पर्यावरण प्रदूषण
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ध्वनि प्रदूषण निबंध (Noise Pollution Essay in Hindi) – ध्वनि प्रदूषण उन प्रदूषणों में से एक है जिसका हम प्रतिदिन सामना करते हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और अन्य प्रकारों की तरह ध्वनि प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। वायुमंडलीय प्रदूषण ही एकमात्र ऐसा प्रदूषण नहीं है जिससे हम गुजरते हैं, बल्कि ध्वनि प्रदूषण हमारे जीवन में विनाश ला सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ध्वनि प्रदूषण एक खतरनाक स्वास्थ्य समस्या है। यूरोपीय पर्यावरण (ईईए) का कहना है कि अकेले यूरोप में 16,600 अकाल मौतों के लिए ध्वनि प्रदूषण जिम्मेदार है।
लगातार ध्वनि प्रदूषण का सामना करने वाला व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना शुरू कर सकता है और दीर्घ अवधि में खतरनाक हो सकता है। कई अप्रिय शोर विकर्षण जीवन में बाद में समस्याएं ला सकते हैं।
कारों के हॉर्न, लाउडस्पीकरों से शहरों का शोर बढ़ गया है; यातायात, आदि ध्वनि प्रदूषण के लिए अग्रणी। सड़कों, भवनों, अपार्टमेंटों और अन्य क्षेत्रों के निर्माण से भी ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
इसके बारे मे भी जाने
WHO के अनुसार ध्वनि प्रदूषण 65db से ऊपर का शोर है, जो इंसानों और जानवरों दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। 75 डीबी से अधिक का शोर दर्दनाक हो सकता है और व्यक्ति को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
ध्वनि प्रदूषण से उत्पन्न खतरे को देखना असंभव है। जमीन पर और समुद्र के नीचे, आप इसे नहीं देख सकते, लेकिन यह अभी भी मौजूद है। अवांछित या परेशान करने वाली ध्वनि होने पर ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य और अन्य जीव प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
डेसिबल ध्वनि का माप है। पत्तों की सरसराहट (20-30 डेसिबल) या गरजना (120 डेसिबल) से सायरन की आवाज (120-140 डेसिबल) सभी ध्वनियाँ हैं जो प्राकृतिक वातावरण में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती हैं। यदि कोई व्यक्ति ऐसी ध्वनि सुनता है जिसका डेसिबल स्तर 85 डेसिबल या उससे अधिक तक पहुँचता है, तो उसके कान क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। घास काटने की मशीन (90 डेसिबल), ट्रेन (90 से 115 डेसिबल), और रॉक कॉन्सर्ट (110 से 120 डेसिबल) की आवाज़ें कुछ परिचित स्रोत हैं जो इस सीमा से अधिक हैं।
ध्वनि प्रदूषण की उपस्थिति का लाखों लोगों पर दैनिक प्रभाव पड़ता है। शोर के कारण होने वाली श्रवण हानि शोर के संपर्क में आने वाली सबसे आम स्वास्थ्य समस्या है। इसके अलावा, तेज आवाज से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, नींद में गड़बड़ी और तनाव जैसी स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। सभी आयु वर्ग इन स्वास्थ्य समस्याओं के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, खासकर बच्चे। यह दिखाया गया है कि शोरगुल वाले हवाई अड्डों और व्यस्त सड़कों के पास रहने वाले बच्चे तनाव और अन्य समस्याओं, जैसे याददाश्त की समस्या, ध्यान देने में कठिनाई और पढ़ने में कठिनाई से ग्रस्त हैं।
ध्वनि प्रदूषण से पशु भी प्रभावित हो रहे हैं। तेज आवाज किए जाने पर कैटरपिलर के दिल तेजी से धड़कते हैं, और तेज आवाज किए जाने पर ब्लूबर्ड्स के पास कम चूजे होते हैं। जानवर ध्वनि का उपयोग करने के कई कारण हैं, जिसमें नेविगेट करना, भोजन का पता लगाना, साथी को आकर्षित करना और शिकारियों से बचना शामिल है। उनके सामने आने वाला ध्वनि प्रदूषण इन कार्यों को पूरा करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे उनका अस्तित्व प्रभावित होता है।
शोर का वातावरण न केवल जमीन पर रहने वाले जानवरों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि यह समुद्र में जानवरों के लिए भी बदतर हो रहा है। जहाजों, ड्रिलिंग उपकरणों, सोनार और भूकंपीय सर्वेक्षणों के कारण एक बार शांत समुद्री वातावरण शोर और अराजक हो गया है। ध्वनि प्रदूषण के नकारात्मक प्रभाव विशेष रूप से व्हेल और डॉल्फ़िन द्वारा महसूस किए जाते हैं। समुद्री स्तनधारियों के लिए, संचार, नेविगेशन, भोजन और मेट-खोज के लिए इकोलोकेशन आवश्यक है। अत्यधिक शोर इकोलोकेशन के साथ हस्तक्षेप कर सकता है।
यह नौसेना के सोनार उपकरण हैं जो पानी के नीचे की सबसे तेज आवाज पैदा करते हैं। सोनार का उपयोग इकोलोकेशन के समान काम करता है जिसमें ध्वनि तरंगें समुद्र में नीचे भेजी जाती हैं और वस्तुओं को उछालती हैं, प्रतिध्वनियाँ जहाज पर लौटती हैं जो वस्तु के स्थान को इंगित कर सकती हैं। व्हेल की इकोलोकेशन का उपयोग करने की क्षमता तब बाधित होती है जब वे सोनार ध्वनियाँ सुनती हैं, जो 235 डेसिबल तक पहुँच सकती हैं और सतह के नीचे सैकड़ों मील की यात्रा कर सकती हैं। शोध से पता चला है कि सोनार व्हेल को समुद्र तटों पर फंसा सकता है और ब्लू व्हेल (बालेनोप्टेरा मस्कुलस) के खाने के व्यवहार को बदल सकता है, जो लुप्तप्राय हैं। पर्यावरण का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने सोनार आधारित सैन्य प्रशिक्षण को बंद करने या कम करने के लिए अमेरिकी रक्षा विभाग को बुलाया है।
इसके अलावा, हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समुद्र के अंदर से जोरदार विस्फोट कर सकते हैं। गहरे पानी में, तेल और गैस एयर गन का उपयोग करते हुए पाए जाते हैं जो समुद्र तल पर ध्वनि स्पंदन भेजते हैं। ध्वनि विस्फोटों से समुद्री जानवरों को नुकसान पहुंचने और उनके कानों को गंभीर नुकसान पहुंचने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, इस शोर के परिणामस्वरूप व्हेल अपना व्यवहार भी बदल सकती हैं।
स्पेन में बायोएकॉस्टिक्स के शोधकर्ता मिशेल आंद्रे हाइड्रोफोन की मदद से ध्वनि प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने अपनी परियोजना, LIDO (लिसनिंग टू द डीप ओशन एनवायरनमेंट) के दौरान 22 विभिन्न स्थानों से डेटा एकत्र किया है। कंप्यूटर का उपयोग करते हुए, लैब ने व्हेल और डॉल्फ़िन की 26 विभिन्न प्रजातियों की पहचान की, जिनमें मनुष्यों द्वारा उत्पन्न ध्वनियाँ भी शामिल हैं। विश्लेषण में इन जानवरों पर इसके प्रभाव के लिए पानी के नीचे के शोर की जांच की जाएगी।
हालाँकि दुनिया तकनीक के इस्तेमाल में बदल रही है, लेकिन साथ ही यह तकनीक हानिकारक भी है। कम्प्रेसर, निकास पंखे और जनरेटर का उपयोग करने वाले उद्योग बहुत अधिक शोर पैदा कर रहे हैं।
इसी तरह, पुराने साइलेंसर वाली बाइक और कारें भारी शोर पैदा करती हैं जिससे प्रदूषण हो सकता है। विमान, भारी ट्रक और बसें भी इस ध्वनि प्रदूषण का हिस्सा हैं। कम उड़ान वाले विमान, विशेष रूप से सैन्य वाले, ध्वनि प्रदूषण का कारण बनते हैं। इसी तरह, पनडुब्बियां समुद्र में ध्वनि प्रदूषण कर सकती हैं।
ध्वनि प्रदूषण मुख्य रूप से व्यक्ति की सुनने की क्षमता को प्रभावित करना शुरू कर सकता है, जिससे स्थायी श्रवण हानि हो सकती है। इसके अलावा, यह रक्तचाप, उच्च रक्तचाप और तनाव से संबंधित अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि का कारण बन सकता है। कई मामलों में, ध्वनि प्रदूषण व्यक्ति के मन की स्थिति में गड़बड़ी पैदा कर सकता है, जो आगे चलकर नींद के पैटर्न में गड़बड़ी, तनाव, आक्रामकता और अन्य मुद्दों का कारण बनता है। ध्वनि प्रदूषण के नियमित संपर्क में आने से व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। 45 डीबी से ऊपर का शोर आपकी नींद के पैटर्न को बाधित कर सकता है। WHO के अनुसार शोर का स्तर 30db से अधिक नहीं होना चाहिए। स्लीप पैटर्न में बदलाव आपके व्यवहार में भी बदलाव ला सकता है।
यदि आपके घर में या आपके आस-पास पालतू जानवर हैं, तो ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। पटाखों के नियमित संपर्क में रहने से उनमें डर पैदा हो सकता है। इससे उनके व्यवहार में भी बदलाव आएगा।
पशु और समुद्री जीवन ध्वनि प्रदूषण की चपेट में हैं। यह उनके सुनने के कौशल को प्रभावित कर सकता है, जो आगे चलकर उनके व्यवहार पैटर्न को प्रभावित करता है। प्रवास के दौरान इन जानवरों को सुनने में कठिनाई होती है, जो उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। जब समुद्री जीवन की बात आती है तो ध्वनि प्रदूषण से उनमें शारीरिक समस्याओं जैसी आंतरिक क्षति हो सकती है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार और लोगों द्वारा कई उपाय किए गए हैं। कई घरों में अब ध्वनिरोधी दीवारें और खिड़कियां लगाई जा रही हैं। शहरों में कई फ्लाईओवरों में शोर के स्तर को नीचे लाने के लिए ध्वनिरोधी दीवारें होती हैं जो चलने वाले वाहनों से पास के निवासी के लिए होती हैं। जिम्मेदार नागरिकों के रूप में, हमें ध्वनि प्रदूषण को कम करने में योगदान देना चाहिए। बेवजह हॉर्न बजाने पर रोक लगानी चाहिए और अधिकारियों को ऐसा करने वालों पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए। अस्पताल और स्कूल साइलेंट जोन में बनाए गए हैं।
रिहायशी और संवेदनशील इलाकों में शोर से बचने के नियम होने चाहिए। ध्वनि प्रदूषण से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।
ध्वनि प्रदूषण को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक अधिक से अधिक पौधे लगाना है। पेड़ लगाने की यह प्रक्रिया ध्वनि के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने को कम करने में मदद कर सकती है।
ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों द्वारा सामना की जाने वाली सबसे आम समस्या है, विभिन्न कारणों से जो कई लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। निम्नलिखित मानक उपाय मानव और पर्यावरण दोनों के लिए दीर्घावधि में सहायक हो सकते हैं। अंतिम उद्देश्य बेहतर पर्यावरण के लिए ध्वनि प्रदूषण को कम करना है।
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे ध्वनि प्रदूषण मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकता है:
Q.1 भारत में पहली बार ध्वनि प्रदूषण नियम कब पारित किया गया था.
उत्तर. भारत में ध्वनि प्रदूषण नियम पहली बार 14 फरवरी 2000 को पारित किया गया था।
उत्तर. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सड़कों के किनारे उगाए जाने वाले हरे पौधे ग्रीन मफलर कहलाते हैं।
उत्तर. शोर मापने की इकाई डेसिबल है।
उत्तर. भारत में आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का अनुमेय स्तर 55dB है।
12th notes in hindi
(noise pollution in hindi) शोर (ध्वनि) प्रदूषण क्या है , परिभाषा , कारण , प्रभाव , रोकथाम के उपाय , नियम What is noise pollution, definition, causes, effects, prevention, rules ध्वनी प्रदुषण किसे कहते है ?
ध्वनि प्रदूषण :
अवाँछित उच्च स्तर को शोर प्रदूषण कहते है। इसका मानक डेसीबल कइ है तथा 80 db से अधिक ध्वनि स्तर को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।
1 उद्योगों के कारण
2 स्वचालित वाहनों के कारण
3 जेट विमान, राॅकेट आदि
4 जनरेटर के कारण
5 ध्वनि विस्तारक यंत्रों के कारण
6 पठाखों के कारण
प्रभाव(noise pollution effects) : –
ए- श्रवण संबंधित:- अस्थाई बहरापन, कान का परदा फटना तथा स्थाई बहरापन होना।
ब- अन्य प्रभाव:- सिरदर्द हदृय स्पंदन दर बढ़ना, श्वसन दर बढ़़ना उल्टी, चक्कर आना, नींद न आना, तनाव व चिड़चिड़ापन।
1 वाहनों में साइलेंसर का प्रयोग।
2 उद्योगों में ध्वनि अवशोधक यंत्रों का प्रयोग।
3 ध्वनि विस्तारक यंत्रों की समय सीमा व ध्वनि स्तर का निर्धारण
4 साइलेंसर जनरेटर का प्रयोग
5 उच्च ध्वनि उत्पादन करने वाले प्रदूषणों के प्रयोग पर रोक।
उपाय(noise pollution solution):-
1 उद्योगों को आबादी से दूर स्थापित करना।
2 उद्योगों के आस-पास एवं सडकों के किनारे सघन वृक्षारोपण करना।
3 नियमों का कठोरता से पालन करना।
वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए वायु प्रदूषण निबोध व नियंत्रण अधिनियम 1981 में साकर किया गया। 1981 में इसमें ध्वनि प्रदूषण को भी शामिल किया गया।
ध्वनि प्रदूषण ( noise pollution )
यह सिद्ध हो गया है कि ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे पहले वस्तुगत प्रदूषण का हिस्सा माना जाता था।
* लगातार शोर खून में कोलस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देता है जो कि रक्त नलियां को सिकोड़ देता है जिससे हृदय रोगों की संभावनायें बढ़ जाती हैं।
* स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना हैं कि बढ़ता शोर स्नायु संबंधी बीमारी, नर्वसब्रेक डाउन आदि को जन्म देता है।
* शोर, हवा के माध्यम में संचरण करता है।
* ध्वनि की तीव्रता नापने की निर्धारित इकाई को डेसीबल कहते हैं।
* विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसीबल से अधिक की ध्वनि हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है। मनुष्य को यूरोटिक बनाती है।
* विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 45 डेसीबल की ध्वनि को, शहरों के लिए आदर्श माना है। लेकिन बड़े शहरों में ध्वनि की माप 90 डेसीबल से अधिक हो जाती है। मुम्बई संसार का तीसरा सबसे अधिक शोर करने वाला नगर है। दिल्ली ठीक उसके पीछे है।
* विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली विश्व के 10 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है।
* एक अलग अध्यययन के अनुसार, वाहनों से होने वाला प्रदूषण 8 प्रतिशत बढ़ा है जबकि उद्योगों से बढ़ने वाला प्रदूषण चैगुना हो गया है।
* भारत के प्रदूषणों में वायु प्रदूषण सबसे अधिक गंभीर समस्या है।
ई-कचरा क्या है? इसका जवाब देना तो बहुत आसान है मगर इसके प्रभावों से मानव जाति को होने वाले नुकसान का अंदाजा लगा पाना अभी मुश्किल है।
पुरानी सीडी व दूसरे ई-वेस्ट को डस्टबिन में फेंकते वक्त हम कभी गौर नहीं करते कि कबाड़ी वाले तक पहुंचने के बाद यह कबाड़ हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि पहली नजर में ऐसा लगता भी नहीं है। बस, यही है ई-वेस्ट का मौन खतरा।
* ई-कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्व लीवर और किडनी को प्रभावित करने के अलावा कैंसर, लकवा जैसी बीमारियों का कारण बन रहे हैं। खास तौर से उन इलाकों में रोग बढ़ने के आसार सबसे ज्यादा हैं जहां अवैज्ञानिक तरीके से ई-कचरे की रीसाइक्लिंग की जा रही है।
* ई-वेस्ट से निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं।
* भारत में यह समस्या 1990 के दशक से उभरने लगी थी।
* ई-कचरे कि वजह से पूरी खाद्य श्रृंखला बिगड़ रही है।
* ई-कचरे के आधे-अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्व मिल जाते हैं जिनका असर पेड़-पौधों और मानव जाति पर पड़ रहा है।
* पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाती है जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन के प्रतिशत पर पड़ रहा है।
* कुछ खतरनाक रासायनिक तत्व जैसे पारा, क्रोमियम, सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज, कॉपर आदि हमारे भूजल पर भी असर डालते हैं।
* अवैध रूप से रीसाइक्लिंग का काम करने से उस इलाके का पानी पीने लायक नहीं रह जाता है।
असल समस्या ई-वस्ट की रीसाइकलिंग और उसे सही तरीके से नष्ट (डिस्पोज) करने की है। घरों और यहां तक कि बड़ी कंपनियों से निकलने वाला ई-वेस्ट ज्यादातर कबाड़ी उठाते हैं। वे इसे या तो किसी लैंडफिल में डाल देते हैं या फिर कीमती मेटल निकालने के लिए इसे जला देते हैं, जोकि और भी नुकसानदेह है।
आजकल विकसित देश भारत को डंपिंग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि उनके यहां रीसाइकलिंग काफी महंगी है। जबकि हमारे देश में ई-वेस्ट की रीसाइकलिंग और डिस्पोजल, दोनों ही सही तरीके से नहीं हो रहे ।
* हमारे देश में सालाना करीब चार-पांच लाख टन ई-वेस्ट पैदा होता है और 97 फीसदी कबाड़ को जमीन में गाड़ दिया जाता है।
सतत् जैव संचयी प्रदूषक पदार्थ
* सीसा, पारा, कैडमियम और पॉलीब्रोमिनेटेड सभी सतत, जैव विषाक्त पदार्थ हैं।
* जब कंप्यूटर को बनाया जाता है, पुनर्चक्रण के दौरान गलाया जाता है तो ये पदार्थ पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
* पीबीटी विशेष रूप से खतरनाक स्तर के रसायन होते हैं जो वातावरण में बने रहते हैं और जीवित ऊत्तकों को नुकसान पहुंचाते है।
* पीबीटी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं और ये कैंसर, तंत्र को नष्ट करने और प्रजनन जैसी बीमारियों से की संभावना को बढ़ाने से संबंधित होते हैं।
कार्यस्थल में शोर
अमेरिका द्वारा अनुशंसी औद्योगिक शोर
स्तर 90 डेसिबल /8 घंटा है।
पाश्चात्य संगीत से शोर : मनमोहक संगीत भी यदि तेज स्वर में बजाया जाए तो कानों को अच्छा नहीं लगता। आज के समय रॉक एंड रोल , पॉप संगीत , शोर प्रदूषण के कारणों में नयी कड़ी है। ऐसे संगीत से मस्तिष्क तंत्रिकाओं में आराम की जगह तनाव बढ़ता है। भारत में भी इसके प्रचलन के कुछ ही समय बाद से लोग कम सुनने की शिकायत करने लगे है।
पिछले कुछ वर्षो में यातायात की बढ़ी हुई संख्या –
1960 = 100 m वाहन
1970 = 200 m वाहन
1980 = 300 m वाहन
लाउडस्पीकरों के अनावश्यक प्रयोगों के कारण शोर : आजकल हमारे देश में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों का अनावश्यक प्रयोग होने लगा है। सभी सामाजिक पर्वों , रैलियों में भी हम लाउडस्पीकरों का खुलकर प्रयोग करने लगे है जिनका प्रभाव हमारे कान के नाजुक पर्दों पर पड़ता है।
मोटर साइकिलों , हवाई जहाजों , जेट वायुयानों , कल कारखानों तथा लाउडस्पीकरों का शोर अधिक घातक है तथा उसे नियंत्रित करने की सख्त जरुरत है। मनुष्य को 115 डीबी में 15 मिनट , 110 डीबी में आधा घंटा , 105 डीबी में एक घंटा , 100 डीबी में आठ घंटे से अधिक नहीं रहना चाहिए।
यह सही है कि अभी हम विश्व के सर्वाधिक कोलाहलपूर्ण शहर “रियो डि जेनीरो” के स्तर पर नहीं पहुँचे है , जहाँ पर ही शोर का स्तर 120 डेसीबल (डीबी) को छू लेता है। लेकिन धीरे धीरे हम भी उसी स्तर तक पहुँच रहे है। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार ध्वनि का स्तर अधिक से अधिक 45 डेसिबल (ध्वनि नापने की इकाई) होना चाहिए लेकिन हमारे महानगरों में यह स्तर 120 डीबी तक पहुँच गया है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (AIIMS) के एक सर्वेक्षण के अनुसार किसी भी महानगर में ध्वनि का स्तर 60 डीबी से नीचे नहीं है। दिल्ली , मुंबई तथा कोलकाता में 60 से 120 डीबी तक का ध्वनि प्रदूषण पाया गया है।
दिल्ली , मुंबई , कोलकाता जैसे बड़े शहरों में शोर का औसत स्तर 90 डीबी पाया गया है। ये मुश्किल से कभी 60 डीबी से नीचे आता है। ताजा रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय महानगरों में पिछले 20 वर्षो में शोर आठ गुना बढ़ गया है तथा यदि इसे नियंत्रित करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाये गए तो आने वाले 20 वर्षो में शहरी आबादी का एक अच्छा खासा हिस्सा बहरा हो जायेगा।
बड़े शहरों में निजी वाहनों की संख्या में तीव्र वृद्धि के साथ साथ परिवहन कोलाहल में 10 डीबी वार्षिक बढ़ोतरी हो रही है। परिवहन ही क्यों , गृहणी की मिक्सी से लेकर ट्रांजिस्टर , स्टीरियो , लाउडस्पीकर , वायुयान , कल कारखाने , टेलिफोन , टाइपराइटर , घरेलु झगडे आदि कुछ भी ध्वनि प्रदूषण के प्रसार से मुक्त नहीं है।
आज हमें सुरक्षा करने वाली सभी साधनों से उत्पन्न शोर परोक्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य पर निरंतर घातक प्रभाव डालते है। वैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोगों के आधार पर यह माना कि 30 डीबी के शोर से निद्रा टल जाती है , 75 डेसिबल की ध्वनि से टेलीफोन वार्ता प्रभावित होती है , 90 डीबी से अधिक ध्वनी होने पर स्वाभाविक निद्रा में लीन व्यक्ति जाग उठता है। 50 डीबी शोर पर एकाग्रता और कार्यकुशलता कम होती है , 120 डीबी शोर का प्रभाव गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करता है , व्यक्ति चक्कर आने की शिकायत करता है। एक अनुसन्धान के आधार पर यहाँ माना गया है कि 120 डीबी से अधिक तीव्रता की ध्वनि चूहे बर्दाश्त नहीं कर पाए। कई चूहों की तो जीवनलीला ही समाप्त हो गयी।
विश्व के अधिकांश देशों में शोर की अधिकतम सीमा 75 से 85 डीबी के मध्य निर्धारित की गयी है। कई अनुसंधानों के आधार पर यह माना जाता है कि शोर से “हाइपरटेंशन” हो सकता है। जिससे ह्रदय और मस्तिष्क रोग भी हो सकते है , आदमी समय से पूर्व बुढा हो सकता है। शोर के कारण अनिद्रा और कुंठा जैसे विकार उत्पन्न होते है। घातक प्रभावों के कारण शोर को धीरे धीरे मारने वाला कारक कहा जा सकता है।
85 डीबी से ऊपर की ध्वनि के प्रभाव में लम्बे समय तक रहने से व्यक्ति बहरा हो सकता है , 120 डीबी की ध्वनि से अधिक ध्वनी गर्भवती महिलाओं और उनके शिशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अधिकांश राष्ट्रों ने शोर की अधिकतम सीमा 75 से 85 डीबी निर्धारित की है।
अनुसंधानों से पता चलता है कि पर्यावरण में शोर की तीव्रता 10 वर्ष में दुगुनी होती जा रही है।
इसका मुख्य प्रभाव निम्नलिखित तालिका दर्शाती है –
तीव्रता (dB) | प्रभाव |
0 | सुनने की शुरुआत |
30 | स्वाभाविक निद्रा में से जागरण |
50 | निद्रा न आना |
80 | कानों पर प्रतिकूल असर |
90 | कार्यकुशलता का कम होना |
130 | संवेदना आरम्भ |
140 | पीड़ा आरम्भ |
130-135 | मितली , चक्कर आना , स्पर्श और पेशी संवेदना में अवरोध |
140 | कान में पीड़ा , बहुत देर होने पर पगला देने वाली स्थिति |
150 (बहुत देर तक) | त्वचा में जलन |
160 (बहुत देर तक) | छोटे मगर स्थायी परिवर्तन |
190 | बड़े स्थायी परिवर्तन थोड़े समय में |
डेसिबल शोर की तीव्रता को मापने का वैज्ञानिक पैमाना है तथा मानव के लिए 40 से 50 डीबी की ध्वनि सहनीय समझी जाती है।
कथन की पुष्टि निम्नलिखित आंकड़े करते है जो हमारे दिन प्रतिदिन के इस्तेमाल की चीजों एवं व्यवहार से उत्पन्न शोर की कहानी स्वयं कहते है।
एक फ़्रांसिसी अध्ययन के अनुसार पेरिस में मानसिक तनाव और बीमारियों के 70% मामलों का एकमात्र कारण हवाई अड्डों पर वायुयानों का कोलाहल था। दूर न जाते हुए अपने ही देश का उदाहरण ले तो मुंबई के उपनगर सांताक्रूज के निवासियों ने समीप के हवाई अड्डे से विमानों के अत्यधिक तथा कानफोड कोलाहल की अनेकानेक शिकायतें की है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि अत्यधिक शोर शराबे वाले इलाको में रहने वाले स्कूली बच्चो की न केवल याददाश्त कमजोर पड़ गयी थी बल्कि उनमे सिरदर्द तथा चिड़चिड़ापन के भी लक्षण नोट किये गए।
ध्वनि प्रदूषण एक तकनिकी समस्या है तथा चूँकि उसके साथ आधुनिक सुख सुविधा का साज सामान जुड़ा हुआ है इसलिए ध्वनि प्रदूषण को बिल्कुल समाप्त करने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती। हाँ , उसे नियंत्रित करना आवश्यक है तथा पूरी तरह से व्यवहार्य भी।
मसलन लाउडस्पीकरों के प्रयोग को नियंत्रित किया जाना चाहिए , तेज ध्वनि वाले प्रेशर हॉर्न पर पाबन्दी लगाई जानी चाहिए , कलकारखानों तथा हवाईअड्डे शहरी आबादी से काफी दूर होने चाहिए एवं सबसे बड़ी बात तो यह है कि शोर के इस भस्मासुर के खिलाफ एक खामोश शोर उठाना चाहिए।
शोर प्रदूषण से होने वाली हानियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि शोर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाये जाए :
नोट्स चाहिए ?
Make Your Note
वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट 2022, भारत में ध्वनि प्रदूषण और अनुमानित शोर का स्तर। भारत में ध्वनि प्रदूषण और संबंधित कानून तथा मुद्दे। |
हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम रिपोर्ट जिसका शीर्षक वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट 2022 है, उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद ज़िले के एक शहर के उल्लेख के कारण विवादास्पद हो गई है।
(a) केवल 1
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ध्वनि प्रदूषण को पर्यावरण प्रदूषण के रुप में पर्यावरण को बड़े स्तर पर विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से हानि पहुंचाने वाले तत्वों के रुप में माना जाता है। ध्वनि प्रदूषण को ध्वनि अव्यवस्था के रुप में भी जाना जाता है। अत्यधिक शोर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है और मानव या पशु जीवन के लिए असंतुलन का कारण है। यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है, हालांकि, यह जल, वायु, मृदा प्रदूषण आदि से कम हानिकारक है।
ध्वनि प्रदूषण पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).
ध्वनि के दुरुपयोग द्वारा होने वाले प्रदूषण को ध्वनि प्रदूषण कहते है। हमारे कान नियमित तेज आवाज को सहन नहीं कर पाते और जिससे कान के पर्दें बेकार हो जाते हैं जिसका परिणाम अस्थायी या स्थायी रुप से सुनने की क्षमता की हानि होता है।
कारण और प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण के कुछ मुख्य स्त्रोत सड़क पर यातायात के द्वारा उत्पन्न शोर, निर्माणकार्य (भवन, सड़क, शहर की गलियों, फ्लाई ओवर आदि) के कारण उत्पन्न शोर, औद्योगिक शोर, दैनिक जीवन में घरेलू उत्पादकों (जैसे घरेलू सामान, रसोइ घर का सामान, वैक्यूम क्लीनर, कपड़े धोने की मशीन, मिक्सी, जूसर, प्रेसर कूकर, टीवी, मोबाइल, ड्रायर, कूलर आदि) से उत्पन्न शोर, आदि हैं।
अधिक तेज आवाज सामान्य व्यक्ति की सुनने की क्षमता को हानि पहुँचाती है। अधिक तेज आवाज धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और एक धीरे जहर के रुप में कार्य करती है। इसके कारण और भी कई परेशानी होती हैं जैसे: सोने की समस्या, कमजोरी, अनिद्रा, तनाव, उच्च रक्त दाब, वार्तालाप समस्या आदि।
ध्वनि प्रदूषण का रोकथाम
ध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए हमें उचित कदम लेने की जरुरत है। लाउड स्पीकर, हॉर्न, और अन्य उपकरण जो शोरगुल मचाते है, उन्हें कम से कम इस्तेमाल करने की जरुरत है।
अत्यधिक शोर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है और मानव या पशु जीवन के लिए असंतुलन का कारण है। यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है।यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है।
पर्यावरण में बहुत प्रकार के प्रदूषण हैं, ध्वनि प्रदूषण, उनमें से एक है, और स्वास्थ्य के लिये बहुत खतरनाक है। यह बहुत ही खतनराक हो गया है कि इसकी तुलना कैंसर आदि जैसी खतरनाक बीमारियों से की जाती है, जिससे धीमी मृत्यु निश्चित है। ध्वनि प्रदूषण आधुनिक जीवन और बढ़ते हुये औद्योगिकीकरण व शहरीकर का भयानक तौहफा है। यदि इसे रोकने के लिये नियमित और कठोर कदम नहीं उठाये गये तो ये भविष्य की पीढियों के लिये बहुत गंभीर समस्या बन जायेगा। ध्वनि प्रदूषण वो प्रदूषण है जो पर्यावरण में अवांछित ध्वनि के कारण उत्पन्न होता है। यह स्वास्थ्य के लिये बहुत बड़ा जोखिम और बातचीत के समय समस्या का कारण बनता है।
उच्च स्तर का ध्वनि प्रदूषण बहुत से मनुष्यों के व्यवहार में चिडचिड़पन लाता है विशेषरुप से रोगियों, वृद्धों और गर्भवति महिलाओं के व्यवहार में। अवांछित तेज आवाज बहरेपन और कान की अन्य जटिल समस्याओं जैसे, कान के पर्दों का खराब होना, कान में दर्द, आदि का कारण बनती है। कभी-कभी तेज आवाज में संगीत सुनने वालों को अच्छा लगता है, बल्कि अन्य लोगों को परेशान करता है।
वातावरण में अनिच्छित आवाज स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। कुछ स्त्रोत ऐसे है जो ध्वनि प्रदूषण में मुख्य रुप से भाग लेते हैं जैसे उद्योग, कारखानें, यातायात, परिवहन, हवाई जहाज के इंजन, ट्रेन की आवाज, घरेलू उपकरणों की आवाज, निर्माणकार्य आदि।
उच्च स्तर की ध्वनि उपद्रव, चोट, शारीरिक आघात, मस्तिष्क में आन्तरिक खून का रिसाव, अंगों में बड़े बुलबुले और यहां तक कि समुद्री जानवरों मुख्यतः व्हेल और डॉलफिन आदि की मृत्यु का कारण बनती है क्योंकि वो बातचीत करने, भोजन की खोज करने, अपने आपको बचाने और पानी में जीवन जीने के लिये अपने सुनने की क्षमता का ही प्रयोग करती हैं। पानी में शोर का स्त्रोत जल सेना की पनडुब्बी है जिसे लगभग 300 माल दूरी से महसूस किया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण के परिणाम बहुत अधिक खतरनाक है और निकट भविष्य में चिंता का विषय बन रहे हैं।
60 डीबी आवाज को सामान्य आवाज माना जाता है, हालांकि, 80 डीबी या इससे अधिक आवाज शारीरिक दर्द का कारण और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। वो शहर जहां ध्वनि की दर 80 डीबी से अधिक हैं उनमें से दिल्ली (80 डीबी), कोलकत्ता (87 डीबी), मुम्बई (85 डीबी), चेन्नई (89 डीबी) आदि हैं। पृथ्वी पर जीवन जीने के लिये अपने स्तर पर शोर को सुरक्षित स्तर तक कम करना बहुत आवश्यक हो गया है क्योंकि अवांछित शोर मनुष्यों, पेड़-पौधो, और जानवरों के भी जीवन को प्रभावित करता है। ये लोगों में ध्वनि प्रदूषण, इसके मुख्य स्त्रोत, इसके हानिकारक प्रभावों के साथ ही इसे रोकने के उपायों बारे में सामान्य जागरुकता लाकर संभव किया जा सकता है।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण उस स्थिति में उत्पन्न होता है जब पर्यावरण में आवाज का स्तर सामान्य स्तर से बहुत अधिक होता है। पर्यावरण में अत्यधिक शोर की मात्रा जीने के उद्देश्य से असुरक्षित है। कष्टकारी आवाज प्राकृतिक सन्तुलन में बहुत सी परेशानियों का कारण बनती है। तेज आवाज या ध्वनि अप्राकृतिक होती है और अन्य आवाजों के बाहर जाने में बाधा उत्पन्न करती है। आधुनिक और तकनीकी के इस संसार में, जहां सब कुछ घर में या घर के बाहर बिजली के उपकरणों से संभव है, ने तेज ध्वनि के खतरे के अस्तित्व में वृद्धि कर दी है।
भारत में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की बढ़ती हुई मांग लोगों में अवांछित आवाज के प्रदर्शन का कारण हैं। रणनीतियों का समझना, योजना बनाना और उन्हें प्रयोग करना ध्वनि प्रदूषण को रोकना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वो आवाज जिसका हम प्रतिदिन निर्माण करते हैं जैसे, तेज संगीत सुनना, टीवी, फोन, मोबाइल का अनावश्यक प्रयोग, यातायात का शोर, कुत्ते का भौंकना, आदि ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्त्रोत शहरी जीवन का एक अहम हिस्सा होने के साथ ही सबसे ज्यादा परेशान करने वाले, सिर दर्द, अनिद्रा, तनाव आदि कारण बनता हैं। ये चीजें दैनिक जीवन के प्राकृतिक चक्र को बाधित करती हैं, वो खतरनाक प्रदूषक कहलाते हैं। ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत, कारक और प्रभाव निम्नलिखित हैं:
ध्वनि प्रदूषण के कारक या कारण
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
रोकने के उपाय
पर्यावरण में असुरक्षित आवाज के स्तर को नियंत्रित करने के लिये लोगों के बीच में सामान्य जागरुकता को बढ़ाना चाहिये और प्रत्येक के द्वारा सभी नियमों को गंभीरता से माना जाना चाहिये। घर में या घर के बाहर जैसे: क्लब, पार्टी, बार, डिस्को आदि में अनावश्यक शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों के प्रयोग को कम करना चाहिये।
ध्वनि प्रदूषण के कई निवारक उपाय हैं जैसे, उद्योगों में साउड प्रूफ कमरों के निर्माण को बढ़ावा देना, उद्योग और कारखानें आवासीय इमारत से दूर होनी चाहिए, मोटरसाइकिल के खराब हुये पाइपों की मरम्मत, शोर करने वाले वाहनों पर प्रतिबंध, हवाई अड्डों, बस, रेलवे स्टेशनों और अन्य परिवहन टर्मिनलों का आवासीय स्थलों से दूर होना चाहिए, शैक्षणिक संस्थानों और हॉस्पिटल्स के आसपास के इलाकों को आवाज-निषिद्ध क्षेत्र घोषित किया जाये, सड़को पर शोर के कारण उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रदूषण को अवशोषित करने के लिये रिहायसी इलाकों के आस-पास हरियाली लगाने की अनुमति देनी चाहिये।
ध्वनि प्रदूषण वो औद्योगिक या गैर-औद्योगिक क्रियाएं हैं जो मनुष्य, पौधो और पशुओं के स्वास्थ्य पर बहुत से आयामों से विभिन्न ध्वनि स्त्रोतों के द्वारा आवाज पैदा करके प्रभावित करती है। निरंतर बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के स्तर ने वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के जीवन को बड़े खतरे पर रख दिया है। हम नीचे ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोतों, प्रभावों और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिये वैधानिक आयामों पर चर्चा करेंगे।
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत निम्न लिखित हैं
भारत में बहुत अधिक ध्वनि प्रदूषण शहरीकरण, आधुनिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण आदि के द्वारा बढ़ा है। ध्वनि का प्रसार औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्त्रोतों के कारण हुआ है। ध्वनि के औद्योगिक स्त्रोतों में तेज गति से काम करने वाली उच्च तकनीकी की बड़ी मशीनें और बहुत से उद्योगों में ऊंची आवाज पैदा करने वाली मशीनें शामिल हैं। ध्वनि पैदा करने वाले गैर-औद्योगिक स्त्रोतों में यातायत के साधन, परिवहन और अन्य मानव निर्मित गतिविधियाँ शामिल हैं। ध्वनि प्रदूषण के कुछ औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्त्रोत नीचे दिये गये हैं:
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं
ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों, जानवरों और सम्पत्ति के स्वास्थ्य को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उनमे से कुछ निम्न है:
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये वैधानिक कदम निम्नलिखित है:
ध्वनि प्रदूषण ने इसके स्त्रोत, प्रभाव और ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपायों के बारे में सामान्य जागरुकता की तत्काल आवश्यकता का निर्माण किया है। कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थान, आवासीय क्षेत्र, अस्पताल आदि स्थानों पर ध्वनि का तेज स्तर रोका जाना चाहिये। युवा बच्चों और विद्यार्थियों को तेज आवाज करने वाली गतिविधियों जैसे; किसी भी अवसर पर तेज आवाज पैदा करने वाले उपकरणों और यंत्रो का प्रयोग आदि में शामिल न होने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। तेज आवाज करने वाले पटाखों के विशेष अवसरों जैसे; त्योहारों, पार्टियों, शादियों, आदि में प्रयोग को कम करना चाहिये। ध्वनि प्रदूषण से संबंधित विषयों को पाठ्यपुस्तकों में जोड़ा जाये और विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों जैसे लेक्चर, चर्चा आदि को आयोजित किया जा सकता है, ताकि नयी पीढ़ी अधिक जागरुक और जिम्मेदार नागरिक बन सके।
उत्तर- ध्वनि प्रदूषण मानव के कान के पर्दो को अत्यधिक प्रभावित करता है?
उत्तर- कल कारखाने तथा यातायात के साधन।
उत्तर- 180 डेसीबल
ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारणों में से एक है। यह जल, वायु और मृदा प्रदूषण (जमीन की उर्वरक क्षमता का कमजोर होना) से कम हानिकारक होता है। तेज ध्वनि के साथ उठने वाला शोर हमारे जीवन पर विपरीत असर डालता है। इसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। इसके कारण लोगों को कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। ध्वनि प्रदूषण जंगली और मानव जीवन के साथ पेड़-पौधों को भी प्रभावित करता है।
हमारे कान एक निश्चित ध्वनि की तीव्रता को ही सुन सकते हैं। ऐसे में तेज ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। नियमित रूप से तेज ध्वनि से सुनने से कान के पर्दे फट सकते हैं। इसके अलावा तेज ध्वनि हमारे स्थायी या अस्थायी रुप से बहरेपन का कारण बन सकती है।
हाई ब्लड प्रेशर
एकाग्रता में कमी
बात करने में परेशानी
60 डीबी आवाज को सामान्य आवाज माना जाता है। जबकि 80 डीबी या इससे अधिक क्षमता की आवाज हमारे लिए शारीरिक कष्ट का कारण बन सकती है। ध्वनि की इतनी तीव्रता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।
रेल यातायात
औद्योगिक और आवासीय इमारतों का निर्माण
कार्यालय के उपकरण
फैक्टरी और मशीनरी
बिजली उपकरण
ऑडियो मनोरंजन सिस्टम
ध्वनि प्रदूषण लोगों के काम करने की क्षमता और गुणवत्ता को कम करता है।
ध्वनि प्रदूषण हमारी एकाग्र क्षमता को प्रभावित करता है।
ध्वनि प्रदूषण के कारण गर्भवती महिलाओं के व्यवहार में चिड़चिड़ापन आता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण कई बार गर्भपात की स्थिति बन जाती है।
ध्वनि प्रदूषण हमारी मानसिक शांति को भंग करता है।
यह हाई ब्लड प्रेशर की समस्या और और मानसिक तनाव के लिए जिम्मेदार होता है।
ध्वनि का स्तर 80 डीबी से 100 डीबी होने पर यह हमें बहरा बना सकता है।
तेज ध्वनि से पशुओं का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। इसके कारण वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं और हिंसक हो जाते हैं।
सरकार और आम लोगों के संयुक्त प्रयासों से ध्वनि व शोर की तीव्रता को कम कर ध्वनि प्रदूषण कम किया जा सकता है।
सड़क किनारे पौधारोपण कर पौधों की लंबी कतार खड़ी करके ध्वनि प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सकता है। हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 डीबी तक कम कर सकते हैं।
हॉर्न के अनुचित उपयोग को बंद कर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
प्रेशर हार्न पर रोक, इंजन व मशीनों की समय पर मरम्मत और एक बेहतर ट्रेफिक व्यवस्था के जरिए ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
निजी वाहनों की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल ध्वनि प्रदूषण को कम कर सकता है।
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पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध: (essay on environmental pollution in hindi), पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते है (what is environmental pollution).
प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। विज्ञान के इस युग में मानव को जहाँ कुछ वरदान मिले है, वहीं कुछ अभिशाप भी मिले हैं। 'प्रदूषण' एक ऐसा अभिशाप हैं, जो विज्ञान की गर्भ से जन्मा हैं और आज जिसे सहने के लिए विश्व की अधिकांश जनता मजबूर हैं। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ तक मानव की वे सामान्य गतिविधियाँ भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषक हैं। हालाँकि उसके तत्व प्रदूषक नहीं हैं। यह सूर्य की रोशनी की ऊर्जा है, जो कि उसे धुएँ और कोहरे के मिश्रण में बदल देती है।
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:
जल प्रदूषण: जल में किसी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति, जो जल के स्वाभाविक गुणों को इस प्रकार परिवर्तित कर दे कि जल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए जल प्रदूषण कहलाता है। अन्य शब्दों में ऐसे जल को नुकसानदेह तथा लोक स्वास्थ्य को या लोक सुरक्षा को या घरेलू, व्यापारिक, औद्योगिक, कृषीय या अन्य वैद्यपूर्ण उपयोग को या पशु या पौधों के स्वास्थ्य तथा जीव-जन्तु को या जलीय जीवन को क्षतिग्रस्त करें, जल प्रदूषण कहलाता है।
जल प्रदूषण के विभिन्न कारण निम्नलिखित हैः
जल प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव हैः
जल प्रदूषण पर निम्नलिखित उपायों से नियंत्रण किया जा सकता है-
वायु प्रदूषण: वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।
वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य कारण हैं:
वायु प्रदूषण हमारे वातावरण तथा हमारे ऊपर अनेक प्रभाव डालता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित है :
वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती हैं-
ध्वनि प्रदूषण: जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो जाती है तो वह कानों को अप्रिय लगने लगती है। इस अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि को शोर कहते हैं। शोर से मनुष्यों में अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है। साथ ही साथ कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः शोर वह अवांक्षनीय ध्वनि है जो मनुष्य को अप्रिय लगे तथा उसमें बेचैनी तथा उद्विग्नता पैदा करती हो। पृथक-पृथक व्यक्तियों में उद्विग्नता पैदा करने वाली ध्वनि की तीव्रता अलग-अलग हो सकती है। वायुमंडल में अवांछनीय ध्वनि की मौजूदगी को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के कारण (Causes of Sound Pollution in Hindi): रेल इंजन, हवाई जहाज, जनरेटर, टेलीफोन, टेलीविजन, वाहन, लाउडस्पीकर आदि आधुनिक मशीनें।
ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव (Impacts of Sound Pollution in Hindi): लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्चरक्तचाप अथवा स्नायविक, मनोवैज्ञानिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं। लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से स्वाभाविक परेशानियाँ बढ़ जाती है।
ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-
भूमि प्रदूषण: भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में कोई ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर पड़े या जिससे भूमि की गुणवत्त तथा उपयोगित नष्ट हो, 'भूमि प्रदूषण' कहलाता है। इसके अन्तर्गत घरों के कूड़ा-करकट के अन्तर्गत झाड़न-बुहारन से निकली धूल, रद्दी, काँच की शीशीयाँ, पालीथीन की थैलियाँ, प्लास्टिक के डिब्बे, अधजली लकड़ी, चूल्हे की राख, बुझे हुए, अंगारे आदि शामिल हैं।
भूमि प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-
भूमि प्रदूषण के निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव हैः
मृदा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:-
सामाजिक प्रदूषण जनसँख्या वृद्धि के साथ ही साथ शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक मूल्यों का ह्रास होना आदि शामिल है। सामाजिक प्रदूषण का उद्भव भौतिक एवं सामाजिक कारणों से होता है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि सरकार के साथ स्वयं नागरिकों को जागरूक होने कि जरुरत है जिससे इस सामाजिक प्रदूषण से बचा जा सके
सामाजिक प्रदूषण को निम्न उपभागों में विभाजित किया जा सकता है:-
प्रकाश प्रदूषण, जिसे फोटोपोल्यूशन या चमकदार प्रदूषण के रूप में भी जाना जाता है, यह अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश के कारण होता है। प्रकाश का प्रदूषण हमारे घरों में दरवाजों और खिड़कियों के जरिये बाहर सड़कों पर लगे हुए बिजली के खम्भों और लैम्पों से भी घुस आता है। जो मौजूदा जिन्दगी में अनिवार्य और जरूरी चीज बन जाता है। इस तरह का प्रदूषण पर्यावरण में प्रकाश की वजह से लगातार बढ़ रहा है। इसको रोकने या कम करने का तरीका यही है कि बिजली या रोशनी का उपयोग जरूरत पड़ने पर ही किया जाये। प्रकाश का प्रदूषण तीन तरह से फैलता है:-
ऐसे विशेष गुण वाले तत्व जिन्हें आइसोटोप कहते हैं और रेडियोधर्मिता विकसित करते हैं, जिससे मानव जीव-जंतु, वनस्पतियों एवं अन्य पर्यावरणीय घटकों के हानि होने की संभावना रहती है, को नाभिकीय प्रदूषण या ‘रेडियोधर्मी प्रदूषण’ कहते हैं। परमाणु उर्जा उत्पादन और परमाणु हथियारों के अनुसंधान, निर्माण और तैनाती के दौरान उत्पन्न होता है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:-
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
☞ पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित प्रश्न उत्तर 🔗
किस ईंधन के कारण पर्यावरण में न्यूनतम प्रदूषण होता है?
हाइड्रोजन ईंधन न्यूनतम पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है। जब हाइड्रोजन जलती है तो वह जलवाष्प बन जाती है।
किसके द्वारा जल के प्रदूषण को साफ करने में बायो-फिल्टर के रूप में ’पाइला ग्लोबोसा’ प्रयुक्त किया जाता है?
कैडमियम द्वारा जल प्रदूषण को साफ करने के लिए पेला ग्लोबोसा का उपयोग जैव-फिल्टर के रूप में किया जाता है।
अम्लीय वर्षा किसके द्वारा वायु प्रदूषण के कारण होती है?
अम्लीय वर्षा नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड द्वारा पर्यावरण के प्रदूषण के कारण होती है। यह मुख्य रूप से कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन के औद्योगिक जलने के कारण होता है, जिनके अपशिष्ट गैसों में सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड होते हैं जो वायुमंडलीय पानी के साथ मिलकर एसिड बनाते हैं।
मानव में गुर्दे का रोग किसके प्रदूषण से होता है?
कैडमियम युक्त धूल के फेफड़ों तक पहुंचने से लीवर व गुर्दो पर घातक प्रभाव पड़ सकता है और न केवल वे डैमेज हो सकते हैं बल्कि कैंसर भी हो जाता है। - हड्डियों तक पहुंचने पर वे कमजोर हो सकती हैं। जोड़ों में दर्द और यहां तक फ्रैक्चर हो सकता है। - गुर्दो के ऊपर कैडमियम का प्रभाव परमानेंट होता है।
स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर) का प्रयोग किसके प्रदूषण के नियंत्रण के लिए किया जाता है?
स्थिर वैद्युत अवक्षेपित (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर) का प्रयोग तापीय प्रदूषण के नियंत्रण के लिए किया जाता है।
Description: प्रदूषण ppt आशिष पटले, keywords: education, read the text version.
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षण षण के कार • षण के मुख कार न न ल खत है .... 1) वायु षण वायु षण के कारण गाड़ी मोटर से नकलने वाला धँआु कारखान से नकलने वाला धँआु कारखान से नकलने वाला धँआु वाहन से नकलने वाला धँआु पटाख से नकलने वाला धँआु 2) जल षण जल षण के कारण नद , तालाब के जल म कचरा फकने से नद , तालाब के जल म वाहन धोने, शौच करने , कू ड़ा फे कने से कारखानो से नकलने वाला षत जल नद या तालाब म नान करने से 3) व न षण व न षण के कारण ककश आवाज के कारण वाहन के अ धक आवाज के कारण वाहन के अ धक आवाज के कारण पीकर, DJ, TV , बॉ स के अ धक आवाज के कारण पटाख के आवाज के कारण 4) मदृ ा/ भू षण मृदा/भू षण के कारण उवरक खाद ,के उपयोग से ला टक को जमीन म गाड़ने से क टनाशक दवा के उपयोग से दलदल े षण को रोकने के लए हमे न न उपाय करना चा हए। पड़े लगाने चा हए। वाहन ने CNG का उपयोग करना चा हए। कारखानो के चम नयाँ ऊँ ची रखकर। वाहन का आवाज कम रख। पीकर ,DJ, tv कम आवाज म बजाए। गोबर खाद का उपयोग कर। क टनाशक दवा का उपयोग कम कर। ला टक का उपयोग ना कर। पानी मे जानवर को ना धलु ाए या कू ड़ा न फके । खलु े म शौच ना कर। Ashish Patle
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प्रदूषण Pollution प्राकृतिक तत्वों को नुकसान होने या उनकी संरचना में परिवर्तन होने का नाम हैं। वर्तमान समय मे जब भी पर्यावरण से संबंधित विषयों पर बात होती है तो उनमें एक मुद्दा अक्सर हमारे सामने आता है और वह है प्रदूषण का। आजकल अक्सर हमें टेलीविजन, समाचार पत्रों आदि में देखने को मिलता है कि प्रदूषण इतना बड़ गया है, प्रदूषण के कारण ये बीमारी हो रही है, प्रदूषण के कारण इन पशु-पक्षियों को नुकसान पहुंच रहा है आदि बहुत-सी खबरें।
अब जब वर्तमान समय में हमें प्रदूषण से संबंधित इतनी सारी खबरें सुनने को मिलती हैं तो सोचिए कि हमारा इस प्रदूषण के विषय मे जानना कितना आवश्यक है। इसीलिए आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको जानकारी देना चाहते हैं कि आखिर यह प्रदूषण क्या है और प्रदूषण के प्रकार? What is Pollution in Hindi & Types of Pollution in Hindi
Table of Contents
प्रदूषण का अर्थ होता है – कोई अवांछनीय परिवर्तन।प्रदूषण को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है- वायु, जल तथा भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन को ही प्रदूषण कहा जाता है। ये अवांछनीय परिवर्तन मानव जीवन, पशु-पक्षियों, आस-पास के वातावरण आदि सभी को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं।
“Pollution can be defined as an undesirable change in physical, chemical or biological characteristics of air, water and land that may or will adversely affect human life, living conditions etc.”
Pollution शब्द लैटिन भाषा के ‘Pollutionem’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है “Defilement” अर्थात “दूषण या अशुद्धता”।
प्रदूषक कोई पदार्थ (जैसे डस्ट, स्मोक), रसायन (जैसे सल्फर डाइऑक्साइड) और कारक (जैसे हीट, नॉइज़) हो सकता है जो पर्यावरण में निकलकर पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
प्रदूषण के कई प्रकार हो सकते हैं। प्रदूषण मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार का होता है-
1. वायु प्रदूषण
2. जल प्रदूषण
3. मृदा प्रदूषण
4. रेडियोएक्टिव प्रदूषण
5. ध्वनि प्रदूषण
हम सभी इस बात से भली-भांति अवगत हैं कि वायु हम सभी के जीने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं।स्वच्छ और शुद्ध वायु हमारे स्वास्थ्य और हमारे जीवित रहने के लिए अति आवश्यक होती है।
परंतु इसी वायु में जब कोई अन्य गैस या कोई अन्य पार्टिकल (Particles) जो कि मनुष्य, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों आदि के लिए हानिकारक हो, मिल जाए तो इसे वायु प्रदूषण कहा जाता है अर्थात वातावरण में वायु के गुणों में अवांछनीय परिवर्तन ही वायु प्रदूषण कहलाता है।
वायु प्रदूषण के स्रोत |Sources of Air Pollution
वायु प्रदूषण निम्नलिखित कारकों से होता है-
1. इंडस्ट्रियल प्रदूषक – इंडस्ट्रीज से निकलने वाली हानिकारक गैसें तथा रसायन वायु प्रदूषण करते हैं। मुंबई जैसे शहर में इंडस्ट्रीज ही प्रदूषण का मुख्य कारण हैं।
2. ऑटोमोबाइल – मेट्रो सिटीज में ऑटोमोबाइल्स वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत हैं। ऑटोमोबाइल्स से निकलने वाले हानिकारक तत्व वायु को दूषित करते हैं।
3. जीवाश्म ईंधन का जलना – जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला आदि के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें निकलती हैं जो वायु प्रदूषण करते हैं।
4. एग्रीकल्चरल एक्टिविटीज़ – खेतों में उपयोग किये जाने वाले रसायन भी वायु प्रदूषण का कारण होते हैं।
5. Radiations – Nuclear Power Plants में होने वाले परीक्षणों आदि के दौरान निकलने वाली किरणों से भी वायु प्रदूषण होता है।
वायु प्रदूषण के प्रभाव
1. वायु प्रदूषण मनुष्य, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों आदि सभी को प्रभावित करता है-
2. वायु प्रदूषण के कारण स्वास संबंधित (अस्थमा, एलर्जी) अनेक बीमारियों से लोग ग्रसित हो जाते हैं।
3. इसके कारण कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो जाती है।
4. वायु प्रदूषण का एक बड़ा दुष्प्रभाव है- अम्लीय वर्षा ( Acid Rain) जिसके कारण ताजमहल जैसी कई इमारतों को नुकसान पहुँचता है। इसके कारण जलीय जीवों की भी मृत्यु हो जाती है।
5. वायु प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण का स्तर भी घटता है।
6. इस प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों में भी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।
7. वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत को नुकसान पहुँचता हैं।
8. इसके कारण ही हमें आज ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
वायु प्रदूषण का नियंत्रण
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए-
1. ऑटोमोबाइल्स को और बेहतर बनाना चाहिए ताकि वो पर्यावरण को दूषित न करे।
2. एक अच्छे ट्रैफिक व्यवस्था की जरूरत है क्योंकि लोग गाड़ियों को न चलाते समय भी इंजन ऑन रखते हैं जिससे वायु प्रदूषण होता है।
3. ऊर्जा के स्रोतों पर ध्यान देने की जरूरत है।
4. अधिक से अधिक मात्रा में पेड़-पौधें लगाने चाहिए, जिससे कि वो कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर लें और ऑक्सिजन गैस वायुमंडल में स्रावित करें।
5. वायु प्रदूषण की रोकथाम करने के लिए Arresters और Scrubbers जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए।
जल में जब किसी अवांछनीय पदार्थ के मिलने से जल की गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है, जिसके कारण वह उपयोगी नही रहता इसी को जल प्रदूषण कहा जाता है।
जल प्रदूषण के स्रोत |Sources of Water Pollution
1. Domestic and Sewage Wastes – घरों से निकलने वाले कूड़े-कचरे, मल इत्यादि को जब ऐसे ही नदियों, झीलों आदि में डाल दिया जाता है तो यह बहुत बड़ी मात्रा में जल को प्रदूषित करता है।
2. इंडस्ट्रियल वेस्ट – पेट्रोलियम, पेपर, केमिकल आदि इंडस्ट्रीज से निकलने वाले वेस्ट को नदी, तालाबों आदि में डिसचार्ज करने पर यह जल प्रदूषण करता है।
3. खेतों में प्रयोग किये जाने वाले उर्वरक, खाद आदि केमिकल्स से भी जल प्रदूषित होता है।
4. थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले गर्म पानी को जब झीलों, समुद्रों में डाला जाता है तो इसके कारण जलीय जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह भी जल प्रदूषण का कारण है।
जल प्रदूषण के प्रभाव
1. जल के बिना जीवन संभव नही है। स्वच्छ जल पर सभी जीवों का जीवन निर्भर करता है परन्तु यही जल जब दूषित हो जाता है तो यह उपयोग करने लायक नही रहता।
2. ऐसे दूषित जल को ग्रहण करने से अनेक बीमारियाँ होती हैं।
3. जल प्रदूषण के कारण पूरा पारिस्थितिकी तंत्र डगमगा जाता है।
जल प्रदूषण का नियंत्रण
1. वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट – नदियों, तालाबों, झीलों आदि में वेस्ट वाटर को डिसचार्ज करने से पूर्व यदि उसका ट्रीटमेंट कर लिया जाए तो जल प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
2. उर्वरकों और पेस्टिसाइड के उपयोग पर नियंत्रण – खेतों में यदि उर्वरकों, पेस्टिसाइड आदि का कम से कम उपयोग किया जाए तो इससे भी जल प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
3. वेस्ट प्रोडक्ट्स की रीसाइक्लिंग – वेस्ट प्रोडक्ट्स की रीसाइक्लिंग भी जल प्रदूषण नियंत्रण का एक बहुत अच्छा उपाय है।
जब किसी अवांछनीय तत्व के कारण मिट्टी की उपजाऊ क्षमता घट जाती है तो इसे मृदा प्रदूषण कहा जाता है।
मृदा प्रदूषण के स्रोत |Sources of Soil Pollution
1.घरेलू कूड़े-कचरे, इंडस्ट्रीज से निकलने वाले कचरे आदि से मृदा प्रदूषण होता है।
2.एग्रीकल्चर में अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों, रसायनों कर प्रयोग भी मृदा प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
3.अम्लीय वर्षा से मृदा प्रदूषण होता है।
4.मृदा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है प्लास्टिक।
मृदा प्रदूषण नियंत्रण
1. Improved Agricultural Methods का प्रयोग
2. वेस्ट मैटेरियल्स की रीसाइक्लिंग।
3. अधिक से अधिक पेड़-पौधें लगाना।
4. जनता को जागरूक करना।
5. ऊपर दिए गए इन उपायों से मृदा प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
किसी रेडियोएक्टिव मटेरियल (जैसे रेडियम-224, यूरेनियम-235, थोरियम-232 आदि) द्वारा वायु, जल, मृदा का दूषित होना ही रेडियोएक्टिव प्रदूषण कहलाता है। रेडियोएक्टिव प्रदूषण, कैंसर का सबसे बड़ा कारक है।
वह अनावश्यक ध्वनि जो कानों पर अप्रिय प्रभाव उत्पन्न करती है उसे नॉइज़ पॉल्युशन कहा जाता है। ध्वनि की तीव्रता को decibels या db में मापा जाता है। 80db से अधिक की वैल्यू नॉइज़ पॉल्युशन उत्पन्न करती है।
नॉइज़ पॉल्युशन के स्रोत |Sources of Noise Pollution
नॉइज़ पॉल्युशन के कुछ स्रोत इस प्रकार से है –
2. लाउड स्पीकर
3. गाड़ियों का शोर
4. एयरक्राफ्ट और रेलवेज
नॉइज़ पॉल्युशन के प्रभाव
1. नॉइज़ पॉल्युशन हार्ट को नुकसान पहुंचा सकता है।
2. इसके कारण दिमाग पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
3. लगातार ज्यादा नॉइज़ वाले स्थान पर रहने से मनुष्य की सुनने की क्षमता समाप्त हो सकती है।
4. अधिक नॉइज़ से व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, घबराहट, तनाव, बेहोशी जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
5. इसके कारण पशु-पक्षियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नॉइज़ पॉल्युशन नियंत्रण
नॉइज़ पॉल्युशन को नियंत्रित करने के लिये निम्नलिखित कार्य किये जा सकते हैं-
1. इंडस्ट्रीज में ज्यादा नॉइज़ उत्पन्न करने वाली मशीनों के लिए साउंड प्रूफ कमरों का निर्माण करना।
2. इंडस्ट्रीज, फैक्ट्रीज आदि का निर्माण आबादी वाले इलाकों से दूरी पर करना।
3. लाउड स्पीकर के मिसयूज़ पर शख्त कारवाही होनी चाहिए।
निष्कर्ष – Conclusion
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जो पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीवों तथा उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। प्रदूषण के कारण कई पशु-पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। इसके कारण सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
इसीलिए अगर पृथ्वी पर जीवन बनाए रखना है तो हम सभी को इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कार्य करना होगा। केवल सरकार द्वारा नियम बनाने से ही कुछ नही होगा, प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अवश्य कदम उठाने चाहिए।
तो दोस्तों आज आपने हमारी इस पोस्ट के माध्यम से जाना कि प्रदूषण क्या हैं और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण? ( What is Pollution in Hindi & Types of Pollution in Hindi ) हम आशा करते हैं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई हो। इस पोस्ट से संबंधित आपके कोई प्रश्न या सुझाव हो तो आप कमेंट बॉक्स का उपयोग कर सकते हैं।
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इस समय प्रदूषण विश्व स्तर पर एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है, जिसके कारण सभी जीव-जंतु और मनुष्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषण न सिर्फ वातावरण को प्रभावित करता है, बल्कि इससे जीवनकाल भी प्रभावित हो रहा है। कई प्रकार के प्रदूषण हैं जो हमारे वातावरण पर बुरा असर डाल रहे हैं जिनमें से एक प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण भी है। प्लास्टिक प्रदूषण से पैदा होने वाली समस्या दिन पर दिन तेजी से बढ़ती जा रही। यह प्रदूषण हमारे पर्यावरण को काफी तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है। हम सभी जानते हैं कि प्लास्टिक को आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है, जिसके कारण धरती को इसके बुरे परिणामों का प्रभाव झेलना पड़ता है। प्रदूषण में इस समस्या का अहम योगदान रहा है और अब यह समस्या दुनिया भर के लिए एक चिंता का विषय बन चुकी है। प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ने की वजह से इसके कचरे की मात्रा भी अधिक हो गई, जो की प्लास्टिक प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या के उत्पन्न होने क मुख्य कारण है। दुनिया भर के लोगों को इस गंभीर समस्या को लेकर जागरूक हो जाना चाहिए और इसे रोकना और इसका समाधान निकालने का प्रयास मिलकर करना चाहिए।
अगर आप कम शब्दों में प्लास्टिक प्रदूषण पर अनुच्छेद लिखना चाहते हैं तो नीचे इस प्रदूषण के बारे में दी गई 10 लाइन को ध्यान से जरूर पढ़ें।
यहाँ आपको प्लास्टिक प्रदूषण पर बेहतरीन और आसान शब्दों में शॉर्ट पैराग्राफ या हिंदी में छोटा निबंध कैसे लिखना चाहिए उसका सैंपल दिया गया। आपका बच्चा इसकी मदद से खुद भी एक अच्छा लेख लिख सकता है।
आज के समय में लोगों के अंदर बिमारियों से लड़ने की क्षमता पहले से कम हो गई है जिसकी एक अहम वजह बढ़ता प्रदूषण है। प्लास्टिक एक ऐसी ही वस्तु है जो जीव-जंतु के साथ इंसानों पर भी बुरा प्रभाव डालती है। इन दिनों प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या बड़ी चिंता का विषय है। यह एक नॉन-बायोडिग्रेडेबल सिंथेटिक चीज है जो विषैला होता है। प्लास्टिक प्रदूषण से जीव-जन्तु और इंसानों का जीवन प्रभावित रो रहा है। जिससे उन्हें गंभीर रूप से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि प्लास्टिक को कभी खत्म नहीं किया जा सकता है उसके लिए आप एक मात्र रीसायकल करके इसका दोबारा उपयोग कर सकते हैं लेकिन इसे पूरी तरह नष्ट नहीं कर सकते हैं। अगर आप प्लास्टिक को जलाने का प्रयास करते हैं तो इससे अधिक प्रदूषण होगा। प्लास्टिक को जलाने पर वो कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस छोड़ता है। जिससे हमारे इकोसिस्टम बुरी तरह से प्रभावित होता है। प्लास्टिक का इस्तेमाल बड़ी संख्या में हर जगह होता है और इससे निकलने वाला कचरा तालाब, नदियों और जमीन पर फेंका जाता है, जो प्रदूषण को विभिन्न प्रकार से पर्यावरण को हानि पहुंचा रहा है। इसके आलावा हम जो पानी पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का लंबे समय तक इस्तेमाल करते हैं वो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है। इसलिए प्लास्टिक की बोतल का उपयोग करने से हमें बचना चाहिए और यदि किसी कारण से प्लास्टिक की बोतल का उपयोग करना पड़ता है तो इसे लंबे समय तक उपयोग करने से बचें। सरकार के साथ साथ हम सब को प्लास्टिक के उपयोग का बहिष्कार करना चाहिए और या फिर जितना संभव हो सके इसका कम से कम उपयोग करना चाहिए ताकि हम सब के प्रयास से हमारा वातावरण स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त हो सके।
क्या आपके बच्चे को निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने या स्कूल असाइनमेंट के लिए प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण पर निबंध लिखना है वो भी हिंदी और आप सैंपल के तौर पर हिंदी निबंध के ज्यादा विकल्प नहीं है तो हम यहां आपकी ही मदद के लिए हाजिर हैं। यहां आपको प्लास्टिक प्रदूषण पर हिंदी में लॉन्ग एस्से दिया गया है आप इस निबंध की मदद से बच्चे को स्वयं एक बेहतरीन निबंध तैयार करने में मदद कर सकते हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिसमें प्लास्टिक के अधिक उपयोग से धरती पर प्रदूषण बढ़ता है। यह प्रदूषण न सिर्फ पर्यावरण पर बल्कि जानवरों और इंसानों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालता है। प्लास्टिक की बोतल, पन्नी आदि अन्य चीजों को सड़कों और पानी में फेंकने से इसके प्रदूषण का खतरा अधिक बढ़ता है। पानी में रहने वाले जीव भी इसका शिकार हो रहे हैं। जमीन पर प्लास्टिक फेंकने से भूमि प्रदूषण का खतरा भी बढ़ता है क्योंकि प्लास्टिक को नष्ट नहीं किया जाता है जिसकी वजह से यह सालों जमीन के अंदर मौजूद रहता है। प्लास्टिक पानी, हवा और भूमि में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों का कारण बनता है और हमारे वातावरण, जानवरों और इंसानों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए हमें प्लास्टिक का उपयोग बेहद कम कर देना चाहिए और उसकी जगह अन्य हानि रहित चीजों का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए।
प्लास्टिक एक ऐसी चीज है जो बाजार में बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है और यह सस्ती भी होती है। लेकिन बाकी चीजों की तरह आसानी से नष्ट नहीं होती है। सालों जमीन पर पड़े रहने के बावजूद प्लास्टिक बहुत सस्ता होता है। आज कल के लोग इतने बेफिक्र हो गए हैं कि प्लास्टिक की बोतल, पॉलिथीन आदि का इस्तेमाल कर के कहीं भी इधर-उधर फेंक देते हैं। जिसके कारण पर्यावरण के अहम हिस्से पानी और जमीन दोनों ही प्रदूषित होते हैं। कई बार नालों और नदियों में मौजूद प्लास्टिक की चीजें उनके निकासी का रास्ता बंद कर देती हैं, जिसकी वजह से आस-पास मौजूद लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। विकसित देशों में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है। प्लास्टिक की वजह से बेजुबान जानवरों को भी इसका प्रभाव झेलना पड़ रहा है, चाहे वो जमीन पर रहने वाले जानवर हों या फिर पानी में बसने वाले, सभी की मौत का कारण यही है। सड़कों पर पन्नी और प्लास्टिक की बोतल फेंकना गलत है क्योंकि जानवर उसे चलते-फिरते खा लेते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है। साथ ही गंदगी भी फैलती है और इसके कारण कई बीमारियां जन्म लेती हैं।
प्लास्टिक का इंसानों पर असर.
इंसानों को हमेशा से ही प्लास्टिक की चीजों की आदत हो जाती है। बचपन से लेकर बड़े होने तक कई ऐसी प्लास्टिक की चीजें हमसे जुडी होती हैं। बच्चे की दूध की बोतल से लेकर उसके खिलौने तक प्लास्टिक के होते हैं और बड़े भी अपनी उम्र के अनुरूप प्लास्टिक की चीजों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में हमें इस समस्या को जल्द से जल्द सुलझाने का प्रयास करना चाहिए ताकि आगे आने वाले समय में किसी बड़ी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़े। व्यक्ति अपने खाने की चीजें प्लास्टिक के डिब्बों में रखता है, दुसरे विकल्प होने के बावजूद भी वह इन्हें किचन के सामानों को रखने के लिए उपयोग करता है। वह प्लास्टिक की कुर्सी से लेकर प्लास्टिक की बाल्टी तक का उपयोग करता है। पानी पीने के लिए ज्यादातर लोग प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करते हैं। यह कितना हानिकारक हो सकता है, व्यक्ति को अब उसका अंदाजा हो रहा है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है।
घास चरने वाले जानवर जैसे गाय, भैंस आदि कभी-कभी खाने की तलाश में ऐसी जगह पर पहुंच जाते हैं, जहाँ कूड़े में प्लास्टिक का ढेर हो। वहां पर जाकर वह अनजाने में प्लास्टिक भी खा सकते है। अनजाने में हुए प्लास्टिक के सेवन से उनकी मौत भी हो सकती है। पानी में रहने वाले जीव भी प्लास्टिक की समस्या से मौत का शिकार हो रहे है। समुन्दर, तालाब में फेंके जाने वाले कूड़े में कई तरह की प्लास्टिक की चीजें मौजूद होती है, जिनको खाने से पानी में रहने वाले जानवरों की मौत हो रही है क्योंकि वह खाने की जगह प्लास्टिक खा लेते हैं, जो कि उनके गले में अटक जाता है।
प्लास्टिक प्रदूषण काफी गंभीर समस्या है और दुनिया भर में यह बढ़ती जा रही है, इसलिए इस निबंध की मदद से आपके बच्चे को इस समस्या के बारे में जानकारी होगी और वो इसको गंभीरता के साथ समझेगा। इतना ही नहीं वो आगे भी लोगों को इसके इस्तेमाल को कम करने लिए प्रेरित कर सकता है। सिर्फ यही नहीं विद्यालय में प्लास्टिक प्रदूषण पर पूछे गए सवालों का भी सही जवाब देने में सक्षम हो सकता है।
भारत में प्लास्टिक फ्री इंडिया अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2019 को की गई थी।
चीन, दुनिया में सबसे अधिक प्लास्टिक का उत्पादन करता है।
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