भारतीय इतिहास पर निबंध (Indian History Essay In Hindi)

भारतीय इतिहास पर निबंध (Indian History Essay In Hindi)

आज   हम भारतीय इतिहास   पर निबंध (Essay On Indian History In Hindi) लिखेंगे। भारतीय इतिहास   पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

भारतीय इतिहास पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Indian History In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

भारत एक ऐसा देश है जहां की संस्कृति और सभ्यता के चर्चे देश विदेशों में भी होते हैं। भारत में कई प्रकार के जाति, धर्म, भाषा और संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसके बावजूद भी उनके बीच में मौके मौके पर भाईचारा तथा एकता देखी गयी है। भारत की संस्कृति और परंपरा प्राचीन समय से ही लोगों के बीच चर्चा का विषय है।

यहां कई सारी ऐसी मान्यताएं हैं, जिनको पुरानी पीढ़ी से लेकर आने वाली पीढ़ी के लोग सच्चे दिल से मानते और अपनाते हैं। आज हम आपको भारत और उसके इतिहास के बारे में काम शब्दों में संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। जिससे आपको भी भारत से संबंधित सारी जानकारी प्राप्त हो सके।

भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजारों वर्षों पूर्व पुराना है। ऐसा अनुमान है कि आज से लगभग 65,000 साल पहले होमो सेपियंस अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंचे थे। जहां से भारत के विकास की कहानी शुरू होती है।

ऐसा भी माना जाता है कि 19वीं शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के आधार पर, आर्यों का एक वर्ग भारतीय उपमहाद्वीप की सीमाओं पर दो हजार इसा पूर्व के आस पास पहुंचा और उसके बाद ही कई सारे नए राज्यों का विकास किया गया।

जैसे जैसे भारतीय सभ्यता आगे बढ़ रही थी, वैसे वैसे वैदिक सभ्यता ने जन्म लिया। जिसे प्रारंभिक सभ्यता के रूप में माना जाता है और जिनका नाम हमारे वेदों के आधार पर किया गया, जिसे संस्कृत भाषा में लिखा और पढ़ा गया। भारत के इतिहास को कुछ मुख्य भागों में बांटा जाता है, जिसके आधार पर इसका अध्ययन करना सुविधाजनक होता है।

पूर्व ऐतिहासिक काल

इस युग को महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इसी युग में मानव के शुरुआती दिनों की कल्पना की जाती है। इंसानों ने सबसे पहले धरती पर कुछ नया करना सीखा था। ऐसा अनुमान है कि पाषाण युग आज से लगभग 5,00,000 साल पहले शुरू हुआ था और यहीं से सबसे पहले पत्थरों से हथियार बनाना शुरू किया गया था।

इस युग की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता के साथ हुई थी, जिसे लगभग 3300 ईसा पूर्व माना जाता है। इस युग की शुरुआत मेसोपोटामिया और प्राचीन मिस्र के साथ हुई थी। जहां पर लोगों ने कांस्य का इस्तेमाल शुरू किया। इसके साथ ही साथ लोगों ने विभिन्न प्रकार के धातु को मिलाकर उत्पादन शुरू किया, जिसमें मुख्य रुप से तांबा, पीतल, सीसा और टिन है।

प्रारंभिक ऐतिहासिक काल

इस काल के माध्यम से ही हमें मजबूत कला संस्कृतियों के बारे में पता चलता है। जहां पर इसकी शुरुआत 1500 ईसा पूर्व मानी गयी है। वैदिक काल में ज्यादातर संस्कृत भाषा का उपयोग किया जाता था और साथ ही साथ उस समय वेद लिखने की शुरुआत हो चुकी थी।

इस काल से ही समाज में हिंदू और दूसरे धर्मों की व्याख्या की गई है, जहां पर इसके बाद में पूर्ण रूप से भारत में हिंदू धर्म का बोलबाला देखा गया।

इस काल में सबसे ज्यादा विकसित शहरीकरण देखा गया, जहां पर छोटे-छोटे नए राज्य बन गए और कई प्रकार के महाजन पद स्थापित कर दिए गए थे। जिसमें मुख्य रुप से मगध, मल्ला, आसाका, अवंती, गंधारा, कंबोज जैसे छोटे राज्यों की स्थापना की गई। इस काल के बारे में बौद्ध और जैन साहित्य में भी वर्णन किया गया है।

प्राचीन भारत के मुख्य ऐतिहासिक घटना चक्र

१) प्रागैतिहासिक काल

इस काल में मनुष्यों द्वारा भोजन इकट्ठा करके उसे आग में पकाना सिखा गया था। इसका समय 4,00,000 ईसा पूर्व से 1,000 ईसा पूर्व तक माना गया है।

२) सिंधु घाटी सभ्यता

ऐसा माना गया कि इस समय सिंधु नदी मुख्य रूप से कृषि हेतु कारगर थी और उस समय के लोग पूजा पाठ को विशेष महत्व देते थे। यह काल 2,500 ईसा पूर्व से 1500 वर्ष पूर्व तक माना गया।

३) हिंदू धर्म का बदलाव

इस समय में जाति प्रथा के कारण कई लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ा। साथ ही साथ इस समय में कई मुख्य राजवंश बने, जैसे बिंबिसार, अजातशत्रु, मगध, नंदा राजवंश। इसका समय 600 ईसा पूर्व से 322 ईसा पूर्व माना गया।

४) मौर्य काल

उन दशकों में मौर्य काल को चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित किया गया था। जिसके अंतर्गत पूरा भारत आता है और इसके बाद कई सारे ऐसे राजाओं का प्रवेश हुआ, जिन्होंने राज्यों को बढ़ाने के लिए कई कार्य किए। इसी काल में राजा अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया। इस काल का समय 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व माना गया।

५) गुप्त साम्राज्य

इस   समय से गुप्त साम्राज्य की स्थापना हुई और सबसे शास्त्रीय युग इसी युग को माना जाता है। साथ ही साथ इस युग में शाकुंतलम् और कामसूत्र जैसे काव्यों की रचना की गई और भारत के अंदर इसाई धर्म का प्रवेश हुआ। इस युग का समय 320 ईसवी से 520 ईसवी माना गया है।

भारत के कुछ महान योद्धा सम्राट

सम्राट अशोक : सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक थे, जिन्होंने सारनाथ में स्तंभ की स्थापना की। उन्होंने हमेशा अपने राज्य को संभालने के लिए हर कोशिश की, जिससे वह दुश्मनों को राज्य से दूर रख सकें और हमेशा प्रजा की भलाई कर सकें। सम्राट अशोक के ह्रदय परिवर्तन के बाद से उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और कई सारे अच्छे कार्य किए, जिसकी बदौलत ही लोगों को एक अच्छा अनुयाई मिल सका।

महाराणा प्रताप : महाराणा प्रताप को सच्चे भारत के सपूत के रूप में जाना जाता है, जो राजपूत वंश के थे। जिन्होंने अपने पराक्रम से अकबर को कांटे की टक्कर दी थी। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हर वह पैंतरा अपनाया, जिसकी वजह से दुश्मन उनसे दूरी बनाए रखे। उनके नाम से ही उनके दुश्मन कांप उठते थे। भारत के इतिहास में उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी है।

अकबर : इन्हें मुगल शासकों में सबसे प्रसिद्ध शासक के रूप में जाना जाता है। इन्होंने हमेशा नए कार्यों की तरफ ध्यान दिया। उन्हें कला और संगीत से प्रेम था और इसीलिए उन्होंने अपने दरबार में नौ रत्नों का निर्माण किया था। उन्होंने हमेशा सभी धर्मों का सम्मान किया और सती प्रथा, बाल विवाह, शराब सेवन जैसी नीतियों को दूर किया। अपने राज्य में उन्होंने सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया और हमेशा वे अपनी मातृभूमि के लिए समर्पित रहे।

छत्रपति शिवाजी महाराज : छत्रपति शिवाजी महाराज एक महान योद्धा थे, जिन्होंने हमेशा अपने त्याग, वीरता और बल से लोगों की रक्षा की। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और सभी धर्मो का सन्मान किया और विकास के लिए कई कार्य किए और महिलाओं का हमेशा सम्मान किया। अपने राज्य में उन्होंने हमेशा लोगों के हित में काम किया और इसीलिए आज तक उनका नाम महान योद्धाओं के रूप में लिया जाता है।

भारत के इतिहास में इन सभी योद्धाओं का महत्वपूर्ण योगदान है, जिनका नाम आज भी गर्व के साथ लिया जाता हैं और जिनके बहादुरी के किस्से आज भी मशहूर हैं।

भारत के इतिहास के प्रमुख क्रांतिकारी

भारत लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा और उस समय अंग्रेजों की बर्बरता इतनी बढ़ चुकी थी कि लोग कुछ कर नहीं पाते थे। बस वे वही किया करते थे, जो अंग्रेज उनसे करने को कहा करते थे। इस बीच कुछ ऐसे लोग भी थे, जो अपने देश को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे और जिन्होंने अपने देश को आजाद करने का सपना देख रखा था। जिनमे से कुछ प्रमुख क्रांतिकारी इस प्रकार है –

  • महात्मा गांधी
  • जवाहरलाल नेहरू
  • चंद्रशेखर आजाद
  • लाला लाजपत राय
  • रानी लक्ष्मीबाई
  • रानी अहिल्याबाई
  • मदन मोहन मालवीय
  • सुभाष चंद्र बोस

यह सभी नायाब हीरे हैं जिन्होंने देश के लोगों को जागृत किया, ताकि वे आगे बढ़कर आजादी की जंग में साथ दे सकें और जल्द से जल्द अंग्रेजों से आजादी हासिल कर सकें। आखिरकार 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजो से आजाद हुआ और इसकी मुख्य वजह इन सभी महान व्यक्तित्व की वीरता है।

भारत की प्रसिद्ध इमारतें

अगर हम भारत के इतिहास की बात कर रहे हैं, तो ऐसे में भारत की इमारतों का उल्लेख करना आवश्यक माना गया है। जिससे हम इतिहास के बारे में सही जानकारी दे सकते हैं। यह मुख्य इमारते निम्न है –

  • ताजमहल [आगरा]
  • लाल किला [नई दिल्ली]
  • कुतुब मीनार [दिल्ली]
  • सांची का स्तूप [सांची]
  • गेटवे ऑफ़ इंडिया [मुंबई]
  • इंडिया गेट [नई दिल्ली]
  • हवा महल [जयपुर]
  • चारमीनार [हैदराबाद]
  • हुमायूं का मकबरा [नई दिल्ली]

भारत के प्रमुख त्योहार

भारत के इतिहास में त्योहारों का विशेष महत्व माना गया है, जहां किसी विशेष उपलब्धि या जीत के होने पर त्योहार मनाए जाते थे और अपनी खुशियां लोगों के सामने जाहिर की जाती थी। लोग बिना किसी जाति या धर्म में फ़र्क़ किए बिना किसी भी भेदभाव के अपने जीवन को आगे बढ़ाते है। भारत के कुछ मुख्य त्योहार इस प्रकार हैं –

  • दुर्गा पूजा
  • कृष्ण जन्माष्टमी
  • महाशिवरात्रि
  • गुरु नानक जयंती

भारत की मान्यताएं

भारत में प्राचीन काल से ही इस प्रकार की मान्यताएं हैं, कि लोग एक दूसरे के प्रति एकता और भाईचारे के साथ रहते हैं। साथ ही साथ मुसीबत के समय में लोग एक दूसरे के काम आते हैं। हमारी संस्कृति में कभी किसी को नीचा नहीं  दिखाया जाता और सभी धर्म, जातियों का सम्मान किया जाता है। भारत की मान्यताओं के अनुसार हमें अपने कर्मों पर जोर देना चाहिए, ताकि उन्नति के मार्ग खुल सके।

इस प्रकार से हमने जाना कि भारत और यहां की संस्कृति सभी भारत वासियों के लिए बहुत ही मायने रखती है। इन सारी बातों को इतिहास से बताया जाता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है। जहां पर हर तरह के लोग पूरी आजादी के साथ रह सकते हैं और अपना जीवन निर्वाह कर सकते हैं। भारत के इतिहास से हम सभी को एक सीख मिलती है, जिससे हम सभी अपने मार्ग में आगे बढ़ सके और अपने जीवन को खुशहाल बना सके।

इन्हे भी पढ़े :-

  • भारतीय संस्कृति पर निबंध (Indian Culture Essay In Hindi)
  • भारत में लोकतंत्र पर निबंध (Indian Democracy Essay In Hindi)
  • भारत के त्यौहार पर निबंध (Indian Festivals Essay In Hindi)
  • भारत पर हिंदी निबंध (Essay On India In Hindi)

तो यह था भारतीय इतिहास   पर निबंध (Indian History Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि भारतीय इतिहास  पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Indian History) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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भारतीय इतिहास पर निबंध | Essay on Indian History | Hindi

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भारतीय इतिहास पर निबंध | Essay on Indian History in Hindi language!

Essay # 1. भारतीय इतिहास का भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geographical Background of Indian History):

हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा हिन्द महासागर के उत्तर में स्थित एशिया महाद्वीप का विशाल प्रायद्वीप भारत कहा जाता है । इसका विस्तृत भूखण्ड, जिसे एक उपमहाद्वीप कहा जाता है, आकार में विषम चतुर्भुज जैसा है ।

यह लगभग 2500 मील लम्बा तथा 2000 मील चौड़ा है । रूस को छोड़कर विस्तार में यह समस्त यूरोप के बराबर है । यूनानियों ने इस देश को इण्डिया कहा है तथा मध्यकालीन लेखकों ने इस देश को हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के नाम से सम्बोधित किया है ।

भौगोलिक दृष्टि से इसके चार विभाग किये जा सकते हैं:

(i) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश:

यह तराई के दलदल वनों से लेकर हिमालय की चोटी तक विस्तृत है जिसमें कश्मीर, काँगड़ा, टेहरी, कुमायूँ तथा सिक्किम के प्रदेश सम्मिलित हैं ।

(ii) गंगा तथा सिन्धु का उत्तरी मैदान:

इस प्रदेश में सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियाँ, सिन्ध तथा राजस्थान के रेगिस्तानी भाग तथा गंगा और यमुना द्वारा सिंचित प्रदेश सम्मिलित हैं । देश का यह भाग सर्वाधिक उपजाऊ है । यहाँ आर्य संस्कृति का विकास हुआ । इसे ही ‘आर्यावर्त’ कहा गया है ।

(iii) दक्षिण का पठार:

ADVERTISEMENTS:

इस प्रदेश के अर्न्तगत उत्तर में नर्मदा तथा दक्षिण में कृष्णा और तुड्गभद्रा के बीच का भूभाग आता है ।

(iv) सुदूर दक्षिण के मैदान:

इसमें दक्षिण के लम्बे एवं संकीर्ण समुद्री क्षेत्र सम्मिलित हैं । इस भाग में गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के उपजाऊ डेल्टा वाले प्रदेश आते हैं । दक्षिण का पठार तथा सुदूर दक्षिण का प्रदेश मिलकर आधुनिक दक्षिण भारत का निर्माण करते हैं । नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ, विन्धय तथा सतपुड़ा पहाड़ियों और महाकान्तार के वन मिलकर उत्तर भारत को दक्षिण भारत से पृथक् करते हैं ।

इस पृथकता के परिणामस्वरूप दक्षिण भारत आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा, जबकि उत्तर भारत में आर्य संस्कृति का विकास हुआ । दक्षिण भारत में एक सर्वथा भिन्न संस्कृति विकसित हुई जिसे ‘द्रविण’ कहा जाता है । इस संस्कृति के अवशेष आज भी दक्षिण में विद्यमान हैं ।

प्रकृति ने भारत को एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई प्रदान की है । उत्तर में हिमालय पर्वत एक ऊंची दीवार के समान इसकी रक्षा करता रहा है तथा हिन्द महासागर इस देश को पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण से घेरे हुए हैं । इन प्राकृतिक सीमाओं द्वारा बाह्य आक्रमणों से अधिकांशत: सुरक्षित रहने के कारण भारत देश अपनी एक सर्वथा स्वतन्त्र तथा पृथक् सभ्यता का निर्माण कर सका है ।

भारतीय इतिहास पर यहाँ के भूगोल का गहरा प्रभाव-पड़ा है । यहां के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग कहानी है । एक ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वत हैं तो दूसरी ओर नीचे के मैदान हैं, एक ओर अत्यन्त उपजाऊ प्रदेश है तो दूसरी ओर विशाल रेगिस्तान है । यहाँ उभरे पठार, घने वन तथा एकान्त घाटियाँ हैं । एक ही साथ कुछ स्थान अत्यन्त उष्ण तथा कुछ अत्यन्त शीतल है ।

विभिन्न भौगोलिक उप-विभागों के कारण यहाँ प्राकृतिक एवं सामाजिक स्तर की विभिन्नतायें दृष्टिगोचर होती हैं । ऐसी विषमता यूरोप में कहीं भी दिखायी नहीं देती हैं । भारत का प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र एक विशिष्ट इकाई के रूप में विकसित हुआ है तथा उसने सदियों तक अपनी विशिष्टता बनाये रखी है ।

इस विशिष्टता के लिये प्रजातीय तथा भाषागत तत्व भी उत्तरदायी रहे हैं । फलस्वरूप सम्पूर्ण देश में राजनैतिक एकता की स्थापना करना कभी भी सम्भव नहीं हो सका है, यद्यपि अनेक समय में इसके लिये महान शासकों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है । भारत का इतिहास एक प्रकार से केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों के बीच निरन्तर संघर्ष की कहानी है ।

देश की विशालता तथा विश्व के शेष भागों से इसकी पृथकता ने अनेक महत्वपूर्ण परिणाम उत्पन्न किये है । भारत के अपने आप में एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई होने के कारण भारतीय शासकों तथा सेनानायकों ने देश के बाहर साम्राज्य विस्तृत करने अथवा अपनी सैनिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने का कभी कोई प्रयास नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार भारत में ही किया ।

सुदूर दक्षिण के चोलों का उदाहरण इस विषय में एक अपवाद माना जा सकता है । अति प्राचीन समय से यहाँ भिन्न-भिन्न जाति, भाषा, धर्म, वेष-भूषा तथा आचार-विचार के लोग निवास करते हैं । किसी भी बाहरी पर्यवेक्षक को यहाँ की विभिन्नतायें खटक सकती हैं ।

परन्तु इन वाह्य विभिन्नताओं के मध्य एकता दिखाई देती है जिसकी कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता । फलस्वरूप ‘विभिन्नता में एकता’ (Unity in Diversity) भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता बन गयी है । देश की समान प्राकृतिक सीमाओं ने यहाँ के निवासियों के मस्तिष्क में समान मातृभूमि की भावना जागृत किया है । मौलिक एकता का विचार यहाँ सदैव बना रहा तथा इसने देश के राजनैतिक आदर्शों को प्रभावित किया ।

यद्यपि व्यवहार में राजनैतिक एकता बहुत कम स्थापित हुई तथापि राजनैतिक सिद्धान्त के रूप में इसे इतिहास के प्रत्येक युग में देखा जा सकता है । सांस्कृतिक एकता अधिक सुस्पष्ट रही है । भाषा, साहित्य, सामाजिक तथा धार्मिक आदर्श इस एकता के प्रमुख माध्यम रहे हैं । भारतीय इतिहास के अति-प्राचीन काल से ही हमें इस मौलिक एकता के दर्शन होते हैं ।

महाकाव्य तथा पुराणों में इस सम्पूर्ण देश को ‘भारतवर्ष’ अर्थात् भारत का देश तथा यहाँ के निवासियों को ‘भारती’ (भरत की सन्तान) कहा गया है । विष्णुपुराण में स्पष्टत: इस एकता की अभिव्यक्ति हुई है- “समुद्र के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में जो स्थित है वह भारत देश है तवा वहाँ की सन्तानें ‘भारती’ हैं ।”

प्राचीन कवियों, लेखकों तथा विचारकों के मस्तिष्क में एकता की यह भावना सदियों पूर्व से ही विद्यमान रही है । कौटिल्यीय अर्थशास्त्र में कहा गया है कि-“हिमालय में लेकर समुद्र तक हजार योजन विस्तार वाला भाग चक्रवर्ती राजा का शासन क्षेत्र होता है ।” यह सर्वभौम सम्राट की अवधारणा भारतीय सम्राटों को अत्यन्त प्राचीन काल से ही प्रेरणा देती रही है ।

भारतीयों की प्राचीन धार्मिक भावनाओं एवं विश्वासों से भी इस सारभूत एकता का परिचय मिलता है । यहाँ की सात-पवित्र नदियाँ- गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरी, सात पर्वत- महेन्द्र, मलय, सह्या, शक्तिमान, ऋक्ष्य, विन्ध्य तथा पारियात्र तथा सात नगरियों- अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्ति, पुरी तथा द्वारावती, देश के विभिन्न भागों में बसी हुई होने पर भी देश के सभी निवासियों के लिये समान रूप से श्रद्धेय रही हैं ।

वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों का सर्वत्र सम्मान है तथा शिव और विष्णु आदि देवता सर्वत्र पूजे जाते है।, यद्यपि यहीं अनेक भाषायें है तथापि वे सभी संस्कृत से ही उद्भूत अथवा प्रभावित है । धर्मशास्त्रों द्वारा प्रतिपादित सामाजिक व्यवस्था भी सर्वत्र एक ही समान है । वर्णाश्रम, पुरुषार्थ आदि सभी समाजों के आदर्श रहे है ।

प्राचीन समय में जबकि आवागमन के साधनों का अभाव था, पर्यटक, धर्मोपदेशक, तीर्थयात्री, विद्यार्थी आदि इस एकता को स्थापित करने में सहयोग प्रदान करते रहे है । राजसूय, अश्वमेध आदि यज्ञों के अनुष्ठान द्वारा चक्रवर्ती पद के आकांक्षी सम्राटों ने सदैव इस भावना को व्यक्त किया है कि भारत का विशाल भूखण्ड एक है । इस प्रकार विभिन्नता के बीच सारभूत एकता भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता बनी हुई है ।

Essay # 2. भारतीय इतिहास का नृजातीय तत्व (Ethnicity of Indian History):

आदि काल से ही भारत में विभिन्न जातियाँ निवास करती थीं जिनकी भाषाओं, रहन-सहन, सामाजिक-धार्मिक परम्पराओं में भारी विषमता थीं । भारत में नृजातीय तत्वों की पहचान प्रधानत: भौतिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक लक्षणों पर आधारित है । नृतत्व विज्ञान मानव की शारीरिक बनावट के आधार पर उसकी प्रजाति का निर्धारण करता है ।

इसके दो प्रधान मानक है:

i. सिर सम्बन्धी

ii. नासिका सम्बन्धी

हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि प्राचीन जनजाति में लम्बे तथा चौड़े दोनों ही सिरों वाले लोग विद्यमान थे जैसा कि प्राचीन कंकालों एवं कपालों से इंगित होता है । भारत में प्रागैतिहासिक मानवों के प्रस्तरित अवशेष अत्यल्प है किन्तु नृतत्व एवं भाषा विज्ञान की सहायता से यहाँ रहने अथवा आव्रजित होने चाली प्रजातियों तथा भारतीय संस्कृति के विकास में उनके योगदान का अनुमान लगाया गया है । बी॰ एस॰ ने प्रागैतिहासिक अस्थिपंजरों का अध्ययन करने के उपरान्त यहाँ की आदिम जातियों को छ भागों में विभाजित किया है ।

a. नेग्रिटो

b. प्रोटोआस्ट्रलायड

c. मंगोलियन

d. मेडीटरेनियन (भूमध्य सागरीय)

e. पश्चिमी ब्रेक्राइसेफलम

f. नार्डिक ।

भाषाविदों ने उपयुक्त प्रजातियों को चार भाषा समूहों के अन्तर्गत समाहित किया है:

2. द्रविडियन

3. इण्डो-यूरोपीयन

4. तिब्बतो-चायनीज

इनका विवरण इस प्रकार है:

a. नेग्रिटो:

यह भारत की सबसे प्राचीन प्रजाति थी । अब यह स्वतन्त्र रूप से तो कहीं नहीं मिलती लेकिन इसके तत्व अण्डमान निकोवार, कोचीन तथा त्रावनकोर की कदार एवं पलियन जनजातियों, असम के अंगामी नागाओं, पूर्वी बिहार की राजमहल पहाड़ियों में बसने वाली बांगड़ी समूह तथा ईरुला में देखे जा सकते हैं ।

ये नाटे कद, चौड़े सिर, मोटे होंठ, चौड़ी नाक तथा काले रंग के होते हैं । इनकी प्रमुख देन धनुष-बाण की खोज एवं आदिवासियों में मिलने वाले कुछ धार्मिक आचारों तथा दो-चार शब्दों तक सीमित है । हदन का विचार है कि बट-पीपल पूजा, मृतक की आत्मा और गर्भाधान सम्बन्धी मान्यता, स्वर्ग पथ पर दानवों की पहरेदारी सम्बन्धी विश्वास आदि नेग्रिटो प्रभाव से ही प्रचलित हुए ।

b. प्रोटोआस्ट्रलायड:

ये भारतीय जनसंख्या के आधारभूत अंग थे तथा उनकी बोली आस्तिक भाषा समूह की थी । इसका कुछ उदाहरण आदिम कबीलों की मुण्डा बोली में आज तक पाया जाता है । तिन्वेल्ली से प्राप्त प्रागैतिहासिक कपालों में इस प्रजाति के तत्व मिलते है ।

संस्कृत साहित्य में उल्लिखित ‘निषाद’ जाति इसी वर्ग की है । ये छोटे कद, लम्बे सिर, चौड़ी नाक, मोटे होंठ, काली-भूरी आंखें, घुंघराले बाल एवं चाकलेटी त्वचा वाले होते हैं । अधिकांश दक्षिणी भारत तथा मध्य प्रदेश की कुछ जनजातियों में इस प्रजाति के लक्षण पाये जाते हैं ।

इन्हें मृदभाण्ड बनाने तथा कृषि का ज्ञान था । चावल, कदली, नारियल, कपास आदि का ज्ञान था । मृत्यु के बाद आत्मा के अस्तित्व में विश्वास, धार्मिक कार्यों में ताम्बूल, सिन्दूर और हल्दी का प्रयोग, लिंगोपासना, निछावर प्रथा का प्रारम्भ, चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार तिथिगणना, नाग, मकर, हाथी, कच्छप आदि की पूजा का प्रारम्भ भारतीय संस्कृति को इस प्रजाति की प्रमुख देन स्वीकार की जाती है ।

c. मंगोलायड:

ये छोटी नाक, मोटे होंठ, लम्बे-चौड़े सिर, पीले अथवा भूरे चेहरे वाले होते थे । इस जनजाति में पूर्व की ओर से भारत में प्रवेश किया । इस प्रजाति के तत्व मीरी, नागा, बोडो, गोंड, भोटिया तथा बंगाल-असम की जातियों में मिलते है । इनकी भाषा चीनी-तिब्बती समूह की भाषा से मिलती है ।

संभवत: मंगोल जाति के प्रभाव से ही भारतीय संस्कृति में तंत्र, वामाचार, शक्ति-पूजा एवं कुछ अश्लील धार्मिक कृत्यों का आविर्भाव हुआ । मोहेनजोदड़ो की कुछ छोटी-छोटी मृण्मूर्तियों तथा कपालों में इस जाति के शारीरिक लक्षण दिखाई देते है ।

d. मेडीटरेनियन (भूमध्य-सागरीय):

इस प्रजाति की तीन शाखायें भारत में आई तथा अन्तर्विवाह के फलस्वरूप परस्पर घुल-मिल गयीं । मिश्रित रूप से उनके वंशज बड़ी संख्या में भारत में विद्यमान हैं । इनकी एक शाखा कन्नड, तमिल, मलयालम भाषा-भाषी प्रदेश में, दूसरी पंजाब तथा गंगा की ऊपरी घाटी में तथा तीसरी सिन्ध, राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाये जाते हैं ।

सामान्यत: भूमध्यसागरीय प्रजाति का सम्बन्ध द्रविड़ जाति से बताया जाता है । इसके अस्थि-पञ्जर सैन्धव सभ्यता में भी मिलते हैं । ये लम्बे सिर, मध्यम कद, चौड़े मुँह, पतले होंठ, घुँघराले बाल, भूरी त्वचा वाले होते है । इनकी प्रमुख देन है-नौ परिवहन, कृषि एवं व्यापार-वाणिज्य, नागर सभ्यता का सूत्रपात आदि ।

कुछ विद्वान् द्रविडों को ही सैन्धव सभ्यता का निर्माता मानते है किन्तु यह संदिग्ध है । भाषाविदों का विचार है कि भारत में भारोपीय भाषा में जो परिवर्तन दिखाई देता है वह भूमध्यसागरीय अथवा द्रविड़ सम्पर्क का ही परिणाम था ।

e. पश्चिमी ब्रेकाइसेफलस:

इनकी भी तीन शाखायें है- अल्पाइन, डिनारिक तथा आर्मीनायड । यूरोप में अल्पस पर्वत के समीपवर्ती क्षेत्र में रहने के कारण इस प्रजाति को अल्पाइन कहा जाता है । गुजरात, बिहार, उत्तर तथा मध्य भारत में यह प्रजाति पाई जाती है ।

ये चौड़े कन्धे, गहरी छाती, लम्बी व चौड़ी टाँग, चौड़ा सिर, छोटी नाक, पीली त्वचा वाले होते है । इनकी डिनारिक शाखा बंगाल, उड़ीसा, काठियावाड़, कन्नड़ तथा तमिल भाषी क्षेत्र में रहती है । तीसरी शाखा आर्मीनायड है जिसके तत्व मुम्बई के पारसियों में दिखाई देते है । भारतीय संस्कृति को इनका योगदान स्पष्ट नहीं है ।

f. नार्डिक:

इस प्रजाति को आर्यों का प्रतिनिधि तथा हिम सभ्यता का जनक माना जाता है । ये लम्बे सिर, श्वेत व गुलाबी त्वचा, नीली आँखें, सीधे एवं घुंघराले वाली वाले लक्षणों से युक्त थे । सर्वप्रथम यह प्रजाति पंजाब में वसी होगी तथा वहाँ से धीरे- धीरे देश के अन्य भागों में फैल गयी । किन्तु ‘आर्य’ वस्तुत एक भाषिक पद है जिससे भारोपीय मूल की एक भाषा-समूह का पता चलता है । यह नृवंशीय पद नहीं है । अत: आर्य आव्रजन की धारणा भ्रामक है ।

Essay # 3. भारतीय इतिहास के प्रजाति की परिकल्पना (Species Hypothesis of Indian History):

कुछ विद्वानों की मान्यता है कि भारत में सभ्यता का जन्म नहीं हुआ, यहाँ तो बाहर से ही लोग आये और बस गये । संस्कृत भारत की भाषा नहीं थी, यह तो मध्य एशिया से भारत में आई थी । मैक्समूलर तथा सर विलियम जोन्स के अनुसार ‘आर्य’ प्रजाति भारत की नहीं थी । उन्हीं के अनुकरण पर कुछ तथाकथित भारतीय प्रगतिवादी इतिहासकारों ने आयी को घुमक्कड़, तथा आक्रमणकारी सिद्ध कर दिया । द्रविड़ों को भी भूमध्यसागरीय माना गया ।

इलियट स्मिथ का तो कहना कि विश्व की समस्त सभ्यतायें मिस में जन्मा तथा वहीं से अन्य देशों में फैली थीं । किन्तु पश्चिमी विद्वानों द्वारा प्रतिपादित ‘प्रजाति का सिद्धान्त’ अत्यन्त भयावह एवं कुटिलतापूर्ण है । यूरोपीय ईसाई मिशनरियों तथा विद्वानों ने भारत को सदा औपनिवेशिक दृष्टि से देखा ।

यह सिद्ध करने के लिये अनेक तर्क गढ़े गये कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अपना कोई वैशिष्ट्य नहीं है तथा ईसा के 2000 वर्ष पहले यूरोप तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र में रहने वाली प्रजातियों ही भारत में विभिन्न मार्गों से आई तथा अपनी सभ्यता स्थापित किया ।

पाश्चात्य विद्वानों ने ‘आर्य’ तथा द्रविड शब्दों को प्रजाति तथा स्थानवाची माना जिसका प्रतिकार भारतीय विद्वानों ने नहीं किया । भारत तथा उसकी संस्कृति को जाति, प्रजाति, नृवंश, स्थान, भाषा, भूगोल आदि के आधार पर विभाजित करने का जो षड्‌यन्त्र अंग्रेजों ने अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिये रचा था उसे ही प्रगतिवादी विद्वानों ने प्रायः मान्यता प्रदान कर दी तथा ‘संस्कृति’ शब्द की मूल अवधारणा को ही आयातित स्वीकार कर लिया गया ।

‘आर्य’ तथा ‘द्रविड़’ जैसे शब्द प्रजातिगत न होकर गुणवाचक है और इसी अर्थ में इनका प्रयोग वैदिक साहित्य में हुआ है । ‘आर्य’ का अर्थ है- बौद्धिक प्रतिभा से सम्पन्न श्रेष्ठ पुरुष, स्वामी, विद्वान्, समाज का अग्रणी वर्ग आदि । इसी प्रकार द्रविड़ का अर्थ है- समृद्ध वर्ग, धन-धान्य से सम्पन्न व्यक्ति, ऐश्वर्यवान् पुरुष आदि । अत: इन शब्दों के आधार पर प्राचीन भारत में जाति, प्रजाति, नृवंश आदि की परिकल्पना करना उचित नहीं होगा ।

Essay # 4. भारतीय इतिहास जानने के साधन (Tools to know About Indian History):

भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है । परन्तु दुर्भाग्यवश हमें अपने प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण के लिये उपयोगी सामग्री बहुत कम मिलती है । प्राचीन भारतीय साहित्य में ऐसे ग्रन्थों का प्रायः अभाव-सा है जिन्हें आ आधुनिक परिभाषा में “इतिहास” की संज्ञा दी जाती है ।

यह भी सत्य है कि हमारे यहाँ हेरोडोटस, थ्यूसीडाइडीज अथवा लिवी जैसे इतिहास-लेखक नहीं उत्पन्न हुए जैसा कि यूनान, रोम आदि देशों में हुए । कतिपय पाश्चात्य विद्वानों ने यह आरोपित किया कि प्राचीन भारतीयों में इतिहास-बुद्धि का अभाव था ।

लोएस डिकिंसन (Lowes Dickinson) के अनुसार हिन्दू इतिहासकार नहीं थे । भारत में मनुष्य प्रकृति के समक्ष अपने को तुच्छ और असमर्थ पाता है । फलस्वरूप उसमें नगण्यता तथा जीवन की निस्सारता जन्म लेती है, उसे जीवन की अनुभूति एक भयानक दु:स्वप्न के रूप में होती है और दु:स्वप्न का कोई इतिहास नहीं होता है ।

विन्दरनित्स की मान्यता है कि भारतीयों ने मिथक, आख्यान तथा इतिहास में कभी भी स्पष्ट विभेद नहीं किया और भारत में इतिहास रचना काव्य रचना से ऊपर नहीं उठ सकी । मैकडानल्ड के अनुसार भारतीय साहित्य का दुर्बल पक्ष इतिहास है जिसका यहाँ अस्तित्व ही नहीं था ।

इसी विचारधारा का समर्थन एलफिन्स्टन, फ्लीट, मैक्समूलर, वी. ए स्मिथ जैसे विद्वानों ने भी किया है । 11वीं शती के मुस्लिम लेखक अल्वरूनी इससे मिलता-जुलता विचार व्यक्त करते हुए लिखता है- हिन्दू लोग घटनाओं के ऐतिहासिक कम की ओर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते । घटनाओं के तिथिक्रमानुसार वर्णन करने में वे बड़ी लापरवाही बरतते है ।

किन्तु भारतीयों के इतिहास विषयक गान पर पाश्चात्य विद्वानों द्वारा लगाया गया उपरोक्त आरोप सत्य से परे है । वास्तविकता यह है कि प्राचीन भारतीयों ने इतिहास को उस दृष्टि से नहीं देखा जिससे कि आज के विद्वान् देखते है । उनका दृष्टिकोण पूर्णतया धर्मपरक था ।

उनकी दृष्टि में इतिहास साम्राज्यों अथवा सम्राटों के उत्थान अथवा पतन की गाथा न होकर उन समस्त मूल्यों का संकलन-मात्र था जिनके ऊपर मानव-जीवन आधारित है । अतः उनकी बुद्धि धार्मिक और दार्शनिक ग्रन्थों की रचना में ही अधिक लगी, न कि राजनैतिक घटनाओं के अंकन में ।

तथापि इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राचीन भारतीयों में ऐतिहासिक चेतना का भी अभाव था । प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन से यह वात स्पष्ट हो जाती है कि यहाँ के निवासियों में अति प्राचीन काल से ही इतिहास-बुद्धि विद्यमान रही । वैदिक साहित्य, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में अत्यन्त सावधानीपूर्वक सुरक्षित आचार्यों की सूची (वंश) से यह बात स्पष्ट हो जाती है ।

वंश के अतिरिक्त गाथा तथा नाराशंसी साहित्य, जो राजाओं तथा ऋषियों के स्तुतिपरक गीत है, से भी सूचित होता है कि वैदिक युग में इतिहास लेखन की परम्परा विद्यमान थी । इसके अतिरिक्त ‘इतिहास तथा पुराण’ नाम से भी अनेक रचनायें प्रचलित थी । इन्हें ‘पंचम वेद’ कहा गया है ।

सातवीं शती के चीनी यात्री हुएनसांग ने लिखा है कि भारत के प्रत्येक प्रान्त में घटनाओं का विवरण लिखने के लिये कर्मचारी नियुक्त किये गये थे । कल्हण के विवरण से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय विलुप्त तथा विस्मृत इतिहास को पुनरुज्जीवित करने की कुछ आधुनिक विधियों से भी परिचित थे ।

वह लिखता हैं- “वही गुणवान् कवि प्रशंसा का अधिकारी है जो राग-द्वेष से मुक्त होकर एकमात्र तथ्यों के निरूपण में ही अपनी भाषा का प्रयोग करता है ।” वह हमें बताता है कि इतिहासकार का धर्म मात्र ज्ञात घटनाओं में नई घटनाओं को जोड़ना नहीं होता । अपितु सच्चा इतिहासकार प्राचीन अभिलेखों तथा सिक्कों का अध्ययन करके विलुप्त शासकों तथा उनकी विजयों की पुन: खोज करता है ।

कल्हण का यह कथन भारतीयों में इतिहास-बुद्धि का सबल प्रमाण प्रस्तुत करता है । इस प्रकार यदि हम सावधानीपूर्वक अपने विशाल साहित्य की छानबीन करें तो उसमें हमें अपने इतिहास के पुनर्निर्माणार्थ अनेक महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होगी ।

साहित्यिक ग्रन्थों के साथ-साथ भारत में समय-सभय पर विदेशों से आने वाले यात्रियों के भ्रमण-वृत्तान्त भी इतिहास-विषयक अनेक उपयोगी सामग्रियों प्रदान करते है । इधर पुरातत्ववेत्ताओं ने अतीत के खण्डहरों से अनेक ऐसी वस्तुएँ खोज निकाली हैं जो हमें प्राचीन इतिहास-सम्बन्धी बहुमूल्य प्रदान करती हैं ।

अत: हम सुविधा के लिये भारतीय इतिहास जानने के साधनों को तीन शीर्षकों में रख सकते हैं:

(1) साहित्यिक साक्ष्य ।

(2) विदेशी यात्रियों के विवरण ।

(3) पुरातत्व-सम्बन्धी साक्ष्य ।

यहाँ हम प्रत्येक का अलग-अलग विवेचन करेंगे:

(1) साहित्यिक साक्ष्य:

इस साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्रियों का अध्ययन किया जाता है ।

हमारा साहित्य दो प्रकार का हैं:

(a) धार्मिक साहित्य,

(b) लौकिक साहित्य ।

धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेतर ग्रन्थों की चर्चा की जा सकती है । ब्राह्मण ग्रन्थों में वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रन्थ आते है, जबकि बाह्मणेतर गुणों में बौद्ध तथा जैन साहित्यों से सम्बन्धित रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता है । इसी प्रकार लौकिक साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथों, जीवनियां, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है ।

इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है:

I. ब्राह्मण साहित्य :

वेद भारत के सर्वप्राचीन धर्म ग्रन्थ है जिनका संकलनकर्त्ता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है । भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरुषेय मानती है। वैदिक युग की सांस्कृतिक दशा के ज्ञान का एकमात्र सोत होने के कारण वेदों का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है । प्राचीन काल के अध्ययन के लिये रोचक समस्त सामग्री हमें प्रचुर रूप में वेदों से उपलब्ध हो जाती है ।

वेदों की संख्या चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद । इनमें ऋग्वेद न केवल भारतीय आयी की अपितु समस्त आर्य जाति की प्राचीनतम् रचना । इस प्रकार यह भारत तथा भारतेतर प्रदेशों के आर्यों के इतिहास, भाषा, धर्म एवं उनकी सामान्य संस्कृति पर प्रकाश डालता है । विद्वानों के अनुसार आयी ने इसकी रचना पंजाब में किया था जब वे अफगानिस्तान से लेकर गंगा-यमुना के प्रदेश तक ही फैले थे । इनमें दस मण्डल तथा 1028 सूक्त है ।

ऋग्वेद का अधिकांश भाग देव-स्तोत्रों में भरा हुआ है और इस प्रकार उसमें ठोस ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है । परन्तु इसके कुछ मन्त्र ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख करते है । जैसे, एक स्थान पर “दस राजाओं के युद्ध” (दाशराज्ञ) का वर्णन आया है जो भरत कबीले के राजा सुदास के साथ हुआ था । यह ऋग्वैदिक काल की एकमात्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है ।

यह युद्ध आयी के दो प्रमुख जनों- पुरु तथा भरत के बीच हुआ था । भरत जन का नेता सुदास था जिसके पुरोहित वशिष्ठ थे । इनके विरुद्ध दस राजाओं का एक सध था जिसके पुरोहित विश्वामित्र थे । सुदास ने रावी नदी के तट पर दस राजाओं के इस संघ को परास्त किया और इस प्रकार वह ऋग्वैदिक भारत का चक्रवर्ती शासक बन बैठा ।

सामवेद तथा यजुर्वेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता । ‘साम’ का शाब्दिक अर्थ है गान । इसमें मुख्यत: यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मन्त्रों का संग्रह है । इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जा सकता है । यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है ।

जबकि अन्य वेद पद्य में हैं, यह गद्य तथा पद्य दोनों में लिखा गया है । ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व रस बात में है कि रस में सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है । इनमें कुल 731 मन्त्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं । इसके कुछ मन्त्र ऋग्वैदिक मन्त्रों से भी प्राचीनतर है ।

पृथिवीसूक्त इसका प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है । इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों-गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गों का गाहन, रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय-गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत सी वनस्पतियों तथा औषधियों आदि का विवरण दिया गया है ।

कुछ मन्त्रों में जादू-टोने का भी वर्णन है जो इस बात का सूचक है कि इस समय तक आर्य- अनार्य संस्कृतियों का समन्दय हो रहा था तथा आयी ने अनायों के कई सामाजिक एवं धार्मिक रीति रिवाजों एवं विश्वासों को ग्रहण कर लिया था । अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है । इन चार वेदों को “संहिता” कहा जाता है ।

ii. ब्राह्मण , आरण्यक तथा उपनिषद:

संहिता के पश्चात् ब्राह्मणों, आरण्यकों तथा उपनिषदों का स्थान है । इनसे उत्तर वैदिक कालीन समाज तथा संस्कृति के विषय में अच्छा ज्ञान प्राप्त होता है । ब्राह्मण ग्रन्थ वैदिक संहिताओं की व्याख्या करने के लिए गद्य में लिखे गये हैं । प्रत्येक संहिता के लिये अलग-अलग ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जैसे- ऋग्वेद के लिये ऐतरेय तथा कौषीतकी, यजुर्वेद के लिये तैत्तिरीय तथा शतपथ, सामवेद के लिये पंचविश, अथर्ववेद के लिये गोपथ आदि ।

इन ग्रन्थों से हमें परीक्षित के बाद और बिम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है । ऐतरेय, शतपथ, तैत्तिरीय, पंचविश आदि प्राचीन ब्राह्मण ग्रन्थों में अनेक ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं । ऐतरेय में राज्याभिषेक के नियम तथा कुछ प्राचीन अभिषिक्त राजाओं के नाम दिये गये है ।

शतपथ में गन्धार, शल्य, कैकय, कुरु, पंचाल, कोसल, विदेह आदि के राजाओं का उल्लेख मिलता है । प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है । कर्मकाण्डों के अतिरिक्त इसमें सामाजिक विषयों का भी वर्णन है । इसी प्रकार आरण्यक तथा उपनिषदों में भी कुछ ऐतिहासिक-तेल प्राप्त होते हैं, यद्यपि ये मुख्यत: दार्शनिक ग्रन्थ है जिनका ध्येय ज्ञान की खोज करना है । इनमें हम भारतीय चिंतन की चरम परिणति पाते हैं ।

iii. वेदांग तथा सूत्र:

वेदों को भली-भाँति समझने के लिये छ: वेदांगों की रचना की गयी- शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा छन्द । ये वेदों के शुद्ध उच्चारण तथा यज्ञादि करने में सहायक थे । इसी प्रकार वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये सूत्र साहित्य का प्रणयन किया गया ।

श्रौत, गृह्या तथा धर्मसूत्रों के अध्ययन से हम यज्ञीय विधि-विधानों, कर्मकाण्डों तथा राजनीति, विधि एवं व्यवहार से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण बातें ज्ञात करते है । ऋग्वेद से लेकर सूत्रों तक के सम्पूर्ण वैदिक वाङ्‌मय का काल ईसा पूर्व 2000 से लेकर 500 के लगभग तक: सामान्य तौर से स्वीकार किया जा सकता है ।

iv. महाकाव्य:

वैदिक साहित्य के बाद भारतीय साहित्य में रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्यों का समय आता है । मूलत: इन ग्रन्थों की रचना ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में हुई थी तथा इनका वर्तमान स्वरूप क्रमश: दूसरी एवं चौथी शताब्दी ईस्वी के लगभग निर्मित हुआ था । भारत के सम्पूर्ण धार्मिक साहित्य में इन दोनों ही महाकाव्यों का अत्यन्त आदराणीय स्थान है । इनके अध्ययन से हमें प्राचीन हिंदू संस्कृति के विविध पक्षों का सुन्दर ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।

इन महाकाव्यों द्वारा प्रतिपादित आदर्श तथा मूल्य सार्वभौम मान्यता रखते है । रामायण हमारा आदि-काव्य है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । इससे हमें हिन्दुओं तथा यवनों और शकों के संघर्ष का विवरण प्राप्त होता है । इसमें यवन-देश तथा शकों का नगर, कुरु तथा मद्र देश और हिमालय के बीच स्थित बताया गया है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन दिनों यूनानी तथा सीथियन लोग पंजाब के कुछ भागों में बसे हुये थे ।

महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी । इसमें भी शक, यवन, पारसीक, हूण आदि जातियों का उल्लेख मिलता है । इससे प्राचीन भारतवर्ष की सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा का परिचय मिलता है । राजनीति तथा शासन के विषय में तो यह ग्रन्थ बहुमूल्य सामग्रियों का भण्डार ही है । महाभारत में यह कहा गया है कि ‘धर्म’, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो कुछ भी इसमें है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है ।

परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इन अन्यों का विशेष महत्व नहीं है क्योंकि इनमें वर्णित कथाओं में कल्पना का मिश्रण अधिक है । महाकाव्यों में जिस समाज और संस्कृति का चित्रण है उसका उपयोग उत्तरवैदिक काल के अध्ययन के लिये किया जा सकता है ।

भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है । पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं । इनकी संख्या 18 है । अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी चौथी शताब्दी ईस्वी में की गयी थी । सर्वप्रथम पार्जिटर (Pargiter) नामक विद्वान् ने उनके ऐतिहासिक महत्व की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया गया था ।

अमरकोश में पुराणों के पाँच विषय बताये गये हैं:

(1) सर्ग अर्थात् जगत की सृष्टि,

(2) प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय के बाद जगत् की पुन सृष्टि,

(3) वंश अर्थात् ऋषियों तथा देवताओं की वंशावली,

(4) मन्वन्तर अर्थात् महायुग और

(5) वंशानुचरित अर्थात् प्राचीन राजकुलों का इतिहास ।

इनमें ऐतिहासिक दृष्टि से “वंशानुचरित” का विशेष महत्व है। अठारह पुराणों से केवल पाँच में (मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्रह्माण्ड, भागवत) ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है । इनमें मत्स्यपुराण सबसे अधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक है । पुराणों की भविष्य शैली में कलियुग के राजाओं की तालिकायें दी गयी है ।

इनके साथ शैशुनाग, नन्द, मौर्य, शुड्ग, कण्व, आन्ध्र तथा गुप्त वंशों की वंशावलियां भी मिलती है । मौर्यवंश के लिये विष्णु पुराण तथा आन्ध्र (सातवाहन) वंश के लिये मत्स्य पुराण महत्व के है । इसी प्रकार वायु पुराण में गुप्तवंश की साम्राज्य सीमा का वर्णन तथा गुप्तों की शासन-पद्धति का भी कुछ विवरण प्राप्त होता है ।

सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्निपुराण का काफी महत्व है जिसमें राजतन्त्र के साथ-साथ कृषि सम्बन्धी विवरण भी दिया गया है । इस प्रकार पुराण प्राचीनकाल से लेकर गुप्तकाल के इतिहास से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का परिचय कराते हैं । छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के पहले के प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिये तो पुराण ही एकमात्र स्रोत है ।

vi. धर्मशास्त्र:

धर्मसूत्र, स्मृति, भाष्य, निबन्ध आदि को सम्मिलित रूप से धर्मशास्त्र कहा जाता है । धर्मसूत्रों का काल सामान्यत: ई॰ पू॰ 500-200 के लगभग निर्धारित किया जाता है । आपस्तम्भ, बौद्धायन तथा गौतम के धर्मसूत्र सबसे प्राचीन है । धर्मसूत्रों में ही सर्वप्रथम हम वर्णव्यवस्था का स्पष्ट वर्णन प्राप्त करते है तथा चार वर्णों के अलग-अलग कर्त्तव्यों का भी निर्देश मिलता है ।

कालान्तर में धर्मसूत्रों का स्थान स्मृतियों ने ग्रहण किया । जहाँ धर्मसूत्र गद्य में है, वहीं स्मृति ग्रंथ पद्य में लिखे गये है । स्मृतियों में मनुस्मृति सबसे प्राचीन तथा प्रामाणिक मानी जाती है । बूलर के अनुसार इसकी रचना ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर ईसा की दूसरी शताब्दी के मध्य हुई थी ।

अन्य स्मृतियों में याज्ञवल्क्य, नारद, वृहस्पति, कात्यायन, देवल आदि की स्मृतियाँ उल्लेखनीय हैं । मनुस्मृति को शुंग काल का मानक ग्रन्थ माना जाता है । इसके अध्ययन से शुंगकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का बोध होता है । नारद स्मृति गुप्त-युग के विषय में महत्वपूर्ण सूचनायें प्रदान करती है । कालान्तर में इन पर अनेक विद्वानों द्वारा टीकायें लिखी गयीं ।

मनुस्मृति के प्रमुख टीकाकार भारुचि, मेघातिधि, गोविन्दराज तथा कुल्लूक भट्ट है । विश्वरूप, विज्ञानेश्वर तथा अपरार्क, याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रमुख टीकाकार है । इन टीकाओं से भी हम हिंदू-समाज के विविध पक्षों के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त करते हैं ।

II. ब्राह्मणेतर साहित्य:

i. बौद्ध ग्रन्थों:

बौद्ध ग्रन्थों में ‘त्रिपिटक’ जबसे महत्वपूर्ण है । बुद्ध की मृत्यु के बाद उनकी शिक्षाओं को संकलित कर तीन भागों में बांटा गया । इन्हीं को त्रिपिटक कहते हैं । ये हैं- विनयपिटक (संघ सम्बन्धी नियम तथा आचार की शिक्षायें), सुत्तपिटक (धार्मिक सिद्धान्त अथवा धर्मोंप्रदेश) तथा अभिधम्मपिटक (दार्शनिक सिद्धान्त) । इसके अतिरिक्त निकाय तथा जातक आदि से भी हमें अनेकानेक ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है ।

पाली भाषा में लिखे गये बौद्ध-अन्यों को प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है । अभिधम्मपिटक में सर्वप्रथम संस्कृत भाषा का प्रयोग मिलता है । त्रिपिटकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये बौद्ध संघों के संगठन का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करते हैं । निकायों में बौद्ध धर्म के सिद्धान्त तथा कहानियों का संग्रह हैं । जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानी है । कुछ जातक ग्रन्थों से बुद्ध के समय की राजनीतिक अवस्था का परिचय भी मिलता है ।

इसके साथ ही साथ ये समाज और सभ्यता के विभिन्न पहलुओं के विषय में महत्वपूर्ण सामग्री प्रदान करते हैं । दीपवंश तथा महावंश नामक दो पाली गुणों से मौर्यकालीन इतिहास के विषय में सूचना मिलती है । पाली भाषा का एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ नागसेन द्वारा रचित “मिलिन्दपण्हो” (मिलिन्द-प्रश्न) है जिससे हिन्द-यवन शासक मेनाण्डर के विषय ये सूचनायें मिलती है ।

इनके अतिरिक्त संस्कृत भाषा में लिखे गये अन्य कई बौद्ध ग्रन्थ भी हैं जो बौद्ध धर्म के दोनों सम्प्रदायों से सम्बन्धित है । हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ ‘कथावस्तु’ है जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है । महायान सम्प्रदाय के ग्रन्थ ‘ललितविस्तर’, दिव्यावदान आदि है । ललितविस्तर में बुद्ध को देवता मानकर उनके जीवन तथा कार्यों का चमत्कारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है ।

दिव्यावदान से अशोक के उत्तराधिकारियों से लेकर पुष्यमित्र शुंग तक के शासकों के विषय में सूचना मिलती है । संस्कृत बौद्ध लेखकों में अश्वघोष का नाम अत्यन्त ऊँचा है । इनकी रचनाओं का उल्लेख यथास्थान किया गया है । जहाँ ब्राह्मण ग्रन्थ प्रकाश नहीं डालते वहाँ बौद्ध ग्रन्थों से हमें तथ्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।

ii. जैन-ग्रन्थ:

जैन साहित्य को ‘आगम’ (सिद्धान्त) कहा जाता है । जैन साहित्य का दृष्टिकोण भी बौद्ध साहित्य के समान ही धर्मपरक है । जैन ग्रन्थों में परिशिष्टपर्वन, भद्रबाहुचरित, आवश्यकसूत्र, आचारांगसूत्र, भगवतीसूत्र, कालिकापुराण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इनसे अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है ।

जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास ”कल्पसूत्र” (लगभग चौथी शती ई॰ पू॰) से ज्ञात होता है जिसकी रचना भद्रबाहु ने की थी । परिशिष्टपर्वन् तथा भद्रबाहुचरित से चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की प्रारम्भिक तथा उत्तरकालीन घटनाओं की सूचना मिलती है । भगवतीसूत्र में महावीर के जीवन, कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके सम्बन्धों का बड़ा ही रोचक विवरण मिलता है ।

आचारांगसूत्र जैन भिक्षुओं के आचार-नियमों का वर्णन करता है । जैन साहित्य में पुराणों का भी महत्वपूर्ण स्थान है जिन्हें ‘चरित’ भी कहा जाता है । ये प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश, तीनों भाषाओं में लिखे गये है । इनमें पद्‌मपुराण, हरिवंशपुराण, इत्यादि उल्लेखनीय है ।

जैन पुराणों का समय छठी शताब्दी से सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी तक निर्धारित किया गया । यद्यपि इनमें मुख्यत: कथायें दी गयी है तथापि इनके अध्ययन से विभिन्न काली की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।

III. लौकिक साहित्य :

लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध-ऐतिहासिक ग्रन्थों तथा जीवनियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है जिनसे भारतीय इतिहास जानने में काफी मदद मिलती है । ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख ”अर्थशास्त्र” का किया जा सकता है जिसकी रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कौटिल्य (चाणक्य) ने की थी । मौर्यकालीन इतिहास एवं राजनीति के ज्ञान के लिये यह ग्रन्थ एक प्रमुख स्रोत है । इससे चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन-व्यवस्था पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है ।

कौटिल्यीय अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों को सातवीं-आठवीं शताब्दी ईस्वी में कामन्दक ने अपने “नीतिसार” में संकलित किया । इस संग्रह में दसवीं शताब्दी ईस्वी के राजत्व सिद्धान्त तथा राजा के कर्तव्यों पर प्रकाश पड़ता है । ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वाधिक महत्व कश्मीरी कवि कहर, हारा विरचित “राजतरंगिणी” को है । यह संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमवद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है ।

इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ई॰ के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं का क्रमानुसार विवरण दिया गया है । कश्मीर की ही भांति गुजरात से भी अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थ प्राप्त होते है जिनमें सोमेश्वर कृत रसमाला तथा कीर्तिकौमुद्री, मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखर कृत प्रबन्धकोश आदि उल्लेखनीय है । इनसे हमें गुजरात के चौलुक्य वंश का इतिहास तथा उसके समय की संस्कृति का अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।

इसी प्रकार सिन्ध तथा नेपाल से भी कई इतिवृत्तियां (Chronicles) मिलती हैं जिनसे वहाँ का इतिहास ज्ञात होता है । सिन्ध की इतिवृत्तियों के आधार पर ही “चचनामा” नामक ग्रन्थ की रचना की गयी जिसमें अरबों की सिन्ध विजय का वृत्तान्त सुरक्षित है ।

मूलत: यह अरबी भाषा में लिखा गया तथा कालान्तर में इसका अनुवाद खुफी के द्वारा फारसी भाषा में किया गया । अरब आक्रमण के समय सिन्ध की दशा का अध्ययन करने के लिये यह सर्वप्रमुख ग्राम्य है । नेपाल की वशावलियों में वहाँ के शासकों का नामोल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु उनमें से अधिकांश अनैतिहासिक हैं ।

अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाओं में पाणिनि की अष्टाध्यायी, कात्यायन का वार्त्तिक, गार्गीसंहिता, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस तथा कालिदासकृत मालविकाग्निमित्र आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । पाणिनि तथा कात्यायन के व्याकरण-ग्रन्थों से मौर्यो के पहले के इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था पर प्रकाश पड़ता है । पाणिनि ने सूत्रों को समझाने के लिए जो उदाहरण दिये है उनका उपयोग सामाजिक-आर्थिक दशा के ज्ञान के लिये भी किया जा सकता है ।

इससे उत्तर भारत के भूगोल की भी जानकारी होती है । गार्गीसंहिता, यद्यपि एक ज्योतिष-अन्य है तथापि इससे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है । इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है जिससे हमें पता चलता है कि यवनों ने साकेत, पंचाल, मधुरा तथा कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) पर आक्रमण किया था । पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे । उनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है ।

मुद्राराक्षस से चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में सूचना मिलती है । कालिदास कृत ‘मालविकाग्निमित्र’ नाटक शुंगकालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण प्रस्तुत करता है । ऐतिहासिक जीवनियों में अश्वधोषकृत बुद्धचरित, बाणभट्ट का हर्षचरित, वाक्पति का गौड़वहो, विल्हण का विक्रमाड्कदेवचरित, पद्यगुप्त का नवसाहसाड्कचरित, सन्ध्याकर नन्दी कृत “रामचरित” हेमचन्द्र कृत ”कुमारपालचरित” (द्वयाश्रयकाव्य) जयानक कृत “पृथ्वीराजविजय” आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है ।

“बुद्धचरित” में गौतम बुद्ध के चरित्र का विस्तृत वर्णन हुआ है । “हर्षचरित” से सम्राट हर्षवर्धन के जीवन तथा तत्कालीन समाज एवं धर्म-विषयक अनेक महत्वपूर्ण सूचनायें मिलती है । गौडवहो में कन्नोजनरेश यशोवर्मन् के गौड़नरेश के ऊपर किये गये आक्रमण एवं उसके बध का वर्णन है । विक्रमाड्कदेवचरित में कल्याणी के चालुक्यवंशी नरेश विक्रमादित्य षष्ठ का चरित्र वर्णित है । नवसाहसाँकचरित में धारानरेश मुञ्ज तथा उसके भाई सिन्धुराज के जीवन की घटनाओं का विवरण है ।

रामचरित से बंगाल के पालवंश का शासन, धर्म एवं तत्कालीन समाज का ज्ञान होता है । आनन्दभट्ट कृत बल्लालचरित से सेन वंश के इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है । कुमारपालचरित में चौलुक्य शासकों-जयसिंह सिद्धराज तथा कुमारपाल का जीवन चरित तथा उनके समय की घटनाओं का वर्णन है ।

पृथ्वीराजविजय से चाहमान राजवंश के इतिहास का ज्ञान होता है । इसके अतिरिक्त और भी जीवनियां है जिनसे हमें प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री मिल जाती है । राजशेखरकृत प्रबन्धकोश, बालरामायण तथा काव्यमीमांसा- इनसे राजपूतयुगीन समाज तथा धर्म पर प्रकाश पड़ता है ।

उत्तर भारत के समान दक्षिण भारत से भी अनेक तमिल ग्रन्थ प्राप्त होते है जिनसे वहाँ शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों के काल का इतिहास एवं संस्कृति का ज्ञान होता है । तमिल देश का प्रारम्भिक इतिहास संगम-साहित्य से ज्ञात होता है ।

नन्दिक्कलम्बकम्, कलिंगत्तुपर्णि, चोलचरित आदि के अध्ययन से दक्षिण में शासन करने वाले पल्लव तथा चोल वंशों के इतिहास एवं उनकी संस्कृति का ज्ञान होता है । कलिंगत्तुपर्णि में चोल सम्राट कुलीतुंग प्रथम की कलिंग विजय का विवरण सुरक्षित है ।

तमिल के अतिरिक्त कन्नड़ भाषा में लिखा गया साहित्य भी हमें उपलब्ध होता है । इसमें महाकवि पम्प द्वारा रचित ‘विक्रमार्जुन विजय’ (भारत) तथा रन्न कृत ‘गदायुद्ध’ विशेष महत्व के हैं । इनसे चालुक्य तथा राष्ट्रकूट वंशों के इतिहास पर कुछ प्रकाश पड़ता है ।

(2) विदेशी यात्रियों के विवरण :

भारतीय साहित्य के अतिरिक्त समय-समय पर भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास जानने में पर्याप्त मदद मिलती है । इनमें से कुछ ने तो भारत में कुछ समय तक निवास किया और अपने स्वयं के अनुभव से लिखा है तथा कुछ यात्रियों ने जनश्रुतियों एवं भारतीय ग्रन्थों को अपने विवरण का आधार बनाया है । इन लेखकों में यूनानी, चीनी तथा अरबी-फारसी लेखक विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं ।

I. यूनानी-रोमन (क्लासिकल) लेखक:

यूनान के प्राचीनतम लेखकों में टेसियस तधा हेरोडोटस के नाम प्रसिद्ध है । टेसियस ईरान का राजवैद्य था तथा उसने ईरानी अधिकारियों द्वारा ही भारत के विषय में जानकारी प्राप्त की थी । परन्तु उसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय हो गया है । हेरोडोटस को ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है ।

उसने अपनी पुस्तक ‘हिस्टोरिका (Historica) में पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस के सम्बन्ध का वर्णन किया है । उसका विवरण अधिकांशत अनुभूतियों तथा अफवाहों पर आधारित है । सिकन्दर के साथ आने वाले लेखकों में नियार्कस, आनेसिक्रिटस तथा आरिस्टोबुलस के विवरण अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं । चूँकि रन लेखकों का उद्देश्य अपनी रचनाओं द्वारा अपने देशवासियों को भारतीयों के विषय में बताना था, अत: इनका वृत्तान्त यथार्थ है ।

सिकन्दर के पश्चात् के लेखकों में तीन राजदूतों-मेगस्थनीज डाइमेकस तथा डायीनिसियस के नाम उल्लेखनीय है जो यूनानी शासकों द्वारा पाटलिपुत्र के मौर्य दरवार में भेजे गये थे । इनमें भी मेगस्थनीज सर्वाधिक प्रसिद्ध है । वह सेल्युकस ‘निकेटर’ का राजदूत था तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । उसने ‘इण्डिका’ नामक पुस्तक में मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है ।

यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है तथापि इसके कुछ अंश उद्धरण के रूप में एरियन, स्ट्रेबी, जस्टिन आदि लेखकों की कृतियों में प्राप्त होते है । ‘इण्डिका’ वस्तुतः यूनानियों द्वारा भारत के सम्बन्ध दे शप्त शनराशि में सबसे अमूल्य रत्न है ।

डाइमेकस (सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत) बिन्दुसार के दरबार में तथा डायोनिसियल (मिस्र नरेश टालमी फिलेडेल्फस का राजदूत) अशोक के दरबार दे आया था । अन्य अन्यों में ‘पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन-सी’, टालमी का भूगोल, प्लिनी का ‘नेचुरल हिन्दी’ आदि का भी उल्लेख किया जा सकता है । पेरीप्लस का लेखक 80 ई. के लगभग हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था ।

उसने उसके बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं का विवरण दिया है । प्राचीन भारत के समुद्री व्यापार के ज्ञान के लिये उसका विवरण बड़ा उपयोगी है । दूसरी शताब्दी ईस्वी में टालमी ने भारत का भूगोल लिखा था । प्लिनी का ग्रन्थ प्रथम शताब्दी ईस्वी का है । इससे भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि का ज्ञान प्राप्त होता है ।

II. चीनी-लेखक:

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में चीनी यात्रियों के विवरण भी विशेष उपयोगी रहे हैं। ये चीनी यात्री बौद्ध मतानुयायी थे तथा भारत में बौद्ध तीर्थस्थानों की यात्रा तथा बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये आये थे। वे भारत का उल्लेख ‘यिन्-तु’ (Yin-tu) नाम से करते हैं ।

इनमें चार के नाम विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं- फाहियान, सुंगपुन, हुएनसांग तथा इत्सिग । फाहियान, गुप्तनरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ (375-415 ई.) के दरबार में आया था । उसने अपने विवरण में मध्यदेश के समाज एवं संस्कृति का वर्णन किया है । वह मध्यदेश की जनता को चुखी एवं समृद्ध बताता है ।

सुंगयुन 518 ई. में भारत में आया और उसने अपने तीन वर्ष की यात्रा में बौद्ध ग्रन्धों की प्रतियाँ एकत्रित कीं । चीनी यात्रियों में सवाधिक महत्व हुएनसाग अथवा युवानच्चाग का ही है जो महाराज हर्षवर्द्धन के शासन काल में (629 ई. का लगभग) यहाँ आया था । उसने 16 वर्षों तक यहाँ निवास कर विभिन्न स्थानों की यात्रा की तथा नालन्दा विश्वविद्यालय में 6 वर्षों तक रहकर शिक्षा प्राप्त की ।

उसका भमण वृत्तान्त ‘सि-यू-की’ नाम से प्रसिद्ध है जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है । इससे हर्षकालीन भारत के समाज, धर्म तथा राजनीति पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है । उसके मित्र ढीली ने ‘हुएनसांग की जीवनी’ लिखी है जो हर्षकालीन भारत की दशा के ज्ञान के लिये एक प्रमुख स्रोत है ।

भारतीय संस्कृति के इतिहास में हुएनसांग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है । इत्सिग सातवीं शताब्दी के अन्त में भारत आया था । उसने अपने विवरण में नालन्दा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत की दशा का वर्णन किया है । परन्तु वे हुएनसांग के समान उपयोगी नहीं हैं ।

अन्य चीनी लेखकों में मात्वान लिन् तथा चाऊ-जू-कूआ का उल्लेख किया जा सकता है । मा त्वान लिन् के विवरण से हर्ष के पूर्वी अभियान के विषय में कुछ सूचना मिलती है । चाऊ-जू-कृआ चोल इतिहास के विषय में कुछ तध्य प्रस्तुत करता है ।

III. अरबी लेखक:

अरब व्यापारियों तथा लेखकों के विवरण से हमें पूर्वमध्यकालीन भारत के समाज एवं संस्कृति के विषय में जानकारी होती है । ऐसे लेखकों में अल्बरूनी का नाम सर्वप्रसिद्ध है । उसका जन्म 973 ई॰ में ख्वारिज्म (खीवा) में हुआ धा । उसका पूरा नाम अबूरेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल्बरूनी था । प्रारम्भ में उसने साहित्य तथा विज्ञान का अध्ययन किया एवं इन विद्याओं में निपुणता हासिल की ।

उसकी विद्वता से प्रभावित होकर ख्वारिज्म के ममूनी शासक ने उसे अपना मन्त्री नियुक्त कर दिया । 1017 ई॰ में गजनी के सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया । अनेकों लोग बन्दी बनाये गये जिनमें अल्बरूनी भी एक था । महमूद उसकी योग्यता से अत्यन्त प्रभावित हुआ तथा उसने उसे राजज्योतिषी के पद पर नियुक्त कर दिया ।

भारतीय तथा यूनानी दोनों ही पद्धतियों से उसने ज्योतिष का अध्ययन किया तथा निपुणता प्राप्त की । गणित, विज्ञान एवं ज्योतिष के साथ ही साथ अल्बरूनी अरबी, फारसी एवं संस्कृत भाषाओं का भी अच्छा ज्ञाता था । वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था ।

किन्तु उसका दृष्टिकोण महमूद से पूर्णतया भिन्न था और वह भारतीयों का निन्दक न होकर उनकी बौद्धिक सफलताओं का महान् प्रशंसक था । भारतीय संस्कृति के अध्ययन में उसकी गहरी दिलचस्पी थी तथा गौता से वह विशेष रूप से प्रभावित हुआ । भारतीयों के दर्शन, ज्योतिष एवं विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान की वह प्रशंसा करता है ।

अल्बरूनी सत्य का हिमायती तथा अपने विचारों का पक्का था । उसने भारतीयों से जो कुछ सुना उसी के आधार पर उनकी सभ्यता का विवरण प्रस्तुत कर दिया । अपनी पुस्तक “तहकीक-ए-हिन्द” (भारत की खोज) में उसने यहां के निवासियों की दशा का वर्णन किया है । इससे राजपूतकालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है ।

ज्ञात होता है कि उसके समय में ब्राह्मण धर्म का बोल-बाला था तथा बौद्ध धर्म का अस्तित्व समाप्त हो गया था । अपने विवरण में वह बौद्ध धर्म का बहुत कम उल्लेख करता है । हिंदू समाज में प्रचलित वर्णव्यवस्था का उल्लेख भी वह करता है तथा बताता है कि ब्राह्मणों को समाज में सबसे अधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था । पेशावर स्थित कनिष्क विहार का भी वह विवरण देता है ।

अल्बरूनी का विवरण चीनी यात्रियों के विवरण की भाँति उपयोगी नहीं है क्योंकि उसे भारत में भ्रमण करने का बहुत कम अवसर प्राप्त हुआ । उसके समय में बनारस तथा कश्मीर शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे किन्तु वह इन स्थानों में भी नहीं जा सका ।

अल्बरूनी के अतिरिक्त अल-बिलादुरी, सुलेमान, अल मसऊदी, हसन निजाम, फरिश्ता, निजामुद्दीन आदि मुसलमान लेखक भी हैं जिनकी कृतियों से भारतीय इतिहास-विषयक महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है । इब्नखुर्दद्‌ब (नवीं शती) के ग्रन्थ ‘किलबुल-मसालिक वल ममालिक’ में भारतीय समाज तथा व्यापारिक मार्गों का विवरण दिया गया है । अबूजैद ने भारत में सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का वर्णन किया है । अल मसूदी के ग्रन्थ ‘मुरुजुज जहब’ में भारतीय समाज का चित्रण है ।

मीर मुहम्मद मसूम के तारीख-ए-सिन्द अथवा तारीक-ए-मसूमी से सिन्ध देश का इतिहास (अरब आक्रमण के समय का) ज्ञात होता है । यह अरब आक्रमण के कारणों तथा मुहम्मद बिन कासिम की सफलताओं पर भी प्रकाश डालता है । शेख अब्दुल हसन कृत ‘कमिल-उत-तवारीख’ से मुहम्मद गोरी के भारतीय विजय का वृतान्त ज्ञात होता है । मिनहासुद्दीन के तबकात-ए-नासिरी में भी मुहम्मद गोरी की हिन्दुस्तान विजय का प्रामाणिक विवरण सुरक्षित है ।

उपर्युक्त लेखकों के अतिरिक्त तिब्बती बौद्ध लेखक तारानाथ (12वीं शतीं) के ग्रन्थों -कंग्युर तथा तंग्युर-से भी भारतीय इतिहास की कुछ बातें ज्ञात होती है । किन्तु उसके विवरण ऐतिहासिक नहीं लगते । वेनिस का प्रसिद्ध यात्री मार्कोपोलो तेरहवीं शती के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था । उसका वृत्तान्त पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिये उपयोगी है ।

(3) पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य :

पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर प्राचीन काल के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जाता है । प्राचीन इतिहास के ज्ञान के लिये पुरातात्विक प्रमाणों से बहुत अधिक सहायता मिलती है । ये साधन अत्यन्त प्रामाणिक है तथा इनसे भारतीय इतिहास के अनेक अन्ध-युगों (Dark-Ages) पर प्रकाश पड़ता है । जहाँ साहित्यिक साक्ष्य मौन है वही हमारी सहायता पुरातात्विक साक्ष्य करते है ।

पुरातत्व के अन्तर्गत तीन प्रकार के साक्ष्य आते हैं:

(II) मुद्रा

(III) स्मारक

इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है:

(I) अभिलेख:

प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण में अभिलेखों से बड़ी मदद मिली है । अभिलेखों का ऐतिहासिक महत्व साहित्यिक साक्ष्यों से अधिक है । ये अभिलेख पाषाण- शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं एवं प्रतिमाओं आदि पर खुदे हुये मिले है । सबसे प्राचीन अभिलेखों में मध्य एशिया के बोघजकोई से प्राप्त अभिलेख है ।

यह हित्ती नरेश सप्पिलुल्युमा तथा मितन्नी नरेश मतिवजा (Mativaja) के बीच सन्धि का उल्लेख करता है जिसके साक्षी के रूप में वैदिक मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी) के नाम मिलते है । यह लगभग 1400 ई॰ पू॰ के है तथा इनसे ऋग्वेद की तिथि ज्ञात करने में सहायता मिलती है ।

पारसीक नरेशों के अभिलेख हमें पश्चिमोत्तर भारत में ईरानी साम्राज्य के विस्तार की सूचना देते हैं । परन्तु अपने यथार्थ रूप में अभिलेख हमें अशोक के शासन काल से ही मिलने लगे हैं । अशोक के अनेक शिलालेख एवं स्तम्भ-लेख देश के विभिन्न स्थानों से प्राप्त होते है । अभिलेखों से अशोक के साम्राज्य की सीमा, उसके धर्म तथा शासन नीति पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है ।

देवदत्त रामकृष्ण भण्डारकर जैसे एक चोटी के विद्वान् ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयास किया है । अशोक के बाद भी अभिलेखों की परम्परा कायम रही । अब हमें अनेक प्रशस्तियाँ मिलने लगती हैं जिनमें दरबारी कवियों अथवा लेखकों द्वारा अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा के शब्द मिलते है ।

यद्यपि ये प्रशस्तियाँ अतिरंजित हैं तथापि ऐसे इनसे सम्बन्धित शासकों के विषय में हमें अनेक महत्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं । ऐसे लेखों में खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, शकक्षत्रप रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख, सातवाहन नरेश पुलुमावी का नासिक गुहालेख, गुप्तसम्राट समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भ-लेख, मालवनरेश यशोधर्मन् का मन्दसोर अभिलेख, चालुक्यनरेश पुलकेशिन् द्वितीय का ऐहोल का अभिलेख, प्रतिहारनरेश भोज का ग्वालियर अभिलेख आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध है ।

इनमें से अधिकांश लेखों से तत्सबंधी राजाओं के सैनिक अभियानों की सूचना मिलती है । जैसे, समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ-लेख में उसकी विजयी का विशद विवरण है । ऐहोल का लेख हर्ष-पुलकेशिन् युद्ध का विवरण देता है । ग्वालियर लेख से गुर्जर-प्रतिहार शासकों के विषय में विस्तृत सूचनायें प्राप्त होती है ।

गैर-सरकारी लेखों में यवन राजदूत हेलियाडोरस का बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरुड़-स्तम्भ लेख विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिससे द्वितीय शताब्दी ई. पू. में मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण मिलता है । कुछ अभिलेख मूर्तियों, ताम्रपत्रों आदि के ऊपर अंकित मिलते है । इनसे भी इतिहास विषयक अनेक उपयोगी सामग्रियाँ प्राप्त हो जाती है ।

मध्यप्रदेश के एरण से प्राप्त वाराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण का लेख अंकित है जिससे उसके विषय में सूचनायें मिलती है । पूर्व मध्यकाल में शासन करने वाले राजपूतों के विभिन्न राजवंशों में से प्रत्येक के कई लेख मिलते है जिनसे सबंधित राजाओं की उपलब्धियों के साथ-साथ समाज एवं संस्कृति की भी जानकारी होती है ।

इनमें गुर्जर प्रतिहार वंश की जोधपुर तथा ग्वालियर प्रशस्ति, पालवंश का खालीमपुर, नालन्दा तथा भागलपुर के लेख, सेनवशी विजय सेन की देवपाड़ा प्रशस्ति, गहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र का कमौली लेख, परमार भोजदेव का वंसवर लेख तथा जयसिह की उदयपुर प्रशस्ति, चन्देल धंग का खजुराहो लेख, चेदि कर्ण का बनारस तथा यश कर्ण का जबलपुर ताम्रपत्र लेख, चाहमान विग्रहराज का दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं ।

राजपूत शासकों के अधीन सामन्तों के भी बहुसख्यक लेख मिलते है । पूर्व मध्य काल के बहुसंख्यक भूमि अनुदान-पत्र मिलतें है जिनसे प्रशासन के सामन्ती स्वरूप की सूचना मिलती है । दक्षिण भारत में शासन करने वाले पल्लव, चोल आदि प्रसिद्ध राजवंशों के भी अनेक लेख प्राप्त हुए है जिनसे उनके इतिहास की विस्तृत जानकारी मिलती है।

(II) मुद्रायें अथवा सिक्के:

अभीलेखों के अतिरिक्त प्राचीन राजाओं द्वारा डलवाये गये सिक्कों से भी प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है । यद्यपि भारत में सिक्कों की प्राचीनता आठवीं शती ईसा पूर्व तक जाती है तथापि ईसा पूर्व छठीं शताब्दी से ही हमें नियमित सिक्के मिलने लगते है । प्राचीनतम सिक्कों को ‘आहत सिक्के’ (Punch-Marked Coins) कहा जाता है ।

इन्हीं को साहित्य में ‘कार्षापण’, ‘पुराण’, ‘धरण’, शतमान’ आदि भी कहा गया है । ये अधिकांशतः चाँदी के टुकड़े है जिनपर विविध आकृतियाँ चिह्नित की गयी हैं। इन पर लेख नहीं मिलते । सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखवाने का कार्य यवन शासकों ने किया । उन्होंने उत्तर में सोने के सिक्के चलवाये । साधारणतया 206 ई॰ पू॰ से लेकर 300 ई॰ तक के भारतीय इतिहास का ज्ञान हमें मुख्य रूप से मुद्राओं की सहायता से ही होता है ।

कुछ मुद्राओं पर तिथियाँ भी खुदी हुई हैं जो कालक्रम के निर्धारण में बड़ी सहायक हुई हैं । मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक दशा तथा सम्बन्धित राजाओं की साम्राज्य सीमा का भी ज्ञान हो जाता है । किसी काल में सिक्कों की बहुलता को देखकर हम यह निष्कर्ष निकालते है कि उसमें व्यापार-वाणिज्य अत्यन्त विकसित दशा में था ।

सिक्कों की कमी को व्यापार-वाणिज्य की अवनति का सूचक माना जा सकता है । पूर्व मध्य काल के प्रथम चरण में सिक्कों का अभाव सा है । इसी आधार पर यह काल आर्थिक पतन का काल माना गया है । इसके विपरीत द्वितीय चरण में सिक्कों के मिल जाने से हम निष्कर्ष निकालते है कि इस समय व्यापार-वाणिज्य का पुनरुत्थान हुआ, जिससे देश आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हो गया ।

प्राचीन भारत के गणराज्यों का अस्तित्व मुद्राओं से ही प्रमाणित होता है । मालव, यौधेय आदि गणराज्यों तथा पांचाल के मित्रवंशी शासकों के विषय में हम मुख्यत: सिक्कों से ज्ञान प्राप्त करते हैं । कभी-कभी मुद्रा के अध्ययन से हमें सम्राटों के धर्म तथा उनके व्यक्तिगत गुणों का पता लग जाता है ।

उदाहरणार्थ हम कनिष्क तथा समुद्रगुप्त की मुद्राओं को ले सकते है । कनिष्क के सिक्कों से यह पता चलता है कि वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था । समुद्रगुप्त अपनी कुछ मुद्राओं पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है । इससे उसका संगीत-प्रेम प्रकट होता है’ भारत के इण्डों-बख्त्री (Indo-Bactrian) शासकों के विषय में हमें उनके सिक्कों से ही ज्ञात होता है । इण्डो-यूनानी तथा इण्डो-सीथियन शासकों के इतिहास के प्रमुख सोत सिक्के ही है ।

शकपह्लव युग की मुद्राओं से उनकी शासन-पद्धति का ज्ञान होता है । इनके लेखों से पता चलता है कि पह्लव राजा अपने गवर्नर के साथ शासन करते थे । समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त की अश्वमेध शैली की मुद्राओं से अश्व-मेध यज्ञ की सूचना मिलती है । सातवाहन नरेश शातकर्णि की एक मुद्रा पर जलपोत का चित्र उत्कीर्ण है जिससे ऐसा अनुमान लगाया गया है कि उसने समुद्र-विजय की थी । इसी प्रकार चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की व्याघ्रशैली की मुद्राओं से उसकी पश्चिम भारत (गुजरात-काठियावाड़) के शकों की विजय सूचित होती है ।

(III) स्मारक:

इसके अन्तर्गत प्राचीन इमारतें, मन्दिर, मूर्तियों आदि आती हैं । इनसे विभिन्न युगों की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का बोध होता है । इनके अध्ययन से भारतीय कला के विकास का भी ज्ञान प्राप्त होता है । मन्दिर, विहारों तथा स्तूपों से जनता की आध्यात्मिकता तथा धर्मानिष्ठा का पता चलता है ।

हड़प्पा और मोहेनजोदडों की खुदाइयों से पाँच सहस्र वर्ष पुरानी सैंधव सभ्यता का पता चला है । खुदाई के अन्य प्रमुख स्थल तक्षशिला, मथुरा, सारनाथ, पाटलिपुत्र, नालन्दा, राजगृह, सांची और भरहुत आदि हैं । प्रयाग विश्वविद्यालय के तत्वावधान में कौशाम्बी में व्यापक पैमाने पर खुदाई की गयी है । यहाँ से उदयन का राजप्रसाद एवं घोषिताराम नामक एक विहार मिला है ।

अतरंजीखेड़ा आदि की खुदाईयों से पता चलता है कि देश में लोहे का प्रयोग ईसा पूर्व 1000 के लगभग प्रारम्भ हो गया था । इसी प्रकार दक्षिण भारत के कई स्थानों से भी खुदाइयों की गई है । पाण्डिचेरी के समीप स्थित अरिकमेडु नामक स्थान की खुदाई से रोमन सिक्के, दीप का टुकड़ा, वर्तन आदि मिलते है जिनसे पता चलता है कि ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में रोम तथा दक्षिण भारत के बीच घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध था ।

पत्तडकल, चित्तलदुर्ग, तालकड, हेलविड, मास्की, ब्रह्मगिरि आदि दक्षिण भारत के कुछ अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं जहाँ से खुदाइयाँ हुई हैं । विभिन्न स्थानों से मापा सामग्रियों से प्राचीन इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है ।

देवगढ़ (झाँसी) का मन्दिर, भितर-गाँव का मन्दिर, अजन्ता की गुफाओं के चित्र, नालन्दा की बुद्ध की ताम्रमूर्ति आदि से हिन्दू कला एव सभ्यता के पर्याप्त विकसित होने के प्रमाण मिलते है । दक्षिण भारत से भी अनेक स्मारक प्राप्त होते है । तन्नोर का राजराजेश्वर मन्दिर द्रविड़ शैली का सबसे अच्छा उदाहरण है ।

पल्लवकाल के भी कई मन्दिर प्राप्त किये गये है । खजुराहो तथा उड़ीसा से प्राप्त बहुसख्यक मन्दिर हिन्दू-वास्तु एवं स्थापत्य के उत्कृष्ट स्वरूप को प्रकट करते है । भारत के अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक द्वीपों से हिन्दू संस्कृति से सम्बन्धित स्मारक मिलते हैं ।

इनमें मुख्य रूप से जावा का बोरोबुदुर स्तुप तथा कम्बोडिया के अंकोरवाट मन्दिर का उल्लेख किया जा सकता है । इसी प्रकार मलाया, बोर्नियो, बाली आदि में हिन्दू संस्कृति से सम्बन्धित अनेक स्मारक प्राप्त हये हैं ।

इनसे इन द्वीपों में हिन्दू संस्कृति के पर्याप्त रूप से विकसित होने के प्रमाण मिलते हैं । इस प्रकार भारतीय साहित्य, विदेशी यात्रियों के विवरण तथा पुरातत्व-इन तीनों के सम्मिलित साक्ष्य के आधार पर हम भारत के प्राचीन इतिहास का पुनर्निर्माण कर सकते है ।

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  • प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर कहाँ स्थित है? उत्तर- हम्पी में
  • सिक्किम भारत का हिस्सा कब बना? उत्तर- 1975 में
  • राज्य पुर्नगठन आयोग की स्थापना कब हुआ?उत्तर- 1953 में
  • हड़प्पा सभ्यता किस युग की सभ्यता है? उत्तर- कांस्य युग
  • सिंधु घाटी के निवासियों को किस धातु का ज्ञान नहीं था? उत्तर– लोहा, note :- उन्हें सोना,चांदी और तांबा धातु का ज्ञान था
  • इण्डिका की रचना किसने की? उत्तर- मैगस्थनीज ने
  • गुप्तों की काल में कौन चीनी यात्री भारत आया? उत्तर- फाह्यान
  • महाभारत की रचना किसने की ? उत्तर- वेद व्यास
  • महाभारत का युद्ध कितने दिन चला? उत्तर– 18 दिन तक
  • कुरु वंश की राजधानी कहाँ थी ? उत्तर- हस्तिनापुर में
  • त्रिपिटक साहित्य संबंधित है? उत्तर– बौद्ध धर्म से
  • तृतीय बौद्ध संगीति किसके शासन काल में हुआ? उत्तर- अशोक के समय में
  • आईन-ए-अकबरी’ एवं ‘अकबरनामा’ की रचना किसने की? उत्तर-अबुल फजल
  • अकबर का वित्तिय मंत्री था? उत्तर- टोडरमल
  • पुराणों की संख्या कितनी है?उत्तर- 18
  • तम्बाकू का सेवन सबसे पहले किस मुगल सम्राट ने किया? उत्तर-अकबर ने
  • पानीपत का प्रथम युद्ध किस वर्ष हुआ था ? उत्तर– 1526 ई. में
  • शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह स्थित है? उत्तर- अजमेर में
  • अकबर ने किस वर्ष दिन-ए इलाही धर्म चलाया? उत्तर- 1582 ई.
  • स्थापत्य काल का सर्वाधिक विकास किसके काल में हुआ? उत्तर- शाहजहाँ के काल में
  • विजयनगर सम्राज्य की स्थापना किसने की? उतर- हरिहर और बुक्का ने
  • गोपुरम से आप क्या समझते है? उत्तर- मंदिर का प्रवेश द्वारा
  • हम्पी नगर किस राज्य से संबंधित है? उत्तर- विजयनगर
  • विजयनगर के शासको ने अपने आप को कहा? उत्तर– राय
  • तकवन्दी (ननकाना साहिब) किसका जन्म स्थान हैं? उत्तर– नानक का
  • उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का आरम्भ किस संत ने शुरू किया?उत्तर- रामानंद
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना कब हुई? उत्तर- 1885 में
  • राबिया कौन-सी संत थी उत्तर- रहस्यवादी
  • इब्नबतूता की देश का यात्री था? उत्तर– मोरक्को
  • अलबरुद्दीन किसके साथ भारत आया था ? उत्तर- महमूद गजनी
  • संथाल विद्रोह का नेता था? उत्तर- सिंद्धु और कान्हू
  • दामिन-ए-कोह क्या था?उत्तर– भू-भाग
  • स्थायी बंदोबस्त कहा लागू किया गया? उत्तर-बंगाल में
  • इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई?उत्तर- 1600 ई.में
  • स्थायी बंदोबस्त किससे संबंधित है? उत्तर– वेलेजली
  • संथाल विद्रह कब हुआ था ? उत्तर- 1855 में
  • व्यपगत के सिंद्धांत का सम्बन्ध किससे है? उत्तर-लार्ड डलहौजी
  • 1857 की क्रांति आरम्भ हुई? उत्तर- 10 मई,1857 से
  • बिहार में 1857 की क्रांति का नेता कौन था? उत्तर- कुंवर सिंह
  • कलकत्ता में अंग्रेजों की किलेबंद बस्ती का नाम था?उत्तर-फोर्ड विलियन
  • गेट वे ऑफ इंडिया का निर्माण कब हुआ? उत्तर-1911 ई. में
  • दिल्ली चलो का नारा किसने दिया? उत्तर- सुभाषचन्द्र बोस
  • जलियांवाला बाग हत्या कांड कब हुआ? उत्तर- 1919 में
  • काला कानून किसे कहा गया ? उत्तर- रोलट एक्ट को
  • द्वितीय विश्व युद्ध की घोषणा कब हुई और किसने की? उत्तर-3 सितम्बर,1939 में ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की
  • संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई?उत्तर- 9 दिसम्बर,1946 को
  • भारतीय संविधान सभा पर हस्ताक्षर कब हुआ?उत्तर-  24 जनवरी,1950 को
  • 1917 में रूस में समाजवादी राज्य की स्थापना किसने की? उत्तर- लेलिन ने की
  • भारत का प्रथम गृह मंत्री कौन था? उत्तर- सरदार बल्लभ भाई पटेल
  • सीमान्त गांधी के नाम से किसे जाना जाता है?उत्तर- ख़ान अब्दुल गफ्फार खाँ को सीमान्त गांधी के नाम से जाना जाता है
  • कश्मीर के भारत में विलय पत्र पर किसने हस्ताक्षर किया था? उत्तर- राजा हरीसिंह
  • राज्यो से पुनर्गठन आयोग के अश्याक्ष कौन था?उत्तर- न्यामूर्ति फजल अली
  • हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है? उत्तर– रावी नदी के किनारे
  • कालीबंगान स्थिति है? उत्तर- राजस्थान में
  • पूना समझौता किस वर्ष हुआ? उत्तर- 1932 ई. में
  • बिहार में चंपारण सत्या ग्रह कब हुआ? उत्तर- 1917 ई. में
  • डांडी किस राज्य में स्थित है? उत्तर- गुजरात में
  • 1920 ई. में कौन-सा आंदोलन हुआ? उत्तर- असहयोग आंदोलन
  • स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्न जनरल कौन था?उत्तर-सी.राजगोपालाचारी
  • मुस्लिम लीग की स्थापना किस वर्ष हुई? उत्तर- 1906 में
  • भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम कब पारित हुआ? उत्तर- 18 जुलाई 1947 को
  • भारतीय संविधान के अनुसार सम्प्रभुता निहित है?उत्तर- राष्ट्रपति में
  • भारतीय पुरातत्व के पिता किसे कहा जाता है? उत्तर- अलेक्जेंडर कनिघम
  • यूरोप का समुंद्र गुप्त कौन था? उत्तर- नेपोलियन
  • दिल्ली से दौलताबाद किस शासक ने अपनी राजधानी परिवर्तित की ?उत्तर- मुहम्मद तुगलक
  • विजयनगर सम्राज्य द्वारा असैनिक और सैनिक सेवा के लिए दिया जाने वाला भूमिदान की कहलाता है? उत्तर– अमरभ

नेहरू के निर्धन के बाद उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी कों बना?उत्तर- लालबहादुर शास्त्री

भारत में आपातकाल कब लगाया गयाउत्तर- 25 जून,1975 को, भारत में संविधान के किस अनुच्छेद के तहत वित्तिय आपातकाल लगाया गयाउत्तर- अध्यादेश-360, भारतीय इतिहास की शुरुआत कब हुई.

भारत का इतिहास कई सहस्र वर्ष पुराना माना जाता है । 65,000 साल पहले, पहले आधुनिक मनुष्य, या होमो सेपियन्स, अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचे थे, जहाँ वे पहले विकसित हुए थे। सबसे पुराना ज्ञात आधुनिक मानव आज से लगभग 30,000 वर्ष पहले दक्षिण एशिया में रहता है।

भारत का इतिहास कितने प्रकार का है?

प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास, आधुनिक भारत और स्वतन्त्रता आंदोलन

Sources – Wikipedia

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18 Comments

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Indian history

Nice Post of history INDIA

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Sir ji apne dehli sultanet or bahmni A-Z topic send karo

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क्या आप जानते हैं भारतीय इतिहास की इन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में?

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  • Updated on  
  • जनवरी 24, 2024

Indian History in Hindi

भारत एक महान देश है जिसका इतिहास इतना समृद्ध है कि आपको हर कोने में छुपा हुआ मिलेगा। इतिहास का अध्ययन करने पर हम ये जान पाते हैं कि हमारे देश में सभ्यता और संस्कृति कैसे विकसित हुई, धर्म और धार्मिक व्यवहार कैसे अस्तित्व में आये या फिर कौन कौन सी कई ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं घटित हुई है। भारतीय इतिहास की शुरुआत हज़ारों साल पहले होमो सेपियन्स के साथ हुई थी। होमो सेपियन्स अफ्रीका, दक्षिण भारत, बलूचिस्तान से होते हुए सिंधु घाटी पहुंचे और यहाँ नगरीकरण का बसाव किया जिससे सिंधु घाटी सभ्यता विकसित हुई। भारतीय इतिहास, सिंधु घाटी की रहस्यमई संस्कृति से शुरू होकर भारत के दक्षिणी इलाकों में किसान समुदाय तक फैला। इससे अधिक जानकारी के लिए ये ब्लॉग पूरा पढ़ें। इस ब्लॉग के माध्यम से आपको Indian History in Hindi के बारे में विस्तार से जानने को मिलेगा। आईये जानते हैं।

This Blog Includes:

भारतीय इतिहास के भाग , प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम, सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में विस्तार से, गुप्त साम्राज्य , मौर्य साम्राज्य का परिचय, मध्यकालीन भारत का घटनाक्रम, एंग्लो-मराठा युद्ध, मुगल साम्राज्य के तहत व्यापार का विकास, मुगल साम्राज्य के तहत कला और वास्तुकला, अवध का इतिहास, आधुनिक भारत का घटनाक्रम, इतिहास के प्रकार, इंडियन हिस्ट्री बुक्स इन हिंदी.

दुनिया के इतिहास की तरह, भारतीय इतिहास (History of India in Hindi) को विस्तार से समझने के लिये 3 भागों में वर्गीकृत किया गया है, जो कि निम्नलिखित हैं:-

  • प्राचीन भारत 
  • मध्यकालीन भारत
  • आधुनिक भारत 

यह भी पढ़ें: हर्यक वंश का इतिहास

प्राचीन भारत का इतिहास

प्राचीन भारत का इतिहास पाषाण युग से लेकर इस्लामी आक्रमणों तक है। इस्लामी आक्रमण के बाद भारत में मध्यकालीन भारत की शरुआत हो जाती है। 

Indian History in Hindi के इस ब्लॉग में प्राचीन भारतीय इतिहास के घटनाक्रम को विस्तार से जानते हैं।

  • प्रागैतिहासिक कालः 400000 ई.पू.-1000 ई.पू. : इस समय में मानव ने आग और पहिये की खोज की।
  • सिंधु घाटी सभ्यताः 2500 ई.पू.-1500 ई.पू. : सिंधु घाटी सभ्यता सबसे पहली व्यवस्थित रूप से बसी हुई सभ्यता थी। नगरीकरण की शरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से मानी जाती है।
  • महाकाव्य युगः 1000 ई.पू.-600 ई.पू. : इस समय काल में वेदों का संकलन हुआ और वर्णों के भेद हुए जैसे आर्य और दास।
  • हिंदू धर्म और परिवर्तनः 600 ई.पू.-322 ई.पू. : इस समय में जाति प्रथा अपने चरम पर थी। समाज में आयी इस रूढ़िवादिता का परिणाम महावीर और बुद्ध का जन्म था। इस समय में महाजनपदों का गठन हुआ। 600 ई. पू.- 322 ई. पू. में बिम्बिसार, अजात शत्रु, शिशुनंगा और नंदा राजवंश का जन्म हुआ।
  • मौर्य कालः 322 ई.पू.-185 ई.पू. चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित इस साम्राज्य में पूरा उत्तर भारत था, जिसका बिंदुसार ने और विस्तार किया। कलिंग युद्ध इस समयकाल की घटना है, जिसके बाद राजा अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया।
  • आक्रमणः 185 ई.पू.-320 ईसवीः इस समयकाल में बक्ट्रियन, पार्थियन, शक और कुषाण के आक्रमण हुए। व्यापार के लिए मध्य एशिया खुला, सोने के सिक्कों का चलन और साका युग का प्रारंभ हुआ।
  • दक्कन और दक्षिणः 65 ई.पू.-250 ईसवीः इस काल में चोल, चेर और पांड्या राजवंश ने दक्षिण भारत पर अपना शासन जमा रखा था। अजंता एलोरा की गुफाओं का निर्माण इसी समयकाल की देन है, इसके अलावा संगम साहित्य और भारत में ईसाई धर्म का आगमन हुआ।
  • गुप्त साम्राज्यः 320 ईसवी-520 ईसवीः इस काल में चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की, उत्तर भारत में शास्त्रीय युग का आगमन हुआ, समुद्रगुप्त ने अपने राजवंश का विस्तार किया और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शाक के विरुद्ध युद्ध किया। इस युग में ही शाकुंतलम और कामसूत्र की रचना हुई। आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान में अद्भुत कार्य किए और भक्ति पंथ भी इस समय उभरा।
  • छोटे राज्यों का उद्भव : 500 ईसवी-606 ईसवीः इस युग में हूणों के उत्तर भारत में आने से मध्य एशिया और ईरान में पलायन देखा गया। उत्तर में कई राजवंशों के परस्पर युद्ध करने से बहुत से छोटे राज्यों का निर्माण हुआ।
  • हर्षवर्धनः 606 ई-647 ईसवीः हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनत्सांग ने भारत की यात्रा की। हूणों के हमले से हर्षवर्धन का राज्य कई छोटे राज्यों में बँट गया। इस समय में दक्कन और दक्षिण बहुत शक्तिशाली बन गए।
  • दक्षिण राजवंशः 500ई-750 ईसवीः इस समय में में चालुक्य, पल्लव और पंड्या साम्राज्य का उद्भव हुआ और पारसियों का भारत आगमन हुआ था।
  • चोल साम्राज्यः 9वीं सदी ई-13वीं सदी ईसवीः विजयालस द्वारा स्थापित चोल साम्राज्य ने समुद्र नीति अपनाई। इस समय में मंदिर सांस्कृतिक और सामाजिक केन्द्र होने लगे और द्रविड़ियन भाषा फलने फूलने लगी।
  • उत्तरी साम्राज्यः 750ई-1206 ईसवीः इस समय राष्ट्रकूट ताकतवर हुआ, प्रतिहार ने अवंति और पलस ने बंगाल पर शासन किसा। इसी के साथ मध्य भारत में राजपूतों का उदय हो रहा था। इस समय में भारत पर तुर्क आक्रमण हुआ जिसके बाद मध्यकालीन भारत का प्रारम्भ हुआ। 

सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ भारतीय इतिहास का जन्म हुआ था। सिंधु घाटी की सभ्यता दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्से में लगभग 2500 BC में फैली हुई है। Indian History in Hindi में सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी गई है:

  • यह क्षेत्र आज के समय में पाकिस्तान और पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
  • सिंधु घाटी मिश्र
  • मेसोपोटामिया
  • 1920 तक मनुष्य को सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था।
  • घरेलू सामान
  • युद्ध के हथियार
  • सोने के आभूषण
  • चांदी के आभूषण
  • सिंधु घाटी की सभ्यता को व्यापार के केंद्र के नाम से भी जाना जाता है।
  • यहाँ सभी चीजों की देखभाल बहुत ही अच्छी तरीके से रखी जाती थी।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में चौड़ी सड़कें और सुविकसित निकास प्रणाली भी स्थित थे।
  • यहां पर घरों पर पुताई होती थी और घर ईटों से बने होते थे।
  • साथ ही यहां पर दो या दो से अधिक मंजिलें भी होती थीं।
  • हड़प्पा सभ्यता का 1500 BC तक अंत हो गया था।
  • माना जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं के आने के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता भी नष्ट हो गई थी।

यह भी पढ़ें : भारत का इतिहास

भगवान बुद्ध को गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ और तथागत के भी नाम से जाना जाता है। ‍बुद्ध के पिता का नाम कपिलवस्तु था, वह राजा शुद्धोदन थे और इनकी माता का नाम महारानी महामाया देवी था। बुद्ध की पत्नी का नाम यशोधरा था और उनके पुत्र का नाम राहुल था। भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ था। यह बात जानने को मिली कि इसी दिन 528 ईसा पूर्व में उन्होंने भारत के बोधगया में सत्य को जाना और साथ में इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में भारत के कुशीनगर में निर्वाण (मृत्यु) को प्राप्त हुए।

Indian History in Hindi में अब बौद्ध धर्म के बारे में विस्तार से जानते हैं। इतिहास में इस बात का उल्लेख भी किया गया है कि जब महात्मा बुद्ध को सच्चे बोध की प्राप्ति हुई उसी वर्ष आषाढ़ की पूर्णिमा को वे काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे। यह बात भी जानने को मिलती है कि वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया, जिसमें उन्होंने लोगों से मध्यम मार्ग अपनाने के लिए कहा। साथ में इस बात का उल्लेख भी हुआ है कि उन्होंने चार आर्य सत्य अर्थात दुःखों के कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया, अहिंसा पर जोर दिया, और यज्ञ, कर्म कांड और पशु-बलि की निंदा की।

यह भी पढ़ें : झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन की कहानी

गुप्त साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण राजा हुए, समुद्रगुप्त और दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीय। गुप्त वंश के लोगों के द्वारा ही संस्कृत की एकता फिर एकजुट हुई। चंद्रगुप्त प्रथम ने 320 ईस्वी को गुप्त वंश की स्थापना की थी और यह वंश करीब 510 ई तक शासन में रहा। 463-473 ई में सभी गुप्त वंश के राजा थे, केवल नरसिंहगुप्त बालादित्य को छोड़कर। बालादित्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था, शुरुआत के दौर में इनका शासन केवल मगध पर था, पर फिर धीरे-धीरे संपूर्ण उत्तर भारत को इन्होने अपने अधीन कर लिया था। गुप्त वंश के सम्राटों में क्रमश : श्रीगुप्त, घटोत्कच, चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम (महेंद्रादित्य) और स्कंदगुप्त हुए। देश में कोई भी ऐसी शक्तिशाली केन्द्रीय शक्ति नहीं थी , जो अलग-अलग छोटे-बड़े राज्यों को विजित कर एकछत्र शासन-व्यवस्था की स्थापना कर पाती । यह जो काल था वह  किसी महान सेनानायक की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिये सर्वाधिक सुधार का अवसर के बारे में बता रहा था। फलस्वरूप मगध के गुप्त राजवंश में ऐसे महान और बड़े सेनानायकों का विनाश हो रहा था ।

मौर्य साम्राज्य मगध में स्थित दक्षिण एशिया में भौगोलिक रूप से व्यापक लौह युग की ऐतिहासिक शक्ति थी, जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई.पू. मौर्य साम्राज्य को भारत-गंगा के मैदान की विजय द्वारा केंद्रीकृत किया गया था, और इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में स्थित थी। इस शाही केंद्र के बाहर, साम्राज्य की भौगोलिक सीमा सैन्य कमांडरों की वफादारी पर निर्भर करती थी, जो इसे छिड़कने वाले सशस्त्र शहरों को नियंत्रित करते थे। अशोक के शासन (268-232 ईसा पूर्व) के दौरान, साम्राज्य ने गहरे दक्षिण को छोड़कर भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख शहरी केंद्रों और धमनियों को संक्षेप में नियंत्रित किया। अशोक के शासन के लगभग 50 वर्षों के बाद इसमें गिरावट आई, और पुष्यमित्र शुंग द्वारा बृहदरथ की हत्या और मगध में शुंग वंश की नींव के साथ 185 ईसा पूर्व में भंग कर दिया गया।

मध्यकालीन भारत का इतिहास

मध्यकालीन भारत की शुरुआत भारत पर इस्लामी आक्रमण से मानी जाती है। वर्तमान के उज़बेकिस्तान के शासक तैमूर और चंगेज़ खान के वंशज बाबर ने सन् 1526 में खैबर दर्रे को पार किया और वहां मुगल साम्राज्य की स्थापना की, जहां आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश स्थित हैं। बाबर के भारत आने के साथ भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हुई। सन् 1600 तक मुगल वंश ने भारत पर राज किया। सन् 1700 ई. के बाद इस वंश का पतन होने लगा और ब्रिटिश सत्ता फैलने लगी। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय सन् 1857 में मुग़ल वंश का पूरी तरह खात्मा हो गया।

Indian History in Hindi के इस ब्लॉग में मध्यकालीन भारत का घटनाक्रम नीचे दिया गया है :-

  • प्रारंभिक मध्यकालीन युग ( 8वीं से 11 वीं शताब्दी ): इस समयकाल में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद और दिल्ली सल्तनत का प्रारंभ हुआ जिसके परिणाम स्वरूप भारतवर्ष कई छोटे राज्य में बट गया था।
  • गत मध्यकालीन युग ( 12वीं से 18वीं शताब्दी ): इस समयकाल में पश्चिम में मुस्लिम आक्रमणों ने तेजी पकड़ ली थी तो दूसरी तरफ दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश का उद्भव हुआ। 
  • विजयनगर साम्राज्य का उदय: विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर तथा बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी। यह उस समय का एकमात्र हिन्दू राज्य था जिस पर अल्लाउदीन खिलजी ने आक्रमण किया था। जिसके बाद हरिहर और बुक्का ने मुस्लिम धर्म अपना लिया। 
  • मुग़ल वंश: मुग़ल वंश के प्रारंभ के साथ दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया। बाबर के भारत पर आक्रमण करने के बाद भारत में मुग़ल वंश की स्थापना की।1857 की क्रांति के साथ ही मुग़ल वंश का पतन हो गया और ब्रिटिश शासन के साथ आधुनिक भारत की शुरुआत हुई।

Indian History in Hindi की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक, एंग्लो-मराठा युद्ध, मराठों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष की घटनाओं को कवर करता है। मराठों की हार के बाद 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मरने वाले शासक बालाजीबाजी राव थे। वह अपने बेटे माधव राव द्वारा शुरू किए गए युद्ध में लड़ रहे थे जो कि असफल हो गया था। जबकि बालाजी बाजी राव के भाई रघुनाथ राव अगले पेशवा बन गए। अंग्रेजों ने 1772 में माधव राव की मृत्यु के बाद मराठों के साथ पहला युद्ध लड़ा। Indian History in Hindi के इस ब्लॉग में नीचे उन घटनाओं का सारांश है जो मध्यकालीन भारत के इस महत्वपूर्ण चरण को समझने में आपकी मदद करेंगे, जो एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान हुई थीं:

  • माधवराव प्रथम की मृत्यु के बाद, मराठा शिविर में संघर्ष हुआ। नारायणराव पेशवा बनने की राह पर थे, हालांकि, उनके चाचा रघुनाथराव ने भी पुजारी बनना चाहा। 
  • इसलिए, अंग्रेजों के हस्तक्षेप के बाद, सूरत संधि पर 1775 में हस्ताक्षर किए गए थे। संधि के अनुसार, रघुनाथराव ने सालसेट और बेससीन के बदले में 2500 सैनिकों को अंग्रेजों को दे दिया।
  • वारेन हेस्टिंग्स के तहत, ब्रिटिश कलकत्ता परिषद ने इस संधि को रद्द कर दिया और पुरंदर संधि 1776 में कलकत्ता परिषद और एक मराठा मंत्री, नाना फड़नवीस के बीच संपन्न हुई।
  • नतीजतन, केवल रघुनाथराव को पेंशन प्रदान की गई और अंग्रेजों ने सालसेट को बरकरार रखा।
  • लेकिन बंबई के ब्रिटिश प्रतिष्ठान ने इस संधि का उल्लंघन किया और रघुनाथराव को ढाल दिया।
  • 1777 में, नाना फडणवीस ने कलकत्ता परिषद के साथ अपनी संधि के खिलाफ जाकर फ्रांस के पश्चिमी तट पर एक बंदरगाह प्रदान किया।
  • इसने अंग्रेजों को पुणे भेजने के लिए नेतृत्व किया। पुणे के पास वडगाँव में एक लड़ाई हुई जिसमें महादजी शिंदे के अधीन मराठों ने अंग्रेजी पर एक निर्णायक जीत का दावा किया।
  • 1779 में, अंग्रेजों को वाडगांव संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था।
  • एंग्लो-मराठा युद्धों के अंत में, सालबाई की संधि 1782 में संपन्न हुई जिसने Indian history in Hindi में एक घटनापूर्ण मील का पत्थर बनाया।

मुगल साम्राज्य का उदय भारतीय इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ है। मुगल साम्राज्य के आगमन से भारत में आयात और निर्यात में वृद्धि हुई। विदेशी लोग व्यापार के लिए भारत आने लगे जैसे डच, यहूदी, ब्रिटिश।

  • पूरे क्षेत्र में बड़ी संख्या में भारतीय व्यापारिक समूह फैले हुए थे। इनमें लंबी दूरी के व्यापारी सेठ और बोहरा शामिल थे; बनिक- स्थानीय व्यापारी; बंजारों ने अक्सर बैलों की पीठ पर अपने माल के साथ लंबी दूरी की यात्रा की, व्यापारियों का एक और वर्ग जो थोक वस्तुओं के परिवहन में विशेषज्ञता रखते थे। साथ ही, नदियों में नावों पर भारी सामान लाया जाता था।
  • हिंदू, जैन और मुसलमान गुजराती व्यापारियों में से थे, जबकि ओसवाल, महेश्वरियां और अग्रवाल राजस्थान में मारवाड़ी कहे जाने लगे।
  • दक्षिण भारत में, सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक समाज कोरोमंडल, द चेटिस, द मुस्लिम मालाबार व्यापारियों, आदि बंगाल-चीनी, चावल के साथ-साथ नाजुक मलमल और रेशम के तट पर थे।
  • गुजरात, जहाँ से बढ़िया वस्त्र और रेशम उत्तरी भारत में ले जाया जाता था, विदेशी वस्तुओं के लिए एक प्रवेश बिंदु था। कुछ धातुएँ जैसे धातुएँ भारत में मुख्य आयात थीं। कॉपर और टिन, वॉरहॉर्स और वॉरहॉर्स, हाथी दांत, सोने और चांदी के आयात सहित लक्जरी टुकड़े व्यापार द्वारा संतुलित हैं।

Samrat Ashoka History in Hindi

भारतीय ऐतिहासिक स्मारकों का ढेर मुगलों के शासनकाल के दौरान बनाया गया और भारतीय इतिहास का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया। यहां मुगल साम्राज्य के तहत लोकप्रिय कला और वास्तुकला का एक सारांश है:

  • मुगल बहते पानी के साथ उद्यान बिछाने के शौकीन थे। मुगलों के कुछ बाग कश्मीर के निशात बाग, लाहौर के शालीमार बाग और पंजाब के पिंजौर के बाग़ में हैं।
  • शेरशाह के शासनकाल के दौरान, बिहार के सासाराम में मकबरा और दिल्ली के पास पुराण किला बनाया गया था।
  • अकबर की सुबह के साथ, व्यापक पैमाने पर इमारतों का निर्माण शुरू हुआ। कई किले उसके द्वारा डिजाइन किए गए थे और सबसे प्रमुख आगरा का किला था। इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया था। उनके अन्य गढ़ लाहौर और इलाहाबाद में हैं।
  • दिल्ली में प्रसिद्ध लाल किला का निर्माण शाहजहाँ ने अपने रंग महल, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़वासस्व के साथ करवाया था।
  • फतेहपुर सीकरी में एक महल सह किला परिसर भी अकबर (विजय शहर) द्वारा बनाया गया था।
  • इस परिसर में कई गुजराती और बंगाली शैली की इमारतें भी पाई जाती हैं।
  • उनकी राजपूत माताओं के लिए, संभवतः गुजराती शैली की इमारतों का निर्माण किया गया था। इसमें सबसे राजसी संरचना जामा मस्जिद और इसके प्रवेश द्वार है, जिसे बुलंद दरवाजा या बुलंद गेट के रूप में जाना जाता है।
  • प्रवेश द्वार की ऊंचाई 176 फीट है। इसे गुजरात पर अकबर की जीत की याद में बनाया गया था।
  • जोधाबाई का महल और पांच मंजिला पंच महल फतेहपुर सीकरी की अन्य महत्वपूर्ण इमारतें हैं।
  • हुमायूं का मकबरा दिल्ली में अकबर के शासन के दौरान बनाया गया था, और इसमें संगमरमर का एक विशाल गुंबद था।
  • अकबर का मकबरा आगरा के पास सिकंदरा में जहाँगीर ने बनवाया था।
  • आगरा में इतमाद दौला के मकबरे का निर्माण नूरजहाँ ने करवाया था।
  • ताजमहल का निर्माण यह पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बना था, जिसमें अर्ध-कीमती पत्थरों से बनी दीवारों पर पुष्प डिजाइन थे। शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान, यह विधि अधिक लोकप्रिय हो गई।शाहजहाँ द्वारा निर्मित, ताजमहल को इतिहास के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता है। इसके निर्माण के लिए, पिएट्रा ड्यूरा प्रक्रिया का व्यापक स्तर पर उपयोग किया गया था। इसमें उन सभी स्थापत्य रूपों को शामिल किया गया है जो मुगलों ने बनाए थे। ताज की मुख्य महिमा विस्तृत गुंबद और चार पतला मीनारें हैं जिनकी सजावट को न्यूनतम रखा गया है। 

Indian History in Hindi में अवध के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं नीचे दी गई है:

  • अवध उत्तर भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र था, जो अब उत्तर प्रदेश राज्य का उत्तर-पूर्वी भाग है। इसने अपना नाम कोसला की राजधानी अयोध्या साम्राज्य से लिया और 16 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। 
  • 1800 में, ब्रिटिश ने अपने साम्राज्य के हिस्से के रूप में खुद को अधीन कर लिया। 1722 ई। में अवध का सूबा आजाद हुआ, मुग़ल सम्राट मुहम्मद शा ने एक फ़ारसी शिया को सआदत ख़ान को अवध का गवर्नर नियुक्त किया। 
  • सआदत खान ने सैय्यद भाइयों को उखाड़ फेंकने में मदद की। सआदत खान को राजा द्वारा नादिर शाह के साथ बातचीत करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था ताकि वह शहर को नष्ट करने और बड़ी राशि के भुगतान के लिए अपने देश लौटने के लिए इच्छुक हो सके। जब नादिर शाह वादा किए गए धन को पाने में विफल रहे, तो उनका गुस्सा दिल्ली के लोगों ने महसूस किया। उन्होंने एक सामान्य वध का आदेश दिया था। सआदत खान ने अपमान और शर्म के कारण आत्महत्या कर ली।
  • सफदर जंग, जिसे मुगल साम्राज्य का वजीर भी कहा जाता था, अवध का अगला नवाब था। वह अपने चाचा शुजाउद्दौला द्वारा सफल हो गया था। अवध राजा द्वारा एक मजबूत सेना का आयोजन किया गया, जिसमें मुस्लिम और हिंदू, नागा और सन्यासियों के साथ-साथ शामिल थे। अवध शासक का अधिकार दिल्ली के पूर्व क्षेत्र रोहिलखंड तक था। उत्तर-पश्चिमी सीमांत की पर्वत श्रृंखलाओं से बड़ी संख्या में अफगान, जिन्हें रोहिल कहा जाता है, उसमें बस गए।

Indian National Movement(भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन)

अवध नवाबों का सारांश

  • सआदत खाँ बुरहान-उल-मुल्क (1722-1739 ई।): एक स्वायत्त राज्य के रूप में, उन्होंने 1722 ई। में अवध की स्थापना की। नादिर शाह के आक्रमण के दौरान, उन्हें मुगल बादशाह मुहम्मद शाह द्वारा गवर्नर नामित किया गया था और इसमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी शाही मामले उन्होंने नाम और सम्मान की खातिर आत्महत्या कर ली।
  • सफदर जंग / अदबुल मंसूर (1739-1754 ई।): अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ मानपुर की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले सआदत खान, सआदत खान (1748 ई।) के दामाद थे।
  • शुजा-उद-दौला (1754-1775 ई।): सफदरजंग का बेटा, वह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली का सहयोग था। रोहिल्ला को अंग्रेजों की सहायता से हराकर उसने विज्ञापन 1774 में रोहिलखंड को अवध में वापस कर दिया।
  • आसफ-उद-दौला: वह लखनऊ की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध थे और उन्होंने इमामबाड़ा और रूमी दरवाजा जैसे महत्वपूर्ण स्मारकों का निर्माण किया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ फैजाबाद (1755 ई।) संधि का समापन किया।
  • वाजिद अली शाह: उन्हें व्यापक रूप से जान-ए-आलम और अख्तर पिया और अवध के अंतिम राजा के रूप में कहा जाता था, लेकिन ब्रिटिश लॉर्ड डलहौजी को गलतफहमी के आधार पर हटा दिया गया था। शास्त्रीय संगीत और नृत्य शैलियों के कालका-बिंदा भाइयों जैसे कलाकारों के साथ, वहां के दरबार में स्पॉट किए गए।

आधुनिक भारत का इतिहास

मुग़ल काल के पतन से लेकर भारत की आजादी तक और वर्तमान को आधुनिक भारत की श्रेणी में रखा गया है। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये भारत में संघर्ष प्रारंभ हो गए थे। इस समयकाल ने आंदोलन, क्रांति, विरोध को जन्म दिया। 

यह भी पढ़ें : भगवान बुद्ध का परिचय

इंडियन हिस्ट्री इन हिंदी के इस ब्लॉग में आइए आधुनिक भारत का घटनाक्रम जानते है :-

  • क्षेत्रीय राज्यों का उदय और यूरोपीय शक्ति: इस समय में पंजाब, मैसूर, अवध, हैदराबाद, बंगाल जैसे छोटे राज्यों का विस्तार हुआ। इसके साथ ही पुर्तगाली उपनिवेश, डच उपनिवेश, फ्रांसीसी उपनिवेश और अंग्रेज उपनिवेश की स्थापना हुई। 
  • ब्रिटिश सर्वोच्चता और अधिनियम: इस समय ने बक्सर की लड़ाई, सहायक संधि, व्यपगत का सिद्धांत, रेग्युलेटिंग एक्ट 1773, पिट्स इंडिया एक्ट 1784, चार्टर अधिनियम,1793, 1813 का चार्टर अधिनियम, 1833 ई. का चार्टर अधिनियम, 1853 ई. का चार्टर अधिनियम, 1858 ई. का भारत सरकार अधिनियम,1861 का अधिनियम,1892 ई. का अधिनियम,1909 ई. का भारतीय परिषद् अधिनियम, भारत सरकार अधिनियम – 1935, मोंटेंग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार अर्थात भारत सरकार अधिनियम-1919 जैसे घटनाओं को अंजाम दिया। 
  • 18वीं सदी के विद्रोह और सुधार:  इस समय काल में रामकृष्ण, विवेकानंद, ईश्वरचंद विद्यासागर, डेजेरियो और यंग बंगाल, राममोहन रॉय और ब्रह्म समाज जैसे समाज सुधारकों का जन्म हुआ। 
  • भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन: इस समय काल में भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र कराने के लिए कई प्रकार के आंदोलनों का उद्भव हुआ जैसे: शिक्षा का विकास, भारतीय प्रेस का विकास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जलियाँवाला बाग, मुस्लिम लीग की स्थापना, रौलट विरोधी सत्याग्रह, स्वदेशी आन्दोलन, अराजक और रिवोल्यूशनरी अपराध अधिनियम 1919, खिलाफ़त और असहयोग आन्दोलन, साइमन कमीशन, नेहरू रिपोर्ट, भारत छोड़ो आन्दोल, कैबिनेट मिशन प्लान, अंतरिम सरकार, संवैधानिक सभा, माउंटबेटन योजना और भारत के विभाजन, दक्षिण भारत में सुधार, पश्चिमी भारत में सुधार आन्दोलन, सैय्यद अहमद खान और अलीगढ़ आन्दोलन, मुस्लिम सुधार आन्दोलन आदि।

यह भी पढ़ें : गुप्त साम्राज्य (Gupta Dynasty in Hindi)

इंडियन हिस्ट्री इन हिंदी में इतिहास के प्रकारों की सूची नीचे दी गई है:

  • राजनीतिक इतिहास
  • सामाजिक इतिहास
  • साँस्कृतिक इतिहास
  • धार्मिक इतिहास
  • आर्थिक इतिहास
  • संवैधानिक इतिहास
  • राजनयिक इतिहास
  • औपनिवेशक इतिहास 
  • संसदीय इतिहास 
  • सैन्य इतिहास 
  • विश्व का इतिहास 
  • क्षेत्रीय इतिहास

इंडियन हिस्ट्री बुक्स की सूची नीचे दी गई है:

भारत की सभ्यता को लगभग 8,000 साल पुरानी माना जाता है।

माना जाता है की ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा।

तीन  प्राचीन काल  मध्यकालीन काल आधुनिक काल

आशा करते हैं कि आपको Indian History in Hindi के बारे में पूर्ण जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ।

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भारत पर निबंध (India Essay in Hindi)

भारत

पूरे विश्व भर में भारत एक प्रसिद्ध देश है। भौगोलिक रुप से, हमारा देश एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। भारत एक अत्यधिक जनसंख्या वाला देश है साथ ही प्राकृतिक रुप से सभी दिशाओं से सुरक्षित है। पूरे विश्व भर में अपनी महान संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों के लिये ये एक प्रसिद्ध देश है। इसके पास हिमालय नाम का एक पर्वत है जो विश्व में सबसे ऊँचा है। ये तीन तरफ से तीन महासागरों से घिरा हुआ है जैसे दक्षिण में भारतीय महासागर, पूरब में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरेबिक सागर से। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जो जनसंख्या के लिहाज से दूसरे स्थान पर है। भारत में मुख्य रूप से हिंदी भाषा बोली जाती है परंतु यहां लगभग 22 भाषाओं को राष्ट्रीय रुप से मान्यता दी गयी है।

भारत पर छोटे तथा बड़े निबंध (Long and Short Essay on India in Hindi, Bharat par Nibandh Hindi mein)

इंडिया पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

भारत देश शिव, पार्वती, कृष्ण, हनुमान, बुद्ध, महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानंद और कबीर आदि जैसे महापुरुषों की धरती है। भारत एक समृद्ध देश है जहाँ साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में महान लोगों ने जन्म लिया जैसे रविन्द्रनाथ टैगोर, सारा चन्द्रा, प्रेमचन्द, सी.वी.रमन, जगदीश चन्द्र बोस, ए.पी.जे अब्दुल कलाम, कबीर दास आदि।

भारत : विविधता में एकता

भारत“विविधता में एकता”काप्रतिकहैक्योंकि भारत मेंविभिन्न जाति, धर्म, संस्कृति और परंपरा के लोग एकता के साथ रहते हैं। भारत में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी धर्मों के लोग आपस में भाईचारे से रहते है। भारत में 22 प्रकार की आधिकारिक भाषाएँ बोली जाती है। यहाँ हर धर्म, पंथ और समुदाय की अपनी अलग भाषा, पहनावा और रीती रिवाज है। इतनी विभिन्नता में भी भारतीयता की डोर ने सभी को आपस में बांध रखा है।

भारत : एक महान और पुरातन राष्ट्र

भारत एक पुरातन देश है, जहाँ की सभ्यता प्राचीन काल में ही शीर्ष पर थी। यह प्राचीन समय से ही ज्ञान और विज्ञानं का केंद्र रहा है। भारत ने हमेशा ही वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दिया जिसका अर्थ है यह सम्पूर्ण संसार ही मेरा घर है।

भारत : विश्व गुरु

भारत शिक्षा, शास्त्र और शस्त्र में अग्रणी देश रहा है। भारत में अलबरूनी , मेगस्थनीज आदि जैसे अनेक विदेशी विद्वान शिक्षा प्राप्त करने आते थे।भारत में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे , जिनमे देश विदेश के विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। भारत ने आर्यभट्ट , वराहमिहिर, रामानुज , चरक , सुश्रुत आदि जैसेविद्वान हुए , जिन्होंने पुरे संसार में भारत का परचम लहराया।

भारत को  वेद, पुराण, संस्कृति, भाषा, विज्ञानं, धर्म  आदि से धनवान बनाने में महापुरुषों का अतुलनीय योगदान रहा है। भारत देवभूमि है, जो ऋषियों की भूमि रही है। हम सभी को भारत देश पर गर्व है।

इसे यूट्यूब पर देखें : इंडिया पर निबंध

निबंध 2 (200 शब्द)

भारत एक खूबसूरत देश है जो अपनी अलग संस्कृति और परंपरा के लिये जाना जाता है। ये अपने ऐतिहासिक धरोहरों और स्मारकों के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ के नागरिक बेहद विनम्र और प्रकृति से घुले-मिले होते हैं। ब्रिटिश शासन के तहत 1947 से पहले ये एक गुलाम देश था। हालाँकि, हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और समर्पण की वजह से 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली। जब भारत को आजादी मिली तो पंडित जवाहर लाल नेहरु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और भारतीय झंडे को फहराया और कहा कि “जब दुनिया सोती है, भारत जीवन और आजादी के लिये जागेगा”।

भारत मेरी मातृभूमि है और मैं इसे बहुत प्यार करता हूँ। भारत के लोग स्वभाव से बहुत ही ईमानदार और भरोसेमंद होते हैं। विभिन्न संस्कृति और परंपरा के लोग बिना किसी परेशानी के एक साथ रहते हैं। मेरे देश की मातृ-भाषा हिन्दी है हांलाकि बिना किसी बंधन के अलग-अलग धर्मों के लोगों के द्वारा यहाँ कई भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत एक प्राकृतिक सुंदरता का देश है जहाँ समय-समय पर महान लोग पैदा हुए हैं और महान कार्य किये। भारतीयों का स्वाभाव दिल को छू लेने वाला होता है और दूसरे देशों से आये मेहमानों का वो दिल से स्वागत करते हैं।

भारत में जीवन के भारतीय दर्शन का अनुसरण किया जाता है जो सनातन धर्म कहलाता है और यहाँ विविधता में एकता को बनाए रखने के लिये मुख्य कारण बनता है। भारत एक गणतांत्रिक देश है जहाँ देश की जनता को देश के बारे में फैसले लेने का अधिकार है। यहाँ देखने के लिये प्राचीन समय के बहुत सारे अति सुंदर प्राकृतिक दृश्य, स्थल, स्मारक, ऐतिहासिक धरोहर आदि है जो विश्व के हर कोने के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। भारत अपने आध्यात्मिक कार्यों, योगा, मार्शल आर्ट आदि के लिये बहुत प्रसिद्ध है। भारत में दूसरे देशों से भक्तों और तीर्थयात्रियों की एक बड़ी भीड़ यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों, स्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों की सुंदरता को देखने आती हैं।

निबंध 3 (350 शब्द)

भारत मेरी मातृ-भूमि है जहाँ मैंने जन्म लिया है। मैं भारत से प्यार करता हूँ और इस पर मुझे गर्व है। भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है जो जनसंख्या में चीन के बाद दूसरे स्थान पर काबिज़ है। इसका समृद्ध और शानदार इतिहास रहा है। इसे विश्व की पुरानी सभ्यता के देश के रुप में देखा जाता है। ये सीखने की धरती है जहाँ विश्व के हर कोने से विद्यार्थी यहाँ के विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये आते हैं। कई धर्मों के लोगों के अपने विभिन्न अनोखे और विविध संस्कृति और परंपरा के लिये ये देश प्रसिद्ध है।

प्रकृति में आकर्षित होने की वजह से विदेशों में रहने वाले लोग भी यहाँ की संस्कृति और परंपरा का अनुसरण करते हैं। कई आक्रमणकारी यहाँ आये और यहाँ की शोभा और बहुमूल्य चीजों को चुरा कर ले गये। कुछ ने इसको अपना गुलाम बना लिया जबकि देश के बहुत से महान नेताओं की संघर्ष और बलिदान की वजह से 1947 में हमारी मातृ-भूमि अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुयी।

जिस दिन हमारी मातृभूमि आजाद हुयी उसी दिन से हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रुप में मनाया जा रहा है। पंडित नेहरु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। प्राकृतिक संसाधनों से भरा देश होने के बावजूद भी यहाँ के रहवासी गरीब हैं। रविन्द्रनाथ टैगोर, सर जगदीश चन्द्र बोस, सर सी.वी.रमन, श्री एच.एन भाभा आदि जैसे उत्कृष्ट लोगों की वजह से तकनीक, विज्ञान, और साहित्य के क्षेत्र में ये लगातार बढ़ रहा है।

ये एक शांतिप्रिय देश है जहाँ बिना किसी हस्तक्षेप के अपने त्योहारों को मनाने के साथ ही विभिन्न धर्मों के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा का अनुसरण करते हैं। यहाँ पर कई शानदार ऐतिहासिक इमारतें, विरासत, स्मारक और खूबसूरत दृश्य हैं जो हर वर्ष अलग देशों के लोगों के मन को अपनी ओर खिंचता है। भारत में ताजमहल एक महान स्मारक और प्यार का प्रतीक है तथा कश्मीर धरती के स्वर्ग के रुप में है। ये प्रसिद्ध मंदिरों, मस्ज़िदों, चर्चों, गुरुद्वारों, नदियों, घाटियों, कृषि योग्य मैदान, सबसे उँचा पर्वत आदि का देश है।

निबंध 4 (400 शब्द)

भारत मेरा देश है और मुझे भारतीय होने पर गर्व है। ये विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा और विश्व में दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इसे भारत, हिन्दुस्तान और आर्यव्रत के नाम से भी जाना जाता है। ये एक प्रायद्वीप है जो पूरब में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरेबियन सागर और दक्षिण में भारतीय महासागर जैसे तीन महासगरों से घिरा हुआ है। भारत का राष्ट्रीय पशु चीता, राष्ट्रीय पक्षी मोर, राष्ट्रीय फूल कमल, और राष्ट्रीय फल आम है। भारतीय झंडे में तीन रंग है, केसरिया का मतलब शुद्धता (सबसे ऊपर), सफेद अर्थात् शांति (बीच का जिसमें अशोक चक्र है) और हरा रंग का अर्थ उर्वरता से है (सबसे नीचे)। अशोक चक्र में बराबर भागों में 24 तीलियाँ हैं। भारत का राष्ट्र गान “जन गण मन”, राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम” और राष्ट्रीय खेल हॉकी है।

भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोग अलग-अलग भाषा बोलते हैं और विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय और संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं। इसी वजह से भारत में “विविधता में एकता” का ये आम कथन प्रसिद्ध है। इसे आध्यात्मिकता, दर्शन, विज्ञान और प्रौद्योगिकीय की भूमि भी कहा जाता है। प्राचीन समय से ही यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन और यहूदी एक साथ रहते हैं। ये देश अपने कृषि और खेती के लिये प्रसिद्ध है जो प्राचीन समय से ही इसका आधार रही है। ये अपने पैदा किये हुए अनाज और फल इस्तेमाल करता है। ये एक प्रसिद्ध पर्यटन का स्वर्ग है क्योंकि पूरे विश्व के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ये स्मारकों, मकबरो, चर्चों, ऐतिहासिक इमारतों, मंदिर, संग्रहालयों, रमणीय दृश्य, वन्य जीव अभ्यारण्य, वास्तुशिल्प की जगह आदि इसके राजस्व का जरिया हैं।

ये वो जगह है जहाँ ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, स्वर्ण मंदिर, कुतुब मीनार, लाल किला, ऊटी, नीलगिरी, कश्मीर, खजुराहों, अजन्ता और एलोरा की गुफाएँ आदि आश्चर्य मौजूद हैं। ये एक महान नदियों, पहाड़ों, घाटियों, झील और महासागरों का देश है। भारत में मुख्य रूप से हिंदी भाषा बोली जाती है। ये एक ऐसा देश है जहाँ 29 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश है। ये मुख्य रुप से कृषि प्रधान देश है जो गन्ना, कपास, जूट, चावल, गेंहूँ, दाल आदि फसलों के उत्पादन के लिये प्रसिद्ध है। ये एक ऐसा देश है जहाँ महान नेता (शिवाजी, गाँधीजी, नेहरु, डॉ अंबेडकर आदि), महान वैज्ञानिकों (डॉ जगदीश चन्द्र बोस, डॉ होमी भाभा, डॉ सी.वी.रमन, डॉ नारालिकर आदि) और महान समाज सुधारकों (टी.एन.सेशन, पदुरंगाशास्त्री अलवले आदि) ने जन्म लिया। ये एक ऐसा देश है जहाँ शांति और एकता के साथ विविधता मौजूद है।

Essay on India in Hindi

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भारत का इतिहास | History of India in hindi (nibandh)

उत्तर में हिमालय पर्वत से घिरा, सुदूर दक्षिण में हिन्द महासागर तक फैला भारत एशिया महाद्वीप में स्थित देश है। विशिष्ठ भौगोलिक विविधताओं से भरा भारत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में शुमार किया जाता है। अकसर हमे विभिन अवसरों पर भारत के इतिहास के बारे में निबंध लेखन करना पड़ता है ऐसे में आवश्यक है की हम भारत के इतिहास के बारे में बेहतर और प्रभावशाली निबंध की रचना कर सकें। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको भारत के इतिहास पर निबंध (Essay on History of India in hindi) सम्बंधित जानकारी प्रदान करने वाले है

भारत का इतिहास | History of India in hindi (nibandh)

जिससे की आप भारत के इतिहास पर अर्थपूर्ण और प्रभावी निबंध तैयार कर सकेंगे। साथ ही Bharat ke itihash par nibandh आर्टिकल के माध्यम से आपको भारत का इतिहास निबंध पर विभिन प्रकार के सैंपल भी प्रदान किया जाएंगे जिससे की आप अपने निबंध को और भी प्रासंगिक, अर्थपूर्ण और सटीक बना पाएंगे। विभिन कक्षाओं के छात्रों के लिए यह आर्टिकल इंडियन हिस्ट्री पर निबंध की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

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भारत का इतिहास, निबंध

भारत का इतिहास बहुत ही विस्तृत एवं वृहद् है ऐसे में इस विषय को कुछ ही शब्दो में कवर करना आसान नहीं है। यहाँ दिए गए आर्टिकल Bharat ke itihash par nibandh के तहत आपको भारत के इतिहास पर निबंध को इस तरह से तैयार किया गया है की यह भारतीय इतिहास के सभी बिंदुओं को संक्षिप्तता से कवर करते हुए सभी कक्षा के बच्चों के लिए उपयोगी होगा। साथ ही विभिन छात्रों की जरूरत के अनुसार इस आर्टिकल को लघु, मध्यम और दीर्घ निबंध में बाँटा गया है जिससे की छात्र आसानी से अपनी सुविधानुसार निबंध का चयन कर सके। इसके अतिरिक्त इस आर्टिकल में छात्रों के स्तर को ध्यान रखते हुए सरल भाषा, आवश्यक तथ्यों तथा निबंध की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिन्दुओ का समावेश किया गया है ताकि सभी स्तर के छात्र इस आर्टिकल के माध्यम से लाभान्वित हो।

यह भी पढ़े Essay on My School in Hindi – मेरा विद्यालय पर निबंध हिंदी में कुपोषण क्या है निबंध, कारण, प्रकार, इलाज जातिवाद पर निबंध, अर्थ और इतिहास

भारत का इतिहास, लघु-निबंध

प्रस्तावना :- अनेकता में एकता, भारत की विशेषता

भारत एशिया महाद्वीप में स्थित देश है जिसे हिन्दुस्तान भी कहा जाता है। भारत विभिन धर्म और संप्रदाय को मानने वाले नागरिको का घर है। इस देश में गंगा, यमुना, गोदावरी जैसे पवित्र नदियाँ बहती है। वेदो का ज्ञान भारत के माध्यम से ही पूरे विश्व में फैला है।

यह देश महापुरुषों को भूमि रही है जहाँ समय-समय पर अनेक महापुरूषो ने जन्म लेकर इस देश की धरा को पवित्र किया है। महात्मा बुद्ध से लेकर स्वामी-विवेकानद और सुभाष चंद्र बोस से लेकर भगत सिंह जैसे वीरों ने समय-समय हमे पवित्र और साहसपूर्ण जीवन जीने का सन्देश दिया है। अनेकता में एकता, भारत की विशेषता कहावत हमारे देश के इतिहास के बारे में सम्पूर्ण वर्णन करती है।

विषय- भारत दुनिया के सबसे प्राचीन देशों में से एक है। हमारे देश का नाम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर भारत पड़ा है। प्राचीन काल से ही यह देश वीरों की भूमि रही है जहाँ अनेक वीरों ने जन्म लिया है।

इसी भारतवर्ष में महात्मा-बुद्ध और महावीर स्वामी द्वारा मानवता का सन्देश दिया गया है। भारत प्राचीन काल से विभिन संस्कृतियों का घर रहा है। भारत विविध संस्कृतियों के लोगो का निवास रहा है जिसमे की विभिन भाषा-बोली, खानपान, पहनावा और संप्रदाय के लोग हमेशा से ही मिलजुलकर रहते है।

प्राचीन भारत में हड़प्पा सभ्यता जैसी उन्नत सभ्यता निवास करती थी। हड़प्पा सभ्यता का यूरोपियन देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रहे है। भारत में सम्राट अशोक का साम्राज्य भारत के बाहर विदेशो तक भी फैला था जिन्होंने कलिंग युद्ध के बाद युद्ध ना करने का प्रण किया था। आज भी हमे सम्राट अशोक के शिलालेख विभिन स्थानों से प्राप्त होते है।

प्राचीन भारत अपने व्यापार के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था और इसी वजह से हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अपनी कला, संस्कृति और ज्ञान के कारण विदेशी यात्री समय-समय पर भारत के दर्शन को आते रहते थे। मध्यकाल में हमारे देश पर अनेक विदेश आक्रमण हुये जिससे की देश की वृहद आर्थिक हानि उठानी पड़ी। आधुनिक काल में मसालों की खोज में यूरोपियन यात्री हमारे देश में आये और हमारे देश को अपना उपनिवेश बना लिया।

अंग्रेजो के कारण हमारे देश को वृहद् पैमाने पर नुकसान हुआ और हमारे देश को 200 सालों की गुलामी झेलनी पड़ी। इस काल में महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार बल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल-नेहरू, भगत सिंह और बाल-गंगाधर तिलक जैसे अनेक महापुरुषों ने अपने संघर्ष के माध्यम से इस देश को आजादी दिलाई। महात्मा गाँधी द्वारा आजादी की लड़ाई के लिए अहिंसा का नारा दिया गया था। हमारे महापुरुषों और देश के नागरिको के संघर्ष की बदौलत 15 अगस्त को हमारा देश आजाद हुआ।

आजादी के पश्चात 26 जनवरी 1950 को हमारे देश का संविधान लागू हुआ जिसमे सभी नागरिको को समान अधिकार दिये गए है। भारत का इतिहास सदैव से ही मानवता का सन्देश देता है।

उपसंहार:- भारत का इतिहास प्राचीन समय से गौरवपूर्ण रहा है। दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में हमारे देश की सभ्यता शुमार रही है। प्राचीन काल से हमारा देश शक्तिशाली एवं समृद्ध रहा है।

हमारे देश में विभिन धर्मों के लोग प्राचीन काल से मिल जुलकर रहते आये है। हमारे देश में जब भी एकता में कमी आयी है विदेशी शासकों का द्वारा इस देश पर कब्ज़ा किया गया है। अंग्रेजों द्वारा भी हमारे समाज की कमजोरियों और एकता में कमी का फायदा उठाते हुए इस देश में 200 वर्षो तक राज किया गया। ऐसे में यह आवश्यक है की हम अपनी कमजोरियों और गलती से सबक लेकर एकता बनाये रखे और इस देश की एकता और अखंडता को सदैव बनाये रखें। अपने महापुरुषों द्वारा दी गयी सीख को अपनाकर हम अपने देश का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कर सकते है।

भारतीय इतिहास का निबंध

प्रस्तावना :- उत्तर में खड़ा विशाल हिमालय सदियों से ही भारत का इतिहास का गवाह रहा है। जिस प्रकार अनेक उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए हमारे देश का इतिहास गौरव की गाथा रहा है उसी प्रकार से उत्तर में स्थिति विशाल हिमालय अविचल खड़ा इस देश की गौरव गाथा का साक्षी रहा है।

भारत का इतिहास जीवन के सभी पहलुओ को खुद में समेटे है जहाँ आपको ज्ञान, संघर्ष, अनुभव और साहस की गौरव गाथा देखने को मिलती है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारत का इतिहास बदलावों का साक्षी रहा है जो की स्वयं में जीवन के सम्पूर्ण रहस्यों को समेटे हुए है।

हड़प्पा सभ्यता से शुरू होकर भारत का इतिहास स्वर्ण युग और विदेशी आक्रमण और औपनिवेशिक गुलामी से पुनः विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर होने की कथा है। भारत की विविधता की तरह इस देश का इतिहास भी विविधता का चोगा ओढ़े हुए है जहाँ आपको परत-दर-परत नवीन रोशनी देखने को मिलती है।

विषय- भारत को प्राचीन-काल में आर्यव्रत, जम्बूद्वीप और हिन्दुस्तान नाम से जाना जाता रहा है। हिन्दुस्तान शब्द हिन्दू से उत्पन हुआ है। प्राचीन समय में ईरानी लोगों द्वारा उत्तर में प्रवाहित सिंधु नदी के कारण इस देश को सिंधु कहा जाता था जो की अपभ्रंश के कारण हिन्दू उच्चारित किया जाने लगा और इस देश के निवासियों के लिए यह नाम ही प्रचलित हो गया।

प्राचीन समय से ही भारत में दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में शुमार हड़प्पा सभ्यता का निवास था। यहाँ प्राचीन काल से ही विभिन सम्राटों शासन रहा है जिन्होंने इस महाद्वीप के विस्तृत भूभाग पर शासन किया है। भारत के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध शासक के रूप में शुमार सम्राट अशोक के द्वारा इस देश की सीमाएँ भारतीय उपमहाद्वीप की सीमाओं को स्पर्श करती थी।

कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक के द्वारा सम्पूर्ण दुनिया में अहिंसा का सन्देश दिया गया था। इस प्रकार से अहिंसा प्राचीन काल से ही हमारे समाज का प्रमुख अंग रही है जिसका गांधीजी द्वारा अपने जीवन में पूर्ण रूप से पालन किया गया था।

भारत का प्राचीन इतिहास देश के स्वर्ण काल में शुमार किया जाता है जिसका कारण इस काल में स्थापत्य कला, कला, संस्कृति और जीवन के विभिन क्षेत्रों में नवोन्मेषण होना है। प्राचीन भारत को देश के इतिहास में आधारभूत मानक मानकर देश का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मूल्याङ्कन किया जाता है।

भारत के मध्यकालीन इतिहास को अधिकांश इतिहासकार देश के इतिहास की दृष्टि से गौरवपूर्ण नहीं मानते है। इसका मुख्य कारण इस काल में विदेशी शासकों का देश पर बारम्बार आक्रमण और देश की अर्थव्यस्था की गिरती स्थिति को देखकर अनुमान लगाया जाता है। हालांकि मध्यकाल को सिर्फ विदेशी शासको की दृष्टि से देखना उचित नहीं है।

इस काल में देश के विभिन भागों में स्वतंत्र देशी रियासतें भी शासन कर रही थी। साथ ही इस काल में हमारे देश का बाह्य दुनिया के साथ ही बेहतर सम्पर्क स्थापित हो पाया जिससे की देश में नवोन्मेषण के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ था।

इस काल में भारत में विविध संस्कृतियों के साथ हमारे देश का संपर्क हुआ जिससे की देश में सांस्कृतिक सामंजस्य के लिए भी मार्ग खुला था। हालांकि इस काल में विदेशी शासको द्वारा भारत पर सम्पति अर्जित करने के लिए अनेक प्रयास किया गए थे जिससे की देश को विभिन प्रकार से नुकसान उठाना पड़ा था।

इस काल में देश में विभिन धर्मो के आने से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विविधता बढ़ी जिसको की हम मध्यकाल की स्थापत्य कला, खानपान, रहन-सहन, रीति-रिवाज और जीवन के प्रत्येक पहलुओ में देख सकते है। देश में हुए व्यापक सामाजिक परिवर्तन इस काल की विशेषता रहे है।

भारत ने जब आधुनिक युग में अपनी आँख खोली तो स्वयं को औपनिवेशिक गुलामी में जकड़ा हुआ पाया। भारत में मसालों और अन्य कीमती सामानों के व्यापार के सिलसिले में आये अंग्रेजो ने इस देश को ही अपना उपनिवेश बना डाला।

हमारी आंतरिक कमजोरियों और आपसी लड़ाई-झगडे का फायदा उठाते हुए अंग्रेज जो की प्रारंभिक में सिर्फ व्यापार के उद्देश्य से इस देश में आये थे इस देश के मालिक बन बैठे। औपनिवेशिक काल में अंग्रेजो द्वारा इस देश के आर्थिक संसाधनों का जमकर दोहन किया गया और इस देश के संसाधनों को अपने हित की पूर्ति के लिए बड़े स्तर पर विदेश भेजा गया।

कहा जाता है की हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है इसी के परिणामस्वररूप जब देश औपनिवेशिक शासन की जंजीरो से परेशान हो गया तो इस देश में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया और अपने दृढ साहस और संकल्प के बल पर इस देश को गुलामी की जंजीरो से आजाद करवाया। भारत की आजादी का संग्राम पूरी दुनिया में आदर्श स्वतंत्रता आंदोलन के रूप में पढ़ाया जाता है।

15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली। अपने औपनिवेशिक शासन काल के दौरान अंग्रेज इस देश का वृहद् स्तर पर आर्थिक और सामाजिक शोषण कर चुके थे यही कारण रहा की हमे आजादी में मिला देश एक ऐसा सोने की चिड़िया थी जिसके परों को नोचा जा चुका था।

हालांकि जैसे हमारे देश का हमेशा से ही इतिहास रहा है की जब भी इस देश पर कोई संकट आता है तो देश के संप्रदाय के लोगो ने अपनी सभी प्रकार की पहचान को भूलकर सिर्फ इस देश के निवासी के रूप में स्वयं की पहचान की और इस देश को पुनः सोने की चिड़िया बनाने के प्रयासों में जुट गए।

इस देश के साहसी और दृढ इच्छाशक्ति वाले नागरिको के परिश्रम का ही नतीजा रहा की आज यह देश पुनः विश्व पटल पर अपने पुराने गौरव को प्राप्त करने की राह पर चल पड़ा है।

उपसंहार:- भारत के इतिहास में देश को विभिन प्रकार की परिस्तिथियों का सामना करना पड़ा है। जहाँ हमे प्राचीन काल में सोने की चिड़िया होने का गौरव प्राप्त था वही इतिहास के कुछ ऐसे कालखंड रहे है जहाँ भारत को विदेशी गुलामी का सामना करना पड़ा है।

जब ही हम अपनी दृष्टि देश के अवनतिकाल पर डालते है तो हमे साफ़ रूप से नजर आता है की हमारे देश में एकता और परस्पर सामंजस्य की कमी के कारण ही हमे विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा है और अपनी कमजोरियों के कारण हमे इतिहास में इस प्रकार के कालखंड भी देखने पड़े है।

हालांकि जब-जब हमे देश के इन कालखंडो को देखते है तो हमे यह भी साफ़-साफ़ नजर आता है की चाहे कैसी भी परिस्थितियां रही हो अपनी एकता के बल पर हमने पुनः अपने देश की बड़ी-बड़ी मुश्किलों से बाहर निकाला है और वर्तमान में भी हमारे महापुरुषों द्वारा दिखाया गया मार्ग हमे देश के इतिहास को पुनः बेहतर बनाने की प्रेरणा देता है।

भारत का इतिहास, दीर्घ-निबंध

प्रस्तावना :- भारत का इतिहास प्राचीन समय से ही गौरवपूर्ण रहा है। भारत का इतिहास इस देश की विभिन गौरवशाली परम्पराओ, संस्कृति एवं रीति-रिवाजो में दृष्टिगोचर होता है। देश का इतिहास इस देश के प्राचीन गौरव से लेकर विभिन संस्कृतियों के इस देश में आगमन और इतिहास के विभिन कालखंडो में देश में इतिहास में आये व्यापक परिवर्तन की कहानी है।

भारत के इतिहास में हमे विभिन समयों पर संगृहीत किये गए समृद्ध अनुभव साफ़ रूप से दिखाई पड़ते है साथ ही विभिन संस्कृतियों को स्वयं के अंदर समाहित करने की कला का भी दृष्टांत जगह-जगह दिखाई पड़ता है। भारत के इतिहास को विभिन इतिहासकारों द्वारा लेखनबद्ध किया गया है। इसमें भारत के साथ-साथ विदेशी इतिहासकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत के इतिहास का सबसे अधिक वर्णन हमे प्राचीन ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथो से मिलता है।

विषय- प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथो में भारत को आर्यव्रत, जम्बूद्वीप और भारत एवं भारतवर्ष नाम से सम्बोधित किया गया है। भारत के इतिहास के बारे में अध्ययन विद्वानों के द्वारा मुख्यत ऐतिहासिक ग्रंथो, धार्मिक ग्रंथो, विदेशी लेखकों के वर्णन एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया जाता है।

विभिन पुरातात्विक खोजो के आधार पर इस देश के इतिहास पर नवीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण पड़ा है वही भारत के विभिन कालखंड के बारे में विदेशी शासको के यात्रा वृतांतो के आधार पर हमे इस देश के इतिहास के बारे में विदेशी निवासियों के दृष्टिकोण का पता चलता है।

आधुनिक विभाजन के आधार पर भी इस देश के इतिहास को मुख्यत 3 भागो में विभाजित किया जाता है जिसे क्रमश प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारत के इतिहास के सन्दर्भ में देखा जाता है।

भारत के इतिहास को विभिन लेखकों के द्वारा विभिन दृष्टिकोण के आधार पर लिखा गया है ऐसे में हमे विभिन लेखकों के नजरिये से इस देश के इतिहास को जानने का मौका मिलता है। भारत के इतिहास के सदैव से ही जन (जनता) को प्रमुख स्थान दिया जाता रहा है यही कारण है की इतिहास में सबसे प्रमुख स्थान जन का इतिहास, संस्कृति, जीवन, दृष्टिकोण एवं नजरिया होता है।

प्राचीन भारत का इतिहास जानने का सबसे प्रमुख स्रोत ऐतिहासिक ग्रंथ रहे है। भारत के इतिहास की शुरुआत प्राचीन काल की सभ्यताओं में शुमार हड़प्पा सभ्यता से होती है। हड़प्पा सभ्यता के समय काल को लेकर विद्वानों में मतभेद है हालांकि नवीन वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं कार्बन डेटिंग के आधार पर इस सभ्यता का सामान्य समयकाल 2400 ई. पू. से लेकर 1700 ई. पू. माना गया है।

हड़प्पा सभ्यता दुनिया की सबसे आधुनिक सभ्यताओं में से एक मानी जाती है जिसका प्रमाण इस नगर के लोगो द्वारा सुनियोजित नगर प्लान एवं स्वछता को दृष्टिगत रखते हुए बेहतर ड्रेनेज व्यवस्था है। हड़प्पा सभ्यता के आधार पर कहा जा सकता है की हमारा देश प्राचीन काल से ही दुनिया की प्राचीन एवं वैज्ञानिक सभ्यता का निवास रहा है।

हड़प्पा सभ्यता के पश्चात इस देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में ऋग्वेदिक सभ्यता शुरू हुयी जो की मुख्यता ग्रामीण सभ्यता थी। ऋग्वेदिक सभ्यता के निवासियों को आर्य कहा जाता है। कई इतिहासकारों जिनमे की विदेशी इतिहासकार प्रमुख है ने आर्यों के निवास स्थान को भारत के बाहर दर्शाने का प्रयास किया है जो की निराधार साबित होता है। प्राचीन समय में आर्य शब्द का प्रयोग जाति के लिए ना होकर भाषा के लिए प्रयुक्त होता था।

ऋग्वेदिक काल भारत के धार्मिक इतिहास के लेखन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है चूँकि इस काल में ही देश के महान धार्मिक ग्रंथो में अधिकतर ग्रंथ लिखे गए थे। दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथो में शुमार वेदों की रचना वैदिक काल में की गयी थी।

इसके अतिरिक्त भारतीय इतिहास के दार्शनिक ग्रंथों, अरण्यक, ब्राह्मण ग्रन्थ और उपनिषदों की रचना भी इसी काल में की गयी थी। वैदिक काल के पश्चात देश में महाजनपद काल का उदय हुआ। इस दौरान देश में मगध प्रमुख राज्य के रूप में उभरा। महाजनपद काल में भारत में बौद्ध और जैन धर्मो का भी उदय हुआ।

महात्मा-बुद्ध द्वारा शुरू किये गये बौद्ध धर्म का पूरे विश्व की मानस चेतना पर गहरा प्रभाव रहा है यही कारण है की दुनिया में विभिन देशो में यह धर्म तेजी के साथ फैला। भगवान बुद्ध द्वारा दिया गया अहिंसा का सन्देश प्राचीन काल से ही हमारे देश की जड़ों में रहा है और सदैव से ही हमारे देश ने इस नीति का अनुसरण किया है।269 में मगध की गद्दी पर सम्राट अशोक का राजतिलक हुआ। अशोक द्वारा कलिंग के युद्ध के भीषण रक्तपात को देखकर आत्मगलानि के फलस्वरूप युद्ध ना करने का संकल्प लिया गया एवं पूरे विश्व में अहिंसा का प्रचार-प्रसार किया गया।

मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में मेगस्थनीज द्वारा लिखी गयी पुस्तक इंडिका भारत के इतिहास को जानने का प्रमुख स्रोत रही है जिसके आधार पर भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती है। मौर्य साम्राज्य के पश्चात देश के इतिहास में गुप्त साम्राज्य के समयकाल को स्वर्णकाल की संज्ञा दी गयी है। वर्धन वंश के शासक हर्षवर्धन के द्वारा भारत में विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की गयी थी जिसके पश्चात देश में अन्य छोटे-छोटे शासको का शासन स्थापित हो गया।

मध्यकाल में भारत पर सबसे पहला विदेशी आक्रमण 712 ई. में हुआ जब मुहम्मद बिन कासिम के द्वारा भारत के पश्चिमी सीमा-प्रान्त पर स्थित सिंध पर आक्रमण किया गया था। अरबो की सिंध विजय का वर्णन चचनामा पुस्तक में लिखित मिलता है। सिंध पर विजय के पश्चात भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों का ताँता लग गया और इसके पश्चात 1000 ई. में देश पर महमूद गजनी एवं 1175 में मुल्तान पर मुहम्मद गौरी का आक्रमण हुआ। मुहम्मद गौरी द्वारा तराइन के द्वितीय युद्ध में विजय प्राप्त करके यहाँ अपना गुलाम नियुक्त किया गया जिसे की भारतीय इतिहास में कुतुबद्दीन ऐबक के नाम से जाना जाता है।

कुतुबद्दीन ऐबक के द्वारा दिल्ली में 1206 ई. में गुलाम वंश की नींव डाली गयी थी जिसके पश्चात देश में सल्तनत शासन के अंतर्गत विभिन शासको ने शासन किया। गुलाम वंश में रजिया सुल्तान जो संभवता एक मात्र महिला शासिका थी दिल्ली की गद्दी पर 1236 से 1240 तक शासिका रही। इसके पश्चात दिल्ली की गद्दी पर खिलजी वंश का शासन रहा। सल्तनत शासनकाल के दौरान भारत में विभिन प्रकार के सामाजिक व्यवस्थायें उत्पन हुयी जिससे की देश की अर्थव्यस्था में व्यापक परिवर्तन हुआ।

खिलजी वंश के पश्चात भारत में तुगलक वंश का शासन प्रारम्भ हुआ। तुगलक वंश के शासक मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल में मोरक्को से विदेशी यात्री इबन-बतूता भारत आया जिसके द्वारा रिहला यात्रा वृत्तांत लिखा गया।

इबन-बतूता के रिहला में तत्कालीन भारत के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है जिसके माध्यम से हम भारत के मध्यकाल के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है। तुगलक वंश के पश्चात भारत में सैय्यद वंश का शासन एवं तत्पश्चात लोदी वंश का शासन प्रारम्भ हुआ।

लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को पानीपत की प्रथम लड़ाई में हराकर मुग़ल बादशाह बाबर द्वारा हमारे देश में मुग़ल वंश की नीव रखी गयी। भारत के इतिहास की दृष्टि से मुग़ल वंश का शासन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस काल के दौरान ही हमारे देश में व्यापक परिवर्तन हुए एवं विभिन समुदायों के मध्य वैचारिक आदान प्रदान के माध्यम से भारतीय समाज ने नया रूप लिया।

बाबर मध्य एशिया में स्थित तुर्की देश से आया शासक था जिसने की पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्रहिम लोदी को परास्त करके दिल्ली की गद्दी पर कब्ज़ा किया। मुग़ल काल में हमारे देश में विभिन संस्कृतियों के मध्य सामंजस्य के कारण विभिन नवीन सामाजिक व्यवस्थाएँ एवं चलन हुए।

मुग़ल काल में बादशाह अकबर को सबसे महान शासक में शुमार किया जाता है चूँकि अकबर के शासन काल में विभिन समुदायों के लोगो के मध्य आपसी भाईचारा आदर्श स्थिति में था। मुग़ल शासन के दौरान देश में स्थापत्य, कला एवं खानपान में नवीनता प्रकट हुयी एवं इस दौरान कई नयी चीजों का देश में उद्भव हुआ।

हालांकि मध्य काल को सिर्फ मुग़ल काल मानना सही दृष्टिकोण नहीं है चूँकि इस काल में देश विभिन भागों में स्वतंत्र रियासतें भी अपना शासन कर रही थी। इसके अतिरिक्त देश के विभिन भागों में भी विभिन संस्कृतियाँ फल-फूल रही थी। प्राचीन काल से ही भारत विभिन सभ्यताओं एवं समुदायों का निवास स्थान रहा है। भारत का विदेशी सभ्यताओं एवं देशों के साथ हड़प्पा सभ्यता के काल से ही धार्मिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध रहे है।

प्राचीन काल से भारत अपने मसालों एवं रेशमी वस्त्रो के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था। खासकर यूरोप के बाजारों में भारत की काली-मिर्च बहुत प्रसिद्ध थी जिसे की प्रायः वहां काला सोना के नाम से सम्बोधित किया जाता था। इसके अतिरिक्त विदेशी बाजारों में भारत में निर्मित होने वाली अन्य वस्तुओ की भी अच्छी खासी मांग थी।

भारत की अर्थव्यवस्था 17वीं शताब्दी में विश्व के अग्रणी देशों में शुमार थी यही कारण रहा की विभिन विदेशी व्यापारी भारत से व्यापार करने को उत्सुक रहते थे। 16वीं शताब्दी में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ-प्रथम के द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ व्यापार का एकाधिकार प्रदान किया किया गया।

इसके पश्चात अंग्रेजो द्वारा भारत के विभिन भागो को एक- एक करके अपना उपनिवेश बनाया गया और इस देश का आर्थिक दोहन करना शुरू कर दिया गया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी प्रारम्भ में एक कंपनी के रूप में भारत आयी थी जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापार करना था। भारत में व्यापार के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा देश की कमजोरियों का फायदा उठाकर इस देश को गुलामी की जंजीरो में धकेल दिया गया जिसके फलस्वरूप देश में औपनिवेशिक शासन प्रारम्भ हुआ।

भारत के उपनिवेशवाद में पलासी का युद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है जिसे देश की पराधीनता के प्रथम चरण के रूप में जाना जाता है। भारत की पराधीनता के दौरान अंग्रेजो द्वारा हमारे देश को सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से गुलाम बनाये रखने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे गए।

औपनिवेशिक काल के दौरान देश में अंग्रेजो के अत्याचारों के फलस्वरूप देश की जनता में आक्रोश बढ़ने लगा। इस समयकाल में अनेक महापुरुषों के द्वारा हमारे देश को गुलामी की जंजीरो से मुक्ति दिलाने के लिए कठिन संघर्ष किया गया और देश को विदेशी शासन के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपना सर्वश्व दांव पर लगा दिया गया।

हमारे आजादी के संग्राम में महात्मा गाँधी द्वारा पूरे देश को आजादी की लड़ाई में एकजुट करने के लिए दिया गया योगदान अतुलनीय है जिसमे की गांधीजी द्वारा सत्य और अहिंसा का व्यापक प्रयोग किया गया। यही कारण रहा की भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिकतर अहिंसक रहा एवं देश की अंतत विदेशी शासन से आजादी मिली।

स्वतंत्रता के पश्चात हमारे देश के द्वारा विभिन क्षेत्रों में अभूतपूर्व तरक्की की गयी है जिस कारण से हमारा देश पुनः अपने गौरव को प्राप्त करने की राह पर है।

उपसंहार:- भारत का इतिहास विभिन अनुभवो का निचोड़ रहा है यही कारण है की हमे भारत के इतिहास में विभिन पहलू देखने को मिलते है। भारत के इतिहास में विभिन दृष्टांतो को ध्यान में रखते हुए हमे विभिन अनुभवों से सीख लेकर देश के इतिहास को और भी गौरवशाली बनाने की आवश्यकता है।

इतिहास के बारे में कहा जाता है की इतिहास स्वयं को दोहराता है। अगर हम भारत के इतिहास के दृष्टिकोण से इस कहावत को देखें तो यह वास्तव में सत्य प्रतीत होता है। भारत का इतिहास भी प्राचीन काल में हड़प्पा सभ्यता के सुनहरे युग से शुरू होकर पुनः विभिन कालखंड में पतन की कहानी है। औपनिवेशिक गुलामी से आजादी एवं पुनः दुनिया के सम्पन देशों में अपनी पहचान बनाने की ओर अग्रसर भारत का इतिहास हमे सदैव की रोमांचित करता है।

भारत के इतिहास पर निबंध सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

भारत के इतिहास को कितने भागो में बाँटा गया है ?

भारत के इतिहास को 3 भागो में बाँटा गया है :- प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारत

प्राचीन भारत के अंतर्गत कौन सी घटनाएँ प्रमुख है ?

प्राचीन भारत के अंतर्गत सिंधु घाटी सभ्यता, ऋग्वेदिक सभ्यता, महाजनपद काल एवं मौर्य शासन का वर्णन प्रमुख रूप से आता है।

भारत के इतिहास पर निबंध  कैसे लिखे ?

भारत के इतिहास पर निबंध के लिखने के लिए आपको ऊपर दिए आर्टिकल में विभिन सैंपल दिए गए है। इन सैंपल की सहायता से आप अपना निबंध तैयार कर सकते है।

बेहतर निबंध लिखने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?

बेहतर निबंध लिखने के लिए आपको विषयवस्तु के आस-पास रहकर बिंदुवार सभी आवश्यक तथ्यों को निबंध में शामिल करना आवश्यक है। इस प्रकार आप बेहतर निबंध की रचना कर सकते है।

निबंध के प्रमुख भाग कौन-कौन से होते है ?

निबंध की शुरुआत में आपको प्रस्तावना में निबंध का मूलभूत विषय, मध्य में मुख्य विषय और अंत में उपसंहार में निष्कर्ष की रचना करनी होती है।

भारत के इतिहास पर निबंध  के लिए बिंदु कैसे तैयार करें ?

भारत के इतिहास पर निबंध के लिए भारत के इतिहास के सभी प्रमुख बिन्दुओ का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके आधार पर आप अपने बिंदु तैयार कर सकते है। इसके लिए इतिहास के प्रमुख बिन्दुओ का अच्छे से अध्ययन कर लें।

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आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi (Brief Notes)

आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi (Brief Notes)

आज हमने इस आर्टिकल में आधुनिक भारत के  इतिहास (Modern History of India in Hindi) के बारे में लिखा है। भारत का यह इतिहास हमें महान नेताओं के संघर्ष को याद दिलाता है। यह लेख हमने स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए लिखा है जिससे की वे अपनी परीक्षाओं के लिए इस लेख से मदद ले सके।

Featured Image – Wikimedia

इसमें हमने सन के अनुसार स्टेप में नोट्स दिया है। इस आधुनिक भारत के इतिहास अनुच्छेद में हमने निम्नलिखित चीजों के विषय में विस्तार से बताया है – 

  • सन 1857 का विद्रोह
  • उदारवादी चरण
  • उग्रवादी चरण

यह सभी भाग मिलकर भारत का आधुनिक इतिहास बनता है। तो आईये शुरू करते हैं –

Table of Contents

सन 1857 का विद्रोह Revolt of 1857 in Hindi

  • 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने बैरकपुर में गाय की चर्बी से बने कारतूस को मुह से काटने से मना कर दिया था। फलस्वरूप उसे गिरफ्तार करके 8 अप्रैल 1857 को उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया। इससे सन 1857 के विद्रोह को चिंगारी जी लग गई।
  • इस महान विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई थी। इस विद्रोह में झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का भी प्रमुख योगदान रहा। इसके दौरान झाँसी भी इस विद्रोह का मुख्य केंद्र बन गया।
  • साथ ही दिल्ली में बहादुर शाह ज़फर, कानपुर में तात्या टोपे, लखनऊ में बेगेम हज़रत महल, बिहार से कुअंर सिंह और बरेली से खान बहादुर खा ने इस विद्रोह में अहम योगदान दिया।
  • इस विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल- लॉर्ड कैनिन था।

नरमपंथी या उदारवादी चरण Freedom Struggle: Moderate Phase in Hindi

सन 1885 में अंग्रेजों ने भारत में दोबारा से अपना राज्य स्थापित कर लिया था। जिसके कारण भारत के जनता को बहुत कष्ट हुआ। तब भारत के जनता के मन में एक विचार आया कि क्यों ना एक राजनीतिक पार्टी की शुरुवात की जाये, जो की देश की ज़रूरतों को ब्रिटिश सरकार को बता सके। इस प्रकार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। कांग्रेस की स्थापना के बाद वहां का गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन था।

जब कांग्रेस की स्थापना हुई थी तब अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। कांग्रेस की स्थापना के संस्थापक ए. ओ. ह्यूम थे। इन्हें हरमीत ऑफ शिमला भी कहा जाता है। इसका पहला अधिवेशन जिसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था वह मुंबई में हुआ था। और यह व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी  की अध्यक्षता में हुआ था।

सन 1886 कांग्रेस पार्टी पूरे भारत देश में फैल गई थी और एक राष्ट्रवादी पार्टी बन कर उभरी।

सन 1887 में दादाभाई नौरोजी जी ने इंग्लैंड में भारत सुधार समिति की स्थापना की थी। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों का विरोध करना। 1887-91के बीच कांग्रेस के बहुत सारे अधिवेशन हुए उस अधिवेशन में कांग्रेस के मुस्लिम अध्यक्ष बदरुद्दीन तैयब जी थे और पहले कांग्रेस के अंग्रेज अध्यक्ष जॉर्ज जूल थे।

सन 1892 दादाभाई नौरोजी ने इंग्लैंड के फिंसवरी नामक जगह से सांसद का चुनाव लड़ा और इंग्लैंड के सांसद पहुंचने वाले पहले भारतीय दादा भाई नौरोजी बने थे।

इन सभी नेताओं ने नियमों का पालन करते हुए ब्रिटिश शासन को भारत के हित में कार्य करने के लिए मजबूर किया था। इसलिए ऐसे नेता जो अपनी मांगों को अंग्रेजों के सामने प्रार्थना पत्र और शिष्टाचार के माध्यम से रखते थे उन्हें नरमपंथी कहा गया और इस इतिहास को उदारवादी चरण कहा गया। उदाहरण के लिए – दादाभाई नौरोजी, गोविंद रनाडे, गोपल कृष्ण गोखले,और मदन मोहन मालवीय उदारवादी नेता थे।

पढ़ें: मेरे सपनों का भारत पर निबंध

उग्रवादी नेता और उग्रवादी चरण Extremist Phase in Hindi

लाल, बाल, पाल (लाल से लाला लाजपत राय,  बाल से बाल गंगाधर तिलक तथा पाल से बिपिन चंद्र पाल) और अरविंद घोष कुछ प्रमुख उग्रवादी नेता थे।

बंगाल में बढ़ते राष्ट्रवाद को देखते हुए 20 जुलाई 1960 को बंगाल के गवर्नर लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा कर दी। जिसके विरोध में 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता में स्वदेशी आंदोलन (बंग,भंग) आरंभ किया गया। जिसका नेतृत्व सुरेंद्रनाथ बनर्जी कर रहे थे। फिर भी 15 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन कर दिया गया।

सन 1906 में आगा खां और सलीम खां ने बांग्लादेश के ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना कर दी। जिसका संविधान कराची में बना और पहली मीटिंग अमृतसर में आयोजित की गई थी।

सन 1907 में कांग्रेस का सूरत अधिवेशन आयोजित किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता रासबिहारी बोस ने की थी। इसी अधिवेशन में कांग्रेस नरम दल और गरम दल में बट गई।

सन 1908-1910

सन 1910 तक कई क्रांतिकारी गतिविधियाँ चले और कई क्रांतिकारियों ने बलिदान भी दिया, इसमें पहले युवा क्रांतिकारी- खुदीराम बोस तथा पहले मुस्लिम युवा क्रांतिकारी- अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ थे।

सन 1911-1912

लॉर्ड हार्डिंग बंगाल का गवर्नर जनरल बना, और गवर्नर जनरल बनते हैं बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया। और भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली बनाने का घोषणा कर दिया गया। 1912 में भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली बन गई।

जल्द ही लाला हरदयाल ने सेनफ्रांसिस्को में गदर पार्टी की स्थापना कर दी। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों को सक्रिय करना था और इस पार्टी के प्रथम अध्यक्ष सोहन सिंह भाखनाथ थे।

1916 में 2 अधिवेशन हुए थे, होमरूल लीग की स्थापना तथा कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन। होम रूल लीग की स्थापना का उद्देश्य भारत में स्वशासन की स्थापना करना था। पुणे में बाल गंगाधर तिलक ने इसकी स्थापना की थी तथा मद्रास में एनी बेसेंट ने की थी।

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिका चरण मजूमदार कर रहे थे। तथा 1916 में कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन में गरम दल और नरम दल एक साथ मिल गए थे।

सन 1917 में कांग्रेस में कोलकाता अधिवेशन की अध्यक्ष एनी बेसेंट बनी और वह कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष भी थी ।

बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak

बाल गंगाधर तिलक को गरम दल आंदोलन का पिता कहा जाता है। ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा’ यह बाल गंगाधर तिलक का कथन है। उन्होंने साप्ताहिक पत्रिका केसरी और गीता रहस्य नामक ग्रंथ लिखा।

बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति के जनक भी कहा गया है और उनको ऐसा कहने वाले वैलेंटाइन शिरोल है। महाराष्ट्र में गणपति उत्सव आरंभ करने का श्रेय भी श्री बाल गंगाधर तिलक को ही जाता है।

गांधी युग Gandhi era in Hindi

सन 1915 में गांधी जी अफ्रीका से लौटे। महात्मा गांधी भारत लौटते ही भारतीयों से प्रथम विश्वयुद्ध में पैसा लेने को कहा था। जिसके कारण महात्मा गांधी को भर्ती करने वाला सर्जट कहा गया।

महात्मा गांधी को ब्रिटिश सरकार द्वारा कैसर ए हिंद उपाधि द्वारा सम्मानित किया गया। महात्मा गांधी ने यह उपाधि असहयोग आंदोलन के कारण त्याग दिया था।

सन 1917 में गांधी जी का आंदोलन प्रारंभ हो गया था। महात्मा गांधी जी ने सबसे पहला आंदोलन बिहार के चंपारण  जिले में शुरू किया था। यह आंदोलन नील की खेती में लगने वाले टैक्स के विरोध में था। उसके बाद दूसरा आंदोलन गुजरात के खेड़ा जिले में शुरू किया था और तीसरा आंदोलन अहमदाबाद में मजदूर के साथ भूख हड़ताल।

यह तीनों आंदोलन कामयाब रहे जिसके कारण ब्रिटिश सरकार दबाव में आ गई थी और ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित करने का निर्णय लिया।

19 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित कर दिया। अलीपुर बम कांड में सैफुद्दीन किचलू को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद पूरे भारत देश में व्यापक पैमाने में विरोध किया गया। 

विरोध को जगाने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग पर एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ। बंद जलियांवाला बाग में जर्नल डायर ने भारतीय लोगों पर गोलियों की अंधाधुंध बारिश कर दी जिससे लगभग 400 भारतीय मारे गए। इस घटना को जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।

इस घटना के बाद रविंद्र नाथ टैगोर ने सर की उपाधि त्याग दी थी। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड थे। 19 अक्टूबर 1919 को एक कमीशन इस घटना की जांच के लिए नियुक्त हुआ जिसे हंटर कमीशन बोला गया।

सन 1920-1926

1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया। लेकिन 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर के चौरी चौरा हत्याकांड के कारण यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया। क्योंकि एक पुलिस स्टेशन पर किसानों ने आग लगा दी थी, और कई लोग उसमें मारे गए थे। गांधी जी पूर्ण रूप से हिंसा के खिलाफ थे इसलिए उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया।

सन 1923 इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरु और चितरंजन दास ने मिल कार स्वराज पार्टी का गठन किया। भारत में संविधान बनाना इसका मुख्य उद्देश्य था।

1924 कांग्रेस अधिवेशन कर्नाटक के बेलगांव में हुआ था इसके अध्यक्षता गांधीजी थे। 1926 में अखिल भारतीय संघ की स्थापना हुई थी।

सन 1927 भारत का संविधान बनाने के लिए साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई और इससे 3 फरवरी 1928 को भारत में प्रवेश किया गया। इसका सभी सदस्य अंग्रेज होने के कारण इसका विरोध किया गया और पूरे भारत देश में साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगने लगे। मुख्य रूप से इनका विरोध लाला लाजपत राय ने किया था। लाठियों के प्रहार से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।

सन 1928-29 

सन 1928 को नेहरू रिपोर्ट बनाया गया। इसकी अध्यक्षता अंसारी और नेहरु जी ने की थी। 1929 कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में लागू हुआ और इसके अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू जी ने किया। इसी अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया गया था। इस अधिवेशन में दो मुख्य बातें निकल कर आई-

  • संविधान बनाने के लिए गोलमेज सम्मेलन के बारे में चर्चा की गई।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया।

सन 1930 गोलमेज सम्मेलन

प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 में हुआ तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1931 में और तृतीय गोलमेज सम्मेलन 1932 में हुआ। इन तीनों सम्मेलनों में भारत का संविधान 40% पूरा हो गया। भीमराव अंबेडकर जी ने तीनो गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लिया था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ 1930

कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की ज़िम्मेदारी महात्मा गांधी को दी थी। गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने से पहले वायसराय अरविंद को एक मांग पत्र भेजा था जिसे उन्होंने  खारिज कर दिया था।

इसके फलस्वरूप गांधी जी ने साबरमती आश्रम से 78 अनुयायियों के साथ दांडी मार्च किया और 6 अप्रैल 1930 को दांडी में नमक कानून तोड़ा। इसके फलस्वरूप सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हो गया। 

सन 1931-1935

1931 में गांधी इरविन समझौते के साथ यह आंदोलन बंद हो गया और इसके बाद ही महात्मा गांधी ने द्वितीय सम्मेलन में हिस्सा लिया था। 1935 में भारत सरकार सुधार अधिनियम पारित किया गया जिसके फलस्वरूप सांसदों की सीटें निर्धारित की गई निर्धारित सीटों से मुस्लिम वर्ग सहमत नहीं थी।

सन 1940 – पाकिस्तान की मांग History of Demand of Pakistan in Hindi

1940 मोहम्मद अली जिन्नाने अलग पाकिस्तान बनाने की मांग कर दी। 

सन 1942-1947 संविधान का निर्माण और भारत विभाजन और स्वतंत्रता The Making of Indian Constitution

1942 क्रिप्स मिशन आया जिसमें भारत का संविधान 60% बनकर तैयार हो गया उस समय भारत का वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो थे। 1946 मे कैबिनेट मिशन हुआ इस मिशन के अंतर्गत भारत का संविधान बनकर तैयार हो गया।

1947में लॉर्ड माउंटबेटन के अनुसार भारत और पाकिस्तान को दो अलग देश बना दिए गए। भारत और पाकिस्तान के बीच एक रेखा तय किए गए उस रेखा को रेडक्लिफ रेखा कहां गया। इस प्रकार कई वर्ष गुलामी के बाद भारत स्वतंत्र हो गया, और इसका संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया।

आशा करते हैं आपको भारत के आधुनिक इतिहास की पूर्ण जानकारी वर्ष अनुसार से मदद मिली होगी। 

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आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi

आज के इस लेख में हम आपको आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History of India in Hindi) बताएँगे। भारतीय इतिहास काफी ज्यादा समृद्ध है और अन्य देशों के मुकाबले भारतीय इतिहास काफी ज्यादा विस्तृत भी है। इस लेख को विद्यार्थी एक निबंध के रूप में भी परीक्षा में लिख सकते हैं।

भारत के इतिहास में बहुत सारे घटनाक्रम मौजूद हैं जो कि यह दर्शाते हैं कि भारतीय इतिहास कितना अधिक महत्वपूर्ण है। यह इतिहास काफी ज्यादा विस्तृत है इस कारण इसे प्रमुख तौर पर तीन खंडों में बांटा गया है। भारत के आधुनिक इतिहास को शुरू करने से पहले हम आपको प्राचीन भारत और मध्यकालीन भारत के विषय में लागु रूप से पहले जान लें।

Table of Content

प्राचीन भारत (Ancient India)

प्राचीन भारत, भारतीय इतिहास के सभी खंडों में काफी ज्यादा विस्तृत है। भारतीय प्राचीन इतिहास के सभी तथ्य अब तक सामने नहीं आए हैं। भारतीय प्राचीन इतिहास का प्रारंभ पाषाण युग से लेकर, गुप्त साम्राज्य तक है।

पाषाण युग, सिंधु घाटी सभ्यता , वेदिक भारत, महा जनपद, मौर्य काल और गुप्त काल, भारतीय प्राचीन इतिहास का ही हिस्सा हैं। यह खण्ड अन्य सभी खंडों का आधार माना जाता है।

मध्यकालीन भारत (Medieval India)

पढ़ें : मध्यकालीन भारत का इतिहास (पूर्ण)

मध्यकालीन भारत भारतीय इतिहास का सबसे अधिक महत्वपूर्ण खंड है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास पाल साम्राज्य से शुरू होकर मुगलों के अंत तक खत्म होता है। यह खण्ड भारतीय इतिहास के महत्पूर्ण पन्नो को समेटे हुए है।

पाल साम्राज्य और राष्ट्र कूट साम्राज्य इसके प्रमुख अंग है। भारत में इस्लाम का आगमन इसी काल के दौरान हुआ था। मुगलों की शुरुआत से लेकर अंत तक इसी काल में हुई थी।

भारत ने इस खण्ड के दौरान कई साम्राज्यों के शासन काल को देखा और उनके द्वारा बनवाए गए किले और स्मारक आज भी भारतीय धरती पर मौजूद हैं और भारतीय इतिहास की समृद्धि को दर्शा रहे हैं।

आधुनिक भारत इतिहास (Modern History of India)

आधुनिक भारतीय इतिहास मुगलों के समापन से लेकर इंदिरा गांधी के शासन काल तक को माना जा सकता है। कई विद्वानों का यह भी मानना है कि आधुनिक भारतीय इतिहास भारत की आजादी पर खत्म हो जाता है।

आधुनिक भारतीय इतिहास के दौरान ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर कब्जा किया था और इसी दौरान आजादी की लड़ाइयां लड़ी गई थीं। यह खंड भारत के अधीन होने से लेकर भारतीय आजादी तक है।

इसी खण्ड के दौरान भारत पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाला साम्राज्य, मुगल साम्राज्य अपने आस्तित्व से बाहर हुआ था। हालांकि सत्ता से तो वह काफी पहले ही निकल चुका था।

भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाएं (Main Incidents Of Indian Modern History) 

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (arrival of east india company) .

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना को भारतीय आधुनिक इतिहास का प्रथम चरण कहा जा सकता है। ईस्ट इंडिया कम्पनी की भारत में स्थापना 31 दिसंबर 1600 में हुई थी।

पहले इसे जॉन कम्पनी के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में यह ईस्ट इंडिया कंपनी कहलाई थी। जॉन वाट्स इस कम्पनी के संस्थापक थे और उन्होने ही इस कंपनी के लिए व्यापार करने की इजाजत, ब्रिटेन की महारानी से ली थी। 

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना द्वारा ही आधुनिक भारतीय इतिहास की नींव रखी गई। आधुनिक भारतीय इतिहास में घटने वाले अन्य सभी घटनाक्रम ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापन पर ही आधारित हैं। 

मुगलों का अन्त (End of Mughals)

भारतीय जमीन पर मुगल साम्राज्य सबसे अधिक समय तक राज करने वाले साम्राज्यों में से एक है। लेकिन हर साम्राज्य की तरह ही मुगलों का पतन भी हुआ। यह भारतीय आधुनिक इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।

मुगलों के पतन का प्रमुख प्रमुख कारण उनमे उत्तरदायिता के अभाव था। मुगल शासकों में अकबर , जहांगीर और शाहजहां के इतर कोई भी शासक जन मानस तक पहुंचने में नाकामयाब रहा।

मुगलों ने भारत के मध्यकालीन इतिहास खण्ड में सत्ता खो दी थी, लेकिन आखिरी मुगल बादशाह रहे बहादुर शाह जफर की मृत्यु भारतीय आधुनिक इतिहास खण्ड के दौरान हुई। विशाल मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशाह का देहांत बर्मा की जेलों में हुआ जहां उन्हे अंग्रेजो द्वारा कैद किया गया था, और उनके उत्तराधिकारीयों को उन्ही की नजरों के सामने मौत के घाट उतार दिया गया था। 

आजादी की पहली लड़ाई (First war of independence) 

आजादी की पहली लड़ाई को “1857 की क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है। यह लड़ाई अलग अलग सैन्य दलों और किसान आंदोलन के मोर्चों को मिलाकर बनाई गई थी।

गौरतलब है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत को अधीन करने के उपरान्त सबसे अधिक असंतोष किसानों और सैन्य दलों में ही था। किसानों और सैन्य दलों ने ही इस आंदोलन को खड़ा किया था। हालांकि बाद में कई सारे क्रांतिकारी इस आंदोलन में जुड़ते चले गए। 

1857 की क्रांति की नींव 1853 में रखी गई थी। उस दौरान यह अफवाह फैला दी गई थी राइफल के कारतूस पर सुअर और गायों की चर्बी लगाई जाती है। गौरतलब है कि राइफल और कारतुस को चलाने से पहले उसे मूह से खोलना पड़ता था, जिस कारण यह हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के भारतीय सैनिकों को बुरा लगा। 

1857 की क्रांति का यह सैन्य कारण था। वहीं दूसरा कारण जो इस क्रांति से जुड़ा है वह यह कि किसानों पर ब्रिटिश सरकार के लगानों का बोझ काफी ज्यादा बढ़ गया था और वे काफी समय से इस चिंगारी को दबा रहे थे। 

इस क्रांति के प्रमुख चेहरे, मंगल पांडे , नाना साहेब, बेगम हजरत महल , तात्या टोपे , वीर कुंवर सिंह, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर,   रानी लक्ष्मी बाई , लियाकत अली, गजाधर सिंह और खान बहादुर जैसे महत्वपूर्ण और वीर नेता थे। 

यह क्रांति शुरुआती दिनों में तो काफी ज्यादा तेजी से चली और ऐसा लगा कि यह ब्रिटिश सत्ता को पूर्ण रूप से खदेड़ के रख देगी, लेकिन यह क्रांति ऐसा कर पाने में असफल हुई और इस क्रांति को ब्रिटिश सत्ता ने निर्ममता से खदेड़ दिया। 

भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का निर्माण (Formation of Indian National Congress) 

भारतीय कॉंग्रेस का गठन भारतीय आधुनिक इतिहास के प्रमुख चरणों में से एक है। भारतीय कॉंग्रेस ने आगे जाकर भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाया, हालांकि यह भारतीय कॉंग्रेस का शुरुआती मकसद नहीं था। 

भारतीय कॉंग्रेस का गठन ए ओ ह्यूम द्वारा किया गया था। उन्होने भारतीय कॉंग्रेस का निर्माण, ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारतीय लोगों के लिए बेहतर रणनीति बनाने के लिए किया था। 

एओ ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को की थी। मूल रूप से कॉंग्रेस का निर्माण देश के विद्वान लोगों को एक मंच पर लाने के लिए किया गया था। 

कॉंग्रेस के शुरुआती दौर में कॉंग्रेस के पास केवल 17 सदस्य थे। कॉंग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था जिसकी अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी द्वारा की गई थी। 

सूरत अधिवेशन (Surat Split) 

यह अधिवेशन कांग्रेस के दृष्टिकोण से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण अधिवेशन था। यह घटना कॉंग्रेस के इतिहास की सबसे अधिक दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है। कॉंग्रेस के ही सदस्य रहे एनी बेसेंट ने कहा था कि यह घटना कॉंग्रेस की सबसे अधिक अप्रिय घटनाओं में से एक है। 

गौरतलब है कि 26 सितंबर 1907 को यह अधिवेशन ताप्ती नदी के किनारे पर रखा गया था। हर अधिवेशन की तरह ही इस अधिवेशन के लिए भी अध्यक्ष का चुनाव कराया गया, जहां से इस घटना क्रम की शुरुआत हुई। गौरतलब है कि स्वराज्य को पाने के लिए कराए जा रहे इस अधिवेशन के कारण कॉंग्रेस दो धड़ों में बंट गई। 

कॉंग्रेस में निर्मित ये दो दल, गरम दल और नरम दल के नाम से काफी ज्यादा मशहूर हुए। इन दो दलों की सूरत के अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुनाव के दौरान मार पीट तक हो गई।

दरअसल गरम दल के उग्रवादियों ने सूरत अधिवेशन का अध्यक्ष लोकमान्य तिलक को बनाने की मांग की थी लेकिन इसके उलट उदारवादी दल ने डॉक्टर राम बिहारी घोष ने इस अधिवेशन का अध्यक्ष बना दिया। 

बाद में यह उग्रवादियों और उदारवादीयों की तर्ज पर दो दल हो गए जिन्हे गरम दल एवं नरम दल का नाम दिया गया। गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल थे और नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले थे। बाद में 1916 के लखनऊ के अधिवेशन में इन दोनों दलों का विलय हुआ। 

गांधी का आगमन (Arrival Of Mahatma Gandhi) 

महात्मा गांधी का भारतीय राजनीति में आगमन भारतीय आधुनिक इतिहास के प्रमुख चरणों में से एक है। महात्मा गांधी पहले इंग्लैंड मे थे और उसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए।

दक्षिण अफ्रीका में उन्होने काफी ज्यादा संघर्ष किया और उस संघर्ष के उपरान्त वे भारत में आए। जब गांधी भारत लौटकर आये तब उनकी उम्र 46 वर्ष थी और साल 1915 था। उस समय महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।

महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति का प्रमुख नेता बनने से पहले एक वर्ष तक भारत का अध्यन किया। महात्मा गांधी जी ने इस दौरान किसी भी प्रकार का आंदोलन नहीं किया न ही वे किसी मंच पर भाषण देने के लिए चढ़े। 

लेकिन 1915 के बाद 1916 में गांधी जी ने साबरमती आश्रम को स्थापित किया और पूरे भारत में भ्रमण करने लगे। उन्होने पहली बार मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मंच से भाषण दिया जो कि पूरे देश में आग की तरह फैल गया।

महात्मा गांधी का एकमात्र लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य था, जो कि आगे चलकर कॉंग्रेस पार्टी का भी लक्ष्य बना और महात्मा गांधी कॉंग्रेस के प्रतीक बन गए।

मुस्लिम लीग का गठन (Formation of Muslim league) 

मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में की गई थी। गौरतलब है की ढाका भी उस समय भारत का ही हिस्सा था। मुस्लिम लीग का शुरुआती नाम आल इंडिया मुस्लिम लीग था जो कि बाद में मुस्लिम लीग हो गया था। मुस्लिम लीग के प्रमुख नेताओं में मोहम्मद अली जिन्ना, ख्वाजा सलीमुल्लाह और आगा खाँ शामिल हैं।

खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement)

पढ़ें : खिलाफत आंदोलन का इतिहास

यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास से काफी ज्यादा जुड़ी हुई नहीं है लेकिन इस घटना का महत्व है क्यूंकि यह एक आंदोलन था जिसका समर्थन महात्मा गांधी जी द्वारा किया जा रहा था।

यह आंदोलन तुर्की के खलीफा को उनकी पदवी दुबारा दिलाने के लिए किया गया था और यह आंदोलन भारत की आजादी के लिए काफी सहयोगी भी साबित हुआ।

महात्मा गांधी का इस आंदोलन को समर्थन देने के पीछे यह तथ्य था कि वे इस आंदोलन में मुस्लिमों की मदद करके भारतीय मुस्लिमों द्वारा आजादी की लड़ाई में सहयोग ले लेंगे। 

यह एक प्रकार का धार्मिक राजनीतिक आंदोलन था जिसने गांधी जी के पूर्ण स्वराज्य के सपने को सीधे तौर पर नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से काफी सहायता पहुंचाई थी। 

असहयोग आंदोलन (Non co-operation Movement)

पढ़ें: असहयोग आंदोलन पर निबंध

असहयोग आंदोलन गांधी जी द्वारा चलाया गया पहला व्यापक आंदोलन था। यह काफी ज्यादा महत्वपूर्ण था और भारतीय आधुनिक इतिहास में इसका महत्व अत्यधिक है। गौरतलब है कि महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए इस आंदोलन के कारण ही आजादी की नींव रखी गई थी।

इस आंदोलन के जन्म का प्रमुख कारण जलियांवाला बाग हत्याकांड था। जलियांवाला बाग हत्याकांड को इस आंदोलन का मुख्य प्रतीक बनाया गया और लोगों के आक्रोश को इस आंदोलन से जोड़ दिया गया। अन्य कारण जो इस आंदोलन के पीछे था वह, रॉलेट एक्ट था। 

गांधी जी द्वारा चलाए गए इस अभियान की मुख्य कार्यप्रणाली असहयोग थी। असहयोग का सीधा अर्थ था ब्रिटिश सरकार की बिल्कुल भी सहायता नहीं करना। 

यह आंदोलन गांधी जी के कॉंग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद चलाया गया और अध्यक्ष बनने के बाद, 1920 में उन्होंने पूरे देश को इस आंदोलन से जुड़ने के लिए कहा। 

गौरतलब है कि गांधी जी के इस निवेदन पर कई लोग इस आंदोलन से जुड़े। इस आंदोलन के दौरान 396 हड़तालें की गईं जिनमें 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 की देश व्यापी हड़तालें प्रमुख हैं। 

इस आंदोलन के दौरान होने वाली हड़तालों के दौरान 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया। इस दौरान लगभग 70 लाख से अधिक कार्य दिवसों का भी नुकसान हुआ। यह 1857 की क्रांति के बाद का सबसे अधिक विशाल आंदोलन था। 

सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) 

सविनय अवज्ञा आंदोलन गांधी जी द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलनों में से एक है। गांधी जी ने यह आंदोलन 12 मार्च 1930 को किया था। गांधी भारतीय आधुनिक इतिहास के सर्वाधिक महत्पूर्ण व्यक्ति थे और उनके द्वारा किए गए आंदोलन भी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण थे।

गांधी जी द्वारा किया गया आंदोलन अंग्रेजों के भारत छोड़ने की घोषणा के बाद किया गया था। गांधी जी को ऐसा लगता था कि अंग्रेज केवल कह रहे हैं अपितु वे भारत को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेंगे।

गांधी जी द्वारा चलाया गया यह आंदोलन इसी घोषणा को सत्य करने के लिए अंग्रेजों पर दबाव डाल रहा था, हालांकि बाद में इस आंदोलन को इर्विन समझौते के कारण वापस ले लिया गया। 

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) 

भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी द्वारा किया गया आखिरी आंदोलन था। यह अंग्रेजों के खिलाफ भी किया गया आखिरी आंदोलन था क्यूंकि इस आंदोलन के उपरांत अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था।

इस आंदोलन का एकमात्र उद्देश्‍य स्वतंत्रता प्राप्त करना था, हालांकि ऐसा आंदोलन के दौरान तो नहीं हो पाया क्यूंकि अंग्रेजों ने यह आंदोलन दबा दिया था लेकिन इस आंदोलन के खत्म होने के बाद अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था। इस आंदोलन का प्रमुख नारा “भारत छोड़ो” 1942 के कॉंग्रेस के बम्बई अधिवेशन के दौरान दिया गया था। 

भारत का विभाजन (Partition of India) 

भारत के विभाजन को अंग्रेजों की देन कहा जा सकता है। अंग्रेजों द्वारा ही “फुट डालो राज करो” की नीति अपनाई जाती थी और उन्होने भारत को छोड़ते समय भी यही किया।

उन्होने भारत को छोड़ दिया लेकिन भारत के टुकड़े भी कर दिए। महात्मा गांधी भारत के टुकड़े नहीं चाहते थे लेकिन उस समय तक भारत परिस्थितियों की समस्या में इस कदर फँस चुका था कि कुछ किया नहीं जा सकता था। 

भारत के विभाजन के समर्थन वाले प्रमुख दलों में मुस्लिम लीग भी थी, जिसका नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे।

भारतीय संविधान निर्माण (Indian Constitution) 

भारतीय संविधान निर्माण भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है। भारतीय संविधान का निर्माण भारत की सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया था। भारतीय संविधान को 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों में निर्मित किया गया था। 26 नवंबर को भारतीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

भारत की आजादी (Independence of India) 

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों की हालत काफी ज्यादा खराब हो चुकी थी और कई प्रकार के आंदोलनों से परेशान होकर भी उन्होने 15 अगस्त 1947 को अधिकारिक तौर पर भारत को छोड़ दिया। 

आधुनिक भारत का इतिहास बहुत ही फैला हुआ है। इस लेख में हमने इसके विषय में आसान शब्दों में समझाने की कोशिश की है। आशा करते हैं आपको इस लेख से मदद मिली होगी।

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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भारत पर निबंध (Essay On India in Hindi) 10 lines 100, 150, 200, 250, 300, 500, शब्दों मे

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Essay On India in Hindi – भारत क्षेत्रफल के हिसाब से सातवां सबसे बड़ा देश है और एशिया में स्थित दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारत के तीन किनारे दक्षिण में हिंद महासागर, दक्षिण पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरे हुए हैं, यह उत्तर में पाकिस्तान, चीन, नेपाल और भूटान के साथ भूमि सीमा साझा करता है; और बांग्लादेश, और म्यांमार पूर्व में। भारत का राष्ट्रीय पशु रॉयल बंगाल टाइगर है, भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर है, भारत का राष्ट्रीय फल आम है, भारत का राष्ट्रीय फूल कमल है, और भारत का राष्ट्रीय गान जन गण मन है।

छात्रों और बच्चों के लिए भारत पर लघु निबंध (Short Essay on India for Students and Kids in Hindi)

एशिया महाद्वीप में स्थित भारत देश क्षेत्रफल के हिसाब से सातवां सबसे बड़ा देश है और दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली। भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं। भारत के राष्ट्रीय ध्वज का आकार क्षैतिज है, और यह शीर्ष पर गहरा केसरिया रंग, बीच में सफेद रंग और सबसे नीचे कठोर हरा रंग और सफेद रंग के बीच में एक अशोक चक्र के साथ तिरंगा है।

भारत की राजधानी नई दिल्ली है। भारत का राष्ट्रीय पशु रॉयल बंगाल टाइगर है, भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर है, भारत का राष्ट्रीय फल आम है, भारत का राष्ट्रीय फूल कमल है। भारत का राष्ट्रगान रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित जन गण मन है, और राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम” है और राष्ट्रीय खेल हॉकी है। हम भारत में भाषाओं, भोजन, संस्कृतियों, भूमि, तापमान की किस्मों को देख सकते हैं। भारत में इतनी विविधता होने के बावजूद भी भारत के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं।

भारत पर निबंध 10 लाइन (Essay on India 10 lines in Hindi)

  • 1) भारत या ‘भारत गणराज्य’ एशिया का एक प्रायद्वीपीय देश है अर्थात् यह तीन ओर से जल से घिरा हुआ है।
  • 2) 7 पड़ोसी देशों के साथ भारत दुनिया का सातवाँ सबसे बड़ा देश है।
  • 3) चीन के बाद 1.3 अरब लोगों के साथ भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।
  • 4) पश्चिमी भाग में ‘अरब सागर’, दक्षिणी भाग में ‘हिंद महासागर’ और पूर्व में ‘बंगाल की खाड़ी’ है।
  • 5) भारत का उत्तरी भाग पहाड़ों से ढका हुआ है और प्रसिद्ध पर्वत श्रृंखलाओं में से एक ‘हिमालय’ है।
  • 6) भारत में बहने वाली कई छोटी और बड़ी नदियाँ हैं, जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी आदि।
  • 7) भारत का राष्ट्रीय ध्वज एक आयताकार तिरंगा झंडा है जिसमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग में बीच में ‘अशोक चक्र’ है।
  • 8) भारत का राष्ट्रीय प्रतीक ‘सारनाथ’ में ‘अशोक की शेर की राजधानी’ है और इसके नीचे “सत्यमेव जयते” लिखा है, जिसका अर्थ है सत्य की ही जीत होती है।
  • 9) भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन” है जिसकी रचना रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी।
  • 10) भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम” है जिसे बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था।

भारत पर निबंध 20 लाइन (Essay on India 20 lines in Hindi)

  • 1) भारत विशाल सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता वाला विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
  • 2) भारत 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों के संघ के साथ एक एकल एकात्मक देश है।
  • 3) भारत में विशाल भौगोलिक विविधताएँ भी हैं – पर्वत श्रृंखलाएँ से लेकर शुष्क रेगिस्तान और सदाबहार वन।
  • 4) वन्यजीवों से समृद्ध भारत एशियाई शेरों, बंगाल के बाघों, हाथियों और विभिन्न अन्य प्रजातियों का घर है।
  • 5) मेघालय के उत्तर पूर्वी राज्य चेरापूंजी में भारत में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
  • 6) राजस्थान के उत्तर पश्चिमी राज्य में जैसलमेर के रेगिस्तान में बहुत कम या बिल्कुल भी वर्षा नहीं होती है।
  • 7) भारत में हर राज्य की अपनी जातीयता के साथ-साथ सांस्कृतिक और भाषाई विरासत है।
  • 8) सदियों से आक्रमणों को देखने के बावजूद, भारत ने अपनी संस्कृति और मूल्यों को नहीं खोया है।
  • 9) मुंबई में बांद्रा-वर्ली सी लिंक में स्टील के तार हैं जो पृथ्वी की परिधि तक मापते हैं।
  • 10) भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक, सिंधु घाटी सभ्यता का घर रहा है।
  • 11) देश का नाम ‘इंडिया’ अति प्राचीन सिंधु नदी से लिया गया है।
  • 12) भारत गाँवों की भूमि है जहाँ 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में रहती है।
  • 13) संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत में दूसरी सबसे बड़ी कृषि भूमि है और अधिकांश लोग कृषि में कार्यरत हैं।
  • 14) यह वह देश है जहाँ महान वैज्ञानिक, आध्यात्मिक गुरु, गणितज्ञों ने जन्म लिया और महान कार्य किया।
  • 15) भारत विविध संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, परंपराओं और भाषाओं का देश है।
  • 16) भारत वह देश है जिसने पूरी दुनिया को सनातन धर्म के नाम से लोकप्रिय जीवन दर्शन के बारे में सिखाया।
  • 17) भारत का ISRO अमेरिका, रूस, चीन और यूरोप के अंतरिक्ष संगठन के बाद पांचवां सबसे बड़ा अंतरिक्ष संगठन है।
  • 18) संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत के पास तीसरी सबसे बड़ी सेना है।
  • 19) इसमें लगभग 600 वन्य जीवन अभयारण्य हैं और पक्षियों की 1400 प्रजातियों का घर है।
  • 20) भारत में कई प्रसिद्ध और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतें, विरासत और स्मारक हैं जो दुनिया भर के लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

इनके बारे मे जाने

भारत पर निबंध 100 शब्द (Essay on India 100 words in Hindi)

भारत पूरे विश्व में प्रसिद्ध देश है। भौगोलिक दृष्टि से हमारा देश एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। भारत एक अत्यधिक आबादी वाला देश है और स्वाभाविक रूप से सभी दिशाओं से सुरक्षित भी है। यह अपनी महान संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध देश है। इसमें हिमालय नाम का एक पर्वत है जो दुनिया में सबसे ऊंचा है। यह तीन तरफ से तीन महासागरों से घिरा हुआ है, जैसे दक्षिण में हिंद महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरेबिका सागर। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जो जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है। भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, यद्यपि यहाँ लगभग 14 राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त भाषाएँ बोली जाती हैं।

भारत पर निबंध 150 शब्द (Essay on India 150 words in Hindi)

भारत एक खूबसूरत देश है जो अपनी अलग संस्कृति और परंपरा के लिए जाना जाता है। यह अपनी ऐतिहासिक विरासत और स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के नागरिक स्वभाव से बेहद विनम्र और चकाचौंध वाले हैं। ब्रिटिश शासन के तहत, यह 1947 से पहले एक गुलाम देश था। हालाँकि, हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और समर्पण के कारण, भारत को 1947 में अंग्रेजों से आज़ादी मिली। जब भारत को आज़ादी मिली, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधान मंत्री बने और भारतीय ध्वज फहराया और कहा “जब दुनिया सोती है, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जागेगा”।

भारत एक लोकतांत्रिक और लोकतांत्रिक देश है जहां देश के लोगों को देश की भलाई के लिए निर्णय लेने का अधिकार है। भारत इस कथन “विविधता में एकता” के लिए प्रसिद्ध देश है क्योंकि विभिन्न जाति, धर्म, संस्कृति और परंपरा के लोग एक साथ एकता में रहते हैं। अधिकांश भारतीय स्मारक और विरासत स्थल विश्व धरोहर स्थल से जुड़े हुए हैं।

भारत पर निबंध 200 शब्द (Essay on India 200 words in Hindi)

भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है। इसका अर्थ है कि सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान किया जाता है, और प्रत्येक व्यक्ति किसी भी धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां के लोगों के पास सभी बुनियादी मानवाधिकार हैं। भारत का राष्ट्रीय विरासत पशु भारतीय हाथी है। भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा है। गंगा एक पवित्र हिंदू नदी है, जो इतनी पवित्र है कि ऐसा माना जाता है कि यह लोगों के पापों को धो देती है। भारत में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न है, जिसका अर्थ है ‘भारत का गहना’।

भारत की सबसे प्रमुख हस्तियां जो उत्कृष्टता के साथ सेवा करती हैं, उनका कार्यक्षेत्र समर्पण के साथ है, और कड़ी मेहनत इस पुरस्कार को अर्जित करती है। परमवीर चक्र बहादुरी प्रदर्शित करने के लिए दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। नागरिकों की रक्षा के लिए अपना जीवन ऑनलाइन करने वाले सैनिक भारत के नायक हैं। भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्हें पंडित नेहरू या चाचा नेहरू भी कहा जाता है।

संविधान सभा द्वारा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। वह आईएनसी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के सदस्य थे, और वह एक विद्वान थे। मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें प्यार से बापूजी या महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है, हमारे राष्ट्रपिता हैं। वह दुनिया भर में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त व्यक्ति हैं, जो अहिंसा द्वारा देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीता था, और वे भारत के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों में से एक हैं।

भारत पर निबंध 250 शब्द (Essay on India 250 words in Hindi)

भारत में राजनीतिक परिदृश्य एक बहुदलीय चुनावी प्रणाली है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) भारत की पहली राजनीतिक पार्टी थी। भारत वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा शासित है। भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी हैं, जबकि देश के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद हैं। गृह मंत्रालय का ध्यान अमित शाह द्वारा रखा जाता है, और विदेश मंत्रालय या विदेश मामलों के मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर हैं।

भारत को एक विकासशील देश माना जाता है और इसके वर्ष 2033 में महाशक्तियों की सूची में आने की उम्मीद है। चीन के बाद भारत भारत में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। जुलाई 2019 तक भारत की अनुमानित जनसंख्या 1,296,834,042 है। भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय और देश में बहने वाली गंगा के साथ आश्चर्यजनक विशेषताएं हैं। नई दिल्ली भारत की राष्ट्रीय राजधानी है।

भारत में वर्तमान में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश, 2 प्रमुख भाषाएँ और 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त राज्य आधारित भाषाएँ हैं। भारत को एक उपमहाद्वीप कहा जाता है और तीन प्रमुख जल निकायों के साथ इसे तीन तरफ से कवर किया जाता है, अर्थात् बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और महान हिंद महासागर। ब्रिटिश भारत के औपनिवेशिक शासक थे और उन्होंने 200 वर्षों तक देश पर शासन किया। इसकी शुरुआत ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में व्यापार करने और अधिक लाभ कमाने के लिए सत्ता पर कब्जा करने के लिए कलकत्ता पर कब्जा करने के साथ हुई। यह धीरे-धीरे फैल गया, और भारत वर्ष 1858 में ब्रिटिश महारानी के नियंत्रण में आ गया। भारत दुनिया की सबसे बड़ी सेना रखने में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इसकी FPF रैंक गिरकर चौथे स्थान पर आ गई है क्योंकि इस मामले में अमेरिका और रूस चीन और भारत से आगे हैं।

भारत पर निबंध 300 शब्द (Essay on India 300 words in Hindi)

भारत मेरी मातृभूमि है जहां मैंने जन्म लिया है। मैं भारत से प्यार करता हूं और मुझे इस पर गर्व है। भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जो जनसंख्या के बाद चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इसका समृद्ध और गौरवशाली इतिहास रहा है। इसे विश्व की पुरानी सभ्यता के देश के रूप में देखा जाता है। यह सीखने की भूमि है जहां दुनिया के कोने-कोने से छात्र यहां के विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते हैं।

यह देश अपनी अनूठी और विविध संस्कृति और कई धर्मों के लोगों की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। प्रकृति से आकर्षित होने के कारण विदेशों में रहने वाले लोग भी यहां की संस्कृति और परंपरा का पालन करते हैं। कई हमलावर यहां आए और यहां की खूबसूरती और बेशकीमती चीजें चुरा लीं। कुछ ने इसे अपना गुलाम मान लिया, देश के कई महान नेताओं के संघर्ष और बलिदान के कारण 1947 में हमारी मातृभूमि अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गई।

उसी दिन से हमारी मातृभूमि हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में आजाद हुई। पंडित नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण भूमि होते हुए भी यहां के निवासी गरीब हैं। रवींद्रनाथ टैगोर, सर जगदीश चंद्र बोस, सर सीवी रमन, श्री एचएन भाभा आदि जैसे उत्कृष्ट लोगों के कारण यह प्रौद्योगिकी, विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है।

यह एक शांतिपूर्ण देश है जहां लोग बिना किसी हस्तक्षेप के अपने त्योहार मनाते हैं और विभिन्न धर्मों के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा का पालन करते हैं। यहां कई बेहतरीन ऐतिहासिक इमारतें, विरासत, स्मारक और खूबसूरत नजारे हैं जो हर साल अलग-अलग देशों का मन मोह लेते हैं। भारत में, ताजमहल एक महान स्मारक और प्रेम का प्रतीक है और कश्मीर पृथ्वी के स्वर्ग के रूप में है।

भारत पर निबंध 500 शब्द (Essay on India 500 words in Hindi)

भारत हमारा देश ‘अनेकता में एकता’ का बेहतरीन उदाहरण है। विभिन्न पृष्ठभूमि और धर्मों के लोग यहां शांति और सद्भाव से रहते हैं। इसके अलावा, हमारा देश विभिन्न भाषाओं के लिए जाना जाता है। यहां तक ​​कि आपको हमारे देश में हर 100 किलोमीटर पर एक अलग भाषा मिल जाएगी। हमारे देश पर निबंध के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि भारत क्या है।

अनेकता में एकता- हमारा देश निबंध

भारत एक अनूठा देश है जो विभिन्न प्रकार के लोगों को आश्रय देता है जो विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न खाद्य पदार्थ खाते हैं और विभिन्न प्रकार के कपड़े पहनते हैं। हमारे देश को जो खास बनाता है वह यह है कि इतने सारे मतभेदों के बावजूद लोग हमेशा शांति से एक साथ रहते हैं।

हमारा देश भारत दक्षिण एशिया में स्थित है। यह एक बड़ा देश है जो लगभग 139 करोड़ लोगों का घर है। इसके अलावा, भारत पूरी दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र भी है। सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक होने के कारण, यह एक बहुत समृद्ध देश है।

हमारे देश में उपजाऊ मिट्टी है जो इसे पूरी दुनिया में सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक बनाती है। भारत ने साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में प्रसिद्ध हस्तियों को जन्म दिया है। उदाहरण के लिए, रवींद्रनाथ टैगोर, सीवी रमन, डॉ अब्दुल कलाम और अन्य भारतीय हैं।

यह एक ऐसा देश है जो हजारों गांवों का घर है। इसी प्रकार, भारत के खेतों को शक्तिशाली नदियों द्वारा सिंचित किया जाता है। उदाहरण के लिए, गंगा, कावेरी, यमुना, नर्मदा और अन्य भारत की नदियाँ हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश के तटों की रक्षा गहरे महासागर करते हैं और शक्तिशाली हिमालय हमारी प्राकृतिक सीमाएँ हैं। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होने के नाते, भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म हैं जो एक साथ खुशी से फलते-फूलते हैं।

हमारे देश की प्रसिद्ध चीजें निबंध

हमारे देश की संस्कृति दुनिया भर में बेहद समृद्ध और प्रसिद्ध है। हम जो अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं और जिन अलग-अलग देवताओं की हम पूजा करते हैं, वे हमारे बीच मतभेद पैदा नहीं करते हैं। हम सभी एक ही भावना साझा करते हैं।

भारत की आत्मा पूरे देश में चलती है। इसके अलावा, भारत बहुत सारे पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। उदाहरण के लिए, ताजमहल, कुतुब मीनार, गेटवे ऑफ इंडिया, हवा महल, चारमीनार और बहुत कुछ काफी लोकप्रिय हैं।

ये आकर्षण दुनिया भर के लोगों को एक साथ लाते हैं। इसी तरह, हमारे पास कश्मीर है जिसे धरती पर स्वर्ग के रूप में जाना जाता है। कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता, शक्तिशाली नदियाँ और भव्य घाटियाँ वास्तव में इसे स्वर्ग बनाती हैं।

इसके अलावा, भारत एक बहुत समृद्ध खाद्य संस्कृति होने के लिए प्रसिद्ध है। हमारे देश में इतने सारे व्यंजन पाए जाते हैं कि एक बार में सब कुछ खाना संभव नहीं है। समृद्धि के कारण हमें सब कुछ सर्वोत्तम मिलता है।

हमारे देश निबंध का निष्कर्ष

कुल मिलाकर हमारे देश की एक हजार साल पुरानी संस्कृति है। इसे दुनिया ने योग और आयुर्वेद की देन भी दी है। इसके अलावा, भारत ने विज्ञान, संगीत, गणित, दर्शन और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह विश्व स्तर पर लगभग हर क्षेत्र में एक आवश्यक देश है।

भारत पर अनुच्छेद पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

भारत में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगह कौन सी है.

भारत में देखने लायक कई जगहें हैं, यह ध्यान में रखते हुए कि देश कितना खूबसूरत है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलोर यात्रा करने के लिए सबसे अच्छे भारतीय शहरों में से कुछ हैं। भारत में सबसे अच्छे समुद्र तट पुरी, ओडिशा और गोवा में वागा बीच हैं।

भारत में सबसे अधिक साक्षर राज्य कौन सा है?

केरल, प्रायद्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक राज्य, भारत में सबसे अधिक साक्षरता दर वाला राज्य है। इसकी साक्षरता दर 91.58% है।

भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन सा है?

उत्तर प्रदेश या यूपी भारत का सबसे बड़ा राज्य है, इसके क्षेत्रफल को देखते हुए।

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history of india hindi essay

A friend of mine from Bihar told me what we considered as the national language Hindi was indeed a form of the Khariboli of Delhi. The Hindi they spoke was different, not a dialect but a different language altogether. I was surprised and perplexed. The article tries to find out all about Hindi language and literature. The article is verbatim from the History and Culture of Indian People published by the Bhartiya Vidya Bhavan. After that I compared notes with The Cultural Heritage of India published by the Ramakrishna Mission. Round about 500 AD there were regional Prakrits which were the source of modern Indo-Aryan languages and the authors can think of these Prakrits as – 1.    Eastern Prakrit or Magadhi. 2.    Central Prakrit or Ardha-Maagadhi. 3.    Northern Prakrit, which may be called Khasa or Himalayan Prakrit. 4.    Sauraseni Prakrit as current in Western U.P. and parts of Eastern Punjab as well as of Rajasthan. 5.    Possibly a special Prakrit of Western Rajasthan, Saurashtra and Gurjara. 6.    A Prakrit embracing Northern and Western Punjab and Sind. 7.    Possibily there was another Prakrit, which was current in Malava. But it might have just been a variety of Sauraseni. 8.    We have the Prakrit current in Maharashtra, which was this time confined only to the northern districts of the present day Maratha country. By the end of 1300 a.d. the following Modern Indo-Aryan languages or groups had become established. 1.    Bengali-Assamese which inspite of differences in pronunciation came upon to be looked upon as one language till 1500 a.d. 2.    Oriya, which remained close to Bengali but had its own development. 3.    Maithili, the speech of North Bihar became fully established by 1300. 4.    Magahi, the speech of South Bihar, which was very close to Maithili and although was different in many ways did not create much literature. 5.    Bhojpuri is an important language of Eastern India. 6.    Kosali dialects, these became differentiated into its present day descendants, Awadhi, Bagheli, Chattisgarhi. Kosali seems to have been cultivated very early and we have a Sanskrit work that indicates that there was an attempt to teach Sanskrit through the Old Kosala speech, goes back to the 1st half of the 12th century. 7.    Brajabhasa speech is connected with Bundeli and Kanauji; this is parts of modern day Western U.P., parts of Rajasthan and Madhya Pradesh. 8.    Old Western Rajasthani, which after 1500 got bifurcated into Western Rajasthani or Marwari and Gujarati on the other. 9.     Sindh speech derived out of the Old Vrachada Apabhramsa of Sind. 10.     Lastly we have the incipient Punjabi language, mainly on a Western Punjabi basis. We also have Kashmiri as a Dardic speech profoundly modified by Indo Aryan, which was taking shape by 1300. Assamese – Bengali which may be taken as two languages, considering that the political history of Assam and Bengal were quite independent of each other from very early times, Oriya – Maithili and Magahi as a wholly developed though connected dialect, Bhojpuri – Kosali, also known as Gahwari, Brajabhasha with Kanauji and Bundeli, perhaps not yet fully differentiated, the Rajasthani dialects, of which the most important was the Marwari, largely used in literature and Gujarati which went along with Marwari, Marathi and the connected Konkani dialects, and then Punjabi both Western and Eastern and Sindhi. Besides there was a group of North Indian or Himalayan dialects, coming from the old Khasa Prakrit of which the authors have no specimen until very late times. Excepting Bengali-Assamese-Oriya-Marathi-Gujarati-Sindhi-Punjabi the speeches of the North Indian plains have had a restricted literary employment during the last one hundred years and people from the beginning of the 20th century have accepted a form of Western Hindi (the Khariboli speech of Delhi) as their language of education, literature and public life. It has become the national language while Maithili, Magahi, Bhojpuri, Awadhi, Bagheli, Brajabhasa, Chattisgarhi with other Central and Western Himalayan dialects being described as dialects of Hindi . But that was not the case till about 150 years ago. The vocabulary of Hindi is chiefly derived from Sanskrit. Like other Indo-Aryan languages Hindi in its present shape began to take shape around the 10th century a.d. But before the 14th century it was highly influenced by the Sauraseni Apabhramsa. Interestingly Sauraseni also gave birth to Punjabi. (refer the article on Punjabi). Oldest Hindi Mystico – Devotional Poetry     - The padas and vanis of Gorakh Natha 1150, the great Natha Pantha teacher, and other contemporary Yogis preaching the philosophy and practice of hatha-yoga are also ascribed to this period. But their language is very changed and it is difficult to decide how much of these compositions are genuine. These poems emphasize the need for a pure life, detachment from material prosperity, and real knowledge, which prepared the ground for the bhakta poets of a later period. The article has two chapters – 1.    Covers development of Hindi from 1300 to 1947. 2.    Scripts in India of the Present Day

1300 to 1526

Western Hindi The Khariboli form of Hindi which was accepted as the Official Language of India is one of the youngest of the Indian languages. As such it did not come into any literary use before 1800 a.d. and its effective literary employment started after 1850. When we said Hindi literature it meant Brajbhasa the most important form of Western Hindi prior to 1850. It is customary to include in this expression Awadhi although it is genetically of a different Prakrit origin from Western Hindi. Since we assumed other languages to be dialects lots of literature written in other languages became part of Hindi literature. For example devotional songs of Mirabai were written in Rajasthani or Bhojpuri, Maithili, Garhwali speeches.

During 1000 to 1300 a.d. Western Hindi was evolving out of Apabhramsa. It was during this period that a kind of linguistic hesitancy, that the first drafts of great Rajput heroic romances like Prithvirajarasau took shape. They were mostly in Western Hindi and they stand at the base of what may be described Hindi literature as also of Rajasthani literature. The Brahman scholars were busy composing works in Sanskrit, both stories and philosophical works but the revival initiated by them on the basis of translations from the epics and Puranas was to come later.

Amir Khushrav 1253 to 1325 a well-known Persian poet was one of the earliest writers of Hindi as well. Although the actual mass of Hindi compositions written by him is quite small he was fully alive to the importance of Hindi. He was also the author of Khaliq-Bari which is a brief dictionary in verse of Pers-Arabic and Hindi. The book did a lot to spread Perso-Arabic words among the people of North India and helped bring about the development of Urdu.

Between 1300 to 1400 a.d. we do not find any writer in Hindi though compilation of Apabhramsa texts and their study in a mixture of Rajsathani and Apabhramsa appeared to have continued in the courts of Rajput chiefs and North India. Hindi literature during the 15th century was dominated by Kabir.

The abandon of faith in and love of God was a new strain in Indian religious experience for which the North is indebted to the South. The Saints of Tamil Nadu, Saivites or Vaishnavites had a deep love for God, which in turn formed the basis of the Bhakti school. Two noted Vaishnava Acharyas Ramananda 1400-1470 and Vallabhacharya 1473 to 1531 inspired many great personalities during this period.

They included Kabir. The former was an ardent devotee of Lord Ram, a great Sanskrit scholar who wrote in Hindi too. The latter was a Sanskrit scholar who was a devotee of Lord Krishna. He came from Andhra but made Mathura his main seat of teaching. One of his disciples was Surdasa.

This new Bhakti movement revolutionized Hindi language and literature. The language became free from the unnecessary inhibitions and shackles of the Apabhramsa tradition. The poets came from the masses, sincere in thought and behavior. They used language that was familiar to the people. A number of Kabir’s dohas found in the Kabir canon is in pure Bhojpuri his native language. But most of his writings are now available in a mixed language. This is popularly known as sadhukkada boli or the speech of wandering sadhus. It is basically Western Hindi – Braja –bhasa and occasional forms of Awadhi. Guru Nanak wrote in Western Hindi tinged with Punjabi.

Kosali or Awadhi or called Eastern Hindi At present there is little literary endeavor in Eastern Hindi since most speakers have adopted western Hindi. However, Awadhi has been one of the earliest Indo Aryan languages to be cultivated for literature. The oldest specimen of Awadhi is found in Ukti-vyakti-prakarana of Damodara Pandita who flourished during the first half of the 12th century. He wrote this book to teach Sanskrit through his mother tongue which was a kind of old Awadhi. The Sufi tradition which became established in India in the 14th century found a series of writers mostly Muslim who took a number of poems of medieval Hindu inspiration and wove them into poems in Awadhi, Maulana Daud was probably the first of them. The manuscripts of these poems in Awadhi are mostly Persian in character due to the Muslim influence existing at that point of time.

1526 to 1707       The greatest Hindi writer during this period was Gosvami Tulsidasa , born in U.P. sometime in 1523. He wrote his masterpiece Rama-charita-manas sometime in 1574 in his native Awadhi dialect. It narrates the story of Rama and through it propounds the story of the Bhakti Cult. Besides its literary importance it rendered a great service to the Hindus of North India who were submerged under the flood of Islamic conquest.

Quote Dr S K Chatterjee excerpts “ Tulisdasa with his books did the greatest service in strengthening the Hindus of North India in their old ways, culture which seemed to be overwhelmed in the flood-side of an aggressive Islam and by the side attacks on Hindu cultural life through covert preaching against orthodoxy, which inculcated the study of Sanskrit books, going to places of pilgrimages and performance of various religious rites. If a writer’s popularity is to be gauged by the number of quotations from him known to the masses, then there is none else in the range of Hindi to stand before Tulsidasa”.

One of the important characteristics of the Indian civilization is the strength we derive from the characters in Mahabharata and Ramayana. As a child my mother read out these epics to me from the Amar Chitra Katha, sub-consciously they seem to have impacted my mind, whenever in trouble I draw inspiration from one of the characters therein. Interestingly I saw a movie ‘Lord of the Rings’, big hit, that to my mind was totally inspired from the Mahabharata. I could actually identify similar characters, Arjun, Bhim and Ghatotkach to name a few.

Tulasi-dasa wrote many other devotional works of which Vinaya-Patrika (letters of Prayer) is most well known. He preached pure devotion of God but believed in a personal God with attributes as was represented by Rama, an avatar of Vishnu. He died on 1623.

The spirit of Tulasi-dasa encouraged many writers like Agra-dasa and Nabhaji-dasa who wrote in Braj-bhasha, the famous Bhakti-mala (the garland of saints) that gives accounts of Vaishnava saints from the early period down to 1600. Another set of poets worshipped Krishna and drew inspiration from Bhagavata Purana instead of the Ramayana, Surdasa was one of them lived between 1503 to 1563 and wrote thousand of lyrics on the different stages of Krishna’s life. His Aura-sagara is a collection of songs mainly devoted to the lilas of Krishna as a child and as a youthful lover of the gopis, the most important being Radha.

Another poet of this school was Mirabai (1498 around to 1546) a Rajput princess married to the prince of Mewar. She was devoted to Krishna. Her songs were originally composed in Marwari, but their language has been largely altered to Braj-bhasa dialect of Hindi in order to make them popular outside Gujarat and Rajasthan. Several works attributed to her are Narsiji Ka Mahero, Gitagovinda Ki Tika, Ragagovinda, Garva-gita.

The Awadhi dialect of Hindi was enriched by a number of Sufi writers who wove some romantic tales of the folklore type into beautiful allegorical plays by way of elucidating the characteristics of Sufi doctrines. Maulana Daud is the author of the oldest work of this type Chandayan. But the greatest writer of this school was Malik M Jayasi whose poem Padumavati composed between 1520 to 1540 is a detailed Sufi allegorical treatment of the famous story of Padmini of Chitor.

Literature in Braj-bhasha flourished under Akbar and was enriched by poets/musicians of his court like Tansen who wrote highly poetic and sometimes profound songs on various topics, devotional and descriptive. Another Kesava-dasa (1565-1617) introduced a deliberately and artificially rhetorical and artistic type of literature.

Roughly from the beginning of the 17th century to the middle of the 19th century Hindi literature took a new turn. This period is called Rita-kala, a name given to it by Ramchandra Shukla.

Many talented poets in this period tried to write books on various aspects of Indians poetics such as rasa, alankara and nayaka-nayika-bhela, on the lines of Sanskrit rhetorical tradition. Some of them were Chintamani Tripathi 1609 who wrote Kavya-viveka etc, Kesavadasa who wrote Rasika-priya in 1591 were poets of a high order comparable to classical lyrists like Amaru, Govardhana and Jayadeva.

Bhusana 1613 to 1712 wrote heroic poetry of a beautiful type. His panegyrics on Shivaji in the most musical Braha-bhasa were amongst the most stirring things in the domain of medieval Indian poetry. His poetry gave hope to the Hindus of that age when everything seemed lost.

The most popular poet of the Riti school was Biharilal 1600-63 the court poet of Jay Singh the Raja of Amber for his 700 verses. Its popularity can be judged from the fact that it was translated into various Indian languages including Sanskrit. His minute observations of the behaviors of lovers and their physical / mental expressions attracted men of culture in the middle ages.

The last great Hindi poet during this period was Lal Kavi who in 1707 wrote Chhatra-prakasa, a beautiful biography of Chhatrasal, the Raja of Bundelkhand. Guru Govind Singh composed some important works in Hindi mostly in Apabhramsa style including the autobiographical poem Bichitra Natak. His Krishna-katha 1688, Rama-katha 1695 reminds us of Surdasa and Tulasidasa respectively. To read more the Guru’s attitude to Hindi please go to the article on Punjabi.

The Hindi literature described above is mostly in verse. Good modern Hindi prose did not make its appearance before the 18th century.

1707 to 1818       Hindi literature during this period continued the style and tradition of the previous period though several writers gave evidence of high style and perfection. Reference must be made to Bhushana who wrote works on Shivaji in most musical Braj bhasha marked by ardent patrioticism of a Hindu.

Hindi prose in Khari Boli and Braj bhasha whose beginnings go back to the 16th century a.d. was highly developed. Very good progress in Khari Boli i.e. Delhi Hindi is evidenced by the prose rendering of Yagavasishtha Ramayana completed by Ramprasad Niranjani in 1741 as one example.

The development of modern Hindi from the beginning of the 19th century is dealt with below.

1818 to 1905

The epoch of modern Hindi literature started at the beginning of the 19th century but its progress was very small until the middle of the 19th century. There was a beginning of a prose literature but its language – Khari Boli – was roughly the standard speech of Delhi identical in grammar (though not in script, higher vocabulary and sometimes syntax) with Urdu, the Muslim form of Hindi. The extent of this prose was very meager but there was a vast literature in Brajbhakha, Awadhi and Rajasthani. But there was hardly any poetry in Khari-Boli, which was employed in prose. This disparity gradually disappeared in the second half of the 19th century and one common form of Hindi came to be used in prose and verse, though a few authors wrote in Brajbhakha and Awadhi.

Like Bengali Hindi prose owes its origin partly to the efforts of the Christian missionaries to translate religious texts Bible and of the authorities of Fort William College in Calcutta to prepare suitable textbooks for students. The first such author was Lalluji Lal of Agra who wrote Prem Sagar in 1803 on the story of Krishna’s life as described in the Bhagvata Purana. It is one of the earliest Khari Boli classics. Pandit Mishra a Bhojpuri speaking scholar wrote another model work in Khari Boli Hindi prose, the Nasiketopakhyan, based on the well-known story of Nachiketas in the Katha-upanishad.

The School Book Society of Agra 1833 did a great service for Hindi prose by publishing many Hindi text books on different subjects and by 1857 Hindi prose had taken a great shape although no high literary value works were produced.

The work commenced by pioneers in the 18th century like Pandit Daulatram and Munshi Sadasukhlal Niyaz came to be stabilized and the Midland speech in its latest phase of a Sanskritised Khari Boli Hindi started on its conquest of nearly the whole of North India . From 1850 prose style started by Lalluji Lal became established.

Then came Haris-chandra of Banaras (1846-1884) who had the sobriquet of Bharatendu (Moon of India). He is universally acknowledged as one of the makers of modern Hindi. There were a number of other writers around this period who produced personal essays, humorous and satirical writings, dramas, reviews and at the same time translated Sanskrit, Bengali and English works into Hindi. Pandit S Phillauri of Punjab and Lala Shriniwas Das 1851-87 became pioneers in writings original novels. They believed in blending the best of traditional and modern values with an Indian bias. By the end of the 19th century the tendency the influence of Bengali literature was replaced by the English one.

The next event of great importance was the foundation of the Arya Samaj by Swami Dayananad Saraswati who adopted Hindi was the language of his preaching and propaganda. Refer to the chapter on Urdu for more details but the Samaj revived Hindi in Punjab, Western U.P. and Rajpputana. It must be remembered that Hindi had to face opposition from the officially patronized Urdu. To read about how Swamiji’s efforts made Hindi replace Urdu as the main medium of communication in North India and around read please go to the essay on Urdu.

The greatest novelists and short story writer of modern Hindi is Munshi Prem Chand (1880 to 1936). The new styles of poetry with a large amount of Bengali and some English influence came in during the second half of the 19th century. Among the more well known poets was Sridhar Pathak and Maithali Saran Gupta. Hindi journalism came into the field when Pandit Jugal Kishore of Kanpur started from Calcutta the first Hindi weekly Udant Martand (the Rising Sun). A number of renowned journalists flourished during the second half of the 19th century like Balmukund Gupta of Rohtak and Prabhu-dayal Pande from Mathura edited from Calcutta a weekly newspaper Hindi Bangavasi that was the most influential Hindi newspaper during the two closing decades of the 19th century.

1905 to 1947        The Hindi writers of the late 19th century referred to in the earlier chapter had a tendency to display their knowledge of Urdu Persian as well as of Sanskrit. It was not until the beginning of this period that this tendency disappeared. This was mainly due to the efforts of Premchand who established his reputation as an Urdu novelist but when he changed over to Hindi the decisive step had been taken and Hindi finally shook off the allurements of Urdu Persian. Mahavir Prasad Dvivedi also contributed. His devotion, integrity and zeal as editor of Sarasvati established him as the architect of Hindi prose. Premchand’s works are translated into Bengali, Gujarati, Marathi, Tamil, English and Russian. There were some powerful novelists writing in the modern realistic as well as psychological vein, between who was Pande Bachhchan Sarma Ugra and Jinendra Kumar the leading of the psychological novelists in Hindi. Of an altogether different vein is the writer of historical novels B Lal Verma. There were a number of other renowned Hindi poets too.

Some other poets have left a distinct impression on the development of Hindi literature. Among these may be mentioned Suryakanta Nirala who brought in a completely new movement in Hindi – in freeing the metre from the bonds of rhyme and fixed length and in bringing into it a new modernistic mystic note known as Chhaya-vada (literally shadow school). There was Mahadev Verma a poetess also in a mystic vein. There is a good deal of influence of the Bengali poets, particularly Rabindra-nath Tagore on this new school as of English poets of the romantic schools. In Saketa and Yasodhara by M S Gupta there is an evocation of the spirit of ancient India in a remarkable way.

With the innovators the Khari Boli form of Hindi came into its own although the Braj-bhasa still flourishes.

Note - One of the issues on which people particularly foreigners divide us is that we have so many languages / dialects. While we do not have to be defensive about it nor seek to explain why we are the way we are, a reading of the content of this article has made me realize that what we consider dialects of Hindi today were / are actually languages in their own right. Due to social / political changes that accompanied the British rule and Delhi becoming the center of power Khari Boli one of the many forms of Hindi became  mainstream Hindi while others became dialects.

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Essay on History of India

Students are often asked to write an essay on History of India in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on History of India

Early civilizations.

India’s history begins with the birth of the Indus Valley Civilization, which thrived around 2500 BCE. Among the world’s oldest, it was known for its advanced urban planning.

Vedic Period

The Vedic Period followed, from 1500 to 500 BCE. This era saw the composition of the sacred Vedas, the foundation of Hinduism.

Empires and Kingdoms

Next came the Maurya and Gupta Empires, marking India’s ‘Golden Age’, with advancements in science, technology, art, religion, and philosophy.

Colonial Period

The British East India Company started ruling India from 1757, leading to the Colonial Period. This ended with India’s independence in 1947.

Also check:

  • Speech on History of India

250 Words Essay on History of India

The ancient period.

India’s history begins with the birth of the Indus Valley Civilization, dating back to around 2500 BC. This civilization, renowned for its urban planning, sanitation systems, and trade networks, laid the foundation for future Indian societies.

The Vedic Age

The Vedic Age (1500-500 BC) marked the advent of the Indo-Aryans. The period is significant for the composition of the Vedas, the oldest scriptures of Hinduism, which greatly influenced Indian philosophy, religion, and social structure.

The Maurya and Gupta Empires

The Maurya Empire (322-185 BC) was India’s first great unified empire. Its most famous ruler, Ashoka, embraced Buddhism and propagated its teachings. The Gupta Empire (320-550 AD), often referred to as the “Golden Age” of India, saw significant advancements in arts, science, and literature.

The Medieval Period

The Medieval Period witnessed the rise of Islamic empires, including the Delhi Sultanate and the Mughal Empire. This era was characterized by architectural marvels like the Taj Mahal, and a syncretic culture blending Hindu and Islamic traditions.

The Colonial Era and Independence

The 17th century marked the beginning of European colonialism, with the British East India Company gaining control by the mid-18th century. The struggle for independence, led by figures like Mahatma Gandhi, culminated in India gaining independence in 1947.

Modern India

Post-independence, India adopted a democratic system and embarked on a journey of economic and social development. Today, India stands as the world’s largest democracy, with a rich history that continues to shape its present and future.

500 Words Essay on History of India

Introduction.

India, a country rich in culture and heritage, has a history that spans more than 4500 years. This history is marked by a series of invasions, migrations, and trade relations that have significantly shaped its current identity. The history of India is a fascinating tale of cultural synthesis and evolution, marked by the rise and fall of empires, the development of art and science, and the intermingling of various religious and philosophical thoughts.

The ancient history of India begins with the Indus Valley Civilization, which thrived around 2500 BCE. Known for its urban planning, sanitation systems, and a written script, this civilization laid the foundation for future Indian societies. The decline of the Indus Valley Civilization around 1500 BCE marked the beginning of the Vedic Age. This period saw the rise of the Aryan tribes, the composition of the Vedas, and the development of the caste system.

The Classical Age

The Classical Age of India began with the Mauryan Empire in the 4th century BCE. Emperor Ashoka, the most renowned Mauryan ruler, left a profound impact on Indian history through his advocacy of Buddhism and his edicts promoting moral and social values. The Gupta Empire, often referred to as the “Golden Age of India,” succeeded the Mauryas. This period saw significant advancements in science, mathematics, literature, and art.

Medieval India

The medieval period in Indian history was marked by the advent of Islam, brought by various invasions and the establishment of Sultanates. The Delhi Sultanate and the Mughal Empire were the most prominent Islamic empires. The Mughal period, particularly under Emperor Akbar, was known for its cultural syncretism, architectural marvels, and administrative reforms.

Colonial Era and Independence

The arrival of Europeans, specifically the British, in the 17th century marked the beginning of the colonial era. The British East India Company gradually gained control over large parts of India, leading to direct rule by the British Crown after the Revolt of 1857. This period witnessed economic exploitation, social reforms, and the rise of a national consciousness leading to the independence movement. The struggle culminated in India gaining independence in 1947, followed by the traumatic partition into India and Pakistan.

Post-Independence Era

Post-independence, India adopted a democratic system of governance and embarked on a path of social, economic, and political development. It faced challenges such as integrating princely states, linguistic reorganization, and socio-economic disparities. Today, India is recognized as a significant global player, maintaining a delicate balance between its rich historical legacy and the demands of modernity.

The history of India is a testament to its resilience and adaptability. It is a narrative of cultural amalgamation, political transformations, and intellectual advancements. Understanding this history allows us to appreciate India’s diversity, its challenges, and its continuous quest for progress and harmony. While the country continues to grapple with numerous contemporary issues, its history provides valuable lessons and insights for the path ahead.

That’s it! I hope the essay helped you.

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  • Essay on Achievements of India After Independence
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Indian Culture Essay

India is renowned throughout the world for its tradition and culture. It is a country with many different cultures and traditions. The world's ancient civilisations can be found in this country. Good manners, etiquette, civilised dialogue, customs, beliefs, values, etc., are essential elements of Indian culture . India is a special country because of the ability of its citizens from many cultures and traditions to live together in harmony. Here are a few sample essays on ‘Indian culture’.

Indian Culture Essay

100 Words Essay on Indian Culture

India's culture is the oldest in the world and dates back over 5,000 years. The first and greatest cultures in the world are regarded as being those of India. The phrase "Unity in Diversity" refers to India as a diverse nation where people of many religions coexist while maintaining their distinct customs. People of different religions have different languages, culinary customs, ceremonies, etc and yet they all live in harmony.

Hindi is India's official language. However, there are 400 other languages regularly spoken in India's many states and territories, in addition to the country's nearly 22 recognised languages. History has established India as the country where religions like Buddhism and Hinduism first emerged.

200 Words Essay on Indian Culture

India is a land of diverse cultures, religions, languages, and traditions. The rich cultural heritage of India is a result of its long history and the various invasions and settlements that have occurred in the country. Indian culture is a melting pot of various customs and traditions, which have been passed down from generation to generation.

Religion | Religion plays a significant role in Indian culture. The major religions practiced in India are Hinduism, Islam, Buddhism, Sikhism, and Jainism. Each religion has its own set of beliefs, customs, and practices. Hinduism, the oldest religion in India, is the dominant religion and has a vast array of gods and goddesses. Islam, Buddhism, Sikhism, and Jainism are also widely practiced and have a significant number of followers in the country.

Food | Indian cuisine is known for its diverse range of flavors and spices. Each region in India has its own unique style of cooking and distinct dishes. Indian cuisine is known for its use of spices, herbs, and a variety of cooking techniques. Some of the most famous Indian dishes include biryani, curry, tandoori chicken, and dal makhani. Indian cuisine is also famous for its street food, which is a popular and affordable way to experience the diverse range of flavors that Indian food has to offer.

500 Words Essay on Indian Culture

Indian culture is known for its rich art and architecture. The ancient Indus Valley Civilization, which existed around 2500 BCE, had a sophisticated system of town planning and impressive architectural structures. Indian art is diverse and includes painting, sculpture, and architecture. The most famous form of Indian art is the cave paintings of Ajanta and Ellora, which date back to the 2nd century BCE. Indian architecture is also famous for its temples, palaces, and forts, which are a reflection of the rich cultural heritage of the country.

Music and dance are an integral part of Indian culture . Indian music is diverse and ranges from classical to folk to modern. The classical music of India is known for its use of ragas, which are a set of musical notes that are used to create a melody. The traditional Indian dance forms include Kathak, Bharatanatyam, and Kathakali. These dance forms are known for their elaborate costumes, expressive gestures, and intricate footwork.

My Experience

I had always been fascinated by the rich culture and history of India. So, when I finally got the opportunity to visit the country, I was beyond excited. I had heard so much about the diverse customs and traditions of India, and I couldn't wait to experience them firsthand. The moment I stepped off the plane and hit the streets, I was greeted by the overwhelming smell of spices and the hustle and bustle of the streets. I knew right away that I was in for an unforgettable journey.

My first stop was the ancient city of Varanasi, also known as Banaras. As I walked through the streets, I was struck by the vibrant colors and the sound of temple bells and chants. I visited the famous Kashi Vishwanath Temple and was amazed by the intricate architecture and the devotion of the devotees.

From Varanasi, I traveled to Jaipur, also known as the Pink City . Here, I visited the famous Amber Fort, which was built in the 16th century. The fort was a perfect example of the rich architecture of India and the level of craftsmanship that existed in ancient India.

As I continued my journey, I also had the opportunity to experience the food of India. From the spicy curries of the south to the tandoori dishes of the north, I was blown away by the range of flavors and the use of spices.

I also had the chance to experience the music and dance of India. I attended a Kathak dance performance and was mesmerized by the intricate footwork and the expressiveness of the dancers. I also had the opportunity to attend a classical music concert and was struck by the beauty of the ragas and the skill of the musicians.

My journey through India was truly an unforgettable experience. I had the chance to experience the diverse customs and traditions of India and was struck by the richness of the culture. From the ancient temples to the vibrant street markets, India is a treasure trove of history and culture. I knew that this would not be my last trip to India, as there is so much more to explore and experience.

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Essay on Independence Day (15 August) for Students and Children

500+ words essay on independence day.

One of the most memorable days in Indian history is 15th August. It’s the day on which the Indian sub-continent got independence after a long struggle. India only has three national festivals that are celebrated by the whole nation as one. One being the Independence Day (15th August) and the other two being Republic Day (26th January) and Gandhi Jayanti (2nd October). After independence, India became the largest democracy in the world. We fought very hard to get our independence from the Britishers. In this essay on Independence Day, we are going to discuss the history and importance of Independence Day.

essay on independence day

History of Our Independence Day

For almost two centuries the Britishers ruled over us. And the citizen of the country suffered a lot due to these oppressors. British officials treat us like slaves until we manage to fight back against them.

We struggled for our independence but work tirelessly and selflessly under the guidance of our leaders Jawahar Lal Nehru, Subhash Chandra Bose, Mahatma Gandhi , Chandra Shekhar Azad, and Bhagat Singh. Some of these leaders choose the path of violence while some choose non-violence. But the ultimate aim of these was to drive out the Britishers from the country. And on 15th August 1947, the long-awaited dream come true.

Why We Celebrate Independence Day?

To relive the moment and to enjoy the spirit of freedom and independence we celebrate Independence Day. Another reason is to remember the sacrifices and lives we have lost in this struggle. Besides, we celebrated it to remind us that this freedom that we enjoy is earned the hard way.

Apart from that, the celebration wakes up the patriot inside us. Along with celebration, the young generation is acquainted with the struggles of the people who lived at that time.

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Activities on Independence Day

Although it’s a national holiday the people of the country celebrate it with great enthusiasm. Schools, offices, societies, and colleges celebrate this day by organizing various small and big events.

history of india hindi essay

Every year at Red Fort the Prime Minister of India host the national flag. In the honor of the occasion, 21 gunshots are fired. This is the begging of the main event. This event is later on followed by an army parade.

The school and colleges organize cultural events, fancy dress competitions, speech, debate, and quiz competition.

Importance of Independence Day

Every Indian holds a different viewpoint about Indian Independence. For some, it’s a reminder of the long struggle while for youngsters it stands for the glory and honor of the country. Above all, we can see the feeling of patriotism across the country.

The Indian’s celebrate Independence Day with a feeling of nationalism and patriotism across the country. On this day every citizen echoes with festive feeling and pride in the diversity and unity of the people. It’s not only a celebration of Independence but also of the unity in diversity of the country.

{ “@context”: “https://schema.org”, “@type”: “FAQPage”, “mainEntity”: [{ “@type”: “Question”, “name”: “Who was the main leader of the Independence Struggle?”, “acceptedAnswer”: { “@type”: “Answer”, “text”: “There is no single leader whom we can call the leader there were many. But the most notable are Mahatma Gandhi, Jawahar Lal Nehru, Subhash Chandra Bose, and Bhagat Singh. Besides some of them opt for non-violence and some for violence.” } }, { “@type”: “Question”, “name”: “How India became a Democratic Country?”, “acceptedAnswer”: { “@type”: “Answer”, “text”:”When our leaders saw the treatment of our people by Britishers then they decided to make India a democratic country. But this was not the only reason there was far greater reason than that, for which the leaders make this decision.”} }] }

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Essay on Indian History

history of india hindi essay

History is agreed upon as an uninterrupted process in time and space.

Yet knowledge of the period is essential to understand and appreciate the nature of the historical changes that take place in time and space.

Periodization of Indian history is a tricky and controversial concept. There is no unanimity among the historians about the periodization of Indian history.

Celebrating India | Saddahaq

Image Source: saddahaq.blob.core.windows.net/multimedia/99038380-indiaincre-voc3impd.jpg

ADVERTISEMENTS:

Broadly, there are two types of periodization in vogue, one on the religious and ethnic nature of rulers which divides it as Hindu, Muslim and the British periods and the other, borrowed from European historiography – Ancient, Medieval and Modern.

Initially, the British historian, James Mill proposed the tripartite division of Indian history on religious and ethnic nature of rulers as Hindu, Muslim and British. Even this division is not precise as all the rulers in the Hindu period were not Hindus and we have a number of rulers who migrated to India from other countries and ruled side by side with the Hindu rulers and the Hindus were not culturally a homogenous entity either.

Further, this division is not acceptable to modem historians as it has communal tinge which is not desirable for a pluralistic country like India. But there are still some historians who believe in that division. The second type of division – Ancient, Medieval and Modern – is also regarded as inadequate as the terms are imprecise and vague and fail to explain the nature of changes that took place from time to time.

In the last few decades, there is a revisiting of periodization by the histo­rians because new questions are asked and new sources are consulted and collated to arrive at conclusions regarding the factors of change that necessitated new socio-economic formations that led to new cultural and political patterns that shaped the course of our historical process.

Keeping the latest trends in periodization in mind an attempt ismade to give primacy to the nature of change propelled by factors of change – technology, material milieu and ideology – in the creation of new socio-economic formation linking it to political and cultural formation in time and space. As there is so far no new nomenclature acceptable to all, I followed the broad periodization of ancient, medieval and modem as that format is still popular.

The ancient period begins with prehistory and ends with the Gupta age. The medieval period begins with the post-Gupta age and ends with the advent of Europeans. The medieval period witnessed the emergence and assertion of regional polities and cultures and the arrival of two separate nationalities, the Muslims with belief in Islam and the westerners believing in Christianity who played a crucial role in integrating politically and creating a crucible of culturally diverse India.

The modern period begins with colonialism introduced by the new political masters, the British. The modern period witnessed the growth and spread of new ideas and ideals of democracy, equality, social justice, consequent to the introduction of western model of educational system.

The introduction of colonial power structure which led to ruination of Indian populace led to non-violent and sometimes to violent mass upsurge that resulted in the declaration of Indian independence and division of India on the principle of separate nationalities in 1947.

Generally, the historian with the help of available primary and secondary sources reconstructs the history of any country. As history is not a simple narration of events in a chronological and spatial order, the historian has to choose the sources that are authentic and can be corroborated by other sources before arriving at a historical generalization.

As the contemporary approach to history is to understand the historical process and attempt to explain it in the present times, a historian should be knowledgeable about theories of historical method as well as of other social sciences. It is essential to develop the needed analytical skills of source materials objectively before the historical process is constructed.

Primary sources are those, which are contemporaneous with an event or happening, and secondary sources are those, which belong to a later time. For instance, the Asokan edicts are the primary sources to understand Asoka’s Dhamma.

The Allahabad Pillar Prasasthi and the Aihole epigraph of Samudragupta and Pulakesin II are respectively the primary sources for under­standing the conquests of Samudragupta and Pulakesin II. Romila Thapar’s Asoka and the Decline of the Mauryas belongs to the category of secondary sources as she wrote that book after a thorough examination of the entire published and original sources.

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A Modi Win Will Only Mean More Trouble for Indian Muslims

India Elections

M ore than two years have passed since a picture of me, picked up from my personal social media handles, was put up with a price tag for auction on the internet. It was part of a website called Bulli Bai , a religious slur used for Muslim women in India. 

Why was I targeted? Likely because of my reporting. The perpetrators wanted to shame and humiliate a journalist who was determined to expose the failures of the ruling Hindu nationalist Bharatiya Janata Party’s gender, caste, and religion-based violence. But more importantly, they wanted to shut up a Muslim woman who had dared to be vocal in Modi’s India.

When the photo was posted, I wondered how the main perpetrator , a 21-year-old student from Assam, who created Bulli Bai could be so consumed by his hatred that he felt compelled to auction Muslim women online for their outspoken criticism of the BJP—journalists, social workers, actors, and politicians. A recent meeting with my lawyer about my case against the Bulli Bai creators, who are still being investigated by the Delhi police, was a painful reminder of the targeted harassment faced by outspoken Muslim voices critical of the ruling BJP. 

As the ongoing election in India is set to finish on June 1, it has once again offered deeper insight into how political dialogue is fueling this culture of hate. 

Particularly, the political campaign of Prime Minister Narendra Modi’s BJP has leaned into anti-Muslim sentiment, progressively making Islamophobia one of the defining features of this election.

It was most prominently on display when Modi, in a thinly veiled reference to Muslims, referred to the 200 million Indian Muslim population as “infiltrators” at a BJP campaign rally while addressing voters in the Western state of Rajasthan on April 21. The Prime Minister also accused the opposition Congress party of planning to distribute the country’s wealth to Muslims.

Modi, in his speech, asked, “Earlier, when his [ former Prime Minister and Congress Party member Manmohan Singh’s] government was in power , he had said that Muslims have the first right on the country’s property, which means who they will collect this property and distribute it to—those who have more children, will distribute it to the infiltrators. Will the money of your hard work be given to the infiltrators? Do you approve of this?”

Read More: How India’s Hindu Nationalists Are Weaponizing History Against Muslims

This 2006 statement by former Prime Minister Manmohan Singh emphasizing that minorities, particularly Muslims , should have the first claim on resources to help uplift their socio-economic status, has been often quoted out of context in political rhetoric, distorting its original intent to uplift marginalized communities.

The reemergence of conspiracy theories like “Love Jihad,” alleging a covert agenda by Muslim men to ensnare and convert Hindu women, by Modi, has surged back into public attention, prominently surfacing at an election rally on May 28, days before the seventh and last phase of the ongoing elections, in the Eastern state of Jharkhand . 

The alarming rhetoric about Muslim population growth too have dominated the election discourse, fueled by the BJP's top leader, Modi, who has been criticized for his Islamophobic remarks, evoking memories of Gujarat's 2002 riots. While he later denied singling out Muslims in an interview with an Indian news channel, his history of linking them to population growth fuels a Hindu-majoritarian conspiracy theory.

Following the 2002 anti-Muslim riots in Gujarat during his tenure as chief minister, Modi faced scrutiny regarding his administration's lack of assistance to relief camps, predominantly established by non-profit organizations and Muslim communities. During a campaign rally, Modi then insinuated that these camps might transform into "baby factories," implying that Muslims could potentially have families as large as 25 children.

In his Jharkhand rally in May of this year, Modi spoke of "unseen enemies" working to divide society and claimed that the opposition parties were playing into the hands of “infiltrators”. He warned against "Zalim (cruel) love," alluding to Love Jihad. 

As the elections progressed, Modi’s speeches transformed slowly from issues such as “development” to anti-Muslim rhetoric. Unlike previous elections, Modi's campaign strategy this time has shifted towards overt Hindu-Muslim politics, drawing attention to his past record and raising concerns among Indian Muslims, as evidenced by the Election Commission's intervention in a campaign video by the BJP inciting hatred against Muslims. 

The video, shared by BJP Karnataka wing with a cautionary message in Kannada, depicted a cartoon version of Congress’s Rahul Gandhi placing an egg marked "Muslims" into a nest alongside smaller eggs labeled with categories such as "Scheduled Castes," "Scheduled Tribes," and "Other Backward Castes.” The narrative unfolds as the "Muslim" hatchling is shown being nourished with financial resources, eventually growing larger and displacing the other hatchlings from the nest—implying that a Congress government will give away all resources to Muslims. 

This came days after another animated video shared by the BJP’s official Instagram handle was removed on May 1 after a large number of users of the platform reported the video for “false information” and “hate speech.” The video repeats the BJP’s rhetoric on the Congress party, who they allege are“empowering people who belong to the very same community [of] invaders, terrorists, robbers and thieves [who] used to loot all our treasures” while the voice-over says, “If Congress comes to power, it will snatch all the money and wealth from non-Muslims and distribute them among Muslims, their favorite community.” 

Despite its controversial content, the video amassed over 100 thousand likes before being removed.

Both videos come after claims by Modi during his campaign speeches that Congress was planning to “steal” reservations in educational institutes and government jobs among other benefits from Scheduled Castes, Scheduled Tribes, and Other Backward Castes and redistribute them to Muslims.

Modi may be the foremost leader, but he's not alone in setting the tone; other top-tier BJP leaders are also walking in his footsteps. Home Affairs Minister Amit Shah's remarks linking voting for the Congress party to "jihad" in the South Indian state of Telangana have also stirred controversy.

Read More: The Modi-fication of India Is Almost Complete

The India Hate Lab, a Washington D.C.-based group that documents hate speech against India’s religious minorities, in its report of 2023 paints a grim picture of rising hate speech incidents against Muslims, totaling 668 documented cases. 

These incidents, often featuring calls for violence and spreading divisive theories, were predominantly concentrated in regions governed by the BJP, particularly during key election periods like in Rajasthan, Madhya Pradesh, Telangana, and Chhattisgarh. Additionally, the report highlighted stark differences in hate speech content between BJP and non-BJP-governed areas, with BJP leaders more frequently involved in non-BJP territories as they strive to expand political footholds.

When leaders resort to fear-mongering, it legitimizes the dehumanization of minorities, creating a fertile ground for extremists. This often isn’t just about one app or incident. It’s about the pervasive atmosphere of intolerance that such rhetoric by the BJP leaders breeds. And those who oppose this type of hate speech want to ensure that no one—regardless of their faith, gender, or caste—has to live in fear of being targeted for who they are. 

Modi’s statement received widespread criticism from the opposition, the intelligentsia community including authors, writers, scholars, academics, and the minority Muslim population of India. The Congress party even filed a complaint with the Election Commission, alleging that Modi's remarks violate electoral laws that prohibit appeals to religious sentiments. Despite public outcry and demands from activists and citizens for action, the Election Commission has so far taken no appropriate action. 

Modi's Islamophobic statements, which have fueled fears over and over again among India's Muslim population, must be viewed within the broader context of his party's strategies—which often invoke religious and communal sentiments to galvanize their voter base. And this time, the aim is to break all previous records by securing 400 plus seats in the 543 seat parliament.

If the BJP is able to secure such a huge majority in the parliament, Hindu majoritarianism will remain unchecked. The hostility towards the minorities could escalate even more, and opposition parties may bear the brunt of state agencies and crackdowns if they ask questions. 

During Modi’s previous terms, Muslims have seen an increased marginalization and discrimination fueled by Hindu nationalist agendas—ranging from difficulty in securing a rented accommodation in urban cities, erasure of Muslim names from roads, cities and railway stations, to the underrepresentation in government jobs and discrimination and vandalism of shops of small Muslim vendors. 

Today, India, a country which once took pride in its ganga-jamuni tehzeeb —a term used to refer to the fusion of Hindu-Muslim cultures—has become a global epicenter of divisive politics. While elections will come and go, the impact of the irresponsible words of Modi and the BJP will stay with the 200 million plus Muslims in the country.

These words have real and dangerous implications for the safety and security of India's Muslim population. Muslims in India currently face increased social ostracism, economic boycotts, and even physical violence. And another victory with an overwhelming majority will only mean more trouble.

New Delhi Sweats Through Its Hottest Recorded Day

For weeks now, temperatures in several states in northern India have been well over 110, and hospitals have been reporting a rise in heatstroke.

Water pours from a pipe onto a person in a sunny, open area.

By Hari Kumar and Mujib Mashal

Reporting from New Delhi

New Delhi recorded its highest temperature ever measured on Wednesday — 126 degrees Fahrenheit, or 52.3 degrees Celsius — leaving residents of the Indian capital sweltering in a heat wave that has kept temperatures in several Indian states well above 110 degrees for weeks.

In New Delhi, where walking out of the house felt like walking into an oven, officials feared that the electricity grid was being overwhelmed and that the city’s water supply might need rationing.

The past 12 months have been the planet’s hottest ever recorded, and cities like Miami are experiencing extreme heat even before the arrival of summer. Scientists said this week that the average person on Earth had experienced 26 more days of abnormally high temperatures in the past year than would have been the case without human-induced climate change.

Extreme heat can cause serious health issues and can be fatal.

Although late-afternoon dust storms and light drizzle in New Delhi had brought hope of some reprieve on Wednesday, the weather station at Mungeshpur, northwest of the capital, reported a recording of 126 degrees around 2:30 p.m. Dr. Kuldeep Srivastava, a scientist at the regional meteorological center in Delhi, said it was the highest temperature ever recorded by the automatic weather monitoring system, which was installed in 2010.

In a statement later on Wednesday evening, India’s meteorological department said the Mungeshpur station was “an outlier compared to other stations.” It said it was assessing whether that station’s recording of a higher temperature than other stations around Delhi was due to an error or a local mitigating factor.

The previous record for the highest temperature, around 48 degrees Celsius — about 118.5 Fahrenheit — was repeatedly crossed in recent days. Three of New Delhi’s weather stations reported temperatures of 49.8 degree Celsius — 121.8 degrees Fahrenheit — or higher on Tuesday, setting a new record even before the 52.3 degree reading on Wednesday afternoon.

For weeks now, temperatures in several states in India’s north have reached well over 110 degrees, and hospitals have been reporting an uptick in cases of heatstroke. In the Himalayan states, hundreds of forest fires have been reported.

Deadly fires in crowded buildings are regular occurrences in India, with many of them caused by short circuits. The rising temperatures have increased concerns about the risks.

Atul Garg, Delhi’s fire chief, said daily fire-related calls have crossed 200, the highest in the past decade.

“Normally during this period in the last eight to 10 years we would receive 160 calls per day,” Mr. Garg said. “We are stretched in terms of manpower.”

The heat wave has coincided with campaigning for India’s general election, with the last phase of voting set to take place on June 1. Candidates, including Prime Minister Narendra Modi and opposition leaders, have continued holding large public rallies, despite the temperatures.

Nitin Gadkari, a cabinet minister who is running for re-election, fainted from the heat while addressing a rally, and on Tuesday, Rahul Gandhi, the opposition leader, took a break during a speech to pour water from a bottle onto his head.

“It’s quite hot, no?” he said.

To help conserve water amid the extreme heat, Atishi Marlena, Delhi’s water minister, announced the deployment of 200 teams to crack down on waste and misuse. Fines will be imposed for activities such as washing cars with hoses, “overflow of water tanks” and “use of domestic water for construction or commercial” purposes, she said.

Delhi’s lieutenant governor, V.K. Saxena, ordered measures to protect construction workers during the midday heat, and for water to be provided at bus stands.

The state broadcaster reported that Mr. Saxena, who was appointed by Mr. Modi, had also called for construction workers to get “paid leave” between noon and 3 p.m. But it did not say how that would be implemented, particularly at a moment when the capital region’s administration is paralyzed by infighting between its lieutenant governor and the elected chief minister.

Just how much the heat has affected daily life in the Indian capital was captured in the adjournment order of a consumer dispute court last week when the most intense period of the heat wave began.

The presiding official, Suresh Kumar Gupta, complained that the room had no air-conditioning, and the water supply in the bathrooms was also affected.

“There is too much heat in the courtroom, which led to sweating, as such it is difficult to hear arguments,” he said in the order. “In these circumstances, arguments cannot be heard, so case is adjourned.”

Jitender Singh, 42, an auto rickshaw driver in the eastern part of the city, said that business was down by about a third because people were avoiding leaving their homes. He said he and his colleagues had frequently fallen sick.

“But we must come on the road to support our families,” he added.

Hari Kumar covers India, based out of New Delhi. He has been a journalist for more than two decades. More about Hari Kumar

Mujib Mashal is the South Asia bureau chief for The Times, helping to lead coverage of India and the diverse region around it, including Bangladesh, Sri Lanka, Nepal and Bhutan. More about Mujib Mashal

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Top 10 Indian content creators who made history at this year's Cannes Film Festival

The Cannes Film Festival 2024 highlighted a diverse group of Indian content creators, including beauty creator Ankush Bahuguna, chef Sanjyot Keer, and fashion designer Nancy Tyagi. These creators showcased their unique talents and made significant debuts on the iconic red carpet.

Supalee Dalai

  • Supalee Dalai
  • Published: Saturday, 01 June 2024
  • Last updated: 01 June 2024, 11:36 AM IST

Indian content creators at the Cannes Film Festival

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As the festival that celebrates creativity, art, and cultural diversity, the Cannes Film Festival has been setting a trend to welcome content creators on its iconic red carpet. As expected this year too, a fresh wave of content creators made history at the prestigious event.

Among them, many Indian content creators graced the event with their noteworthy entries. In this story let’s have a look at these talented individuals who continuously make their mark on the global stage. 

Ankush Bahuguna: 

Earning the title of “India’s first male beauty creator”, Ankush Bahuguna is well-known for his humorous beauty content. Also known for his YouTube show ‘Wing It With Ankush’ where he features makeup ideas and partners with many popular personalities, has graced the Cannes red carpet 2024 with his iconic appearance.

        View this post on Instagram                       A post shared by Ankush Bahuguna (@ankushbahuguna)

Sanjyot Keer: 

With 9 million followers across his social media channels, Chef Sanjyot Keer became the second Indian chef to walk on the Cannes red carpet. Keer is well-known for his unique and innovative fusion of flavours.

        View this post on Instagram                       A post shared by Sanjyot Keer (@sanjyotkeer)

Nancy Tyagi: 

Hailing from Uttar Pradesh and boasting a base of 2 million followers on social media platforms, Nancy Tyagi is a self-taught fashion designer who made waves at the Cannes 2024, becoming the first artist to wear self-designed outfits in the festival’s history.

        View this post on Instagram                       A post shared by Nancy Tyagi (@nancytyagi___)

Vishnu Kaushal: 

Well-known for his relatable humour Punjabi content, Vishnu extended his expertise in the realm of fashion with his brand Peach by Vishnu while appearing in Bollywood alongside SRK in the movie Dunki. With 2 million followers on Instagram, he debuted at the Cannes this year.

        View this post on Instagram                       A post shared by Vishnu Kaushal (@thevishnukaushal)

Karishma Gangwal: 

Popularly known as RJ Karishma, Karishma Gangwal is well-known for her witty videos where she shares relatable skits about everyday family life, instantly captivating the Indian audience. Karishma made her Cannes Film Festival red carpet debut this year with a stunning appearance.

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Aastha Shah: 

Known for breaking barriers and redefining beauty standards through her content, Aastha is a lifestyle and beauty content creator hailing from Mumbai. Boasting 1 million followers on Instagram, she graced the Cannes red carpet this year, becoming the first Indian influencer with Vitiligo to do so.

        View this post on Instagram                       A post shared by Aastha Shah (@aasthashah97)

Niharika NM: 

All set to debut in a Tamil movie, Niharika, walked the Cannes red carpet for three consecutive years as a debutant actor. She started her journey as a digital content creator, earning significant recognition for her relatable and humorous Instagram reels with over 6 million followers across various social media platforms.

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Viraj Ghelani: 

Popular for his comedy content on various social media platforms, Viraj walked the Cannes red carpet this year. He also marked his name in Bollywood with movies like ‘Jawan‘ and ‘Govinda Naam Mera’, showcasing his talents.

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Raj Shamani: 

An entrepreneur, a motivational speaker, and also a social media influencer, Raj is well-known for his podcast ‘Figuring Out’ and several TEDx Talks. Boasting over 2 million followers on Instagram, he made his debut at the Cannes Film Festival this year.

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Sharan Hegde: 

Specialising in personal finance, Sharan is a digital content creator and also an entrepreneur. Boasting 2 million followers on Instagram he shares engaging and informative content to help his audience manage their finances. This year, he made his debut at the Cannes Festival.

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Indian food in America: How chefs are expanding the perception of the cuisine

Three dishes from Michelin-starred New York City restaurant, Semma.

On a windy evening in West Los Angeles, a small group of mostly strangers gathered inside a trendy loft apartment.

The 15 or so folks were an interesting cross section of humanity — from a winery owner/operator to this very reporter — and all had been selected to attend the dinner series, hosted by chef Palak Patel.

The author of the new cookbook “ Food is Love ” and former “Chopped” winner is one of the many chefs amplifying Indian cuisine in the United States.

Though Indian eateries only make up about 7% of Asian restaurants in the U.S., according to a 2023 analysis by Pew Research Center , it’s a cuisine on the rise.

In an interview with TODAY.com, Patel says she is excited to see Indian food expand into a new era.

“I think Indian food is very limited in the U.S. to just north Indian food,” she says, adding that “there’s a million people in the country!”

“Each region has its own flavor, its own take, household to household, things are different,” she continues. “And so how do you bring that much diversity to a culture that is obviously intrigued and loves it? You just need to get them to try it.”

Chef Palak Patel laughing.

She says it’s not just Indian food seeing increasing diversity in its stateside representation — Chinese, Thai, Korean and Mexican food is all seeing a rise in more regional dishes.

“People are getting more regionalized,” she says. “I think that Indian food is just benefiting from the collective, like, raise of every cuisine.”

She adds that Americans are realizing there’s more to Asian cuisines than go-to’s, like pad thai or chicken tikka masala.

“I think collectively, the flavor profiles have expanded,” she says, adding she believes “the tolerance for flavor and expansion of flavor is going through the roof.”

Nik Sharma, author of “ Veg-Table ,” agrees. He says in the nearly 25 years he’s lived in the U.S., he’s seen a profound shift in how non-South Asian Americans approach food.

“We’ve gone from having to satisfy the palate of what our consumers expect from us that aren’t familiar with the culture to doing these things that are, I would say, fun takes,” he says. “We’re taking the techniques and we’re applying it in a very different way and making it our own.”

And chef Vijay Kumar of Semma in New York City tells TODAY.com he loves "to see how things have been changing."

Manish Mallick of Soirée Hospitality in Chicago also thinks the wider U.S. audience today is more inquisitive, and that Indian Americans are open to sharing their culture with friends outside their diaspora.

Patel says Indian flavors are also much more readily accessible at American grocery stores now than they were in years prior.

“I think 15 years ago (for) turmeric you’d have to go to some, like, very specialized store,” she says. “The fact that we can get garam masala, cardamom, clove powder — I mean, these are the basics of Indian cooking and you can get them at like a Kroger or Publix or Vons.”

Food from Rooh Chicago.

Patel says it just takes one spice — garam masala — to introduce Indian flavors to your cooking.

“I always called garam masala the gateway — like if you’re not going to buy all of them; just buy one,” she quips. “If you just want to throw that on roasted vegetables, you’ll get a good representation of what it’s like to have these spices kind of play together.”

And according to Sharma, integrating these flavors is more natural than some folks might think. He says, “at the end of the day, one of the things we have to remember is that borders are a much more recent human construct than cultures and traditions. Cultures and traditions and ingredients, especially in people more so, have been immigrating and migrating for centuries. We’ve taken things and moved them along.

Sharma, who got his start in the culinary world as a food columnist for the San Francisco Chronicle, gives the example of tomatoes and potatoes. Both are a “huge part of Indian culture” but didn’t “come from India,” he says.

“They came from the Americas,” he chuckles, adding he often thinks about this in his own work developing recipes. “As an immigrant, I came from India (and) I’m doing things in my very own, different way. It’s telling a story of where I grew up and where I am.”

Though, it’s not just his story growing and evolving.

“I think the palate of the consumer is changing,” he says. “I would say like the past eight years or 10 years, the biggest revolution in food has not been cultural so much as it has been the openness of the consumer to try new flavors.”

Sharma continues, adding he’s seen people becoming more and more curious about flavors. “And I think that’s a huge thing,” he says, “because if we can get there, then people’s minds open up to different cultures and trying new things.”

Chef Kumar is capitalizing on that newfound openness at Semma. The chef — who is from Tamil Nadu, the southernmost state of India — opened his restaurant in 2021. Its menu features dishes from his home state, and Kumar says all his food is “just as spicy” in his restaurant as it was in his family’s home kitchen.

He hopes his restaurant will serve as a representation of Indian food in Western countries without “sacrificing our own identity” or “trying to be Westernized Indian food.”

He says he takes that message to heart, crafting each dish “based on a childhood memory” of his upbringing in a “tiny village” back in Southern India — the presentation is just nicer.

food shot from above from Semma NYC.

“I’m trying to change the perception of Indian food,” Kumar says. “When every food is being presented beautifully, why (not) our food?”

Kumar notes his restaurant was the first Indian restaurant to be awarded a Michelin star — one of the highest honors in the culinary world — back in 2022.

“The next year, there were two other Indian restaurants (awarded stars),” he says, referring to Rania in Washington, D.C., and Indienne in Chicago . “I’m hoping there will be more this year and then there will be more and more in the following years.”

Kumar clarifies he’s not just talking about seeing these eateries on Michelin lists, rather he wants to see more of them in general. “I hope there will be a lot more great Indian restaurants which represent good Indian cuisines.”

It’s a niche that Mallick is trying to fill in Chicago. He says he left a job in tech after seeing a “dearth of elevated dining experiences” featuring Indian food.

“That’s what led me to open all these modern Indian restaurants,” Mallick says. “And fortunately, I was right. The demand was there.”

He’s since opened two Indian eateries in the Windy City — Bar Goa and Rooh .

Mallick says the community has been overwhelmingly supportive — “both Indians and non-Indians.”

“People were tired of the whole buffet-style Indian restaurants, not focused on the elegance of the cuisine, from a presentation perspective, from a conversation perspective, ambiance,” he says.

“The more the Indian community grows, the more they want places to go and enjoy and are unique,” he says.

It’s this family and community aspect of eating that Patel says she’s trying to replicate in her own life with her cookbook “Food is Love.”

Images of food and prep from Chef Palak Patel's dinner party.

After growing up in a multi-generational house “full of women cooking” back in India, Patel says she grew to associate the task with how her family showed their appreciation for each other.

“I mean, maybe (cooking) was a chore and kind of sexist culturally, but it did get me in the kitchen,” she laughs. “And it kind of opened up this way of cooking that I love and you know, the title of (the cookbook) came from that — food is love, right?”

Over wine and lemon meringue pie, she tells the guests at her dinner party that sentiment is why she wrote the book, and why she’s hosting the in-person series we attended that brought all of us unlikely companions together.

Patel says in her family’s native language, Gujarati, there is no word for “I love you.”

“But I knew my mom loved me because she cooked for me. I knew my grandmother loved me when she cooked for me,” she says. “So it was this idea that love can be shown through many different ways.”

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Sam Kubota is a senior digital editor and journalist for TODAY Digital based in Los Angeles. She joined NBC News in 2019.

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