मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi

मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi

इस लेख में आप मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi पढ़ेंगे। इसमें हमने बचपन की घटनाएँ, मेरा बचपन, बचपन की शरारत, मेरे बचपन का दोस्त, और अन्य जानकारी बताया है।

Table of Content

हम सभी बचपन में चाहते है कि हम जल्दी से बड़े हो जाएँ परन्तु जैसे ही हम बड़े हो जाते है तो उम्मीद करते हैं कि काश! हमारा बचपन दोबारा हमें मिल सके जो सम्भव नही होता। असल में देखा जाये तो बचपन का जो समय होता है, वो बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है।

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मेरे बचपन की घटनाएँ Childhood Events

बचपन में कई ऐसी घटनाएँ घटित होती है। जिसके कारण हमारे माता-पिता हमारे बचपन को याद रखते है जैसे बचपन में धीरे-धीरे चलना, गिरना और फिर से उठकर दौड़ लगाना आदि। बचपन के समय में पिताजी के कंधे पर बैठकर मेला देखने का जो मजा आता है, वह अब नहीं आता है। 

बचपन में पिता द्वारा डांटने पर मां के आंचल में जाकर छुपना, मां की लोरियां सुनकर नींद का आना, बड़ा ही आनंदायक समय था। परन्तु अब इस भागम-भाग जिंदगी में वह सुकून भरी नींद नसीब नहीं होती है। बचपन के वो सुनहरे दिन जब हम खेलते रहते थे तो पता ही नहीं चलता कब दिन होता और कब रात हो जाती थी।

मेरा बचपन My Childhood

उन कहानियों को सुनकर मैं उन कहानियों में ऐसे खो जाता था जैसे उन कहानियों का राजा मै ही हूँ। अक्सर मैं अपने पिताजी के साथ खेत में भी जाया करता था जहां पर पिताजी मुझे फसलों के बारे में और वहां पर रहने वाले पशु-पक्षियों के बारे में बताते थे। 

मेरा बचपन गांव में ही व्यतीत हुआ। इस कारण मुझे अपना बचपन और याद आता है। बचपन में सुबह-सुबह उठकर दोस्तों के साथ खेत की तरफ जाना ट्यूबवैल के नीचे नहाना और हँसते दौड़ते घर वापिस आना, कुछ इस तरह हमारे दिन की शुरूआत होती थी। 

खेलने के साथ साथ मुझे ज्ञानवर्धक पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ने का बड़ा ही शौक था जब भी मुझे समय मिलता मैं उनको पढने बैठ जाया करता था, क्योंकि मेरे दादा जी को भी बहुत शौक था किताबे पढने का। जिस कारण हमारे घर में नयी नयी किताबें आया करती थीं। 

इस कारण मैं बचपन में जितना चंचल था उतना ही पढ़ाई में होशियार भी था इस बजह से हमारे विद्यालय में , मैं हर बार अव्वल नंबरों से पास होता था।

अक्सर हम सभी बच्चे मिलकर पूरे विद्यालय में शोर मचाया करते थे साथ ही कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन-छुपाई और तेज दौड़ आदि में भाग भी लिया करते थे। 

बारिश के मौसम में बारिश में नहाना, इक्कठे हुए पानी में छप-छप करना, साइकिल चलाने की कोशिश करना और बार बार गिरना और फिर भी साइकिल चलाना बड़ा ही मज़ा आता था यह सब करने में। 

हमारे गांव में जब सावन के महीने में हर घर में पेड़ों पर झूले डाल दिए जाते है हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ था जिस पर मेरे पिताजी हमारे झूलने के लिए झूला डालते थे। झूला-झूलना मुझे और मेरी छोटी बहन हम दोनों को बहुत पसंद था। जिस कारण हम दोनों में बहुत नोक-झोंक भी होती थी लेकिन माँ आकर सब कुछ ठीक कर देती थीं।

बचपन की शरारत Childhood Pranks

बचपन में हम भैंस के ऊपर बैठकर खेत में जाते, तो कभी बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते, तो कभी छोटे कुत्तों की पूंछ खिंचा करते, तो कभी गाय के बछड़ों को खोल देते जिसके कारण बछड़े गाय का दूध पी जाते थे। 

हम दोपहर तक खूब खेल खेलते थे, इससे हमारे कपड़े मिट्टी के भर जाते थे और हम इतने गंदे हो जाते थे कि हमारी शक्ल पहचान में नहीं आती थी, मैंने और मेरे दोस्तों ने अपने बचपन में बहुत मस्ती किये है।

मेरे बचपन का दोस्त My Childhood Friend

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जो खून का रिश्ता न होने के बावजूद अन्य रिश्तों जैसा भरोसेमंद होता है। यदि कोई सच्चे दोस्त को पा लेता है, तो वह बड़ा ही भाग्यशाली व्यक्ति होता है। 

हम दोनों ने आपस में खूब मस्ती की साथ साथ स्कूल में पढने जाते, साथ साथ एक ही ब्रेंच पर बैठते, एक ही टिफिन में खाना खाते, और साथ ही पढ़ते थे। बचपन में, मैं और मेरे दोस्त गर्मियों की छुट्टियों में बागों में आम तोड़ने चले जाते थे क्योंकि हमें आम बहुत पसंद थे, जिस कारण हम अपने आप को रोक नहीं पाते थे। 

हम भी वहां पर खेलते रहते थे अक्सर हमें बुजुर्गों से शिक्षाप्रद कहानियां सुनने को भी मिलती थी। कक्षा में हम दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। हम दोनों के पिता जी आपस में दोस्त थे, जिस कारण पिता जी का आना जाना लगा रहता था। 

इसके साथ ही हम दोनों ने नेशनल लेवल की प्रतियोगिता में भाग लिया और उसमे सफल भी रहे। यह सब मेरे उस दोस्त के कारण है, जो मुझे लगातार प्रोत्साहित करता रहता है। इस कारण आज भी हमारी दोस्ती कायम है। 

उस समय मेरा दोस्त हॉस्पिटल में लगातार मेरे साथ रहा और मेरी परवाह की। भगवान ऐसा दोस्त सभी को दे, मैं ईश्वर से उसकी और हमारी दोस्ती की लंबी उम्र की कामना करता हूँ।   

निष्कर्ष Conclusion

मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय रहा है। जिसमें न कोई भय न कोई फिक्र थी। हम तनाव मुक्त थे और खुश रहते थे । यह समय किसी के भी जीवन का सबसे मज़ेदार और यादगार समय होता है। काश! मैं एक बार फिर से बच्चा बन सकता और अपना बचपन दोबारा जी सकता। आशा

करते हैं आपको यह मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi अच्छा लगा होगा जिसमें मैंने अपने बचपन की कहानी को लघु रूप में आपको बताया।

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मेरे बचपन की यादों पर निबंध – 10 lines (Childhood Memories Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों में

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Childhood Memories Essay in Hindi –  यादें सबसे महत्वपूर्ण चीज़ों में से एक हैं जिन्हें हम जीवन भर संजोकर रख सकते हैं। वे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं क्योंकि हमारा सारा ज्ञान और पिछले अनुभव वहीं संग्रहीत होते हैं। यादें अच्छी और बुरी दोनों हो सकती हैं. या तो बहुत पहले की या हाल के अतीत की यादें हैं। Childhood Memories Essay हमारे कठिन समय में, हम अपनी यादों को याद करके कुछ ताज़गी पा सकते हैं। इन यादों की मदद से हम अपना जीवन सुचारु रूप से चला सकते हैं। यादें हमारी कई तरह से मदद करती हैं। हम पिछली गलतियों से खुद को सुधार सकते हैं। बचपन की यादें हम सभी के लिए अनमोल होती हैं। वे बुढ़ापे में भी हमें मुस्कुराते हैं। 

बचपन की यादें निबंध 10 पंक्तियाँ (Childhood Memories Essay 10 Lines in Hindi)

  • 1) बचपन हमारे जीवन का सबसे छोटा समय है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भी है।
  • 2) हम सभी के पास बचपन की बहुत सारी अच्छी यादें होती हैं।
  • 3) बचपन की यादें हमें उन सभी गलतियों को ठीक करने में मदद करती हैं जो हमने अतीत में की हैं।
  • 4) बचपन हमारे जीवन का सबसे मासूम हिस्सा है।
  • 5) जीवन के सभी पड़ावों में से सबसे खूबसूरत पड़ाव बचपन है।
  • 6) वे हमें हमारी गलतियों से सीखते हैं और बेहतर बनने में मदद करते हैं।
  • 7) बचपन की यादें हमारे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • 8) हमारे बचपन की यादों से हमारा व्यक्तित्व और स्वभाव बहुत प्रभावित होता है।
  • 9) जिन लोगों के पास अपने बचपन की अच्छी यादें होती हैं वे खुश रहते हैं।
  • 10) बचपन के वो दिन कभी वापस नहीं आएंगे, लेकिन हम उन्हें याद कर सकते हैं

मेरे बचपन की यादों पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay on My Childhood Memories in Hindi)

बचपन की यादें हमेशा हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती हैं क्योंकि उनमें छिपी मासूमियत होती है। जब लोग इन यादों के बारे में सोचते हैं और चर्चा करते हैं तो उन्हें ख़ुशी होती है।

मेरी बचपन की सबसे मजबूत यादों में से एक है अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ पार्क में खेलना। हम वहां घंटों दौड़ते, झूलों और स्लाइडों पर खेलते हुए बिताते थे। जब हम हँसते और एक-दूसरे का पीछा करते तो सूरज हम पर गिरता और हमारी हँसी अब भी मेरे दिमाग में गूँजती। हम टैग और लुका-छिपी के खेल भी खेलते थे और हमेशा मजा करते थे। मुझे याद है कि मैं उन पलों में बिना किसी चिंता के कितना लापरवाह और खुश महसूस करता था। मेरे सबसे अच्छे दोस्त के साथ पार्क में खेलने की ये यादें शुद्ध आनंद और मासूमियत की भावनाओं को वापस लाती हैं, और मैं इन्हें हमेशा अपने बचपन की सबसे प्यारी यादों में से कुछ के रूप में संजोकर रखूंगा।

मेरे बचपन की यादों पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay on My Childhood Memories in Hindi)

याददाश्त हमारे जीवन का एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब मैं अपने बचपन पर नजर डालता हूं तो मुझे कई कहानियां याद आती हैं। कुछ मुझे खुश करते हैं, और अन्य मुझे सीखने और बढ़ने में मदद करते हैं।

मेरे दादा-दादी के यहाँ ग्रीष्म ऋतु

मेरी बचपन की सबसे प्यारी यादों में से एक है ग्रामीण इलाके में अपने दादा-दादी के घर पर गर्मियाँ बिताना। घर के चारों ओर हरे-भरे खेत और ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे, और मुझे अपने चचेरे भाइयों के साथ खेतों और जंगलों में रोमांच पर जाना बहुत पसंद था। हम छुपन-छुपाई खेलने, किले बनाने और रात में जुगनुओं को पकड़ने में घंटों बिताते थे।

मेरे दादाजी हमेशा आसपास रहते थे, बगीचे की देखभाल करते थे या किसी नए प्रोजेक्ट पर काम करते थे। उन्होंने मुझे सिखाया कि पास की जलधारा में मछली कैसे पकड़नी है, और हम घंटों एक साथ किनारे पर बिताते, बातें करते और शांतिपूर्ण वातावरण का आनंद लेते।

मेरे दादा-दादी के घर में हंसी और खुशी से भरे दिन हमेशा के लिए लंबे हो गए। घर हमेशा ताज़ी पके हुए माल की खुशबू से भरा रहता था, और मेरी दादी रसोई में स्वादिष्ट भोजन बनाने में घंटों बिताती थीं। मैं शांतिपूर्ण ग्रामीण इलाकों में अपने दादा-दादी और चचेरे भाइयों के साथ समय बिताने की इन यादों को हमेशा संजोकर रखूंगा। वे जीवन की सरल खुशियों की याद दिलाते हैं और मुझे उन लोगों और अनुभवों के लिए आभारी बनाते हैं जिन्होंने मुझे उस व्यक्ति के रूप में आकार दिया है जो मैं आज हूं।

मेरे बचपन की यादों पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay on My Childhood Memories in Hindi)

याददाश्त हमारे जीवन का एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम अपने जीवन के बारे में जो बातें सबसे ज्यादा याद रखते हैं, वे हमारे बचपन की बातें हैं। हम उन कामों को कभी नहीं भूल सकते जो हमने बचपन में किए थे।

मेरे बचपन की यादें

जब मैं अपने बचपन के बारे में सोचता हूं तो मुझे बहुत सारी कहानियां याद आती हैं। उनमें से कुछ मुझे खुश करते हैं, जबकि अन्य मुझे सीखने और बढ़ने में मदद करते हैं। मुझे लगता है कि मेरी किंडरगार्टन स्मृति वह है जो मेरे साथ सबसे अधिक चिपकी हुई है। मुझे आज भी अपने स्कूल का पहला दिन याद है। मैं स्कूल न जाने पर बहुत रोया। मेरी मां मुझे स्कूल ले गईं और ढेर सारी चॉकलेट दीं ताकि मैं रोऊं नहीं. मैं बहुत परेशान था लेकिन मेरे शिक्षक ने मुझे थोड़ा प्यार दिखाया और मैंने उस दिन का आनंद लिया। मैंने कई नए दोस्त बनाए और उस दिन से मुझे हर दिन स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।

बचपन की यादों की जरुरत

जो चीज़ें हम बचपन से याद करते हैं वे वयस्क होने पर हमारे लिए महत्वपूर्ण होती हैं। हमारा बचपन हमारे बड़े होने का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग कहते हैं कि बचपन जीवन का सबसे अच्छा समय होता है क्योंकि हमें किसी बात की चिंता नहीं होती। बचपन की यादें हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमारे चरित्र और व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करती हैं। बचपन की यादें अनुशासित रहना और जीवन में सही दृष्टिकोण रखने जैसी अच्छी आदतों से भी बहुत कुछ जुड़ी हुई हैं।

प्रत्येक बच्चे के पास अपने बचपन की एक विशेष स्मृति होती है जिसके बारे में वे हमेशा सोचते या याद रखते हैं। जब हम अच्छे समय के बारे में सोचते हैं, तो हमें खुशी और खुशी महसूस होती है। दूसरी ओर, जब हम अपने साथ हुई बुरी चीजों के बारे में सोचते हैं तो हमें डर और दुख महसूस होता है। यादें बहुत मूल्यवान हैं और हमारे लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहेंगी।

मेरे बचपन की यादों पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay on My Childhood Memories in Hindi) 

यादें हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण घटक हैं। वे हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं क्योंकि हमारा सारा ज्ञान और पिछले अनुभव वहीं संग्रहीत होते हैं। हम सभी की यादें अच्छी और बुरी दोनों तरह की होती हैं। आपके पास बहुत पहले की और हाल के दिनों की भी यादें हैं। इसके अलावा, कुछ यादें हमें कठिन दिनों से उबरने में मदद करती हैं और अच्छे दिनों में हमें खुश रखती हैं।

यादें वह छोटी-छोटी चीजें हैं जो हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती हैं। दूसरे शब्दों में, यादें अपूरणीय हैं और वे हमें बहुत प्रिय हैं। वे हमें अपनी गलतियों से सीखने और बेहतर बनाने में मदद करते हैं। मेरी राय में, किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी बचपन की यादें सबसे प्रिय होती हैं। वे आपके अंदर के बच्चे को जीवित रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा, यह वयस्क जीवन के बीच हमारी मुस्कुराहट का एक कारण भी है।

बचपन की यादों का महत्व

बचपन की यादें हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। यह हमें अपने जीवन के सबसे अच्छे समय को याद कराता है। वे हमारी सोच और भविष्य को आकार देते हैं। जब किसी के पास बचपन की अच्छी यादें होती हैं, तो वह बड़ा होकर खुश व्यक्ति बनता है। हालाँकि, यदि किसी के पास बचपन की दर्दनाक यादें हैं, तो यह उनके वयस्क जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि कैसे बचपन की यादें हमारे भविष्य को आकार देती हैं। वे आवश्यक रूप से हमें परिभाषित नहीं करते हैं लेकिन वे निश्चित रूप से एक महान भूमिका निभाते हैं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि बचपन की दर्दनाक यादों वाला कोई व्यक्ति ठीक नहीं हो सकता है। लोग अपने दर्दनाक अनुभवों से उबर जाते हैं और इंसान के रूप में विकसित होते हैं। लेकिन, ये यादें भी इस प्रक्रिया में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बचपन की यादें अंदर के बच्चे को जीवित रखती हैं। हम चाहे कितने भी बड़े हो जाएं, हममें से हर एक के भीतर हमेशा एक बच्चा रहता है। वह अलग-अलग समय पर बाहर आता/जाती है।

उदाहरण के लिए, कुछ लोग झूले को देखकर बच्चे जैसा व्यवहार कर सकते हैं; जब वे आइसक्रीम देखते हैं तो दूसरे बच्चे की तरह उत्साहित हो सकते हैं। यह सब इसलिए होता है क्योंकि हमारे पास बचपन की यादें हैं जो हमें उन चीजों से जुड़ी याद दिलाती हैं जिनके बारे में हम उत्साहित होते हैं। इसलिए, बचपन की यादें हमारे जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं।

बड़े होने पर मेरा बहुत प्यारा परिवार था। मेरे तीन भाई-बहन थे जिनके साथ मैं खूब खेलता था। मुझे वे खेल बहुत शौक से याद हैं जिन्हें हम खेला करते थे। खासकर, शाम को हम अपने खेल उपकरण के साथ पार्क में जाते थे। प्रत्येक दिन हम अलग-अलग खेल खेलते थे, उदाहरण के लिए, एक दिन फुटबॉल और दूसरे दिन क्रिकेट। पार्क में खेलने की ये यादें मुझे बहुत प्रिय हैं।

इसके अलावा, मुझे अपनी दादी के अचार की सुगंध भी अच्छी तरह याद है। जब भी वह अचार बनाती थी तो मैं उसकी मदद करता था। हम उसे तेल और मसालों को मिलाकर स्वादिष्ट अचार बनाने का जादू करते देखा करते थे। आज भी, जब भी मैं इस स्मृति को पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे कभी-कभी उसके अचार की गंध आती है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मुझे यह घटना अच्छी तरह से याद है जब हम अपने परिवार के साथ पिकनिक के लिए बाहर गए थे। हमने चिड़ियाघर का दौरा किया और एक अविश्वसनीय दिन बिताया। मेरी माँ ने स्वादिष्ट व्यंजन पैक किये जो हमने चिड़ियाघर में खाये। मेरे पिता ने उस दिन बहुत सारी तस्वीरें खींची। जब मैं इन तस्वीरों को देखता हूं तो यादें इतनी स्पष्ट होती हैं, ऐसा लगता है जैसे यह कल ही की बात हो। इस प्रकार, मेरी बचपन की यादें मुझे बहुत प्रिय हैं और जब भी मैं उदास महसूस करता हूं तो मुस्कुरा देता हूं।

मेरे बचपन की यादों पर कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1 बचपन की यादें क्यों महत्वपूर्ण हैं.

A.1 बचपन की यादें हमारे व्यक्तित्व और भविष्य को आकार देती हैं। वे हमें अच्छे समय की याद दिलाते हैं और कठिन दिनों से निपटने में हमारी मदद करते हैं। इसके अलावा, वे हमें पिछले अनुभवों और गलतियों की याद दिलाते हैं जो हमें खुद को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।

Q.2 सभी के लिए बचपन की एक सामान्य स्मृति क्या हो सकती है?

A.2 मेरी राय में, हममें से अधिकांश की बचपन की एक याद स्कूल का पहला दिन है। हममें से अधिकांश को याद है कि पहले दिन हमें कैसा महसूस हुआ था। इसके अलावा, हमारे जन्मदिन भी बचपन की बहुत आम यादें हैं जो हमें उस दिन उपहारों और उत्सवों की याद दिलाते हैं।

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मेरा बचपन पर निबंध – Mera Bachpan Essay in Hindi

Mera Bachpan Essay in Hindi आज हम मेरा बचपन पर निबंध हिंदी में लिखने वाले हैं. यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए है.

इस निबंध को हमने अलग-अलग शब्द सीमा में लिखा है जिससे अनुच्छेद और निबंध लिखने वाले विद्यार्थियों को कोई भी परेशानी नहीं हो और वह Mera Bachpan Essay in Hindi   के बारे में अपनी परीक्षा में लिख सकेंगे.

Mera Bachpan Essay in Hindi 150 Words

बचपन जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है. बचपन में इतनी चंचलता और मिठास भरी होती है कि हर कोई फिर से बचपन को जीना चाहता है. बचपन में वह धीरे-धीरे चलना, गिर पड़ना और फिर से उठकर दौड़ लगाना बहुत याद आता है.

बचपन में पिताजी के कंधे पर बैठकर मेला देखने का जो मजा होता था वह अब नहीं आता है. बचपन में मिट्टी में खेलना और मिट्टी से छोटे-छोटे खिलौने बनाना किसकी यादों में नहीं बसा है.

Mera Bachpan Essay in Hindi

Get Some Essay on My Childhood in Hindi

बचपन में जब कोई डांटता था तो मां के आंचल में जाकर छुप जाते थे. बचपन में मां की लोरियां सुनकर नींद आ जाती थी लेकिन अब वह सुकून भरी नींद नसीब नहीं होती है. बचपन के वो सुनहरे दिन जब हम खेलते रहते थे तो पता ही नहीं चलता कब दिन होता और कब रात हो जाती थी.

बचपन में किसी के बाग में जाकर फल और बैर तोड़ जाते थे तब वहां का माली पीछे भागता था वह दिन किसको याद नहीं आते. शायद इसीलिए बचपन जीवन का सबसे अनमोल पल है.

Mera Bachpan Essay in Hindi 300 Words

मेरा बचपन सपनों का घर था जहां मैं रोज दादा-दादी के कहानी सुनकर उन कहानियों में ऐसे खो जाता था मानो उन कहानियों का असली पात्र में ही हूं. बचपन के वह दोस्त जिनके साथ रोज सुबह-शाम खेलते, गांव की गलियों के चक्कर काटते और खेतों में जाकर पंछी उड़ाते.

मेरा बचपन गांव में ही बीता है इसलिए मुझे बचपन की और भी ज्यादा याद आती है बचपन में हम भैंस के ऊपर बैठकर खेत चले जाते थे तो बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते थे. बचपन में सावन का महीना आने पर हम पेड़ पर झूला डाल कर झूला झूलते थे और ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते थे.

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बचपन के वह दिन बहुत ही खुशियों से भरे हुए थे तब ना तो किसी की चिंता थी ना ही किसी से कोई मतलब बस अपने में ही खोए रहते थे. बचपन में बिना बुलाए किसी की भी शादी में शामिल हो जाते थे और खूब आनंद से खाना खाते और मौज उड़ाते थे.

बचपन में शोर मचा कर पूरे विद्यालय में हंगामा करते थे. हम बचपन में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन- छुपाई और तेज दौड़ लगाना खेलते थे. रोज किसी ना किसी को परेशान करके भागना बहुत अच्छा लगता था.

बचपन में हम सब सुबह शाम सिर्फ मस्ती ही करते थे. बचपन में पूरा घर हंसी ठिठोली से गूंजता रहता था. बचपन का हर दिन उत्सव होता था. बच्चों को देख कर बचपन की बहुत सी यादें अब भी ताजा हो जाती है. अभी तेज दौड़ लगाने का मन करता है और बारिश भी तालाब में जाकर छप-छप करना किसे अच्छा नहीं लगता.

ऐसा था मेरा बचपन कभी मां का दुलार मिलता तो कभी पिताजी की डांट पड़ती थी लेकिन फिर भी कुछ ही पलों में सब कुछ भुला कर फिर से शैतानियां करने लग जाते थे.

Mera Bachpan Essay in Hindi 1000 Words

मेरे बचपन के दिन बहुत ही अच्छे और सुहावने थे यह दिन किसी जन्नत से कम नहीं थे. इन दिनों में मैंने बहुत मस्तियां और शैतानियां की थी. बचपन के वो दिन भूलाए नहीं भूले जा सकते है. मेरा बचपन हमारे गांव में ही बीता है. मेरे पिताजी किसान है.

मैं बचपन में बहुत शरारती और चंचल था जिसके कारण मुझे कभी कभी डांट भी पड़ती थी तो उतना ही प्यार और दुलार भी मिलता था. मैं बचपन में माँ से छुपकर माखन खा जाता था माँ कुछ समय के लिए तो गुस्सा होती लेकिन मेरी चंचलता के कारण मुझे माफ भी कर देती थी.

मैं बचपन में सुबह उठते ही अपने दोस्तों के साथ खेलने निकल जाता था हम दोपहर तक खूब खेल खेलते थे इससे हमारे कपड़े मिट्टी के भर जाते थे और हम इतने गंदे हो जाते थे कि हमारी शक्ल पहचान में नहीं आती थी यह दिन बहुत ही अच्छे थे.

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मैं बचपन में कबड्डी, गुल्ली डंडा, खो खो, पोस्म पा, दौड़-भाग, लंगड़ी टांग आदि प्रकार के खेल खेलता था. इन खेलों को खेलते समय कब सुबह से शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था मां मुझे हमेशा डांटती थी कि तू भोजन तो समय पर कर लिया कर, लेकिन बचपन था ही ऐसा की खेल खेलते समय भूख लगती ही नहीं थी.

कभी-कभी मैं पिताजी के साथ खेत में भी जाया करता था जहां पर पिताजी मुझे फसलों के बारे में और वहां पर रहने वाले पशु पक्षियों के बारे में बताते थे. खेत में माहौल बिल्कुल शांत रहता था वहां पर सिर्फ पक्षियों के चहचहाने की आवाज आती थी.

जब बारिश का मौसम आता था तब मैं और मेरे दोस्त बारिश में भीगने चले जाते थे और गांव में जब बारिश के कारण छोटे छोटे तालाब पानी के घर जाते थे तो हम उनमें जोर-जोर से कूदते थे. यह करने में बहुत मजा आता था बारिश में भीगने के कारण कभी-कभी हमें सर्दी जुकाम भी हो जाती थी लेकिन बचपन में मन बड़ा चंचल था.

जिस कारण हम बार-बार बारिश में देखने चले जाते थे. हमारे परिवार में मेरे दादा-दादी जी मेरे माता-पिता और एक छोटी बहन है. मेरे दादाजी रोज शाम को हमें नई नई कहानियां सुनाते थे हम भी तारों की छांव में कहानियां सुनते रहते थे और कब नींद आ जाती थी पता ही नहीं चलता था. बचपन के वह पल मुझे बहुत याद आते है.

बचपन में मुझे खेलने के साथ साथ शिक्षाप्रद पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ना बहुत पसंद था जो कि मुझे आज भी पसंद है. मैं बचपन में जितना चंचल था उतना ही पढ़ाई में होशियार भी था जिस कारण हमारे विद्यालय में मैं हर बार अव्वल नंबरों से पास होता था.

विद्यालय में मैं कई बार शैतानियां भी करता था जिसके कारण मुझे दंड दिया जाता था. जो कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था.

मुझे आज भी याद है जब पिताजी मुझे गांव के मेले में अपने कंधे पर बिठा कर ले जाते थे. उनके पास पैसों की कमी होती थी लेकिन वे मुझे मेले में खूब घुमाते और झूला झुलाते थे साथ ही जब मैं मेले में खिलौने लेने की जिद करता तो मुझे खिलौने भी दिलाते थे.

पिताजी कंधे पर बैठकर मेला देखना बहुत ही आनंददायक होता था वो दिन मैं आज भी याद करता हूं तो आंखों में आंसू आ जाते है. मेरे पिताजी बहुत सहनशील और ईमानदार व्यक्ति है और साथ ही वे मुझे बहुत प्यार करते है. मैं भी पिताजी से उतना ही प्रेम करता हूं.

बचपन में मैं और मेरी छोटी बहन बहुत झगड़ते थे हर एक छोटे से खिलौने को लेकर हमें लड़ाई हो जाती थी. लेकिन बचपन में हमें पता नहीं होता क्या सही है और क्या नहीं. बहन के साथ वह नोक-झोक भरी लड़ाइयां बहुत याद आती है.

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बचपन होता इतना अच्छा है कि सभी को बड़े होने के बाद बचपन की बहुत याद आती है. हमारे गांव में जब सावन का महीना आता है तब हर घर में पेड़ों पर झूले डाल दिए जाते है. हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ था जिस पर मेरे पिताजी हमारे जुड़ने के लिए झूला डालते देते थे.

झूला झूलना मुझे और मेरी छोटी बहन को बहुत पसंद था इसलिए हम सुबह उठते हैं जिले की सड़क पर नहीं दौड़ते थे हम दोनों में इस कारण बहुत नोक-झोंक भी होती थी लेकिन माँ आकर सब कुछ ठीक कर देती थी.

बचपन में मैं और मेरे दोस्त गर्मियों की छुट्टियों में बागों में बैर तोड़ने चले जाते थे खट्टे मीठे बेर हमें बहुत पसंद थे जिस कारण हम अपने आप को रोक नहीं पाते थे बागों के माली लकड़ी लेकर हमें मारने को दौड़ते लेकिन हम तेजी से दौड़ कर घर में छुप जाते थे.

हमारे घर के बाहर एक बड़ा चौक था जहां पर गांव के सभी बड़े बुजुर्ग शाम को बैठते थे और गांव और देश की चर्चा करते थे. हम भी वहां पर खेलते रहते थे कभी-कभी हमें बुजुर्गों से शिक्षाप्रद कहानियां सुनने को भी मिलती थी.

चौक में हर साल कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता था जिसमें एक छोटी मटकी को माखन से भरकर ऊपर लटका दिया जाता था फिर हम बच्चे और हमारे से बड़े लोग मिलकर छोटी मटकी को फोड़ते थे. यह उत्सव इतना अच्छा होता था कि हम पूरी रात गाना गाते और नाचते रहते थे कृष्ण जन्मोत्सव के दिन मुझे आज भी मेरा बचपन याद आ जाता है.

बचपन में हमारे घर में गाय, भैंस और बकरियां होती थी जिनकी छोटे बच्चों के साथ हम बहुत खेलते थे. हमारे घर में एक शेरू नाम का कुत्ता भी था जिसे हम बहुत प्यार करते थे वह भी हमारा को ख्याल रखता था 1 दिन की बात है हम खेलते-खेलते गांव से बाहर निकल गए थे और घर जाने का रास्ता भूल गए थे तब शेरू नहीं हमें रास्ता दिखाया और घर तक पहुंचाया था.

वह दिन मुझे आज भी बहुत याद आता है क्योंकि मैं रास्ता भूल जाने के कारण बहुत रोने लगा था.

मेरा बचपन बहुत ही अच्छा रहा है बचपन में मैंने खूब मस्तियां की है जिनकी मीठी यादें आज भी मेरे मस्तिक में बची हुई है आज शहर की इस गुमनाम जिंदगी में भी रस तब घुल आता है जब मैं छोटे बच्चों को खेलते हैं और शैतानियां करते देखता हूं.

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हम आशा करते है कि हमारे द्वारा Mera Bachpan Essay in Hindi  पर लिखा गया निबंध आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

31 thoughts on “मेरा बचपन पर निबंध – Mera Bachpan Essay in Hindi”

Wow , such a nice essay it is I like it 👌

Thank you Amrita

Thanks for sharing this essay it helped me so much mostly in exam times

The content is really nice but it would be much better if quotations in it.Still it’s lovely

Thank you Diya

Bohot hi gajab tareke se ese darsaya gaya h bohot acha lage ese padhke apne bachpan ki yaad aagye

Thank you Kapil ladha

Yes you all write this is very nice essay it help me lot in my project

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मेरे बचपन की यादें पर निबन्ध | Essay on Reminiscences of My Childhood in Hindi

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मेरे बचपन की यादें पर निबन्ध | Essay on Reminiscences of My Childhood in Hindi!

बचपन के दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े महत्वपूर्ण दिन होते हैं । बचपन में सभी व्यक्ति चिंतामुक्त जीवन जीते हैं । खेलने उछलने-कूदने, खाने-पीने में बड़ा आनंद आता है ।

माता-पिता, दादा-दादी तथा अन्य बड़े लोगों का प्यार और दुलार बड़ा अच्छा लगता हैं । हमउम्र बच्चों के साथ खेलना-कूदना परिवार के लोगों के साथ घूमना-फिरना बस ये ही प्रमुख काम होते हैं । सचमुच बचपन के दिन बड़े प्यारे और मनोरंजक होते हैं ।

मुझे अपने बाल्यकाल की बहुत-सी बातें याद हैं । इनमें से कुछ यादें प्रिय तो कुछ अप्रिय हैं । मेरे बचपन का अधिकतर समय गाँव में बीता है । गाँव की पाठशाला में बस एक ही शिक्षक थे । वे पाठ याद न होने पर बच्चों को कई तरह से दंड देते थे ।

मुझे भी उन्होंने एक दिन कक्षा में आधे घंटे तक एक पाँव पर खड़ा रहने का दंड दिया था । इस समय मुझे रोना आ रहा था जबकि मेरे कई साथी मुझे देखकर बार-बार हँस रहे थे । मैं बचपन में कई तरह की शरारतें किया करता था ।

छुट्टी के दिनों में दिन भर गुल्ली-डंडा खेलना, दोस्तों के साथ धमा-चौकड़ी मचाना, फिाई का ढेला, ईंट आदि फेंककर कच्चे आम तोड़ना, काँटेदार बेर के पेड़ पर चढ़ना आदि मेरे प्रिय कार्य थे । इन कार्यो में कभी-कभी चोट या खरोंच लग जाती थी । घर में पिताजी की डाँट पड़ती थी मगर कोई फिक्र नहीं 9 अगले दिन ये कार्य फिर शुरू ।

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किसी दिन खेत में जाकर चने के कच्चे झाडू उखाड़ लेता था तो किसान की त्योरी चढ़ जाती थी वह फटकार कर दौड़ाने लगता था । भाग कर हम बच्चे अपने-अपने घर में छिप जाते थे । कभी किसी के गन्ने तोड़ लेना तो कभी खेतों से मटर के पौधे उखाड़ लेना न जाने इन कार्यों में क्यों बड़ा मजा आता था । एक बार मैं अपने मित्र के साथ गाँव के तालाब में नहाने गया ।

उस समय वहाँ और कोई नहीं था । मुझे तैरना नहीं आता था । परंतु नहाते-नहाते अचानक मैं तालाब में थोड़ा नीचे चला गया । पानी मेरे सिर के ऊपर तक आ गया । मैं घबरा गया । साँस लेने की चेष्टा में कई घूँट पानी पी गया ।

शीघ्र ही मेरे मित्र ने मुझे सहारा देकर जल से बाहर खींचा । इस तरह मैं बाल-बाल बचा । इस घटना का प्रभाव यह पड़ा कि इसके बाद मैं कभी भी तालाब में नहाने नहीं गया । यही कारण है कि अब तक मुझे तैरना नहीं आता है ।

बचपन की एक अन्य घटना मुझे अभी तक याद है । उन दिनों मेरी चौथी कक्षा की वार्षिक परीक्षा चल रही थी । हिंदी की परीक्षा में हाथी पर निबंध लिखने का प्रश्न आया था । निबंध लिखने के क्रम में मैंने ‘चल-चल मेरे हाथी’ वाली फिल्मी गीत की चार पंक्तियाँ लिख दीं ।

इसकी चर्चा पूरे विद्यालय में हुई । शिक्षकगण तथा माता-पिता सभी ने हँसते हुए मेरी प्रशंसा की । परंतु उस समय मेरी समझ में नहीं आया कि मैंने क्या अच्छा या बुरा किया । इस तरह बचपन की कई यादें ऐसी हैं जो भुलाए नहीं भूल सकतीं । इन मधुर स्मृतियों के कारण ही फिर से पाँच-सात वर्ष का बालक बनने की इच्छा होती है । परंतु बचपन में किसी को पता ही कहाँ चलता है कि ये उसके जीवन के सबसे सुनहरे दिन हैं ।

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Nibandh

मेरा बचपन पर निबंध

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रूपरेखा : मानव जीवन का स्वर्णिम बल - मेरा गाँव - मेरा परिवार - बचपन की घटनाएँ - बचपन की शरारतें - बचपन की स्मृतियाँ।

बचपन ही मानव-जीवन का स्वर्णिम काल होता है। चिंता रहित जीवन, स्वतंत्र जीवन, एवं भयविहीन कहीं भी घूमना फिरना, जो हाथ में आया खा लिया, अँगूठा चूसने में मधु का आनंद आना और दूध के कुल्ले पर किलकारी भरने में उल्लास की अनुभूति, रोकर-मचलकर, बड़े-बड़े मोती आँखों से बहाकर माँ को बुलाना एवं झाड़ पोंछकर हृदय से चिपका लेना, आदि कई ऐसे स्मृतियाँ है | बचपन ही वो काल है जब ना हमे कोई पढ़ने के लिए कहता है और नाही हमे भविष्य की चिंता रहती है। बचपन मानो स्वर्ग का एक नगरी है जहाँ से हमे निकलने का मन ही नहीं करता। बचपन ही वो समय होता है जहाँ हमे कोई रोक-टोक नहीं करता। पूरी दुनिया एक तरफ और हम एक तरफ होने लगते है। चिंता मुक्त जीवन ही बचपन का सरल अर्थ है।

वर्तमान बिहार के एक छोटे से गाँव मधुबनी में, जिसने औद्योगिक विकास के साथ-साथ तहसील से जिले का रूप ले लिया है, मेरा बचपन बीता। मेरे गाँव की सुंदरता का कोई वर्णन नहीं किया जा सकता। मेरे गाँव में चारों और वृक्ष की हरयाली नजर आती है। गाँव में एक विशाल तालाब देखने को मिलता है। गाँव में आधा प्रतिशत जमीन खेतो से ढका रहता है जहाँ अन्य का खजाना उगता है। गाँव के नदी का तो कोई जवाब नहीं जहाँ की पानी की पवित्रता वहा के लोगों को लम्बी आयु प्रदान करती है। गाँव में करीब हर घर में एक पालतू पशु रहता है जिससे मेरे गाँव के अधिकतर लोगों का घर चलता है।

मेरे परिवार में माँ, पिताजी, दादाजी, और एक बड़ा भाई है । सभी मेरा बहुत ध्यान रखते है। पिताजी देश की मायानगरी मुंबई में कार्य करते है। बाबा (दादाजी ) गाँव के एकमात्र सलाहकार है। मेरा परिवार बड़ा ही सरल है और उतना ही सरल हमारा जीवन है। मेरा घर का आँगन कच्चा था। वही पीली मिट्टी का आँगन मेरी क्रीडा-स्थली थी।

एक बार भाई ने स्नेह से गोदी में लेने का प्रयास किया। उनके हाथ मारने की बचपन की आदत होती थी। मैं चारपाई पर पड़ा रो रहा था। वे खुश हो रहे थे। समझ रहे थे, उनको छेड़-छाड़ मुझे आनंद कर रही है इसीलिए उन्होंने थोड़ा और जोर लगाया । वे मुझे सँभाल न सके और मैं चारपाई से नीचे गिरा और चीख मारकर रो पड़ा। माँ को निमन्त्रित करने का सहज और सरल उपाय यही था। माँ दौड़ी आई और पीली मिट्टी में सने मेरे शरीर को गोदी से चिपका लिया। भैया को डाँटा। पीट सकना उनके वश की बात नहीं थी। कारण, भैया भी शिशु थे और थे माँ के इृदयांश। यद्यपि परिवार मध्यवर्ग था, किन्तु दूध- दही की कमी न थी। हम भोजन में अति कर जाते थे। परिणामत: पेट में अफारा और दूध उलट देना स्वभाव वन गया था। घर के टोटके औषधि का रूप लेते। ममतामयी माँ समीप बैठी टुकुर-टुकुर निहारती और अपने लाल के अच्छा होने की प्रतीक्षा करती हुई प्राथना करती। घुटनों से चलते समय महल का पीली मिट्टी का प्रांगण हमारी दौड़ का मैदान बना। अड़ोसी-पड़ोसी समवयस्क बच्चों के मध्य एक-दूसरे को हाथ मारने में आनंद आता था। एक बार हमने सामने वाली ताई के बच्चे को वह हाथ मारा कि वह चिल्ला उठा। ताई दौड़ी आई और अपने बच्चे को गोद में उठा लिया और क्रोध में मुझे एक चपत रसीद कर दी। मार लगते ही हमने भी रोना शुरू कर दिया। उधर माँ ताई की करतूत देख रही थी। बस फिर माँ ने हमें गोद में लिया और लगी ताई से झगड़ने। सचमुच, बचपन की घटनाएं आज भी याद आती है तो आखों से ख़ुशी के आसूं निकलने लगते है।

जब हम कुछ बड़े हुए। चलना प्रारम्भ किया तो बच्चों से यारी-दोस्ती बढ़ी । परिचय का क्षेत्र घर से बाहर निकल कर गली तक पहुँच गया। बाबा के दो फुट ऊँचे चबूतरे पर चढ़ना हिमालय पर चढ़ने से कम न था। चढ़ने की कोशिश में गिरते और रो-रोकर पुनः चढ़ने का प्रयास करते थे। गली की बिल्ली और कुत्ते हमारे लिए शेर और चीते थे। गली का कुत्ता यदि जीभ निकालकर हमारे पीछे चलने लगता तो हमारी घिग्घी बंध जाती और नन्‍हें कदमों की दौड़ से घर में घुस जाते। हमारे गाँव में बन्दर बहुत थे। एक दिन गली में चहल-कदमी कर रहा था कि अचानक तीन-चार बन्दर आ गए लगे मुझे घूरने, घूर-घूर कर धमकी देने | आँखों ने यह दृश्य देखा, तो मुँह से जोर से जिख निकली, हृदय-गति तेज हो गई, नयनों ने नीर बरसाना शुरू कर दिया, हाथ-पैर काँपने लगे। चीख सुन पड़ोसिन आई और उसने बन्दरों को डंडे दिखाकर भगा दिया। कुछ समय बाद फिर मेरे जान में जान आयी और फिर ऐसे प्रतीत करने लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं। क्यूंकि बचपन में अगर हम डरते हुए दिख जाते है किसी मित्र को फिर बस उनका चिड़ाना कई दिनों तक चलता ही रहता है।

बचपन की कई यादें आज भी मुझे याद आती है। याद कर के मैं अपने माँ के गोदी में सर रख के बचपन की किस्से पर चर्चा करने लगते है। वो बन्दर से दर जाना, ताई से मार खाना, बाबा के दो फुट ऊँचे चबूतरे पर चढ़ना, आदि कई यादें मुझे बचपन में लौट आने के लिए कहती है। अगर भगवान् जी मुझे पूछते की मुझे क्या चाहिए तो उन्हें में फिरसे मुझे बचपन में भेज देने का आग्रह करता। सचमुच, बचपन सभी लोगों के लिए स्वर्णिम काल होता है।

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मेरा बचपन हिन्दी निबंध | Mera Bachpan Essay in Hindi

My Childhood Golden Memories Mera Bachpan Essay in Hindi मेरा बचपन हिन्दी निबंध : बचपन के वे दिन और  उनकी  सुनहरी यादे जीवन भर हमारे संग रहती हैं  बेफिक्री के जमाने की यादे हर किन्ही को याद अवश्य आती हैं.   स्कूल  में बच्चों  को मेरा बचपन पर हिन्दी  में निबंध लिखने को कहा जाता हैं यहाँ आपकों निबंध की रूपरेखा बता रहे हैं.

Mera Bachpan Essay in Hindi मेरा बचपन हिन्दी निबंध

मेरा बचपन हिन्दी निबंध | Mera Bachpan Essay in Hindi

“ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छिन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझकों लौटा दो मेरा वो बचपन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी”

सुदर्शन पाकीर के इन लफ्जों में बचपन की वो यादे झलकती हैं,  जब देश दुनियां की झंझावतों से दूर एक बालक अपने ही जीवन में मग्न नजर आता हैं. और लेखक कामना करता हैं कि उसके बचपन के वही दिन पुनः लौट आए, बेशक इसके लिए उसकी सारी दौलत शोहरत वापिस ले ली जाए.

लेकिन कटु सत्य हैं कि बचपन तो लौटकर कभी नहीं आ सकता, रह जाती हैं केवल उसकी यादें. इन यादों का भी जीवन की खुशियों से सीधा सम्बन्ध होता हैं. हम जीवन भर बचपन की यादों को ताजा करके खुश होने का मौका ढूढ़ते रहते हैं.

बचपन की यादें निबंध my childhood essay in hindi

हमारे खाने में प्रायः पकवान बिलकुल नही होते थे और हमारे कपड़ो की सूची यदि देखी जाए तो आजकल के लड़के नाक भौह सिकोड़े बिना नही रहेंगे.

दस साल की उम्रः होने के पहले किसी भी कारण से हमने मोज़े और बूट नही पहिने थे. सर्दियों में भी बंडी के उपर एक सूती कुरता पहन लिया कि बस हुआ और उससे हमे गरीबी भी नही मालूम होती थी.

हां हमारा बुढा दर्जी ”स्यामत” अगर बंडी में खीसा लगाने को भूल जाता था तो हमारा मिजाज जरुर बिगड़ जाता था.खीसे में खूब भरने के लिए जिसे कोई चीज न मिली हो, इतना गरीब बच्चा आज तक एक भी पैदा नही हुआ होगा.

दयालु भगवान् का इशारा यही मालूम होता है. कि पैसे वालों के बच्चों और गरीब माँ-बाप के बालकों की सम्मति में ज्यादा फर्क न रहे.

हममे हरेक बच्चे को चप्पल की एक जोड़ी मिलती थी लेकिन यह भरोसा नही था कि वह हमेशा पावों में ही रहेगी क्युकि हम उसे पांव से उपर फेकते और झेला करते थे. इस रिवाज से चप्पलों का वास्तविक उपयोग नही होता था, तो भी उनसे कम काम नही पड़ता था.

पहनावा खाना पीना व्यापार बातचीत और मनोरंजन में हमारे बूढ़े लोगों में हममे बहुत फर्क था. बिच बिच में उनके काम हमे दिखलाई पड़ जाते थे. लेकिन वे हमारी ताकत के बाहर होते थे.

आजकल के बच्चों के लिए तो माँ बाप आदि बड़ी सहज में मिलने वाली वस्तु हो गई है. और उन्हें वे मिल जाती है ज्यादा क्या?

यह कहना भी ठीक होगा कि आजकल बच्चों को मनचाही चीज आसानी से मिल जाती है लेकिन हमारे जमाने में कोई भी चीज इतनी आसान नही थी. हलकी से हल्की चीज हमारे लिए मुश्किल थी. हम लोग इसी भरोसे दिन निकालते थे कि बड़े होने पर ये सब चीजे मिलेगी.

भरोसा था कि आने वाले दिन इन सब चीजों को संभाल कर रखेगे. इसका नतीजा यह होता था कि हमे जो कुछ मिलता था वह चाहे थोड़ा ही क्यों न हो, उसका हम खूब उपयोग करते थे और उसका कोई हिस्सा भी यों नही जाने देते थे. आजकल तो परिवार खाने पीने से सुखी है.

उनके लडकों को देखो तो मालूम होगा कि जो चीजे उन्हें मिलती है, उनमे से आधी चीजे तो सिर्फ बेकार में ही खो देते है. इस तरह उनकी पूंजी के बहुत बड़े हिस्से का होना न होने के बराबर है. कुछ ऐसी थी हमारी बचपन की यादे

मुझे भी अपना बचपन बहुत याद आता हैं. मेरा जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के एक छोटे से गाँव बघडा में हुआ था. यह गाँव गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित हैं. इसकी आबादी लगभग पांच हजार हैं. इस गाँव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय एवं एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय हैं.

इन्ही विद्यालयों में मैंने शिक्षा ग्रहण की. इन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते समय मेरे कई मित्र थे. उनमें से अधिकतर मेरे मित्र मेरे गाँव बाघड़ा के ही थे.

इसके अतिरिक्त पड़ोस के गाँव के कुछ किशोर भी इन विद्यालयों में पढ़ने आते थे. उनमें से कई मेरे घनिष्ठ मित्र बन गये थे. कक्षा में मैं उन मित्रों के साथ बैठता था. आवश्यकता पड़ने पर मेरे मित्र मेरी मदद भी करते थे.

पढ़ाई के बाद खाली समय में मैं अपने मित्रों के साथ खेलना पसंद करता था. खेल में मुझे शतरंज बहुत पसंद था. मैं प्रायः रविवार के दिन अपने किसी मित्र के साथ शतरंज की एक बाजी खेल ही लेता था. शतरंज के अतिरिक्त मैदान में खेले जाने वाले खेलों में मुझे कबड्डी खेलना बहुत अच्छा लगता था.

कबड्डी के अतिरिक्त बचपन में मैं पित्टों भी खेला करता था. पिट्टो एक प्रकार का खेल हैं, जिसमें गेंद से मैदान के बीच रखी गयी गोटी को मारना होता हैं.

गोटी के गिरने के बाद विपक्षी को गेंद से मारकर उसे आउट किया जाता हैं. विपक्षी को लगी गेंदों की संख्या के आधार पर हार जीत का निर्णय होता था.

पिट्टो के अतिरिक्त मैं अपने मित्रों के साथ लुका छिपी का खेल भी खेला करता था. कई बार विभिन्न प्रकार के खेल, खेलते समय मेरी मित्रों से लड़ाई भी हुई, लेकिन कोई भी लड़ाई अधिक दिनों तक मैं चलने नही देता. मैं उन्हें मना लेता था. इस प्रकार हमारी मित्रता पुनः कायम हो जाती थी.

थोड़ा बड़ा होने के बाद मैं अपने मित्रों के साथ क्रिकेट भी खेलने लगा. लेकिन पढ़ाई की व्यस्तता और समयाभाव के कारण मैं खेल कूद में कम ध्यान देने लगा. हाईस्कूल तक पहुचते पहुचते मैं खेल कूद को पूर्णता छोड़ चुका था.

हालांकि आठवीं कक्षा में मैं कुछ दिनों तक अपने विद्यालय में खो खो खेल भी खेला करता था, किन्तु नौवी कक्षा के बाद यह खेल भी पढ़ाई की व्यस्तता की भेंट चढ़ गया.

मुझे याद हैं मैं बचपन में कभी कभी पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए जाता था. तब वहां लोगों को तैरते देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता था. मैं भी तैरना सीखना चाहता था.

एक दिन मेरे एक मित्र ने मुझे तैरने के गुर सिखाएं. मैंने उन गुर को आजमा कर देखा तो लगा कि मैं भी सफलतापूर्वक तैर सकता हूँ.

इसके बाद तो हर रोज तैरने का अभ्यास मेरे लिए आवश्यक हो गया. तैरने के अतिरिक्त गंगा नदी जाने का मेरा दूसरा उद्देश्य नदी के किनारे की सैर था. नदी किनारे बालूतट पर अपने मित्रों के साथ बिताएं हुए मुझे आज भी याद आते हैं.

बचपन के दिन बेफिक्री के होते हैं. इस समय प्राय पढ़ाई लिखाई की चिंता नहीं होती. मुझे भी केवल गृहकार्य पूरा करने से मतलब रहता था. स्कूल का काम खत्म करने के बाद मुझे पढाई से कोई मतलब नहीं रहता था.

पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई के प्रति मेरा लगाव बढने लगा. उसके बाद मुझे पाठ्यक्रम की किताबों के अतिरिक्त समाचार पत्र एवं बाल पत्रिकाएँ पढ़ना भी अच्छा लगने लगा.

बाल पत्रिकाओं में नन्दन, नन्हें सम्राट एवं पराग मुझे प्रिय थी. पत्रिकाओं के अतिरिक्त मैं मनोरंजन के लिए कॉमिक्स भी पढ़ा करता था. नागराज, सुपर कमांडों ध्रुव, भोकाल, चाचा चौधरी इत्यादि मेरी प्रिय कॉमिक्स पात्र थे.

मैं पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स अपने मित्रों के साथ बांटकर पढ़ता था. मेरे पास जो पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स होती थी, उन्हें मैं अपने मित्रों को पढने के लिए दे देता था. मेरे मित्र भी मुझे उनके बदले अपनी पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स पढने के लिए दे दिया करते थे.

ग्राम्य जीवन का अपना एक अलग ही आनन्द हैं. अपने मित्रों के साथ मिलकर खेतों में मटर तोड़कर खाने में जो स्वाद आता था, वह अब तक मटर पनीर में भी नहीं मिला.

मिट्टी पत्थर के ढेले से तोड़े गये झड़बेली के बेर में जो स्वाद मैंने बचपन में प्राप्त किया हैं. वह सेब संतरों में भी दुर्लभ हैं. बेर और अमरुद की बात तो छोड़ ही दीजिएं, गर्मी के दिनों में आम के बाग़ में सबसे छुप छुपाकर तोड़े गये खट्टे आमों का स्वाद बम्बइया, मालदह मीठे आमों से कहीं बेहतर था.

बरसात के मौसम में सबसे नजरें चुराकर भीगना एवं भीगते हुए पानी की नाव को रास्ते में पानी में बहाने का एक अलग ही आनन्द था. सभी मित्र अपनी अपनी नावों के साथ नावों की दौड़ के लिए तैयार रहते थे.

इस तरह बरसात का मजा दोगुना हो जाता था. बरसात के मौसम में प्रायः मेरे गाँव में हर साल बाढ़ आती थी. गाँव के लोग दुआएं करते थे कि इस साल भी बाढ़ न आए और हम सभी मित्र यही कामना करते थे कि बाढ़ आए तो जीने का मजा आ जाए.

लेकिन अब सोचता हूँ कि उस समय कितना गलत सोचा करता था. हालांकि उस वक्त बाढ़ का सामना मेरे बालपन की खेल एवं आनन्द की भावना मात्र थी. वास्तव में बाढ़ अपने साथ विनाश ही लाती हैं.

खैर बचपन के दिन जब बीतने लगे तो दीन दुखियों की चिंता सताने लगी. और अच्छे जीवन के लिए संघर्ष में बचपन कहाँ गम हो गया पता ही नहीं चला.

तू न सही तेरी याद ही सही की तरह बचपन की यादें भी कम ख़ुशी नहीं देती. आज भी जब बचपन की याद आती हैं तो मैं सोचता हूँ कि कोई लौटा दे मेरे बचपन के वे खुशियों भरे दिन.

कोई मेरे वे खूबसूरत दिन लौटा तो नहीं सकता, किन्तु जिन्दगी की भाग दौड़ में भी बचपन को याद कर खुश होने का मौका मैं कभी नहीं छोड़ता.

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बचपन की वो सुहानी यादें निबंध | childhood memories essay in hindi.

बचपन की वो सुहानी यादें

100 Words - 150 Words 

Categories/श्रेणियाँ

  • 10 पंक्ति 10
  • 10 Lines in Hindi 10
  • 100 Words 133
  • 1000 Words 36
  • 150 Words 109
  • 250 Words 133
  • 300 Words 55
  • 400 words 26
  • 500 words 119
  • त्योहारों पर निबंध 10
  • विज्ञान 1
  • Animals/जानवर 7
  • Bank Application In Hindi / बैंक एप्लीकेशन हिंदी 3
  • essay in hindi for class 10 16
  • essay in hindi for class 9 16
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my childhood essay in hindi

मेरा बचपन पर निबंध- Mera Bachpan Essay in Hindi Language

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मेरा बचपन पर निबंध- Mera Bachpan Essay in Hindi Language

( Essay-1 ) Hindi Essay on Mera Bachpan ( 300 words )

बचपन हर व्यक्ति के जीवन का मौज मस्ती से भरपूर एक अहम हिस्सा होता है। मेरा बचपन बहुत ही सुहावना रहा और मेरा बचपन गाँव में ही बीता है। मैं बचपन में बहुत ही नटखट स्वभाव का होता था और घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलार भी खुब मिलता था। बचपन में सुबह सुबह उठकर दोस्तों के साथ खेत की तरफ जाना ट्यूबवैल के नीचे नहाना और हँसते दौड़ते घर वापिस आना। कुछ इस तरह हमारे दिन की शुरूआत होती थी।

मुझे बचपन से ही मलाई बहुत पसंद है तो बचपन में रोज सुबह मलाई के साथ पराठे खाने का अलग ही मजा था। मेरा स्कूल भी घर से थोड़ी ही दूरी पर था तो हम सब दोस्त पैदल स्कूल जाते थे और स्कूल में भी शोर मचाकर बहुत मस्ती करते थे।

दोपहर को घर आते ही माँ के हाथ की ठंडी लस्सी मिलती थी और फिर से हसीं मजाक शुरू हो जाता था। कभी कभी ज्यादा शरारते करने पर माँ बाबू जी से डाँट पढ़ती थी लेकिन दादी माँ उनकी डाँट से मुझे बचा लेती थी और अपने आँचल में छुपा लेती थी। दादा जी रोज शाम को हमें सैर के लिए ले जाते थे और हम सब बच्चों को खूब हँसाते थे। हम सब बच्चे गिल्ली डंडा, क्रिकेट, दौड़, रस्सी कूदना आदि खेल खेलते थे। रात को थकने के बाद दादी माँ से कहानी सुनकर सोने में बहुत ही आनंद आता था। उनकी कहानी मनोरंजन के साथ साथ सीख भी देती थी। गाँव में बिजली कम आने के कारण गर्मियों में हम सब लोग छत पर ही सोते थे और प्राकृतिक हवा का आनंद लेते थे।

मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय रहा है जिसमें न कोई भय न कोई फिक्र थी। हमेशा अपनी मर्जी चलती थी। काश! मैं एक बार फिर सो बच्चा बन सकता और अपना बचपन दोबारा जी सकता।

( Essay-2 ) Mera Bachpan Nibandh | Essay ( 500 words )

मनुष्य के जीवन में बचपन का समय सबसे अच्छा समय होता है। यह समय प्यार, सहानुभूति और देख-रेख का समय होता है, जो सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त और प्रसनन्ता से परिपूर्ण होता है । यह प्रसन्नता आयु में वृद्धि के साथ-साथ कम होती चली जाती है। मुझे अभी भी बचपन के दिन याद हैं और कभी-कभी मैं सोचता हूं कि काश ये दिन फिर लौट आयें !

जब मैं छोटा था, उस समय अपने माता-पिता, भाई बहन के साथ देहरादून के पास एक ग्राम में रहता था, जहाँ चारों ओर प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा पड़ा था। दूर-दूर तक हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियाँ दिखाई पड़ती थी । चीड़ और देबदार के वृक्ष की पत्तियाँ दूर-दूर तक फैली हुई थीं। कहीं वृक्षों के पीछे से निकलती प्रातः कालीन सूर्य की किरणें मन प्रसन्न कर देती थीं। रात्रि में मसूरी का प्रकाश एक अत्यन्त मनोरम दृश्य उपस्थित करता था । ऐसे प्राकृ- तिक वातावरण में मैंने अपना बचपन व्यतीत किया !

मैं संयुक्त परिवार में सबसे छोटा बच्चा था सभी का लाड़ प्यार और दुलार मुझे मिला । वे सभी मेरी प्रसन्नता का ही अपनी प्रसन्ता मानते और मुझे प्रसन्न करने के लिए भाँति-भाँति के उपहार लाकर देते । हर दिन मेरा जन्म दिन होता । यदि केभी मैं बीमार पड़ जाता तो सभी मेरी देखभाल में सारी-सारी रात बैठे रहते ।

जब मैंने पाँच वर्ष की आयु प्राप्त की, मुझे ग्राम की प्राथमिक पाठशाला में भरती कराया गया । मेरी तो जान-पहचान का क्षेत्र बढ़ता गया । पहले मुझे केवल मेरे परिवार के लोग या पड़ोसी ही जानते थे, परन्तु अब मुझे विद्यालय के दूसरे बिद्यार्थी भी जानने लग गए । अब दूसरे बच्चों की मित्रता से मुझे आनन्द प्राप्त होने लगा । अब मेरी माँ ही मुझे अधिक प्यार देती थी। विद्यालय से लौटने पर वह मुझे दूध का गिलास देती और खाने के लिए नई- नई बस्तुए बनाकर देती ।

मैं जब और बड़ा हुआ। तब अपने माता-पिता, मित्रों और कक्षा के अध्यापकों के विषय में सोचने लगा । तब मुझे नई चिन्ता ने आ घेरा । गृह कार्य न करने पर अध्यापक का डर सताने लगा । घर से बाहर निकल जाने पर खेल-खेल में घर लौटने की सुध न रहती। इस पर कभी-कभी डांट भी खानी पड़ जाती । जब कभी कभी मेरी उद्दडता पर मुझे पिताजी और अध्यापकों से मार भी खानी पड़ जाती थी ।

यद्यपि मेरे माता-पिता पहले मुझे अनेक वस्तुएं लाकर देते थे, परन्तु अब मेरी समस्त इच्छाएँ वे पूरी नहीं कर पाते थे। जब कभी मैं अपने पिताजी से क्रिकेट की गेंद और बल्ले की माँग करता तो मुझे सुनने को मिलता, अब तुम बच्चे नहीं रह गये हो। जाओ अपनी पढ़ाई का ध्यान रखो । हाँ, मेरी माँ मेरा बड़ा ध्यान रखती थी। वह प्रायः मेरी आवश्यकताओं की पूर्ति करती रहती थी। वह मुझे प्रायः जेव खर्च भी पिताजी की अपेक्षा अधिक देती थी ।

प्राथमिक पाठशाला की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे देहरा- दून के एक छात्रावासमें भेज दिया गया। जहाँ से मैंने आगे पढ़ाई की। फिर मैं सरकारी नौकरी में आकर दूर-दूर स्थानों पर घूमता रहा । अब जब भी कभी में एकान्त में बैठता हूं तो मुझे बचपन के वे पुराने दिन याद हो आते हैं। मैं सोचता हूं कि काश, वे दिन फिर लौट पाते !

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मेरा बचपन पर निबंध | Essay on My Childhood in Hindi

संकेत बिंदु - (1) मानव जीवन का स्वर्णिम काल (2) मेरा गाँव और परिवार (3) बचपन की घटनाएँ (4) बचपन की शरारतें (5) बचपन की स्मृतियाँ। 

मानव जीवन का स्वर्णिम काल

बचपन! मानव-जीवन का स्वर्णिम काल। चिन्ता-रहित क्रीडाएँ, स्वच्छन्द एवं भयविहीन घूमना-फिरना। जो हाथ में आया, मुँह में दे दिया। अंगूठा चूसने में मधु का आनन्द और दूध के कुल्ले पर किलकारी भरने में उल्लास की अनुभूति, रोकर-मचलकर, बड़े-बड़े मोती आँखों से बहाकर जननी को बुलाना और स्नेहमयी जननी का भागकर आना एवं झाड़ पोंछकर हृदय से चिपका लेना और चुम्बनों की वर्षा करना मानो अनचाहे सुधा में स्नान। तभी तो सुभद्राकुमारी चौहान अपनी बिटिया को देखकर अपने बचपन का स्मरण करते हुए कहती हैं-

बीते हुए बचपन की यह, क्रीडापूर्ण वाटिका है। वही मचलना, वही किलकना, हँसती हुई नाटिका है।

संघर्षमय, अशांत, और श्रांत-क्लांत जीवन में पौत्र-पौत्री की शिशु-क्रीडाओं को देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया। सुभद्राकुमारी चौहान की भाँति शैशव का आह्वान करने लगा~ आ जा बचपन! एक बार फिर / दे-दे अपनी निर्मल शांति।

मेरा गाँव और परिवार

वर्तमान हरियाणा के एक छोटे-से गाँव सोनीपत में, जिसने औद्योगिक विकास के साथ-साथ तहसील से जिले का रूप ले लिया है, मेरा बचपन बीता। मेरा घर था, पाँच चार मकानों का घेर, जिसे 'महल' की संज्ञा दी गई थी और जो आज तक बरकरार है।

माता की अनेक सन्तानें काल का ग्रास बन चुकी थीं। अत: वे मेरा बहुत ध्यान रखती थों । घर में दो वर्ष बड़े अग्रज थे। पिताजी देश की राजधानी दिल्ली में नगर पालिका के कार्यालय में कार्य करते थे। बड़ी बहिन अपने घर-बार की हो गई थी। बाबा (दादा) हरद्वारीलाल गाँव के एकमात्र प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर थे।

बचपन की घटनाएँ

आँगन कच्चा था। वही पीली मिट्टी का आँगन मेरी क्रीडा-स्थली थी। एक बार अग्रज ने स्नेह से गोदी में लेने का प्रयास किया। उनके हाथ मारने की शैशवी-क्रीडाएँ हॉकी के किसी खिलाड़ी से कम न थीं। मैं चारपाई पर पड़ा रो रहा था। वे खुश हो रहे थे। समझ रहे थे, उनकी छेड़-छाड़ मुझे आह्लादित कर रही है। थोड़ा और जोर लगाया। वे मुझे संभाल न सके, मैं चारपाई से नीचे गिरा और चीख मारकर रो पड़ा। माता को निमन्त्रित करने का सहज और सरल उपाय यही था। माँ दौड़ी आई और पीली मिट्टी में सने मेरे शरीर को गोदी से चिपका लिया। भैया को डॉटा। पीट सकना उनके वश की बात नहीं थी। कारण, भैया भी शिशु थे और थे माता के हृदयांश।

बचपन की शरारतें

यद्यपि परिवार गरीब था, किन्तु दूध-घी की कमी न थी। माता ममता लुटाती थी। हम भोजन में अति कर जाते थे। परिणामतः पेट में अफारा और दूध उलट देना स्वभाव बन गया था। घर के टोटके औषधि का रूप लेते। ममतामयी माँ समीप बैठी टुकुर-टुकुर निहारती और अपने लाल के अच्छा होने की प्रतीक्षा करती हुई मन्नतें मनाती।

घुटनों से चलते समय महल का पीली मिट्टी का प्रांगण हमारी दौड़ का मैदान बना। अड़ोसी-पड़ोसी समवयस्क बच्चों के मध्य एक-दूसरे को हाथ मारने में आनन्द आता था। एक बार हमने सामने वाली ताई के बच्चे को वह हाथ मारा कि वह चिल्ला उठा। ताई दौड़ी आई। उसको गोद में उठा लिया और क्रोध में मुझे एक चपत रसीद कर दी। साथ ही 'तारा को छोरा बड्डा तेज सै' का 'प्रमाण-पत्र' दे दिया। यह सुनकर हमने भी रोना शुरू कर दिया। उधर माँ ताई की करतूत देख रही थी। बस फिर क्या था? माँ ने हमें गोद में लिया और लगी ताई से झगड़ने। वाग्-युद्ध का दृश्य था वह।

कुछ बड़े हुए। चलना प्रारम्भ किया तो बच्चों से यारी-दोस्ती बढ़ी। परिचय का क्षेत्र घर से बाहर निकल कर गली तक पहुँच गया। बाबा के डेढ़ फुट ऊँचे चबूतरे पर चढ़ना हिमालय पर चढ़ने से कम न था। चढ़ने की कोशिश में गिरते और रो-रोकर पुनः पुनः चढ़ने का प्रयास करते थे। प्रसाद जी के शब्दों में-

स्निग्ध संकेतों में सुकुमार, बिछल, चला थक जाता तन हार। छिड़कता अपना गीलापन, उसी रस में तिरता जीवन।

गली की बिल्ली और कुत्ते हमारे लिए शेर और चीते थे। गली का कुत्ता यदि जीभ निकालकर हमारे पीछे चलने लगता तो हमारी घिग्घी बँध जाती और नन्हें कदमों की दौड़ से घर में घुस जाते।

गाँव में बन्दर बहुत थे। एक दिन गली में चहल-कदमी कर रहा था कि अचानक तीन-चार बन्दर आ गए। लगे मुझे घूरने, घर-घूर कर धमकी देने।आँखों ने यह दृश्य देखा, तो मुँह से चीख निकली, हृदय-गति तेज हो गई, नयनों ने नीर बरसाना शुरू कर दिया, हाथ-पैर काँपने लगे। चीख सुन पड़ोसिन आई और उसने बन्दरों को डंडे दिखाकर भगा दिया। मेरी जान में जान आई।

बचपन की स्मृतियाँ

बचपन कितना भोला और साधारण से मानवीय ज्ञान से अनभिज्ञ होता है, इसका एक उदाहरण मुझे स्मरण है। एक रात मैं और बड़े भाई एक ही खटोले पर सो रहे थे। ब्राह्ममुहूर्त का समय था। माँ मृत शिशु को गोदी में लिए रो रही थी। रोने की सस्वर वाणी किसी कवि की पीड़ा से कम न थी। ' मैं तुझे दिल्ली ले जाती, पढ़ाती-लिखाती ', मृतक पुत्र को लिए माँ न जाने क्या-क्या कल्पना करती हुई रुदन कर रही थी। प्रातः वह रुदन समाप्त हुआ। घर में क्या हुआ, क्यों हुआ? मेरी समझ से बाहर था। 

शैशव बीता। हम सोनीपत छोड़कर दिल्ली आ गए। बचपन आज भी सोनीपत के 'महल' की चार-दीवारी में किल्लोल कर रहा होगा। बचपन की स्मृति आने पर मेरा मन प्रसाद जी के शब्दों में अपने आपसे पूछता है-

आज भी है क्या नित्य किशोर/ उसी क्रीडा में भाव-विभोर सरलता का वह अपनापन / आज भी है क्या है मेरा धन!

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मेरा बचपन निबंध - Mera Bachpan Essay in Hindi

November 19, 2023 (1y ago)

मेरा बचपन निबंध में बचपन के यादगार किस्सों, खेलकूद, मौज-मस्ती और परिवार के साथ बिताए पलों का वर्णन है। बचपन की मीठी यादें और सबक याद दिलाने वाला निबंध।

मेरा बचपन निबंध - बचपन के यादगार किस्से और अनुभव

बचपन के दिन कितने प्यारे और बेबाक होते हैं! बचपन हम सभी के जीवन का वो पड़ाव होता है जिसे हम जीवन भर याद रखते हैं। मेरा बचपन भी बहुत ही खूबसूरत था।

मैं एक संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी। हम पांच भाई-बहन थे। बड़े भाई-बहन के साथ खेलना, मस्ती करना और उनसे नए खेल सीखना बचपन का एक बहुत बड़ा आनंद था।

Mera Bachpan Essay in Hindi

बचपन के कुछ यादगार किस्से.

मुझे बचपन में अपने दादा-दादी के साथ गांव जाना बहुत अच्छा लगता था। वहां खूब दौड़ाकूद, पेड़ों पर चढ़ना-उतरना और खेतों में घूमना मजेदार लगता था।

एक बार दादा जी ने मुझे भैंस पर सवारी कराई थी। भैंस तेज़ दौड़ी और मैं उसकी पीठ से गिर पड़ी। मेरे हाथ-पैर में खरोंच आ गई लेकिन दादा जी ने मुझे समझाया कि हिम्मत ना हारनी चाहिए। उन्होंने मेरे जख्म पर मलहम लगा कर बांध दिया। दादा-दादी का प्यार और देखभाल याद आती है।

बचपन के खेल और मौज-मस्ती

बचपन में मैं और मेरे दोस्त पार्क में जाकर खूब खेला करते थे - दो-दो पांच, क्रिकेट, रस्सा कूद आदि। घर पर भी हम लुढ़क-पूजा, अंधमुँद आदि खेलते रहते थे।

जब भी मेरा जन्मदिन आता तो मम्मी मेरे लिए मेरा पसंदीदा चॉकलेट केक बनातीं। सारे दोस्त और रिश्तेदार आते। उनके साथ केक काटना, उपहार खोलना और खेलना बेहद मजेदार होता था।

बचपन से सीखा जीवन पाठ

बचपन ने मुझे काफी कुछ सिखाया - दूसरों का ध्यान रखना, सहयोग करना, कठिन समय में हिम्मत ना हारना और खुशियों को जी भर के जीना। बड़ों का सम्मान करना और अनुशासन में रहना भी बचपन में ही सीखा।

बचपन के पल इतने मीठे होते हैं कि जीवन भर चेहरे पर मुस्कान ला देते हैं। मैं अपने बचपन के हर क्षण के लिए सदैव आभारी रहूँगा।

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मेरा बचपन पर निबंध

बचपन हमारे पूरे जीवन का वह खूबसूरत पल होता है, जिसको हम कभी जिंदगी भर नहीं भूल सकते। हम यहां पर मेरा बचपन निबंध हिंदी मे (My Childhood Essay in Hindi) शेयर कर रहे है।

इस निबंध में मेरा बचपन के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

My-Childhood-Essay-in-Hindi-

बचपन का माहौल बहुत ही सुनहरा होता है। बचपन के माहौल में जीना हर कोई व्यक्ति पसंद करता है। हर इंसान ने अपने जीवन में बचपन के पल को कैसे व्यतीत किया है, वह उसे पूरी जिंदगी याद रहता है।

यह भी पढ़े:   हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध

मेरा बचपन पर निबंध (My Childhood Essay in Hindi)

मेरा बचपन पर निबंध 250 शब्द (mera bachpan essay in hindi).

हमारे बचपन में जब हम छोटे थे, तब यह सपने देखते थे कि हम जल्दी बड़े कब होंगे क्योंकि तब हमें बड़ों की लाइफ बहुत अच्छी लगती थी। उसके बाद जब बड़े हो गए, तब यह सोचने लगे कि हमारा बचपन ही कितना खूबसूरत हुआ करता था।

असल में सही मायनों में अगर देखा जाए तो बचपन वह खूबसूरत पल होता है, जो हम जिंदगी में कभी नहीं भुला सकते है। बचपन में खेल कूद, पढ़ाई और मस्ती भरे दिन हुआ करते थे। बचपन में बच्चे बिना किसी तनाव के अपने बचपन को जी सकते हैं। उनके पास कोई समस्या नहीं होती है।

बचपन में सभी के साथ ऐसी घटनाएं घटित होती है, जिनको कभी भूलाया नहीं जाता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जिसके कारण हमारे माता-पिता हमारे बचपन को हमेशा याद दिलाते है कि किस तरह से हमने धीरे-धीरे चलना सीखा, फिर वापस गिरकर उठना सीखा और इसके साथ ही बड़े होकर दौड़ लगाना सीखा।

बचपन में जब हम पिताजी के कंधों पर बैठकर मेले देखने जाए करते थे तब बहुत मजा आता था। बस उन पलों को याद करके अपने आप से हंसी आती है क्योंकि बचपन के दिन बहुत ही सुनहरी यादों की तरह हम सबके जीवन में आते हैं।

मेरे बचपन में पिता के द्वारा डांटने पर हम अपनी मां के आंचल में जाकर छुप जाया करते थे। मां की लोरियां को सुनकर मुझे अच्छी नींद आती थी। वह समय बहुत ही खुशी देने वाला होता था।

आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में अच्छी नींद भी नसीब नहीं होती, जो बचपन में मां की लोरियां सुनकर आती थी। बचपन की वो खूबसूरत यादें हुआ करती है, उनमें पता ही नहीं चलता था कि कब दिन हो जाता और कब रात हो जाती।

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मेरा बचपन पर निबंध (1200 शब्द)

बच्चों का जीवन बहुत अच्छा होता है क्योंकि हमारे बचपन में बहुत चंचलता, थोड़ी शरारत और बहुत सी मिठास भरी होती है। हर कोई आदमी अपने बचपन को वापस से जीने की सोचता है।

बचपन में तोतली भाषा मे बोलना, धीरे-धीरे लड़खड़ा के चलना, गिरना, पढ़ना और भी हमारी कुछ मीठी मीठी शरारत सब की बहुत याद आती है।

अपनी दादी से कहानियां सुनना और अपने मां-बाप से छूपके दादा जी के साथ बाजार में जाकर चुपके से चीजें खरीद के खाना, सब बातें बहुत याद आती है। बचपन खूबसूरत सपने की तरह है। कब हम बड़े हो जाते है हमें पता ही नहीं चलता।

एक कवि की शायरी पर बचपन की दास्तान

एक बहुत बड़े कवि सुदर्शन फाकिर ने बचपन की यादों पर एक शायरी को लिखा। उसने कुछ लाइनों में हमारे बचपन की यादे झलकती हैं कि किस तरह हम देश दुनिया के झगड़ों से दूर बच्चे अपने बचपन में किस प्रकार से मगन हो जाते हैं।

इस शायरी में जो लेखक है, वह यही कामना करता है कि बच्चों के बचपन के वह दिन वापस से लौट आए। इसके लिए उनको सारी दौलत और शोहरत को ही क्यों ना वापस देना पड़े। वह सब कुछ दे देंगे पर उनका बचपन उनको उन्हें लौटा दे। शायर कि वह पंक्तियां –

”चाहे दौलत भी ले लो, चाहे शोहरत भी ले लो, चाहे छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो मेरा वह बचपन, वह कागज की कश्ती और वो बारिश का पानी।”

कहने को यह दो पंक्तियां हैं लेकिन इनमें हमारे बचपन का बहुत बड़ा रहस्य सा छुपा है।

मेरे बचपन की कुछ खास यादें

मेरा बचपन मुझे बहुत अधिक प्रिय है क्योंकि मैं अपने घर में सबसे छोटा होने के कारण मुझे सभी लोगों का अधिक प्यार मिलता था। मैं घर में नटखट और शरारती हुआ करता था और सभी को मैं बहुत परेशान करता था।

लेकिन सभी मुझसे बहुत प्यार करते थे। इस कारण मेरी सभी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते थे। मेरे बचपन में मैं कभी अपनी दादी का चश्मा छुपा दिया करता, कभी दादा जी की धार्मिक किताबों को छुपा देता था। घर के सभी सदस्यों को किसी न किसी रूप से में बहुत परेशान किया करता था।

लेकिन छोटा था इसीलिए सभी लोग मुझे कुछ नहीं कहते थे। अब जब बड़ा हो गया हूं, तो वो सब बातें मुझे बहुत याद आती है। मैं किसी चीज से भी नहीं डरता था, बस स्कूल जाने के नाम पर मुझे बहुत डर लगता था।

जब मैं कोई भी शरारत करता तो घरवाले मुझे स्कूल में टीचर के पास भेजने की बात कहकर डांट दे देते, इसीलिए मैं टीचर्स की वजह से बहुत डर जाता था और इस प्रकार मैंने धीरे-धीरे घर के सभी लोगों को परेशान करना छोड़ दिया।

मेरे स्कूल के कुछ मीठी यादें

गांव में हमारा स्कूल मेरे घर से बहुत दूरी पर हुआ करता था। स्कूल जाने के लिए हम सभी दोस्त आपस में एक साथ मिलकर जाया करते थे।

स्कूल बहुत दूरी पर था तो रास्ते में हम और मस्ती करते हुए जाते थे, सड़क पर बहुत शोर मचाते हुए और बहुत मस्ती करते हुए जाते थे। उसके बाद हम स्कूल जाते हैं। स्कूल में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली -डंडा, छुपन-छुपाई, दौड़ लगाना और भी बहुत प्रकार के खेल हुआ करते थे।

इन सभी में पूरा टाइम कब निकल जाता था, हमें पता ही नहीं चलता था। स्कूल जाने पर भी हम ज्यादा मस्ती करते थे। क्योंकि स्कूल में सभी दोस्त मिल जाए करते थे।

मेरी क्लास में जो मेरे कक्षा टीचर है, वो मुझे बहुत अच्छे लगते थे। क्योंकि वह मुझे बहुत अच्छे से पढ़ाई करवा देते और किसी भी चीज में कोई परेशानी होने पर वह मुझे वापस से समझा देते थे।

मेरे बचपन का प्रिय खेल

मुझे बचपन में छोटे-छोटे जानवरों से बहुत लगाव होता था। उनमें सबसे प्रिय कुत्तों के बच्चे हुआ करते थे। उन छोटे पिल्लों के साथ मैं बहुत खेला करता था, साथ ही मुझे मिट्टी के खिलौने बनाकर उनसे खेलना भी बहुत पसंद था।

इन खेलों की वजह से मुझे घर में भी बहुत डांट पड़ती थी, लेकिन मैं क्या करूँ मुझे ये खेल बहुत ज्यादा अच्छे लगते थे। इनको मैं अकेले ही बिना किसी के साथ ही खेल लिया करता था।

वो बचपन के शरारत भरे दिन

बचपन में हम गांव में खेतों में चले जाया करते थे। वहां पर हम भैंस के ऊपर बैठकर बहुत मस्ती करते हैं, कभी बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते तो कभी कुत्तों की पूछ को खींचते और घर में जो गाय थी, उसके बछड़े को खोल देते हैं, जिससे वह बछड़ा गाय का दूध पी जाता था।

इस तरह से बचपन में बहुत मस्ती भरे दिन हुआ करते थे। अपने दोस्तों के साथ बाहर मिट्टी में खूब खेलते, जिसके कारण हमारे कपड़े बहुत गंदे हो जाते इससे हमको अपनी मम्मी की बहुत डांट सुननी पड़ती थी।

क्योंकि कपड़ों के साथ-साथ हमारी चकले भी पहचान में नहीं आती थी, बहुत गंदी हो जाती थी। इस वजह से हमको घर वालों की सबसे ज्यादा मम्मी की डांट सुननी पड़ती थी।

मेरे बचपन के कुछ फेवरेट दोस्त

दोस्ती का रिश्ता एक वह खूबसूरत रिश्ता होता है, जो खून के रिश्ते से भी बढ़कर होता है। यदि किसी को सच्चा दोस्त मिल जाए तो उससे बड़ा कोई भाग्यशाली व्यक्ति नहीं होता।

मैं भी बहुत भाग्यशाली हूं क्योंकि बचपन में जिस लड़के के साथ मेरी गहरी दोस्ती हो गई थी, उसका नाम पवन है। पवन के साथ मेरी दोस्ती कक्षा दो से हुई थी।

वह बहुत ही प्यारा और सीधा सा बच्चा हुआ करता था। हम दोनों मित्र एक साथ एक ही बेंच पर बैठते, अपना लंच शेयर करते तथा दोनों को पढ़ाई में किसी भी प्रकार के परेशानी होती तो हम आपस में एक दूसरे की समस्या को सुलझा लेते थे पढ़ाई से संबंधित।

एक बार मेरा एक्सीडेंट हो गया था। उस समय मेरे दोस्त ने मेरी बहुत मदद की। वो कहते हैं ना कि दोस्ती की सही पहचान मुसीबत में ही की जाती है तो मेरे दोस्त ने भी मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था तो मेरी बहुत मदद की थी। मैं उसकी दोस्ती को कभी नहीं भूल सकता।

मेरा बचपन बहुत ही खूबसूरत यादों के साथ में गुजरा मैं उसको कभी भी नहीं भूल सकता। बचपन का जो समय होता है, सभी लोगों के लिए बहुत ही यादगार और सुनहरा होता है। खूब कभी मिली बुलाए भुला जा सकता है।

सबका मन करता है कि काश मैं फिर से बचाव बन जाऊं और वापस अपने बचपन को जी लूँ। पर बचपन तो चला जाता है, रह जाती है तो सिर्फ यादें।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख मेरा बचपन निबंध (My Childhood Essay in Hindi) पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरुर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar

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मेरे बचपन पर निबंध

दोस्तों, हमारे जीवन की पीढ़ी में बचपन ऐसा समय होता है जिसका आनंद हर कोई लेता है। लेकिन जब हम बच्चे होते हैं तो हमारा मन करता है कि हम बढ़े हो जाएं और जब हम बढ़े हो जाते हैं तो हमारा मन करता है कि हम फिर अपने बचपन में चले जाएं, क्योंकि बचपन में आनंद ही होता है और चिंता की कोई एंट्री नहीं होती।

अतः आज हम आपको मेरा बचपन विषय पर निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके माध्यम से मैं अपने बचपन के किस्से आपको बताऊंगी। आप इस निबंध के प्रारूप के अनुसार अपने बचपन का भी एक निबंध लिख सकते हैं।

तो चलिए जानते हैं, मेरा बचपन विषय पर निबंध……

बचपन हर व्यक्ति के जीवन का मौज मस्ती से भरपूर एक अहम हिस्सा होता है। यह एक ऐसा समय होता है जब हर बच्चा टेंशन फ्री और आनंद से भरा रहता है। बचपन में हर किसी का मन बेहद कोमल और चंचलता से भरा रहता है। बचपन में आप सभी का प्यार और दुलार प्राप्त करते हैं। इसलिए तो बचपन सबसे प्यारा होता है।

मैं आपको अगर अपने बचपन के बारे में बताऊं तो मेरा बचपन बहुत ही सुहावना रहा और मेरा बचपन गाँव में ही बीता है। मैं बचपन में बहुत ही नटखट स्वभाव का होता था और घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलार भी खुब मिलता था। बचपन में सुबह सुबह खेतों की ठंडी हवा का आनंद लेना, बगीचे के आम और अन्य फलों को तोड़कर खाना और शाम को अपनी सहेलियों के साथ मेला घूमना कुछ इस तरह से बचपन के दिन हंसते खेलते व्यतीत हुआ करते थे।

मेरे बचपन का किस्सा

मेरे बचपन में मैंने एक बार स्कूल जाने से मना कर दिया था। मेरे घर के सभी लोग मुझे स्कूल ले जाने के लिए मना रहे थे। पापा ने मुझे डांट लगाई कि मुझे स्कूल जाना चाहिए। मेरे भैया ने भी मुझे बहुत डांटा कि मैं स्कूल जाऊं। लेकिन मेरा स्कूल जाने का बिल्कुल मन नहीं था। मेरी मम्मी ने मुझे स्कूल पापा के साथ भेज दिया। लेकिन मैं स्कूल में भी बहुत रोने लगी। पापा मुझे स्कूल से वापस लेकर आ गए लेकिन वो मुझसे बहुत गुस्सा हो गए। मेरी मम्मी ने मुझे बहुत समझाया फिर मैं अगले दिन से रोजाना स्कूल जाने लगी।

मेरे बचपन का प्रिय खेल

मुझे बचपन में क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था। स्कूल से वापस आने के बाद में अक्सर गलियों में अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला करती थी। इतना ही नहीं मुझे छोटे जानवरों से भी बेहद लगाव था। इसलिए स्कूल से वापस आने के बाद में अपनी गली मोहल्ले के कुत्ते के बच्चों को खिलाया करती थी। मुझे बचपन में सिपोलिया और लोहा लक्कड़ जैसे खेल खेलना भी बहुत पसंद था।

तो कुछ इस तरह मेरा बचपन बीता.. दादी नानी के सुनहरी कहानियों के साथ और किस्सों के साथ मेरी रात हो जाती थी और दिन स्कूल में और स्कूल से आकर खेल खिलौना में बीत जाता था। दोस्तों में आपस में बहुत प्यार हुआ करता था और मेरे परिवार वाले भी मुझे बचपन में बेहद प्यार किया करते थे। यूं ही बचपन को बेहद अनमोल तोहफा नहीं कहा जाता है। यह जीवन की वह खड़ी है जिसमें आपको परिवार की छांव में रहकर मौज मस्ती करने का मौका मिलता है।

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My Childhood summary in hindi

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By विकास सिंह

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Short summary of My Childhood in hindi

एपीजे अब्दुल कलाम एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुए थे जो मध्यम वर्ग के थे। इसके अलावा, उसके तीन भाई थे। इसके अलावा, कलाम की एक बहन भी थी। इसके अलावा, उनके पिता और माँ दोनों अच्छे स्वभाव के थे। इसके अलावा, कलाम का बचपन का घर पैतृक था।

एपीजे अब्दुल कलाम के पिता ने एक ऐसा जीवन जिया, जिसे कोई भी बहुत सरल कह सकता है। फिर भी, उनके पिता ने अपने बच्चों के लिए सभी आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराईं। इसके अलावा, उनके माता-पिता के पास कोई शिक्षा नहीं थी और वे अमीर भी नहीं थे। इसके अलावा, कई बाहरी लोग हर दिन परिवार के साथ खाना खाते हैं। साथ ही, कलाम में अपने माता-पिता के कारण आत्म-अनुशासन और ईमानदारी के गुण थे।

कलाम का परिवार धर्मनिरपेक्ष था। उनके परिवार ने सभी धर्मों को बराबर सम्मान दिया। इसके अलावा, हिंदू त्योहारों में उनके परिवार की भागीदारी थी। इसके अलावा, कलाम ने अपनी दादी और मां से पैगंबर और रामायण की कहानियां सुनीं। यह सब उनके परिवार में मौजूद धर्मनिरपेक्षता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

कलाम के बचपन में दोस्ती प्रभावशाली थी। इसके अलावा, उसके तीन दोस्त थे। इसके अलावा, उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि अलग थी। इसके अलावा, उन दोस्तों के बीच भेदभाव की भावनाओं का कोई निशान नहीं था। कलाम समेत ये सभी दोस्त अलग-अलग पेशों में चले गए।

5 वीं कक्षा में, एक नया शिक्षक कलाम की कक्षा में आया। क्लास में कलाम टोपी पहने हुए थे। इस टोपी ने निश्चित रूप से कलाम को एक अलग मुस्लिम पहचान दी। इसके अलावा, कलाम हमेशा हिंदू धर्मगुरु रामानंद के पास बैठे थे। यह कुछ ऐसा था जिसे नया शिक्षक बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। नतीजतन, कलाम को पीठ के बल बैठना पड़ा। इस घटना के बाद दोनों दोस्तों को बहुत दुःख हुआ और यह बात उन्होंने अपने माता-पिता को बताई।

इसके अलावा, रामानंद के पिता ने शिक्षक से मिलकर उन्हें सूचित किया कि वे सामाजिक असमानता और सांप्रदायिक घृणा न फैलाएं। उन्होंने मांग की कि माफी जरूर आनी चाहिए। इसके अलावा, इनकार के मामले में, शिक्षक को छोड़ना होगा। नतीजतन, शिक्षक की प्रकृति में सुधार हुआ और उससे माफी मांगी गई।

एक अवसर पर, अब्दुल के एक विज्ञान शिक्षक ने उन्हें अपने घर खाने पर आने के लिए कहा। हालाँकि, इस विज्ञान शिक्षक की पत्नी धार्मिक अलगाव में विश्वास के कारण कलाम की सेवा करने के लिए सहमत नहीं थी। नतीजतन, विज्ञान शिक्षक ने कलाम को भोजन परोसने का निर्णय लिया। इसके अलावा, शिक्षक खुद कलाम के पास बैठकर खाना खाते थे। विज्ञान शिक्षक की पत्नी दरवाजे के पीछे यह सब देख रही थी। विज्ञान शिक्षक ने कलाम को अगले सप्ताह के अंत में भोजन का दूसरा निमंत्रण दिया। इस बार, पत्नी ने अपने हाथों से सेवा की, लेकिन रसोई के अंदर से।

कलाम की परवरिश तब समाप्त हुई जब उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद आगे के अध्ययन के लिए रामनाथपुरम जाने की अनुमति मिली। उनके पिता और माँ निश्चित रूप से प्यार करते थे। हालाँकि, इस प्यार का मतलब यह नहीं था कि उन्होंने कलाम पर अपने फैसले के लिए मजबूर किया।

रामेश्वरम में एक मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में कलाम का बम था। हालाँकि उनके तीन भाई और एक बहन थी, लेकिन उनका भावनात्मक रूप से और भावनात्मक रूप से भी सुरक्षित बचपन था। उनके माता-पिता, जैनुलबेडेडन और आशियम्मा, अपने सीमित साधनों के बावजूद, बहुत उदार लोग थे और कलाम को अपने माता-पिता से ईमानदारी, आत्म-अनुशासन, अच्छाई और दया के मूल्य विरासत में मिले। हालांकि कलाम एक बड़े परिवार से आते थे, लेकिन उनकी रसोई में उनके परिवार के सभी सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक बाहरी लोगों को खाना दिया जाता था।

वे अपने पैतृक घर, रामेश्वरम में मस्जिद स्ट्रीट पर एक बहुत बड़े पक्के घर में रहते थे। हालाँकि उनके पास कोई सुख-सुविधा और विलासिता नहीं थी, लेकिन कलाम के पिता ने यह सुनिश्चित किया कि परिवार को भोजन, चिकित्सा और कपड़े जैसी सभी आवश्यकताएं प्रदान की गई थीं।

1939 में, कलाम केवल 8 साल के थे, जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। बाजार में इमली के बीजों की अचानक मांग थी। कलाम ने इन बीजों को इकट्ठा किया और उन्हें एना कमाने के लिए मस्जिद स्ट्रीट पर एक प्रोविजन शॉप को बेच दिया जो उनके जैसे छोटे लड़के के लिए एक बड़ी रकम थी। उनके बहनोई जल्लालुद्दीन उन्हें युद्ध के बारे में कहानियां सुनाते थे, जो कलाम दिनमणि की सुर्खियों में आने की कोशिश करते थे। रामेश्वरम एक अलग जगह थी और युद्ध के दौरान वहां के जीवन पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता था, लेकिन स्टेशन पर ट्रेन का ठहराव रोक दिया गया था। नतीजतन, अखबारों के बंडलों को अब चलने वाली गाड़ियों से फेंक दिया गया। कलाम के चचेरे भाई समसुद्दीन, जो रामेश्वरम में इन अखबारों को वितरित करते थे, ने बंडलों को पकड़ने के लिए कलाम की मदद मांगी। इस प्रकार, कलाम ने अपनी पहली मजदूरी अर्जित की जिसने उन्हें आत्मविश्वास और गर्व की भावना दी।

कलाम के तीन दोस्त- रमानाथ शास्त्री, अरविंदन और शिवप्रकाश-उनके बहुत करीब थे। हालाँकि लड़के अलग धार्मिक पृष्ठभूमि से आए थे – कलाम एक मुसलमान के रूप में जबकि अन्य तीन रूढ़िवादी हिंदू ब्राह्मण परिवारों से थे – फिर भी उनकी धार्मिक मतभेद और परवरिश उनकी दोस्ती के रास्ते में नहीं खड़ी थी। बाद में जीवन में, लड़कों ने विभिन्न व्यवसायों को अपनाया। रामानाधा शास्त्री ने अपने पिता से रामेश्वरम मंदिर के पुजारी का पद संभाला, अरविंदन ने तीर्थयात्रियों के आने-जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था का व्यवसाय संभाला और शिवप्रकाश दक्षिण रेलवे के लिए एक खानपान ठेकेदार बन गए।

कलाम का परिवार वार्षिक श्री सीता राम कल्याणम समारोह के दौरान एक विशेष मंच के साथ नावों की व्यवस्था करता था। मंच का उपयोग भगवान राम की मूर्तियों को मंदिर से विवाह स्थल irt राम तीर्थ ’तक ले जाने के लिए किया गया था, जो कलाम के घर के पास एक तालाब था। कलाम रामायण और पैगंबर के जीवन से लेकर उनकी माँ और दादी दोनों की कहानियों को सुनते हुए बड़े हुए हैं।

उनके बचपन की कुछ घटनाओं ने कलाम के युवा मन पर गहरी छाप छोड़ी। जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तो एक नया शिक्षक एक मुस्लिम लड़का, कलाम को पसंद नहीं करता था, जो एक ब्राह्मण रमणदा शास्त्री के बगल में बैठा था। उन्होंने मुसलमानों की सामाजिक रैंकिंग के अनुसार कलाम को पिछली सीट पर भेजा। अपने शिक्षक की इस हरकत पर कलाम और रमानाथ शास्त्री दोनों दुखी हुए। सैट्री रोया और इससे कलाम पर गहरा प्रभाव पड़ा। जब शास्त्री के पिता ने इस घटना के बारे में सुना, तो उन्होंने शिक्षक को तलब किया और उनसे कहा कि युवा मन में सामाजिक असमानता और सांप्रदायिक असहिष्णुता का जहर न फैलाएं। उन्होंने शिक्षक से कहा कि वे माफी मांगें या स्कूल छोड़ दें। शिक्षक को अपनी कार्रवाई पर पछतावा हुआ और उसे इस घटना से सुधार हुआ।

उनके बचपन की एक और यादगार घटना थी, जब कलाम के विज्ञान शिक्षक शिवसुब्रमण्य अय्यर ने उन्हें भोजन के लिए घर आमंत्रित किया था। शिवसुब्रमणिया अय्यर एक रूढ़िवादी ब्राह्मण थे और उनकी पत्नी बहुत रूढ़िवादी थी। वह एक मुस्लिम लड़के के अपने शुद्ध रूप से शुद्ध रसोई में भोजन करने के विचार से भयभीत थी। जब उसने कलाम की सेवा करने से इनकार कर दिया, तो अय्यर ने अपना कूल नहीं खोया और न केवल अपने हाथों से लड़के की सेवा की बल्कि उसके साथ बैठकर खाना खाया। उन्होंने कलाम को अगले सप्ताहांत भी आमंत्रित किया। अपने निमंत्रण को स्वीकार करने में कलाम की हिचकिचाहट को देखते हुए, अय्यर ने कहा कि अगर वह इस प्रणाली को बदलना चाहते हैं तो उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब कलाम दोबारा अय्यर के घर गए, तो उनकी पत्नी उन्हें अपनी रसोई में ले गई और उन्हें अपने हाथों से खाना परोसा।

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर भारत की स्वतंत्रता अधर में थी। गांधीजी की याचिका के बाद, पूरा देश अपने देश के निर्माण के प्रति आशान्वित था। कलाम ने अपने पिता से रामनाथपुरम में आगे जाकर अध्ययन करने की अनुमति मांगी। उनके पिता ने उन्हें स्वेच्छा से अनुमति दी क्योंकि वह चाहते थे कि उनका बेटा बढ़े। उन्होंने कलाम की माँ को यह कहकर भी मना लिया कि माता-पिता को अपने बच्चों पर अपने विचारों को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए क्योंकि उनकी अपनी सोच है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Childhood Essay for Students and Children

500+ words essay on childhood.

Childhood is the most fun and memorable time in anyone’s life. It’s the first stage of life which we enjoy in whatever way we like. Besides, this is the time that shapes up the future. The parents love and care for their children and the children to the same too. Moreover, it’s the golden period of life in which we can teach children everything.

Childhood Essay

Memories of Childhood

The memories of childhood ultimately become the life long memory which always brings a smile on our faces. Only the grownups know the real value of childhood because the children do not understand these things.

Moreover, Children’s have no worries, no stress, and they are free from the filth of worldly life. Also, when an individual collects memories of his/her childhood they give a delighted feeling.

Besides, bad memories haunt the person his entire life. Apart from this, as we grow we feel more attachment to our childhood and we want to get back those days but we can’t. That’s why many people say ‘time is neither a friend nor a foe’. Because the time which is gone can’t come back and neither do our childhood. It is a time which many poets and writer praises in their creations.

Importance of Childhood

For children, it has no importance but if you ask an adult it is very important. Moreover, it a time when the moral and social character of the children develop. In this stage of life, we can easily remodel the mindset of someone.

Also, it is very important to understand that the mindset of children can be easily altered in this time. So, we have to keep a close eye on our children.

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What Should You Do in Childhood?

In childhood, one should need to enjoy his/her life without any worry. It is a time in which one should have to take care of his diet, his health, and immunity. Besides, the children should be taught to be neat and clean, to eat, read, sleep, play, and to do exercise regularly and these things should be in the habits of the child.

Moreover, we should try to influence children to start productive habits such as reading, writing that should help them in later life. But the books they read and what they write should be carefully checked by the parents.

Care for Everyone

Children are like buds, they care for everyone equally without any discrimination. Also, they are of helpful nature and help everyone around them.

Moreover, they teach everyone the lesson of humanity that they have forgotten in this hectic lifestyle of this world. Besides, these children are the future of the country and if they do not grow properly then in future how can they help in the growth of the nation .

In conclusion, we can say that childhood is the time that makes our adulthood special. Also, children’s are like pottery vessels whom you can shape in any way you like. Besides, this their innocence and helpful nature gives everyone the message of humanity.

Most importantly, they learn by either making mistakes or seeing their elders.

FAQs about Childhood

Q.1 Why childhood is the best period of life? A.1 It is the best time of life because the memories that we make in our childhood always brings a smile on our face. Also, it is the time when the character of the child is shaped. Besides, it also is the best time to understand life and gain knowledge.

Q.2 What is the most important characteristics of a child? A.2 According to me, the most important characteristics of a child is his innocence and helpful nature.

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  • Childhood Memories Essay

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Essay on Childhood Memories

Memories are one of the most crucial things we can cherish throughout our lives. They build up our personality as all our knowledge and previous experiences are stored there. Memories can be both good and bad. There are memories either from long ago or from the recent past. In our critical times, we may get some refreshment by recalling our memories. We can run our lives smoothly with the help of these memories. Memories help us in many ways. We can rectify ourselves from past mistakes. Childhood memories are treasured by all of us. They make us smile even in our old age. 

Importance of Childhood Memory:

Childhood memories are very significant in our lives. We can recall the best times of our lives. Childhood memories build up our future and way of thinking. People with good childhood memories are happy people. On the other hand some bad childhood memories also affect the future of an individual. 

The things a person learns during childhood remain as important lessons and memories for life. It applies to things like family and society values, morals, learning the importance of friendships and being respectful to adults. Without learning proper manners, people can become reckless and take unnecessary risks in life. 

Childhood memories are also strongly related to good habits such as proper discipline and cultivating the proper attitude in life. These values, which are very important for success in adult life, cannot be learnt overnight at a later stage. 

A childhood memory definitely does not define anyone but they play a pivotal role in one’s life. It is not necessary that a person with good memories always lives a prosperous life while a person with bad memories always lives a hazardous life. Sometimes, ghastly childhood memories make a man stronger. 

Nevertheless, it can be said that the inner child is kept alive by childhood memories. There is always a child inside every person. It may come out all of a sudden at any stage in life. It may also be expressed every day in the little things that we enjoy doing. 

Our inner child is especially seen when we meet our  childhood friends. Regardless of how grown up we think we are, we go back to kids the moment we are with old friends. Memories also take up the bulk of our conversation when we meet old friends after many years. The trip down memory lane is bittersweet as we long for a time we will not get back but also cherish its joy. 

Some may be excited about seeing swings, some may act like a child when they see panipuri. The reason behind the facts is we are reminded by our childhood memories every time. The same happens when we enter the children’s play park and are reminded of our favourite rides. It is even more so when we ate ice cream or our favourite ice candy when we were 5 years old.  Hence, childhood memories play a very vital role in our lives. 

My Childhood Memories:

I was born and brought up in a very adorable family. I have grown up with my elder brother with whom I used to play a lot. I remember each and every game we used to play together. Every moment is very precious to me. In the afternoon, we used to play cricket in our nearby ground. The memories of playing in the ground together are mesmerising. 

Another beautiful thing I can remember is flying kites. It used to be one of the most exciting things of my childhood. Even the older members of the family participated with us. We used to fly kites on our terrace. The kite-flying programme would last for the entire day.

Another beautiful thing I can remember is my visit to the zoo with my family. We made one zoo visit every year. They used to be those very simple yet fun-filled family picnic moments. We would carry packed food from home that my mother used to cook. My elder brother would click several photographs of us. When I look at those pictures now, the memories come alive. Today, so many things have changed but my childhood memories are still fresh in my heart. It feels so refreshing to relive them again and again. My childhood memories are very close to my heart and make me smile on my difficult days.

Perhaps the time I remember very fondly was going to swimming classes. I have always loved playing in the water, and swimming in clear pools was always an exciting activity. Even though I loved the water, at first I could not swim as I was not aware of the basics of the sport. Slowly, as I learnt to kick and paddle, it became easier to swim in shallow water. The big test was swimming in deep water as it was a terrifying thought and simultaneously exciting. I still remember the day I decided to let go of my fears and dived into the deep end of the pool. The instant I jumped into the water, the fear was gone, and I swam like a fish to the other end of the pool. That day also taught me a valuable lesson about taking the first step in any daunting task. 

Conclusion: 

We should all cherish our childhood memories as they can always be our companion, our “bliss of solitude.” Simple things hold grave meaning when they are from their childhood days. The days were free of complexities and full of innocence. Hence, they are so close to heart.

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FAQs on Childhood Memories Essay

1. How to write a childhood memory essay?

The most important thing you will need to write this essay is about great childhood memories! You will have to look back in time and remember all the good and bad things that happened to you. As you get older, your memories will also change in their context as you change as a person. Like all essays, this should also have a steady narrative of the events from your childhood. You can choose to write only about the best memories you have or choose to write them as they occur. Some of the best things to write are topics such as your friends, your favourite games, and all the vacations you have been on and all the experiences you had in school.

2. How would you describe your childhood memories?

The older you get, the more the bits and pieces of your memory begin to fade or change. The best way to write about your childhood memories is to close your eyes and remember them. Then you have to start writing the events as they occurred without giving them context. Once the essay is written, the stories and events can be arranged as per the requirements of the essay. You can choose to describe your memories in any light you feel.

3. Why are childhood memories important?

Our childhood memories have a significant influence on who we are. People with mostly happy memories tend to be more relaxed with a positive outlook on life. People who have had traumatic memories tend to be more cautious and cynical in life. People can still change with positive or negative experiences in life. However, our childhood influences stay with us for the rest of our lives and can sometimes even come into conflict with the better choices we want to make. Therefore having childhood memories is a good reference to understanding ourselves and why we behave in certain ways.

4. What could be a common childhood memory for everyone?

Everybody remembers their “first-time” experiences in life. It could be things like the first day of school, the first time visiting a zoo, the first time taking a flight in an aeroplane, having a bad experience, etc.

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Hindi Diwas Essay: स्कूल में लिखने के लिए सबसे अच्छा है हिंदी दिवस का यह निबंध, बच्चों को जरूर पढ़ना चाहिए एकबार 

Hindi diwas short essay: बच्चों को विद्यालय के लिए हिंदी दिवस का निबंध लिखना हो या भाषण तैयार करना हो, यहां दिया लेख बच्चों के बेहद काम आएगा. .

Hindi Diwas Essay: स्कूल में लिखने के लिए सबसे अच्छा है हिंदी दिवस का यह निबंध, बच्चों को जरूर पढ़ना चाहिए एकबार 

Hindi Diwas 2024: हर साल 14 सितंबर के दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों समेत हिंदी भाषी कामकाजी क्षेत्रों में भी इस दिन को मनाया जाता है. हिंदी दिवस के मौके पर विद्यालयों में खासतौर से बच्चों के बीच तरह-तरह की प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं. बच्चों को हिंदी के लेख (Hindi Essay) लिखने के लिए कहा जाता है, कविताएं पढ़ी व सुनाई जाती हैं और हिंदी के महत्व पर बात होती है. ऐसे में यहां पढ़िए हिंदी दिवस का ऐसा निबंध जिसे बच्चे स्कूल में लिखने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. 

हिंदी दिवस का निबंध | Hindi Diwas Essay 

उत्तर भारत की प्रमुख बोली है हिंदी. बच्चा जब बोलना सीखता है तो उसके मुंह से हिंदी के शब्द निकलते हैं. लेकिन, बड़े होते-होते सामाजिक और औपचारिक रूप से इंग्लिश की जरूरत देखते हुए हिंदी से बच्चे दूर जाने लगते हैं. हिंदी के खोते हुए महत्व को बनाए रखने और इसकी जरूरत व हिंदी के विशालकाय इतिहास (History) व साहित्य पर प्रकाश डालने के लिए हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता है. इस दिन का मकसद हिंदी की प्रासंगिकता और महत्व को अखंडित बनाए रखना भी है. 

हिंदी को 14 सितंबर, 1949 में भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया था. हिंदी भाषा (Hindi Language) का साहित्य भी भारत की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालने वाला साबित हुआ. हिंदी ने कई महान कवि और उपन्यासकार भी दिए हैं जिनमें प्रेमचंद, भारतेंदू हरिश्चंद्र, सूरदास, तुलसीदास और मीराबाई के नाम शामिल हैं. हिंदी सिनेमा का भी एक बड़ा इतिहास रहा है. भारत में कला, साहित्य , संगीत और सिनेमा के क्षेत्र में हिंदीभाषी कलाकारों का बड़ा हाथ रहा है. 

आधुनिक युग में हिंदी की बात करें तो धीरे-धीरे हिंदी के स्तर को कमतर समझने की गलती की जा रही है. व्यक्ति अगर हिंदी बोलता है और उसे अंग्रेजी भाषा नहीं आती है तो उसे अक्सर ही बाकी लोगों की तुलना में कम समझा जाता है. ऐसे में हिंदी का महत्व (Importance) बनाए रखना जरूरी है. इस भाषा में आज भी अनेक गाने हैं, साहित्य है और फिल्म आदि हैं जिन्हें बढ़ावा देना जरूरी है जिससे हिंदी की लोकप्रियता बनी रहे. 

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Hindi Diwas Essay: स्कूल में लिखने के लिए सबसे अच्छा है हिंदी दिवस का यह निबंध, बच्चों को जरूर पढ़ना चाहिए एकबार 

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हिंदी दिवस 2024 पर बड़े और छोटे निबंध स्कूली छात्रों और बच्चों के लिए

हिंदी दिवस पर निबंध: हिंदी, भारत की मातृभाषा है। यह सबसे अधिक बोली जाने वाली और सम्मानित भाषाओं में से एक है। छात्रों को नीचे दिए गए निबंधों को पढ़कर इसके बारे में अधिक जानना चाहिए।   हिंदी दिवस 2024 पर 150 - 200 शब्दों का निबंध हिंदी में पाने के लिए इस लेख को पढ़ें।.

Atul Rawal

Hindi Diwas Par Nibandh: भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक हिंदी भाषा को बढ़ावा देने और उसका जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है। यह दिन राष्ट्रीय एकता और विविध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देता है।   इस अवसर पर, स्कूल, छात्रों को हिंदी और इसके महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए स्कूल प्राधिकारी और शिक्षक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। स्कूल छात्रों को अधिक जानकार और खुद को अभिव्यक्त करने में आत्मविश्वासी बनाने के लिए निबंध लेखन और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं।

यहां आपको हिंदी दिवस पर निबंधों के कुछ उदाहरण मिलेंगे। ये हिंदी दिवस निबंध हिंदी में हैं, जिसका उद्देश्य हिंदी दिवस 2024 के लिए आयोजित निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में छात्रों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करना है। हिंदी दिवस निबंध 150-200 शब्दों के हैं। छात्रों के लिए हिंदी दिवस पर निबंध देखें।

  • Hindi Diwas Essay in English
  • Hindi Diwas Speech For Students
  • Hindi Diwas Slogans

हिंदी दिवस पर 10 पंक्तियां (10 Lines on Hindi Diwas)

  • हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है।
  • यह भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी को बढ़ावा देने और मनाने के लिए है।
  • हिंदी भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • हिंदी भाषा का प्रयोग भारत में व्यापक रूप से किया जाता है।
  • हिंदी दिवस पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • इन कार्यक्रमों में कविता पाठ, नाटक, गायन आदि शामिल होते हैं।
  • हिंदी दिवस का उद्देश्य लोगों को हिंदी भाषा के महत्व के बारे में जागरूक करना है।
  • यह दिन हमें हिंदी भाषा का सम्मान करने और इसका उपयोग बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
  • हिंदी दिवस पर स्कूलों और कॉलेजों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • हिंदी भाषा का प्रयोग भारत के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (Essay on Hindi Diwas in Hindi)

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (150 शब्द).

अधिकांश भारतीयों के लिए हिंदी एक भाषा नहीं बल्कि एक भावना है। 14 सितंबर इसी भावना को मनाने के लिए समर्पित दिन है। भारतीय इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी को अपनाने की याद दिलाता है। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि यह ब्योहर राजेंद्र सिम्हा की जन्मतिथि है। वह एक प्रमुख हिंदी विद्वान थे और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे।

हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसकी लिपि देवनागरी है। यह भाषा विविध भाषाई और सांस्कृतिक परिदृश्य को एक साथ जोड़ने में एकीकृत भूमिका निभाती है। एक भाषा के रूप में हिंदी संचार के माध्यम के रूप में कार्य करती है जो लोगों और क्षेत्रों को जोड़ती है, राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देती है।

हिंदी दिवस 2024 के अवसर पर हमें अपनी भाषा का सम्मान करने और इसके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने की शपथ लेनी चाहिए। हिंदी दिवस का उत्सव भाषाई और सांस्कृतिक बहुलवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (200 शब्द)

हिंदी दिवस पर, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि भारत कई क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के साथ भाषाई विविधता का देश है। हिंदी दिवस राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में हिंदी को कायम रखते हुए इस विविधता को संरक्षित और सम्मान करने की आवश्यकता की याद दिलाता है। हिंदी दिवस सिर्फ एक भाषा का उत्सव नहीं बल्कि भारत की विविधता में एकता का भी उत्सव है।

14 सितंबर इसी भावना को मनाने के लिए समर्पित दिन है। भारतीय इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी को अपनाने की याद दिलाता है। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि यह ब्योहर राजेंद्र सिम्हा की जन्मतिथि है। वह एक प्रमुख हिंदी विद्वान थे और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे।

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (250 शब्द)

14 सितंबर इसी भावना को मनाने के लिए समर्पित दिन है। भारतीय इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी को अपनाने की याद दिलाता है। 26 जनवरी, 1950 को हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में अपनाया गया था, उसी दिन जब भारतीय संविधान लागू हुआ था। इस निर्णय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया, जिसने अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को भारत सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी, जिसका उपयोग एक संक्रमणकालीन अवधि के लिए किया जाना था।

14 सितंबर वह दिन है जब भारतीय हर साल हिंदी दिवस मनाते हैं। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि यह ब्योहर राजेंद्र सिम्हा की जन्मतिथि है। वह एक प्रमुख हिंदी विद्वान थे और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे।

हिंदी दिवस मनाने के और भी कई कारण हैं; आइए उन पर चर्चा करें। समय के साथ, आधुनिकीकरण के इस दौर में विकसित होने के साथ-साथ हमारा हिंदी का ज्ञान भी कम होता जा रहा है। इस प्रकार, हिंदी दिवस का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण हिंदी को एक भाषा के रूप में बढ़ावा देना है। दूसरा कारण राष्ट्र में भाषाई इकाइयों को बढ़ावा देना है। हिंदी दिवस का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत और बहुभाषावाद को बढ़ावा देना भी है। इससे हम अपनी राष्ट्रीय पहचान, शिक्षा और साक्षरता की रक्षा कर सकते हैं। दार्शनिकों और महान शिक्षाविदों ने कहा है कि जो राष्ट्र अपनी भाषा का सम्मान और पालन नहीं करता, उसका विनाश आसान होता है। इस प्रकार, हमें अपनी विरासत को जीवित रखना चाहिए और अपनी भावी पीढ़ियों और उनकी जड़ों के ज्ञान को मजबूत करने के लिए इसका पालन करना चाहिए। आइए मिलकर इस हिंदी दिवस को मनाएं। 

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (500 शब्द)

हिंदी दिवस, भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी को बढ़ावा देने और मनाने के लिए मनाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण अवसर है जो हिंदी भाषा के महत्व और योगदान को उजागर करता है।

हिंदी दिवस का पहली बार मनाया जाना 1949 में हुआ था। उस समय, भारत की संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। हिंदी दिवस को मनाने का निर्णय इस महत्वपूर्ण अवसर को चिह्नित करने के लिए लिया गया था।

हिंदी भाषा भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देश की विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों को जोड़ने में मदद करती है। हिंदी भाषा का व्यापक रूप से भारत में और दुनिया भर में उपयोग किया जाता है। यह शिक्षा, व्यापार, और सरकारी कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हिंदी दिवस के अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में कविता पाठ, नाटक, गायन, और भाषण शामिल होते हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य हिंदी भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को हिंदी भाषा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

हिंदी दिवस का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। हिंदी भाषा का उपयोग बढ़ने से देश की एकता और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने में मदद मिली है। हिंदी भाषा का व्यापक उपयोग भारत के विकास और प्रगति में भी योगदान देता है।

यदि आपको 500 शब्दों का हिंदी दिवस निबंध दिया गया है, तो शब्द संख्या बढ़ाने के लिए उपरोक्त हिंदी दिवस निबंध में अधिक जानकारी जोड़ें। अधिक जानकारी के लिए आप ऊपर दिए गए हिंदी दिवस भाषण को देख सकते हैं। अपने निबंध में हिंदी दिवस के नारे जोड़ने से यह और अधिक आकर्षक हो जाएगा।

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