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  • Hindi Grammar /

Sound Pollution in Hindi: जानिए ध्वनि प्रदूषण पर परीक्षाओं में पूछे जाने वाले निबंध

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  • Updated on  
  • नवम्बर 28, 2023

Sound Pollution In Hindi

ध्वनि प्रदूषण एक ऐसा प्रदूषण है जिनका हम प्रतिदिन सामना करते हैं। अन्य प्रदूषण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और अन्य प्रकार के प्रदुषण की तरह ही, ध्वनि प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो ध्वनि प्रदूषण लोगों के लिए एक खतरनाक स्वास्थ्य समस्या है। यह एक मुख्य विषय है जिसके बारे विद्यार्थियों का ध्यान केंद्रित करने के लिए कई बार उन्हें इस विषय पर निबंध तैयार करने के लिए दिया जाता है। इस ब्लॉग में Sound Pollution in Hindi के बारे में जानकारी दी गई है यदि आप भी इस बारे में जानना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

ध्वनि प्रदूषण क्या है, ध्वनि प्रदूषण पर निबंध सैंपल 1, ध्वनि प्रदूषण पर निबंध सैंपल 2, ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण, ध्वनि प्रदूषण का हानिकारक प्रभाव, ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय, ध्वनि प्रदूषण पर 10 लाइन्स.

ध्वनि प्रदूषण तब होता है जब वातावरण में बहुत अधिक शोर होता है। इससे लोगों को परेशानी होती है। ध्वनि प्रदूषण तेज़ ट्रैफ़िक, कंस्ट्रक्शन की ध्वनि, संगीत या अन्य तेज़ चीज़ों से से होता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों की नींद, ध्यान केंद्रित करना या शांत वातावरण का आनंद लेना कठिन हो सकता है। ध्वनि प्रदूषण चारों ओर वातावरण में बहुत अधिक शोर होता है, जिससे असुविधा होती है और हमारी शांति प्रभावित होती है।

जब बहुत तेज़ शोर होता तो उस जगह पर ध्वनि प्रदूषण होता है, और यह लोगों और जानवरों के लिए बुरा हो सकता है। हम टीवी, लोगों की बातचीत, कुत्तों के भौंकने और ट्रैफ़िक जैसी आवाज़ें सुनने के आदी हैं। लेकिन अगर हम हर समय बहुत तेज़ शोर के आसपास रहें, तो यह हमें बीमार कर सकता है।

तेज़ आवाज़ ज़्यादातर मशीनों, यातायात और तेज़ संगीत से आती है। यदि यह वास्तव में तेज़ है, तो यह लोगों में हृदय संबंधी समस्याओं और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। जानवरों के लिए बहुत अधिक शोर उनकी मृत्यु का कारण भी बन सकता है।  इसलिए, बहुत अधिक आवाज़ हमारे स्वास्थ्य और अन्य जीवित चीजों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है।

ध्वनि प्रदूषण का मतलब है कि बहुत अधिक तेज आवाज से वातावरण गंदा हो रहा है। ऐसा तब होता है जब हम तेज़ आवाज़ों के संपर्क में आते हैं जो हमारे स्वास्थ्य और अन्य जीवित चीजों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, 70 डेसिबल (डीबी) तक की ध्वनि हमारे लिए सामान्य है, लेकिन अगर यह 85 डीबी से अधिक हो, खासकर लंबे समय तक, तो यह हानिकारक हो सकती है। उदाहरण के लिए, एविएशन जैसी नौकरियों में काम करने वाले लोग, जहां बहुत तेज़ शोर होता है, नियमित रूप से 85 डीबी से अधिक के संपर्क में आ सकते हैं।

यह तेज़ आवाज़, अगर बहुत ज़्यादा हो, तो हमारे कानों को चोट पहुँचा सकती है और हमें बीमार कर सकती है। इसका असर सिर्फ हमारे स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता; यह हमारी दैनिक गतिविधियों में भी बाधा डालता है। इससे लोगों का नींद लेना, काम करना, दूसरों से बात करना कठिन हो जाता है और यह आस पास के पूरे वातावरण को खराब कर देता है। इस प्रकार का प्रदूषण शहरों में अधिक पाया जाता है।

हम शोर की इतनी अधिक आदत हो गई हैं कि अब शायद हमें इसमें अधिक समस्या नहीं होती है। ट्रैफ़िक के समय कारों और ट्रकों की आवाज़ें, और ट्रैफ़िक जाम में हॉर्न का शोर इसे और भी बदतर बना देता है। भले ही हम इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचते हों लेकिन ध्वनि प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब है, इसलिए इसे रोकने के लिए कदम उठाना महत्वपूर्ण है।

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध सैंपल 3

ध्वनि प्रदूषण Sound Pollution In Hindi निबंध सैंपल 3 नीचे दिया गया है-

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के अनुसार इससे यूरोप में 16,600 मौतें हुई है।

ध्वनि प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने से लंबे समय में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। शहरों में कार के हॉर्न, लाउडस्पीकर और ट्रैफ़िक जैसी कई परेशान करने वाली आवाजों से यह समस्या और भी अधिक बढ़ सकती हैं। सड़कों और इमारतों जैसी चीज़ों के निर्माण से भी शोर बढ़ता है और शहरों में ध्वनि प्रदूषण और भी तेज़ हो जाता है।

ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण नीचे दिए गए हैं-

  •   कारखाने और मशीनें: कारखानों में आधुनिक मशीनें बहुत शोर करती हैं। जनरेटर, कंप्रेसर और एग्ज़ॉस्ट पंखे जैसी चीज़ें भी शोर बढ़ाता हैं।
  • यातायात: सड़कों पर, विशेषकर शहरों में, कारें और ट्रक बहुत अधिक शोर पैदा करते हैं। सबसे तेज़ आवाज़ें हवाई जहाज़ और ट्रेनों से आती हैं।  ट्रैफिक जाम इसे और भी बदतर बना देता है।
  • निर्माण: खनन गतिविधियों के साथ-साथ पुल, सड़क और बांध जैसी चीज़ों के निर्माण से बहुत शोर होता है।
  • घर पर शोर: घर में रोज़मर्रा की चीज़ें, जैसे म्यूज़िक सिस्टम, लाउड स्पीकर, टीवी और मशीनें भी बहुत अधिक शोर पैदा कर सकती हैं।  यह उन शहरों में एक बड़ी समस्या है जहां बहुत सारे लोग एक साथ रहते हैं।
  • सैन्य गतिविधियाँ: टैंक और हवाई जहाज जैसी सैन्य मशीनें, शूटिंग के अभ्यास और विस्फोटों के साथ, बहुत अधिक शोर करती हैं जो हानिकारक हो सकती हैं।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: चक्रवात और यहां तक कि तूफान भी तेज आवाज पैदा कर सकते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है।
  • घटनाएँ और पार्टियाँ: शादी, पार्टी और संगीत समारोह जैसे समारोह, जहां तेज़ संगीत और आतिशबाजी होती है, भी ध्वनि प्रदूषण में योगदान करते हैं।  तेज़ संगीत वाले क्लब और रेस्तरां जैसी जगहों पर भी शोर अधिक होता है।

ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव नीचे दिए गए हैं-

  • उच्च रक्तचाप: लंबे समय तक बहुत तेज़ शोर उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है, जो हमारे दिल के लिए अच्छा नहीं है।
  • सुनने की क्षमता में कमी: यदि हम आसपास हैं तो बहुत तेज आवाजें सुनाई देती हैं, तो यह हमारे कानों को नुकसान पहुंचा सकती हैं और सुनने की स्थायी क्षति का कारण बन सकती हैं।
  • नींद संबंधी परेशानियां: शोर हमारी नींद में खलल डाल सकता है, जिससे पर्याप्त आराम मिलना मुश्किल हो जाता है।  इससे हमें दिन भर थकान और चिड़चिड़ापन महसूस हो सकता है।
  • हृदय संबंधी समस्याएं: तेज़ आवाज़ हमारे हृदय के लिए समस्याएँ भी पैदा कर सकती है, जैसे हमारा रक्तचाप बढ़ना और तनाव पैदा करना।  अगर किसी को पहले से ही दिल की समस्या है, तो इससे स्थिति और भी खराब हो सकती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य: लगातार तेज आवाज हमारे दिमाग पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, जिससे हम तनावग्रस्त और दुखी महसूस कर सकते हैं।  इससे हमारे कानों पर बहुत अधिक दबाव होता है, जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय बहुत सारे हैं यदि हम उनका नियमित रूप से पालन करें तो ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

  • यदि यह बहुत शोर है, तो आप अपने कानों की सुरक्षा के लिए इयरप्लग का उपयोग कर सकते हैं। संगीत और टीवी की आवाज़ ऐसे स्तर पर रखें जिससे दूसरों को परेशानी न हो। टीवी घरों में ध्वनि प्रदूषण का एक मुख्य कारण है।
  • जब मशीनों या उपकरणों का उपयोग न कर रहे हों, तो अनावश्यक शोर को कम करने के लिए उन्हें बंद कर दें।
  • हमारे आस पास के वातावरण में पेड़ ध्वनि को अवशोषित कर सकते हैं, इसलिए अधिक पेड़ लगाने से शोर को कम करने में मदद मिलती है।
  • जब संभव हो तो ऐसी मशीनें और उपकरण चुनें जो कम शोर करते हों। उन सभी स्थानों पर कम से कम शोर होने दें जहां इसके लिए मनाही हो विशेषकर शांत स्थानों पर या रात के दौरान।
  • अपने साथ साथ दूसरे लोगों की समास्याओं के बारे में सोचें और कोशिश करें कि तेज़ आवाज़ न करें, खासकर भीड़-भाड़ वाले इलाकों में।
  • बाहर से आने वाले शोर को रोकने के लिए घरों में दीवारें या पर्दे लगाएं जिससे घर के अंदर शोर प्रवेश ना कर पाएं। खासकर रिहायशी इलाकों में तेज आवाज वाली आतिशबाजी या पटाखों के इस्तेमाल से बचें।
  • हमारे पर्यावरण को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए शोर को कम करने के महत्व के बारे में लोगों को सिखाएं।

ध्वनि प्रदूषण लोगों के लिए एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि यह उन्हें बीमार कर सकता है।  इसके कई सारे कारण हैं, लेकिन हम इसे कम करने के लिए कुछ आसान चीजें कर सकते हैं।  यदि हम सही कदम उठाएँ तो यह हमारे और पर्यावरण दोनों के लिए अच्छा हो सकता है। इस बात को भूलें ना की हमारा मुख्य लक्ष्य ध्वनि प्रदूषण को कम करना और पर्यावरण को सभी के लिए बेहतर बनाना है।

ध्वनि प्रदूषण पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • वर्तमान समय में हम प्रकृति में पाए जाने वाले डेसीबल साउंड से अधिक शोर के बीच रह रहे हैं। 
  • ध्वनि प्रदूषण से सबसे अधिक खतरा बुजुर्गों और बच्चों को होता है। 
  • ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण शोर मचाने वाली मशीनें, लाउडस्पीकर, वाहन और उच्च डेसिबल पर ध्वनि उत्पन्न करने वाली अन्य वस्तुएं हैं। यहां तक कि रॉक कॉन्सर्ट भी ध्वनि प्रदूषण का एक कारण हैं।
  • अन्य प्रदूषणों जैसे वायु और जल प्रदूषण की तरह ध्वनि प्रदूषण भी हमारे स्वास्थ्य पर बहुत अधिक हानिकारक प्रभाव डालता है।
  • वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ध्वनि प्रदूषण को एक प्रमुख स्वास्थ्य खतरा मानता है।
  • यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी यूरोपीय लोगों पर ध्वनि प्रदूषण के प्रभावों पर लम्बे समय से नज़र रख रही है। उनके अनुसार ध्वनि प्रदूषण बहुत सारी असामयिक मौतों के लिए जिम्मेदार है।
  • लंबे समय तक लगातार ध्वनि प्रदूषण के संपर्क में रहने पर व्यक्ति में कई पुरानी समस्याएं विकसित हो सकती हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण से खतरनाक स्वास्थ्य खतरे हो सकते हैं। प्रारंभ में ध्वनि प्रदूषण की समस्या इतनी ज़्यादा नहीं लगती है, लेकिन समय के साथ यह बड़ी समस्याओं का कारण बन सकती है।
  • ध्वनि प्रदूषण न केवल मनुष्यों को बलि अन्य जीवित प्राणियों जैसे पक्षियों, व्हेल, डॉल्फ़िन, चमगादड़ आदि को भी नुकसान पहुँचाता है।
  • तेज आवाज वाली मशीनों का कम से कम उपयोग, नियंत्रित लाउडस्पीकर, हॉर्न के इस्तेमाल को कम करना आदि इन सभी उपायों से ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

ध्वनि प्रदूषण, मानव या पशु जीवन की गतिविधि पर विभिन्न प्रभावों के साथ शोर या ध्वनि बढ़ती है। एक हद होने के बाद यह ध्वनि हानिकारक होती हैं। पूरी दुनिया बाहरी शोर का स्रोत मुख्य रूप से मशीनें, परिवहन और प्रसार प्रणालियाँ हैं।

हम उपयोग में न होने पर उपकरणों को बंद करके, कानों मैं इयरप्लग का उपयोग करके, आस पास ध्वनि को कम करके, अधिक पेड़ लगाकर, वाहनों और मशीनों का नियमित रखरखाव करके ध्वनि प्रदूषण को कम कर सकते हैं। शोर को नियंत्रित करके हम ध्वनि प्रदूषण से सभी पर पड़ने वाले नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों को नियंत्रित कर सकते हैं। 

ध्वनि को मापने में उपयोग की जाने वाली ध्वनि की सबसे आम एसआई इकाई डेसीबल है जिसे संक्षेप में डीबी भी जाता है।

आशा हैं कि आपको इस ब्लाॅग में Sound Pollution In Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के अन्य कोर्स और सिलेबस से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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ध्वनि प्रदूषण - कारण | प्रभाव | उपाय | परिभाषा | Sound pollution in hindi | dhwani pradushan

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ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)

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ध्वनि प्रदूषण के स्रोत

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय.

  • ऑटोमोबाइल का उचित रख-रखाव
  • मशीन का रखरखाव
  • घरेलू सेक्टर से ध्वनि स्तर में कमी करके
  • धीरे बात करना
  • स्नेहक का प्रयोग
  • शोर अवरोधक पदार्थ का प्रयोग
  • अवरोधक का प्रयोग
  • पौधे लगाकर
  • पैनलों और बाड़ों का प्रयोग
  • छोटी सड़क पर बड़े वाहनों का प्रवेश निषेध
  • पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिक प्रयोग
  • मफ्लर, हेलमेट का प्रयोग
  • ट्रैफिक इंस्पेक्टर के कानों में ध्वनि अवरोधक यंत्रों का प्रयोग
  • शांत क्षेत्र से दूर बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशनों का निर्माण
  • सड़कों के किनारे, अस्पताल, शिक्षा संस्थान में अधिकाधिक पेड़ लगाना
  • ध्वनि प्रदूषण करने वालों पर कार्यवाही (लाउड स्पीकर, हॉर्न आदि के गलत प्रयोग पर रोक) 
  • नगर-नियोजन का उचित प्रबंध
  • ध्वनि अवशोषक, इन्सुलेशन एवं वाइब्रेशन डंपिंग (Vibration Dumping)
  • समुद्री ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण
  • जागरूकता व शिक्षा

ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोग

  • सुनने की क्षमता में कमी - 70dB से कम आवाज़ स्तर मनुष्य के लिये बहुत हानिकारक नहीं है परन्तु 85dB से अधिक आवाज़ को यदि 8 घंटे तक सुना जाए तो श्रवण क्षमता में कमी हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 100dB की आवाज़ (जैकहैमर व स्नोमोबाइल) मनुष्य के लिये ज्यादा समय तक सुनना नुकसानदायक होता है।
  • कार्यक्षमता में कमी - ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य की कार्यक्षमता में कमी हो जाती है।
  • एकाग्रता में कमी - तीव्र ध्वनि के कारण एकाग्रता में कमी आती है जिससे व्यक्ति ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाता है। 
क्षेत्र/परिक्षेत्र का प्रवर्ग dB दिन के समय dB रात के समय
औद्योगिक क्षेत्र 75 70
वाणिज्यिक क्षेत्र 65 55
आवासीय क्षेत्र 55 45
शांत परिक्षेत्र 50 40

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

  • तीव्र ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं जिससे मृत अवशेषों के अपघटन में बाधा पहुँचती है।
  • तीव्र ध्वनि से जन्तुओं के हृदय, मस्तिष्क एवं यकृत को भी हानि पहुँचती है। इससे उनका तंत्रिका तंत्र खराब हो जाता है और वे खतरनाक बन जाते हैं।
  • समुद्री ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव समुद्री व्हेल पर पड़ता है।
  • ध्वनि प्रदूषण के कारण उनके आवास की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जेब्रा फिंच ध्वनि प्रदूषण के कारण अपने सहयोगी से संचार नहीं कर पाता है।
  • वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव पादपों व वनस्पति पर भी पड़ता है।
  • ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव बिल्डिंग इत्यादि पर भी पड़ता है।
  • मनुष्य के कान 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज तक सुन सकते हैं, इसे मनुष्य का श्रव्य परास (Audible Range) कहते हैं। श्रव्य परास से अधिक आवृत्ति की तरंगों को पराश्रव्य तरंग (Ultrasonic) कहते हैं। श्रव्य परास से कम आवृत्ति की तरंगों को अवश्रव्य (Infrasonic) तरंगें कहते हैं।

ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम और नियन्त्रण

  • गाड़ियों के उचित रखरखाव और अच्छी बनावट से सड़क यातायात के शोर को कम किया जा सकता है।
  • ध्वनि कम करने के उपायों में ध्वनि टीलों का निर्माण, ध्वनि को क्षीण करने वाली दीवारों का निर्माण और सड़कों का उचित रखरखाव और सीधी सपाट सतह होना आवश्यक है।
  • रेल इंजनों की रीट्रोफिटिंग (Retrofitting), रेल की पटरियों की नियमित वैल्डिंग, और बिजली से चलने वाली रेलगाड़ियों का प्रयोग, या कम शोर करने वाले पहियों का प्रयोग बढ़ाने से रेलगाड़ियों द्वारा उत्पन्न शोर में भारी कमी आयेगी।
  • हवाई यातायात के ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए वायुयानों के उड़ने और उतरने के समय उचित ध्वनि रोधक लगाने और ध्वनि नियमों को लागू करने की आवश्यक है।
  • औद्योगिक ध्वनियों को रोकने के लिये भी ऐसे स्थानों पर जहां जेनरेटर हों या ऐसे क्षेत्र जहां पर बहुत शोर वाली मशीनें हों, ध्वनिसह उपकरण लगाने चाहिये।
  • बिजली के औजार, बहुत तेज संगीत और लैण्डमूवर्स, सार्वजनिक कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का प्रयोग आदि रात्रि में नहीं करना चाहिये। हार्न का प्रयोग, अलार्म और ठंडा करने वाले मशीनों का प्रयोग सीमित होना चाहिये। ऐसी आतिशबाजी जो शोर करती है और प्रदूषण फैलाती है उनका प्रयोग सीमित करना चाहिये जिससे शोर और वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
  • घने पेड़ों की हरियाली (ग्रीन बैल्ट) भी ध्वनि प्रदूषण को कम करने में सहायक होती हैं।

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून (Laws to Control Noise Pollution)

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ध्वनि प्रदूषण क्या है इसके प्रकार, कारण, प्रभाव, व रोकने के उपाय

ध्वनि प्रदूषण क्या है

प्रदूषण एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर हर किसी के मन में एक अलग रूपरेखा बन जाती है। आज हम आपको ध्वनि प्रदूषण क्या है बताएंगे। कोई भी प्रदूषण हुआ, मानव जीवन के लिए हमेशा ही हानिकारक रहता है। ऐसा ही प्रदूषण का एक प्रकार है ध्वनि प्रदूषण। कोई भी न पसंद तीव्र ध्वनि, इस प्रदूषण के अंतर्गत आती है। इसको उत्पन्न करने वाले प्राकृतिक कारक भी होते हैं और मानव द्वारा उत्पन्न कारक भी होते हैं। शोर मानव जीवन के लिए भयानक खतरा बनता जा रहा है।

आज आप जानेंगे की ध्वनि प्रदूषण के कारण क्या हैं, ध्वनि प्रदूषण क्या है , ध्वनि प्रदूषण के प्रकार, ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय, ध्वनि प्रदूषण पर निबंध किस प्रकार लिखते हैं, Noise Pollution in Hindi आदि। आप हमारे इस आर्टिकल को किसी परीक्षा में पूछे जाने पर निबंध के तौर पर भी लिख सकते हैं। हमने अपने एक लेख में इससे संबंधित सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया है अतः आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।

ध्वनि प्रदूषण क्या है ? Noise Pollution in Hindi

इसको पर्यावरणीय शोर भी कहा जाता है जब शोर की तीव्रता पर्यावरण में अत्यधिक हो जाती है तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। यदि हम आपको यह सरल भाषा में समझाएं तो तात्पर्य यह निकलता है कि वह अनुपयोगी ध्वनि जो मानव तथा अन्य जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक सिद्ध हो ध्वनि प्रदूषण कहलाता है।

ध्वनि अर्थात Noise शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Nausea शब्द से हुई है। जिसका अर्थ होता है उल्टी जैसा महसूस होना। ध्वनि प्रदूषण को मापने के लिए जिस मापक का इस्तेमाल करते हैं उसे डेसीबल (dB) कहा जाता है। 80 dB या इससे अधिक तीव्रता का साउंड सुनने से आपके मस्तिष्क और श्रवण तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। उम्मीद करते हैं आपको ध्वनि प्रदूषण क्या है की परिभाषा समझ आ गई होगी।

वायु प्रदूषण क्या है?

ध्वनि प्रदूषण के कारण और प्रकार बताइए

इसके उत्पन्न होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं। हम अपने इस लेख ध्वनि प्रदूषण क्या है में आपको कुछ बहुत प्रमुख कारणों का वर्णन करेंगे जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ध्वनि प्रदूषण को उत्पन्न करने वाले कारक ही ध्वनि प्रदूषण के प्रकार हैं। इसको उत्पन्न करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्न प्रकार है-

ध्वनि प्रदूषण के कारण

उद्योगों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण

कारखानों में विभिन्न प्रकार की बड़ी-बड़ी मशीनें लगाई जाती है। जो बहुत हद तक वायु प्रदूषण में योगदान देती है। जब यह मशीनें चलाई जाती हैं तब अत्यधिक मात्रा में ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके अलावा हवाईजहाज भी उड़ते समय बहुत अधिक ध्वनि उत्पन्न करता है।

प्राक्रतिक श्रोत से ध्वनि प्रदूषण

नेचुरल अर्थात प्राकृतिक स्रोत से हमारा यह तात्पर्य है कि कभी कभी बदल फटने की घटनाएं हमे सुनने में आती रहती हैं। जब बदल फटता है तब बहुत भीषण आवाज उत्पन्न होती है, जिसके शोर से घरों में कांच की खिड़कियां तक टूट जाती है। इसके अलावा बिजली कड़कना, बिजली गिरना आदि जैसी कई प्राकृतिक घटनाएं इसका कारण बनती है। जो मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।

वाहनों से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण

जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि है वैसे वैसे वाहनों की संख्या में भी प्रगति देखने को मिल रही है। ऐसे में भीड़ भाड़ बहुत ज्यादा हो जाती है और वाहनों से उत्पन्न हॉर्न की आवाज से बहुत ज्यादा ध्वनि निकलती है। इससे उत्पन्न ध्वनि लोगो को irritate करने लगती है और इसको बढ़ावा देती है।

पार्टियों से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण

हमारे आस पड़ोस में आए दिन प्रतिदिन विभिन्न प्रकार की शादी पार्टियां होती रहती हैं। इन पार्टियों में डीजे साउंड सिस्टम भी बजाया जाता है। पार्टियों में डीजे पर बजने वाले म्यूजिक की ध्वनि तीव्रता बहुत अधिक होती है, जो आसपास के लोगो को मानसिक रूप से प्रभावित करती है। अतः इस प्रकार की अनाच्छिक ध्वनि भी एक प्रकार का ध्वनि प्रदूषण है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

इसकी परिभाषा और और इसे उत्पन्न करने वाले कारकों के बारे में अध्ययन करने के बाद अब आप हमारे इस लेख ध्वनि प्रदूषण क्या है में इससे उत्पन्न प्रभावों के बारे में पड़ेंगे। यहां आप जानेंगे की यह किस प्रकार से हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है।

  • बहुत अधिक समय तक तीव्र ध्वनि वाले स्थानों पर रहने से मनुष्य के श्रवण तंत्र पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है तथा उसकी सुनने की क्षमता भी कम हो जाती है।
  • इसके कारण मानव हमेशा टेंशन में रहता है वह चिड़चिड़ा हो जाता है और उसका किसी काम में मन नहीं लगता है। इससे मनुष्य साइकोलॉजिकली बीमार हो जाता है।
  • विज्ञान के अनुसार यदि कोई गर्भवती स्त्री अधिक शोर-शराबे वाली जगह के लगातार संपर्क में रहे तो उसके गर्भ में पल रहे बच्चे में बहरापन उत्पन्न हो जाता है।
  • अचानक से भयानक और तीव्र ध्वनि सुनने से मनुष्य के मस्तिष्क में कई प्रकार की विकृतियां हो जाती है जिससे उसे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • शोर की अधिक तीव्रता हृदय की धड़कन को भी प्रभावित करती है एवं उस में अनियमितता अर्थात तेज या धीमे ह्रदय स्पंदन जैसी समस्याएं उत्पन्न कर देती है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय क्या है?

इस प्रदूषण को रोकना अति आवश्यक है वरना भविष्य में चलकर मनुष्य अपनी सुनने की क्षमता में कमी देखेगा और इसका परिणाम बहुत भयानक हो सकता है। अतः आप हमारे आर्टिकल ध्वनि प्रदूषण क्या है में दिए गए कुछ उपायों को ध्यान पूर्वक जरूर पढ़ें और अपने जीवन में अपनाने का प्रयास जरूर करें। इसको रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं –

  • अधिक भीड़भाड़ और शोर-शराबे वाली जगहों पर जाने से बचें या फिर बहुत कम समय तक ही इन जगहों पर रूके ताकि उत्पन्न शोर-शराबे से आपका मानसिक संतुलन ना बिगड़े, और आप अपना कार्य कुशलता पूर्वक कर पाए।
  • कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को ध्वनि इससे अपने कानो की सुरक्षा के लिए कानो में विशेष प्रकार के Ear Plug का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे मशीनों की तीव्र ध्वनि से कानो को क्षति न पहुंचे।
  • अत्यधिक शोर उत्पन्न करने वाली मशीन में साइलेंसर के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए।
  • धार्मिक कार्यों, शादी बरातों, पार्टियों आदि में एक उचित ध्वनि तीव्रता तक ही साउंड को बजाया जाय।
  • जगह जगह पर सड़क किनारे डेसीबल मीटर लगाया जाए जिससे की ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को चेक किया जा सके।
  • घरों के आसपास और सड़क के किनारे वृक्ष लगाए जाएं। क्युकी ये इसको रोकने में काफी मददगार साबित होते हैं। इन वृक्षों को हम ग्रीन मफलर के नाम से भी जानते हैं।
  • सरकार द्वारा ध्वनि कंट्रोल कानून के तहत लोगो को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
जल प्रदूषण क्या है?

ध्वनि प्रदूषण दिन व दिन बड़ता ही जा रहा है इसके कंट्रोल के लिए हमें खुद ही कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। आशा करता हूँ कि ये लेख आपको यह लेख पसंद आया होगा। इस लेख से जुड़े किसी भी प्रश्न को कॉमेंट बॉक्स मे पूछें।

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ध्वनि प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य (Sound pollution and human health)

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बढ़ती आबादी से उत्पन्न होने वाली समस्या को हल करने में विज्ञान की अहम भूमिका हो सकती है। प्रदूषण वायु, पानी और ध्वनि तीनों माध्यम से फैलता है। हम यहाँ ध्वनि प्रदूषण पर चर्चा करेंगे। यह मानव जनित प्रदूषण है। इसने पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। मुख्यतः यातायात के साधन, जैसे हवाई जहाज, रेल, ट्रक, बस या निजी वाहन आदि, इस तरह के प्रदूषण फैलाते हैं। इनके अतिरिक्त फैक्ट्रियाँ, तेज ध्वनि वाले लाउडस्पीकर, निर्माण कार्य आदि से भी ध्वनि प्रदूषण फैलता है।

ध्वनि प्रदूषण के साधन

सड़क पर चलने वाली गाड़ियों से ध्वनि प्रदूषण बहुत अधिक होता है। जब कई गाड़ियाँ एक साथ चलती हैं तो उनके इंजन व हॉर्न से निकलने वाला शोर ध्वनि को प्रदूषित कर देता है। जिसका पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।  

हवाई जहाज से ध्वनि प्रदूषण

किसी भी किस्म के हवाई जहाज से भिन्न प्रकार से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। एक तो हवाई जहाज जब उड़ने के लिये दौड़ता है। दूसरा जब उड़ रहा होता है। तीसरा जब जमीन पर उतरने वाला होता है। एक खास बात यह है कि जब हवाई जहाज जमीन पर उतरने वाला होता है तो उसका शोर एयरपोर्ट के 100 वर्ग किलोमीटर तक के पर्यावरण को प्रदूषित कर देता है। हवाई जहाज से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण ध्वनि-प्रदूषण का दूसरा प्रमुख कारक माना जाता है। जब हवाई जहाज उड़ने को होता है तो उसकी ध्वनि अधिक होती है।  

नये शहर की प्लानिंग

जिन शहरों की प्लानिंग ठीक नहीं होती है उनकी प्लानिंग दोबारा की जाती है जिसमें अधिक तोड़-फोड़ होती है। जिसके कारण ध्वनि प्रदूषण अधिक बढ़ जाता है। फैक्ट्रियाँ बनती हैं, फिर फैक्ट्रियों में काम करने वालों के लिये मकान बनाये जाते हैं, इसके कारण से भी पर्यावरण में ध्वनि प्रदूषण फैलता है।  

मनोरंजन से ध्वनि प्रदूषण

आजकल ऐसा देखा जा रहा है कि जरा सी कोई प्रसन्नता का मौका आता है कि लोग इतने खुश हो जाते हैं कि काफी देर तक पटाखे चलाते रहते हैं। या घर में धार्मिक अवसरों पर आतिशबाजी करते हैं या घरों में जागरण वगैरह करते हैं, जिनके कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। यही ध्वनि प्रदूषण शुगर और उच्च रक्तचाप के रोगियों को काफी नुकसान पहुँचाता है। इससे उनकी मृत्यु भी हो सकती है।  

ध्वनि प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य को खतरा

बहुत तेज ध्वनि कान के पर्दों को हानि पहुँचा सकती है। कान के अन्दर जो हेयर-सेल्स (Hearing and Hair Cells) होते हैं वो पूरी तरह खत्म हो सकते हैं और कान से सुनाई देना बन्द हो सकता है। ध्वनि से दिल की धड़कन कम हो जाती है और ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है। हाल की रिपोर्ट से यह पता चला है कि बहुत अधिक शोरगुल मानव का खून गाढ़ा कर सकता है जिसके कारण हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी तरफ खून का दबाव बढ़ सकता है। जिसके कारण हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत भी हो सकती है।  

पशुओं को नुकसान

ध्वनि प्रदूषण पशुओं के लिये भी खतरनाक साबित होता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण के कारण जानवरों के प्राकृतिक रहन-सहन में भी बाधा उत्पन्न होती है। उनके खाने-पीने, आने-जाने और उनकी प्रजनन क्षमता और आदत में बदलाव आने लगता है। सेनाओं के अभ्यास से उत्पन्न होने वाले शोर से चोंचदार व्हेलों की प्रजाति अब लुप्त होने के कगार पर है।  

औद्योगिक ध्वनि

आज कल क्या हो रहा है कि लोगों ने रिहायशी इलाकों में उद्योग लगाये हुए हैं और यह सिलसिला बढ़ता ही चला जा रहा है। इसके अलावा इंडस्ट्रीज में कल-पुर्जे पुराने हो चुके हैं जिसके कारण से इंडस्ट्रीज के अन्दर मशीनों की ध्वनि अधिक बढ़ चुकी है। इसी कारण रिहायशी इलाकों में ध्वनि प्रदूषण बढ़ना स्वाभाविक है। ध्वनि प्रदूषण के कारण आजकल लोगों में बहरेपन की शिकायत बढ़ती जा रही है। ध्वनि प्रदूषण कैसे कम की जाये - 1. गाड़ियों की गति कम की जाये। 2. सड़कों की मरम्मत की जाये। 3. बड़ी-बड़ी गाड़ियों का भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाना बन्द किया जाये। 4. ट्रैफिक के कानून का पाबन्दी से पालन हो और हॉर्न बार-बार न बजायें। 5. इन्जन की एक खास अन्तराल पर ट्यूनिंग अवश्य करवायें जिससे इंजन से ध्वनि अधिक न आये। 6. न अधिक ब्रेक लगायें और न बहुत अधिक एक्सीलेटर दबायें। 7. अधिक-से-अधिक पेड़ लगाये जायें जिनसे ध्वनि प्रदूषण कम करने में सहायता मिले। 8. हवाई जहाजों का आबादी वाले शहरों की बजाय खाली स्थानों की तरफ रास्ता बदल दें और दिन के वक्त रनवे का इस्तेमाल करें। 9. उद्योगों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि जहाँ तक हो सके कम करने की कोशिश होनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर औद्योगिक मशीनों और औजारों को दोबारा डिजाइन किया जाये औद्योगिक इकाइयों को साउन्ड प्रूफ बनाया जाय और नई मशीनों का इस्तेमाल किया जाय। रिहायशी इलाकों में जो औद्योगिक इकाइयाँ हैं उनको वहाँ से हटाया जाय।

पर्यावरण प्रदूषण

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

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ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (Noise Pollution Essay in Hindi) 10 Lines 100, 150, शब्द मे

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ध्वनि प्रदूषण निबंध (Noise Pollution Essay in Hindi) – ध्वनि प्रदूषण उन प्रदूषणों में से एक है जिसका हम प्रतिदिन सामना करते हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और अन्य प्रकारों की तरह ध्वनि प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। वायुमंडलीय प्रदूषण ही एकमात्र ऐसा प्रदूषण नहीं है जिससे हम गुजरते हैं, बल्कि ध्वनि प्रदूषण हमारे जीवन में विनाश ला सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ध्वनि प्रदूषण एक खतरनाक स्वास्थ्य समस्या है। यूरोपीय पर्यावरण (ईईए) का कहना है कि अकेले यूरोप में 16,600 अकाल मौतों के लिए ध्वनि प्रदूषण जिम्मेदार है।

लगातार ध्वनि प्रदूषण का सामना करने वाला व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना शुरू कर सकता है और दीर्घ अवधि में खतरनाक हो सकता है। कई अप्रिय शोर विकर्षण जीवन में बाद में समस्याएं ला सकते हैं।

कारों के हॉर्न, लाउडस्पीकरों से शहरों का शोर बढ़ गया है; यातायात, आदि ध्वनि प्रदूषण के लिए अग्रणी। सड़कों, भवनों, अपार्टमेंटों और अन्य क्षेत्रों के निर्माण से भी ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध 10 लाइन (100 – 150 शब्द) (Noise Pollution Essay 10 Lines (100 – 150 Words) in Hindi)

  • 1) हमारे कान सहन करने की क्षमता से अधिक शोर को ध्वनि प्रदूषण माना जाता है।
  • 2) ध्वनि प्रदूषण घर के अंदर या बाहर उत्पन्न हो सकता है।
  • 3) ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण अधिक होता है।
  • 4) एक ध्वनि को शोर माना जाता है जब उसकी तीव्रता 70-75 dB से अधिक हो।
  • 5) ध्वनि प्रदूषण मनुष्य और जीवित चीजों के लिए हानिकारक है।
  • 6) ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य तनाव, हृदय रोग, नींद न आना आदि का शिकार हो सकता है।
  • 7) ध्वनि प्रदूषण पशुओं को भी परेशान और परेशान करता है।
  • 8) सड़कें, हवाई अड्डे, निर्माण स्थल आदि ध्वनि प्रदूषण वाले क्षेत्र हैं।
  • 9) कुछ सरल कदम उठाकर मनुष्य ध्वनि प्रदूषण को कम कर सकता है।
  • 10) ध्वनि प्रदूषण के खतरों को देखते हुए सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रही है।

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ध्वनि प्रदूषण क्या है? (What is Noise Pollution? in Hindi)

WHO के अनुसार ध्वनि प्रदूषण 65db से ऊपर का शोर है, जो इंसानों और जानवरों दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। 75 डीबी से अधिक का शोर दर्दनाक हो सकता है और व्यक्ति को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।

ध्वनि प्रदूषण से उत्पन्न खतरे को देखना असंभव है। जमीन पर और समुद्र के नीचे, आप इसे नहीं देख सकते, लेकिन यह अभी भी मौजूद है। अवांछित या परेशान करने वाली ध्वनि होने पर ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य और अन्य जीव प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकते हैं।                     

डेसिबल ध्वनि का माप है। पत्तों की सरसराहट (20-30 डेसिबल) या गरजना (120 डेसिबल) से सायरन की आवाज (120-140 डेसिबल) सभी ध्वनियाँ हैं जो प्राकृतिक वातावरण में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती हैं। यदि कोई व्यक्ति ऐसी ध्वनि सुनता है जिसका डेसिबल स्तर 85 डेसिबल या उससे अधिक तक पहुँचता है, तो उसके कान क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। घास काटने की मशीन (90 डेसिबल), ट्रेन (90 से 115 डेसिबल), और रॉक कॉन्सर्ट (110 से 120 डेसिबल) की आवाज़ें कुछ परिचित स्रोत हैं जो इस सीमा से अधिक हैं।

ध्वनि प्रदूषण की उपस्थिति का लाखों लोगों पर दैनिक प्रभाव पड़ता है। शोर के कारण होने वाली श्रवण हानि शोर के संपर्क में आने वाली सबसे आम स्वास्थ्य समस्या है। इसके अलावा, तेज आवाज से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, नींद में गड़बड़ी और तनाव जैसी स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। सभी आयु वर्ग इन स्वास्थ्य समस्याओं के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, खासकर बच्चे। यह दिखाया गया है कि शोरगुल वाले हवाई अड्डों और व्यस्त सड़कों के पास रहने वाले बच्चे तनाव और अन्य समस्याओं, जैसे याददाश्त की समस्या, ध्यान देने में कठिनाई और पढ़ने में कठिनाई से ग्रस्त हैं।

ध्वनि प्रदूषण से पशु भी प्रभावित हो रहे हैं। तेज आवाज किए जाने पर कैटरपिलर के दिल तेजी से धड़कते हैं, और तेज आवाज किए जाने पर ब्लूबर्ड्स के पास कम चूजे होते हैं। जानवर ध्वनि का उपयोग करने के कई कारण हैं, जिसमें नेविगेट करना, भोजन का पता लगाना, साथी को आकर्षित करना और शिकारियों से बचना शामिल है। उनके सामने आने वाला ध्वनि प्रदूषण इन कार्यों को पूरा करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे उनका अस्तित्व प्रभावित होता है।

शोर का वातावरण न केवल जमीन पर रहने वाले जानवरों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि यह समुद्र में जानवरों के लिए भी बदतर हो रहा है। जहाजों, ड्रिलिंग उपकरणों, सोनार और भूकंपीय सर्वेक्षणों के कारण एक बार शांत समुद्री वातावरण शोर और अराजक हो गया है। ध्वनि प्रदूषण के नकारात्मक प्रभाव विशेष रूप से व्हेल और डॉल्फ़िन द्वारा महसूस किए जाते हैं। समुद्री स्तनधारियों के लिए, संचार, नेविगेशन, भोजन और मेट-खोज के लिए इकोलोकेशन आवश्यक है। अत्यधिक शोर इकोलोकेशन के साथ हस्तक्षेप कर सकता है।

यह नौसेना के सोनार उपकरण हैं जो पानी के नीचे की सबसे तेज आवाज पैदा करते हैं। सोनार का उपयोग इकोलोकेशन के समान काम करता है जिसमें ध्वनि तरंगें समुद्र में नीचे भेजी जाती हैं और वस्तुओं को उछालती हैं, प्रतिध्वनियाँ जहाज पर लौटती हैं जो वस्तु के स्थान को इंगित कर सकती हैं। व्हेल की इकोलोकेशन का उपयोग करने की क्षमता तब बाधित होती है जब वे सोनार ध्वनियाँ सुनती हैं, जो 235 डेसिबल तक पहुँच सकती हैं और सतह के नीचे सैकड़ों मील की यात्रा कर सकती हैं। शोध से पता चला है कि सोनार व्हेल को समुद्र तटों पर फंसा सकता है और ब्लू व्हेल (बालेनोप्टेरा मस्कुलस) के खाने के व्यवहार को बदल सकता है, जो लुप्तप्राय हैं। पर्यावरण का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने सोनार आधारित सैन्य प्रशिक्षण को बंद करने या कम करने के लिए अमेरिकी रक्षा विभाग को बुलाया है।

इसके अलावा, हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समुद्र के अंदर से जोरदार विस्फोट कर सकते हैं। गहरे पानी में, तेल और गैस एयर गन का उपयोग करते हुए पाए जाते हैं जो समुद्र तल पर ध्वनि स्पंदन भेजते हैं। ध्वनि विस्फोटों से समुद्री जानवरों को नुकसान पहुंचने और उनके कानों को गंभीर नुकसान पहुंचने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, इस शोर के परिणामस्वरूप व्हेल अपना व्यवहार भी बदल सकती हैं। 

स्पेन में बायोएकॉस्टिक्स के शोधकर्ता मिशेल आंद्रे हाइड्रोफोन की मदद से ध्वनि प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने अपनी परियोजना, LIDO (लिसनिंग टू द डीप ओशन एनवायरनमेंट) के दौरान 22 विभिन्न स्थानों से डेटा एकत्र किया है। कंप्यूटर का उपयोग करते हुए, लैब ने व्हेल और डॉल्फ़िन की 26 विभिन्न प्रजातियों की पहचान की, जिनमें मनुष्यों द्वारा उत्पन्न ध्वनियाँ भी शामिल हैं। विश्लेषण में इन जानवरों पर इसके प्रभाव के लिए पानी के नीचे के शोर की जांच की जाएगी।

ध्वनि प्रदूषण किन कारणों से होता है? (What causes Noise Pollution? in Hindi)

हालाँकि दुनिया तकनीक के इस्तेमाल में बदल रही है, लेकिन साथ ही यह तकनीक हानिकारक भी है। कम्प्रेसर, निकास पंखे और जनरेटर का उपयोग करने वाले उद्योग बहुत अधिक शोर पैदा कर रहे हैं।

इसी तरह, पुराने साइलेंसर वाली बाइक और कारें भारी शोर पैदा करती हैं जिससे प्रदूषण हो सकता है। विमान, भारी ट्रक और बसें भी इस ध्वनि प्रदूषण का हिस्सा हैं। कम उड़ान वाले विमान, विशेष रूप से सैन्य वाले, ध्वनि प्रदूषण का कारण बनते हैं। इसी तरह, पनडुब्बियां समुद्र में ध्वनि प्रदूषण कर सकती हैं।

ध्वनि प्रदूषण किसी व्यक्ति को कैसे प्रभावित करता है?

ध्वनि प्रदूषण मुख्य रूप से व्यक्ति की सुनने की क्षमता को प्रभावित करना शुरू कर सकता है, जिससे स्थायी श्रवण हानि हो सकती है। इसके अलावा, यह रक्तचाप, उच्च रक्तचाप और तनाव से संबंधित अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि का कारण बन सकता है। कई मामलों में, ध्वनि प्रदूषण व्यक्ति के मन की स्थिति में गड़बड़ी पैदा कर सकता है, जो आगे चलकर नींद के पैटर्न में गड़बड़ी, तनाव, आक्रामकता और अन्य मुद्दों का कारण बनता है। ध्वनि प्रदूषण के नियमित संपर्क में आने से व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। 45 डीबी से ऊपर का शोर आपकी नींद के पैटर्न को बाधित कर सकता है। WHO के अनुसार शोर का स्तर 30db से अधिक नहीं होना चाहिए। स्लीप पैटर्न में बदलाव आपके व्यवहार में भी बदलाव ला सकता है।

यदि आपके घर में या आपके आस-पास पालतू जानवर हैं, तो ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। पटाखों के नियमित संपर्क में रहने से उनमें डर पैदा हो सकता है। इससे उनके व्यवहार में भी बदलाव आएगा।

वन्यजीव और समुद्री जीवन पर प्रभाव (Effect on Wildlife and Marine Life in Hindi)

पशु और समुद्री जीवन ध्वनि प्रदूषण की चपेट में हैं। यह उनके सुनने के कौशल को प्रभावित कर सकता है, जो आगे चलकर उनके व्यवहार पैटर्न को प्रभावित करता है। प्रवास के दौरान इन जानवरों को सुनने में कठिनाई होती है, जो उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। जब समुद्री जीवन की बात आती है तो ध्वनि प्रदूषण से उनमें शारीरिक समस्याओं जैसी आंतरिक क्षति हो सकती है।

ध्वनि प्रदूषण के उपाय (Measures for Noise Pollution in Hindi)

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार और लोगों द्वारा कई उपाय किए गए हैं। कई घरों में अब ध्वनिरोधी दीवारें और खिड़कियां लगाई जा रही हैं। शहरों में कई फ्लाईओवरों में शोर के स्तर को नीचे लाने के लिए ध्वनिरोधी दीवारें होती हैं जो चलने वाले वाहनों से पास के निवासी के लिए होती हैं। जिम्मेदार नागरिकों के रूप में, हमें ध्वनि प्रदूषण को कम करने में योगदान देना चाहिए। बेवजह हॉर्न बजाने पर रोक लगानी चाहिए और अधिकारियों को ऐसा करने वालों पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए। अस्पताल और स्कूल साइलेंट जोन में बनाए गए हैं।

रिहायशी और संवेदनशील इलाकों में शोर से बचने के नियम होने चाहिए। ध्वनि प्रदूषण से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।

ध्वनि प्रदूषण को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक अधिक से अधिक पौधे लगाना है। पेड़ लगाने की यह प्रक्रिया ध्वनि के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने को कम करने में मदद कर सकती है।

ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों द्वारा सामना की जाने वाली सबसे आम समस्या है, विभिन्न कारणों से जो कई लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। निम्नलिखित मानक उपाय मानव और पर्यावरण दोनों के लिए दीर्घावधि में सहायक हो सकते हैं। अंतिम उद्देश्य बेहतर पर्यावरण के लिए ध्वनि प्रदूषण को कम करना है।

ध्वनि प्रदूषण: मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे ध्वनि प्रदूषण मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकता है:

  • लंबे समय तक उच्च रक्तचाप होने का सीधा परिणाम उच्च रक्तचाप होता है, जो ध्वनि प्रदूषण के कारण होता है।
  • बहरापन तब होता है जब मनुष्य बार-बार उन ध्वनियों के संपर्क में आते हैं जो उनके कान के पर्दे की क्षमता से अधिक होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सुनवाई को स्थायी नुकसान होता है।
  • काम पर ठीक से काम करने के लिए हर रात पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। नींद संबंधी विकार पूरे दिन ऊर्जा के स्तर को प्रभावित करते हैं। प्रदूषण नींद के चक्र में गड़बड़ी पैदा करता है, जिसके परिणामस्वरूप जलन और अशांति होती है।
  • एक स्वस्थ व्यक्ति में रक्तचाप स्तर, तनाव और हृदय रोग जैसी हृदय संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, लेकिन हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को अचानक वृद्धि का अनुभव हो सकता है।
  • यह आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर डालेगा क्योंकि लगातार इतनी तेज आवाज सुनने से आपके कान के पर्दे पर दबाव पड़ेगा और इससे आपके दिमाग पर भी बुरा असर पड़ेगा।

ध्वनि प्रदूषण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1 भारत में पहली बार ध्वनि प्रदूषण नियम कब पारित किया गया था.

उत्तर. भारत में ध्वनि प्रदूषण नियम पहली बार 14 फरवरी 2000 को पारित किया गया था।

Q.2 ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सड़क के किनारे उगाए जाने वाले पौधों को क्या नाम दिया गया है?

उत्तर. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सड़कों के किनारे उगाए जाने वाले हरे पौधे ग्रीन मफलर कहलाते हैं।

Q.3 शोर के मापन की इकाई क्या है?

उत्तर. शोर मापने की इकाई डेसिबल है।

प्रश्न 4. भारत में आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का अनुमेय स्तर क्या है?

उत्तर. भारत में आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का अनुमेय स्तर 55dB है।

12th notes in hindi

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ध्वनि प्रदूषण :

अवाँछित उच्च स्तर को शोर प्रदूषण कहते है। इसका मानक डेसीबल कइ है तथा 80 db से अधिक ध्वनि स्तर को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।

     ध्वनि प्रदूषण के कारण(noise  pollution causes) :-

1    उद्योगों के कारण

2     स्वचालित वाहनों के कारण

3     जेट विमान, राॅकेट आदि

4     जनरेटर के कारण

5     ध्वनि विस्तारक यंत्रों के कारण

6     पठाखों के कारण

प्रभाव(noise pollution effects) : –

ए-  श्रवण संबंधित:- अस्थाई बहरापन, कान का परदा फटना तथा स्थाई बहरापन होना।

ब-  अन्य प्रभाव:- सिरदर्द हदृय स्पंदन दर बढ़ना, श्वसन दर बढ़़ना उल्टी, चक्कर आना, नींद न आना, तनाव व चिड़चिड़ापन।

     रोकथाम(noise pollution prevention):-

1     वाहनों में साइलेंसर का प्रयोग।

2     उद्योगों में ध्वनि अवशोधक यंत्रों का प्रयोग।

3     ध्वनि विस्तारक यंत्रों की समय सीमा व ध्वनि स्तर का निर्धारण

4     साइलेंसर जनरेटर का प्रयोग

5     उच्च ध्वनि उत्पादन करने वाले प्रदूषणों के प्रयोग पर रोक।

उपाय(noise pollution solution):-

1     उद्योगों को आबादी से दूर स्थापित करना।

2     उद्योगों के आस-पास एवं सडकों के किनारे सघन वृक्षारोपण करना।

3     नियमों का कठोरता से पालन करना।

     नियम(noise pollution rules and regulations):-

वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए वायु प्रदूषण निबोध व नियंत्रण अधिनियम 1981 में साकर किया गया। 1981 में इसमें ध्वनि प्रदूषण को भी शामिल किया गया।

ध्वनि प्रदूषण ( noise pollution )

यह सिद्ध हो गया है कि ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे पहले वस्तुगत प्रदूषण का हिस्सा माना जाता था।

* लगातार शोर खून में कोलस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देता है जो कि रक्त नलियां को सिकोड़ देता है जिससे हृदय रोगों की संभावनायें बढ़ जाती हैं।

* स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना हैं कि बढ़ता शोर स्नायु संबंधी बीमारी, नर्वसब्रेक डाउन आदि को जन्म देता है।

* शोर, हवा के माध्यम में संचरण करता है।

* ध्वनि की तीव्रता नापने की निर्धारित इकाई को डेसीबल कहते हैं।

* विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसीबल से अधिक की ध्वनि हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है। मनुष्य को यूरोटिक बनाती है।

* विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 45 डेसीबल की ध्वनि को, शहरों के लिए आदर्श माना है। लेकिन बड़े शहरों में ध्वनि की माप 90 डेसीबल से अधिक हो जाती है। मुम्बई संसार का तीसरा सबसे अधिक शोर करने वाला नगर है। दिल्ली ठीक उसके पीछे है।

* विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली विश्व के 10 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है।

* एक अलग अध्यययन के अनुसार, वाहनों से होने वाला प्रदूषण 8 प्रतिशत बढ़ा है जबकि उद्योगों से बढ़ने वाला प्रदूषण चैगुना हो गया है।

* भारत के प्रदूषणों में वायु प्रदूषण सबसे अधिक गंभीर समस्या है।

ई-कचरा क्या है? इसका जवाब देना तो बहुत आसान है मगर इसके प्रभावों से मानव जाति को होने वाले नुकसान का अंदाजा लगा पाना अभी मुश्किल है।

पुरानी सीडी व दूसरे ई-वेस्ट को डस्टबिन में फेंकते वक्त हम कभी गौर नहीं करते कि कबाड़ी वाले तक पहुंचने के बाद यह कबाड़ हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि पहली नजर में ऐसा लगता भी नहीं है। बस, यही है ई-वेस्ट का मौन खतरा।

* ई-कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्व लीवर और किडनी को प्रभावित करने के अलावा कैंसर, लकवा जैसी बीमारियों का कारण बन रहे हैं। खास तौर से उन इलाकों में रोग बढ़ने के आसार सबसे ज्यादा हैं जहां अवैज्ञानिक तरीके से ई-कचरे की रीसाइक्लिंग की जा रही है।

* ई-वेस्ट से निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं।

* भारत में यह समस्या 1990 के दशक से उभरने लगी थी।

* ई-कचरे कि वजह से पूरी खाद्य श्रृंखला बिगड़ रही है।

* ई-कचरे के आधे-अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्व मिल जाते हैं जिनका असर पेड़-पौधों और मानव जाति पर पड़ रहा है।

* पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाती है जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन के प्रतिशत पर पड़ रहा है।

* कुछ खतरनाक रासायनिक तत्व जैसे पारा, क्रोमियम, सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज, कॉपर आदि हमारे भूजल पर भी असर डालते हैं।

* अवैध रूप से रीसाइक्लिंग का काम करने से उस इलाके का पानी पीने लायक नहीं रह जाता है।

असल समस्या ई-वस्ट की रीसाइकलिंग और उसे सही तरीके से नष्ट (डिस्पोज) करने की है। घरों और यहां तक कि बड़ी कंपनियों से निकलने वाला ई-वेस्ट ज्यादातर कबाड़ी उठाते हैं। वे इसे या तो किसी लैंडफिल में डाल देते हैं या फिर कीमती मेटल निकालने के लिए इसे जला देते हैं, जोकि और भी नुकसानदेह है।

आजकल विकसित देश भारत को डंपिंग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि उनके यहां रीसाइकलिंग काफी महंगी है। जबकि हमारे देश में ई-वेस्ट की रीसाइकलिंग और डिस्पोजल, दोनों ही सही तरीके से नहीं हो रहे ।

* हमारे देश में सालाना करीब चार-पांच लाख टन ई-वेस्ट पैदा होता है और 97 फीसदी कबाड़ को जमीन में गाड़ दिया जाता है।

सतत् जैव संचयी प्रदूषक पदार्थ

* सीसा, पारा, कैडमियम और पॉलीब्रोमिनेटेड सभी सतत, जैव विषाक्त पदार्थ हैं।

* जब कंप्यूटर को बनाया जाता है, पुनर्चक्रण के दौरान गलाया जाता है तो ये पदार्थ पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

* पीबीटी विशेष रूप से खतरनाक स्तर के रसायन होते हैं जो वातावरण में बने रहते हैं और जीवित ऊत्तकों को नुकसान पहुंचाते है।

* पीबीटी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं और ये कैंसर, तंत्र को नष्ट करने और प्रजनन जैसी बीमारियों से की संभावना को बढ़ाने से संबंधित होते हैं।

कार्यस्थल में शोर 

अमेरिका द्वारा अनुशंसी औद्योगिक शोर

स्तर 90 डेसिबल /8 घंटा है।

पाश्चात्य संगीत से शोर  : मनमोहक संगीत भी यदि तेज स्वर में बजाया जाए तो कानों को अच्छा नहीं लगता। आज के समय रॉक एंड रोल , पॉप संगीत , शोर प्रदूषण के कारणों में नयी कड़ी है। ऐसे संगीत से मस्तिष्क तंत्रिकाओं में आराम की जगह तनाव बढ़ता है। भारत में भी इसके प्रचलन के कुछ ही समय बाद से लोग कम सुनने की शिकायत करने लगे है।

यातायात शोर

पिछले कुछ वर्षो में यातायात की बढ़ी हुई संख्या –

1960 = 100 m वाहन

1970 = 200 m वाहन

1980 = 300 m वाहन

लाउडस्पीकरों के अनावश्यक प्रयोगों के कारण शोर  : आजकल हमारे देश में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों का अनावश्यक प्रयोग होने लगा है। सभी सामाजिक पर्वों , रैलियों में भी हम लाउडस्पीकरों का खुलकर प्रयोग करने लगे है जिनका प्रभाव हमारे कान के नाजुक पर्दों पर पड़ता है।

मोटर साइकिलों , हवाई जहाजों , जेट वायुयानों , कल कारखानों तथा लाउडस्पीकरों का शोर अधिक घातक है तथा उसे नियंत्रित करने की सख्त जरुरत है। मनुष्य को 115 डीबी में 15 मिनट , 110 डीबी में आधा घंटा , 105 डीबी में एक घंटा , 100 डीबी में आठ घंटे से अधिक नहीं रहना चाहिए।

यह सही है कि अभी हम विश्व के सर्वाधिक कोलाहलपूर्ण शहर “रियो डि जेनीरो” के स्तर पर नहीं पहुँचे है , जहाँ पर ही शोर का स्तर 120 डेसीबल (डीबी) को छू लेता है। लेकिन धीरे धीरे हम भी उसी स्तर तक पहुँच रहे है। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार ध्वनि का स्तर अधिक से अधिक 45 डेसिबल (ध्वनि नापने की इकाई) होना चाहिए लेकिन हमारे महानगरों में यह स्तर 120 डीबी तक पहुँच गया है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (AIIMS) के एक सर्वेक्षण के अनुसार किसी भी महानगर में ध्वनि का स्तर 60 डीबी से नीचे नहीं है। दिल्ली , मुंबई तथा कोलकाता में 60 से 120 डीबी तक का ध्वनि प्रदूषण पाया गया है।

दिल्ली , मुंबई , कोलकाता जैसे बड़े शहरों में शोर का औसत स्तर 90 डीबी पाया गया है। ये मुश्किल से कभी 60 डीबी से नीचे आता है। ताजा रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय महानगरों में पिछले 20 वर्षो में शोर आठ गुना बढ़ गया है तथा यदि इसे नियंत्रित करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाये गए तो आने वाले 20 वर्षो में शहरी आबादी का एक अच्छा खासा हिस्सा बहरा हो जायेगा।

बड़े शहरों में निजी वाहनों की संख्या में तीव्र वृद्धि के साथ साथ परिवहन कोलाहल में 10 डीबी वार्षिक बढ़ोतरी हो रही है। परिवहन ही क्यों , गृहणी की मिक्सी से लेकर ट्रांजिस्टर , स्टीरियो , लाउडस्पीकर , वायुयान , कल कारखाने , टेलिफोन , टाइपराइटर , घरेलु झगडे आदि कुछ भी ध्वनि प्रदूषण के प्रसार से मुक्त नहीं है।

शोर या ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

आज हमें सुरक्षा करने वाली सभी साधनों से उत्पन्न शोर परोक्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य पर निरंतर घातक प्रभाव डालते है। वैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोगों के आधार पर यह माना कि 30 डीबी के शोर से निद्रा टल जाती है , 75 डेसिबल की ध्वनि से टेलीफोन वार्ता प्रभावित होती है , 90 डीबी से अधिक ध्वनी होने पर स्वाभाविक निद्रा में लीन व्यक्ति जाग उठता है। 50 डीबी शोर पर एकाग्रता और कार्यकुशलता कम होती है , 120 डीबी शोर का प्रभाव गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करता है , व्यक्ति चक्कर आने की शिकायत करता है। एक अनुसन्धान के आधार पर यहाँ माना गया है कि 120 डीबी से अधिक तीव्रता की ध्वनि चूहे बर्दाश्त नहीं कर पाए। कई चूहों की तो जीवनलीला ही समाप्त हो गयी।

विश्व के अधिकांश देशों में शोर की अधिकतम सीमा 75 से 85 डीबी के मध्य निर्धारित की गयी है। कई अनुसंधानों के आधार पर यह माना जाता है कि शोर से “हाइपरटेंशन” हो सकता है। जिससे ह्रदय और मस्तिष्क रोग भी हो सकते है , आदमी समय से पूर्व बुढा हो सकता है। शोर के कारण अनिद्रा और कुंठा जैसे विकार उत्पन्न होते है। घातक प्रभावों के कारण शोर को धीरे धीरे मारने वाला कारक कहा जा सकता है।

  • बहरापन तो ध्वनि प्रदूषण का एक स्थूल पहलू अथवा परिणाम है।
  • अन्यथा वह रक्तचाप बढाने ,
  • रक्त में श्वेत कोशिकाओं को कम करने , रक्त में कोलेस्ट्रोल (जो ह्रदय के लिए खतरनाक है ) को बढाने ,
  • गेस्ट्रिक अल्सर पैदा करने ,
  • भूख कम करने
  • स्वभाव में चिडचिडेपन और
  • गर्भस्थ शिशुओं की मौत तक का कारण बन सकता है।

85 डीबी से ऊपर की ध्वनि के प्रभाव में लम्बे समय तक रहने से व्यक्ति बहरा हो सकता है , 120 डीबी की ध्वनि से अधिक ध्वनी गर्भवती महिलाओं और उनके शिशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अधिकांश राष्ट्रों ने शोर की अधिकतम सीमा 75 से 85 डीबी निर्धारित की है।

अनुसंधानों से पता चलता है कि पर्यावरण में शोर की तीव्रता 10 वर्ष में दुगुनी होती जा रही है।

इसका मुख्य प्रभाव निम्नलिखित तालिका दर्शाती है –

 तीव्रता (dB)  प्रभाव
 0  सुनने की शुरुआत
 30  स्वाभाविक निद्रा में से जागरण
 50  निद्रा न आना
 80  कानों पर प्रतिकूल असर
 90  कार्यकुशलता का कम होना
 130  संवेदना आरम्भ
 140  पीड़ा आरम्भ
 130-135  मितली , चक्कर आना , स्पर्श और पेशी संवेदना में अवरोध
 140  कान में पीड़ा , बहुत देर होने पर पगला देने वाली स्थिति
 150 (बहुत देर तक)  त्वचा में जलन
 160 (बहुत देर तक)  छोटे मगर स्थायी परिवर्तन
 190  बड़े स्थायी परिवर्तन थोड़े समय में

  डेसिबल शोर की तीव्रता को मापने का वैज्ञानिक पैमाना है तथा मानव के लिए 40 से 50 डीबी की ध्वनि सहनीय समझी जाती है।

कथन की पुष्टि निम्नलिखित आंकड़े करते है जो हमारे दिन प्रतिदिन के इस्तेमाल की चीजों एवं व्यवहार से उत्पन्न शोर की कहानी स्वयं कहते है।

  • कानों पर प्रतिकूल प्रभाव : इस बारे में ध्वनि वैज्ञानिकों ने विशलेषणात्मक आँकड़े दिए है। मसलन 80 डीबी वाली ध्वनि कानों पर अपना प्रतिकूल असर शुरू कर देती है। 120 डीबी युक्त ध्वनि कान के पर्दों पर भीषण दर्द उत्पन्न कर देती है तथा यदि ध्वनि की तीव्रता 150 डीबी अथवा उससे अधिक हो जाए तो कान के पर्दे फाड़ सकती है , जिससे व्यक्ति बहरा हो सकता है।
  • मानसिक रोगों का कारण : वायुयान क्रांति ने सुविधा संपन्न वर्ग के सफ़र को तथा लम्बी दूरी को घंटो तथा मिनटों में तो जरुर बदला है लेकिन हवाई अड्डो के आसपास रहने वाले रोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर एक ब्रितानी मनोचिकित्सक डॉ. कोलिम मेरिज ने एक अध्ययन में पाया है कि लन्दन के हीथ्रो हवाई अड्डे के समीप रहने वाले व्यक्ति अन्य क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों के मुकाबले अधिक संख्या में मानसिक अस्पतालों में भर्ती किये जाते है , यानी उनमें मानसिक बीमारियाँ अधिक पाई गयी है।

एक फ़्रांसिसी अध्ययन के अनुसार पेरिस में मानसिक तनाव और बीमारियों के 70% मामलों का एकमात्र कारण हवाई अड्डों पर वायुयानों का कोलाहल था। दूर न जाते हुए अपने ही देश का उदाहरण ले तो मुंबई के उपनगर सांताक्रूज के निवासियों ने समीप के हवाई अड्डे से विमानों के अत्यधिक तथा कानफोड कोलाहल की अनेकानेक शिकायतें की है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि अत्यधिक शोर शराबे वाले इलाको में रहने वाले स्कूली बच्चो की न केवल याददाश्त कमजोर पड़ गयी थी बल्कि उनमे सिरदर्द तथा चिड़चिड़ापन के भी लक्षण नोट किये गए।

  • उच्च रक्तचाप और ह्रदय रोग : अत्यधिक शोर शराबे का प्रभाव कानों तथा मस्तिष्क पर तो पड़ता ही है , साथ ही इससे उच्च रक्तचाप और ह्रदय की बीमारियों भी होती है। मुंबई में किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि इस महानगर की 36% आबादी लगातार ध्वनि प्रदूषण के साये में जी रही है। इनमे से 76% लोगों की शिकायत है कि घने कोलाहल के कारण वे किसी भी बात पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते , 60% लोग अशांत नींद सोते है और 65% हमेशा बेचैनी के शिकार रहते है।
  • जरण पर (उम्र पर) : ऑस्ट्रिया के ध्वनी वैज्ञानिक डॉ. ग्रिफिथ का निष्कर्ष है कि कोलाहलपूर्ण वातावरण में रहने वाले लोग अपेक्षाकृत शीघ्र बूढ़े हो जाते है तथा इसी एक पहलू के प्रति लोग कितने आतंकित और असहाय है , इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई वर्ष पूर्व लन्दन में किये गए एक सर्वेक्षण में जब लोगो से यह कहा गया कि वे अपने कामकाज की परिस्थितियों के किसी एक ऐसे पहलू का नाम ले जिससे वे , यदि संभव हो तो छुटकारा पाना चाहेंगे तो अधिकांश ने छूटते ही कहा कि अगर किसी तरह हो सके तो उनकी जिन्दगी को प्रभावित कर रहे इस घातक शोर को कम कर दिया जाए।
  • गर्भस्थ शिशुओं पर : ध्वनि प्रदूषण अजन्मे (गर्भस्थ) शिशुओं के लिए कितना घातक है इसका खुलासा भी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया गया है। हाल ही में “सेंटर ऑन यूथ एण्ड सोशल डेवलपमेंट” द्वारा किये गए अध्ययन में बताया गया है कि बाहरी वातावरण में कोलाहल गर्भवती माँ के लिए तो कई परेशानियाँ पैदा कर ही सकता है , साथ ही वह उसके उदर में पल रहे शिशु की जान भी ले सकता है। उक्त सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार महानगरीय शहरों , औद्योगिक केन्द्रों तथा निर्माण स्थलों के कोलाहलपूर्ण माहौल में पैदा होने वाले तथा बड़े होने वाले बच्चे शारीरिक रूप से विकृत तथा विक्षिप्त भी हो सकते है। अध्ययन रिपोर्ट में आंकड़े देकर बताया गया है कि प्रत्येक 100 में से पांच बहरे व्यक्ति ध्वनि प्रदूषण के शिकार थे।

ध्वनि प्रदूषण एक तकनिकी समस्या है तथा चूँकि उसके साथ आधुनिक सुख सुविधा का साज सामान जुड़ा हुआ है इसलिए ध्वनि प्रदूषण को बिल्कुल समाप्त करने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती। हाँ , उसे नियंत्रित करना आवश्यक है तथा पूरी तरह से व्यवहार्य भी।

मसलन लाउडस्पीकरों के प्रयोग को नियंत्रित किया जाना चाहिए , तेज ध्वनि वाले प्रेशर हॉर्न पर पाबन्दी लगाई जानी चाहिए , कलकारखानों तथा हवाईअड्डे शहरी आबादी से काफी दूर होने चाहिए एवं सबसे बड़ी बात तो यह है कि शोर के इस भस्मासुर के खिलाफ एक खामोश शोर उठाना चाहिए।

शोर प्रदूषण निवारण के उपाय

शोर प्रदूषण से होने वाली हानियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि शोर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाये जाए :

  • कारखानों में होने वाले शोर को कम या नियंत्रित करने के लिए जिन मशीनों में साइलेंसर लग सकते है , लगाये जाने चाहिए और उनको चलाने के लिए मजदूरों को आवश्यक रूप से ईयर प्लग्स , ईयर पफ्स  या हेलमेट्स का प्रयोग करना चाहिए। वेल्डिंग से होने वाले शोर को रिवेटिंग के प्रचलन से कम किया जा सकता है। मशीनों की समय समय पर सफाई करके , तेल और ग्रीस देकर शोर कम किया जा सकता है। ख़राब पुर्जो को बदला जाना चाहिए। जहाँ तक संभव हो कारखानों में प्लास्टिक फर्श लगाना चाहिए।
  • हवाई अड्डो , रेलवे स्टेशनों और कारखानों का निर्माण बस्तियों से दूर किया जाना चाहिए। .ख़राब इंजनो वाले वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।
  • पेड़ पौधे शोर प्रदूषण को कम करते है , अत: कारखानों के आहते में , सडक के दोनों किनारों पर और रेलवे लाइन के दोनों तरफ भी पेड़ लगाये जाने चाहिए।
  • बस , ट्रक , कार , मोटर साइकिल और स्कूटर आदि के हॉर्न मधुर होने चाहिए तथा जहाँ तक संभव हो इनका प्रयोग भी कम किया जाना चाहिए। सार्वजनिक स्थानों पर और रात्रि में लाउडस्पीकरों और अन्य ध्वनी प्रसारकों के प्रयोग को निषिद्ध किया जाना चाहिए।
  • देश के बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के घातक प्रभावों को रोकने और उन्हें कम करने की दिशा में जनचेतना जागृत की जाए तभी इस अदृश्य शत्रु से छुटकारा संभव हो सकता है। इस शुभ कार्य में समाचार पत्र पत्रिकायें , रेडियो तथा टेलीविजन की अहम भूमिका हो सकती है। हमारी आने वाली पीढियों को शांत वातावरण देने के लिए हमें इस प्रबल रोग से अपने आप को बचाना होगा , अन्यथा विश्व शारीरिक दृष्टि से दुर्बल हो जायेगा। इस अनदेखे खतरे से बचने का प्रयास व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए।

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जैव विविधता और पर्यावरण

Make Your Note

ध्वनि प्रदूषण पर UNEP की रिपोर्ट

  • 04 Apr 2022
  • सामान्य अध्ययन-III
  • पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट 2022, भारत में ध्वनि प्रदूषण और अनुमानित शोर का स्तर।

भारत में ध्वनि प्रदूषण और संबंधित कानून तथा मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम रिपोर्ट जिसका शीर्षक वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट 2022 है, उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद ज़िले के एक शहर के उल्लेख के कारण विवादास्पद हो गई है।

  • फ्रंटियर्स रिपोर्ट तीन पर्यावरणीय मुद्दों की पहचान करती है और समाधान प्रस्तुत करती है जिसमें शामिल हैं: शहरी ध्वनि प्रदूषण, जंगल की आग तथा फेनोलॉजिकल परिवर्तन (Phenological Shifts) जो कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता के क्षरण को लेकर इन तीनों र्यावरणीय मुद्दों द्वारा ग्रह के संकट को संबोधित करने हेतु सरकारों व जनता का ध्यान आकर्षित करने तथा कार्रवाई की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • यह रिपोर्ट दुनिया भर के कई शहरों में शोर के स्तर के बारे में अध्ययनों को संकलित करती है और 61 शहरों के एक सबसेट और डीबी (डेसीबल) के स्तरों की सीमा को दर्शाती है।
  • दिल्ली, जयपुर, कोलकाता, आसनसोल और मुरादाबाद इस सूची में उल्लिखित पांँच भारतीय शहर हैं।
  • 114 के अधिकतम स्तर पर यह सूची में दूसरा सबसे अधिक शोर वाला शहर था।
  • जबकि सड़क यातायात, उद्योग और उच्च जनसंख्या घनत्व उच्च डेसीबल स्तरों से जुड़े जाने-माने प्रमुख कारक हैं, मुरादाबाद को सूची में शामिल करना तर्कसंगत इसलिये नहीं माना गया क्योंकि अतीत में किये गए इसी तरह के अध्ययनों में कभी भी इसे असामान्य रूप से शोर वाले शहर की सूची में शामिल करने का सुझाव नहीं दिया गया था।
  • प्रथम स्थान पर ढाका, बांग्लादेश शामिल था जिसमें डीबी का स्तर 119 से अधिक था।

शोर के स्तर के मापन का महत्त्व:

  • वर्ष 2018 के विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नवीनतम दिशा-निर्देशों में 53 डीबी के सड़क यातायात के शोर के स्तर हेतु एक स्वास्थ्य-सुरक्षात्मक सिफारिश प्रस्तुत की थी।
  • बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएँ तथा शिफ्ट में कार्य करने वाले कर्मचारियों को शोर-शराबे के कारण नॉइज़ डिस्टर्बेंस का खतरा होता है।
  • शोर-प्रेरित जागरण कई शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तनाव प्रतिक्रियाओं का कारण बन सकता है क्योंकि नींद हार्मोनल विनियमन और हृदय संबंधी कामकाज के लिये आवश्यक होती है।
  • ट्रैफिक शोर हृदय और चयापचय संबंधी विकारों जैसे कि उच्च रक्तचाप, धमनी उच्च रक्तचाप, कोरोनरी हृदय रोग और मधुमेह के विकास हेतु एक ज़ोखिम कारक है।
  • लंबे समय तक पर्यावरण में शोर के संपर्क में रहने से प्रतिवर्ष इस्केमिक हृदय रोग (Ischemic Heart Disease) के 48,000 नए मामले सामने आते हैं जो यूरोप में प्रतिवर्ष 12,000 लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बनता है।

ध्वनि प्रदूषण के संदर्भ में भारत का रुख:

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को अपनी राज्य इकाइयों के माध्यम से ध्वनि के स्तर को ट्रैक करने, मानकों को निर्धारित करने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि अत्यधिक ध्वनि के स्रोतों को नियंत्रित किया जाए।
  • एजेंसी के पास एक मैनुअल मॉनीटरिंग सिस्टम है जिसके अंतर्गत प्रमुख शहरों में सेंसर लगाए जाते हैं तथा कुछ शहरों में वास्तविक समय में शोर के स्तर को ट्रैक करने की सुविधा होती है।

भारत में ध्वनि प्रदूषण से संबंधित कानून:

  • इससे पहले ध्वनि प्रदूषण और इसके स्रोतों को वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत नियंत्रित किया जाता था।
  • इसके अतिरिक्त पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के तहत मोटर वाहनों, एयर-कंडीशनर, रेफ्रिज़रेटर, डीज़ल जनरेटर और कुछ अन्य प्रकार के निर्माण उपकरणों के लिये ध्वनि मानक निर्धारित किये गए हैं।
  • वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत उद्योगों से होने वाले शोर को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/प्रदूषण नियंत्रण समितियों (SPCBs/ PCCs) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

स्रोत: द हिंदू

presentation on sound pollution in hindi

HindiKiDuniyacom

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (Noise Pollution Essay in Hindi)

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण को पर्यावरण प्रदूषण के रुप में पर्यावरण को बड़े स्तर पर विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से हानि पहुंचाने वाले तत्वों के रुप में माना जाता है। ध्वनि प्रदूषण को ध्वनि अव्यवस्था के रुप में भी जाना जाता है। अत्यधिक शोर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है और मानव या पशु जीवन के लिए असंतुलन का कारण है। यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है, हालांकि, यह जल, वायु, मृदा प्रदूषण आदि से कम हानिकारक है।

ध्वनि प्रदूषण पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Noise Pollution in Hindi, Dhwani Pradushan par Nibandh Hindi mein)

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

ध्वनि के दुरुपयोग द्वारा होने वाले प्रदूषण को ध्वनि प्रदूषण कहते है। हमारे कान नियमित तेज आवाज को सहन नहीं कर पाते और जिससे कान के पर्दें बेकार हो जाते हैं जिसका परिणाम अस्थायी या स्थायी रुप से सुनने की क्षमता की हानि होता है।

कारण और प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण के कुछ मुख्य स्त्रोत सड़क पर यातायात के द्वारा उत्पन्न शोर, निर्माणकार्य (भवन, सड़क, शहर की गलियों, फ्लाई ओवर आदि) के कारण उत्पन्न शोर, औद्योगिक शोर, दैनिक जीवन में घरेलू उत्पादकों (जैसे घरेलू सामान, रसोइ घर का सामान, वैक्यूम क्लीनर, कपड़े धोने की मशीन, मिक्सी, जूसर, प्रेसर कूकर, टीवी, मोबाइल, ड्रायर, कूलर आदि) से उत्पन्न शोर, आदि हैं।

अधिक तेज आवाज सामान्य व्यक्ति की सुनने की क्षमता को हानि पहुँचाती है। अधिक तेज आवाज धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और एक धीरे जहर के रुप में कार्य करती है। इसके कारण और भी कई परेशानी होती हैं जैसे: सोने की समस्या, कमजोरी, अनिद्रा, तनाव, उच्च रक्त दाब, वार्तालाप समस्या आदि।

ध्वनि प्रदूषण का रोकथाम

ध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए हमें उचित कदम लेने की जरुरत है। लाउड स्पीकर, हॉर्न, और अन्य उपकरण जो शोरगुल मचाते है, उन्हें कम से कम इस्तेमाल करने की जरुरत है।

अत्यधिक शोर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है और मानव या पशु जीवन के लिए असंतुलन का कारण है। यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है।यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है।

निबंध 2 (400 शब्द) – ध्वनि प्रदूषण के परिणाम

पर्यावरण में बहुत प्रकार के प्रदूषण हैं, ध्वनि प्रदूषण, उनमें से एक है, और स्वास्थ्य के लिये बहुत खतरनाक है। यह बहुत ही खतनराक हो गया है कि इसकी तुलना कैंसर आदि जैसी खतरनाक बीमारियों से की जाती है, जिससे धीमी मृत्यु निश्चित है। ध्वनि प्रदूषण आधुनिक जीवन और बढ़ते हुये औद्योगिकीकरण व शहरीकर का भयानक तौहफा है। यदि इसे रोकने के लिये नियमित और कठोर कदम नहीं उठाये गये तो ये भविष्य की पीढियों के लिये बहुत गंभीर समस्या बन जायेगा। ध्वनि प्रदूषण वो प्रदूषण है जो पर्यावरण में अवांछित ध्वनि के कारण उत्पन्न होता है। यह स्वास्थ्य के लिये बहुत बड़ा जोखिम और बातचीत के समय समस्या का कारण बनता है।

उच्च स्तर का ध्वनि प्रदूषण बहुत से मनुष्यों के व्यवहार में चिडचिड़पन लाता है विशेषरुप से रोगियों, वृद्धों और गर्भवति महिलाओं के व्यवहार में। अवांछित तेज आवाज बहरेपन और कान की अन्य जटिल समस्याओं जैसे, कान के पर्दों का खराब होना, कान में दर्द, आदि का कारण बनती है। कभी-कभी तेज आवाज में संगीत सुनने वालों को अच्छा लगता है, बल्कि अन्य लोगों को परेशान करता है।

वातावरण में अनिच्छित आवाज स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। कुछ स्त्रोत ऐसे है जो ध्वनि प्रदूषण में मुख्य रुप से भाग लेते हैं जैसे उद्योग, कारखानें, यातायात, परिवहन, हवाई जहाज के इंजन, ट्रेन की आवाज, घरेलू उपकरणों की आवाज, निर्माणकार्य आदि।

उच्च स्तर की ध्वनि उपद्रव, चोट, शारीरिक आघात, मस्तिष्क में आन्तरिक खून का रिसाव, अंगों में बड़े बुलबुले और यहां तक कि समुद्री जानवरों मुख्यतः व्हेल और डॉलफिन आदि की मृत्यु का कारण बनती है क्योंकि वो बातचीत करने, भोजन की खोज करने, अपने आपको बचाने और पानी में जीवन जीने के लिये अपने सुनने की क्षमता का ही प्रयोग करती हैं। पानी में शोर का स्त्रोत जल सेना की पनडुब्बी है जिसे लगभग 300 माल दूरी से महसूस किया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण के परिणाम बहुत अधिक खतरनाक है और निकट भविष्य में चिंता का विषय बन रहे हैं।

60 डीबी आवाज को सामान्य आवाज माना जाता है, हालांकि, 80 डीबी या इससे अधिक आवाज शारीरिक दर्द का कारण और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। वो शहर जहां ध्वनि की दर 80 डीबी से अधिक हैं उनमें से दिल्ली (80 डीबी), कोलकत्ता (87 डीबी), मुम्बई (85 डीबी), चेन्नई (89 डीबी) आदि हैं। पृथ्वी पर जीवन जीने के लिये अपने स्तर पर शोर को सुरक्षित स्तर तक कम करना बहुत आवश्यक हो गया है क्योंकि अवांछित शोर मनुष्यों, पेड़-पौधो, और जानवरों के भी जीवन को प्रभावित करता है। ये लोगों में ध्वनि प्रदूषण, इसके मुख्य स्त्रोत, इसके हानिकारक प्रभावों के साथ ही इसे रोकने के उपायों बारे में सामान्य जागरुकता लाकर संभव किया जा सकता है।

निबंध 3 (500 शब्द) – ध्वनि प्रदूषण के कारण

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण उस स्थिति में उत्पन्न होता है जब पर्यावरण में आवाज का स्तर सामान्य स्तर से बहुत अधिक होता है। पर्यावरण में अत्यधिक शोर की मात्रा जीने के उद्देश्य से असुरक्षित है। कष्टकारी आवाज प्राकृतिक सन्तुलन में बहुत सी परेशानियों का कारण बनती है। तेज आवाज या ध्वनि अप्राकृतिक होती है और अन्य आवाजों के बाहर जाने में बाधा उत्पन्न करती है। आधुनिक और तकनीकी के इस संसार में, जहां सब कुछ घर में या घर के बाहर बिजली के उपकरणों से संभव है, ने तेज ध्वनि के खतरे के अस्तित्व में वृद्धि कर दी है।

भारत में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की बढ़ती हुई मांग लोगों में अवांछित आवाज के प्रदर्शन का कारण हैं। रणनीतियों का समझना, योजना बनाना और उन्हें प्रयोग करना ध्वनि प्रदूषण को रोकना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वो आवाज जिसका हम प्रतिदिन निर्माण करते हैं जैसे, तेज संगीत सुनना, टीवी, फोन, मोबाइल का अनावश्यक प्रयोग, यातायात का शोर, कुत्ते का भौंकना, आदि ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्त्रोत शहरी जीवन का एक अहम हिस्सा होने के साथ ही सबसे ज्यादा परेशान करने वाले, सिर दर्द, अनिद्रा, तनाव आदि कारण बनता हैं। ये चीजें दैनिक जीवन के प्राकृतिक चक्र को बाधित करती हैं, वो खतरनाक प्रदूषक कहलाते हैं। ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत, कारक और प्रभाव निम्नलिखित हैं:

ध्वनि प्रदूषण के कारक या कारण

  • औद्योगिकीकरण ने हमारे स्वास्थ्य और जीवन को खतरे पर रख दिया है क्योंकि सभी (बड़े या छोटे) उद्योग मशीनों का प्रयोग करते हैं जो बहुत ज्यादा मात्रा में तेज आवाज पैदा करती है। कारखानों और उद्योगों में प्रयोग होने वाले अन्य उपकरण (कम्प्रेशर, जेनरेटर, गर्मी निकालने वाले पंखे, मिल) भी बहुत शोर उत्पन्न करते हैं।
  • सामान्य सामाजिक उत्सव जैसे शादी, पार्टी, पब, क्लब, डिस्क, या पूजा स्थल के स्थान मन्दिर, मस्जिद, आदि आवासीय इलाकों में शोर उत्पन्न करते हैं।
  • शहरों में बढ़ते हुए यातायात के साधन (बाइक, हवाई जहाज, अंडर ग्राउंड ट्रेन आदि) तेज शोर का निर्माण करते हैं।
  • सामान्य निर्माणी गतिविधियाँ (जिसमें खानों, पुलों, भवनों, बांधो, स्टेशनों, आदि का निर्माण शामिल है), जिसमें बड़े यंत्र शामिल होते हैं उच्च स्तर का शोर उत्पन्न करते हैं।
  • दैनिक जीवन में घरेलू उपकरणों का उपयोग ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

  • ध्वनि प्रदूषण से बहुत सी सुनने की समस्याएं (कान के पर्दों का खराब होना और स्थायी रुप से सुनने की क्षमता का ह्रास होना) अवांछित आवाज के कारण होती हैं।
  • यह कानों की ध्वनि संवेदनशीलता को कम करता है जो शरीर नियंत्रित रखने में सहायक होती है।
  • जंगली जानवरों के जीवन को प्रभावित करके उन्हें बहुत आक्रामक बनाता है।

रोकने के उपाय

पर्यावरण में असुरक्षित आवाज के स्तर को नियंत्रित करने के लिये लोगों के बीच में सामान्य जागरुकता को बढ़ाना चाहिये और प्रत्येक के द्वारा सभी नियमों को गंभीरता से माना जाना चाहिये। घर में या घर के बाहर जैसे: क्लब, पार्टी, बार, डिस्को आदि में अनावश्यक शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों के प्रयोग को कम करना चाहिये।

ध्वनि प्रदूषण के कई निवारक उपाय हैं जैसे, उद्योगों में साउड प्रूफ कमरों के निर्माण को बढ़ावा देना, उद्योग और कारखानें आवासीय इमारत से दूर होनी चाहिए, मोटरसाइकिल के खराब हुये पाइपों की मरम्मत, शोर करने वाले वाहनों पर प्रतिबंध, हवाई अड्डों, बस, रेलवे स्टेशनों और अन्य परिवहन टर्मिनलों का आवासीय स्थलों से दूर होना चाहिए, शैक्षणिक संस्थानों और हॉस्पिटल्स के आसपास के इलाकों को आवाज-निषिद्ध क्षेत्र घोषित किया जाये, सड़को पर शोर के कारण उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रदूषण को अवशोषित करने के लिये रिहायसी इलाकों के आस-पास हरियाली लगाने की अनुमति देनी चाहिये।

निबंध 4 (600 शब्द) – ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत

ध्वनि प्रदूषण वो औद्योगिक या गैर-औद्योगिक क्रियाएं हैं जो मनुष्य, पौधो और पशुओं के स्वास्थ्य पर बहुत से आयामों से विभिन्न ध्वनि स्त्रोतों के द्वारा आवाज पैदा करके प्रभावित करती है। निरंतर बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के स्तर ने वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के जीवन को बड़े खतरे पर रख दिया है। हम नीचे ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोतों, प्रभावों और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिये वैधानिक आयामों पर चर्चा करेंगे।

ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत निम्न लिखित हैं

भारत में बहुत अधिक ध्वनि प्रदूषण शहरीकरण, आधुनिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण आदि के द्वारा बढ़ा है। ध्वनि का प्रसार औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्त्रोतों के कारण हुआ है। ध्वनि के औद्योगिक स्त्रोतों में तेज गति से काम करने वाली उच्च तकनीकी की बड़ी मशीनें और बहुत से उद्योगों में ऊंची आवाज पैदा करने वाली मशीनें शामिल हैं। ध्वनि पैदा करने वाले गैर-औद्योगिक स्त्रोतों में यातायत के साधन, परिवहन और अन्य मानव निर्मित गतिविधियाँ शामिल हैं। ध्वनि प्रदूषण के कुछ औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्त्रोत नीचे दिये गये हैं:

  • वायु सेना के एयर क्राफ्ट पर्यावरण में बहुत बड़े स्तर पर ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि करते हैं।
  • सड़क पर चलने वाले परिवहन के साधन दिन प्रति दिन मोटर वाहनों जैसे ट्रक, बसों, ऑटो, बाइक, वैयक्तिक कार आदि अधिक आवाज उत्पन्न करने लगें हैं। शहरों की बड़ी इमारतें अपने निर्माण के समय में कुछ समय के लिये अपने आस-पास के क्षेत्र में ध्वनि उत्पन्न करती हैं।
  • विनिर्माण उद्योगों में मोटर और कम्प्रशेर, पंखे आदि के प्रयोग के कारण उत्पन्न औद्योगिक शोर।
  • बड़ी इमारतों, सड़को, हाई-वे, शहर की सड़कों आदि के निर्माण के समय हथौड़े, बुलडोजर, एयर कम्प्रेशर, डम्पिंग ट्रक, लोडर आदि के माध्यम से उत्पन्न निर्माणी ध्वनि।
  • रेल की पटरियों का शोर (ट्रेन के लोकोमोटिव इंजन, सीटी, हार्न, रेलवे फाटक को उठाते और गिराते समय) उच्च स्तर के शोर का निर्माण करने में बहुत प्रभावी होता है क्योंकि ये चरम सीमा की ध्वनि लगभग 120 डीबी से 100 फीट की दूरी तक की आवाज पैदा करते हैं।
  • इमारतों में प्लम्बिंग, जैनरेटर, ब्लोअर, घरेलू उपकरणों, संगीत, एयर कंडीशनर, वैक्यूम क्लिनर, रसोइघर के उपकरण, पंखों और अन्य गतिविधियों के कारण उत्पन्न शोर।
  • ध्वनि प्रदूषण का एक अन्य स्त्रोत विभिन्न किस्मों के पटाखों का त्योहारों और अन्य पारिवारिक उत्सवों के दौरान प्रयोग है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं

ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों, जानवरों और सम्पत्ति के स्वास्थ्य को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उनमे से कुछ निम्न है:

  • दिन प्रति दिन बढ़ता ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों की काम करने की क्षमता और गुणवत्ता को कम करता है।
  • ध्वनि प्रदूषण थकान के कारण एकाग्रता की क्षमता को बड़े स्तर पर कम करता है।
  • गर्भवती महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करता है और चिड़चिड़ेपन और गर्भपात का कारण बनता है।
  • लोगों में बहुत सी बीमारियों (उच्च रक्तदाब और मानसिक तनाव) का कारण होता है क्योंकि मानसिक शान्ति को भंग करता है।
  • तेज आवाज काम की गुणवत्ता को कम करती है और जिसके कारण एकाग्रता का स्तर कम होता है।
  • यदि आवाज का स्तर 80 डीबी से 100 डीबी हो तो यह लोगों में अस्थायी या स्थायी बहरेपन का कारण बनता है।
  • यह ऐतिहासिक इमारतों, पुरानी इमारतों, पुलों आदि को हानि पहुंचाता है क्योंकि ये संरचना में बहुत कमजोर होती है और तेज ध्वनि खतरनाक तरंगों का निर्माण करती है जो उनकी दिवारों को हानि पहुंचाती है।
  • पशु अपने मस्तिष्क पर अपना नियंत्रण खो देते हैं और बहुत खतरनाक हो जाते हैं क्योंकि तेज आवाज उनके नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को प्रभावित करती है।
  • यह पेड़-पौधों को भी प्रभावित करता है और जिसके कारण खराब किस्म का उत्पादन होता है।

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये वैधानिक कदम निम्नलिखित है:

  • भारत के संविधान ने जीवन जीने, सूचना प्राप्त करने, अपने धर्म को मानने और शोर करने के अधिकार प्रदान किये हैं।
  • धारा 133 ने नागरिकों को शक्ति प्रदान की हैं कि वो सशर्त और स्थायी आदेश पर पब्लिक प्रदर्शन को हटा सकती है।
  • पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1996 के अन्तर्गत ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियम 2000 को ध्वनि प्रदूषण की बढ़ती हुई समस्या को नियंत्रित करने के लिये शामिल किया है।
  • ध्वनि की कमी और तेल की मशीनरी का कारखाना अधिनियम कार्यस्थल पर शोर को नियंत्रित करता है।
  • मोटर वाहन अधिनियम हार्न और खराब इंजन के इस्तेमाल को शामिल करता है।
  • भारतीय दंड संहिता ध्वनि प्रदूषण के द्वारा उत्पन्न स्वास्थ्य और सुरक्षा के मुद्दों से संबंधित है। किसी को भी ट्रोट कानून के अन्तर्गत दंडित किया जा सकता है।

ध्वनि प्रदूषण ने इसके स्त्रोत, प्रभाव और ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपायों के बारे में सामान्य जागरुकता की तत्काल आवश्यकता का निर्माण किया है। कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थान, आवासीय क्षेत्र, अस्पताल आदि स्थानों पर ध्वनि का तेज स्तर रोका जाना चाहिये। युवा बच्चों और विद्यार्थियों को तेज आवाज करने वाली गतिविधियों जैसे; किसी भी अवसर पर तेज आवाज पैदा करने वाले उपकरणों और यंत्रो का प्रयोग आदि में शामिल न होने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। तेज आवाज करने वाले पटाखों के विशेष अवसरों जैसे; त्योहारों, पार्टियों, शादियों, आदि में प्रयोग को कम करना चाहिये। ध्वनि प्रदूषण से संबंधित विषयों को पाठ्यपुस्तकों में जोड़ा जाये और विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों जैसे लेक्चर, चर्चा आदि को आयोजित किया जा सकता है, ताकि नयी पीढ़ी अधिक जागरुक और जिम्मेदार नागरिक बन सके।

Essay on Noise Pollution in Hindi

FAQs: Frequently Asked Questions on Noise Pollution (ध्वनि प्रदूषण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- ध्वनि प्रदूषण मानव के कान के पर्दो को अत्यधिक प्रभावित करता है?

उत्तर- कल कारखाने तथा यातायात के साधन।

उत्तर- 180 डेसीबल

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ध्वनि प्रदूषण के कारण और उपाय - Noise Pollution in Hindi

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ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारणों में से एक है। यह जल, वायु और मृदा प्रदूषण (जमीन की उर्वरक क्षमता का कमजोर होना) से कम हानिकारक होता है। तेज ध्वनि के साथ उठने वाला शोर हमारे जीवन पर विपरीत असर डालता है। इसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। इसके कारण लोगों को कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। ध्वनि प्रदूषण जंगली और मानव जीवन के साथ पेड़-पौधों को भी प्रभावित करता है।

हमारे कान एक निश्चित ध्वनि की तीव्रता को ही सुन सकते हैं। ऐसे में तेज ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। नियमित रूप से तेज ध्वनि से सुनने से कान के पर्दे फट सकते हैं। इसके अलावा तेज ध्वनि हमारे स्थायी या अस्थायी रुप से बहरेपन का कारण बन सकती है। 

ध्वनि प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारी

हाई ब्लड प्रेशर

एकाग्रता में कमी

बात करने में परेशानी

कितनी तीव्रता की ध्वनि हमारे काम सुन सकते हैं

60 डीबी आवाज को सामान्य आवाज माना जाता है। जबकि 80 डीबी या इससे अधिक क्षमता की आवाज हमारे लिए शारीरिक कष्ट का कारण बन सकती है। ध्वनि की इतनी तीव्रता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। 

ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत

रेल यातायात

औद्योगिक और आवासीय इमारतों का निर्माण

कार्यालय के उपकरण

फैक्टरी और मशीनरी

बिजली उपकरण

ऑडियो मनोरंजन सिस्टम

ध्वनि प्रदुषण के कारण - Dhwani Pradushan Ke Karan

  • उद्योग: लगभग सभी औद्योगिक क्षेत्र ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित हैं। कल-कारखानों में चलने वाली मशीनों से निकलने वाली गड़गड़ाहट की आवाज से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। ताप विद्युत केंद्र में लगे बॉयलर और टरबाइन भी ध्वनि प्रदूषण के बड़े उदाहरण हैं।
  • परिवहन के साधन: परिवहन के सभी साधन कम या अधिक मात्रा में आवाज करते हैं। इनसे निकलने वाली आवाजों से ध्वनि प्रदूषण होता है। परिवहन के साधनों से ध्वनि प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण भी फैलता है।
  • मनोरंजन के साधन: मनोरंजन के लिए उपयोगी उपकरण जैसे टी.वी., रेडियो, टेप रिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम (डी.जे.) आदि ध्वनि प्रदूषण के कारण हैं। इनसे उत्पन्न होने वाली तीव्र ध्वनि शोर का कारण बनती है। इससे ध्वनि प्रदूषण फैलता है। शादी समारोह, धार्मिक आयोजन, मेला, पार्टी और अन्य प्रकार के फंक्शन में लाउड स्पीकर के उपयोग से ध्वनि प्रदूषण होता है। 
  • निर्माण कार्य: कंस्ट्रक्शन साइट पर होने वाले शोर से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। भवनों, पुल, ब्रिज, सड़क, बांध, मकान, फैक्टरियों और कारखनों समेत विभिन्न प्रकार के निर्माण के दौरान होने वाला शोर ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है। 
  • आतिशबाजी: आतिशबाजी यानी पटाखे जलाना पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। यह ध्वनि प्रदूषण के लिए भी उतना ही जिम्मेदार है। शादी समारोह, खुशी या जश्न का माहौल, दीपावली और राजनीतिक कार्यक्रम ये ऐसे मौके हैं जब लोग जमकर आतिशबाजी करते हैं। जिससे बड़ी मात्रा में ध्वनि प्रदूषण फैलता है। 
  • रेल: रेल आवागमन से भारी मात्रा में शोर होता है। रेल की पटरियों का शोर, ट्रेन के लोकोमोटिव इंजन और हार्न की तेज आवाज से लगभग 120 डीबी का शोर होता है। यह शोर ध्वनि प्रदूषण को बड़े स्तर पर बढ़ावा देता है। 
  • सैन्य उपकरण: वायु सेना के एयर क्राफ्ट से बहुत तेज शोर निकलता है। ये विमान पर्यावरण में बहुत बड़े स्तर पर ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि करते हैं।
  • अन्य कारण: ध्वनि प्रदूषण के अन्य कारणों में धरने प्रदर्शन, रैलियां, नारेबाजी, राजनीतिक और गैर-राजनीतिक रैलियों में उमड़ने वाली भीड़, कार्यक्रम में एकत्रित जनसमूहों का एक साथ वार्तालाप करना शामिल है। उपर्युक्त सभी कारणों से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। 

ध्वनि प्रदूषण से होने वाले नुकसान

ध्वनि प्रदूषण लोगों के काम करने की क्षमता और गुणवत्ता को कम करता है।

ध्वनि प्रदूषण हमारी एकाग्र क्षमता को प्रभावित करता है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण गर्भवती महिलाओं के व्यवहार में चिड़चिड़ापन आता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण कई बार गर्भपात की स्थिति बन जाती है। 

ध्वनि प्रदूषण हमारी मानसिक शांति को भंग करता है। 

यह हाई ब्लड प्रेशर की समस्या और और मानसिक तनाव के लिए जिम्मेदार होता है।

ध्वनि का स्तर 80 डीबी से 100 डीबी होने पर यह हमें बहरा बना सकता है।

तेज ध्वनि से पशुओं का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। इसके कारण वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं और हिंसक हो जाते हैं।

ध्वनि प्रदुषण से बचाव के उपाय - Dhwani Pradushan Se Bachne Ke Upay in Hindi

सरकार और आम लोगों के संयुक्त प्रयासों से ध्वनि व शोर की तीव्रता को कम कर ध्वनि प्रदूषण कम किया जा सकता है।

सड़क किनारे पौधारोपण कर पौधों की लंबी कतार खड़ी करके ध्वनि प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सकता है। हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 डीबी तक कम कर सकते हैं। 

हॉर्न के अनुचित उपयोग को बंद कर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। 

प्रेशर हार्न पर रोक, इंजन व मशीनों की समय पर मरम्मत और एक बेहतर ट्रेफिक व्यवस्था के जरिए ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

निजी वाहनों की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल ध्वनि प्रदूषण को कम कर सकता है। 

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पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध हिंदी में: प्रदूषण के प्रकार, कारण, प्रभाव, नियंत्रण के उपाय

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध: (essay on environmental pollution in hindi), पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते है (what is environmental pollution).

प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। विज्ञान के इस युग में मानव को जहाँ कुछ वरदान मिले है, वहीं कुछ अभिशाप भी मिले हैं। 'प्रदूषण' एक ऐसा अभिशाप हैं, जो विज्ञान की गर्भ से जन्मा हैं और आज जिसे सहने के लिए विश्व की अधिकांश जनता मजबूर हैं। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ तक मानव की वे सामान्य गतिविधियाँ भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषक हैं। हालाँकि उसके तत्व प्रदूषक नहीं हैं। यह सूर्य की रोशनी की ऊर्जा है, जो कि उसे धुएँ और कोहरे के मिश्रण में बदल देती है।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार:

पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • जल प्रदूषण (Water Pollution)
  • वायु प्रदूषण (Air Pollution)
  • ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)
  • भूमि प्रदूषण (Land Pollution)
  • प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution)
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radioactive Pollution)

1. जल प्रदूषण किसे कहते है? (What is Water Pollution in Hindi)

जल प्रदूषण: जल में किसी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति, जो जल के स्वाभाविक गुणों को इस प्रकार परिवर्तित कर दे कि जल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए जल प्रदूषण कहलाता है। अन्य शब्दों में ऐसे जल को नुकसानदेह तथा लोक स्वास्थ्य को या लोक सुरक्षा को या घरेलू, व्यापारिक, औद्योगिक, कृषीय या अन्य वैद्यपूर्ण उपयोग को या पशु या पौधों के स्वास्थ्य तथा जीव-जन्तु को या जलीय जीवन को क्षतिग्रस्त करें, जल प्रदूषण कहलाता है।

जल प्रदूषण के कारण: (Causes of Water Pollution in Hindi)

जल प्रदूषण के विभिन्न कारण निम्नलिखित हैः

  • मानव मल का नदियों, नहरों आदि में विसर्जन।
  • सफाई तथा सीवर का उचित प्रबंध्न न होना।
  • विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपने कचरे तथा गंदे पानी का नदियों, नहरों में विसर्जन।
  • कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले जहरीले रसायनों तथा खादों का पानी में घुलना।
  • नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारम्परिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलू सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन।

जल प्रदूषण के प्रभाव: (Impacts of Water Pollution)

जल प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव हैः

  • इससे मनुष्य, पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है। इससे टाईफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं।
  • इससे विभिन्न जीव तथा वानस्पतिक प्रजातियों को नुकसान पहुँचता है।
  • इससे पीने के पानी की कमी बढ़ती है, क्योंकि नदियों, नहरों यहाँ तक कि जमीन के भीतर का पानी भी प्रदूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण रोकने के उपाय: (Measures to prevent Water Pollution)

जल प्रदूषण पर निम्नलिखित उपायों से नियंत्रण किया जा सकता है-

  • वाहित मल को नदियों में छोड़ने के पूर्व कृत्रिम तालाबों में रासायनिक विधि द्वारा उपचारित करना चाहिए।
  • अपमार्जनों का कम-से-कम उपयोग होना चाहिए। केवल साबुन का उपयोग ठीक होता है।
  • कारखानों से निकले हुए अपशिष्ट पदार्थों को नदी, झील एवं तालाबों में नहीं डालना चाहिए।
  • घरेलू अपमार्जकों को आबादी वाले भागों से दूर जलाशयों मे डालना चाहिए।
  • जिन तालाबों का जल पीने का काम आता है, उसमें कपड़े, जानवर आदि नहीं धोने चाहिए।
  • नगरों व कस्बों के सीवेज में मल-मूत्र, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु होते हैं। इसे आबादी से दूर खुले स्थान में सीवेज को निकाला जा सकता है या फिर इसे सेप्टिक टैंक, ऑक्सीकरण ताल तथा फिल्टर बैड आदि काम में लाए जा सकते हैं।
  • बिजली या ताप गृहों से निकले हुए पानी को स्प्रे पाण्ड या अन्य स्थानों से ठंडा करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।

2. वायु प्रदूषण किसे कहते है? (What is Air Pollution in Hindi)

वायु प्रदूषण: वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।

वायु प्रदूषण के कारण: (Causes of Air Pollution in Hindi)

वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य कारण हैं:

  • वाहनों से निकलने वाला धुआँ।
  • औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुँआ तथा रसायन।
  • आणविक संयत्रों से निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण।
  • जंगलों में पेड़ पौधें के जलने से, कोयले के जलने से तथा तेल शोधन कारखानों आदि से निकलने वाला धूआँ।

वायु प्रदूषण का प्रभाव: (Impacts of Air Pollution)

वायु प्रदूषण हमारे वातावरण तथा हमारे ऊपर अनेक प्रभाव डालता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित है :

  • हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पंक्षियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, सर्दी-खाँसी, अँधापन, श्रवण शक्ति का कमजोर होना, त्वचा रोग जैसी बीमारियाँ पैदा होती हैं। लंबे समय के बाद इससे जननिक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और अपनी चरमसीमा पर यह घातक भी हो सकती है।
  • वायु प्रदूषण से सर्दियों में कोहरा छाया रहता है, जिसका कारण धूएँ तथा मिट्टी के कणों का कोहरे में मिला होना है। इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है तथा आँखों में जलन होती है और साँस लेने में कठिनाई होती है।
  • ओजोन परत, हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है। जो हमें सूर्य से आनेवाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। वायु प्रदूषण के कारण जीन अपरिवर्तन, अनुवाशंकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं।
  • वायु प्रदुषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, क्योंकि सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाइ आक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस आक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता है, जो कि हानिकारक हैं।
  • वायु प्रदूषण से अम्लीय वर्षा के खतरे बढ़े हैं, क्योंकि बारिश के पानी में सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड आदि जैसी जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है। इससे फसलों, पेड़ों, भवनों तथा ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँच सकता है।

वायु प्रदूषण रोकने के उपाय: (Measures to prevent Air Pollution)

वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती हैं-

  • जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
  • लोगो को वायु प्रदूषण से होने वाले नुक्सान और रोगों के बारे में जानकारी प्रदान की जानी चाहिए।
  • धुम्रपान पर नियंत्रण लगा देना चाहिए।
  • कारखानों के चिमनियों की ऊंचाई अधिक रखना चाहिए।
  • कारखानों के चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग करना चाहिए।
  • मोटरकारों और स्वचालित वाहनों को ट्यूनिंग करवाना चाहिए ताकि अधजला धुआं बाहर नहीं निकल सकें।
  • अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
  • उद्योगों की स्थापना शहरों एवं गांवों से दूर करनी चाहिए।
  • अधिक धुआं देने वाले स्वचालितों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
  • सरकार द्वारा प्रतिबंधात्मक कानून बनाकर उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।

3. ध्वनि प्रदूषण किसे कहते है? (What is Sound Pollution in Hindi)

ध्वनि प्रदूषण: जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो जाती है तो वह कानों को अप्रिय लगने लगती है। इस अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि को शोर कहते हैं। शोर से मनुष्यों में अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है। साथ ही साथ कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः शोर वह अवांक्षनीय ध्वनि है जो मनुष्य को अप्रिय लगे तथा उसमें बेचैनी तथा उद्विग्नता पैदा करती हो। पृथक-पृथक व्यक्तियों में उद्विग्नता पैदा करने वाली ध्वनि की तीव्रता अलग-अलग हो सकती है। वायुमंडल में अवांछनीय ध्वनि की मौजूदगी को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण (Causes of Sound Pollution in Hindi): रेल इंजन, हवाई जहाज, जनरेटर, टेलीफोन, टेलीविजन, वाहन, लाउडस्पीकर आदि आधुनिक मशीनें।

ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव (Impacts of Sound Pollution in Hindi): लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्चरक्तचाप अथवा स्नायविक, मनोवैज्ञानिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं। लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से स्वाभाविक परेशानियाँ बढ़ जाती है।

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय: (Measures to prevent Sound Pollution)

ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-

  • लोगों मे ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोगों के बारे में उन्हें जागरूक करना चाहिए।
  • कम शोर करने वाले मशीनों-उपकरणों का निर्माण एवं उपयोग किए जाने पर बल देना चाहिए।
  • अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले मशीनों को ध्वनिरोधी कमरों में लगाना चाहिए तथा कर्मचारियों को ध्वनि अवशोषक तत्वों एवं कर्ण बंदकों का उपयोग करना चाहिए।
  • उद्योगों एवं कारखानों को शहरों या आबादी से दूर स्थापित करना चाहिए।
  • वाहनों में लगे हार्नों को तेज बजाने से रोका जाना चाहिए।
  • शहरों, औद्योगिक इकाइयों एवं सड़कों के किनारे वृक्षारोपण करना चाहिए। ये पौधे भी ध्वनि शोषक का कार्य करके ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं।
  • मशीनों का रख-रखाव सही ढंग से करना चाहिए।

4. भूमि प्रदूषण किसे कहते है? (What is Land Pollution in Hindi)

भूमि प्रदूषण: भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में कोई ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर पड़े या जिससे भूमि की गुणवत्त तथा उपयोगित नष्ट हो, 'भूमि प्रदूषण' कहलाता है। इसके अन्तर्गत घरों के कूड़ा-करकट के अन्तर्गत झाड़न-बुहारन से निकली धूल, रद्दी, काँच की शीशीयाँ, पालीथीन की थैलियाँ, प्लास्टिक के डिब्बे, अधजली लकड़ी, चूल्हे की राख, बुझे हुए, अंगारे आदि शामिल हैं।

भूमि प्रदूषण के कारण:(Causes of Land Pollution in Hindi)

भूमि प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

  • कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग।
  • औद्योगिक इकाईयों, खानों तथा खादानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन।
  • भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन।
  • कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते।
  • प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग, जो जमीन में दबकर नहीं गलती।
  • घरों, होटलों और औद्योगिक इकाईयों द्वारा निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का निपटान, जिसमें प्लास्टिक, कपड़े, लकड़ी, धातु, काँच, सेरामिक, सीमेंट आदि सम्मिलित हैं।

भूमि प्रदूषण के प्रभाव: (Impact of Land Pollution in Hindi)

भूमि प्रदूषण के निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव हैः

  • कृषि योग्य भूमि की कमी।
  • भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक।
  • भूस्खलन से होने वाली हानियाँ।
  • जल तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि।

भूमि प्रदूषण रोकने के उपाय: (Measures to prevent Soil Pollution)

मृदा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:-

  • मृत प्राणियों, घर के कूड़ा-करकट, गोबर आदि को दूर गड्ढे में डालकर ढक देना चाहिए।
  • हमें खेतों में शौच नहीं करनी चाहिए बल्कि घर के अन्दर ही शौचालय की व्यवस्था करनी चाहिए।
  • मकान व भवन को सड़क से कुछ दूरी पर बनाना चाहिए।
  • मृदा अपरदन को रोकने के लिए आस-पास घास एवं छोटे-छोटे पौधे लगाना चाहिए।
  • घरों में साग-सब्जी को उपयोग करने के पहले धो लेना चाहिए।
  • गांवों में गोबर गैस संयंत्र अर्थात् गोबर द्वारा गैस बनाने को प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे ईंधन के लिए गैस भी मिलेगी तथा गोबर खाद।
  • ठोस पदार्थ अर्थात् टिन, तांबा, लोहा, कांच आदि को मृदा में नहीं दबाना चाहिए।

5. सामाजिक प्रदूषण किसे कहते है? (What is Social Pollution in Hindi)

सामाजिक प्रदूषण जनसँख्या वृद्धि के साथ ही साथ शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक मूल्यों का ह्रास होना आदि शामिल है। सामाजिक प्रदूषण का उद्भव भौतिक एवं सामाजिक कारणों से होता है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि सरकार के साथ स्वयं नागरिकों को जागरूक होने कि जरुरत है जिससे इस सामाजिक प्रदूषण से बचा जा सके

सामाजिक प्रदूषण के कारण: (Causes of Social Pollution in Hindi)

सामाजिक प्रदूषण को निम्न उपभागों में विभाजित किया जा सकता है:-

  • जनसंख्या विस्फोट( जनसंख्या का बढ़ना)।
  • सामाजिक प्रदूषण (जैसे सामाजिक एवं शैक्षिक पिछड़ापन, अपराध, झगड़ा फसाद, चोरी, डकैती आदि)।
  • सांस्कृतिक प्रदूषण।
  • आर्थिक प्रदूषण (जैसे ग़रीबी)।

6. प्रकाश प्रदूषण किसे कहते है? (What is Light Pollution in Hindi)

प्रकाश प्रदूषण, जिसे फोटोपोल्यूशन या चमकदार प्रदूषण के रूप में भी जाना जाता है, यह अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश के कारण होता है। प्रकाश का प्रदूषण हमारे घरों में दरवाजों और खिड़कियों के जरिये बाहर सड़कों पर लगे हुए बिजली के खम्भों और लैम्पों से भी घुस आता है। जो मौजूदा जिन्दगी में अनिवार्य और जरूरी चीज बन जाता है। इस तरह का प्रदूषण पर्यावरण में प्रकाश की वजह से लगातार बढ़ रहा है। इसको रोकने या कम करने का तरीका यही है कि बिजली या रोशनी का उपयोग जरूरत पड़ने पर ही किया जाये। प्रकाश का प्रदूषण तीन तरह से फैलता है:-

  • 1. आसमान की चमक-दमक लालिमा से।
  • 2. घरों के अन्दर और बाहर से आने वाला प्रकाश। चौंधिया देने वाला तेज प्रकाश।
  • 3. लगातार निकलने वाली आसमान की चमक-दमक या लालिमा।

7. रेडियोधर्मी प्रदूषण किसे कहते है? (What is Radioactive Pollution in Hindi)

ऐसे विशेष गुण वाले तत्व जिन्हें आइसोटोप कहते हैं और रेडियोधर्मिता विकसित करते हैं, जिससे मानव जीव-जंतु, वनस्पतियों एवं अन्य पर्यावरणीय घटकों के हानि होने की संभावना रहती है, को नाभिकीय प्रदूषण या ‘रेडियोधर्मी प्रदूषण’ कहते हैं। परमाणु उर्जा उत्पादन और परमाणु हथियारों के अनुसंधान, निर्माण और तैनाती के दौरान उत्पन्न होता है।

  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत: आंतरिक किरणें, पर्यावरण (जल, वायु एवं शैल) तथा जीव-जंतु (आंतरिक)।
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के मानव निर्मित स्रोत: रेडियो डायग्नोसिस एवं रेडियोथेरेपिक उपकरण, नाभिकीय परीक्षण तथा नाभिकीय अपशिष्ट।

रेडियोधर्मी प्रदूषण रोकने के उपाय: (Measures to prevent Radioactive Pollution)

रेडियोधर्मी प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:-

  • परमाणु ऊर्जा उत्पादक यंत्रों की सुरक्षा करनी चाहिए।
  • परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  • गाय के गोबर से दीवारों पर पुताई करनी चाहिए।
  • गाय के दूध के उपयोग से रेडियोधर्मी प्रदूषण से बचा जा सकता है।
  • सरकारी संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से जनजागरण करना चाहिए।
  • वृक्षारोपण करके रेडियोधर्मिता के प्रभाव से बचा जा सकता है।
  • रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव सीमा में हो तथा वातावरण में विकिरण की मात्रा कम करनी चाहिए।

पर्यावरण प्रदूषण से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य: (Important Facts About Environmental Pollution)

  • वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड का होना भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण है, यदि वह धरती के पर्यावरण में अनुचित अन्तर पैदा करता है।
  • 'ग्रीन हाउस' प्रभाव पैदा करने वाली गैसों में वृद्धि के कारण भू-मण्डल का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है, जिससे हिमखण्डों के पिघलने की दर में वृद्धि होगी तथा समुद्री जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती क्षेत्र, जलमग्न हो जायेंगे। हालाँकि इन शोधों को पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका स्वीकार नहीं कर रहा है।
  • प्रदूषण के मायने अलग-अलग सन्दर्भों से निर्धारित होते हैं। परम्परागत रूप से प्रदूषण में वायु, जल, रेडियोधर्मिता आदि आते हैं। यदि इनका वैश्विक स्तर पर विश्लेषण किया जाये तो इसमें ध्वनि, प्रकाश आदि के प्रदूषण भी सम्मिलित हो जाते हैं।
  • गम्भीर प्रदूषण उत्पन्न करने वाले मुख्य स्रोत हैं- रासायनिक उद्योग, तेल रिफायनरीज़, आणविक अपशिष्ट स्थल, कूड़ा घर, प्लास्टिक उद्योग, कार उद्योग, पशुगृह, दाहगृह आदि।
  • आणविक संस्थान, तेल टैंक, दुर्घटना होने पर बहुत गम्भीर प्रदूषण पैदा करते हैं।
  • कुछ प्रमुख प्रदूषक क्लोरीनेटेड, हाइड्रोकार्बन्स, भारी तत्व लैड, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक, आर्सेनिक, बैनजीन आदि भी प्रमुख प्रदूषक तत्व हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं के पश्चात भी प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है। बड़े-बड़े समुद्री तूफानों के पश्चात जब लहरें वापिस लौटती हैं तो कचरे, कूड़े, टूटी नाव-कारें, समुद्र तट सहित तेल कारखानों के अपशिष्ट म्यूनिसपैल्टी का कचरा आदि बहाकर ले जाती हैं। समुद्र में आने वाली 'सुनामी' के पश्चात किये गये अध्ययन से पता चलता है कि तटवर्ती मछलियों में भारी तत्वों का प्रतिशत बहुत बढ़ गया था।
  • प्रदूषक विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। जैसे कैंसर, इलर्जी, अस्थमा, प्रतिरोधक बीमारियाँ आदि। जहाँ तक कि कुछ बीमारियों को उन्हें पैदा करने वाले प्रदूषक का ही नाम दे दिया गया है, जैसे- मरकरी यौगिक से उत्पन्न बीमारी को 'मिनामटा' कहा जाता है।

अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?

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पर्यावरण प्रदूषण प्रश्नोत्तर (FAQs):

किस ईंधन के कारण पर्यावरण में न्यूनतम प्रदूषण होता है?

हाइड्रोजन ईंधन न्यूनतम पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है। जब हाइड्रोजन जलती है तो वह जलवाष्प बन जाती है।

किसके द्वारा जल के प्रदूषण को साफ करने में बायो-फिल्टर के रूप में ’पाइला ग्लोबोसा’ प्रयुक्त किया जाता है?

कैडमियम द्वारा जल प्रदूषण को साफ करने के लिए पेला ग्लोबोसा का उपयोग जैव-फिल्टर के रूप में किया जाता है।

अम्लीय वर्षा किसके द्वारा वायु प्रदूषण के कारण होती है?

अम्लीय वर्षा नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड द्वारा पर्यावरण के प्रदूषण के कारण होती है। यह मुख्य रूप से कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन के औद्योगिक जलने के कारण होता है, जिनके अपशिष्ट गैसों में सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड होते हैं जो वायुमंडलीय पानी के साथ मिलकर एसिड बनाते हैं।

मानव में गुर्दे का रोग किसके प्रदूषण से होता है?

कैडमियम युक्त धूल के फेफड़ों तक पहुंचने से लीवर व गुर्दो पर घातक प्रभाव पड़ सकता है और न केवल वे डैमेज हो सकते हैं बल्कि कैंसर भी हो जाता है। - हड्डियों तक पहुंचने पर वे कमजोर हो सकती हैं। जोड़ों में दर्द और यहां तक फ्रैक्चर हो सकता है। - गुर्दो के ऊपर कैडमियम का प्रभाव परमानेंट होता है।

स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर) का प्रयोग किसके प्रदूषण के नियंत्रण के लिए किया जाता है?

स्थिर वैद्युत अवक्षेपित (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर) का प्रयोग तापीय प्रदूषण के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

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प्रदूषण ppt आशिष पटले

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 षण  षण के कार • षण के मुख कार न न ल खत है .... 1) वायु षण वायु षण के कारण गाड़ी मोटर से नकलने वाला धँआु कारखान से नकलने वाला धँआु कारखान से नकलने वाला धँआु वाहन से नकलने वाला धँआु पटाख से नकलने वाला धँआु 2) जल षण जल षण के कारण नद , तालाब के जल म कचरा फकने से नद , तालाब के जल म वाहन धोने, शौच करने , कू ड़ा फे कने से कारखानो से नकलने वाला षत जल नद या तालाब म नान करने से 3) व न षण  व न षण के कारण ककश आवाज के कारण वाहन के अ धक आवाज के कारण वाहन के अ धक आवाज के कारण पीकर, DJ, TV , बॉ स के अ धक आवाज के कारण पटाख के आवाज के कारण 4) मदृ ा/ भू षण  मृदा/भू षण के कारण उवरक खाद ,के उपयोग से ला टक को जमीन म गाड़ने से क टनाशक दवा के उपयोग से दलदल े  षण को रोकने के लए हमे न न उपाय करना चा हए। पड़े लगाने चा हए। वाहन ने CNG का उपयोग करना चा हए। कारखानो के चम नयाँ ऊँ ची रखकर। वाहन का आवाज कम रख।  पीकर ,DJ, tv कम आवाज म बजाए। गोबर खाद का उपयोग कर। क टनाशक दवा का उपयोग कम कर।  ला टक का उपयोग ना कर। पानी मे जानवर को ना धलु ाए या कू ड़ा न फके । खलु े म शौच ना कर। Ashish Patle

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प्रदूषण क्या है? |What is Pollution in Hindi

प्रदूषण Pollution प्राकृतिक तत्वों को नुकसान होने या उनकी संरचना में परिवर्तन होने का नाम हैं। वर्तमान समय मे जब भी पर्यावरण से संबंधित विषयों पर बात होती है तो उनमें एक मुद्दा अक्सर हमारे सामने आता है और वह है प्रदूषण का। आजकल अक्सर हमें टेलीविजन, समाचार पत्रों आदि में देखने को मिलता है कि प्रदूषण इतना बड़ गया है, प्रदूषण के कारण ये बीमारी हो रही है, प्रदूषण के कारण इन पशु-पक्षियों को नुकसान पहुंच रहा है आदि बहुत-सी खबरें।

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अब जब वर्तमान समय में हमें प्रदूषण से संबंधित इतनी सारी खबरें सुनने को मिलती हैं तो सोचिए कि हमारा इस प्रदूषण के विषय मे जानना कितना आवश्यक है। इसीलिए आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको जानकारी देना चाहते हैं कि आखिर यह प्रदूषण क्या है और प्रदूषण के प्रकार? What is Pollution in Hindi & Types of Pollution in Hindi

Table of Contents

प्रदूषण क्या हैं? |What is Pollution in Hindi

प्रदूषण का अर्थ होता है – कोई अवांछनीय परिवर्तन।प्रदूषण को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है- वायु, जल तथा भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन को ही प्रदूषण कहा जाता है। ये अवांछनीय परिवर्तन मानव जीवन, पशु-पक्षियों, आस-पास के वातावरण आदि सभी को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं।

“Pollution can be defined as an undesirable change in physical, chemical or biological characteristics of air, water and land that may or will adversely affect human life, living conditions etc.”

Pollution शब्द लैटिन भाषा के ‘Pollutionem’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है “Defilement” अर्थात “दूषण या अशुद्धता”।

प्रदूषक |Pollutant

प्रदूषक कोई पदार्थ (जैसे डस्ट, स्मोक), रसायन (जैसे सल्फर डाइऑक्साइड) और कारक (जैसे हीट, नॉइज़) हो सकता है जो पर्यावरण में निकलकर पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करता है।

प्रदूषण के प्रकार |Types of Pollution in Hindi

प्रदूषण के कई प्रकार हो सकते हैं। प्रदूषण मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार का होता है-

1. वायु प्रदूषण

2. जल प्रदूषण

3. मृदा प्रदूषण

4. रेडियोएक्टिव प्रदूषण

5. ध्वनि प्रदूषण

वायु प्रदूषण |Air Pollution

हम सभी इस बात से भली-भांति अवगत हैं कि वायु हम सभी के जीने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं।स्वच्छ और शुद्ध वायु हमारे स्वास्थ्य और हमारे जीवित रहने के लिए अति आवश्यक होती है।

परंतु इसी वायु में जब कोई अन्य गैस या कोई अन्य पार्टिकल (Particles) जो कि मनुष्य, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों आदि के लिए हानिकारक हो, मिल जाए तो इसे वायु प्रदूषण कहा जाता है अर्थात वातावरण में वायु के गुणों में अवांछनीय परिवर्तन ही वायु प्रदूषण कहलाता है।

वायु प्रदूषण के स्रोत |Sources of Air Pollution

वायु प्रदूषण निम्नलिखित कारकों से होता है-

1. इंडस्ट्रियल प्रदूषक – इंडस्ट्रीज से निकलने वाली हानिकारक गैसें तथा रसायन वायु प्रदूषण करते हैं। मुंबई जैसे शहर में इंडस्ट्रीज ही प्रदूषण का मुख्य कारण हैं।

2. ऑटोमोबाइल – मेट्रो सिटीज में ऑटोमोबाइल्स वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत हैं। ऑटोमोबाइल्स से निकलने वाले हानिकारक तत्व वायु को दूषित करते हैं।

3. जीवाश्म ईंधन का जलना – जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला आदि के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें निकलती हैं जो वायु प्रदूषण करते हैं।

4. एग्रीकल्चरल एक्टिविटीज़ – खेतों में उपयोग किये जाने वाले रसायन भी वायु प्रदूषण का कारण होते हैं।

5. Radiations – Nuclear Power Plants में होने वाले परीक्षणों आदि के दौरान निकलने वाली किरणों से भी वायु प्रदूषण होता है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

1. वायु प्रदूषण मनुष्य, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों आदि सभी को प्रभावित करता है-

2. वायु प्रदूषण के कारण स्वास संबंधित (अस्थमा, एलर्जी) अनेक बीमारियों से लोग ग्रसित हो जाते हैं।

3. इसके कारण कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो जाती है।

4. वायु प्रदूषण का एक बड़ा दुष्प्रभाव है- अम्लीय वर्षा ( Acid Rain) जिसके कारण ताजमहल जैसी कई इमारतों को नुकसान पहुँचता है। इसके कारण जलीय जीवों की भी मृत्यु हो जाती है।

5. वायु प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण का स्तर भी घटता है।

6. इस प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों में भी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।

7. वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत को नुकसान पहुँचता हैं।

8. इसके कारण ही हमें आज ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

वायु प्रदूषण का नियंत्रण

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए-

1. ऑटोमोबाइल्स को और बेहतर बनाना चाहिए ताकि वो पर्यावरण को दूषित न करे।

2. एक अच्छे ट्रैफिक व्यवस्था की जरूरत है क्योंकि लोग गाड़ियों को न चलाते समय भी इंजन ऑन रखते हैं जिससे वायु प्रदूषण होता है।

3. ऊर्जा के स्रोतों पर ध्यान देने की जरूरत है।

4. अधिक से अधिक मात्रा में पेड़-पौधें लगाने चाहिए, जिससे कि वो कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर लें और ऑक्सिजन गैस वायुमंडल में स्रावित करें।

5. वायु प्रदूषण की रोकथाम करने के लिए Arresters और Scrubbers जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए।

जल प्रदूषण |Water Pollution

जल में जब किसी अवांछनीय पदार्थ के मिलने से जल की गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है, जिसके कारण वह उपयोगी नही रहता इसी को जल प्रदूषण कहा जाता है।

जल प्रदूषण के स्रोत |Sources of Water Pollution

1. Domestic and Sewage Wastes – घरों से निकलने वाले कूड़े-कचरे, मल इत्यादि को जब ऐसे ही नदियों, झीलों आदि में डाल दिया जाता है तो यह बहुत बड़ी मात्रा में जल को प्रदूषित करता है।

2. इंडस्ट्रियल वेस्ट – पेट्रोलियम, पेपर, केमिकल आदि इंडस्ट्रीज से निकलने वाले वेस्ट को नदी, तालाबों आदि में डिसचार्ज करने पर यह जल प्रदूषण करता है।

3. खेतों में प्रयोग किये जाने वाले उर्वरक, खाद आदि केमिकल्स से भी जल प्रदूषित होता है।

4. थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले गर्म पानी को जब झीलों, समुद्रों में डाला जाता है तो इसके कारण जलीय जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह भी जल प्रदूषण का कारण है।

जल प्रदूषण के प्रभाव

1. जल के बिना जीवन संभव नही है। स्वच्छ जल पर सभी जीवों का जीवन निर्भर करता है परन्तु यही जल जब दूषित हो जाता है तो यह उपयोग करने लायक नही रहता।

2. ऐसे दूषित जल को ग्रहण करने से अनेक बीमारियाँ होती हैं।

3. जल प्रदूषण के कारण पूरा पारिस्थितिकी तंत्र डगमगा जाता है।

जल प्रदूषण का नियंत्रण

1. वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट – नदियों, तालाबों, झीलों आदि में वेस्ट वाटर को डिसचार्ज करने से पूर्व यदि उसका ट्रीटमेंट कर लिया जाए तो जल प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।

2. उर्वरकों और पेस्टिसाइड के उपयोग पर नियंत्रण – खेतों में यदि उर्वरकों, पेस्टिसाइड आदि का कम से कम उपयोग किया जाए तो इससे भी जल प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

3. वेस्ट प्रोडक्ट्स की रीसाइक्लिंग – वेस्ट प्रोडक्ट्स की रीसाइक्लिंग भी जल प्रदूषण नियंत्रण का एक बहुत अच्छा उपाय है।

मृदा प्रदूषण |Soil Pollution

जब किसी अवांछनीय तत्व के कारण मिट्टी की उपजाऊ क्षमता घट जाती है तो इसे मृदा प्रदूषण कहा जाता है।

मृदा प्रदूषण के स्रोत |Sources of Soil Pollution

1.घरेलू कूड़े-कचरे, इंडस्ट्रीज से निकलने वाले कचरे आदि से मृदा प्रदूषण होता है।

2.एग्रीकल्चर में अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों, रसायनों कर प्रयोग भी मृदा प्रदूषण का प्रमुख कारण है।

3.अम्लीय वर्षा से मृदा प्रदूषण होता है।

4.मृदा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है प्लास्टिक।

मृदा प्रदूषण नियंत्रण

1. Improved Agricultural Methods का प्रयोग

2. वेस्ट मैटेरियल्स की रीसाइक्लिंग।

3. अधिक से अधिक पेड़-पौधें लगाना।

4. जनता को जागरूक करना।

5. ऊपर दिए गए इन उपायों से मृदा प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।

रेडियोएक्टिव प्रदूषण |Radioactive Pollution

किसी रेडियोएक्टिव मटेरियल (जैसे रेडियम-224, यूरेनियम-235, थोरियम-232 आदि) द्वारा वायु, जल, मृदा का दूषित होना ही रेडियोएक्टिव प्रदूषण कहलाता है। रेडियोएक्टिव प्रदूषण, कैंसर का सबसे बड़ा कारक है।

ध्वनि प्रदूषण |Noise Pollution

वह अनावश्यक ध्वनि जो कानों पर अप्रिय प्रभाव उत्पन्न करती है उसे नॉइज़ पॉल्युशन कहा जाता है। ध्वनि की तीव्रता को decibels या db में मापा जाता है। 80db से अधिक की वैल्यू नॉइज़ पॉल्युशन उत्पन्न करती है।

नॉइज़ पॉल्युशन के स्रोत |Sources of Noise Pollution

नॉइज़ पॉल्युशन के कुछ स्रोत इस प्रकार से है –

2. लाउड स्पीकर

3. गाड़ियों का शोर

4. एयरक्राफ्ट और रेलवेज

नॉइज़ पॉल्युशन के प्रभाव

1. नॉइज़ पॉल्युशन हार्ट को नुकसान पहुंचा सकता है।

2. इसके कारण दिमाग पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

3. लगातार ज्यादा नॉइज़ वाले स्थान पर रहने से मनुष्य की सुनने की क्षमता समाप्त हो सकती है।

4. अधिक नॉइज़ से व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, घबराहट, तनाव, बेहोशी जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।

5. इसके कारण पशु-पक्षियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

नॉइज़ पॉल्युशन नियंत्रण

नॉइज़ पॉल्युशन को नियंत्रित करने के लिये निम्नलिखित कार्य किये जा सकते हैं-

1. इंडस्ट्रीज में ज्यादा नॉइज़ उत्पन्न करने वाली मशीनों के लिए साउंड प्रूफ कमरों का निर्माण करना।

2. इंडस्ट्रीज, फैक्ट्रीज आदि का निर्माण आबादी वाले इलाकों से दूरी पर करना।

3. लाउड स्पीकर के मिसयूज़ पर शख्त कारवाही होनी चाहिए।

निष्कर्ष – Conclusion

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जो पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीवों तथा उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। प्रदूषण के कारण कई पशु-पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। इसके कारण सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।

इसीलिए अगर पृथ्वी पर जीवन बनाए रखना है तो हम सभी को इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कार्य करना होगा। केवल सरकार द्वारा नियम बनाने से ही कुछ नही होगा, प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अवश्य कदम उठाने चाहिए।

तो दोस्तों आज आपने हमारी इस पोस्ट के माध्यम से जाना कि प्रदूषण क्या हैं और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण? ( What is Pollution in Hindi & Types of Pollution in Hindi ) हम आशा करते हैं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई हो। इस पोस्ट से संबंधित आपके कोई प्रश्न या सुझाव हो तो आप कमेंट बॉक्स का उपयोग कर सकते हैं।

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प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध (Essay On Plastic Pollution In Hindi)

Essay On Plastic Pollution In Hindi

In this Article

प्लास्टिक प्रदूषण पर 10 लाइन (10 Lines On Plastic Pollution In Hindi)

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इस समय प्रदूषण विश्व स्तर पर एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है, जिसके कारण सभी जीव-जंतु और मनुष्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषण न सिर्फ वातावरण को प्रभावित करता है, बल्कि इससे जीवनकाल भी प्रभावित हो रहा है। कई प्रकार के प्रदूषण हैं जो हमारे वातावरण पर बुरा असर डाल रहे हैं जिनमें से एक प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण भी है। प्लास्टिक प्रदूषण से पैदा होने वाली समस्या दिन पर दिन तेजी से बढ़ती जा रही। यह प्रदूषण हमारे पर्यावरण को काफी तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है। हम सभी जानते हैं कि प्लास्टिक को आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है, जिसके कारण धरती को इसके बुरे परिणामों का प्रभाव झेलना पड़ता है। प्रदूषण में इस समस्या का अहम योगदान रहा है और अब यह समस्या दुनिया भर के लिए एक चिंता का विषय बन चुकी है। प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ने की वजह से इसके कचरे की मात्रा भी अधिक हो गई, जो की प्लास्टिक प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या के उत्पन्न होने क मुख्य कारण है। दुनिया भर के लोगों को इस गंभीर समस्या को लेकर जागरूक हो जाना चाहिए और इसे रोकना और इसका समाधान निकालने का प्रयास मिलकर करना चाहिए।

अगर आप कम शब्दों में प्लास्टिक प्रदूषण पर अनुच्छेद लिखना चाहते हैं तो नीचे इस प्रदूषण के बारे में दी गई 10 लाइन को ध्यान से जरूर पढ़ें।

  • प्लास्टिक एक नॉन-बायोडिग्रेडेबल सिंथेटिक उत्पाद है जो विषैला होता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण से जीव-जंतु और इंसानों का जीवन प्रभावित रो रहा है।
  • प्लास्टिक को नष्ट नहीं कर सकते, जो अधिक प्रदूषण का कारण है।
  • प्लास्टिक को जलाने पर वो कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस छोड़ता है।
  • प्लास्टिक जल और मृदा प्रदूषण का भी एक मुख्य कारण है।
  • प्लास्टिक का इस्तेमाल हर जगह होता है और इससे निकलने वाला कचरा तालाब, नदियों और जमीन पर फेंका जाता है।
  • पानी पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का लंबे समय तक इस्तेमाल करना स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है।
  • वर्तमान में प्लास्टिक के विभिन्न क्षेत्रों में और बेहद उपयोग से पर्यावरण को हानि पहुंच रही है।
  • प्लास्टिक का उपयोग दमा, पलमोनेरी कैंसर, लिवर इन्फेक्शन, गुर्दे की बीमारी, जन्मदोष, गर्भावस्था के विकार, जैसी कई समस्याओं का कारण है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए हम सब को प्रयास करना चाहिए।

यहाँ आपको प्लास्टिक प्रदूषण पर बेहतरीन और आसान शब्दों में शॉर्ट पैराग्राफ या हिंदी में छोटा निबंध कैसे लिखना चाहिए उसका सैंपल दिया गया। आपका बच्चा इसकी मदद से खुद भी एक अच्छा लेख लिख सकता है।

आज के समय में लोगों के अंदर बिमारियों से लड़ने की क्षमता पहले से कम हो गई है जिसकी एक अहम वजह बढ़ता प्रदूषण है। प्लास्टिक एक ऐसी ही वस्तु है जो जीव-जंतु के साथ इंसानों पर भी बुरा प्रभाव डालती है। इन दिनों प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या बड़ी चिंता का विषय है। यह एक नॉन-बायोडिग्रेडेबल सिंथेटिक चीज है जो विषैला होता है। प्लास्टिक प्रदूषण से जीव-जन्तु और इंसानों का जीवन प्रभावित रो रहा है। जिससे उन्हें गंभीर रूप से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि प्लास्टिक को कभी खत्म नहीं किया जा सकता है उसके लिए आप एक मात्र रीसायकल करके इसका दोबारा उपयोग कर सकते हैं लेकिन इसे पूरी तरह नष्ट नहीं कर सकते हैं। अगर आप प्लास्टिक को जलाने का प्रयास करते हैं तो इससे अधिक प्रदूषण होगा। प्लास्टिक को जलाने पर वो कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस छोड़ता है। जिससे हमारे इकोसिस्टम बुरी तरह से प्रभावित होता है। प्लास्टिक का इस्तेमाल बड़ी संख्या में हर जगह होता है और इससे निकलने वाला कचरा तालाब, नदियों और जमीन पर फेंका जाता है, जो प्रदूषण को विभिन्न प्रकार से पर्यावरण को हानि पहुंचा रहा है। इसके आलावा हम जो पानी पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का लंबे समय तक इस्तेमाल करते हैं वो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है। इसलिए प्लास्टिक की बोतल का उपयोग करने से हमें बचना चाहिए और यदि किसी कारण से प्लास्टिक की बोतल का उपयोग करना पड़ता है तो इसे लंबे समय तक उपयोग करने से बचें। सरकार के साथ साथ हम सब को प्लास्टिक के उपयोग का बहिष्कार करना चाहिए और या फिर जितना संभव हो सके इसका कम से कम उपयोग करना चाहिए ताकि हम सब के प्रयास से हमारा वातावरण स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त हो सके।

Plastic pradushan par nibandh

क्या आपके बच्चे को निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने या स्कूल असाइनमेंट के लिए प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण पर निबंध लिखना है वो भी हिंदी और आप सैंपल  के तौर पर हिंदी निबंध के ज्यादा विकल्प नहीं है तो हम यहां आपकी ही मदद के लिए हाजिर हैं। यहां आपको प्लास्टिक प्रदूषण पर हिंदी में लॉन्ग एस्से दिया गया है आप इस निबंध की मदद से बच्चे को स्वयं एक बेहतरीन निबंध तैयार करने में मदद कर सकते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण क्या है? (What Is Plastic Pollution?)

प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिसमें प्लास्टिक के अधिक उपयोग से धरती पर प्रदूषण बढ़ता है। यह प्रदूषण न सिर्फ पर्यावरण पर बल्कि जानवरों और इंसानों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालता है। प्लास्टिक की बोतल, पन्नी आदि अन्य चीजों को सड़कों और पानी में फेंकने से इसके प्रदूषण का खतरा अधिक बढ़ता है। पानी में रहने वाले जीव भी इसका शिकार हो रहे हैं। जमीन पर प्लास्टिक फेंकने से भूमि प्रदूषण का खतरा भी बढ़ता है क्योंकि प्लास्टिक को नष्ट नहीं किया जाता है जिसकी वजह से यह सालों जमीन के अंदर मौजूद रहता है। प्लास्टिक पानी, हवा और भूमि में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों का कारण बनता है और हमारे वातावरण, जानवरों और इंसानों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए हमें प्लास्टिक का उपयोग बेहद कम कर देना चाहिए और उसकी जगह अन्य हानि रहित चीजों का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए।

प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ने का कारण (Reason For Increasing Plastic Pollution)

प्लास्टिक एक ऐसी चीज है जो बाजार में बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है और यह सस्ती भी होती है। लेकिन बाकी चीजों की तरह आसानी से नष्ट नहीं होती है। सालों जमीन पर पड़े रहने के बावजूद प्लास्टिक बहुत सस्ता होता है। आज कल के लोग इतने बेफिक्र हो गए हैं कि प्लास्टिक की बोतल, पॉलिथीन आदि का इस्तेमाल कर के कहीं भी इधर-उधर फेंक देते हैं। जिसके कारण पर्यावरण के अहम हिस्से पानी और जमीन दोनों ही प्रदूषित होते हैं। कई बार नालों और नदियों में मौजूद प्लास्टिक की चीजें उनके निकासी का रास्ता बंद कर देती हैं, जिसकी वजह से आस-पास मौजूद लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। विकसित देशों में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है। प्लास्टिक की वजह से बेजुबान जानवरों को भी इसका प्रभाव झेलना पड़ रहा है, चाहे वो जमीन पर रहने वाले जानवर हों या फिर पानी में बसने वाले, सभी की मौत का कारण यही है। सड़कों पर पन्नी और प्लास्टिक की बोतल फेंकना गलत है क्योंकि जानवर उसे चलते-फिरते खा लेते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है। साथ ही गंदगी भी फैलती है और इसके कारण कई बीमारियां जन्म लेती हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण के परिणाम (Consequences Of Plastic Pollution)

प्लास्टिक का इंसानों पर असर.

इंसानों को हमेशा से ही प्लास्टिक की चीजों की आदत हो जाती है। बचपन से लेकर बड़े होने तक कई ऐसी प्लास्टिक की चीजें हमसे जुडी होती हैं। बच्चे की दूध की बोतल से लेकर उसके खिलौने तक प्लास्टिक के होते हैं और बड़े भी अपनी उम्र के अनुरूप प्लास्टिक की चीजों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में हमें इस समस्या को जल्द से जल्द सुलझाने का प्रयास करना चाहिए ताकि आगे आने वाले समय में किसी बड़ी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़े। व्यक्ति अपने खाने की चीजें प्लास्टिक के डिब्बों में रखता है, दुसरे विकल्प होने के बावजूद भी वह इन्हें किचन के सामानों को रखने के लिए उपयोग करता है। वह प्लास्टिक की कुर्सी से लेकर प्लास्टिक की बाल्टी तक का उपयोग करता है। पानी पीने के लिए ज्यादातर लोग प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करते हैं। यह कितना हानिकारक हो सकता है, व्यक्ति को अब उसका अंदाजा हो रहा है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है।

जानवरों पर असर

घास चरने वाले जानवर जैसे गाय, भैंस आदि कभी-कभी खाने की तलाश में ऐसी जगह पर पहुंच जाते हैं, जहाँ कूड़े में प्लास्टिक का ढेर हो। वहां पर जाकर वह अनजाने में प्लास्टिक भी खा सकते है। अनजाने में हुए प्लास्टिक के सेवन से उनकी मौत भी हो सकती है। पानी में रहने वाले जीव भी प्लास्टिक की समस्या से मौत का शिकार हो रहे है। समुन्दर, तालाब में फेंके जाने वाले कूड़े में कई तरह की प्लास्टिक की चीजें मौजूद होती है, जिनको खाने से पानी में रहने वाले जानवरों की मौत हो रही है क्योंकि वह खाने की जगह प्लास्टिक खा लेते हैं, जो कि उनके गले में अटक जाता है।

प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के उपाय (Ways To Prevent Plastic Pollution)

  • जितना हो सके प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें।
  • प्लास्टिक से बनी सभी चीजों पर प्रतिबंध लगाने से इसका इस्तेमाल कम होगा।
  • प्लास्टिक को रिसाइकल करने से इसका प्रभाव कम होता है।
  • प्लास्टिक की पॉलिथीन की जगह कपड़े के थैले का अधिक उपयोग करें।
  • प्लास्टिक की चीजें जैसे स्ट्रॉ, ग्लास आदि जिनका सिर्फ एक बार इस्तेमाल हो, उपयोग न करें।
  • खुद और दूसरों को भी प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से रोकें।
  • प्लास्टिक को बार-बार तब तक इस्तेमाल करना चाहिए जब तक वह पूरी तरह से अनुपयोगी न हो जाए।
  • रोज के जीवन में पुन: इस्तेमाल किए जाने वाले बैग और बोतल का इस्तेमाल करें।
  • महासागरों में पहले से ही प्लास्टिक के 5 ट्रिलियन से अधिक टुकड़े मौजूद हैं।
  • वर्तमान स्थिति के अनुसार 2050 तक, धरती पर मौजूद लगभग हर समुद्री पक्षी प्लास्टिक खाएगा।
  • विश्व भर में हर एक मिनट में लगभग दस लाख प्लास्टिक की बोतलें बिकती हैं।
  • दुनिया भर में हर मिनट 2 मिलियन प्लास्टिक बैग का उपयोग हो रहा है।
  • समुद्र से निकलने वाले कूड़े में लगभग 73% प्लास्टिक होता है।
  • एक स्टडी के अनुसार औसत व्यक्ति हर साल लगभग 70,000 माइक्रोप्लास्टिक खाता है।
  • दुनिया भर में पिछले 50 सालों में प्लास्टिक का उत्पादन दोगुना हो गया है।

प्लास्टिक प्रदूषण काफी गंभीर समस्या है और दुनिया भर में यह बढ़ती जा रही है, इसलिए इस निबंध की मदद से आपके बच्चे को इस समस्या के बारे में जानकारी होगी और वो इसको गंभीरता के साथ समझेगा। इतना ही नहीं वो आगे भी लोगों को इसके इस्तेमाल को कम करने लिए प्रेरित कर सकता है। सिर्फ यही नहीं विद्यालय में प्लास्टिक प्रदूषण पर पूछे गए सवालों का भी सही जवाब देने में सक्षम हो सकता है।

1. भारत में प्लास्टिक फ्री अभियान की शुरुआत कब हुई थी ?

भारत में प्लास्टिक फ्री इंडिया अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2019 को की गई थी।

2. दुनिया में कौन सा देश प्लास्टिक सा सबसे अधिक उत्पादन करता है?

चीन, दुनिया में सबसे अधिक प्लास्टिक का उत्पादन करता है।

यह भी पढ़ें:

जल प्रदूषण पर निबंध वायु प्रदूषण पर निबंध ध्वनि प्रदूषण पर निबंध

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