बड़े महत्वपूर्ण थे और राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त होते थे। अर्थशास्त्र में शासन के अधिकारियों के रूप में 18 तीर्थों का उल्लेख है। शासन के विभिन्न कार्यों के लिये पृथक्‌ विभाग थे, जैसे कोष, आकर, लक्षण, लवण, सुवर्ण, कोष्ठागार, पण्य, कुप्य, आयुधागार, पौतव, मान, शुल्क, सूत्र, सीता, सुरा, सून, मुद्रा, विवीत, द्यूत, वन्धनागार, गौ, नौ, पत्तन, गणिका, सेना, संस्था, देवता आदि, जो अपने अपने अध्यक्षों के अधीन थे।

मेगस्थनीज के अनुसार राजा की सेवा में गुप्तचरों की एक बड़ी सेना होती थी। ये अन्य कर्मचारियों पर कड़ी दृष्टि रखते थे और राजा को प्रत्येक बात की सूचना देते थे। अर्थशास्त्र में भी चरों की नियुक्ति और उनके कार्यों को विशेष महत्व दिया गया है।

मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के नगरशासन का वर्णन किया है जो संभवत: किसी न किसी रूप में अन्य नगरों में भी प्रचलित रही होगी। अर्थशास्त्र में दो प्रकार की न्यायसभाओं का उल्लेख है और उनकी कार्यविधि तथा अधिकार क्षेत्र का विस्तृत विवरण है। साधारण प्रकार धर्मस्थीय को दीवानी और कण्टकशोधन को फौजदारी की अदालत कह सकते हैं। दण्डविधान कठोर था, शिल्पियों का अंगभंग करने और जानबूझकर विक्रय पर राजकर न देने पर प्राणदण्ड का विधान था। विश्वासघात और व्यभिचार के लिये अंगच्छेद का दण्ड था।

मेगस्थनीज ने राजा को भूमि का स्वामी कहा है। भूमि के स्वामी कृषक थे। राज्य की जो आय अपनी निजी भूमि से होती थी उसे सीता और शेष से प्राप्त भूमिकर का भाग कहते थे। इसके अतिरिक्त सीमाओं पर चुंगी, तटकर, विक्रयकर, तोल और माप के साधनों पर कर, द्यूतकर, वेश्याओं, उद्योगों और शिल्पों पर कर, दण्ड तथा आकर और वन से भी राज्य को आय थी।

अर्थशास्त्र का आदर्श है कि प्रजा के सुख और भलाई में ही राजा का सुख और भलाई है। अर्थशास्त्र में राजा के द्वारा अनेक प्रकार के जनहित कार्यों का निर्देश है जैसे बेकारों के लिये काम की व्यवस्था करना, विधवाओं और अनाथों के पालन का प्रबन्ध करना, मजदूरी और मूल्य पर नियन्त्रण रखना। मेगस्थनीज ऐसे अधिकारियों का उल्लेख करता है जो भूमि को नापते थे और सभी को सिंचाई के लिये नहरों के पानी का उचित भाग मिले, इसलिए नहरों और प्रणालियों का निरीक्षण करते थे। सिंचाई की व्यवस्था के लिये चन्द्रगुप्त ने विशेष प्रयत्न किया, इस बात का समर्थन रुद्रदामन्‌ के जूनागढ़ के अभिलेख से होता है। 

मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त के सैन्यसंगठन का भी विस्तार के साथ वर्णन किया है। चन्द्रगुप्त की विशाल सेना में छ: लाख से भी अधिक सैनिक थे। सेना का प्रबन्ध युद्ध परिषद् करती थी जिसमें पाँच पाँच सदस्यों की छ: समितियाँ थीं। इनमें से पाँच समितियाँ क्रमश: नौ, पदाति, अश्व, रथ और गज सेना के लिये थीं। एक समिति सेना के यातायात और आवश्यक युद्धसामग्री के विभाग का प्रबंध देखती थी। 

मौर्य शासन के स्रोत

मौर्य शासन के बारे में हमें विभिन्न स्रोतों के द्वारा पता चलता है।  ऐसे कई ग्रन्थ और स्मारक मिले हैं जिनसे चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल और उनके जीवन के बारे में हमें विभिन्न ग्रंथों और स्मारकों के द्वारा पता चलता है। इन पुस्तकों और स्मारकों के बारे में यहाँ विस्तार से बताया जा रहा है : 

  • अर्थशास्त्र , कौटिल्य
  • मुद्रा राक्षस , विशाखा दत्ता
  • इंडिका, मेगास्थेनेस
  • महाभाष्य , पतंजलि
  • मालविकाग्निमित्रम् , कालीदास
  •  हर्षचरित , बाणभट्ट
  • अशोक के अभिलेख / शिलालेख
  • खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख

चन्द्रगुप्त का साम्राज्य अत्यन्त विस्तृत था। इसमें लगभग सम्पूर्ण उत्तरी और पूर्वी भारत के साथ साथ उत्तर में बलूचिस्तान, दक्षिण में मैसूर तथा दक्षिण-पश्चिम में सौराष्ट्र तक का विस्तृत भूप्रदेश सम्मिलित था। इनका साम्राज्य विस्तार उत्तर में हिन्द्कुश तक दक्षिण में कर्नाटक तक पूर्व में बंगाल तथा पश्चिम में सौराष्ट्र तक था। साम्राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी सम्राट स्वयं था। शासन की सुविधा की दृष्टि से सम्पूर्ण साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों में विभाजित कर दिया गया था। प्रान्तों के शासक सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे। राज्यपालों की सहायता के लिये एक मन्त्रिपरिषद् हुआ करती थी। केन्द्रीय तथा प्रान्तीय शासन के विभिन्न विभाग थे और सबके सब एक अध्यक्ष के निरीक्षण में कार्य करते थे। साम्राज्य के दूरस्थ प्रदेश सड़कों एवं राजमार्गों द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) चन्द्रगुप्त की राजधानी थी जिसके विषय में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ ने विस्तृत विवरण किया है। नगर के प्रशासनिक वृत्तान्तों से हमें उस युग के सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को समझने में अच्छी सहायता मिलती है। मौर्य शासन प्रबन्ध की प्रशंसा आधुनिक राजनीतिज्ञों ने भी की है जिसका आधार ‘कौटिलीय अर्थशास्त्र’ एवं उसमें स्थापित की गई राज्य विषयक मान्यताएँ हैं। चन्द्रगुप्त के समय में शासनव्यवस्था के सूत्र अत्यन्त सुदृढ़ थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अलेक्सेंडर को चाणक्य नीति के अनुसार चलकर ही हराया था। इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य एक ताकतवर शासक के रूप में सामने आ गए थे, उन्होंने इसके बाद अपने सबसे बड़े दुश्मन नंदा पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उन्होंने हिमालय के राजा पर्वत्का के साथ मिल कर धना नंदा पर आक्रमण किया। 321 BC में कुसुमपुर में ये लड़ाई हुई जो कई दिनों तक चली अंत में चन्द्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुई और उत्तर का ये सबसे मजबूत मौर्या साम्राज्य बन गया। इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तर से दक्षिण की ओर अपना रुख किया और बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक राज्य फ़ैलाने में लगे रहे। विन्ध्य को डेक्कन से जोड़ने का सपना चन्द्रगुप्त मौर्य ने सच कर दिखाया, दक्षिण का अधिकतर भाग मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत आ गया था।

305 BCE में चन्द्रगुप्त मौर्य ने पूर्वी पर्शिया में अपना साम्राज्य फैलाना चाहा, उस समय वहां सेलयूचुस निकेटर का राज्य था, जो seleucid एम्पायर का संसथापक था व अलेक्सेंडर का जनरल भी रह चूका था। पूर्वी पर्शिया का बहुत सा भाग चन्द्रगुप्त मौर्य जीत चुके थे, वे शांति से इस युद्ध का अंत करना चाहते थे, अंत में उन्होंने वहां के राजा से समझौता कर लिया और चन्द्रगुप्त मौर्य के हाथों में सारा साम्राज्य आ गया, इसी के साथ निकेटर ने अपनी बेटी की शादी भी चन्द्रगुप्त मौर्य से कर दी। इसके बदले उसे 500 हाथियों की विशाल सेना भी मिली, जिसे वे आगे अपने युद्ध में उपयोग करते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने चारों तरफ मौर्य साम्राज्य खड़ा कर दिया था, बस कलिंगा (अब उड़ीसा) और तमिल इस सामराज्य का हिस्सा नहीं था। इन हिस्सों को बाद में उनके पोते अशोका ने अपने साम्राज्य में जोड़ दिया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य का झुकाव जैन धर्म की तरफ तब हुआ जब वे लगभग 50 साल से अधिक उम्र के हो चुके थे। उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा प्राप्त की और व जैन धर्म के नियमों का कड़े रूप से पालन करने लगे।  वे जैन धर्म के मूल सिद्धांतों जैसे सत्य अहिंसा और वृत्त एवं सदाचार आदि का कड़ाई से पालन करने लगे थे।  

चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 340 ई.पू. में हुई थी। कहा जाता है कि उन्होंने संथरा नियम का पालन करते हुए खुद अपने प्राण त्याग दिए थे। संथरा एक प्रकार का जैन धर्म का वृत होता है जिसमें व्यक्त तब तक कुछ खाया पिया नहीं जाता जब तक वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाता। कुछ इतिहाकारों के मुताबिक चन्द्रगुप्त मौर्य ने संथरा वृत का पालन करते हुए कर्णाटक में अपने प्राण त्याग दिए थे।  

चन्द्र गुप्त मौर्य नंदवंशी राजा महापद्मानन्द की दूसरी पत्नी मुरा के पुत्र थे।

चन्द्र गुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा थी, जबकि दूसरी पत्नी देवी हेलना थी।  

चन्द्रगुप्त के काल में आने वाला प्रसिद्द विदेशी यात्री मेगस्थनीज़ था।  

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में जानने को मिल गया होगा। इतिहास से जुड़े इसी प्रकार के अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। अंशुल को कंटेंट राइटिंग और अनुवाद के क्षेत्र में 7 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए ट्रांसलेशन ऑफिसर के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने Testbook और Edubridge जैसे एजुकेशनल संस्थानों के लिए फ्रीलांसर के तौर पर कंटेंट राइटिंग और अनुवाद कार्य भी किया है। उन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा से हिंदी में एमए और केंद्रीय हिंदी संस्थान, नई दिल्ली से ट्रांसलेशन स्टडीज़ में पीजी डिप्लोमा किया है। Leverage Edu में काम करते हुए अंशुल ने UPSC और NEET जैसे एग्जाम अपडेट्स पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न कोर्सेज से सम्बंधित ब्लॉग्स भी लिखे हैं।

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  • News18 हिंदी
  • Last Updated : May 5, 2023, 14:30 IST
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गुलशन सिंह,  बक्सर.  भारतीय रेलवे की शाखा इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन लिमिटेड पहली बार “देखो अपना देश” कार्यक्रम के तहत भारत गौरव ट्रेन की शुरुआत करने जा रही है. भारत गौरव ट्रेन योजना के तहत भारतीय रेलवे रेल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यात्रियों को लगभग 33 फीसदी रियायती दर पर टिकट उपलब्ध करा रहा है. 20 मई से शुरू होने जा रहा है ‘भारत देखो यात्रा’ आईआरसीटीसी पटना के अधिकारी अरविंद कुमार ने बताया कि यह पर्यटक ट्रेन 20 मई को कोलकाता से खुलेगी, जोकि पूर्व मध्य रेलवे के किऊल, बरौनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर जंक्शन, पटलिपुत्रा, आरा, बक्सर और पंडित दीनदायल उपाध्याय स्टेशन पर तीर्थ यात्रियों के लिए रुकेगी. तीर्थ स्थलों में उज्जैन (श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग), विश्वामित्री (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी), द्वारका (श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं श्री द्वारिकाधीश मंदिर), सोमनाथ (श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग), शिर्डी (साई बाबा दर्शन) एवं नासिक (श्री केश्वर ज्योतिर्लिंग एवं शनि शिंगनापुर मंदिर) का दर्शन कराते हुए फिर 31 मई को वापस लौटेगी. यह पूरी यात्रा 11 रात और 12 दिनों की होगी.

तीन श्रेणी में तीर्थ यात्रियों को मिलेगी सुविधाएं आईआरसीटीसी पटना के अधिकारी अरविंद कुमार ने बताया कि भारतीय रेल द्वारा संचालित, भारत गौरव ट्रेन में पहली बार तीन श्रेणी रखी गयी है. जिसमें स्लीपर क्लास से यात्रा करने के लिए इसका शुल्क 20,060 प्रति व्यक्ति होगी. वहीं स्टैंडर्ड क्लास में थर्ड एसी क्लास से यात्रा होगी. इसका शुल्क 31,800 रुपए प्रति व्यक्ति है. इसके अलावा कम्फर्ट श्रेणी में 2 सेकंड एसी क्लास से यात्रा होगी. इसका शुल्क 41,600 रुपए प्रति व्यक्ति रखी गई है.

तीर्थ यात्रियों की हर सुविधा का रखा जाएगा ख्याल आईआरसीटीसी पटना के अधिकारी अरविंद कुमार ने बताया कि यात्रा के दौरान भारत गौरव ट्रेन में यात्रियों को श्रेणी के हिसाब से कई सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी. जिसमें वातानुकूलित और गैर वातानुकूलित होटल में रात्रि विश्राम, सुबह, दोपहर एवं रात में शाकाहारी भोजन, सुबह शाम चाय और नाश्ता, घूमने के लिए श्रेणी के हिसाब से वातानुकूलित और गैर-वातानुकूलित बस की व्यवस्था रहेगी. साथ ही कोच में सुरक्षा गार्ड, सफाईकर्मी और टूर एस्कॉर्ट उपलब्ध रहेंगे. वेबसाइट पर जाकर कर सकते हैं ऑनलाइन बुकिंग बक्सर में यात्रियों की सहायता के लिए आईआरसीटीसी के अधिकारी राकेश कुमार के मोबाइल नंबर 95348-71396 पर संपर्क किया जा सकता है. इच्छुक पर्यटक यात्रा सम्बन्धी विस्तृत जानकारी एवं बुकिंग के लिए आईआरसीटीसी, बिस्कोमान टावर (चौथा तल्ला ), पश्चिमी गांधी मैदान, पटना-1 या दूरभाष संख्या 9771440056, 8595937727, 8595937711 से प्राप्त कर सकते हैं.

इसके अलावा आईआरसीटीसी के वेबसाइट www.irctctourism.com पर जाकर बुकिंग कर सकते हैं या आईआरसीटीसी के अधिकृत एजेंट से भी बुकिंग करा सकते हैं.

Tags: Bihar News , Buxar news , Indian Railways

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भारत का राष्ट्रगान (जन गण मन)

राष्ट्रगान - National Anthem of India in Hindi

भारत का राष्ट्रीय गान

भारत का राष्ट्रगान भारतीयों द्वारा कुछ खास अवसरों पर गाया जाता है। इसकी शुरुआत “जन-गण-मन” से होती है और अन्त जय-हे, जय-हे, जय-हे जय जय जय जय-हे पर। इसे अत्यधिक संस्कृत भाषा बंगाली में लिखा गया था। वास्तविक राष्ट्रगान रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था जिसे बाद में आबिद अली ने हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया था। अली द्वारा वास्तविक राष्ट्रगान से हिन्दी संस्करण में किया गया रुपांतरण थोड़ा अलग था।

राष्ट्रगान का पूरा संस्करण गाने में 52 सेकेंण्ड का समय लगता है जबकि छोटे संस्करण के लिये (पहली और अंतिम पंक्ति) के लिये 20 सेकेंड। नेहरु जी के विशेष अनुरोध पर इसे ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर अंग्रेजी संगीतकार हर्बट मुरिल्ल द्वारा भी गाया गया। टैगोर के द्वारा दुबारा इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। टैगोर ने बांग्लादेश का राष्ट्रगान (अमार सोनार बांगला) भी लिखा है।

भारत के राष्ट्रगान का इतिहास

असल में राष्ट्रगान (जन-गन-मन) को रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा पहले बंगाली में लिखा गया था, लेकिन इसका हिन्दी संस्करण संविधान सभा द्वारा 24 जनवरी 1950 को स्वीकार किया गया। 1911 में टैगोर ने राष्ट्रगान के गीत और संगीत को रचा था और इसको पहली बार कलकत्ता में 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मीटिंग में गाया गया था।

राष्ट्रगान का संपूर्ण संस्करण बंगाली से अंग्रेजी में अनुवादित किया गया और इसका संगीत मदनापल्लै में सजाया गया जो कि आंध्रप्रदेश के चित्तुर जिले में है।

भारत के राष्ट्रगान का गीत

राष्ट्रगान का मूलग्रंथ बंगाली में है जो कि एक अत्यधिक संस्कृत से पूर्ण भाषा है (जिसे साधु भाषा भी कहा जाता है)। इसे पूरी तरह से संज्ञा का इस्तेमाल कर लिखा गया है जो क्रिया की तरह भी कार्य करता है। सभी के द्वारा इसका अनुवादित संस्करण आसानी से समझा जा सकता है जबकि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसके उच्चारण में फर्क दिखाई पड़ता है। राष्ट्रगान के शब्द और संगीत को लयबद्ध किया है स्वर्गीय कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर ने। इसके पूरे संस्करण को गाने में 52 सेकेंण्ड का समय लगता है साथ ही इसमें 5 दोहा है।

भारत के राष्ट्रगान का संपूर्ण संस्करण

“जन गण मन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंगा बिंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंगा तब शुभ नामें जागे तब शुभ आशीष माँगे, गाहे तब जयगाथा। जन गण मनअधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे जय हे जय हे जय जय जय जय हे…..”

भारत के राष्ट्रगान का लघु संस्करण

भारत के राष्ट्रगान के लघु संस्करण में केवल पहली और अंतिम पंक्ति आती है जिसे पूरा करने में लगभग 20 सेकेंड का समय लगता है। ये कई सारे राष्ट्रीय अवसरों पर गाया जाता है।

“जन-गन-मन-अधिनायक जय हे भारत-भाग्य-विधाता जय हे जय हे जय हे, जय जय जय, जय हे…..”

भारत के राष्ट्रगान जन गण मन का अर्थ

राष्ट्रगान का मौलिक संस्करण अंग्रेजी भाषा से अनुवादित किया था और 1950 में इसमें कुछ संशोधन किया गया था। सिन्ध की जगह सिन्धु किया गया क्योंकि देश के बँटवारे के बाद सिन्ध पाकिस्तान का हिस्सा हो चुका था। राष्ट्रगान का अंग्रेजी अर्थ इस प्रकार है:- “सभी लोगों के मस्तिष्क के शासक, कला तुम हो, भारत की किस्मत बनाने वाले। तुम्हारा नाम पंजाब, सिन्ध, गुजरात और मराठों के दिलों के साथ ही बंगाल, ओड़िसा, और द्रविड़ों को भी उत्तेजित करता है, इसकी गूँज विन्ध्य और हिमालय के पहाड़ों में सुनाई देती है, गंगा और जमुना के संगीत में मिलती है और भारतीय समुद्र की लहरों द्वारा गुणगान किया जाता है। वो तुम्हारे आर्शीवाद के लिये प्रार्थना करते है और तुम्हारी प्रशंसा के गीत गाते है। तुम्हारे हाथों में ही सभी लोगों की सुरक्षा का इंतजार है, तुम भारत की किस्मत को बनाने वाले। जय हो जय हो जय हो तुम्हारी।”

राष्ट्रगान का आचार संहिता क्या है ?

नियमों और नियंत्रणों के समुच्चय को आचार संहिता कहते है जिसे राष्ट्रगान को गाते समय ध्यान में रखना चाहिये। इसके संबंध में भारतीय सरकार द्वारा समय-समय पर निर्देश जारी किया जाता है। राष्ट्रगान को पूरा करने का समय 52 सेकेंड है। कुछ नियम और विनियमन राष्ट्रगान को सम्मान और प्रतिष्ठा देने के लिये बनाया गया है। भारत की सरकार ने एक कानून(धारा 71, राष्ट्रीय सम्मान को ठेस पहुँचने से रोकने के लिये) लागू किया है जिसके तहत, जो कोई भी राष्ट्रगान का अपमान करेगा तो उसे जुर्माने के साथ अवश्य सजा मिलेगी(सजा तीन साल तक हो सकती है)। नीचे कुछ नियमन दिये गये है जो राष्ट्रगान को गाते समय अवश्य ध्यान में रखना चाहिये।

  • इसे किसी भी उत्सव और औपचारिक राज्य के कार्यक्रम में गाया जा सकता है जब राष्ट्रपति, राज्यपाल, और उपराज्यपाल के समक्ष (सरकार और आमजन द्वारा आयोजित) परेड, राष्ट्रीय सलामी आदि संपन्न हो चुका हो।
  • ये राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन के उपरान्त या पहले और राज्यपाल और उपराज्यपाल के आगमन पर गाया जा सकता है। जब नेवी में रंगों को फैलाया जाता हो और रेजीमेंट के रंगों की प्रस्तुति हो।
  • जब किसी खास अवसर पर कोई खास निर्देश भारतीय सरकार द्वारा दिया गया हो। आमतौर पर ये प्रधानमंत्री के लिये नहीं गाया जाता जबकि कई बार ऐसा हो भी सकता है।
  • जब ये किसी बैण्ड द्वारा गाया जाता है, राष्ट्रगान को ड्रम के द्वारा आगे रखना चाहिये या ड्रम के द्वारा 7 की धीमी गति से राष्ट्रीय सलामी संपन्न होने के बाद इसे गाया जाता है। पहला ड्रम धीमी गति से शुरु होना चाहिये और फिर इसके संभव उँचाई तक पहुँचने के बाद अपने सामान्य आवाज में जाना चाहिये।
  • किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में झंडारोहण के बाद।
  • स्कूलों में सुबह के समय दिन की शुरुआत से पहले।
  • राष्ट्रगान के दौरान सभी लोगों को इसके सम्मान में खड़े हो जाना चाहिये।

1975 में सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को रोक दिया गया?

1975 से पहले, फिल्म के बाद राष्ट्रगान को गाने की परंपरा थी। लेकिन वहाँ पर लोगों द्वारा इसको उचित सम्मान न देने पर इस पर रोक लगा दी गयी। कुछ वर्षों बाद, फिल्मों के प्रदर्शन से पहले केरल के सरकारी सिनेमाघरों में फिर से राष्ट्रगान को बढ़ावा दिया गया।

जब 2016 में सिनेमाघरों में फिर से अनिवार्य किया गया राष्ट्रगान

वर्ष 2016 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैलसा सुनाते हुए, देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान जन-गण-मन को बजाना फिर से अनिवार्य कर दिया था। सर्वोच्च न्यायलय ने यह फैसला श्याम नरायण चौकसी के द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया था। इस आदेश में सर्वोच्च न्यायलय ने यह आदेश भी दिया था कि राष्ट्रगान बजते समय परदे पर राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ अनिवार्य रुप से दिखाया जाना चाहिए और इसके साथ ही राष्ट्रगान के समय हॉल में मौजूद सभी लोगों को खड़ा होना होगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 51(ए) का हवाला देते हुए कहा था कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान में बताए गये आदर्शों का सम्मान करे। हालांकि 30 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान को लेकर अपने पिछले में काफी अहम संशोधन किया। जिसमें कहा गया कि देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नही है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि राष्ट्रगान के अनिवार्यता के कारण लोगों से कई जगह पर भेदभाव की घटनाएं सामने आने लगी। कई बार तो सिनेमाघरों में विकलांग तथा बुजर्ग लोगों के ना खड़े हो पाने पर सिनेमाघरों में उनसे भी मारपीट तथा दुर्व्यवहार किया गया।

इन हिंसात्मक तथा उग्र घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि वह तय करे कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य किया जाये या नही, जिसके लिए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय से छह महीने का समय मांगा था। लेकिन तय अवधि में केंद्र सरकार से कोई फैसला ना मिलने पर वर्ष 2017 में अपने फैसले को पलट दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि लोग सिनेमाघरों में मनोरंजन के लिए जाते है और राष्ट्रगान ना गाने या फिर राष्ट्रगान के समय खड़े ना होने पर यह नही कहा जा सकता है कि कोई व्यक्ति राष्ट्रभक्त नही है और मात्र इसके चलते किसी के देशभक्ति पर सवाल नही उठाया जा सकता है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान गाने और बजाये जाने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। जिसके पश्चात से अब यह सिनेमाघर संचालकों द्वारा तय किया जायेगा कि वह फिल्म के प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान बजाना चाहते हैं या नही और इसके साथ ही जनता के लिए भी इस दौरान खड़े होकर राष्ट्रगान गाने की कोई बाध्यता नही होगी।

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